वास्तविक लोकतंत्र निर्माण पर आगे बड़े देश - अरविन्द सिसोदिया
लोकतंत्र लूटतंत्र में कैसे बदलता जाता है, जानें गणित - अरविन्द सिसोदिया
लोकतंत्र का अर्थ जनता का राज, नागरिकों का शासन। मगर यह जनता के हाथ में होते हुए भी जनता से बहुत दूर है। क्योंकि इसका जो तरीका है वह बेहद खर्चीला है, इसमें पैसे की जरूरत होती है। पैसा पूँजीपतियों के पास है, वह उन पर लाभ से एकत्र हुआ है। वे ज़ब उसे राजनीति पर खर्च करेंगे या निवेश करेंगे, तो उससे लाभ कमायेंगे और ज्यों ही लोकतंत्र लाभ कमाने का कार्य करेगा, वह व्यापार हो जायेगा और फिर वह भ्रष्टाचार में बदल जायेगा। यह हो भी रहा है। इसलिए लोकतंत्र में तमाम जनहित होनें के बावजूद वह लूटतंत्र में बदल जाता है।
उदाहरण, एक विधानसभा क्षेत्र में 2 से 3 लाख मतदाता होते हैं, उन तक पहुंचने के लिए, उन्हें खुश रखने के लिए उनके वोट प्राप्त करने के लिए धन की जरूरत तो है ही, यही जरूरत लूटतंत्र का निर्माण करती है।
लोकसभा 20 लाख मतदाताओं की देश कमसे कम 100 करोड़ के लगभग मतदाताओं का, खर्च तो होगा और चाहिए भी।
सवाल लूटतंत्र बनने से कैसे रोका जाये?
पहले वोट लेने के लिए राजनैतिक दल प्रलोभन देनें से बचते थे अब सब कुछ सरे आम हो रहा है। एक दल तो दारू और मुर्गा बाँट रहा है। यह प्रलोभन लूट तंत्र का ही एक अंग है, जिसे नागरिकों के सामने परोस कर मतदाता को जाल में फंसाया जाता है।
कई गैर जरूरी फ्री फ्री भी प्रलोभन ही है, आप नागरिकों की क्रय शक्ति में वृद्धि कीजिये, उनकी आमद बढाइये, उन्हें नाकारा और कमजोर क्यों कर रहे हैं।
मतदाता से वोट ठग कर सरकार बनने के बाद राजनेताओं की सम्पन्नता सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती जाती है।
सवाल यही है की लोकतंत्र को लोककल्याणकारी कैसे बनाया जाये, इसके लिए सबसे पहले तो अदालतों को कठोर बनना होगा। प्रलोभन के जाल को काटना होगा। उसे अधिकतम कठोरता से ख़ारिज करना होगा।
दूसरे नागरिकों का निगरानी तंत्र बढ़ाना होगा, अर्थात एक राज्य सरकार सही से काम कर रही है या नहीं इस पर जनता का अभिमत प्रतिवर्ष लेना चाहिए। अभिमत में जनता से जुड़े प्रमुख 7 विभागों के कामकाज पर जनता से राय ली जाये। मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री, शिक्षा मंत्री, सिंचाई मंत्री, ऊर्जा मंत्री और विधि एवं न्याय मंत्री के कामकाज पर प्रतिवर्ष जनता से राय ली जाये और यदि मंत्री फैल होता है तो हटाया जाये। इस पद्धति से पांच साल की लूट समाप्त होगी, मंत्री परिषद जबाव देह बनेगी, अधिकारी और कर्मचारियों को कार्य के प्रति अधिक सजगता होगी।
पद जानें के डर से लोकसत्ता जनता के प्रति वास्तविक लोकसेवा को प्राथमिकता देगी।