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खून और पानी साथ नहीं बह सकते : पीएम मोदी

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सिंधु जल समझौते पर बैठक
खून और पानी साथ नहीं बह सकते : पीएम मोदी 
Posted on: September 26, 2016


नई दिल्ली। उरी में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को जवाब देने की रणनीति के तहत सिंधु जल नदी पर विकल्पों को आजमाना शुरू कर दिया है। इसी के मद्देनजर पीएम नरेंद्र  मोदी के आवास पर जल संधि पर समीक्षा के लिए अहम बैठक बुलाई। सूत्रों के मुताबिक बैठक में पीएम मोदी ने पाक पर कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते। हालांकि बैठक में जल संधि में बदलाव की अभी जरूरत नहीं बताई गई। बिजली परियोजनाओं को विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
करीब एक घंटे चली बैठक में पीएम मोदी सिंधु समझौते पर गंभीर दिखे। बताया जा रहा कि पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों की फिर से समीक्षा करने को कहा गया है। सरकार अब बिजली परियोजनाएं बनाने पर विचार करेगी। तुलबुल परियोजना को शुरू किया जा सकता है। पाकिस्तान को ज्यादा पानी लेने से रोका जा सकता है।

इस बैठक में विदेश मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारी शामिल हुए। जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस बैठक में शामिल नहीं थीं। बैठक में विदेश सचिव एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पीएम के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र शामिल थे। इसके अलावा इन दोनों मंत्रालयों के अन्य अधिकारी भी शामिल हुए।

बैठक में सिंधु जल संधि से जुड़े तमाम पहलुओं और विकल्पों पर चर्चा होगी। खबरों के मुताबिक सरकार संधि तोड़ने जैसा कदम तो नहीं उठााएगी, लेकिन नदियों को जोड़ने सहित कुछ ऐसे विकल्पों पर विचार और चर्चा करेगी जिससे भारत के हितों को नुक्सान ना पहुंचे और पाकिस्तान को भी झटका लगे। अब तक भारत ने बेहद उदारता दिखाते हुए तीन नदियों का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ रखा है।

सिंधु नदी पर आश्रित पाकिस्तान
बता दें कि पाकिस्तान का एक बड़ा इलाका सिंधु नदी के पानी पर आश्रित है। विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितंबर 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था।  तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने इस समझौते पर मुहर लगाई थी। संधि के मुताबिक भारत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, व्यास और रावी नदी का पानी देगा। मौजूदा समय में इन नदियों का 80 फीसदी से ज्यादा पानी पाकिस्तान को ही मिलता है।
अगर भारत ने इन नदियों का पानी पाकिस्तान को देना बंद कर दिया तो पाकिस्तान की कृषि और जल आधारित उद्योग-धंधे चौपट हो जाएंगे क्योंकि पाकिस्तान की आधी से ज्यादा खेती इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है। हालांकि सिंधु जल संधि तोड़ने के मुद्दे पर जानकार एकराय नहीं हैं। ज्यादातर का मानना है कि ये समझौता पिछले 56 साल से बगैर किसी रुकावट के जारी है। इस दौरान भारत-पाकिस्तान के रिश्ते कई बार बद से बदतर हुए, लेकिन सिंधु जल संधि पर कोई असर नहीं पड़ा।

सिंधु जल संधि के बाद भारत पाकिस्तान के बीच 3 युद्ध हुए। दोनों देशों के बीच पहली जंग 1965 में हुई।  1971 में बांग्लादेश की आजादी की जंग हुई और 1999 में करगिल युद्ध। इस दौरान पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कई बार हिंदुस्तान को दहलाने की भी कोशिश की।

2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमला,  2008 में 26/11 आतंकी हमला, जिसे 10 पाकिस्तानी आतंकियों ने अंजाम दिया था।  गुरदासपुर के दीनानगर पुलिस स्टेशन पर आतंकी हमला, पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला समेत कई बड़े आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ है, लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी सिंधु जल संधि बदस्तूर कायम रही।

इन हमलों के बाद भी सिंधु जल संधि बरकरार रही हालांकि 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस संधि को खत्म करने की मांग जरूर उठी थी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। जानकारों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे एकतरफा फैसले से तोड़ पाना आसान नहीं। अगर ऐसा किया गया तो दुनिया के सामने यह संदेश जाएगा कि भारत कानूनी तौर पर लागू संधि का उल्लंघन कर रहा है। जानकारों के मुताबिक दोनों देश आपसी सहमति से इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या नई शर्तों पर नया समझौता बना सकते हैं, लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा नामुमकिन है।



नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के उरी में आतंकी हमले के बाद भारत पाकिस्तान के प्रति जवाबी कार्रवाई के तौर पर सिंधु नदी समझौते की समीक्षा पर विचार कर रहा है. भारत ने पिछले सप्ताह स्पष्ट तौर पर कहा था, इस संधि को जारी रखने के लिए ‘आपसी विश्वास और सहयोग’ बहुत महत्वपूर्ण है.

यह अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों और तमाम खराब रिश्तों के बीच भी बनी रही है. विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं हैं कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं.

भारत-पाकिस्तान सिंधु नदी संधि से जुड़ी खास बातें-

करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता में बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को समझौता हुआ
संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू - पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए
इसके तहत सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा हुआ था
सिंधु बेसिन की नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया था, पूर्वी और पश्चिमी
भारत इन नदियों के उद्गम के अधिक क़रीब है
ये नदियां भारत से पाकिस्तान की ओर जाती हैं
पूर्वी पाकिस्तान की 3 नदियों का नियंत्रण भारत के पास है
इनमें व्यास, रावी और सतलज आती हैं
पश्चिम पाकिस्तान की 3 नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है
इनमें सिंधु, चिनाब और झेलम आती हैं
पश्चिमी नदियों पर भारत का सीमित अधिकार
भारत अपनी 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है
भारत के हिस्से आता है क़रीब 20% पानी

क्या है इस समझौते का पाकिस्तान के लिए महत्व-

पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं
पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है
अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे

ध्यान देने योग्य बात...

मगर यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.

यदि संधि तोड़ने का फैसला लेता है भारत...

विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है. ऐसे में भारत इसे अकेले खत्म नहीं कर सकता. अगर ऐसा हुआ तो  इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा. साथ ही यह संदेश भी साफ साफ जाएगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.




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