भारतीय प्रायदीप सनातन हिन्दू सभ्यता का उदगम स्थल है, हिंदुकुश पर्वत से लेकर सुदूर बाली सुमात्रा तक फैली हिमालयन सभ्यता हिन्दू के नाम से सनातन के नाम से जानी जाती है।
इस सभ्यता पर हमले तो निरंतर होते थे, किन्तु यह हमेशा विजेता ही रहती थी. क्यों कि यहाँ का बच्चा बच्चा एक हाथ में शस्त्र तो दूसरे हाथ मे शास्त्र रखता था। यहाँ के प्रत्येक पुरुष के हाथ में शस्त्र होता ही था। प्रत्येक घर में शस्त्र होता ही था।
मुझे याद है जब में अपने गाँव पहुँचा तो मैंने पाया, लगभग सभी लोग लाठी, बल्लम फरसा आदि अपने अपने घर में रखते थे, वे जब घर से बाहर निकलते तो उनके हाथ में होते थे। वनवासी बंधु तीर कमान रखते थे। कुछ प्रभावशाली या सम्पन्न लोग टोपीदार, बारह बोर, 303 या 315 रॉयफल या पिस्टल, रिवाल्वर शस्त्र भी रखते थे।
शस्त्र रखना जीवन पद्धति का अनिवार्य अंग था। भारतीय संस्कृति के तमाम देवाधिदेव शस्त्रों से सुसज्जित हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश शस्त्रों से सुसज्जित हैं। राम लक्ष्मण तीर कमान से, कृष्ण सुदर्शन चक्र बलराम हलधर, हनुमान जी के पास गद्दा है। अग्रपूज्य गणेश शस्त्रधारी हैं,देवी दुर्गा एक साथ अनेकों शस्त्र धारण किये हुए है। भारतीय संस्कृति में बड़े बड़े ऋषि मुनि और आश्रमों में शस्त्र शिक्षा दी जातीं थी।
बाल्मीकि नें लव कुश को वह शस्त्र ज्ञान दिया कि अयोध्या की चतुरंगिनी सेना को सिर्फ दो बालकों नें पराजित कर दिया। महाभारत काल में भी बच्चों को सैन्य शिक्षा दिए जानें का विवरण है।
हिन्दू संस्कृति में जब तक शस्त्रों को सर्वोच्चता दी गई तब तक कोई इसे पराजित नहीं कर सका। सुरक्षा की सर्वोच्चता सर्व स्वीकार्य प्राथमिकता एवं अनिवार्यता है। जीवन है तो जहान है. यह कहावत यूं ही नहीं बनीं।
मानव सभ्यता की गहराई और उसके जीवन सूत्र भारतीय पौराणिक इतिहास है. यह सत्य सनातन है. इसे वे काल्पनिक कहते हैं, जिनका खुद का कोई इतिहास नहीं है. जो खुद 2/3 हजार साल पहले जंगली थे।
यह भी सच है कि अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती, समाज जीवन में हिंसा की स्वछंदता और अति के विरुद्ध अहिंसा का दर्शन रखा जैन और बुद्ध पंथ नें रखा। इसे संपूर्ण विश्व नें सम्मान दिया, स्वीकार भी किया है। किन्तु अहिंसा नें भारत को नुकसान भी बहुत पहुंचाया।
अहिंसा और आत्मरक्षा दोनों की आवश्यकतायें हैं। आत्मरक्षा के लिये ही सारी स्फर्दा चल रही है। प्रतिरक्षा हो सर्वोपरि है, इसी कारण परमाणु शस्त्र और मिसाइल तकनीकी जरूरी हो गई है।
अब यह आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक अपनी सुरक्षा की चिंता करे। आत्मरक्षा को सर्वोच्चता को स्वीकारें। इस्लामिक आक्रमण के दौरान यदि संपूर्ण हिन्दू समाज शस्त्रयुक्त होता ती किसी को भी इस्लाम स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं होती।
यह धर्मानांतरण वृतियाँ अभी भी चल रहीं हैं, इनसे सुरक्षा का एक ही उपाय है, शस्त्रयुक्त हो, शौर्य युक्त हो... एक जुटता से रहें।