🌺।।लुप्त होती भगवान वराह की उपासना।।🌺
श्री भगवान वराह भगवान विष्णु के दशावतर मे से एक प्रमुख अवतार है
इसी अवतार में प्रभु ने राक्षस हिरण्याक्ष वध व पृथ्वी का उद्धार किया था और गुरुत्वाकर्षण शक्ति को व्यवस्थित कर के पृथ्वी के विकास में योगदान दिया था।
प्राचीन काल में भगवान वराह के स्वरूप व उपासना का बहुत विस्तृत वर्णन शास्त्रों में प्राप्त होता है। इनकी उपासना प्राचीन समय में जनमानस में इतनी प्रचलित थी कि इनकी लीलाओं के विषय में एक स्वतंत्र पुराण "वराह पुराण"की रचना हुई तथा अनेकों तंत्र शास्त्रों मे भी इनकी उपासना पर बहुत जोर दिया गया।
परंतु आज दुर्भाग्य देखिए भारत के बहुत कम हिस्सों में ही आपको वराह भगवान के उपासक देखने को मिलेंगे आज इनकी उपासना लुप्त होती जा रही है।
इनकी उपासना को रोकने के लिए विधर्मी ने कई भ्रामक प्रचार किए जैसे वराह भगवान को सूअर बताना और विष्ठा खाने वाला बताकर उनका अपमान करना। परंतु सत्य बहुत अलग है वराह भगवान का स्वरूप आप देखेंगे तो पाएंगे वराह भगवान ग्राम सुकर स्वरूप में नहीं है वह जंगली शूकर स्वरूप में है और आपको पता ही होगा जंगली सूअर कंद मूल फल अधिक खाते हैं और अकाल की स्थिति में कभी-कभी शिकार करते हैं ग्राम सूअर जैसे विष्ठा जंगली सूअर नहीं खाते।
आइए वराह उपासना के बारे में थोड़ी सी चर्चा करते हैं-:
1) किसी व्यक्ति पर तंत्र मंत्र, अभिचार,भूत-प्रेत आदि की पीड़ा हो तो उसमें वराह उपासना तत्काल फल प्रदान करने वाली बताई गई है।
2) मकान बनाने में अड़चन आ रही हो भूमि का सुख प्राप्त नहीं हो रहा हो तो उसमें भी वराह उपासना चमत्कारिक फल प्रदान करती है
3) शत्रुओं से रक्षा के लिए वराह उपासना अमोघ है।