Quantcast
Channel: ARVIND SISODIA
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2979

आज़ादी अभी अधूरी है...- अटल जी

$
0
0
कवि ह्रदय अटलबिहारी वाजपेयी
- अरविन्द सीसोदिया
    आज यदि अटल जी स्वस्थ होते तो विपक्ष की धर न केवल तेज होती बल्की अभी तक तूफ़ान भारतीय राजनीति में आ गया होता , जिन्दा कौमें पांच साल तक शोषण सहन नही सहती !! शयद वे इस शब्दों में वर्तमान का बयान कर रहे होते ........

सूर्य गिर गया

अन्धकार में ठोकर खाकर
भीख माँगता है
कुबेर झोली फैलाकर
कण कण को मोहताज
कर्ण का देश हो गया
माँ का अँचल द्रुपद सुता
का केश हो गया

********
आज़ादी अभी अधूरी है...
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता -
आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं,
रावी की शपथ न पूरी है॥
जिनकी लाशों पर पग धर कर
आजादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई॥
कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं॥
हिन्दू के नाते उनका दुख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥
इंसान जहाँ बेचा जाता,
ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है,
डालर मन में मुस्काता है॥
भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कण्ठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं॥
लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया।
पख़्तूनों पर, गिलगित पर है
ग़मगीन ग़ुलामी का साया॥
बस इसीलिए तो कहता हूँ
आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?
थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आजादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ,
जो खोया उसका ध्यान करें॥
-----


भारतीयता, राष्ट्रीयता, मानवता, सहृदयता और उदात्तता की भावभूमि पर सर्जना के स्वरों को मुखरित करने वाले पंडित अटल बिहारी वाजपेयी सच्चे अर्थों में वरदायिनी, हंस-सुहाविनी माँ शारदा के वरद पुत्र हैं । उनके अनमोल खजाने का एक मोती :

"टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते ।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अंधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अंतिम अस्त होती है ।

दीप निष्ठा का लिए निष्कंप,
वज्र टूटे या उठे भूकंप,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज ।

किन्तु फिर भी जूझने का प्राण,
पुनः अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार ।

दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते ।
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते ।"

Viewing all articles
Browse latest Browse all 2979

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>