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पी के, कांग्रेस की वापसी नहीं करवा सकते - अरविन्द सिसौदिया

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Arvind Sisodia

      पी के, कांग्रेस की वापसी नहीं करवा सकते - अरविन्द सिसौदिया
    PK can't get Congress back: Arvind Sisodia


राजनैतिक रणनीतिकार के रूप में ख्याती प्राप्त कर चुक प्रशांत किशोर अर्थात पी के वही व्यक्ति हैं जो पंजाब में असली परिक्षा के समय कैप्टन अमरिन्दर सिंह का साथ छोड गये थे। अर्थात उनकी रणनीति से नहीं समय परिस्थिती को देख कर वे ग्राहक चुनते है। यह गलत है कि 2014 में नरेन्द्र मोदी जी ने उनसे कोई डील की थी, बल्कि उन्होने मोदी जी की टीम में रह कर रणनीति बनाना सीखा है। उन्होने जिन राजनैतिक दलों के प्रमुखों के साथ काम किया, वे अपने दल के स्वयं स्वामी जैसी स्थिती वाले तो थे ही किन्तु उनके यहां टांग खिचाई नहीं थी। जो कि कांग्रेस की सबसे प्रमुख समस्या है।

कांग्रेस की कुछ अलग प्रकार की समस्यायें है। जो उसे हांसिये पर डालती है। जैसे कि तुष्टिकरण की राजनीति जो कि बहुसंख्यक मतदाता हिन्दू विरोधी है। उससे उत्पन्न विरोधाभास आप न तो मंदिरों में जाकर , न ही जनेऊ पहन कर, न ही अपने आपका कोई गौत्र बता कर दूर कर सकते। दूसरी बडी समस्या है नेतृत्व की है श्रीमती सोनिया गांधी का सोच परिपक्व हो सकता है, मगर युवराज का सोच समस्यायें उत्पन्न करने वाला ही रहा है, देश की सबसे पुरानी मुख्यपार्टी के अध्यक्ष होकर स्वयं की सीट से हार जाना और अन्य चुनावों में भी विपरीत परिणाम सामनें आना रहा हैैं। बहनजी का चमत्कार भी यूपी में दिख ही गया है, जिसे आल ओवर जीरो ही कहा जायेगा। तीसरी बडी समस्या जी 23 कहलाये जानें वाले नेताओं की है , ये लोग सत्ता सुख भोगे लोग है। , यह सुख मुंह लगा हुआ है, जिसे ये आसानी से छोडना नहीं चाहते। मत प्रतिशत घटाना या बडाना इनके हाथ में नहीं है। किन्तु ये वातावरण खराब करते रहेंगे। वहीं इनकी जगह लेनें कांग्रेस में युवा टीम का बडा अभाव है। कांग्रेस की सबसे बडी समस्या है भारत के युवा व किशोर नागरिकों का मन ! जो प्रशांत किशोर या अन्य किसी की भी जमानत पर कांग्रेस के साथ खडा नहीं होना चाहता । उन्हे वर्तमान भाजपा नेतृत्व पर पूरा भरोषा है।

अंतिम , यूं भी कांग्रेस के बिखराव को समाप्त कर उसे ठोस एक जुट चट्टान में इतनी जल्दी बदला नहीं जा सकता और पी के से भी बहुत कुछ उन्हे हांसिल नहीं होना । हां गैर कांग्रेसी दलों को रणनीति के नाम पर भ्रामकता को लेकर जरूर सावधान रहना होगा। टूलकिट पोलिटिक्स को लेकर सर्तकता रखनी होगी।

वर्तमान में लगभग 40 से 50 प्रतिशत मतदाता भाजपा के साथ है, और कोई विशेष बात नहीं हो तो लगभग 40 प्रतिशत मतदाता लोकसभा चुनावों में वोट डालने नहीं जाता है। लोकसभा में सामान्यतः लगभग 45 से 70 प्रतिशत के मध्य ही मतदान रहता है । अब शेष मत प्रतिशत में डेढ दर्जन से अधिक दलों का बंटवारा है। कांग्रेस कहीं भी खडी नहीं दिख रही है। क्यों कि वह अब मात्र दो राज्यों तक स्वयं व दो राज्यों में गठबंधन के साथ है।

अगला लोकसभा चुनाव 100 करोड मतदाताओं का होनें जा रहा है।



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