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आत्मा की इच्छा पूर्ति का साधन होता है शरीर - अरविन्द सिसोदिया

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विविध इच्छाओं में फांसी आत्मा, शरीर धारण का मुख्य कारण होती है। 

- अरविन्द सिसोदिया 9414180151

आत्मा की इच्छा पूर्ति का साधन होता है शरीर - अरविन्द सिसोदिया


आत्मा की इच्छा पूर्ति का साधन होता है, शरीर। अर्थात आत्मा को शरीर, इच्छा पूर्ति में सक्षम बनाता है।
आत्मा की इच्छा पूर्ति का साधन होता है शरीर - अरविन्द सिसोदिया

सनातन हिंदू संस्कृति में मृत्यु के समीप व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति का विशेष ध्यान रखा जाता है। यहाँ तक की फांसी की सजा देते समय भी व्यक्ति से उसकी अंतिम इच्छा पूछी जाती है। उस व्यक्ति के मन में छुपी बातों को भी व्यक्त करवाया जाता है, ताकी बिना बोझ के आत्मा शरीर को छोड़ सके। इस तरह का काफ़ी ध्यान रखा जाता था। इसके पीछे यह मान्यता थी की यदि आत्मा असंतुष्ट है या कोई इच्छा शेष है तो वह फिर से जन्म लेगा, मोक्ष को प्राप्त नहीं होगा।

यह विचार यही सोचने की प्रेरणा देता है कि इच्छाएँ आत्मा को जन्म लेने के लिए प्रेरित करती हैँ। ताकी उस शरीर से वह अपनी इच्छाओं को पूरा कर सके। इस तथ्य से यह समझ में आता है कि आत्मा को क्रियाकलाप संचालन हेतु सक्षम शरीर की आवश्यकता होती है।

आत्मा की इच्छा पूर्ति का साधन होता है, शरीर। अर्थात आत्मा को शरीर, इच्छा पूर्ति में सक्षम बनाता है।

आत्मा और शरीर का संबंध
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आत्मा की इच्छाओं की पूर्ति का साधन होता है, शरीर। अर्थात् आत्मा को शरीर, इच्छा पूर्ति में सक्षम बनाता है।

आत्मा और शरीर के बीच का संबंध एक गहन सैद्धांतिक और आध्यात्मिक विषय है। आत्मा, जिसे जीवन की मूल शक्ति माना जाता है, अपने अनुभव को अनुभव करना और अपनी विशिष्टता को पूरा करने के लिए एक भौतिक रूप की आवश्यकता होती है। यह विचार विभिन्न धार्मिक और ईश्वरीय सिद्धांतों में पाया जाता है।

आत्मा की भूमिका- 
आत्मा को निजी का स्रोत माना जाता है। यह व्यक्ति की पहचान, भावनाएँ, इच्छाएँ और गुणों का केंद्र है। जब आत्मा किसी नये शरीर में प्रवेश करती है तो वह उस शरीर के माध्यम से अपनी इच्छाँ, क्रिया कलापों एवं आवश्यक कार्यों को करती है। इस प्रक्रिया में आत्मा अपने पिछले जीवन और ज्ञान को भी साथ लाती है, जो उसके वर्तमान जीवन में प्रभाव डालती है।

शरीर का महत्व
शरीर केवल एक भौतिक संरचना है, ईश्वरीय मशीन है ईश्वरीय साधन है। यह आत्मा के निर्देश एवं स्वचलित आवश्यकताओं के आधार पर बहुअयामी क्रियाकलापों का कर्ता उपकरण शरीर है। 

जब आत्मा किसी विशेष उद्देश्य, लक्ष्य या इच्छा के साथ जन्म लेती है, या जन्म के बाद अपनाती है तो वह उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आवश्यक भौतिक व्यवस्थाओं का उपयोग करती है।

इच्छाएँ: आत्मा अपनी विशिष्टता को बातचीत करने के लिए शारीरिक उपकरणों का सहारा लेती है।

अनुभव: शरीर के माध्यम से ही आत्मा भिन्न-भिन्न अनुभव प्राप्त करती है जो उसकी विकास यात्रा में सहायक होते हैं।
संबंध: शारीरिक सामाजिक बिक्री और बिक्री का माध्यम होता है, जिससे आत्मा अपने आस-पास की दुनिया से जुड़ती है।

निष्कर्ष - 
इस प्रकार, आत्मा की इच्छा का साधन होता है, शरीर। अर्थात् आत्मा को शरीर की इच्छा में सक्षम बनाता है। यह संबंध न केवल व्यक्तिगत विकास बल्कि समग्र मानव अनुभव के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब तक आत्मा एक भौतिक रूप में नहीं होती, तब तक वह अपनी अभिलाषा को पूरी तरह व्यक्त नहीं कर पाती।

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