अतीक के हत्यारों के पीछे कौन है, इसकी जांच जरूरी - अरविन्द सिसौदिया
यह ईश्वरीय व्यवस्था है कि बडे से बडा अपराधी भी एक समय विषेश आनें पर ढेर हो जाता है। वही अतीक और उसके हिंसक परिवार के साथ हो रहा है। इससे पहले भी बडे बडे माफियाओं के साथ भी यही हुआ । अपराध की दुनिया में अहंकार की पराकाष्टा स्यंव ही विकल्पों को जन्म दे देती है।
यह ईश्वरीय व्यवस्था है कि बडे से बडा अपराधी भी एक समय विषेश आनें पर ढेर हो जाता है। वही अतीक और उसके हिंसक परिवार के साथ हो रहा है। इससे पहले भी बडे बडे माफियाओं के साथ भी यही हुआ । अपराध की दुनिया में अहंकार की पराकाष्टा स्यंव ही विकल्पों को जन्म दे देती है।
उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था के राज को लगभग 44 साल से भी ज्यादा समय से मिट्टि में मिला कर अपना साम्राज्य खडा करने वाले , अतीक के अंत पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ । अतीक पर संगीन धाराओं में 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे। वह जेल के अंदर से ही अपनी अपराधिक गतिविधियों को संभाला करता था। उस पर आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैय्यबा, आई.एस.आई. और अंडरवर्ल्ड से संबंध होने के भी आरोप लगे।....किन्तु अतीक से लाभ कमानें वाले नेताऔं के राज दफन हो गये यह मलाल भी है।
अपराधियों के साथ बैठना उठना उन्हे सहयोग करना , उनसे सहयोग लेना यूपी की राजनीति में आम रहा है। किन्तु जैसे ही किसी अपराधी के बयानों या उससे सच्चाई सामनें आनें की बात आती है तो वही मित्र अपराधी सबसे बडा शत्रु भी हो जाता है। उसे रास्ते से हटानें व सच्चाई को दफन करनें के प्रयत्न भी प्रारम्भ हो जाते हें।
अपराधियों के साथ बैठना उठना उन्हे सहयोग करना , उनसे सहयोग लेना यूपी की राजनीति में आम रहा है। किन्तु जैसे ही किसी अपराधी के बयानों या उससे सच्चाई सामनें आनें की बात आती है तो वही मित्र अपराधी सबसे बडा शत्रु भी हो जाता है। उसे रास्ते से हटानें व सच्चाई को दफन करनें के प्रयत्न भी प्रारम्भ हो जाते हें।
इसलिये जांच के विषयों में यह भी सम्मिलित होना चाहिये कि भारत में आतंकी व हिंसक साम्राज्य फैलानें में , बनाने में पाकिस्तान की कितनी और क्या क्या भूमिका है। क्यों कि अतीक और उसके भाई की पूछताछ में जैसे ही पाकिस्तानी कनेक्शन सामनें आया और कुछ बरामदगियां हुई, वैसे ही उसकी हत्या करदी गई। जिससे कई राज दबे रह गये । बहुत सी जानकारियां इनकी हत्या के कारण सार्वजनिक होनें से पहले ही दफना दी गई। वहीं इस हत्याकाण्ड से इन कोर अपराधियों की राजनैतिक सांठगांठ , राजनैतिक लोगों के द्वारा लिये गये लाभ और प्राप्त की गई सम्पत्तीयों का ब्यौरा भी दफन हो गया । मुझे लगता है कि इन दोनों अपराधियों से सांठगांठ रखनें वालों को अपनी कलई खुलनें का डर था और इन हत्यारों के पीछ वे भी हो सकते हैं।
मूलतः अतीक और उसके परिवार के संबंध समाजवादी पार्टी से ही ज्यादा रहे हैं।
15 अप्रेल 2023 शनीवार को पुलिस के घेरे में अस्पताल जाते समय , अतीक अहमद (अतीक अहमद) और अशरफ की प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई है। हत्यारे पत्रकार के वेष में थे और बाईट लेनें के बहानें उन्होने बिलकुल निकट पहुंच कर गोली मार दी । जिसमें मौके पर ही दोनों की मृत्यु हो गई।
अभी जो समाचार आ रहे हैं उनके अनुसार प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के पास यह घटना हुई है। दोनों को ही 10 से अधिक गोली मार दी गई। इस मामले में पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ्तार किया है। अतीक और अशरफ को मेडिकल के लिए ले जाया गया था। अतीक अहमद और उनके भाई पर बेहद करीब से शूटिंग हुई है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिये हैं -
सीएम योगी ने घटना के बाद तुरंत उच्चस्तरीय बैठक बुलाई और पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने तीन सदस्यीय जांच आयोग के गठन के निर्देश भी दिए हैं। इस मामले में तीन हमलावरों को गिरफ्तार किया गया है। वहीं पुलिस मामले की जांच में जुट गई है।
शांति व्यवस्था की यूपी की जनता से योगी की अपील
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को फील्ड में रहनें के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में शांति व्यवस्था बनी रहनी चाहिए। इसमें सभी प्रदेश निवासी सहयोग भी कर रहे हैं। आम जनता को किसी भी प्रकार की परेशानी ना आए इसका ध्यान रखें। सीएम योगी ने कहा कि कानून के साथ कोई भी खिलवाड़ न करें। सीएम योगी ने जनता से अपील की है कि किसी भी अफवाह पर ध्यान ना दें। अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या करने के बाद पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम किए हैं। पुलिस गश्त और चेकिंग कर रही है। प्रदेश के सभी जिलों में सीआरपीसी की धारा 144 लागू की गई है।
उमेश पाल की हत्या कैसे हुई ?
जनवरी 2005 में राजू पाल की हत्या हो गई थी। इसके मुख्य गवाह रहे उमेशपाल को अतीक अहमद ने 2006 में अगवा कर लिया था। बाद में मार पीट ने उसकी गवाही देने का हफलनामा लिखवा कर छोड़ दिया था। इस मामले में जब प्रदेश में बसपा सरकार 2007 में आई तब उमेश पाल ने जुलाई 2007 में प्रागराज के धूमनगंज थाने में अपने अपहरण का मुकदमा दर्ज किया, जिसमें लगातार सुनवाई और गवाही चल रही थी। इसी मामले में बयान अपनी आखिरी गवाही दे कर जब उमेश पाल लौट रहे थे तब उनकी हत्या कर दी गई थी।
टिविटर के बयानों को अहमियत न दें
मेरा मानना है कि टिविटर पर आरहे विभिन्न दलों के नेताओं के बयानों पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिये। बल्कि यह जानने का प्रयास करना चाहिये कि इन दोनों अपराधियों से अपनी असलियत खुलनें का डर किसे था उन तक जांच पहुंचे।