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हत्यारिन राजनीति : मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'

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http://krantmlverma.blogspot.in
हत्यारिन राजनीति
-  मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'
यह कविता मैंने सन १९८४ में भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी की हत्या के पश्चात लिखी थी इसे लखनऊ से राष्ट्रधर्म में श्रीयुत वचनेश त्रिपाठी ने और ग्वालियर से स्वदेश में श्रीयुत राजेन्द्र शर्मा ने प्रकाशित करने का साहस किया था, अन्य समाचार पत्रों ने डर के मारे इसे छापने से ही मना कर दिया था ।


स्वाधीन देश की राजनीति बतला कब तक,कुर्सी की खातिर किस-किस को मरवाएगी?
सिलसिला राजनीतिक हत्याओं का आखिर, इस लोकतन्त्र में कब तक और चलाएगी?

जब रहा देश परतन्त्र, असंख्य शहीदों ने,देकर अपना बलिदान इसे आज़ाद किया,
पैसे के बल पर कांग्रेस में घुस आये, लोगों ने इसको अपने लिए गुलाम किया.

साजिश का पहले-पहल शिकार सुभाष हुए, जिनको विमान-दुर्घटना करके मरवाया.
फिर मत-विभेद के कारण गान्धी का शरीर, गोलियाँ दागकर किसने छलनी करवाया?

किस तरह रूस में शास्त्रीजी को दिया जहर, जिनकी क्षमताओं का युग को आभास नहीं,
यदि वे जीवित रहते तो इतना निश्चित था,'नेहरू-युग'का ढूँढे मिलता इतिहास नहीं.

कश्मीर-जेल में किसके एक इशारे पर,मरवाये गये प्रखर नेता श्यामा प्रसाद?
गाड़ी में किसने उपाध्यायजी को जाकर,कर दिया ख़त्म, मेटा विरोधियों का विवाद?

नागरवाला की हत्या किसने करवाई? पी०पी० कुमारमंगल का कोई पता नहीं?
जनता शासन के आते ही डाक्टर चुघ का,परिवार ख़त्म कर दिया,कौन जानता नहीं?

इतना ही नहीं डाक्टर चुघ के हत्यारे,कर्नल आनन्द सफाई से हो गये साफ़.
कानून देश का अन्धा न्यायालय बहरा,आयोगों ने सारे गुनाह कर दिये माफ़.

जे०पी० के गुर्दों को किसने नाकाम किया, जो डायलिसिस की सूली पर झूलते रहे.
आपात-काल में कितने ही निर्दोष मरे, बलिहारी तेरी समय, लोग भूलते रहे.

खागयी गुलाबी-चना-काण्ड की बहस जिन्हें, वे ललितनारायणमिश्र जो कि जप लिये गये.
'रा'के कितने ही अधिकारी गण मार दिये. पर सभी 'जीप-दुर्घटना'में शो किये गये.

जो धूमकेतु - सा राजनीति में उभरा था, उस बेचारे संजय का किसने किया काम?
फिर बुलेटप्रूफ ब्लाउज उतार हत्यारिन ने, कर दिया देश की कुर्सी का किस्सा तमाम.

तू हिन्दू-मुस्लिम कभी सिक्ख को हिन्दू से, आपस में लड़वा कर कुर्सी हथियाती है.
हिन्दोस्तान की भोली जनता पता नहीं,  हर बार तेरे चक्कर में क्यों आ जाती है?

जो हवावाज थे उनको कुर्सी दी इसने,  पर वह भी तेरी मनसा भाँप नहीं पाये.
लिट्टे से पंगा लिया और मुँह की खायी, पेरम्बदूर में अपनी जान गँवा आये.

उनकी हत्यारिन से चुपके-चुपके जाकर, तू यदा-कदा तन्हाई में मिल आती है.
जिसको संसद पर हमला करने भेजा था, तू ही फाँसी से अब तक उसे बचाती है.

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