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कांग्रेस की हिंदू विरोधी मानसिकता उजागर anti hindu congress

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Congress

कांग्रेस को हिंदू विरोधी छवि भारी पड़ रही है 


कांग्रेस में जिस आवाज की जरूरत तीन दशक से महसूस की जा रही थी, वह आवाज अब उठी है। वह आवाज़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने उठाई है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस की हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्त पार्टी की छवि बन गई है। कांग्रेस ने कई बार महसूस किया था कि सेक्यूलरिज्म के नाम पर उसके नेता अक्सर हिन्दू विरोधी और इस्लाम समर्थक लाईन अपनाते हैं। जिस कारण हिन्दू उससे दूर होता जा रहा है।


इंदिरा गांधी के जमाने तक यह दुविधा नहीं थी, क्योंकि इंदिरा गांधी संतुलन बना कर चलती थी। वह मन्दिरों और साधु संतों के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने जाती थीं। उनकी हिन्दू देवी देवताओं में अपार श्रद्धा थी। यहां तक कि आपातकाल के बाद जब कांग्रेस विभाजित हो गई, पार्टी और पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा भी छिन गया था, तो केरल में पालाकाट के अमूर भगवती मन्दिर में विराजमान मां पार्वती के दो हाथों को मां का आशीर्वाद मान कर हाथ के पंजे को कांग्रेस का नया चुनाव निशान बनाया था और चुनाव जीतने के बाद उस मन्दिर में गई थीं। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को सही अर्थों में सेक्यूलर बनाए रखा था, जिसमें मुस्लिम परस्ती बिलकुल नहीं झलकती थी।

कांग्रेस की मुस्लिम परस्ती 1986 में राजीव गांधी के समय शाहबानों केस पर आए गुजारा भत्ता फैसले को पलटने से शुरू हुई। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के भीतर इस क़ानून का विरोध नहीं हुआ था। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने बिल के विरोध में केबिनेट से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके बाद रामजन्मभूमि को लेकर शुरू हुए आन्दोलन के समय कांग्रेस के हिन्दू नेताओं की चुप्पी और मुस्लिम परस्तों की तरफ से राम मंदिर आंदोलन का खुला विरोध कांग्रेस को महंगा पड़ा।

रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान 1989 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता में जबर्दस्त इजाफा हुआ था। 1984 में जहां वह सिर्फ दो लोकसभा सीटें जीती थीं, वहीं 1989 के चुनाव में 85 सीटें जीत गई थी। लाल कृष्ण आडवानी की रामरथ यात्रा रोके जाने के कारण हुए 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा बढ़ कर 120 हो गई थी। 1996 में कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए 161 सीटें जीत गई, और 1998 में 182 सीटें जीत कर अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार ही बना ली।

चुनाव नतीजों के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस ने सीता राम केसरी को हटा कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बना लिया था। 1989 के रामजन्मभूमि आन्दोलन के बाद कांग्रेस को लगातार चार चुनावों में बहुमत नहीं मिला था, हालांकि 1991 में चुनावों के दौरान राजीव गांधी की हत्या के कारण आई सहानुभूति की लहर ने कांग्रेस की अल्पमत सरकार बना दी थी। लेकिन कांग्रेस की इसी अल्पमत सरकार के दौरान 1992 में बाबरी ढांचा टूटने के बाद हिंदुत्व आधारित भाजपा की लोकप्रियता में जबर्दस्त इजाफा हुआ था।

1992 में जब बाबरी ढांचा टूटा था, तब भी कांग्रेस के भीतर सिर्फ एकतरफा आवाजें उठी। मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए कांग्रेस के भीतर से ही नरसिम्हा राव को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई थी। इसी मुद्दे पर कांग्रेस टूट गई थी। सीताराम केसरी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में भी कांग्रेस ढांचा टूटने के लिए नरसिंह राव को जिम्मेदार मानती थी। इसलिए 1996 का चुनाव हारने के बाद राव को पहले अध्यक्ष पद से हटाया गया, और बाद में 1997 में कोलकाता अधिवेशन में उनके मंच पर बैठने का भी विरोध हुआ।

कोलकाता अधिवेशन में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ली, उन्हें मुख्य अतिथि की तरह मंच पर लाया गया था, सोनिया गांधी की मौजूदगी और सीता राम केसरी की रहनुमाई में नरसिम्हा राव को अपमानित किया गया था। देश का हिन्दू इसे देख रहा था, जो यह मानता था कि नरसिम्हा राव ने ढांचा टूटते समय कोई कार्रवाई न करके हिन्दुओं का पक्ष लिया था। लेकिन नरसिम्हा राव को अपमानित करके भी कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ। 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ एक सीट बढ़कर 141 हुई थी, क्योंकि मुसलमान उससे खुश नहीं हुआ, और हिन्दुओं की नाराजगी और बढ़ गई।

कांग्रेस की करनी और कथनी का अंतर यहीं से शुरू हुआ। 96 और 98 की लगातार दो हार के बाद और सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की कार्यसमिति ने 16 जनवरी 1999 में एक प्रस्ताव पास किया था। जिसमें कहा गया था कि हिन्दुइज्म भारत में सेक्यूलरिज्म की सबसे प्रभावी गारंटी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वी.एन. गाडगिल उस समय कांग्रेस में हिन्दुओं की एक मात्र आवाज थे।

गाडगिल बार बार कहा करते थे कि कांग्रेस में सेक्यूलरिज्म खत्म हो रहा है, मुस्लिमपरस्ती बढ़ रही है। जबकि आज़ादी के आन्दोलन में और उसके बाद इंदिरा गांधी के समय तक कांग्रेस के भीतर हिन्दुओं की सशक्त आवाज हुआ करती थी, जो कांग्रेस को संतुलित बनाए रखती थी। वी.एन. गाडगिल 1989 से लेकर सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक कांग्रेस के प्रवक्ता थे। वह कांग्रेस की दशा से बेहद क्षुब्ध थे, पार्टी की रोजाना ब्रीफिंग के बाद पत्रकारों से निजी बातचीत के दौरान वह अक्सर कहा करते थे कि मुस्लिम सिर्फ 18 प्रतिशत हैं, वे सारे भी कांग्रेस को वोट दे दें, तो भी हिन्दुओं के वोटों के बिना कांग्रेस नहीं जीत सकती।
मुस्लिम परस्त और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले कांग्रेसियों ने वी.एन. गाडगिल पर छींटाकशी की बहुत कोशिश की, लेकिन वह अपने स्टैंड पर कायम रहे। 16 जनवरी 1999 में कांग्रेस कार्यसमिति से पारित उस प्रस्ताव को बनाने में वी.एन. गाडगिल की ही भूमिका थी, जिसमें कहा गया था कि हिंदूइज्म ही सेक्यूलरिज्म की गारंटी है। उन्होंने इस प्रस्ताव को पास करवाने के लिए सोनिया गांधी को राजी किया था।
प्रस्ताव पास करने के बाद कांग्रेस उस पर अमल करना भूल गई, या फिर वह प्रस्ताव मात्र एक औपचारिकता बन गया। क्योंकि 2004 में जब उसकी सत्ता आई तो उसने अपने दस साल के शासन में हिन्दुओं को अपमानित करने और मुसलमानों को खुश करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। हिंदुत्व को बदनाम करने करने के लिए भगवा आतंकवाद की थ्योरी का इजाद किया गया। इस थ्योरी को जयपुर में कांग्रेस के चिन्तन शिविर में मंच से दोहराया गया।
आतंकवादी वारदातों को हिन्दुओं के सिर मढ़ने के लिए झूठे केस बना कर उन्हें गिरफ्तार किया गया। पाकिस्तान प्रायोजित मुम्बई में हुए 26/11 के आतंकी हमले का जिम्मेदार भी आरएसएस को ठहरा दिया गया, जबकि पूरी दुनिया सच्चाई जानती थी। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट का जिम्मेदार भी हिन्दुओं को ठहराया गया। रामसेतु के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में हल्फिया बयान देकर कहा कि भगवान राम काल्पनिक हैं, उनके पैदा होने के सबूत नहीं हैं। इस तरह सिर्फ रामसेतु ही नहीं बल्कि राम जन्मभूमि पर भी कांग्रेस ने उनके अस्तित्व को नकार दिया था।
कांग्रेस की 2004 से 2014 की हिन्दू विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि 2014 में हिंदुत्व का ऐसा उभार हुआ कि कांग्रेस 50-52 सीटों से आगे नहीं बढ़ पा रही। पिछले साल उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिन्तन शिविर की राजनीतिक मामलों की कमेटी के मंथन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने इन सब मुद्दों को उठाते हुए कहा था कि कांग्रेस की छवि हिन्दू विरोधी हो गई है। उन्होंने 2004 से 2014 तक की उन सारी घटनाओं का जिक्र भी किया था, जिनके कारण हिन्दू कांग्रेस से नाराज है और उसकी छवि मुस्लिम परस्त पार्टी की बन गई है।
अब जब मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है और उसमें भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वाले पूर्व कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार और मुस्लिम परस्ती करने वाले दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश को तो कार्यसमिति में रखा गया है। जबकि हिन्दुओं की बात कहने वाले किसी को भी कार्यसमिति में नहीं रखा गया, तो आचार्य प्रमोद ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता आ गए है, जो कांग्रेस को वामपंथ के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं, इन नेताओं को वंदे मातरम, भारत माता की जय और भगवा से नफरत है।

वी.एन. गाडगिल की तरह कांग्रेस कार्यसमिति में हिन्दुओं की आवाज बन कर आचार्य प्रमोद कृष्णम कांग्रेस को सेक्यूलरिज्म के रास्ते पर लाने की सकारात्मक भूमिका निभा सकते थे। उनका कहना है कि क्योंकि वह तिलक लगाते हैं, श्वेत वस्त्र पहनते हैं, इसलिए कांग्रेस के भीतर कुछ लोगों को उनसे चिढ़ है। उन्होंने कहा कि वह अपनी वेशभूषा इस जन्म में नही छोड़ सकते। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने वही अहम सवाल उठाया है, जो 1999 में वी.एन. गाडगिल ने उठाया था। लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दिशा निर्देशों में चल रही कांग्रेस हिंदू विरोधी रवैया छोड़ने के लिए तैयार नहीं दिखती।

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