में भी कारसेवक था मुझे हक है कि में कांग्रेस से माफी का आग्रह कर सकूं ।
श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति में अडंगों के लिये कांग्रेस मॉफी मांगे
- अरविन्द सिसौदिया
श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति, कांग्रेस का कभी मुद्दा नहीं रहा बल्कि कांग्रेस ने ही मुस्लिम तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनिति के लिये श्री रामजन्म भूमि पर मंदिर नहीं बनने दिया । जबकि महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और के एम मुन्सी जैसे दिग्गज कांग्रेसियो नें सोमनाथ पर भव्य मंदिर निर्माण का शुभारम्भ करवाया था। वहां पूर्व निर्मित मस्जिदें और कब्जे हटा दिये गये थे । भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी के विरोध के बावजूद, राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी ने सोमनाथ मंदिर के शुभारम्भ समारोह में भाग लिया था।
1951 में जब मंदिर का पुननिर्माण पूरा हुआ तो खुद सरदार वल्लभभाई पटेल इसके उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए मौजूद नहीं थे. राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) को मंदिर के उद्घाटन करने का न्योता दिया गया और उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू को यह पसंद नहीं आया
किन्तु अयोध्या में जवाहरलाल नेहरू के हट के कारण श्रीराम जन्म भूमि का मसला अटक गया । उत्तरप्रदेश में कांग्रेस सरकार ने ही मंदिर बनने में अडंगा लगाया और लगातार कांग्रेस सरकारें इसके विरूद्ध रहीं अदालतों तक में कांग्रेस के दिग्गज वकीलों ने इसे नहीं बनने देनें की लडाई लडी ।
कांग्रेस के किसी भी चुनावी घोषणा पत्र में, कार्यक्रम में,अभियान में श्रीराम जन्म भूमी मुक्ति कभी भी विषय के रूप में सम्मिलित नहीं हुआ है। बल्कि उन्होने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति हेतु कारसेवा करने गये कारसेवकों के कारण 4 भाजपा सरकारें , यूपी की कल्याण सिंह सरकार, हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार, राजस्थान की भैरोंसिंह शेखावत और एमपी की सुंदरलाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था । उत्तरप्रदेश सरकार कानून व्यवस्था में फैल रही यह मान भी लियर जाये तो अन्य तीन सरकारों का क्या दोष था। कारसेवक तो पूरे देश से आये थे कांग्रेस शासित राज्यों से भी , वहां की सरकारे क्यों बर्खास्त नहीं की गई ।कांग्रेस नेता कपिल सिब्ब्ल राम जन्मभूमि प्रकरण में न्याय को विलत्बित कराते हुये स्पष्टतः देख्रे गये हैं| मुस्लिम बोट बैंक के लिये न्याय, अधिकार और सत्य के विरूद्ध हमेशा कांग्रेस ने अगुवाई की और उसी के परिणाम स्वरूप आज हांसिये पर सिकुडी पढ़ी है। कांग्रेस अपनी खिसियाहट मिटानें के लियेश्रीरामजन्म भूमि के पक्ष में कई बयान दे सकती है मगर असलियत यही है कि जवाहरलाल नेहरू और उनके बाद के वंशज राजनेता श्रीराम जन्म भूमी मुक्ति के विरोधी ही रहे हैं। महात्मा गांधी ने पूरा स्वतंत्रता आंदोलन रघुपजि राघव राजा राम का भजन गाते हुये चलाया । नेहरूजी ने कभी विरोध नहीं किया मगर सत्ता आते ही उन्ही श्रीराम को जाले में बंद करवा दिया । कभी यह ध्यान नहीं किया कि स्वतंत्रता का मूल मंत्र बने श्रीराम को सम्मान तो दिया जाये।
भाजपा के दिग्गज नेता एवं राजस्थान विधानसंभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया ने कांग्रेस के भगवान राम के प्रति रहे ब्यवहार पर चुटकी क्या ली , कांग्रेस के प्रतापसिंह खाचरियावास भगवान श्रीराम के गुणगान करते हुये । कटारिया जी की आचोलना पर उतर आये । जबकि खाचरियावास को स्वंय कांग्रेस के भगवान श्रीराम के प्रति रहे व्यवहार पर आत्म निरिक्षण करना चाहिये,क्यों कि वे बहुत पुराने कांग्रेसी नहीं हैं औैर भगवान श्रीराम के प्रति कांग्रेस व्यवहार की उन्हे बहुत जानकारी भी नहीं है। इसलिये कांग्रेस के भगवान श्रीराम के जन्म भूमि मुक्ति में बाधा खडी करने के लिये क्षमा भी मांगनी चाहियें । ठीक उसी तरह जिस तरह मनमोहन सिंह जी ने सिख नरसंहार के लिये कांग्रेस की ओेर से क्षमा मांगी थी।
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साल 2005 में सिख दंगों की जांच कर रही नानावटी आयोग की रिपोर्ग् संसद में पेश की गई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चर्चा के दौरान राज्य सभा में सिख दंगों के लिय माफी मांगी थी। मुझे न केवल सिख समुदाय से बल्कि पूरे देश से फिर माफी मांगने में कोई झिझक नहीं है। 1984 में जो कुछ भी हुआ था, वह राष्टीय भावना के खिलाफ था। इसलिये सरकार और राष्ट की ओर से मेरा सिर शर्म से झुक जाता हे।
इसके अतिरिक्त कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ने इस धटना पर खेद प्रगट किया था तथा बाद में ीरहुल गांधी ने भी मनमोहनसिंह ओेर सोनिया गांधी के कथन से सहमति प्रगट की थी।। अर्थात तीन बार माफी मांगी गई ।
क्या कोई कांग्रेसी भगवान श्रीराम को अयोध्या में ताले में 37 वर्षों तक बंद रखे जानें के लिये क्षमा मांगेगा । अथवा श्रीराम जन्म भूमि की मुक्ति में अनेकों बाधाये उत्पन्न करने के लिये माफी मांगेगा। अथवा श्रीम सेतु को तोडने के क्रम में न्यायालय में श्रीराम को काल्पनिक बताये जानने के शपथ पत्र पर माफी मांगेगा ।
अयोध्या में श्रीराम जी के ताले खुले
अधिक समय नहीं हुआ। जब यह पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ थी, तब इसने भगवान राम को काल्पनिक बताया था। यह बात कोर्ट को दिए गए हलफनामे में कही गई थी। यह साल 2007 का समय था, केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। उस समय केंद्र सरकार एक महत्वकांक्षी परियोजना पर काम कर रही थी जिसका नाम था “सेतु समुद्रम परियोजना”। इस परियोजना के अंतर्गत भारत के पूर्वी तट से पश्चिमी तट के बीच चलने वाले समुद्री जहाजों के लिए एक शार्टकट बनाने के उद्देश्य से मन्नार की खाड़ी और पाक-बे को अलग करने वाली पतली भूमि की पट्टी को काट कर पानी में जहाजों के आने जाने के मार्ग के निर्माण होना था।
मन्नार की खाड़ी और पाक-बे को अलग करने वाली यही पतली भूमि की पट्टी को राम सेतु कहा जाता है। मान्यता है कि राम सेतु भगवान राम की सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए वानरों द्वारा बनाया गया था। जब इस परियोजना का विरोध हुआ तो तत्कालीन संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने राज्यसभा (14 अगस्त, 2007) में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए दावा किया कि राम सेतु के संबंध में कोई पुरातात्विक अध्ययन नहीं किया गया है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट में भी तत्कालीन यूपीए सरकार ने हलफनामा दिया कि भगवान राम थे ही नहीं और राम सेतु जैसी भी कोई चीज़ नहीं है, यह एक कोरी कल्पना है। कहा गया था कि रामायण में जो वर्णित है, उसके वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। कांग्रेस नेता कपिल सिब्ब्ल केंद्र सरकार की ओर से वकील थे। कांग्रेस के अनेक नेता बचाव में थे। विपक्ष के दबाव और सुप्रीम कोर्ट में अपील ने स्थिति संभाली, नहीं तो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार रामसेतु को तोड़ने का मंसूबा बना चुकी थी।