मुझे नहीं पता कि ये पंक्तियां क्या हैं, आज दीपावली के अवसर पर में सुबह कम्प्युटर पर था, भाव आते गये में लिखता गया जो मन में आया वह लिख दिया....किसी को इन पंक्तियों से नाराजगी होतो वह मुझे क्षमा करें, में नहीं जानता कि यह पंक्तियां मेरे मन में क्यों आईं...शायद यही भी श्रीराम जी की ही प्रेरणा हो...
राम को राम रहने दो,
मत उन्हे भव्यता और दिव्यता में कैद करो
उन्हे अपने जन जन में अविराम रहने दो
राम को राम रहने दो,..1...
हदयों में विश्राम रहते हैं वे,
उन्हे हदयों का आयाम रहनें दो...
सुबह की राम राम तो
अंतिम यात्रा के हे राम रहनें दो
राम को राम रहने दो,....2..
भरतवंश का स्वाभिमान रहनें दो...
समाज व्यवस्था का संस्थान रहनें दो
उन्हे निषाद का रहने दो केवट का रहने दो शबरी का रहनें दो
राम को राम रहने दो,....3...
वे तो आम जन के हें, आम जन में रहनें दो!
उन्हे खेत में रहने दो खलिहान में रहनें दो....
करूणा दया और क्षमा में रहनें दो....
जो दुखों को सहनें की शक्ति है
उसे दुखिया के आंगन में रहनें दो..
राम को राम रहने दो,....4..
कहां जरूरत उन्हे महलों की ...
कहां उनने कहा मुझे भगवान मानों..
दीन दुखी के कष्ट हरो
इसी में राम बसते हैं
दुख हरो कष्ट हरो यही अविराम रहनें दो
राम को राम रहने दो,....5...
उन्हे वन वन की डगर पर,जन मन में रहनें दो..
सब के हदय में रहनें दो
संतानों के संस्कारों में रहने दो,
शत्रु के संहार की भुजाओं में रहनें दो,
राम तो अनन्त व्योम हैं,उन्हे रोम रोम में रमनें दो
राम तो राम हैं...उन्हे अविराम रहनें दो !!
- अरविन्द सिसौदिया (9414180151)
दीपावली 17 लाख वर्ष पूर्व से
दिवाली का इतिहास
दीपावली का मूल अर्थ है दीपों की श्रृंखला......अनेकानेक प्रकाशमान दीपकों की जगमग और इसका प्रथम आयोजन का लगभग साड़े 17 लाख वर्ष पूर्व श्रीराम युग जो कि त्रेतायुग का कालखण्ड है, तब अमावस्या की गहन अंधेरी रात्री को अयोध्यावासियों नें दीपकों के प्रकाश से जगमग कर दिया था कि उनके राम...उनके श्रीराम आये थे... आये थे। तब वे भगवान नहीं थे, राजा नहीं थे...अपने पिता के वचन को पूरा करने वाले पुत्र राम थे अभिनन्दनीय राम थे, कर्त्तव्य परायण राम थे। उस समय से मनाया जाता है। इसमें कुछ त्यौहार बाद में जुडते चले गये अब यह एक सप्ताह का पर्व है।
दिवाली का त्यौहार भारत में प्राचीन समय से ही मनाया जाता रहा है। इस त्यौहार का इतिहास है कि जब भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत के लिए घी के दीपक प्रज्वलित किए थे और साथ ही अयोध्या के हर रास्ते को सुनहरे फूलों से सजा दिया गया था। रंगालियां बनाई गई थीं।
जिस दिन श्री राम अयोध्या लौट कर आए थे उस दिन अमावस्या की काली रात थी। जिसके कारण वहां पर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था, इसलिए अयोध्या वासियों ने वहां पर दीपक जलाए थे। यह भी एक कारण है कि इस दिन को अंधकार पर प्रकाश की विजय भी माना जाता है। और यह सच भी है क्योंकि इस दिन पूरा भारत अमावस्या की काली रात होने के बावजूद भी दीपकों की रोशनी से जगमगाता रहता है।
जैन धर्म के लोग दीपावली के त्यौहार को इसलिए मनाते हैं क्योंकि चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और संयोगवश इसी दिन उनके शिष्य गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ था। सिख धर्म के लोग भी इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। वे लोग त्यौहार को इसलिए मनाते है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। साथ ही सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को भी इसी दिन ग्वालियर की जेल से जांहगीर द्वारा रिहा किया गया था।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द तथा प्रसिद्ध वेदान्ती स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन मोक्ष प्राप्त किया था। इस त्योहार का संबंध ऋतु परिवर्तन से भी है। इसी समय शरद ऋतु का आगमन लगभग हो जाता है। इससे लोगों के खान-पान, पहनावे और सोने आदि की आदतों में भी परिवर्तन आने लगता है।