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चुनाव की प्रणाली में व्यवहारित सुधार होनें चाहिये - अरविन्द सिसौदियाelection-reform

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अरविन्द सिसौदिया

 

 चुनाव की प्रणाली में व्यवहारित सुधार होनें चाहिये । करने योग्य परिवर्तनों को चुनाव सुधार कहते हैं । जिनके करने से जनता की आकांक्षाएँ चुनाव परिणामों के रूप में अधिकाधिक लोककल्याणकारी हों तथा आपराधिक मनोवृति एवं दूषित आचरण को रोक सकें। इस तरह के चुनाव सुधारों हेतु कुछ सुझावं निम्न लिखित है। यदि आपके मन में कोई सुधार हेतु सुझाव है तो टिप्पणी के माध्यम से नीचे दर्ज कर सकते हैं। :-
 

1- मतदान प्रति पांच वर्ष में एक बार मतदान पर्व के रूप में होना चाहिये। यह एक माह का हो, इसमें एक साथ सांसद, विधायक, निकाय एवं पंचायती राज के चुनाव सम्पन्न होनें चाहिये। जनवरी के माह से प्रारम्भ कर चुनाव प्रक्रिया भारतीय नववर्ष से पूर्व पूर्ण कर नववर्ष प्रतिपदा से सभी निर्वाचित पदासीन होंगे।
2- किसी को भी दो सीटों से चुनाव लडनें की इजाजत नहीं होगी।
3- मतदान नागरिकों / सदस्यों को अनिवार्य हो, मतदान नहीं करने पर बडी राशी का अर्थ दण्ड हो । असर्मथों से मतदान करवाने हेतु उनके समक्ष मतदान कर्मचारी जा कर आन लाईन मतदान करवा सकेगे।
4- इलेक्ट्रानिक मतदान मशीन द्वारा मतदान सभी चुनावों हेतु अनिवार्य हो,
5 वरिष्ठ एवं विकलांग नागरिकों को वैकल्पिक डाक /आनलाईन मतदान की सुविधा भी दी जानी चाहिये
6- नकारात्मक मत का विकल्प,’किसी को मत नहीं’ (नोटा) का विकल्प सभी चुनावों में अनिवार्यतः होना चाहिये, भले ही वह चुनाव सामान्य समिति के ही क्यों न हों।
7- 50 प्रतिशत समय पूर्ण होनें के बाद,एक बार जनता को चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाने या वापस बुलाने अधिकार होगा एवं उसकी व्यवस्था होनीं चाहिये।
8- मत-गणना प्रति राउण्ड के बाद घोषित होनी चाहिये। पुनः मतगणना नहीं होनी चाहिये। प्रति राउण्ड 20 पेटियां/मशीनें खोलनें की व्यवस्था हो। उनमें से एक का पर्ची मिलान हो। मतगणना पूर्णतः सही विधि से ही होनी चाहिये।
9- कम से कम 33 प्रतिशत स्त्रियों एवं 10 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों हेतु सीटों का आरक्षण होना चाहिये, ये क्लाक बाईज हों। भले ही इसके लिये आरक्षण में आरक्षण किया जाये।
10- प्रत्याशियों के लिए समुचित योग्यता एवं अर्हताएँ आवश्यक रूप से निर्धारित होना चाहिये ।
11- नागरिक /मतदाता के लिए यह अनिर्वाय हो कि उसकी निष्ठा राष्ट्र के प्रति हो । यदि किसी नागरिक की निष्ठा या व्यवहार संदिग्ध अथवा किसी दूसरे देश के प्रति निष्ठावाला हो तो उसकी नागरिकता निर्वाचन आयोग समाप्त कर सकता है।
12- देश की संसद में वर्तमान में भी अधिक सदस्य हैं । बहस की क्वालिटी समसप्त हो जाती है। लोककल्याण बाधित होता है। इसलिये अब सदस्यों की संख्या को नहीं बडाना चाहिये, न ही प्रांत वाईज सीटों को कम ज्यादा किया जाना चाहिये । पांच चुनाव पूर्ण होनें पर इनका जनसंख्या औसत के आधार पर डीलिटेशन होना चाहिये। डीलिमेटेशन में जनसंख्या आंकडे ठीक दो -तीन वर्ष पूर्व के ही होंने चाहिये। भले ही डीलिमिटेशने का समय बडाया जाये।
13- मतदान पत्रों की डिजाइन में पार्टी का लोगो अथवा चुनाव चिन्ह एवं व्यक्ति का नाम पर्याप्त होता है। इसे सरल और सहज रखा जाना चाहिये। ऐसी हो जिससे लोगों को समझने एवं खोजने में कठिनाई न हो।
14- प्रत्येक चुनाव में निष्पक्षता का ध्यान दिया जाये। अभी निर्वाचन आयोग के सारे काम राज्य का सरकारी तंत्र करता है। वह राज्य सरकार के दबाव में रहता है। इसलिये चुनाव के दौरान सरकार को भंग कर दिया जाना चाहिये। कार्यकारी सरकार में निर्वाचन मण्डल का गठन होना चाहिये,जो महामहिम राष्ट्रपति अथवा महामहिम राज्यपाल के नेतृत्व में निर्वाचन विभाग के अधिकारीयों एवं केन्द्र / राज्य के मुख्यशासन सचिव सहित हो।  
15- चुनाव पर कम खर्च हो और राजनैतिक दल पूर्व से ही जनहित में सलग्न रहें इस हेतु केन्द्रीय चुनाव में 15 दिन एवं राज्य के चुनाव में 7 दिन तथा पंचायती राज एवं निकाय चुनाव में तीन दिन प्रचार च्रसार को दिये जानें चाहिये।
16- चुनाव खर्चों का निर्धारण एवं उस पर नियन्त्रण,चुनाव प्रचार एवं आदर्श चुनाव आचार संहिता का कड़ाई से पालन
17- मतदाताओं के लिए भयमुक्त वातावरण हेतु, पुलिस पर सेना के अधिकारी नियंत्र रखेंगे तथा उनके द्वारा की गई कार्यवाही अंतिम होगी ।
18 - केन्द्र अथवा राज्य सरकार एवं न्यायपालिका सहित अन्य सेवाओं में कार्य करने वाले कर्मचसारी अधिकारी सेवा मुक्ति के 5 वर्ष पूर्ण होनें तक कोई भी चुनाव एवं राजनैतिक चुनाव नहीं लड सकेगे ।
19- चुनाव घोषणा पत्र में प्रलोभन नहीं दिया जा सकेगा। पलोभन सम्बधी कोई प्रचार प्रचार नहीं किया जायेगा। घूस देकर, शराब पिलाकर या जबरजस्ती मत डलवाने के विरुद्ध नियन्त्रण
20- मतदान के लिये आधार कार्ड अनिवार्य एवं चेहरा स्पष्टरूप से दिखने पर ही वोट का अधिकार होगा। अवैध मतदान पर पूर्ण रोक होगी।
21-चुनाव में मौसम एवं बडे त्यौहारों का ध्यान रखा जाये। की ऋतु, दिन एवं समय निर्धारण में सावधानी हो । सामान्यतः उसदिन अनिवार्य छुट्टी का प्रावधान हो । समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक का ही हो । एक बूथ (मतदान केन्द्र कक्ष )पर अधिकतम 1000 वोटर ही होनें चाहिये। अधिक बोटर की दशा में क,ख,ग, कक्ष हो सकते है।
22- 10 साल की सजा भुगत चुके व्यक्ति चुनाव नहीं लड सकेगे। 5 साल से अधिक सजा के विचाराधी आरोपी एवं कैदी भी चुनाव नहीं लड सकेगे। आदतन अपराधी भी चुनाव नहीं लड सकेगे। जेल से चुनाव लड़ने पर रोक रहेगी।
23- कोई भी भारतीय अधिकतम 75 साल की आयु तक ही प्रधानमंत्री एवं सांसद बन सकेगा। 65 वर्ष की आयु तक मुख्यमंत्री या विधायक तथा 50 वर्ष की आयु तक ही पार्षद, पंच या सरपंच निर्वाचित हो सकेगा।
24- कोई भी भारतीय एक ही पद पर अधिकतम लगातार दो बार ही चुनाव लड सकेगा।
25- किसी भी मंत्री मण्डल में 33 प्रतिशत महिलायें, 10 प्रतिशत वरिष्ठ सदस्यों को पद दिया जाना अनिवार्य होगा।

26- दल के चुनाव चिन्ह से चुनाव लडनें पर, दल बदल नहीं हो सकता।
27- एक बार चुनाव लड कर विजयी होनें पर, अवधि पूर्ण होनें से पूर्व बीच समय में त्यागपत्र देते है। तो अगले 10 वर्ष चुनाव नहीं लड सकेंगे।

28- प्रत्याशी तभी निर्वाचित घोषित किया जब वह 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करे। यदि प्रथम निर्वाचन में वह 50 प्रतिशत मत प्राप्त नहीं कर पाता है तो तो प्रथम दो के बीच दुबारा चुनाव करवाया जाये ताकि 50 प्रतिशत से अधिक मत वाला ही निर्वाचित घोषित हो।

29- प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, निकाय अध्यक्ष, पंचायती राज अध्यक्ष / सरपंच का चुनाव , सदस्यों के निर्वाचित होनें के तीन दिन के अंदर ही होंगे। तथा इनके खिलाफ दो वर्ष पूर्ण होनें के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव 50 प्रतिशत से अधिक सदस्यों के द्वारा एक बार ही लाया जा सकेगा। यदि अविश्वास गिर जाता है तो पुनः नहीं लाया जा सकेगा।

30- शहरी एवं लोकल वाडी में पंचायत की तरह छोटे निर्वाचन क्षेत्र बना कर, उन्हे अपने तरीके से काम करने के अधिकार दिये जानें चाहिये। एक सरपंच के साथ कम से कम 10 पंच और एक शहरी सरपंच पार्षद के साथ 10 पंचपार्षद निर्वाचित होनें चाहिये।

31- लोकल वाडी शहरी एवं ग्रामीण को अधिक अधिकार देकर, स्थानीय समस्याओं का समाधान प्राथमिक स्तर पर ही करवाया जाना चाहिये। मोहल्ला कमटी की तरह ।

नोट - देश धर्म शाला नहीं है। कुछ दलों या व्यक्तियों की महत्वाकांक्षा का संसाधन भी नहीं है। जो संविधान हमें अक्क्षुण्य रखे हम उसी के प्रति जबावदेह है। जो हमारे बीच शत्रुओं का और राष्ट्रअहित को स्थान प्रदान करे हम उसे मानने विवश नहीं है।


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