Quantcast
Channel: ARVIND SISODIA
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2982

महा विज्ञानी तो ईश्वर ही है, मनुष्य उसका अल्पज्ञानी है - अरविन्द सिसोदिया

$
0
0
विज्ञान का अल्प ज्ञान ही मनुष्य का सत्य, ईश्वर का महा विज्ञान ही परम सत्य 

विज्ञान का अल्पज्ञानी ही मनुष्य का सत्य है, 

ईश्वर का महा विज्ञान ही परम सत्य है !

इस विराट सृष्टि के सृजन के समय से ही ईश्वरीय व्यवस्था  महा विज्ञान  पर अविलन्वित है। जिसे लगभग 14 अरब वर्ष के लगभग वर्तमान वैज्ञानिक मानते हैँ। तब भी अग्नि अर्थात टेंप्रेचर था। तब समय यानि टाइम भी था। तब आकाश अर्थात आकार था, यानि जो पदार्थ था उसका आयतन था। तब भी गुरुत्वाकर्षण था, चुम्बकत्व था, गति थी। जब बिग बेंग विस्फोट हुआ अर्थात ऋग्वेद के दसम मंडल में वर्णित स्वर्णकलश से विराट ब्रह्माण्ड की उत्पत्ती हुई। जब भी ईश्वरीय इंटरनेट, ईश्वरीय वाई फाई थी । इलेक्ट्रोन न्यूट्रॉन प्रोटोन तब भी थे। ब्लेक हॉल तब भी था। प्रकाश जब भी उत्पन्न हुआ था। हम उन वैज्ञानिक व्यवस्थाओं को पढ़ कर समझ कर, उसका उपयोग - दुरूपयोग करते हैँ. किन्तु ईश्वर के समस्त ज्ञान को हमनें जान लिया समझ लिया यह दावा नहीं कर सकते। ईश्वर द्वारा तय विशुद्ध नियम तब भी काम कर रहे थे। यह दूसरी बात है की मानव मस्तिष्क अति लघु या अति सूक्ष्म होनें वह उन सभी वैज्ञानिक्ताओं को समझ नहीं सकता. 

विज्ञान और सत्य की खोज

विज्ञान के ज्ञान में वृद्धि एक सतत प्रक्रिया है, जो ज़नुभव से बढ़ती जाती है। जिसमें मनुष्य सृष्टि और प्रकृति के रहस्यों को समझता है और उन्हें समझने का प्रयास करता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो अनादिकाल से अनंतकाल तक सदैव विकसित होता रहता है, नित नये सिद्धांतों का ज्ञान हमको होता है। विज्ञान के माध्यम से हम प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं समस्याओं से मुकाबला करते हैं, अपने आपको मजबूत बनाते हैँ। ये प्रक्रियाएं अनंत हैँ उनमें से कुछ का वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया जाता हैं।

हालाँकि, विज्ञान की सीमाएँ भी हैं। वर्तमान में जो ज्ञान हमारे पास है, वह सदैव पूर्ण नहीं होता। वैज्ञानिक अनुसंधान में नई खोज बारंबार पूर्व में स्थापित प्रतिमानों को चुनौती देते हैं। उदाहरण के लिए, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को पहले अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता था, लेकिन आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत ने इसे एक नई दृष्टि दी। इस प्रकार, विज्ञान की समझ मनुष्य को अपूर्ण ही होती है, वह सब कुछ जान गया समझ गया यह नहीं कह सकता और नए ज्ञान की खोज में रहता है।

ईश्वर और महाविज्ञान

ईश्वर की अवधारणा मानवता के लिए एक गहन प्रश्न बनी हुई है। कई लोगों का मानना ​​है कि सृष्टि का निर्माण और उसके ब्रह्माण्ड का निर्माण किसी उच्च शक्ति द्वारा किया गया है। यह विचार ईश्वर को एक "महाविज्ञानी"के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसने ब्रह्मांड की संरचना में रासायनिक क्रियाओ एवं भौतिक संरचनाओं का उपयोग किया। 

वैज्ञानिकों में भी यह अवधारणा है कि ब्रह्मांड जैसा संस्थान एक गणितज्ञ व्यवस्था है जिसने सभी सामग्रियों को क्रमबद्ध तरीके से बनाया है । इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो ईश्वर केवल धार्मिक विश्वास नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है जो सृष्टि के पीछे के वैज्ञानिक सिद्धांतों को समझने में मदद करता है।

मनुष्य का सत्य

मनुष्य अपने जीवन में सत्य की खोज करता है। यह सत्य न केवल वैयक्तिक चरित्र पर आधारित होता है बल्कि वैज्ञानिक व्यवस्था पर भी संतुलित होता है। जब हम कहते हैं कि "विज्ञान का निर्माता शक्ति ही ईश्वर है। उसका आधा अधूरा ज्ञान ज्ञान ही मनुष्य का सत्य है,"तो अर्थ यह है कि मनुष्य सदैव अपने ज्ञान को बढ़ाता रहता है और उसे अधिकतम प्राप्त करने की कोशिश करता रहता है।

इसलिए, जब हम ईश्वर की अवधारणा को देखते हैं तो हमें यह कहना चाहिए कि वह भी मानव के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है - न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी।

: - निष्कर्ष 

इस प्रकार, विज्ञान का अल्प ज्ञान ही मनुष्य का सत्य और ईश्वर का महाविज्ञान ही परम सत्य दोनों एक ही हैँ । मनुष्य के पास अल्प ज्ञान होना मनुष्य की अल्प क्षमता के कारण है। विज्ञान हमें सृष्टि के सिद्धांतों को समझने में मदद करता है, जबकि ईश्वर की अवधारणा हमें उन सिद्धांतों के पीछे के सिद्धांतों, शक्तियों, व्यवस्थाओं तक पहुंचने की प्रेरणा देती है। स्वयं सब कुछ बन जाये यह संभव नहीं है। प्रत्येक निर्माण के पीछे निर्माता है, यही सत्य है।



Viewing all articles
Browse latest Browse all 2982

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>