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गणेश उत्सव पर लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को अवश्य स्मरण करें

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गणेश उत्सव पर 

लोकमान्य बालगंगाधर तिलक 

को अवश्य स्मरण करें 

 

 - अरविन्द सिसौदिया 9414180151



गणेश चतुर्थी! भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव यह दिन, यह पर्व , भारत भूमि पर अनंत काल से मनाया जा रहा है । क्यों कि भगवान शंकर जी और माता पार्वती के पुत्र  गणेश जी संपूर्ण हिंदुत्व के आराध्य देव हैं , अग्र पूज्य हैं और संपूर्ण पृथ्वी पर अलग-अलग रूपों में विराजमान हैं।

                        

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जहां तक गणेश उत्सव का संबंध है यह भी एक लंबे समय से भारत भूमि पर अलग - अलग तरीके से मनाया जाता रहा है यह 10 और 11 दिन का उत्सव गणेश चतुर्थी (चौथ से )से शुरू होकर के अनंत चतुर्दशी (चौदस तक ) तक मनाया जाता है । दक्षिण भारत में इस पर्व को अनादि काल से ही व्यापक रूप से मनाया जाता रहा है। किंतु शिवाजी और पेशवाओं के युग से इस को मनाने की एक विशेष परंपरा की प्रारंभ हुई थी । पुणे में छत्रपति शिवाजी महारात की माता जी जीजा बाई के द्वारा गणेश जी का मंदिर निर्माण भी किया गया था। किंतु यह उत्सव तब मात्र राज्य उत्सव था । यह एक आमजन का उत्सव तब तक नहीं था ।

   कांग्रेस में स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर के दो धड़े लगभग लंबे समय तक रहे और यह दो धड़े एक नरम दल और गरम दल कहलाता था। नरम दल का मतलब होता था राज भक्त कांग्रेसियों का दल या उस वक्त का जो अंग्रेज शासन था उसके हित चिंतक यानी उसके राज भक्त कांग्रेसी । वही गरम दल का जो कि धीरे-धीरे विकसित हुआ और कांग्रेस की लगभग मुख्यधारा बन गया। उनके विचार क्रांतिकारियों से अधिक मेल खाते थे और वह भारत की पूर्ण आजादी की बात करते थे । ऐसे जो कांग्रेसी थे उनको गरम दल कहा गया । गरम दल के नेता महाराष्ट्र के लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, पंजाब के लाला लाजपत राय,बंगाल के विपिन चंद्र पाल, महर्षि अरविन्दो घोष,राजनरायण बोस और अश्विनीकुमार दत्त जैसे नेताओं और अन्य अनेक लोग थे।

   स्वतंत्रता आंदोलन किस तरह प्रभावी हो, जनता उनमें अधिक से अधिक कैसे आए, अंग्रेजों के विरुद्ध एक दबाव समूह कैसे तैयार हो, आमजन अंग्रेज सरकार को भारत से हटाने के लिए कैसे आंदोलित हो, इस हेतु बाल गंगाधर तिलक लगातार - लगातार विचार, चिंतन, मनन करते थे।

     लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के मन में ही यह विचार सबसे पहले आया गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक के 11 दिन के आयोजन को क्यों ना आमजन का आयोजन बनाया जाए । इसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई , आमजन आम एवं कांग्रेसी तथा हिंदू समाज की विभिन्न संस्थाएं, मंदिर इत्यादि गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाएं और इसमें सार्वजनिक स्थान पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाएगी,गणेश पांडालों का आयोजन हो। सुबह एवं संध्याकाल आरती हो। पूजा-अर्चना हो और फिर चतुर्दशी के दिन उसका विसर्जन, किसी तालाब, नदी, समुद्र या जल में हो । इस तरह के आयोजनों के लिये गरम दल पे पूरा समर्थन किया । वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में गणेशोत्सव मनाने के लिए मित्रमेला संस्था बनाई । जो बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजन करती थी।

    इस योजना को लेकर के तत्कालीन कांग्रेस का नरम दल उद्वेलित हुआ और उन्होंने इसका डटकर विरोध किया । यूं तो कांग्रेस की स्थापना एक ब्रिटिश अधिकारी ए ओ हयूम ने की थी, लक्ष्य भी ब्रिटिश राजभक्त नागरिक तैयार करना ै तब कांग्रेस पर कनर्बट इसाइयों एवं ब्रिटिश अधिकारियों का ही बर्चस्व था। कांग्रेस पर 1885 से 1905 पर वर्चस्व रखने वाले व्योमेशचंद्र बनर्जी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, गोपालकृष्ण गोखले, मोतीलाल नेहरू, बदरुद्दीन तैयबजी और जी सुब्रमण्यम अय्यर जैसे नेतागण जो उदारवादी थे। जिन्हे नरम दल माना जाता था। वे नहीं चाहता था कि गणेश उत्सव की शुरूआत हो। अंग्रेज भी यही मानते थे इस सार्वजनिक आयोजन के जरिए लोग स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ेंगे । आम जन की भागेदारी से इसकी ताकत बढ़ेगी और उससे ब्रिटिश शासन के विरोध में एक नया वातावरण उत्पन्न हो सकता है । इस तरह की अनेकों खुफिया रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को भेजी गई और जिनमें से कुछ सार्वजनिक भी हुईं।

ब्रिटिश शासकों के चंगुल से भारतमाता को आजाद करवानें के लिए ’स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा’ का संकल्प लेने वाले तथा यह नारा बुलंद करने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने “गणेशोत्सव” को गुलामी की बेडियां तोडने के लिये जनशक्ति के रूप में आन्दोलित किया ।

निरंकुश ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से पीडित शोषित भारत देश स्वतंत्रता के लिये मचल रहा था। अंग्रेजों के जुल्म एवं क्रूरता के विरूद्ध भारतीयों को एक स्थान पर, एक मंच पर ,एक पांण्डाल में , एक जुट होकर मिलने , विचार-विमर्श करने के लिए एक जगह चाहिये थी, मिलने केन्द्र चाहिये था। पवित्र पर्व के रूप में आयोजित गणेश उत्सवों के आयोजनों ने यह पूर्ति कर मार्ग प्रशस्त किया। क्यों कि उस समय में किसी हिन्दू सांस्कृतिक कार्यक्रम को एक साथ मिलकर मनाने की अनुमति नहीं थी।

लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने सबसे पहले “पूर्ण स्वराज” की मांग उठाई। तमाम बंदिशों के बावजूद तिलक ने लोगों में जनजागृति के इस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए महाराष्ट्र के पुणे में 1893 गणेश उत्सव का आयोजन किया। इस त्योहार के माध्यम से जनता में देश प्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया। आपस में मिलने तुलने और विचारों के साझा होनें से एक महान शक्ति उत्पन्न हुई। विराट मां भारती के दर्शन हुये।

गणेशोत्सव पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा गया, बल्कि स्वतंत्रता प्रापत करने,छुआछूत दूर करने, सामालिक कुरीतियों  को दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम लनमानस का ज्ञानवर्धन करने के द्वारा परोक्ष एवं अपरोक्ष आंदोलन का स्वरूप भी दिया गया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

गणेशोत्सव सार्वजनिक होने के बाद फिरंगियों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में पूरे महाराष्ट्र में फैलाया गया। उसके बाद नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेज इससे घबरा गए थे। इस बारे में रोलेट समिति रिपोर्ट में भी चिंता जताई गई थी।

रपट में कहा गया था कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं, स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। पर्चे में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जा रहा है।
   कांग्रेस के गरम दल के साथ-साथ , आमजन में यह भावना जागृत हो गई की गणेश जी का पंडाल लगाना अपना कर्त्तव्य है,सांस्कृतिक अधिकार है। इस उत्सव को सभी लोगों को मिलकर मनाना चाहिये। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को इन उत्सवों के आयोजन करने में बहुत अधिक कठिनाई आई, नरम दल कांग्रेसीयों एवं अंग्रेज सरकार ने उन्हें बहुत परेशान किया और बड़ी मुश्किल से जाकर के गणेश पांडालों की स्थापना हो पाई और इस स्थापना को लगभग 129 वां होने जा रहे हैं। यानी कि वर्तमान में हम 2021 में जो गणेश उत्सव का आयोजन करने जा रहे हैं वह 129 वां माना जा सकता है ।

    अंग्रेजों ने गणेश उत्सव आयोजनों से नाराज होकर के बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ अनेकों प्रकार के षडयंत्रों से परेशान किया । उन्हें जेल में भी डाला और अंततः संघर्षों से जर्जर हुई उनकी देह भी उन्हे समय से पहले छोड़नी पड़ी। किंतु उन्होंने जिस गणेश उत्सव की स्थापना की वह आज संपूर्ण भारत में एक विराट स्वरूप ले चुका है और गणेश उत्सव के दिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को सभी दूर याद किया जाता है और जब तक गणेश उत्सव आयोजित रहते रहेंगे तब तक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके संस्थापक के रूप में हमेशा स्मरण में आते रहेंगे और लोग उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहेंगे, हिंदुत्व के पुर्नउत्थान लिए उनका मान सम्मान करते रहेंग ।

   राज भक्त कांग्रेसी अर्थात नरम दल के लोग और ब्रिटिश सरकार की आशंका बिल्कुल सही साबित हुई , गणेश उत्सवों के द्वारा समाज का वह व्यक्ति भी इन आयोजनों से जुड़ा, जो कभी गणेश जी के दर्शन भी नहीं कर पाता था। ऐसे लोग भी सीधे-सीधे गणेश उत्सव के द्वारा भगवान गणेश जी से जुडे और बाद में यही लोग स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनकारी भी बने और अंततः अंग्रेजों को यह देश छोड़कर जाना पडा।

   कुल मिला कर गणेश उत्सव स्वतंत्रता सम्मान का ध्वजवाहक आंदोलन बना या यूं मानिए कि यह वह हरावल दस्ता बना जिसने पहली लड़ाई स्वयं लड़ी और देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचाया । भारत में जब भी कोई बडा संकट आता है,जब भी कोई समस्या आई, जब भी कोई विदेशी आक्रमण हुआ या जब भी कोई आंतिक बिखराव आया। तब हमारे यहां के धर्म ने, धर्म में निहित शौर्य ने, वीरता ने , पराक्रम ने, इस देश को संभाला और समस्याओं पर विजय पाने का रास्ता दिया । इसी तरह एक रास्ता हम स्वतंत्रता के बाद श्री राम जन्मभूमि मुक्ति के आंदोलन के रूप में भी देखते हैं । जब मण्डल आयोग की आग में पूरा देश झुलस रहा था। सडकों पर आत्म दाह हो रहे थे। तब  श्रीराम पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधते हुए हम को नजर आ रहे थे। श्रीरामजन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन और उस हेतु  रथ यात्रा लेकर निकले लालकृष्ण आडवाणी जी ने सम्पूर्ण देश को एक धागे में पिरो दिया था।
   हम सभी लोग गणेश उत्सव के इस पावन पर्व पर भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करते हुए एक बार श्रद्धा पूर्वक अवश्य ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी को याद करें । उनको अवश्य श्रद्धांजलि दें । उनको अवश्य नमन करें । हमारी उनको यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी और गणेश जी को भी इससे प्रसन्नता होगी कि उनके परम भक्त को याद किया जा रहा है।  उसी प्रसन्नता और भक्ति भाव से हम सभी एक बार बाल गंगाधर तिलक का याद करते हुये कहते है। कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अमर रहें,अमर रहें।
 

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