बैंक नॉमिनी खाते का पूर्ण स्वामी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
भाषा
नई दिल्ली, 19 अक्टूबर 2010, अपडेटेड 11:03 IST
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई नॉमिनी केवल उस व्यक्ति के बैंक खाते में जमा धन को स्वीकार सकता है जिसकी मौत हो गयी हो लेकिन वह उस खाते में जमा धन के पूर्ण स्वामी होने का दावा नहीं कर सकता है.
शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर एम लोढा की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मूल जमाकर्ता के खाते में जमा धन को संबंधित समुदाय के उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत दावेदारों के बीच वितरित किया जाना चाहिए और नॉमिनी उस खाते पर पूर्ण स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है.
पीठ ने कहा, ‘बैंकिंग नियामक अधिनियम की धारा 45 जेडए (2) में नॉमिनी को मृत व्यक्ति (जमाकर्ता) के खाते में जमा धन को स्वीकार करने का अधिकार दिया गया है.’ उन्होंने कहा, ‘इसके तहत नॉमिनी को जमाकर्ता के खाते के संबंध में अधिकार दिये गए हैं लेकिन इससे नॉमिनी यह न समझने लगे कि वह मालिक के खाते में जमा धन का स्वामी हो गया है.’
शीर्ष अदालत ने रामचंद्र तलवार की याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया जिसने दावा किया था कि चूंकि वह अपनी मृत मां के खाते का नॉमिनी है, इसलिए उसके भाई या परिवार के अन्य सदस्य खाते में जमा धन के हकदार नहीं हैं.
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खाते का नॉमिनी उत्तराधिकारी नहीं
अदालत से
बीएस संवाददाता / November 14, 2010
सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि किसी बैंक के जमाकर्ता का नॉमिनी जमाकर्ता की मौत के बाद खाते की रकम का मालिक नहीं बन जाता। नामिनी को खाते में पड़े धन को हासिल करने का विशेषाधिकार हासिल हो जाता है। बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट की धारा 45जेडए के तहत ऐसी स्थिति में उसे जमाकर्ता के सभी अधिकार मिल जाते हैं। लेकिन बैंकिंग कानून उत्तराधिकार से संबद्घ नहीं हैं।
खाते में जमा रकम मृतक की संपत्ति का हिस्सा होगी और उत्तराधिकार के कानून के तहत यह उसके परिवार को हस्तांतरित हो जाएगी। 'राम चंदर बनाम देवेन्दर कुमार'मामले में एक बेटा अपनी मां का नॉमिनी था। मां की मौत के बाद उसने अपने भाई को छोड़ कर स्वयं यह दावा किया कि वह खाते में जमा रकम का मालिक है। अदालत द्वारा इस दावे को ठुकरा दिया गया। यही नियम सरकारी बचत एवं अन्य निवेश में लागू होगा।
म्युनिसिपल कमेटी की अपील स्वीकार
सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड की गलत बिलिंग के खिलाफ म्युनिसिपल कमेटी ऑफ होशियारपुर की अपील को स्वीकार कर लिया। बोर्ड का दावा था कि यह बिजली कनेक्शन सही नहीं था और नया मीटर लगने तक मीटर में सिर्फ एक-तिहाई खपत ही दिखाई गई थी।
म्युनिसिपल कमेटी ने इसका विरोध किया और कहा कि उसे अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया और उसे मीटर की जांच के संबंध में भी कोई नोटिस नहीं भेजा गया और न ही मीटर को चेक कर के लगाया गया। नया मीटर सही रीडिंग नहीं दिखा रहा था। उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि मीटर की जांच के बाद ही बिल संबंधी यह मांग जायज थी। सर्वोच्च न्यायालय ने म्युनिसिपल कमेटी की अपील पर सुनवाई करते हुए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और म्युनिसिपल कमेटी के तर्क को स्वीकार कर लिया।
नई दिल्ली, 19 अक्टूबर 2010, अपडेटेड 11:03 IST
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई नॉमिनी केवल उस व्यक्ति के बैंक खाते में जमा धन को स्वीकार सकता है जिसकी मौत हो गयी हो लेकिन वह उस खाते में जमा धन के पूर्ण स्वामी होने का दावा नहीं कर सकता है.
शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीश न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर एम लोढा की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मूल जमाकर्ता के खाते में जमा धन को संबंधित समुदाय के उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत दावेदारों के बीच वितरित किया जाना चाहिए और नॉमिनी उस खाते पर पूर्ण स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है.
पीठ ने कहा, ‘बैंकिंग नियामक अधिनियम की धारा 45 जेडए (2) में नॉमिनी को मृत व्यक्ति (जमाकर्ता) के खाते में जमा धन को स्वीकार करने का अधिकार दिया गया है.’ उन्होंने कहा, ‘इसके तहत नॉमिनी को जमाकर्ता के खाते के संबंध में अधिकार दिये गए हैं लेकिन इससे नॉमिनी यह न समझने लगे कि वह मालिक के खाते में जमा धन का स्वामी हो गया है.’
शीर्ष अदालत ने रामचंद्र तलवार की याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया जिसने दावा किया था कि चूंकि वह अपनी मृत मां के खाते का नॉमिनी है, इसलिए उसके भाई या परिवार के अन्य सदस्य खाते में जमा धन के हकदार नहीं हैं.
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खाते का नॉमिनी उत्तराधिकारी नहीं
अदालत से
बीएस संवाददाता / November 14, 2010
सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि किसी बैंक के जमाकर्ता का नॉमिनी जमाकर्ता की मौत के बाद खाते की रकम का मालिक नहीं बन जाता। नामिनी को खाते में पड़े धन को हासिल करने का विशेषाधिकार हासिल हो जाता है। बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट की धारा 45जेडए के तहत ऐसी स्थिति में उसे जमाकर्ता के सभी अधिकार मिल जाते हैं। लेकिन बैंकिंग कानून उत्तराधिकार से संबद्घ नहीं हैं।
खाते में जमा रकम मृतक की संपत्ति का हिस्सा होगी और उत्तराधिकार के कानून के तहत यह उसके परिवार को हस्तांतरित हो जाएगी। 'राम चंदर बनाम देवेन्दर कुमार'मामले में एक बेटा अपनी मां का नॉमिनी था। मां की मौत के बाद उसने अपने भाई को छोड़ कर स्वयं यह दावा किया कि वह खाते में जमा रकम का मालिक है। अदालत द्वारा इस दावे को ठुकरा दिया गया। यही नियम सरकारी बचत एवं अन्य निवेश में लागू होगा।
म्युनिसिपल कमेटी की अपील स्वीकार
सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड की गलत बिलिंग के खिलाफ म्युनिसिपल कमेटी ऑफ होशियारपुर की अपील को स्वीकार कर लिया। बोर्ड का दावा था कि यह बिजली कनेक्शन सही नहीं था और नया मीटर लगने तक मीटर में सिर्फ एक-तिहाई खपत ही दिखाई गई थी।
म्युनिसिपल कमेटी ने इसका विरोध किया और कहा कि उसे अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया गया और उसे मीटर की जांच के संबंध में भी कोई नोटिस नहीं भेजा गया और न ही मीटर को चेक कर के लगाया गया। नया मीटर सही रीडिंग नहीं दिखा रहा था। उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि मीटर की जांच के बाद ही बिल संबंधी यह मांग जायज थी। सर्वोच्च न्यायालय ने म्युनिसिपल कमेटी की अपील पर सुनवाई करते हुए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और म्युनिसिपल कमेटी के तर्क को स्वीकार कर लिया।
उत्तराधिकार और वसीयत के कानून
हिंदुओं को उत्तराधिकार
1-किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है ।
2-अगर उसके किसी पुत्र की उससे पहले मृत्यु हो गयी हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का एक हिस्सा मिलेगा।
3-उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी हिंदू पुरुष द्वारा पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी कर लेने से दूसरी पत्नी को उत्तराधिकार नहीं मिलता है , लेकिन उसके बच्चों का पहली पत्नी के बच्चों की तरह ही अधिकार होता है ।
4-हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लड़के तथा लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी । उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी बराबर का एक हिस्सा मिलेगा ।
5-अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है ।
मुसलमानों (शिया और सुन्नी) को उत्तराधिकार
शिया और सुन्नियों के लिए अलग-अलग नियम हैं। लेकिन निम्नलिखित सामान्य नियम दोनों पर लागू होते हैं
1-अंतिम संस्कार के खर्च और ऋणों के भुगतान के बाद बची संपत्ति का केवल एक तिहाई वसीयत के रुप में दिया जा सकता है ।
2-पुरुष वारिस को महिला वारिस से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
3-वंश-परंपरा में (जैसे पुत्र-पोता) नजदीकी रिश्ते (पुत्र) के होने पर दूर के रिश्ते (पोते) को हिस्सा नहीं मिलता है ।
ईसाइयों को उत्तराधिकार
भारतीय ईसाइयों को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का निर्धारण उत्तराधिकार कानून के तहत होता है । विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा भारत में रहने वाले यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं ।
1-विधवा को एक तिहाई संपत्ति पाने का हक है । बाकी दो तिहाई मृतक की सीधी वंश परंपरा के उत्तराधिकारियों को मिलता है।
2-बेटे और बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलता है ।
3-पिता की मृत्यु से पहले मर जाने वाले बेटे की संतानों को उसे बेटे का हिस्सा मिल जाता है ।
4-अगर केवल विधवा जीवित हो तो उसे आधी संपत्ति मिलती है और आधी मृतक के पिता को मिल जाती है ।
5-अगर पिता जिंदा ना हो तो यह हिस्सा मां, भाइयों तथा बहनों को मिल जाता है ।
6-किसी महिला की संपत्ति का भी इसी तरह बंटवारा होता है
पारसियों को उत्तराधिकार
1-पारसियों में पुरुष की संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों तथा माता-पिता में बंटती है ।
2-लड़के तथा विधवा को लड़की से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
3-पिता को पोते के हिस्से का आधा तथा माता को पोती के हिस्से का आधा मिलता है ।
4-किसी महिला की संपत्ति उसके पति और बच्चों में बराबर-बराबर बंटती हिस्सों में बंटती है ।
5-पति की संपत्ति के बंटवारे के समय उसमें पत्नी की निजी संपत्ति नहीं जोड़ी जाती है ।
6-पत्नी को अपनी संपत्ति पर पूरा अधिकार है । उसकी संपत्ति में उसकी आय, निजी साज-सामान तथा विवाह के समय मिले उपहार शामिल हैं ।
7-शादी के समय दुल्हन को मिले उपहार और भेंट स्त्रीधन के तहत आते हैं ।
8-उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह कानून की धारा 27 के तहत स्त्रीधन पर पूर्ण अधिकार पत्नी का होता है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है ।
नोट- किसी फंड या बीमा पॉलिसी में नामांकन हो जाने से नामांकित व्यक्ति के नाम संपत्ति हस्तांतरित नहीं हो जाती है ।वह तो किसी की मृत्यु के बाद इन रकमों का केवल ट्रस्टी है ।
वसीयत का अधिकार
वसीयत का अर्थ क्या है?
किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति के बंटवारे में (अपनी मृत्यु के बाद ) अपनी इच्छा की लिखित व वैधानिक घोषणा करना।
मुसलमानों के अलावा हर समुदाय के लिए भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में वसीयत का कानून है। मुसलमान अपने निजी कानून से नियंत्रित होते हैं ।
1-हिंदुओ और मुसलमानों को छोंड़कर अन्य समुदायों के लोगों को विवाह के बाद नई वसीयत करनी पड़ती है , क्योंकि विवाह के बाद पुरानी वसीयत निष्प्रभावी हो जाती है ।
2-अगर व्यक्ति विवाह के बाद नई वसीयत नहीं करता है , तो संपत्ति उत्तराधिकार कानून के अनुसार बांटी जाती है ।
3-नई वसीयत करते समय उल्लेख करना होता है कि पुरानी वसीयत रद्द की जा रही है ।
4-अगर संपत्ति साझा नामों में हो , तो भी व्यक्ति अपने हिस्से के बारे में वसीयत कर सकता है ।
5-वसीयत करने वाले व्यक्ति को दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने चाहिए अथवा अपना अंगूठा लगाना चाहिए।
6- दो गवाहों द्वारा वसीयत सत्यापित की जानी चाहिए।
7-वसीयत के अनुसार जिन्हें लाभ मिलना है , वे तथा उनके पति/पत्नियां, वसीयत के गवाह नहीं होने चाहिए।
8-अगर वे ऐसी वसीयत पर गवाही देते हैं, तो वसीयत के अनुसार मिलने वाले लाभ या संपत्ति उन्हें नहीं मिलेंगे, लेकिन वसीयत अमान्य नहीं होगी ।
9-वसीयत को पंजीकृत अवश्य करा लेना चाहिए ताकि इसकी सत्यता पर विवाद ना हो, इसके खोने की आशंका ना रहे अथवा इसके तथ्यों में कोई फेरबदल ना कर सके।
10-मुसलमान जुबानी वसीयत कर सकता है । अगर उसके वारिस सहमत नहीं हों तो वह अपनी एक तिहाई से ज्यादा संपत्ति (अंतिम संस्कार के खर्च तथा कर्जों के भुगतान के बाद बची संपत्ति का एक तिहाई) का वसीयत के जरिए निपटारा नहीं कर सकता।
11-मुसलमान की वसीयत अगर लिखी हुई है तो उसे प्रमाणित करने की जरुरत नहीं है । वह हस्ताक्षर के बिना भी वैध है।लेकिन अगर उसके वसीयतकर्ता के बारे में साबित कर दिया जाय।
12-किसी अभियान या युद्ध के दौरान सैनिक या वायुसैनिक 'खास वसीयत'कर सकता है । इसे विशेषाधिकार वसीयत भी कहते हैं।
13-खास वसीयत का अधिकार हिंदुओं को नहीं प्राप्त है।
14-खास वसीयत लिखित या कुछ सीमाओं तक मौखिक हो सकती है।
15-खास वसीयत अगर किसी अन्य व्यक्ति ने लिखा है तो सैनिक के हस्ताक्षर होने चाहिए।लेकिन अगर उसके निर्देश पर लिखा गया है तो हस्ताक्षर की जरुरत नहीं होती है ।
16-कोई सैनिक दो गवाहों की उपस्थिति में मौखिक वसीयत कर सकता है । लेकिन खास वसीयत का अधिकार ना रहने पर वसीयत एक महीने के बाद खत्म हो जाती है ।
17- नाबालिग या पागल व्यक्ति को छोड़कर कोई भी व्यक्ति वसीयत कर सकता है ।
18-अगर वसीयतकर्ता ने इसे लागू करने वाले का नाम नहीं दिया है या लागू करने वाला अपनी भूमिका को तैयार नहीं है तो वसीयतकर्ता के उत्तराधिकारी अदालत में आवेदन कर सकते हैं कि उन्हीं में से किसी को वसीयत लागू करने वाला नियुक्त कर दिया जाय।
19-अगर न्यायालय द्वारा नियुक्त व्यक्ति (निष्पादक,executor)अपना कार्य नहीं करता है, तो उत्तराधिकारी न्यायालय से वसीयत लागू करवाने का प्रशासन पत्र हासिल कर सकते हैं ।
20-वसीयत लागू करने वाले को अदालत से वसीयत पर प्रोबेट(न्यायालय द्वारा जारी की गयी वसीयत की प्रामाणिक कापी) अर्थात प्रमाणपत्र हासिल करना चाहिए।
21-किसी विवाद की स्थिति में संपत्ति पर अपने कानूनी अधिकार के दावे के लिए , लाभ पाने के इच्छुक वारिस के पास प्रोबेट या प्रशासन पत्र होना जरुरी है ।
22-वसीयतकर्ता जब भी अपनी संपत्ति को बांटना चाहे वह वसीयत में परिवर्तन कर सकता है या उसे पलट सकता है ।
23-अगर वसीयतदार, वसीयतकर्ता से पहले मर जाता है तो वसीयत खत्म हो जाती है और संपत्ति वसीयतकर्ता के उत्तराधिकारियों को मिलती है ।
24-अगर दुर्घटना में वसीयतकर्ता और वसीयत पाने वाले की एक साथ मौत हो जाती है, तो वसीयत समाप्त हो जाती है ।
25-अगर दो वसीयत पाने वालों में से एक की मौत हो जाती है तो जिंदा व्यक्ति पूरी संपत्ति मिल जाती है ।
वसीयतनामा जमा करने की सुविधा
1-भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 के अंतर्गत रजिस्ट्रर के नाम वसीयतनामा जमा किया जाता है ।
2-वसीयतनामा रजिस्टर कराना या जमा करना अनिवार्य नहीं है ।
3-वसीयतनामा जमा कराने के लिए रजिस्ट्रार उसका कवर नहीं खोलता है । सब औपचारिकताओं के बाद उसे जमा कर लेता है ।
4-जबकि पंजीकरण में जो व्यक्ति दस्तावेज प्रस्तुत करता है , सब रजिस्ट्रार उसकी कॉपी कर , उसी व्यक्ति को वापस लौटा देता है।
गोद लेने का अधिकार
कौन गोद ले सकता है?
भारत में केवल हिंदू ही बच्चा गोद ले सकते हैं । इनमें सिख, जैन और बौद्ध शामिल हैं ।
1-विवाहित अथवा अविवाहित स्त्री या पुरुष बच्चा गोद ले सकते हैं ।
2-बच्चों को गोद लेते समय , गोद लेने वाला/ वाली नाबालिग अथवा पागल नहीं होना चाहिए।
3-गोद लेने वाला/वाली लड़का गोद ले सकते हैं , अगर गोद लेते समय उसकी कोई अपनी या गोद ली हुई पुरुष संतान (बेटा/पोता /पड़पोता आदि) ना हो।
4-गोद लेने वाला/वाली लड़की गोद ले सकता/सकती हैं , अगर गोद लेते समय उसकी कोई अपनी या गोद ली हुई कन्या संतान ना हो।
5-कोई भी व्यक्ति अपने विपरीत लिंग के कम से कम 21 साल छोटे लड़के/लड़की को गोद ले सकता/सकती है।
6-गोद लिया हुआ व्यक्ति 15 वर्ष से कम उम्र का तथा अविवाहित होना चाहिए।
7-कोई पुरुष ऐसे बच्चे को गोद नहीं ले सकता है , जिसकी मां का गोद लेने वाले के साथ ऐसा संबंध हो जिसमें विवाह वर्जित है। (जैसे बहन अथवा बेटी के पुत्र को गोद नहीं लिया जा सकता)
8-अगर पत्नी जीवित है तो उसकी सहमति से ही बच्चा/बच्ची गोद ले सकता है । लेकिन अगर पत्नी पागल हो, हिंदू नहीं हो, या संन्यासिन हो गयी हो तो उसकी सहमति आवश्यक नहीं है ।
9-विधवा महिला संतान गोद ले सकती है ।
10-विवाहित महिला विवाह खत्म हो जाने,अदालत द्वारा पति को पागल घोषित कर दिए जाने या उसके संन्यासी हो जाने की स्थिति में संतान गोद ले सकती है ।
गैर हिंदुओं के लिए कानून
1-गैर हिंदू व्यक्ति किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकता है , लेकिन वह गार्जियन्स एंड वार्ड्स एक्ट के अंतर्गत अभिभावक बन सकता है ।
2-ऐसा बच्चा 21 साल की उम्र में अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हो जाता है ।
3-अदालत अभिभावकत्व रद्द कर सकती है , अगर अभिभावक इसे रद्द करने के लिए आवेदन करे अथवा अभिभावक का कार्य असंतोषजनक पाया जाए।
कौन संतान गोद दे सकता है ?
भारत में केवल हिंदू ही अपनी संतान गोद दे सकते हैं ।
1-गोद देने वाली संतान का पिता अपनी पत्नी की सहमति से गोद दे सकता है ।
2-गोद देने वाली संतान की मां और पिता मर गया हो या पागल या संन्यासी हो गया हो ।
3-अगर बच्चे के माता-पिता मर गए हों अथवा बच्चे को गोद देने लायक नहीं हों तो अदालत की अनुमति से अभिभावक गोद दे सकते हैं।
4-किसी मान्यताप्राप्त अनाथालय या गोद देने वाली एजेंसी से बच्चा गोद लिया जा सकता है । ऐसा करने के लिए पंजीकरण कराना होगा।
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नॉमिनी केवल ट्रस्टी होता है, मृतक की संपत्ति का स्वामी नहीं…
muslim inheritanceसमस्या-
लखनऊ, उत्तर प्रदेश से वीर बहादुर ने पूछा है-
मेरे पिताजी की घर के बाहरी हिस्से में दो दुकाने थी। एक मुझे और एक मेरे बड़े भाई को दी थी। पिताजी को आशंका थी कि हम दोनों अपनी दुकाने किराये पर किसी अन्य व्यक्ति को न दे दें, इस हेतु उन्होने सन् 1986 में हम दोनो भाइयों से अलग अलग 10 रुपये के स्टाम्प पर किरायानामा लिखा लिया जिसमें पिता जी द्वारा लिखाया गया कि हमें पैसे की आवश्यकता है अतः मै 100@- किराये पर दुकान और दो कमरे इनको रहने हेतु दे रहा हूँ, ये अन्य किसी सिकमी किरायेदार को नही रखेंगे, उस एग्रीमेन्ट में कोई समय सीमा भी नही लिखी गयी। जिस व्यक्ति से स्टाम्प पर एग्रीमेन्ट लिखवाया था उसी को गवाह भी बना दिया इस प्रकार एक ही गवाह है एग्रीमेन्ट भी अनरजिस्टर्ड है। उपरोक्त एग्रीमेन्ट के अतिरिक्त दुबारा एग्रीमेन्ट नही कराया गया। 7 नवम्बर 2012 को पिताजी का देहान्त हो गया पिताजी सरकारी कर्मचारी थे ट्रेजरी द्वारा जारी पेन्शन फार्म में उनके द्वारा भरा गया कि (मेरी मृत्यु होने की दशा में पेन्शन सम्बन्धी अवशेष भुगतान ज्योति बहादुर अर्थात छोटे भाई को किया जाय) इस आधार पर छोटे भाई द्वारा पिता जी के बैंक सेविंग एकाउण्ट में पिताजी के जीवनकाल में आये पेंशन धनराशि को भी अपना बता कर नही दिया जा रहा है जबकि बैंक में पिताजी द्वारा किसी को नामित नही किया गया है। साथ ही हम दोनो भाइयों को छोटे भाई द्वारा घर में भी हिस्सा नहीं दिया जा रहा है, कहा जा रहा है कि हम दोनो किरायेदार हैं और वह मालिक है हम 3 भाई एवं 3 बहन हैं पिता द्वारा किसी को वसीयत नही की गयी है। कृपया बतायें क्या हम दोनो भाइयों को बैंक में जमा धनराशि एवं घर में हिस्सा मिल पायेगा?
समाधान-
आप दोनों भाइयों के पास जो दुकानें हैं वे आप के कब्जे में हैं उन पर कब्जा बनाए रखें। आप के पिता जी की समस्त चल अचल संपत्ति में आप छहों भाई बहिनों का हिस्सा है। आप के छोटे भाई के कहने से कि वह मालिक है और आप किराएदार हैं कुछ नहीं होता। जो भी पेन्शन आदि राशि आप के पिताजी के बैंक खाते में पहले आ चुकी है वह भी आप सब की है और यदि बाद में कोई राशि मिलने वाली है तो वह भी आप सब की है। किसी भी मामले में नोमिनेशन का अर्थ सिर्फ इतना होता है कि नोमिनी उस धन को प्राप्त कर सकता है। लेकिन नोमिनी उस धन का ट्रस्टी मात्र होता है और उस का दायित्व होता है कि वह उस धन को मृतक के उत्तराधिकारियों में उन के हिस्सों के मुताबिक बाँट दे।
आप को चाहिए कि आप उक्त संपत्ति के बँटवारे के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करें साथ में एक अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन भी प्रस्तुत करें कि जो चल-अचल संपत्ति आपके पिता की है उसे खुर्द बुर्द न किया जाए। इस से संपत्ति अपने मूल स्वरूप में बनी रहेगी और दावा डिक्री होने पर प्रत्येक हिस्सेदार को उस का हिस्सा प्राप्त हो जाएगा।
Madhya Pradesh High Court
Smt. Jaibunnisha vs Appelalte Authority Under ... on 18 June, 2012
W.P.No.18547/2011
18/06/2012
Shri Rahul Rawat, learned counsel for the petitioner.
Shri S.K.Gupta, learned counsel for Respondent No.3.
Shri Greeshm Jain, learned counsel for Respondent No.4. Challenging the orders passed by the competent authority and the appellate authority under the Payment of Gratuity Act, 1972 directing for payment of gratuity to Respondent No.3, petitioner has filed this writ petition.
Both Petitioner Smt. Jaibunnisha and Respondent No.3 Smt. Nafisa Bee claim to be the legally married wives of Late Gulam Mohammad, who was working in the establishment of South Eastern Coal Field Limited. After his death, a dispute arose with regard to payment of gratuity and the authorities concerned have directed for payment of gratuity to Respondent No.3 merely on the basis of nomination. It is a well settled principle of law that on the basis of nomination, claim cannot be settled, it has to be settled on the basis of entitlement of the legal heirs as per the law of succession and merely because a nomination is made that would not mean that the nominee is entitled to receive the entire amount ignoring the claim of other legal heirs. A nominee is only entitled to receive the amount and keep the amount as a custodian. The said principle is very well laid down by the Supreme Court in the case of Sarbati Devi & another Vs. Usha Devi 1984 (1) SCC 424 and has also been followed by the Supreme Court in the case of Shipra Sengupta Vs. Mridul Sengupta & others ILR 2009 MP Series 2735.
Keeping in view the aforesaid principles, it is clear that the authorities under the Payment of Gratuity Act have committed an error in directing for payment of gratuity to Respondent No.3 on the basis of nomination.
Records indicate that the succession case between the parties is pending and, therefore, its a fit case where the amount of gratuity should be kept in custody of the competent authority and be dispersed after the succession case is finally decided.
Accordingly, this petition is allowed. The order impugned passed by the competent authority and the appellate authority directing for payment of gratuity to Respondent No.3 are quashed. The Competent authority under the Payment of Gratuity Act is directed to keep the amount in question in a fixed deposit with a Schedule Bank, so that the same earns interest and disperse it on the basis of final order, that may be passed in the proceedings pending for succession in the court of Civil Judge Class-I Budhar District-Shahdol. The said court is directed to decide the application, under Section 372 of the Indian Succession Act, pending before it between the parties in accordance with law within a period of six months from the date of receipt of certified copy of this order.
With the aforesaid, the petition stands allowed and disposed of.
Certified Copy as per rules.
(Rajendra Menon) Judge nd