Quantcast
Channel: ARVIND SISODIA
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2982

याद रहे, लोकतंत्र की रक्षा का महाव्रत - अरविन्द सीसौदिया

$
0
0

 26 जून: आपातकाल दिवस के अवसर पर

याद रहे, लोकतंत्र की रक्षा का महाव्रत - अरविन्द सीसौदिया

 Arvind S Sisodia (@ArvindSSisodia) / Twitter

 

 मदर इण्डिया नामक फिल्म के एक गीत ने बड़ी धूम मचाई थीः
दुख भरे दिन बीते रे भईया, अब सुख आयो रे,
रंग जीवन में नया छायो रे!


    सचमुच 1947 की आजादी ने भारत को लोकतंत्र का सुख दिया था। अंग्रेजों के शोषण और अपमान की यातना से मातृभूमि
मुक्त हुई थी, मगर इसमें ग्रहण तब लग गया जब भारत की सबसे सशक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया, तानाशाही का शासन लागू हो गया और संविधान और कानून को खूंटी पर टांग दिया गया। इसके पीछे मुख्य कारण साम्यवादी विचारधारा की वह छाया थी जिसमें नेहरू खानदान वास्तविक तौर पर जीता था, अर्थात साम्यवाद विपक्षहीन शासन में विश्वास करता हैं, वहां कहने को मजदूरों का राज्य भले ही कहा जाये मगर वास्तविक तौर पर येन-केन प्रकारेण जो इनकी पार्टी में आगे बढ़ गया, उसी का राज होता है।
भारतीय लोकतंत्र की धर्मजय
    भारत की स्वतंत्रता के साठ वर्ष होने को आये। इस देश ने गुलामी और आजादी तथा लोकतंत्र के सुख और तानाशाही के दुःख को बहुत करीब से देखा। 25 जून 1975 की रात्री के 11 बजकर 45 मिनिट से 21 मार्च 1977 का कालखण्ड इस तरह का रहा जब देश में तानाशाही का साम्राज्य रहा, सबसे बडी बात यह है कि इस देश ने तानाशाही को तुरन्त ही संघ शक्ति से पराजित कर पुनः लोकतंत्र की स्थापना की!
आपातकाल
  तत्कालीन प्रधनमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने आन्तरिक आपातकाल की जंजीरों में सम्पूर्ण देश को बांध दिया था। निरपराध हजारों छोटे-बड़े नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को उन्होंने कारागारों में ठूंस दिया। पर कोई भी इसके विरोध में किसी प्रकार की आवाज नहीं उठा सकता था। एकाधिकारवाद का क्रूर राक्षस सुरसा की तरह अपना मुख अधिकाधिक पसार रहा था...।
हिन्दुत्व का मजबूत मस्तिष्क
    भारतीय संस्कृति में त्रिदेव और तीन देवियों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। त्रिदेव के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश जाने जाते हैं, जो मूलतः सृष्टीक्रम के जनक, संचालक और संहारकर्ता हैं। वहीं दैवीय स्वरूप सृष्टी संचालन का गृहस्थ पक्ष है, जिसमें सरस्वती बु िकी, लक्ष्मीजी अर्थव्यवस्था की और दुर्गा शक्ति की संचालिकाएं मानी जाती हैं। इन्हीं के साथ वेद, पुराण और उपनिषदों का एक समृद्ध सृष्टि इतिहास साहित्यिक रूप में उपलब्ध है। यह सब मिलकर हिन्दुत्व का मस्तिष्क बनते हैं और इसलिए हिन्दुत्व की सन्तान हमेशा ही पुरूषार्थी और विजेता के रूप में सामने आती रही है। निरंतर अस्तित्व में रहने के कारण ये सनातन कहलाई है। इसी कारण अन्य सभ्यताओं के देहावसान होने के बाद भी हिन्दू संस्कृति अटल, अजर, अमर बनी हुई है। यह इसी संस्कृति का कमाल यह है कि घोर विपŸिायों में भी घबराये बगैर यह अपनी विजय की सतत प्रयत्नशील रहती है। इसी तत्वशक्ति ने आपातकाल में भी सुदृढ़ता से काम किया और विजय हासिल की।
स्वतंत्रता की रक्षा का महानायक: संघ
    वर्तमान काल में देश की स्वतंत्रता का श्रेय महात्मा गांधी सहित उस विशाल स्वतंत्रता संग्राम को दिया जाना उचित है तो हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस देश की स्वतंत्रता को तानाशाही से मुक्त कराने और जन-जन की लोकतंत्रीय व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाये रखने में उतना ही बड़ा योगदान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के और उसके तत्कालीन सरसंघचालकों का है।
     मा. बालासाहब देवरस और उनका मार्गदर्शन व अनुसरण करने वाले विशाल स्वयंसेवक समूह को यह श्रैय जाता है। यदि आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता की पुनप्र्राप्ति के लिए बलिदानी संघर्ष न किया होता तो आज हमारे देश में मौजूद लोकतंत्र का वातावरण नहीं होता, जनता के मूलाधिकार नहीं होते, लोककल्याण के कार्यक्रम नहीं होते। चन्द साम्राज्यवादी कांग्रेसियों की गुलामी के नीचे उनकी इच्छाओं के नीचे, देश का आम नागरिक दासता की काली जेल में पिस रहा होता।
स्मरण रहे वह संघर्ष
    इसलिए आपातकाल के काले अध्याय का स्मरण करना, उसके विरूद्ध प्रभावी संघर्ष का मनन करना हमें लोकतंत्र की रक्षा की प्रेरणा देता है। इन प्रेरणाओं को सतत् जागृत रखना ही हमारी स्वतंत्रता का मूल्य है। जिस दिन भी हम इन प्रेरणाओं को भूल जायेंगे, उसी दिन पुनः तानाशाही ताकतें हमको फिर से दास बना लेंगी।
नेहरू की साम्यवादिता ही मूल समस्या
    कांग्रेस में महात्मा गांधी सहित बहुत सारे महानुभाव रहे हैं, जिन्होंने सदैव लोकतंत्र की तरफदारी की है, किन्तु कांग्रेस का सत्तात्मक नेतृत्व पं. जवाहरलाल नेहरू और उनके वंशजों में फंस कर रह गया है। पं. जवाहरलाल नेहरू स्वयं में घोर कम्यूनिस्ट थे, वे रूस से अत्यधिक प्रभावित थे, इसलिए कांग्रेस मूलतः एक तानाशाह दल के रूप में रहा। उसने जनता को ठगने के लिए निरन्तर छद्म लोकतंत्र को ओढ़े रखा। हमेशा कथनी व करनी में रात-दिन का अंतर रखा और यही कारण था कि इस दल ने लोकतंत्र व राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगाने में हमेशा ही फुर्ती दिखाई। सबसे पहले डाॅ. हेडगेवार जी के समय में नागपुर क्षैत्र की प्रांतीय सरकार ने संघ में सरकारी लोगों को जाने पर प्रतिबन्ध लगाया, जिसमें पं. जवाहर लाल नेहरू और डाॅ. हार्डीकर का हाथ होने की बात समय-समय पर आती रही थी। इसके बाद स्वतंत्र भारत में महात्मा गांधी की हत्या की ओट में संघ पर प्रतिबन्ध लगाया गया। वीर सावरकर व पूज्य श्रीगुरूजी को गिरफ्तार किया गया। इसी प्रकार आपातकाल के दौरान सरसंघचालक मा. बाला साहब देवरस को गिरफ्तार किया गया और संघ पर प्रतिबन्ध लगाया गया। इसी तरह बाबरी मस्जिद ढ़हने पर नरसिम्हा राव सरकार ने भी भाजपा शासित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर, संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
इंदिराजी का चुनाव निरस्त: कांग्रेस परास्त
    इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा जी से पराजित उम्मीदवार राजनारायण के द्वारा दायर याचिका पर तमाम दबावों को नकारते हुए देश की सबसे मजबूत प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया तथा 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उन्होंने 20 दिन के समय पश्चात यह निर्णय लागू करने के निर्देश भी दिये। इसी दिन दूसरी बडी घटना हुई गुजरात में जंहा कांग्रेस विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार गई।
20 जून 1975: कांग्रेस की समर्थन रैली
    श्रीमति इंदिराजी न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर स्थगन ले सकतीं थीं, मगर न्यायालय के इस निर्णय के विरू( जनशक्ति का दबाव बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी की ओर से एक विशाल रैली आयोजित की गई ओर कांग्रेस ने उन्हे प्रधानमंत्री पद पर बने रहने का आग्रह किया, जिसमें एक नारा दिया गया:
इंदिरा तेरी सुबह को जय, शाम की जय
तेरे काम की जय, तेरे नाम की जय
    उन्होंने अपनी जिद को प्राथमिकता देते हुए संवैधानिक व्यवस्था को नकार दिया। इसी का परिणाम ‘आपातकाल’ था।
25 जून 1975: आपातकाल
     निर्वाचन रद्द करने के और गुजरात में विपक्ष की विजय मुद्दे से पूरे देश में आन्दोलन प्रारम्भ हो गया और प्रधानमंत्री पद से इंदिरा जी का इस्तीफा मांगा जाने लगा। उनके पक्ष कर 20जून को रैली हुई उसका जवाब 25 जून को दिया गया।
    हालांकी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तानाशाह रवैये के विरोध में एक जनता र्मोचा पहले ही बन चुका था,मगर संर्घष को नये सिरे से प्रारम्भ करने के लिए, जिसके मोरारजी भाई देसाई ;संगठन कांग्रेसद्ध की अध्यक्षता और सचिव नानाजी देशमुख ;जनसंघद्ध के नेतृत्व में जोक संर्घष समिति गठित हुई। इसी समिति के द्वारा 25 जून 1975 को इसी क्रम में रामलीला मैदान दिल्ली में विशाल आमसभा आयोजित हुई थी। उसमें उमड़ी विशाल जन भागेदारी ने इन्दिरा सरकार को झकझोर कर रख दिया। इस आमसभा में जयप्रकाश नारायण ने मांग की थी कि ‘‘प्रधानमंत्री त्यागपत्र दें, उन्हें प्रधानमंत्री पद पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। वास्तविक गणतंत्र की परम्परा का पालन करें।’’ इसी सभा में सचिव नानाजी देशमुख ने घोषणा कर दी थी कि 29 जून से राष्ट्रपति के सम्मुख सत्याग्रह किया जायेगा, जो प्रतिदिन चलेगा।
राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद का आपातकाल
    ठीक इसी समय इंदिरा जी के बंगले पर उनके अति विश्वस्त सि(ार्थ शंकर राय, बंशीलाल, आर.के.धवन और संजय गांधी की चैकड़ी कुछ और ही षडयंत्र रच रहे थे, जिससे 28 वर्षीय लोकतंत्र का गला घोंटा जाना था।
    उसी समय राष्ट्रपति भवन भी इस षडयंत्र में प्रभावी भूमिका निभाने की तैयारी कर रहा था। राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद, संविधान की पुस्तकों और आपातकाल लागू करने के प्रारूपों पर परामर्श ले रहे थे। कई तरह के असमंजस इसलिये थे कि ऐसा क्रूर कदम देश के इतिहास में पहली बार होना था।
    श्रीमति गांधी, सि(ार्थ शंकर राव और आर.के. धवन रात्रि में राष्ट्रप्रति भवन पहुंच गये और रात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर आपातकाल लगा दिया।
    राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रशासनिक अधिकारियों को, पुलिस प्रशासन को निर्देश जारी कर दिये गये कि देशभर के प्रमुख राजनेताओं को बंदी बना लिया जाये, जहां से विरोध का स्वर उठ सकता है, उसे धर दबोचा जाये और सींखचों के पीछे डाल दिया जाये।
मीसाः-  न दलील, न वकील, न अपील
        पूरा देश कारागार में बदल दिया
    1970 में पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे जन विद्रोह के चलते, 1971 में श्रीमती गांधी ने संसद से एक कानून पारित करवा लिया,जो ‘‘मीसा’’ के नाम से जाना जाता है। तब संसद में यह कहा गया था कि देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार, तस्करी और आसामाजिक गतिविधियों पर नियंत्रण हेतु इसे काम में लाया जायेगा। परन्तु यह प्रतिपक्ष को कुचलने के काम लिया गया। इसे नौवीं सूची में डालकर न्यायालय के क्षैत्राधिकारी से बाहर रखा गया। हालांकि इस तरह का कानून 1950 में ही पं. नेहरू ने निरोध नजरबंदी कानून के रूप में लागू कर दिया था, जो निरंतर बना रहा।
    निर्दोष जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, मधु दण्डवते, श्यामनंदन मिश्र, राजनारायण, कांग्रेस के युवा तुर्क चन्द्रशेखर, चैधरी चरण सिंह, मदरलैण्ड के सम्पादक के आर. मलकानी, 30 जून को संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस को नागपुर स्टेशन पर बंदी बना लिया गया। 4 जुलाई को संघ सहित 26 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
आपातकाल के इन्दिरा लक्ष्य
    श्रीमती गांधी के आक्रमण की छः प्रमुख दिशायें थीं:
1. विपक्ष की गतिविधियों को अचानक ठप्प कर देना।
2. आतंक का वातावरण तैयार कर देना।
3. समाचार व अन्य प्रकार के सभी सम्पर्क व जानकारी के         सूत्रों को पूरी तरह नियंत्रित कर देना।
4. प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को ही नहीं, सर्व सामान्य             जनता को भी यह आभास कराना कि विपक्ष ने भारत
    विरोध विदेशी शक्तियों के साथ सांठ-गांठ कर श्रीमती
    गांधी का तख्ता पलटने का व्यापक हिंसक षडयंत्र रचा था         जिसे श्रीमती गांधी ने समय पर कठोर पग उठाकर विफल         कर दिया।
5. कोई न केाई आकर्षक जादुई कार्यक्रम घोषित कर बदले        वातावरण में कुछ ठोस काम करके जनता को अपने पक्ष में        करना । और
6. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति को तोड़कर देशव्यापी        संगठित प्रतिरोध की आशंका को समाप्त कर देना।
    इन सभी दिशाओं में उन्होंने एक साथ आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण को प्रभावी व सफल बनाने हेतु वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ अपने पास ओम मेहता, बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ल, एच.आर. गोखले, सिद्धार्थ शंकर राय और देवकान्त बरूआ के समान लोगों का गिरोह भी संगठित कर लिया। संजय तो सर्वेसर्वा था ही।
आपातकाल का समापन
    18-19 महीने बाद, 18 जनवरी 1977 को अचानक इंदिरा जी ने आम चुनाव की घोषणा कर दी। वे यह समझ रही थीं कि अब अन्य राजनैतिक दलों का धनी- धोरी कोई बचा नहीं है, कार्यकर्ताओं का जीवट समाप्त हो चुका है, कुल मिलाकर कोई चुनौती सामने नहीं है। इसी कारण उन्होंने राजनैतिक नेताओं की मुक्ति प्रारम्भ कर दी गई।
    चुनावों की घोषणा के दूसरे दिन चारों प्रमुख राष्ट्रीय जनतांत्रिक दल यथा भारतीय जनसंघ,संगठन कांग्रेस,भारतीय लोकदल और समाजवादी दल आदी जो कि  कांग्रेस के सामने थे, ने अपने अपने दलों का विलय कर एक दल बनाने का निर्णय लिया। नया दल जनता पार्टी के नाम से बना, नेता, ध्वज, चुनाव चिन्ह सभी तय हो गये। इस दल की राजनैतिक और आर्थिक नीतियों को भी लिपिब( कर लिया गया। उस वक्त मौजूद अन्य विपक्षी दलों ने भी इस दल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला लिया। देश भर में दबा हुआ जनस्वर विस्फोटित होने लगा, कांग्रेस में घबराहट बढ़ने लगी, तमाम छोटे-बड़े सहारे लिये जाने लगे। 16 से 20 मार्च तक निर्वाचन हुए,अंततः 20 मार्च 1977 की रात्रि में ही आम चुनावों में इंदिरा गांधी के पिछड़ने के समाचार दिल्ली पहुंच चुके थे। उनके करीबी आर.के. धवन सक्रीय हो चुके थे और उन्होंने रायबरेली कलक्टर को टेलीफोन किया कि मतगणना धीमी कर दो और पुनर्मतगणना के आदेश दो। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के माध्यम से भी दबाव डाला गया। किन्तु चुनाव अधिकारी ने कोई दखल नहीं दिया और अंततः इंदिरा गांधी रायबरेली सहित पूरे देश में चुनाव हार गई।
    आपातकाल लगाने वाले राष्ट्रपति फकरूद्दीन अली अहमद का रहस्यमय निधन हो चुका था,कार्यवहक राष्ट्रपति बी डी जत्ती ने,21 मार्च की सुबह आपात स्थिति समाप्ति की घोषणा हो गई, जेलों के द्वार खुल गये और संघ के सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस सहित देश की तमाम जेलों से 15,000 के लगभग निर्दोष बंदियों को मुक्ति मिली। मोरारजी देसाई पहली बार लोकसभा में गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री बने, 30 वर्ष का कांग्रेस का एकछत्र शासन समाप्त हो गया। कांग्रेस के केन्द्रीयमंत्री बाबू जगजीवनराम भी जनतापार्टी में सम्मिलित हो गयेथे। भारतीय जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। इसी सरकार ने नीलम संजीव रेड्डी को पहला गैर कांग्रेसी राष्ट्रपति भी निर्वाचित किया। भले ही यह सरकार बाद में बिखर गई, इंदिरा गांधी स्वयं भी वापस सत्ता में आ गई, मगर आपातकाल के संघर्ष ने जो परिणाम दिये तथा जनता ने जिस तरह का राजनैतिक न्याय किया उसका एक सुखद परिणाम यह है कि अब किसी भी राजनैतिक दल में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह आपातकाल जैसे तानाशाही कदम उठाने की बात भी सोच सके। मगर इस चीज को हमेशा स्मरण में रखकर न्याय प्राप्त करने की प्रतिब(ता दृढ़ करते रहना आवश्यक है अन्यथा ‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी’ की तरह जैसे ही ‘सतत् सतर्कता कम हुई कि तानाशाही फिर हावी’ हो जायेगी।

-राधाकृष्ण मंदिर रोड़, डडवाड़ा, कोटा जंक्शन
9414180151


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2982

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>