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तालिबान सरकार,सावधानी तो पूरे विश्व को ही रखनी होगी - अरविन्द सिसौदिया

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Arvind Sisodia


 


         भारत अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के मुद्दे पर एक - एक पांव, फूंक - फूंक कर रख रहा है। बहुत ही सदे लहजे में बातचीत एवं प्रतिक्रियायें दे रहा है। यह बहुत पहले से ही तय है भी कि भारत को अफगानिस्तान में कुछ नहीं है। वहां से समस्यायें ही आयेंगी। उन्हे कम तर किस तरह किया जा सकता है। उसी दृष्टिकोंण से भारत सरकार बहुत ही अच्छे तरीके से काम कर रही है। किसी भी दूसरे देश से कई तरह के अलग अलग सम्बंध होते है, पहला तो राजनायिक समर्थन,दूसरा व्यापारिक सम्बंध , तीसरा प्रगाढ़ मित्रता वाले और चौथा घोर शत्रुतापूर्ण । अभी भारत के सामाने सिर्फ व्यापारिक सम्बंधों तक ही मामला सीमित है। क्यों कि मित्रता संभव लगती नहीं है। तालिवान कश्मीर में हस्तक्षेप करता है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कारीडोर में सम्मिलित होता है। तो वह भारत का शत्रु राष्ट्र ही माना जायेगा।

       भारत का सबसे बडा उलझा हुआ पेंच यह है कि जो सरकार पूर्ण आतंकी विचारधारा को, जो पूरी तरह गैर वाजिव हिंसा और  अनावश्यक कट्टरवाद का अनुगमन करती हो उसे कैसे समर्थन दे सकता है। फिलहाल वहां लोकतंत्र और मानवता के लिये कुछ नहीं है। विश्व के हथियार निर्माता और विक्रेता देशों की लाभ कमानें की लिप्सा 
के कारण एक तरफ आधुनिक तम संहारक हथियार हैं दूसरी तरफ निहत्थी आम जनता है। वहां के आम जनमत की इस स्थिति में, कोई दूसरा देश मदद भी क्या कर सकता है।

         तालिवान की मूल समस्या स्वयं तालिवान का अर्न्तविरोध एवं अलग - अलग राय के साथ, ईस्लामिक आतंकवाद की मूल एवं पनाहघर पाकिस्तान एवं और भू - विस्तारवाद की लिप्सा ग्रस्त चीन है। पाकिस्तान भारत के विरूद्ध, तो चीन अमरीका के विरूद्ध तालिवान का उपयोग करेगा। तालिवान सरकार के वक्तव्य कुछ भी आते रहें , उनके अन्दरूनी नियंत्रण में बिखराव है। वे पाकिस्तान के हस्तक्षेप को स्विकार करने के लिये मजबूर दिख रहे है। सरकार के गठन से कुछ नहीं होता, उसमें चलने का कितना माद्दा है। इस पर ही विदेश नीतियां तय करती है। कुल मिला कर भारत की चिन्तायें है। उन पर अमरीका और रूस ने भी बहुत स्पष्टता से कहा ही है कि भारत को खतरा है।

      अमरीका के द्वारा अफगानिस्तान से हटने का मामला दूध पीते बच्चे जैसा अबोध निर्णय रहा है। उसे भविष्य में बहुत पश्ताना पडे़गा । उसने अपने साथियों का विश्वास भी खोया है। क्यों कि चीन तालिवान का उपयोग नहीं कर पाये, इसकी उसने कोई व्यवस्था नहीं की । हलांकी बहुत कुछ भविष्य के गर्भ में  है। यह तो समय ही बतायेगा। किन्तु भारत ही नहीं , सावधानी तो पूरे विश्व को ही रखनी होगी।
 


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