पाकिस्तान से आतंकवादी आये और कश्मीर में वारदात को अंजाम दिया, पहले भी बहुतबार येशा हुआ है। भारत इसका सही सेल्यूशन नहीं निकाल पाया। क्योंकि यहाँ सेना सर्वोच्च नहीं, लोकतंत्र सर्वोच्च है। उसमें भी वोटबैंक में फंसे दलों का दल दल है।
अमेरिका ने एक सच बोला है कि यह इस्लामिक आतंकी हमला था। भारत के पक्ष एवं विपक्ष के दल शायद वोट बैंक के कारण इसे इस्लामिक हमला नहीं कहेंगे, वह मात्र पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले तक ही सीमित रहेंगे।
यह हमला क्यों हुआ इसके कई कारण हैँ। कश्मीर को इस्लामिक स्टेट ही बनाना है, यह अंतिम लक्ष्य है। उसके साधन कौन कौन नेता हो सकते हैँ, यह समय परिस्थिति के साथ अलग अलग है। पहले कश्मीर पर हमला कर भूभाग हड़पा। फिर भारत वाले कश्मीर से हिन्दुओं को बाहर किया गया। बेशक कश्मीर की आर्थिक स्थिति पर्यटन पर टिकी हो, मगर जिन्हे कश्मीर इस्लामिक स्टेट बनाना है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कश्मीर कोई आये जाये। वे तो चाहते ही यही हैँ कि भारत से कश्मीर कोई नहीं आये। यह हमला इसी क्रम में हुआ है।
दूसरा कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार पूरी तरह भारत विरोधी है, वह स्वतंत्र कश्मीर चाहता है, वह इस कार्य हेतु पाकिस्तान को अपना शुभचिंतक मानता है। उसका झुकाव पाकिस्तान परस्ती ही होता है।
तीसरी समस्या इस राज्य सरकार पर गहरी दृष्टि रखनी अनिवार्य हमेशा ही रहेगी। क्योंकि वहाँ से हिन्दुओं को बाहर करके वोट बैंक गणित बदला जा चुका है। इस गणित को ठीक करना भी केंद्र सरकार की जिम्मेदारी व जबाबदेही है।
जाँच का विषय यह भी है कि जब केंद्र सरकार चुनाव के लिए माकूल स्थिति नहीं मान रही थी, तो सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव करवाये जानें के आदेश क्यों दिये।
असली वजह एक और है कि भारत के हिंदूवादी प्रधानमंत्री मोदी जी को कमजोर करके सत्ता से बाहर कैसे किया जाये। यह खेल अपरोक्षरूप से अमरीका एंड कंपनी का होता है, सामने पाकिस्तान के आतंकवादी होते हैँ।
अटलजी के प्रधानमंत्री काल में संसद पर हमला हुआ, सेनायें सरहद पर गईं , दस महीनेँ सरहद पर रहीं, बिना युद्ध वापस आगईं....। अटलजी देश में कमजोर प्रधानमंत्री मानें गये और चुनाव हार कर भाजपा गठबंधन सत्ता से बाहर ही गया। यही खेल वर्तमान में भी चल रहा है। मोदीजी और भाजपा को सत्ता से बाहर करने के मामले में अमरीका - पाकिस्तान और चीन के समानहित हैँ।
भारत का जब विभाजन हो रहा था तब पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में वोट डालने वाले भारत मरण ही रहे... और लगातार बने हुये हैँ। कश्मीर घाटी से पंडितों को निकालने वाले कहीं गये नहीं हैँ वे भी लगातार कश्मीर में ही बने हुये हैँ। यह क्या कहते हैँ और क्या करते हरण इसमें बहुत बड़ा फर्क होता है। उल्टा होता है।
इसलिए सावधान रहना ही होगा, सावधानी हटी दुर्घटना घटी... जैसा कि कश्मीर में हुआ। राज्य सरकार पर कड़ी नजर रखी होती तो यह होता ही नहीं।
मोदीजी से इस्लामिक आतंकवाद से संघर्ष का रिस्ता पुराना है। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, तब कांग्रेस के द्वारा सुनियोजित तरीके से गोधरा में राम भक्तों की बोगी जिन्दा जला दी गईं थी। उसके बाद जो प्रतिकार गुजरात नें किया वह भारत में अपने तरीके से एक मिसाल थी और उस प्रतिक्रिया के बाद पूरे देश में दंगों में कमी आई थी।
मोदीजी के प्रधानमंत्री काल में दो बड़े आतंकी हमले हुये जो पाकिस्तान प्रयोजित थे, उनका बदला सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के द्वारा लिया गया। इसी तरह से चीन से भी सख़्ती से नींबटा गया। इससे मोदीजी को मज़बूत नेता की छवि बनी है। यही छवि कारगिल युद्ध जीतने के बाद अटलजी की भी बनी थी। अटलजी की छवि धूमिल करने संसद पर आतंकी आक्रमण हुआ था। यही बात अब भी मानी जा सकती है कि मोदीजी की छवि धूमिल करने यह पहलगांव अटैक हुआ है।
मूलतः कश्मीर घटनाक्रम मोदीजी की छवि पर आक्रमण है। उन्हें कमजोर और विफलनेता करार देनें की साजिश है। यह सब कुछ सोसल मीडिया में उन्ही प्लेटफार्मों से दिख रहा है। जो सरकार से एक जुट होनें की बात कर रहे हैँ। इसलिए भारत को समुचित जबाब तो देना ही होगा। अन्यथा उन्हें कमजोर नेता साबित करने का षड्यंत्र सफल हो जायेगा। प्रधानमंत्री मोदीजी नें सच कहा है कि देशवासियों का खून खोल रहा है।
अर्थात सभी राष्ट्रभक्त शक्तिओं को मोदीजी के साथ एकजुट होना होगा।