पार्थ को बली का बकरा बना,खुद को क्लीन चिट नहीं दे सकतीं ममता बनर्जी - अरविन्द सिसौदिया
भारत के संविधान में जब राजनैतिक दलों की चुनाव लडनें की प्रणाली तय की गई थी तब संभवतः किसी को पता नहीं था कि यह व्यवस्था पूंजीवादी तंत्र को देश सौंप देनें मात्र की अव्यवस्था साबित होगी। चुनाव में बहुत अधिक एवं कल्पना से परे धन व्यय होता है। यह धन देश की 99 प्रतिशत जनता के दान से आना संभव नहीं है , नाही कार्यकर्तागण इतना कोष एकत्र कर सकते हैं।
धन एकत्रीकरण के पीछे दो चेहरे होते हैं। पहला देश के कुछ बडे आद्योगिक घरानें जो सब व्यवस्था कर सरकार बनवाते हैं एवं फिर सरकार से उनके फेबर की योजनायें बनवा कर, आबंटन करवा कर,टैक्स कम ज्यादा लगवा कर, पैसा कमाते हैं। दूसरा उस दल के द्वारा पर्दे के पीछे छुपे तरीकों से विधियों से धन कमाना और उसका चुनाव के समय उपयोग कर लेना । यह तभी संभव होता है जब उस दल की सरकार बनीं हो ।
कुछ समय पहले उत्तरप्रदेश में चुनाव के दौरान समाजवादी इत्र के लिये सैंकडों करोड नगदी मिली थी। यह इसी तरह कहीं कमरों में , गोदामों में बंद राशी होती है। जो कि चुनाव के लिये एकत्र की जाती है और चुनाव में बिना हिसाब किताब के उपयोग की जाती है। इसीलिये जब किसी दल की सरकार बन जाती है, तो कार्यकर्ता साईड लगा दिये जाते हैं और धन व्यवस्था के व्यवस्थापक सरकार के निर्णय भी प्रभावित करते हैं नियुक्तियां भी प्रभावित करते है और सर्वे सर्वा हो जाते हैं। इसी दोषपूर्ण व्यवस्था के क्रम में यह बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला देखा जा सकता है। चुनाव हेतु धन अर्जित कर एकत्र किया गया हुआ प्रतीत होता है।
मुख्य सवाल यही है कि फुटकर लोगों से बडी संख्या में शिक्षक भर्ती के लिये धन की उगाही हुई हो और राज्य की मुख्यमंत्री को पता भी नहीं हो यह असंभव है। कहा जाता है कि दीवारों के भी कान होते हैं और आज की आधुनिक तकनीक के जमानें में तो बात पहुंचते देर नहीं लगती । तेजतरार नेता ममता जी को एक मुख्यमंत्री के नाते बहुत पहले से सब कुछ ज्ञात था। यह मंत्री उनका सबसे खास एवं करीबी था। पैसों की जानकारी उन्हे पता नहीं हो यह संभव नहीं है। यदी उन्हे पता नहीं भी थी तो भी यह उनकी विफलता इसलिये है कि वे मुख्यमंत्री स्वयं हैं। उनकी जबावदेही है। उनका शासन भ्रष्ट है, इसका इससे बडा प्रमाण और क्या हो सकता है।
कुल मिला कर ममता बनर्जी नें मंत्री पार्थ चटर्जी को बली का बकरा बना दिया है और स्वयं को बचा लिया है। क्लीन चिट दे दी है, जो कि पूरी तरह गलत है। नैतिकता तो यह मांग करती हैं कि वे सरकार से इस्तीफा दे कर निष्पक्ष जांच होनें दें मगर यह होगा नहीं । भारत में नैतिकता का दौर समाप्त हो चुका है, हठघर्मी का दौर जारी है। फिर बंगाल तो इसकी अगुवाई कर रहा है।
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- पूरी कहानी साल 2014 से शुरू होती है, जब पश्चिम बंगाल सरकार ने स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) के जरिए सरकार द्वारा संचालित और सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए भर्ती अधिसूचना जारी की और फिर उसके लिए 2016 में भर्ती प्रक्रिया शुरू की। इसके अलावा ग्रुप डी के लिए राज्य सरकार 2016 में ही 13 हजार कर्मचारियों की भर्ती का ऐलान किया। इस बीच 2017 में परीक्षा के परिणाम घोषित हुए।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रिजल्ट में सिलीगुड़ी की बबीता सरकार का नाम टॉप 20 उम्मीदवारों में था। लेकिन आयोग ने यह सूची रद्द कर दी थी और बाद में दोबारा लिस्ट निकाली। जिसमें बबीता का नाम वेटिंग लिस्ट में चला गया। और नई लिस्ट में परेश अधिकारी जो उस वक्त विधायक थे (फिलहाल शिक्षा विभाग के राज्य मंत्री हैं), की बेटी अंकिता अधिकारी पहले नंबर आ गई। इसके बाद बबीता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कलकत्ता हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि अंकिता अधिकारी को नौकरी से हटाया जाए और उनको जितना वेतन मिला है वह भी वसूला जाए। इसके बाद ग्रुप-सी और डी भर्तियों में भी अनियमितता की बाद सामने आई। और अब मामला सीबीआई और ईडी के पास है।
-पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में गिरफ्तार टीएमसी नेता और ममता सरकार में मंत्री पार्थ चटर्जी को सभी पदों से हटा दिया है। सीएम ममता बनर्जी ने कैबिनेट बैठक के बाद पार्थ चटर्जी को मंत्री समेत पार्टी के सभी पदों से हटा दिया है। अब पार्थ चटर्जी का विभाग स्वयं सीएम ममता बनर्जी संभालेंगी। ईडी के द्वारा छापेमारी में अर्पिता मुखर्जी के दूसरे अपार्टमेंट से भी 28.90 करोड़ रुपये नकद, 5 किलो से ज्यादा सोना और कई दस्तावेज बरामद हुये हैं। इससे पहले अर्पिता के घर से 21 करोड़ रुपए नकद बरामद किए गए थे। मुख्यमंत्री ममता बनैर्जी के बाद सबसे वजनदार मंत्री रहे पार्थ चटर्जी को ममता जी का सबसे विश्वसनीय एवं करीबी माना जाता हैं।
-ईडी ने पश्चिम बंगाल के उद्योग और वाणिज्य मंत्री पार्थ चटर्जी, उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी, शिक्षा राज्य मंत्री परेश सी अधिकारी, विधायक और पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष माणिक भट्टाचार्य और कई अन्य लोगों के ठिकानों पर छापेमारी.
ईडी ने एक बयान में कहा कि तलाशी के दौरान, ईडी ने पार्थ चटर्जी की करीबी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के आवासीय परिसर से लगभग 20 करोड़ रुपये की नकदी बरामद की. -ईडी ने आरोप लगाया कि इन रुपयों के स्कूल सेवा आयोग (एस एस सी ) घोटाले से जुड़े होने का संदेह है. जांच एजेंसी के अनुसार अर्पिता मुखर्जी के घर से 20 से अधिक मोबाइल फोन भी जब्त किए गए हैं, जिसके उद्देश्य और उपयोग का पता लगाया जा रहा है.
- सीबीआई हाई कोर्ट के निर्देश पर पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग की सिफारिशों पर सरकार द्वारा प्रायोजित व सहायता प्राप्त स्कूलों में समूह ‘सी’ और ‘डी’ के कर्मचारियों व टीचरों की भर्ती में हुई कथित अनियमितताओं की जांच कर रहा है. वहीं, प्रवर्तन निदेशालय इस मामले से संबंधित कथित मनी लॉन्ड्रिंग की तफ्तीश में जुटा है.
अभी उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री पद पर काबिज चटर्जी उस समय शिक्षा मंत्री थे, जब कथित घोटाला हुआ था. सीबीआई दो बार उनसे पूछताछ कर चुकी है. पहली बार पूछताछ 25 अप्रैल, जबकि दूसरी बार 18 मई को की गई थी.
-सीबीआई पश्चिम बंगाल के शिक्षा राज्य मंत्री अधिकारी से भी पूछताछ कर चुकी है. इसके अलावा उनकी बेटी स्कूल टीचर की अपनी नौकरी गंवा चुकी हैं.
- ममता बनर्जी के लिए चुनौती ठीक उसी तरह बन सकती है, जैसे शारदा घोटाले में बनी थी। साल 2013 में शारदा समूह के चिटफंड घोटाले के खुलासे ने बंगाल की राजनीति में भूचाल ला दिया था। इस घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के नाम सामने आ गए थे। और उसके बाद रोजवैली समेत कई समूहों के घोटाले सामने आए।राज्य सरकार की जांच टीम ने शारदा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन और उनकी सहोगी देवयानी को गिरफ्तार किया था। और इसके बाद ममता सरकार में तत्कालीन मंत्री मदन मित्र को गिरफ्तारी कर लिया गया था। इसके अलावा सांसद मुकुल राय को भी सीबीआई की पूछताछ का सामना करना पड़ा था। बाद में मुकुल राय भाजपा में शामिल हो गए, हालांकि अब फिर से तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।