25 जनवरी मतदाता दिवस, लोकतंत्र की दीपावली जैसा
हम निरंतर सुनते आ रहे हैं कि,
अधर्म पर धर्म की जय का पर्व, विजयादशमी है।
असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयादशमी है।
अंधकार से प्रकाश की ओर चलो का संदेश दीपावली देती है
अर्थात जिस तरह हमारे पर्व कोई न कोई संदेश देते हैं , उसी तरह भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना दिवस 25 जनवरी को सभी राजनैतिक दलों को पर्व की तरह मनाना चाहिए
इसी तरह लोकतंत्र में राष्ट्रभाव की विजय के लिए 25 जनवरी राष्ट्रीय मतदाता दिवस है।
पहले भाजपा में वनबूथ टेन यूथ का नारा था, अब एक बूथ पर 100 युवाओं को जोड़ने का कार्यक्रम नवमतदाता अभियान चल रहा हैं।
मतदाता दिवस मुख्यतौर पर, मतदाता को मतदान के लिए जागरूकता का दिन है। इसलिए इसका महत्व भी गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस जैसा ही है।
लोकतंत्र रुपी राष्ट्र निर्माण का भी मतयुद्ध होता है और उसमें भी जय पराजय होती है। इसलिए स्पर्धा में अराष्ट्रीय ताकतों के अग्रणी रहने से देश नें 75 साल में बहुत कुछ खोया भी है।
अभी हम कितनी भी बातें और तथ्य पेश करें, किंतु लोकतंत्र का पवित्र लक्ष्य पराजित होता है। क्यों की 35 प्रतिशत मतदाता मतदान कर ही नहीं पाता या वह अनजाने में ही अपने कर्तव्य की उपेक्षा कर वास्तविक परिणाम को प्रभावित कर देता है।
ताज़ा उदाहरण हिमाचल प्रदेश का है. जहाँ भाजपा और कांग्रेस को बराबर वोट मिले मगर विजयी सीटों में बड़ा अंतर है। कारण 27.60 प्रतिशत वोट बूथ पर पहुंचा ही नहीं, या उसे पहुंचाया नहीं जासका । जो एक चौथाई से अधिक हैं।
हिमाचल में भाजपा को कांग्रेस से मात्र 37,174 वोट कम मिले हैं, मगर इसका परिणाम वह रहा कि 15 सीटें कांग्रेस से पिछड़ गईं. जबकि वहाँ सर्वाधिक 72.40 प्रतिशत मतदान भी हुआ।
फसल बोने से ज्यादा महत्वपूर्ण फसल को काटना होता है, मतदाता दिवस का उपयोग, मतदाता में मतदान के भाव को दृढ़ करनें के अवसर के रूप में है. ताकी मतदाता स्वप्रेरणा से मतदान करे।
यू पी चुनाव में मतदान प्रतिशत 60.8 हुआ, अर्थात 39.2 प्रतिशत लोग मतदान करने नहीं गये। ये अधिकांश राष्ट्रवादी ही थे। मतदान का प्रतिशत मात्र 0.31 गिरा और भाजपा के हाथ से 57 सीटें निकल गईं। यदि मतदान 65-70 प्रतिशत होता तो भाजपा को 350 सीटें मिलतीं। इसलिए राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक हित और भारतमाता को परमवैभव पर आरुड़ करने शतप्रतिशत मतदान की और बढ़ना होगा।
राजस्थान मात्र 0.50 प्रतिशत से गया...
राजस्थान विधानसभा 2018 में भाजपा कांग्रेस से मात्र 1 लाख 77हजार 699 वोट पीछे रह गईं, यह अंतर सिर्फ 0.50 प्रतिशत था, अर्थात अत्यंत कम, किन्तु भाजपा के हाथ से 90 सीटें निकल गईं। इस चुनाव में कांग्रेस 21 से 99 पर पहुंची और भाजपा 163 से 73 सीटों पर आगई।
यह चुनाव इस बात का भी सबूत हैं कि हर बूथ पर 3 से 4 वोट और अधिक पड़ जाते तो दृश्य बदल जाता। भाजपा को सिर्फ 1 से 2 प्रतिशत वोट और मिल जाते तो वह सत्ता में होती।
बी एल ए भी नियुक्त नहीं कर पाते राजनीतिक दल ....
भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को प्रत्येक बूथ पर बी एल ए नियुक्त करने तक की सुविधा दे रखी है। किन्तु राजनीतिक दल बी एल ए तक नियुक्त नहीं कर पाये । इसी तरह ऑनलाइन सुविधाओं की भी एक लम्बी फेहरिस्त है। मगर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता उसमें भी फिलहाल फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को प्रत्येक बूथ पर बी एल ए नियुक्त करने तक की सुविधा दे रखी है। किन्तु राजनीतिक दल बी एल ए तक नियुक्त नहीं कर पाये । इसी तरह ऑनलाइन सुविधाओं की भी एक लम्बी फेहरिस्त है। मगर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता उसमें भी फिलहाल फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
निर्वाचन आयोग के परिश्रम को नेता लोग विफल कर देते हैं......
कोटा के जिला पदाधिकारी और उनके कुछ साथियों नें लाडपुरा विधानसभा की मतदाता सूची में कमियों को लेकर अभी जिला कलक्टर और राज्य के निर्वाचन अधिकारी की करीब तीन पेज का ज्ञापन भेजा, किन्तु जब निर्वाचन आयोग नें प्रत्येक बूथ पर 3-3बार केंप किये और देखनें के लिये मतदाता सूचियां रखी तब किसी राजनैतिक दल नें रूचि नहीं दिखाई, न नेता पहुंचे न कार्यकर्ता पहुँचे। जिला पदाधिकारी सिर्फ अख़बारों में अपना नाम ढूंढ़ते रहते हैं। यही उपेक्षा भाव पूरे लोकतंत्र को घातक हैं। क्यों कि वास्तविक जनमत का दबाव या निर्णय मतदान ही होता है ।
निष्क्रिय वोटर राष्ट्रवाद को अधिक लाभकारी...
सामान्यतः 25 से 35 प्रतिशत मतदाता मतदान करने नहीं जाता जाता, यह वह वोट है, जो कम से कम सत्ता बदलने में दिलचस्पी नहीं रखता था, बदलाव में दिलचस्पी होती तो वोट करता। इसलिए इस वोट का फायदा राष्ट्रवादी दल को अवश्य मिल सकता है । बार बार आग्रह से यह मतदान भी करता है। छोटे चुनाव इसके उदाहरण हैं।
हिमाचल और राजस्थान में यदि निष्क्रिय मतदाता में से कुछ प्रतिशत वोट और डलता तो फिर से सरकार भाजपा की ही होतीं, दिल्ली में नगर निगम भाजपा की ही होती। यूपी में 350 सीटें भाजपा की होतीं और राज्य सभा में बहूमत भाजपा का होता, भाजपा राष्ट्रहित के बड़े मुद्दों पर निर्णय ले पाती,भारत का संबिधान भी भारतीयता से परिपूर्ण का होता।
सभी जानते हैं कि किस वर्ग का मत प्रतिशत कम रहता है और किसका ज्यादा। इसलिए यह भी जानना जरूरी है कि किस पार्टी को मेहनत ज्यादा करनी है।
एक मुखी लक्ष्य तय करें, बूथ पर हर हालत में वास्तविकता में कार्य हो, औपचारिकता नहीं, प्रत्यक्ष संपर्क पूर्ण हो। बार बार प्रत्यक्ष संपर्क हो। 200 में से 191 पर राष्टवाद की जीत की मानसिकता बनायें। यह होगा पहले भी हम ही 163 जीते हैं।