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संघ की स्वीकार्यता बढ़ी : मनमोहन वैद्य

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संघ के प्रति समाज की स्वीकार्यता बढ़ी : मनमोहन वैद्य


नैनीताल/देहरादून 22 जुलाई (विसंके)। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रति देश में समर्थन बढ़ने के साथ ही संगठन की स्वीकार्यता में इजाफा हुआ है। संघ हर तीन साल में संघ शिक्षा वर्ग के पाठ्यक्रम की समीक्षा करेगा। परम पूजनीय सर संघचालक मोहन जी भागवत की मौजूदगी में शीर्षस्थ पदाधिकारियों की  संघ के विस्तार के लिए प्रचारकों के साथ बैठक चल रही है। बुधवार को संघ प्रमुख प्रांत प्रचारकों के साथ तीन दिनी बैठक करेंगे। इस अहम बैठक में आनुषांगिक संगठनों के क्रियाकलापों की समीक्षा करने के साथ ही भावी कार्यक्रम तय किए जाएंगे।
मंगलवार को पार्वती प्रेमा जगाती विद्यालय में पत्रकारों से बातचीत में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन जी वैद्य ने कहा कि संघ के प्राथमिक शिक्षा वर्ग में पिछले साल 80 हजार लोग शामिल हुए थे, यह संख्या इस बार बढ़कर सवा लाख तक पहुंचने की पूरी उम्मीद है, जबकि संघ शिक्षा वर्ग में पिछली संख्या 17 हजार से बढ़कर 19 हजार हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हर तीन साल में संघ शिक्षा वर्ग के पाठ्यक्रम की समीक्षा की जाती रही है।

दिशा संकेतक, बोध कराने वाला गुरु : जे. कृष्णमूर्ति

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दिशा संकेतक, बोध कराने वाला गुरु : जे. कृष्णमूर्ति


सबसे पहली बात तो यह है कि हम गुरु चाहते ही क्यों हैं? हम कहते हैं कि हमें एक गुरु की आवश्यकता है। क्योंकि हम भ्रांति में हैं और गुरु मददगार होता है। वह बताएगा कि सत्य क्या है। वह समझने में हमारी सहायता करेगा। वह जीवन के बारे में हमसे कहीं अधिक जानता है। वह एक पिता की तरह, एक अध्यापक की तरह जीवन में हमारा मार्गदर्शन करेगा। उसका अनुभव व्यापक है और हमारा बहुत कम है। वह अपने अधिक अनुभव के द्वारा हमारी सहायता करेगा आदि-आदि।

सबसे पहले हम इस विचार की परीक्षा करें कि क्या कोई गुरु हमारी अस्त-व्यस्तता को, भीतरी गड़बड़ी को समाप्त कर सकता है? क्या कोई भी दूसरा व्यक्ति हमारी दुविधा को दूर कर सकता है? दुविधा, जो कि हमारी ही क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का फल है। हम ने ही उसे रचा है। अंदर और बाहर, अस्तित्व के सभी स्तरों पर होने वाले इस क्लेश को, इस संघर्ष को, आप क्या समझते हैं कि इसे किसी और ने उत्पन्न किया है? यह हमारे ही अपने आपको न जानने का नतीजा है। हम अपने को गहराई से नहीं समझते। अपने द्वंद्व, अपनी प्रतिक्रियाएं, अपनी पीड़ाएं इन सब को नहीं समझ पाते। और इसलिए हम किसी गुरु के पास जाते हैं, यह सोचकर कि वह इस दुविधा, इस अस्त-व्यस्तता से बाहर निकलने में हमारी सहायता करेगा। वर्तमान से अपने संबंध में ही हम स्वयं को समझ सकते हैं और संबंध ही गुरु है, न कि बाहर कोई व्यक्ति। यदि हम संबंध को नहीं समझते, तो गुरु चाहे जो भी कहता रहे व्यर्थ है। क्योंकि यदि मैं इस संबंध को नहीं समझ पाता हूं, संपत्ति के साथ अपने संबंध को, व्यक्तियों और विचारों के साथ अपने संबंध को, तो मेरे भीतर के द्वंद्व को दूसरा और कौन सुलझा सकता है? इस द्वंद्व को, इस अस्पष्टता को दूर करने के लिए आवश्यक है कि मैं स्वयं इसे जानूं-समझूं, जिसका अर्थ है कि संबंधों में स्वयं के प्रति जागरूक रहूं और जागरूक रहने के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है।

यदि मैं स्वयं को नहीं जानता, तो गुरु किस काम का! जिस तरह एक राजनीतिक नेता का चुनाव उन लोगों के द्वारा किया जाता है जो भ्रांत हैं और इसीलिए उनका चुनाव भी भ्रांतिपूर्ण होता है। उसी तरह मैं गुरु चुन लिया करता हूं। मैं केवल अपने विभ्रम के तहत उसका चयन करता हूं। अत: राजनीतिक नेता की तरह, गुरु भी भ्रांत    होता है। क्या सत्य दूसरे के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है? कुछ कहते हैं कि किया जा सकता है और कुछ कहते हैं कि नहीं किया जा सकता। हम इसकी सच्चाई को जानना चाहते हैं, यह नहीं कि किसी दूसरे की तुलना में मेरा मत क्या है। इस विषय में मेरा कोई मत नहीं है। या तो गुरु आवश्यक है, या फिर नहीं है। अत: आपके लिए गुरु स्वीकार करना आवश्यक है या नहीं, यह कोई आपकी या मेरी राय का प्रश्न नहीं है। किसी भी बात की सच्चाई किसी की राय पर निर्भर नहीं करती, चाहे वह राय कितनी भी गंभीर, विद्वत्तापूर्ण, लोकप्रिय और सार्वभौमिक क्यों न हो।

सच्चाई को तो वास्तव में ढूंढ निकालना होता है। महत्त्व इस बात का नहीं कि सही कौन है। मैं ठीक हूं या वे व्यक्ति जो कहते हैं कि गुरु आवश्यक हैं। महत्त्वपूर्ण यह पता लगाना है कि आपको गुरु की आवश्यकता ही क्यों पड़ती है। तमाम तरह के शोषण के लिए गुरु हुआ करते हैं, लेकिन यहां वह मुद्दा अप्रासंगिक है। यदि आपको कोई बताए कि आप उन्नति कर रहे हैं, तो आपको बड़ा संतोष होता है। परंतु यह पता लगाना कि आपको गुरु की दरकार क्यों होती है, वही असली बात है। कोई आपको दिशा-संकेत दे सकता है, पर काम तो सारा आपको खुद ही करना होता है, भले ही आपका कोई गुरु भी हो। चूंकि आप यह सब नहीं करना चाहते, आप इसकी जिम्मेदारी गुरु पर छोड़ देते हैं। जब स्व का अंशमात्र भी बोध होने लगे, गुरु का उपयोग नहीं रह जाता। कोई गुरु, कोई पुस्तक अथवा शास्त्र आपको स्वबोध नहीं दे सकता। यह तभी आता है जब आप संबंधों के बीच स्वयं के प्रति सजग होते हैं। होने का अर्थ ही है संबंधित होना। संबंध को न समझना क्लेश है, कलह है। अपनी संपत्ति के साथ अपने संबंध के प्रति जागरूक न होना विभ्रम के, दुविधा के अनेक कारणों में से एक है। यदि आप संपत्ति के साथ अपने सही संबंध को नहीं जानते, तो द्वंद्व अनिवार्य है, जो कि समाज के द्वंद्व को भी बढ़ाएगा। यदि आप अपने और अपनी पत्नी के बीच, अपने और अपने पुत्र के बीच संबंध को नहीं समझते, तो उस संबंध से पैदा होने वाले द्वंद्व का निराकरण कोई दूसरा कैसे कर सकता है? यही बात विचारों, विश्वासों आदि पर लागू होती है।

व्यक्तियों के साथ, संपत्ति के साथ, विचारों के साथ अपने संबंध के बारे में स्पष्टता न होने के कारण आप गुरु खोजते हैं। यदि वह वस्तुत: गुरु है, तो वह आपको स्वयं को समझने के लिए कहेगा। सारी गलतफहमी तथा उलझन की वजह आप ही हैं, और आप इस द्वंद्व का समाधान तभी कर पाएंगे जब  आप स्वयं को पारस्परिक संबंध के बीच समझ लें।

आप किसी दूसरे के माध्यम से सत्य को नहीं पा सकते। ऐसा आप कैसे कर सकते हैं? सत्य कोई स्थैतिक तत्व,
जड़ चीज नहीं है। उसका कोई निश्चित स्थान नहीं है। वह कोई साध्य, कोई लक्ष्य नहीं है, बल्कि वह तो सजीव, गतिशील, सतर्क, जीवंत है। वह कोई साध्य कैसे हो सकता है? यदि सत्य कोई निश्चित बिंदु है, तो वह सत्य नहीं है, तब वह मात्र एक विचार या मत है। सत्य अज्ञात है और सत्य को खोजने वाला मन उसे कभी न पा सकेगा, क्योंकि मन ज्ञात से बना है। यह अतीत का, समय का परिणाम है। इसका आप स्वयं निरीक्षण कर सकते हैं। मन ज्ञात का उपकरण है। अत: वह अज्ञात को प्राप्त नहीं कर सकता। उसकी गति केवल ज्ञात से ज्ञात की ओर है।
जब मन सत्य को खोजता है, वह सत्य, जिसके विषय में उसने पुस्तकों में पढ़ा है, तो वह 'सत्य'आत्म-प्रक्षिप्त होता है। क्योंकि तब मन किसी ज्ञात का, पहले की अपेक्षा अधिक संतोषजनक ज्ञात का अनुसरण मात्र करता है। जब मन सत्य खोजता है, तो वह अपने ही प्रक्षेपण खोज रहा होता है, सत्य नहीं। अंतत: आदर्श हमारा ही प्रक्षेपण होता है, वह काल्पनिक, अयथार्थ होता है। 'जो है'वही यथार्थ है, उसका विपरीत नहीं। परंतु वह मन जो यथार्थ को खोज रहा है, ईश्वर को खोज रहा है, वह ज्ञात को ही खोज रहा है। जब आप ईश्वर के बारे में सोचते हैं, आपका ईश्वर आपके अपने विचार का प्रक्षेपण होता है। सामाजिक प्रभावों का परिणाम होता है। आप केवल ज्ञात के विषय में ही सोच सकते हैं।

अज्ञात के विषय में नहीं, आप सत्य पर एकाग्रता नहीं साध सकते। जैसे ही आप अज्ञात के बारे में सोचते हैं, वह केवल आत्म-प्रक्षिप्त ज्ञात ही होता है। ईश्वर या सत्य के बारे में सोचा नहीं जा सकता। यदि आप उसके बारे में सोच लेते हैं, तो वह सत्य नहीं है। सत्य को खोजा नहीं जा सकता। वह आप तक आता है। आप केवल उसी के पीछे दौड़ सकते हैं, जो ज्ञात है। जब मन ज्ञात के परिणामों से उत्पीडि़त नहीं होता, केवल तभी सत्य स्वयं को प्रकट कर सकता है। सत्य तो हर पत्ते में, हर आंसू में है। उसे क्षण-क्षण में जाना जाता है। सत्य तक आपको कोई नहीं ले जा सकता, और यदि कोई आपको ले भी जाए, तो वह यात्रा केवल ज्ञात की ओर ही होगी।
सत्य का आगमन केवल उसी मन में होता है, जो ज्ञात से रिक्त है। वह उस अवस्था में आता है, जब ज्ञात अनुपस्थित है, कार्यरत नहीं है। मन ज्ञात का भंडार है, वह ज्ञात का अवशेष है। उस अवस्था में होने के लिए, जिसमें अज्ञात अस्तित्व में आता है, मन को अपने प्रति, अपने चेतन तथा अचेतन अतीत के अनुभवों के प्रति, अपने प्रत्युत्तरों, अपनी प्रतिक्रियाओं एवं संरचना के प्रति जागरूक होना होगा। स्वयं को पूरी तरह से जान लेने पर ज्ञात का अंत हो जाता है, मन ज्ञात से पूर्णतया रिक्त हो जाता है। केवल तभी, अनामंत्रित ही, सत्य आप तक आ सकता है। सत्य न तो आपका है, न मेरा। आप इसकी उपासना नहीं कर सकते। जिस क्षण यह ज्ञात होता है, अयथार्थ ही होता है। प्रतीक यथार्थ नहीं है, छवि या प्रतिमा यथार्थ नहीं है; किंतु जब स्व की समझ होती है, स्व का अंत होता है, तब शाश्वत का आविर्भाव होता है।

अत: मूल बात यह है कि आप किसी गुरु के निकट जाते ही इसलिए हैं क्योंकि आप भ्रांत होते हैं। अगर आप अपने आप में स्पष्ट होते, तो आप किसी गुरु के पास न जाते। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि आप अपने रोम-रोम में खुश होते, यदि समस्याएं न होतीं, यदि आपने जीवन को पूर्णतया समझ लिया होता, तो आप किसी गुरु के पास न जाते। मुझे उम्मीद है कि आप इसके तात्पर्य को देख पा रहे हैं। चूंकि आप भ्रांत हैं, आप गुरु की खोज में हैं। आप उसके पास जाते हैं, इस उम्मीद के साथ कि वह आपको जीने की राह बताएगा, आपकी उलझनों को दूर कर देगा और आपको सत्य की पहचान कराएगा। आप किसी गुरु का चयन करते हैं क्योंकि आप भ्रांत हैं और आस लगाते हैं कि आप जो चाहते हैं वह गुरु आपको देगा। आप एक ऐसे गुरु को स्वीकार करते हैं जो आपकी मांग को पूरा करे। गुरु से मिलने वाली परितुष्टि के आधार पर ही आप गुरु को चुनते हैं और आपका यह चुनाव आप की तुष्टि पर ही आधारित होता है। आप ऐसे गुरु को नहीं स्वीकार करते जो कहता है, 'आत्म-निर्भर बनें'। अपने पूर्वग्रहों के अनुसार ही आप उसे चुनते हैं। चूंकि आप गुरु का चयन उस परितुष्टि के आधार पर करते हैं जो वह आपको प्रदान करता है, तो आप सत्य की खोज नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपनी दुविधा से बाहर निकलने का उपाय ढूंढ रहे हैं, और दुविधा से बाहर निकलने के उस उपाय को ही गलती से सत्य कह दिया जाता है।

धारा ३७० मात्र एक अंतरिम व्यवस्था : अरुणकुमार

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धारा ३७० मात्र एक अंतरिम व्यवस्था, कोई विशेष दर्जा या शक्ति नहीं : अरुणकुमार


नागपुर, दि. ३० जून.धारा ३७० द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा या शक्ति प्राप्त है, यह मात्र एक भ्रम है. वास्तव में धारा ३७० उस समय की राज्य की स्थिति को देखते हुए की गई अंतरिम व्यवस्था है, ऐेसा प्रतिपादन जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के निदेशक अरुणकुमार ने किया. वे आर. एस. मुंडले धरमपेठ कला-वाणिज्य महाविद्यालय एवं जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर नागपुर द्वारा महाविद्यालय के वेलणकर सभागृह में ‘जम्मू-कश्मीर : तथ्य और विपर्यास’ इस विषय पर आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे.

अपना मुद्दा स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि, जम्मू-कश्मीर का जब भारत में विलय हुआ, तब वहॉं युद्ध चल रहा था. उस समय की व्यवस्था के अनुसार वहॉं  संविधान सभा बन नहीं सकती थी. १९५१ में वहॉं संविधान सभा का निर्वाचन हुआ और इस संविधान सभा ने ६ फरवरी १९५४ को राज्य के भारत में विलय की पुष्टी की. १४ मई १९५४ को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अस्थायी अनुच्छेद (धारा) ३७० के अंतर्गत संविधान आदेश जारी किया और वहॉं कुछ अपवादों और सुधारों के साथ भारत का संविधान लागू हुआ.

इसके बाद यह धारा समाप्त कर जम्मू-कश्मीर में भी भारत का सामान्य संविधान लागू होना अपेक्षित था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि, धारा ३७० के कुछ प्रावधान अन्य राज्यों के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन करनेवाले है लेकिन जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं के राजनितिक लाभ लिए लाभकारी है. अत: उनका धारा ३७० कायम रखने का आग्रह है.

लेकिन इस धारा ३७० के कारण, १९४७ में पाकिस्तान से राज्य में आए हिंदू शरणार्थी तथा भारत के अन्य राज्यों से वहॉं जाकर वर्षों से रहनेवाले लाखों नागरिक राजनितिक, आर्थिक और शिक्षा से संबंधि अधिकारों से वंचित है. वहॉं अनुसूचित जनजाति के नागरिकों को भी राजनितिक आरक्षण नहीं मिलता. आज भी वहॉं भारतीय संविधान की १३५ धाराऐं लागू नहीं है.

जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के सचिव आषुतोष भटनागर ने राज्य के स्थिति की जानकारी देते हुए बताया कि, ८० के दशक के अंत में जम्मू-कश्मीर में शुरु हुआ हिंसाचार अब बहुत कम हुआ है. राज्य का करगिल, लेह, लद्दाख, जम्मू यह बहुत बड़ा क्षेत्र अलगाववाद से दूर और शांत है. श्रीनगर और घाटी के कुछ क्षेत्र में अलगाववादी कुछ सक्रिय है. लेकिन उनकी गतिविधियों को मीडिया में अतिरंजित प्रसिद्धि मिलती है, इस कारण पूरे राज्य में अशांति है, ऐसा गलत चित्र निर्माण होता है, यह वहॉं के वास्तव के विपरित है.

दोनों ही वक्ताओं ने नागरिकों से आवाहन किया है कि, लोग जम्मू-कश्मीर की वास्तविक स्थिति को जाने और वहॉं संपूर्ण सामान्य स्थिति निर्माण करने में सहयोग दे.

धरमपेठ शिक्षण संस्था के उपाध्यक्ष रत्नाकर केकतपुरे की अध्यक्षता में हुई इस कार्यशाला में अतिथियों का स्वागत प्रा. संध्या नायर और मीरा खडक्कार इन्होंने किया, कार्यक्रम का संचालन पत्रकार चारुदत्त कहू ने और आभार प्रदर्शन डॉ. अवतार कृशन रैना ने किया. इस कार्यशाला में शहर के गणमान्य पत्रकार, शिक्षाविध, राज्यशास्त्र के अभ्यासक और विधि शाखा के जानकार उपस्थित थे

Patwon ki Magnificent Haveli : Jaisalmer Rajasthan

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Location: Jaisalmer Rajasthan 
Founded In: About 300 years ago

Rajasthan is home to some of the most magnificent havelis (mansions) in the whole of India. One such haveli is the Patwon ki Haveli, or Salim Singh ki Haveli, situated in the city of Jaisalmer. Infact, it is considered to be the one of the largest as well as the finest haveli of Rajasthan. The haveli has been named after Salim Singh, the prime minister of the erstwhile state of Jaisalmer. Patwon ki Haveli is beautifully constructed and stands covered with an arched roof. Exquisitely carved brackets, in the shape of peacocks, adorn its roof. Salim Singh ki Haveli comprises of five stories presently. However, it is said that initially, the haveli was seven stories high. The two additional wooden stories made the haveli as high as the palace of the Maharaja of Jaisalmer. Upset by this fact, the Maharaja ordered the demolition of the two topmost stories. Located just below the hill, Patwon ki haveli has been separated into six apartments that are decorated with wonderful carvings. Two of these have been converted into the office of the Archaeological Survey of India (ASI). The owners of the Patwon ki haveli still occupy some of its apartments. Beautiful paintings and dazzling mirror work festoon some of the inner walls of the haveli. Then, we have the delicately carved pillars that add to the magnificence of the haveli. One of the apartments also has gorgeous friezes painted on its walls. The corridors of Salim Singh ki Haveli are huge, its rooms massive and its hallways fascinating. Its gateways are guarded by real-looking tuskers, which have been made of sand stones. There are a large number of balconies in the Patwon ki haveli, numbering somewhere around thirty-eight. The most interesting feature is that all the thirty-eight balconies have different designs. The frontal facade of the haveli looks very much ship-stern, which has resulted in it being referred to as the Jahaz Mahal (Ship Palace) also. The spectacular blue cupola roof dazzling with exquisite stone carvings, screen windows and magnificent murals of the Patwon ki haveli definitely make it a place worth visiting 
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Jaisalmer portrays itself as a mysterious story amidst the gorgeous Thar Desert. And Patwon ki Haweli complements the grace and valor of this city. A cluster of five small havelis, Patwon ki Haveli is also the first Haveli that was ever constructed in Jaisalmer.Every inch of yellow sandstone used in the Heveli’s construction has been ostentatiously chiseled to impress, captivate and influence all. Beautiful frescoes, murals, mirror-works and paintings on every section of the Haveli speak of elegance and grace. Even the latticed arches and gateways are ornamented and designed beautifully. Large, breezy corridors, grand pillars and intricately detailed walls showcase the Haveli as an exquisite example of art and creativity. Every wing or section of Patwon ki Haveli is perfectly symmetrical and is owned by the Government and localities for accommodation and commercial purposes in parts.You may consider Patwon ki Haveli on your itinerary for your visit to the golden Jaisalmer.


72 फीसदी लोग मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट: सर्वे

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72 फीसदी लोग मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट: सर्वे
May 23, 2015 सुमित अवस्थी आईबीएन-7

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने अपने एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। इस दौरान कितने बदले देश के हालात? महंगाई, भ्रष्टाचार बढ़ा या कमी आई? रोजगार के मौकों में क्या बदलाव आया? विदेशों में भारत की छवि कितनी निखरी? ये और ऐसे कई सवालों के जवाब जानने के लिए आईबीएन7 ने कराया एक व्यापक सर्वे।

एक्सिस एपीएम द्वारा किए गए इस सर्वे में 23 राज्यों के 20 हजार लोगों की राय जानी गई। 153 शहरों में हुए इस सर्वे में शहरी और ग्रामीण, महिला और पुरुष तथा हर आयुवर्ग की आबादी शामिल थी। सर्वे में पूछे गए सवाल और उनके जवाब नीचे दिए गए हैं।

सवालः क्या आप मोदी सरकार के पिछले एक साल के कामकाज से संतुष्ट हैं?

जवाब: हां 72.26%

नहीं     21.85%

कोई राय नहीं      05.89%

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सवालः सरकार से संतुष्ट या असंतुष्ट होने के कारण क्या हैं?

जवाब: विकास हुआ  30.22%

विकास नहीं हुआ   26.41%

कीमतें बढ़ीं        14.71%

कीमतें कम हुईं     05.18%

समझदार सरकार    05.13%

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सवालः संतुष्ट होने के बड़े कारण?

जवाब: विकास हुआ 30.22%

कीमतें कम हुईं     05.18%

समझदार सरकार    05.13%

अन्य कारण       06.46%

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सवालः असंतुष्ट होने के बड़े कारण?

जवाब: विकास नहीं हुआ 26.41%

कीमतें बढ़ीं                14.71%

मजबूर सरकार     01.42%

अन्य कारण       05.71%

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सवालः कैसे प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी?

जवाब: प्रभावी और तेज 56.58%

अप्रभावी और धीमे 15.20%

इच्छाशक्ति नहीं 02.60%

ज्यादा कड़क नहीं 03.72%

साफ छवि लेकिन अच्छे प्रशासक नहीं 06.12%

काम कम-बातें ज्यादा 13.50%

अन्य 02.29%

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सवालः कितने बदले आम लोगों के आर्थिक हालात?

जवाब: बेहतर      61.17%

जस के तस       31.69%

खराब हुए 05.51%

कोई राय नहीं      01.63%

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सवालः बीते एक साल में देश के आर्थिक हालात?

जवाब: बेहतर हुए         63.08%

जस के तस                      30.11%

खराब हुए   05.09%

कोई राय नहीं 01.72%

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सवालः बीते एक साल में रोजगार के मौके?

जवाब: बढ़े                        27.62%

जस के तस                      34.90%

कम हुए              22.85%

कोई राय नहीं      01.34%

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सवालः बीते एक साल में महंगाई?

जवाब: बढ़ी                       41.95%

जस का तस                    26.06%

कम हुई               21.47%

कोई राय नहीं      01.09%

--------------------- ( उत्तर भारत के लोगों की राय)

सवालः क्या आप मोदी सरकार के पिछले एक साल के कामकाज से संतुष्ट हैं?

जवाब: संतुष्ट              71.73%

संतुष्ट नहीं        20.90%

कोई राय नहीं              07.37%

सवालः सरकार से संतुष्ट या असंतुष्ट होने का कारण क्या हैं?

जवाब: विकास हुआ                 29.38%

विकास नहीं हुआ          24.60%

कीमतें बढ़ीं                                14.31%

कीमतें कम हुईं     04.32%

समझदार सरकार           04.92%

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सवालः संतुष्ट होने के बड़े कारण?

जवाब: विकास हुआ                 29.38%

कीमतें कम हुईं                      04.32%

समझदार सरकार    04.92%

अन्य कारण               03.58%

---------------------

सवालः असंतुष्ट होने के बड़े कारण?

जवाब: विकास नहीं हुआ      24.60%

कीमतें बढ़ीं                 14.31%

मजबूर सरकार               00.35%

अन्य कारण       13.90%

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सवालः कैसे प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी?

जवाब: प्रभावी और तेज 58.00%

अप्रभावी और धीमे 12.09%

इच्छा शक्ति नहीं 02.45%

ज्यादा कड़क नहीं 02.73%

साफ छवि लेकिन अच्छे प्रशासक नहीं 06.68%

काम कम बातें ज्यादा 15.72%

अन्य 02.33%

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सवालः कितने बदले आम लोगों के आर्थिक हालात?

जवाब: बेहतर      62.66%

जस के तस       31.60%

खराब हुए 04.92%

कोई राय नहीं      00.82%

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सवालः बीते एक साल में देश के आर्थिक हालात?

जवाब: बेहतर हुए         66.36%

जस के तस       28.94%

खराब हुए 03.84%

कोई राय नहीं      01.86%

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सवालः बीते एक साल में रोजगार के मौके?

जवाब: बढ़े        21.71%

जस के तस       37.82%

कम हुए          26.10%

कोई राय नहीं      14.37%

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सवालः बीते एक साल में महंगाई?

जवाब: बढ़ी                               30.33%

जस का तस                    29.96%

कम हुई               28.64%

कोई राय नहीं                  11.07%



करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा - प्रधानमंत्री मोदी

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करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा - प्रधानमंत्री मोदी


पढ़ें: मन की बात में पीएम ने क्या-क्या कहा
July 26, 2015 11:26 AM IST | Updated on: July 26, 2015 12:41 PM IST
आईबीएन-7
नई दिल्ली।  आज मन की बात में प्रधानमंत्री मोदी ने करगिल में शहीद जवानों को याद किया। पीएम ने कहा कि करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा। 26 जुलाई, देश के इतिहास में करगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, जमीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का है। आज करगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम। पढ़ें- पीएम ने मन की बात में क्या-क्या कहा
मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार!
इस वर्ष बारिश की अच्छी शुरुआत हुई है। हमारे किसान भाईयों, बहनों को खरीफ की बुआई करने में अवश्य मदद मिलेगी। और एक खुशी की बात मेरे ध्यान में आई है और मुझे बड़ा आनंद हुआ। हमारे देश में दलहन की और तिलहन की  बहुत कमी रहती है। ग़रीब को दलहन चाहिये, खाने के लिये सब्ज़ी वगैरह में थोड़ा तेल भी चाहिये। मेरे लिये ख़ुशी की बात है कि इस बार जो उगाई हुई है, उसमें दलहन में क़रीब-क़रीब 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है। और तिलहन में क़रीब-क़रीब 33 प्रतिशत वृद्धि हुई है। मेरे किसान भाई-बहनों को इसलिए विशेष बधाई देता हूं, उनका बहुत अभिनंदन करता हू।
मेरे प्यारे देशवासियों, 26 जुलाई, हमारे देश के इतिहास में कारगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, ज़मीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का भी है। कारगिल युद्ध में, हमारा एक-एक जवान, सौ-सौ दुश्मनों पर भारी पड़ा। अपने प्राणों की परवाह न करके, दुश्मनों की कोशिशों को नाकाम करने वाले उन वीर सैनिकों को शत-शत नमन करता हूं। कारगिल का युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा गया, भारत के हर शहर, हर गांव में, इस युद्ध में योगदान था। ये युद्ध, उन माताओं, उन बहनों के लिए लड़ा, जिनका जवान बेटा या भाई, कारगिल में दुश्मनों से लड़ रहा था। उन बेटियों ने लड़ा, जिनके हाथों से अभी, पीहर की मेहंदी नहीं उतरी थी। पिता ने लड़ा, जो अपने जवान बेटों को देखकर, ख़ुद को जवान महसूस करता था। और उस बेटे ने लड़ा, जिसने अभी अपने पिता की उंगली पकड़कर चलना भी नहीं सीखा था। इनके बलिदान के कारण ही आज भारत दुनिया में सर उठाकर बात कर पाता है। और इसलिए, आज कारगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम।
26 जुलाई, एक और दृष्टि से भी मैं जरा महत्वपूर्ण मानता हूं, क्योंकि, 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद, कुछ ही महीनों में 26 जुलाई को हमने MyGov को प्रारंभ किया था। लोकतंत्र में जन-भागीदारी बढ़ाने का हमारा संकल्प, जन-जन को विकास के कार्य में जोड़ना, और मुझे आज एक साल के बाद यह कहते हुए यह ख़ुशी है, करीब दो करोड़ लोगों ने MyGov को देखा।  करीब-करीब साढ़े पांच लाख लोगों ने कमेंट्स किए और सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये है कि पचास हजार से ज़्यादा लोगों ने पीएमओ पर सुझाव दिए, उन्होंने समय निकाला,  इस काम को महत्वपूर्ण माना।
और कैसे महत्वपूर्ण सुझाव आये! कानपुर से अखिलेश वाजपेयी जी ने एक अच्छा सुझाव भेजा था, कि विकलांग व्यक्तियों को रेलवे के अंदर ।RCTC Website के माध्यम से कोटा वाला टिकट क्यों नहीं दिया जाना चाहिये? अगर विकलांग को भी टिकट पाने के लिए वही कठिनाइयां झेलनी पड़े, कितना उचित है? अब यूं तो बात छोटी है, लेकिन न कभी सरकार में किसी को ये ध्यान आया, न कभी इस पर सोचा गया। लेकिन भाई अखिलेश वाजपेयी के सुझाव पर सरकार ने गंभीरता से विचार किया, और आज हमारे विकलांग भाइयों-बहनों के लिए, इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया। आज जो लोगों बनते हैं, टैग लाइन बनते हैं, कार्यक्रम की रचना होती है, पॉलिसी बनती है, MyGov पर बहुत ही सकारात्मक सुझाव आते हैं। शासन व्यवस्था में एक नई हवा का अनुभव होता है। एक नई चेतना का अनुभव होता है। इन दिनों मुझे MyGov पर ये भी सुझाव आने लगे हैं, कि मुझे 15 अगस्त को क्या बोलना चाहिेए।
चेन्नई से सुचित्रा राघवाचारी, उन्होंने काफ़ी कुछ सुझाव भेजे हैं। बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ पर बोलिए, क्लीन गंगा पर बोलिे, स्वच्छ भारत पर बोलिए, लेकिन इससे मुझे एक विचार आया, क्या इस बार 15 अगस्त को मुझे क्या बोलना चाहिए। क्या आप मुझे सुझाव भेज सकते हैं? MyGov पर भेज सकते हैं, आकाशवाणी पर चिठ्ठी लिख सकते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में चिठ्ठी लिख सकते हैं।
देखें! मैं मानता हूं, शायद ये एक अच्छा विचार है कि 15 अगस्त के मेरे भाषण को, जनता जनार्दन से सुझाव लिए जाएं। मुझे विश्वास है कि आप जरूर अच्छे सुझाव भेजेंगे। एक बात की ओर मैं अपनी चिंता जताना चाहता हूं। मैं कोई उपदेश नहीं देना चाहता हूं और न ही मैं राज्य सरकार, केंद्र सरकार या स्थानीय स्वराज की संस्थाओं की इकाइयों की ज़िम्मेवारियों से बचने का रास्ता खोज रहा हूं।
अभी दो दिन पहले, दिल्ली की एक दुर्घटना के दृश्य पर मेरी नजर पड़ी। और दुर्घटना के बाद वो स्कूटर चालक 10 मिनट तक तड़पता रहा। उसे कोई मदद नहीं मिली। वैसे भी मैंने देखा है कि मुझे कई लोग लगातार इस बात पर लिखते रहते हैं कि भई आप रोड सेफ्टी पर कुछ बोलिये। लोगों को सचेत कीजिए। बेंगलूरु के होशा कोटे अक्षय हों, पुणे के अमेय जोशी हों, कर्नाटक के मुरबिदरी के प्रसन्ना काकुंजे हों। इन सबने, यानि काफ़ी लोगों के हैं नाम, मैं सबके नाम तो नहीं बता रहा हूं - इस विषय पर चिंता जताई है और कहा। है आप सबकी चिंता सही है। और जब आंकड़ों की तरफ देखते हैं तो हृदय हिल जाता है।

हमारे देश में हर मिनट एक दुर्घटना होती है। दुर्घटना के कारण, रोड एक्सीडेंट के कारण, हर 4 मिनट में एक मृत्यु होती है। और सबसे बड़ी चिंता का विषय ये भी है, करीब-करीब एक तिहाई मरने वालों में 15 से 25 साल की उम्र के नौजवान होते हैं और एक मृत्यु पूरे परिवार को हिला देती है। शासन को तो जो काम करने चाहिए वो करने ही चाहिए, लेकिन मैं मां-बाप से गुज़ारिश करता हूं, अपने बच्चों को - चाहे दो पहिया चलाते हों या चार पहिया चलाते हों - सेफ्टी की जितनी बातें है, उस पर जरूर ध्यान देने का माहौल परिवार में भी बढाना चाहिए। कभी-कभी हम ऑटो-रिक्शा पर देखते हैं, पीछे लिखा होता है ‘पापा जल्दी घर आ जाना’, पढते हैं तो कितना टचिंग लगता है, और इसलिए मैं कहता हूं, ये बात सही है कि सरकार ने इस दिशा में काफी नए इनिशिएटिव लिए हैं। रोड सेफ्टी के लिए चाहे एजुकेश का मामला हो, रोड की रचना का इंजीनियरिगं हो, क़ानून को लागू करने की बात हो - या एक्सीडेंट के बाद घायल लोगों को इमरजेंसी केयर की बात हो, इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए रोड ट्रांसपोर्ट एंड सेफ्टी बिल  हम लाने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में नेशनल रोड सेफ्टी पॉलिसी और रोड सेफ्टी एक्शन प्लान का अमल करने की दिशा में भी हम कई महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए सोच रहे हैं।

एक और प्रोजेक्ट हमारे लिए है, आगे चलकर इसका विस्तार भी होने वाला है, कैशलेश ट्रीटमेंट गुडगांव, जयपुर और वड़ोदरा वहां से लेकर के मुंबई, रांची, रणगांव, मौंडिया राजमार्गों के लिए, हम एक कैशलेश ट्रीटमेंट और उसका अर्थ है कि पहले पचास घंटे - पैसे हैं कि नहीं, पैसे कौन देगा, कौन नहीं देगा, इन सारी चिंता छोड़कर के - एक बार रोड एक्सीडेंट में जो घायल है, उसको उत्तम से उत्तम सेवा कैसे मिले, सारवार कैसे मिले, उसको हम प्राथमिकता दे रहे हैं। देशभर में हादसों के संबंध में जानकारी देने के लिए टोल-फ्री 1033 नंबर, एंबुलेंस की व्यवस्था, ये सारी बातें,  लेकिन ये सारी चीजें एक्सीडेंट के बाद की हैं। एक्सीडेंट न हो इसके लिए तो हम सबने सचमुच में... एक-एक जान बहुत प्यारी होती है, एक-एक जीवन बहुत प्यारा होता है, उस रूप में उसको देखने की आवश्यकता है।
कभी-कभी मैं कहता हूं, कर्मचारी कर्मयोगी बनें। पिछले दिनों कुछ घटनाएं मेरे ध्यान में आई, मुझे अच्छा लगा कि मैं आपसे बात करूं, कभी-कभार नौकरी करते-करते इंसान थक जाता है, और कुछ सालों की बात तो “ठीक है, तनख़्वाह मिल जाती है, काम कर लेंगे”, यही भाव होता है, लेकिन मुझे पिछले दिनों, रेलवे के कर्मचारी के विषय में एक जानकारी मिली, नागपुर डिवीजन में विजय बिस्वाल करके एक टीटीई हैं, अब उनको पेंटिंग का शौक है, अब वो कहीं पर भी जाके पेंटिग कर सकते थे, लेकिन उन्होंने रेलवे को ही अपना आराध्य माना और वे रेलवे में नौकरी करते हैं और रेलवे के ही संबंधित भिन्न-भिन्न दृश्यों का पेंटिग करते रहते हैं, उनको एक आनंद भी मिलता है और उस काम के अंदर इतनी रूचि बढ़ जाती है। मुझे बड़ा ये उदाहरण देख कर के अच्छा लगा कि अपने काम में भी कैसे प्राणतत्व लाया जा सकता है। अपनी रुचि, अपनी कला, अपनी क्षमता को अपने कार्य के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, ये विजय बिस्वाल ने बताया है। हो सकता है अब विजय बिस्वाल के पेंटिंग की चर्चा आने वाले दिनों में  जरुर होगी।
और भी मेरे ध्यान में एक बात आई - मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम, पूरी टोली ने एक ऐसा काम शुरू किया जो मेरे मन को छू गया और मुझे बहुत पसंद है उनका ये कामI उन्होंने शुरु किया “ऑपरेशन मलयुद्ध” - अब ये कोई, इसका सुनते हुए लगेगा कुछ और ही बात होगीI लेकिन मूल बात ये है उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान को नया मोड़ दिया है और उन्होंने पूरे जिले में एक अभियान चलाया है ‘ब्रदर नंबर वन’, यानि वो सबसे उत्तम भाई जो अपनी बहन को रक्षाबंधन पर एक शौचालय भेंट करे, और उन्होंने बीड़ा उठाया है कि ऐसे सभी भाइयों को प्रेरित करके उनकी बहनों को टॉयलेट देंगे और पूरे जिले में खुले में कहीं माताओं-बहनों को शौच ना जाना पड़े, ये काम रक्षाबंधन के पर्व पर वो कर रहे हैं। देखिए रक्षाबंधन का अर्थ कैसा बदल गया, मैं हरदा जिले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
अभी एक समाचार मेरे कान पे आए थे, कभी-कभी ये छोटी-छोटी चीजें बहुत मेरे मन को आनंद देती हैं। इसलिए मैं आपसे शेयर कर रहा हूं। छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में केश्ला करके एक छोटा सा गांव है। उस गांव के लोगों ने पिछले कुछ महीनों से कोशिश करके शाैचालय  बनाने का अभियान चलाया। और अब उस गांव में किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच नहीं जाना पड़ता है। ये तो उन्होंने किया, लेकिन, जब पूरा काम पूरा हुआ तो पूरे गांव ने जैसे कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है वैसा उत्सव मनाया। गांव ने ये सिद्धि प्राप्त की। केश्ला गांव समस्त ने मिलकर के एक बहुत बड़ा आनंदोत्सव मनाया। समाज जीवन में मूल्य कैसे बदल रहे हैं, जन-मन कैसे बदल रहा है और देश का नागरिक देश को कैसे आगे ले जा रहा है इसके ये उत्तम उदाहरण मेरे सामने आ रहे हैं।
मुझे भावेश डेका, गुवाहाटी से लिख रहे हैं, नॉर्थ-ईस्ट के सवालों के संबंध में। वैसे नॉर्थ-ईस्ट के लोग एक्टिव भी बहुत हैं। वो काफी कुछ लिखते रहते हैं, अच्छी बात है। लेकिन मैं आज ख़ुशी से उनको कहना चाहता हूं कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए एक अलग मिनिस्ट्री बनी हुई है। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तब एक डोनियर मिनिस्ट्री बनी थी ‘Development of North-East Region’. हमारी सरकार बनने के बाद, हमारे इस विभाग में बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि नॉर्थ-ईस्ट का भला दिल्ली में बैठकर के हो जाएगा क्या? और सबने मिलकर के तय किया कि भारत सरकार के अधिकारियों की टीम नॉर्थ-ईस्ट के उन राज्यों में जाएगी।  नागालैंड हो, मणिपुर हो, अरुणाचल हो, त्रिपुरा हो, असम हो, सिक्किम हो और सात दिन वहां कैंप करेंगे। जिलों में जाएंगे, गांवों में जाएंगे, वहां के स्थानीय सरकार के अधिकारियों से मिलेंगे, जनप्रतिनिधियों से बातें करेंगे, नागरिकों से बातें करेंगे। समस्याओं को सुनेंगे, समस्याओं का समाधान करने की दिशा में भारत सरकार को जो करना है, उसको भी करेंगे। ये प्रयास आने वाले दिनों में बहुत अच्छे परिणाम लाएगा। और जो अधिकारी जा कर के आते हैं, उनको भी लगता है कितना सुंदर प्रदेश, कितने अच्छे लोग, अब इस इलाके को विकसित करके ही रहना है, उनकी समस्याओं का समाधान करके ही रहना है। इस संकल्प के साथ लौटते हैं तो दिल्ली आने के बाद भी अब उनको वहां की समस्याओं को समझना भी बहुत सरल हो गया है। तो एक अच्छा प्रयास, दिल्ली से दूर-दूर पूरब तक जाने का प्रयास, जो मैं ‘ एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ कह रहा हूं ना, यही तो एक्ट है।
मेरे प्यारे देशवासियो, हम सब इस बात के लिए गर्व करते हैं कि ‘मार्स मिशन’ की सफलता का हमें आनंद होता है। अभी पिछले दिनों भारत के PSLV C-28 ने UK के पांच सेटेलाइट लॉन्च किए। भारत ने अब तक लॉन्च किए हुए ये सबसे ज़्यादा हैवी वेट सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। ये खबरें ऐसी होती है कि कुछ पल के लिए आती हैं, चली जाती हैं, इस पर हमारा ध्यान नहीं जाता। लेकिन ये बहुत बड़ा अचीवमेंट है। लेकिन कभी-कभी ये भी विचार आता है, आज हम युवा पीढ़ी से अगर बात करते हैं और उनको पूछें कि आप आगे क्या बनना चाहते हो, तो 100 में से बड़ी मुश्किल से एक-आध कोई छात्र मिल जाएगा जो ये कहेगा कि मुझे साइंटिस्ट बनना है। साइंस के प्रति रुझान कम होना ये बहुत चिंता का विषय है।
साइंस और टेक्नोलॉजी एक प्रकार से विकास का डीएनए है। हमारी नई पीढ़ी साइंटिस्ट बनने के सपने देखे, उनको प्रोत्साहन मिले, उनकी क्षमताओं को जाना जाए, एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। अभी भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय आविष्कार अभियान शुरु किया है। हमारे राष्ट्र के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम जी ने इसका आरम्भ किया है। इस अभियान के तहत IIT, NIT, Central और State Universities एक मेंटर के तौर पर, जहां-जहां इस प्रकार की संभावनाएं हैं, वहां उन बालकों को प्रोत्साहित करना, उनको मार्गदर्शन करना, उनको मदद करना, उस पर ध्यान केंद्रित करने वाले हैं। मैं तो सरकार के IAS अफसरों को भी कहता रहता हूं कि आप इतना पढ़ लिखकर आगे बढ़े हो तो आप भी तो कभी सप्ताह में दो चार घंटे अपने नजदीक के किसी स्कूल-कॉलेज में जा करके बच्चों से जरुर बात कीजिए। आपका जो अनुभव है, आपकी जो शक्ति है वो जरुर इस नई पीढ़ी के काम आएगी।
हमने एक बहुत बड़ा बीड़ा उठाया हुआ है, क्या हमारे देश के गांवों को 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? काम कठिन है, लेकिन करना है। हमने इसका शुभारम्भ कर दिया है। और आने वाले वर्षों में, हम गांवों को 24 घंटे बिजली प्राप्त हो। गांव के बच्चों को भी, परीक्षा के दिनों में पढ़ना हो तो बिजली की तकलीफ न हो। गांव में भी छोटे-मोटे उद्योग लगाने हों तो बिजली प्राप्त हो। आज तो मोबाइल चार्ज करना हो तो भी दूसरे गांव जाना पड़ता है। जो लाभ शहरों को मिलता है वो गांवों को मिलना चाहिए। गरीब के घर तक जाना चाहिए। और इसीलिए हमने प्रारंभ किया है ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति कार्यक्रम’। मैं जानता हूं इतना बड़ा देश, लाखों गांव, दूर-दूर तक पहुंचना है, घर-घर पहुंचना है। लेकिन, ग़रीब के लिए ही तो दौड़ना है। हम इसको करेंगे, आरम्भ कर दिया है। जरुर करेंगे। आज मन की बात में भांति-भांति की बातें करने का मन कर गया।
एक प्रकार से हमारे देश में अगस्त महीना, सितंबर महीना, त्योहारों का ही अवसर रहता है। ढेर सारे त्यौहार रहते हैं। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 15 अगस्त के लिए मुझे ज़रुर सुझाव भेजिये। आपके विचार मेरे बहुत काम आएंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद।

भारत में हुए 10 सबसे बड़े आतंकी हमले

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ये हैं भारत में हुए 10 सबसे बड़े आतंकी हमले
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तानFirst Published:27-07-2015 
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*26/11 मुंबई आतंकी हमला: 10 आत्मघाती हमलावर मुंबई में हथियारों से लैस होकर घुसे। सीरियल बम धमाकों के अलावा आतंकियों ने कई जगहों पर अंधाधुंध फायरिंग की। आतंकियों ने नरीमन हाउस, होटल ताज और होटल ओबेराय को कब्जे में ले लिया था। इसमें कुल 166 लोग मारे गए थे और 293 लोग घायल हुए थे। आतंकी कसाब पकड़ा गया था, जबकि नौ आतंकी मारे गए।

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*12 मार्च 1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट: पूरे मुंबई में सीरियल धमाके हुए। इन धमाकों के पीछे दाउद इब्राहिम और डी कंपनी का हाथ था। इसमें 257 लोग मारे गए थे, जबकि 713 लोग घायल हुए थे।
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*24 सितंबर 2002 अक्षरधाम मंदिर पर हमला: लश्कर और जैश ए मोहम्मद के 2 आतंकी मुर्तजा हाफिज यासिन और अशरफ अली मोहम्मद फारुख दोपहर 3 बजे अक्षरधाम मंदिर में घुस गए। ऑटोमैटिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से उन्होंने वहां मौजूद लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया। इसमें 31 लोग मारे गए जबकि 80 लोग घायल हो गए थे।
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*29 अक्टूबर 2005 दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट: दीवाली से 2 दिन पहले आतंकियों ने 3 बम धमाके किए। 2 धमाके सरोजनी नगर और पहाड़गंज जैसे मुख्य बाजारों में हुए। तीसरा धमाका गोविंदपुरी में एक बस में हुआ। इसमें कुल 63 लोग मारे गए जबकि 210 लोग घायल हुए थे।
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*11 जुलाई 2006 मुंबई ट्रेन धमाका: मुंबई की लोकल ट्रेनों में अलग-अलग 7 बम धमाके हुए थे। सभी फर्स्ट क्लास कोच में बम रखे गए थे। इन धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ था। इसमें कुल 210 लोग मारे गए थे और 715 लोग जख्मी हुए थे।
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*13 मई 2008 जयपुर ब्लास्ट: 15 मिनट के अंदर 9 बम धमाकों से पिंक सिटी लाल हो गई थी। इन धमाकों में कुल 63 लोग मारे गए थे जबकि 210 लोग घायल हुए थे।
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*30 अक्टूबर 2008 असम में धमाके: राजधानी गुवाहाटी के विभिन्न जगहों पर कुल 18 धमाके आतंकियों ने किए। इन धमाकों में कुल 81 लोग मारे गए जबकि 470 लोग घायल हुए।
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*13 दिसंबर 2001 भारतीय संसद पर हमला: लश्कर ए तैयबा और जैश मोहम्मद के 5 आतंकी भारत के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले संसद भवन परिसर में घुस गए। हालांकि सुरक्षा बलों ने आतंकियों को मार गिराया और आतंकी अपने मंसूबे में नाकाम हो गए। हमले के समय संसद भवन में 100 राजनेता मौजूद थे। इस हमले में 6 पुलिसकर्मी और 3 संसद भवन कर्मी मारे गए।
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*14 फरवरी 1998 कोयम्बटूर धमाका: इस्लामिक ग्रुप अल उम्माह ने कोयम्बटूर में 11 अलग-अलग जगहों पर 12 बम धमाके किए। इसमें 200 लोग घायल हुए जबकि 60 लोग मारे गए।
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*1 अक्टूबर 2001 जम्मू कश्मीर विधानसभा भवन पर हमला: जैश ए मोहम्मद ने 3 आत्मघाती हमलावरों और कार बम की सहायता से भवन पर हमला किया। इसमें 38 लोग मारे गए।

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#लखनऊ #उत्तर प्रदेश पंजाब के गुरदासपुर में सोमवार को हुए आतंकी हमले से एक बार फिर देश दहल गया है. इससे हमले ने देश में आतंकी खतरे का बड़ा संकेत दिया है.
पंजाब के दीनानगर कस्बे में सोमवार सुबह आतंकवादियों ने लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 12 लोगों की मौत की खबर आ रही है. इस आतंकी हमले में कई लोगों के घायल होने की सूचना भी मिल रही है. घायलों में पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. इस मुठभेड़ में एक आतंकी के मारे जाने की भी खबर आ रही है. मिली जानकारी के मुताबिक आतंकी हमले की जवाबी गोलीबारी में पंजाब पुलिस के एसपी शहीद हो गए हैं.
लेकिन यह कोई पहला मौका नहीं है, जब देश कोई आतंकी हमला झेल रहा है. इससे पहले भी भारत को कई आतंकी हमलों से दहल उठा है. आइए भारत पर हुए अब तक के आतंकी हमलों पर एक नजर डालते हैं :
4 जून 2015 मणिपुर में पुलिसवालों पर हमला
पढ़ें, कब-कब आतंकी हमलों ने दहलाया देश को
मणिपुर के चंदेल जिले में आतंकियों ने पुलिसवालों के काफिले पर हमला कर दिया, जिसमें 20 जवान शहीद हुए थे.
28 दिसंबर 2014 चर्च स्ट्रीट बम धमाका
बेंगलुरू के चर्च स्ट्रीट इलाके में बम धमाका हुआ था. इस ब्लास्ट में एक शख्स की मौत हुई थी.
21 फरवरी 2013 हैदराबाद सीरियल ब्‍लास्‍ट
हैदराबाद में सीरियल ब्लास्ट हुए, जिसमें 16 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
26/11 मुंबई आतंकी हमला
10 आत्मघाती हमलावर मुंबई में हथियारों से लैस होकर घुसे. सीरियल बम धमाकों के अलावा आतंकियों ने कई जगहों पर अंधाधुंध फायरिंग की. आतंकियों ने नरीमन हाउस, होटल ताज और होटल ओबेराय को कब्जे में ले लिया था. इसमें कुल 166 लोग मारे गए थे और 293 लोग घायल हुए थे. आतंकी कसाब पकड़ा गया था, जबकि नौ आतंकी मारे गए थे.
13 जुलाई 2011 मुबंई सीरियल ब्‍लास्‍ट
मुंबई के तीन इलाकों में सीरियल ब्लास्ट हुए, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई और 130 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
13 फरवरी 2010 पुणे का जर्मन बेकरी ब्‍लास्‍ट
पुणे के जर्मन बेकरी में ब्लास्ट हुआ था, जिसमें 17 लोगों की मौत हुई थी और 60 लोग घायल हुए थे.
26 नवंबर 2008 मुंबई में फायरिंग
10 आतंकियों ने पूरी मुंबई को हिलाकर रख दिया. इन आतंकियों ने कई इलाकों में अंधाधुध फायरिंग की थी, जिसमें 171 लोगों की मौत हुई थी और 250 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
30 अक्टूबर 2008 असम में धमाके
राजधानी गुवाहाटी के विभिन्न जगहों पर कुल 18 धमाके आतंकियों ने किए थे. इन धमाकों में कुल 81 लोग मारे गए, जबकि 470 लोग घायल हुए.
13 सितंबर 2008 में दिल्‍ली में हुए ब्‍लास्‍ट
दिल्ली के कई बड़े बाजारों में सीरियल ब्लास्ट हुए, जिसमें 21 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए.
26 जुलाई 2008 अहमदाबाद सीरियल ब्‍लास्‍ट
गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट में 45 लोगों की मौत और 150 लोग घायल हुए थे.
13 मई 2008 जयपुर ब्लास्ट
15 मिनट के अंदर 9 बम धमाकों से पिंक सिटी लाल हो गई थी. इन धमाकों में कुल 63 लोग मारे गए थे जबकि 210 लोग घायल हुए थे.
26 मई 2007 गुवाहाटी बम धमाके
गुवाहाटी में हुए धमाकों में 6 लोगों की मौत और 30 लोग घायल हुए थे.
8 सितंबर 2006 मालेगांव बम ब्‍लास्‍ट
महाराष्ट्र के मालेगांव की एक मस्जिद के पास बम ब्लास्ट, 37 लोगों की मौत और 125 घायल.
11 जुलाई 2006 मुंबई ट्रेन धमाका
मुंबई की लोकल ट्रेनों में अलग-अलग 7 बम धमाके हुए थे. सभी फर्स्ट क्लास कोच में बम रखे गए थे. इन धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ था. इसमें कुल 210 लोग मारे गए थे और 715 लोग जख्मी हुए थे.
7 मार्च 2006 वाराणसी में हुए आतंकी हमले
वाराणसी में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत हुई थी और 101 लोग घायल हो गए थे.
29 अक्टूबर 2005 दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट
दीवाली से दो दिन पहले आतंकियों ने 3 बम धमाके किए. 2 धमाके सरोजनी नगर और पहाड़गंज जैसे मुख्य बाजारों में हुए. तीसरा धमाका गोविंदपुरी में एक बस में हुआ. इसमें कुल 63 लोग मारे गए जबकि 210 लोग घायल हुए थे.
15 अगस्त 2004 असम में ब्लास्ट
असम में ब्लास्ट हुआ जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई. इनमें ज्यादातर स्कूली बच्चे शामिल थे.
25 अगस्त 2003 मुंबई में दोहरे कार धमाके
मुबंई में हुए दोहरे कार धमाके में 52 लोगों की मौत हो गई थी और 150 लोग घायल हो गए थे.
14 मई 2002 जम्‍मू के आर्मी कैंट पर आतंकी हमला
जम्मू के पास आर्मी कैंट पर आतंकी हमले में 30 लोगों की मौत हो गई थी.
24 सितंबर 2002 अक्षरधाम मंदिर पर हमला
लश्कर और जैश ए मोहम्मद के 2 आतंकी मुर्तजा हाफिज यासिन और अशरफ अली मोहम्मद फारुख दोपहर 3 बजे अक्षरधाम मंदिर में घुस गए. ऑटोमैटिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से उन्होंने वहां मौजूद लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया. इसमें 31 लोग मारे गए जबकि 80 लोग घायल हो गए थे.
13 दिसंबर 2001 भारतीय संसद पर हमला
लश्कर ए तैयबा और जैश मोहम्मद के 5 आतंकी भारत के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले संसद भवन परिसर में घुस गए. हालांकि सुरक्षा बलों ने आतंकियों को मार गिराया और आतंकी अपने मंसूबे में नाकाम हो गए. हमले के समय संसद भवन में 100 राजनेता मौजूद थे. इस हमले में 6 पुलिसकर्मी और 3 संसद भवन कर्मी मारे गए.
1 अक्टूबर 2001 जम्मू कश्मीर विधानसभा भवन पर हमला
जैश ए मोहम्मद ने 3 आत्मघाती हमलावरों और कार बम की सहायता से भवन पर हमला किया. इसमें 38 लोग मारे गए.
14 फरवरी 1998 कोयम्बटूर धमाका
इस्लामिक ग्रुप अल उम्माह ने कोयम्बटूर में 11 अलग-अलग जगहों पर 12 बम धमाके किए. इसमें 200 लोग घायल हुए जबकि 60 लोग मारे गए थे.
12 मार्च 1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट
पूरे मुंबई में सीरियल धमाके हुए. इन धमाकों के पीछे दाउद इब्राहिम और डी कंपनी का हाथ था. इसमें 257 लोग मारे गए थे, जबकि 713 लोग घायल हुए थे.
23 जून 1985 में एयर इंडिया के बोइंग 747-237B को बम से उड़ा दिया था
पंजाब के आतंकी गुट ने एयर इंडिया के बोइंग 747-237B कनिष्क विमान को 31,000 फीट की ऊंचाई पर बम से उड़ा दिया गया था. इस विमान में सवार सभी 329 लोग मारे गए थे.

पूर्व राष्ट्रपति और मशहूर वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम का निधन

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APJ अब्दुल कलाम का दिल का दौरा पड़ने से निधन, 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित
aajtak.in [Edited By: कुलदीप मिश्र] | शिलॉन्ग, 27 जुलाई 2015

पूर्व राष्ट्रपति और मशहूर वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम नहीं रहे. दिल का दौरा पड़ने से सोमवार को शिलॉन्ग में उनका निधन हो गया.
83 वर्ष के अब्दुल कलाम अपनी शानदार वाक कला के लिए मशहूर थे, लेकिन खबरों के मुताबिक, एक लेक्चर के दौरान ही काल ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया. आईआईएम शिलॉन्ग में लेक्चर के दौरान ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद वह बेहोश होकर गिर पड़े.

उन्हें तुरंत शिलॉन्ग के बेथानी अस्पताल लाया गया. अस्पताल में डॉक्टरों ने भरसक कोशिश की, लेकिन तब तक उनका देहांत हो चुका था. देर शाम 7:45 बजे उन्हें मृत घोषित किया गया. देश में सात दिनों का राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया गया है. कलाम का शव मंगलवार को दिल्ली लाया जाएगा. रामेश्वरम में उन्हें सपुर्दे-ए-खाक किया जाएगा.

अस्पताल के सीईओ जॉन साइलो ने बताया कि जब कलाम को अस्पताल लाया गया तब उनकी नब्ज और ब्लड प्रेशर साथ छोड़ चुके थे. डॉक्टरों ने कोशिश की, लेकिन उनके शरीर ने वापसी का कोई रिस्पॉन्स नहीं दिखाया.

अपनी मौत से करीब 9 घंटे पहले ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलॉन्ग आईआईएम में लेक्चर के लिए जा रहे हैं.

देश के 11वें राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का शुक्रवार को शिलॉन्ग में निधन हो गया. 83 साल के कलाम हमेशा से युवाओं और बच्चों का हौंसला बढ़ाते रहे. बेशक वो अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके ये 10 कथन हमेशा उनकी याद दिलाते रहेंगे.
कलाम के 10 प्रसिद्ध कथन

1. सपने सच हों इसके लिए सपने देखना जरूरी है.

2. छात्रों को प्रश्न जरूर पूछना चाहिए. यह छात्र का सर्वोत्तम गुण है.

3. युवाओं के लिए कलाम का विशेष संदेशः अलग ढंग से सोचने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो, अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो, असंभव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो. ये वो महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो.

4. अगर एक देश को भ्रष्टाचार मुक्त होना है तो मैं यह महसूस करता हूं कि हमारे समाज में तीन ऐसे लोग हैं जो ऐसा कर सकते हैं. ये हैं पिता, माता और शिक्षक.

5. मनुष्य को मुश्किलों का सामना करना जरूरी है क्योंकि सफलता के लिए यह जरूरी है.

6. महान सपने देखने वालों के सपने हमेशा श्रेष्ठ होते हैं.

7. जब हम बाधाओं का सामना करते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे भीतर साहस और लचीलापन मौजूद है जिसकी हमें स्वयं जानकारी नहीं थी. और यह तभी सामने आता है जब हम असफल होते हैं. जरूरत हैं कि हम इन्हें तलाशें और जीवन में सफल बनें.

8. भगवान उसी की मदद करता है जो कड़ी मेहनत करते हैं. यह सिद्धान्त स्पष्ट होना चाहिए.

9. हमें हार नहीं माननी चाहिए और समस्याओं को हम पर हावी नहीं होने देना चाहिए.

10. चलो हम अपना आज कुर्बान करते हैं जिससे हमारे बच्चों को बेहतर कल मिले.

डॉ.कलाम भारत को एक ज्ञानवान समाज और सशक्त राष्ट्र बनाना चाहते थे: परम पूज्य डॉ. मोहन भागवत

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डॉ.कलाम भारत को एक ज्ञानवान समाज और सशक्त राष्ट्र बनाना चाहते थे: परम पूज्य डॉ. मोहन भागवत

डॉ.कलाम भारत को एक ज्ञानवान समाज और सशक्त राष्ट्र बनाना चाहते थे: डॉ. मोहन भागवत
डॉ.कलाम के रूप में भारत ने अपने सबसे महान सपूतों में से एक को खो दिया है : संघ
कलाम के रूप में भारत ने अपने सबसे महान सपूतों में से एक को खो दिया है : संघ
स्रोत: न्यूज़ भारती हिंदी  
 
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नई दिल्ली, जुलाई 28 : भारत के महान वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम कल निधन होने पर देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है। देश-विदेश से उनके चाहनेवाले और उनसे प्रेरणा लेनेवालों ने डॉ.कलाम के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त की है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह श्री सुरेश (भैयाजी) जोशी ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि “हमारे पूर्व राष्ट्रपति, हमारे सबसे बड़े वैज्ञानिकों में से एक और असंख्य मनों को प्रकाशित करनेवाले दूरद्रष्टा डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के निधन के साथ भारत ने अपने सबसे महान सपूतों में से एक को खो दिया है।” डॉ.भागवत ने कहा कि “डॉ.कलाम ने एक वैज्ञानिक के रूप में हमारी रक्षा तैयारियों को अत्यंत प्रभावशाली और मौलिक योगदान दिया था। और उन्होंने एक राजनेता के रूप में हमारे राष्ट्रपति पद के कार्यक्षेत्र के अपने अनुकरणीय आचरण के माध्यम से राष्ट्रपति कार्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ाकर भारत को गौरवान्वित किया था।”

डॉ.कलाम के जीवन कार्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि, “मंदिरों के नगर रामेश्वरम में गुमनामी में रह रहे एक छोटे लड़के से लेकर भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बनने तक डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम का जीवन असाधारण साहस, दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और उत्कृष्टता प्राप्त करने की इच्छा की कहानी रहा। उनकी जीवन गाथा ने हमारे राष्ट्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रक्षेपास्त्र शक्तियों में से एक के रूप में स्थापित किया है।” उन्होंने कहा, “डॉ.कलाम जो भारत की समृद्ध विरासत में आस्था और हमारे प्रतिभाशाली युवाओं में अडिग विश्वास रखते थे, भारत को एक ज्ञानवान समाज और सशक्त राष्ट्र बनाना चाहते थे।”
डॉ.कलाम के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि, “उनकी मृत्यु पर, जो हमारे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, पूरे राष्ट्र के साथ गहरा दुःख बांटते हुए हम उनके शोक संतप्त परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और सर्वशक्तिमान परमात्मा से दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।

मजहब के नाम पर आतंकवादी का समर्थन क्यों ?

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मजहब के नाम पर आतंकवादी का समर्थन क्यों?   '


ओवैसी साहब, जब आप ही आतंकवादी का मजहब ढूंढ़ेंगे तो फिर शेष समाज को दोष न देना कि आतंकवाद को किसी धर्म विशेष से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है?
- लोकेन्द्र सिंह
मुम्बई सीरियल धमाकों में सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी पर जबरन का विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असुद्दीन ओवैसी ने अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने के लिए मेमन की फांसी पर मजहबी पत्ता खेला है। उसने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की है। साम्प्रदायिकता का जहर घोलने और भड़काऊ बयान देने के लिए ओवैसी पहले से ही कुख्यात है। मेमन की फांसी की सजा पर ओवैसी ने कहा है कि याकूब मेमन मुसलमान है इसलिए उसे फांसी दी जा रही है।

उसके इस बयान से राजनीतिक गलियारे में सियासी हलचल तेज हो गई है। बयान के विरोध और पक्ष में आवाजें आने लगी हैं। एक आतंकवादी के पक्ष में जनप्रतिनिधि का इस तरह बयान देना कितना सही है? यह तो सभी जानते हैं कि ओवैसी मुस्लिम राजनीति करते हैं। लेकिन, वोटबैंक को साधने और मजबूत करने के लिए एक हत्यारे के पक्ष में उतर आना कहां जायज है?

मेमन की फांसी को मुस्लिम रंग देने के प्रयास में ओवैसी ने कहा है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद (ढांचा) को गिराने, मुम्बई और गुजरात में साम्प्रदायिक दंगों में भी ऐसी ही सजा दी जाएगी क्या? राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी पर नहीं लटकाने पर भी ओवैसी ने सवाल उठाए हैं। ओवैसी को शायद यह बताने की जरूरत है कि यह तो न्यायालय तय करेगा कि किस मामले में क्या सजा सुनाई जानी है? किसी भी जघन्य अपराध के खिलाफ न्यायालय में पर्याप्त सबूत मिलेंगे तो न्यायालय अपने विवेक से उचित ही फैसला करेगा? न्यायालय के फैसले पर ओछी मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए साम्प्रदायिक टिप्पणी करना उचित नहीं। शायद, ओवैसी ने अब तक हुई फांसी की सजाओं का रिकार्ड नहीं देखा होगा, इसलिए यह कह गए कि सिर्फ मुसलमानों को ही फांसी क्यों?

 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के ‘डेथ पेनाल्टी रिसर्च प्रोजेक्ट’ के मुताबिक आजादी के बाद से अब तक देश में तकरीबन 1414 कैदियों को फांसी दी गई, जिनमें से मात्र 72 कैदी ही मुसलमान थे। यानी पांच फीसदी से भी कम। बहरहाल, सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अपराधी, अपराधी होता है, हिन्दू या मुसलमान नहीं। फिर भी आंकड़े तो यही बताते हैं कि मुसलमानों से कहीं ज्यादा फांसी की सजा दूसरे धर्म को मानने वालों को हुई है।

भारत की बहुसंख्यक आबादी को एक और आपत्ति है कि आतंकवादी घटनाओं में धर्म को नहीं देखने की बात तो बड़े जोर-शोर से की जाती है तो फिर सजा भुगतने का समय आने पर आतंकवादी का मजहब कहां से पैदा
हो गया? जब यह कहा जाता है कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं लेकिन प्रत्येक आतंकवादी मुसलमान क्यों होता है? तब सब मुस्लिम रहनुमा और प्रगतिशील दलील देते हैं कि यह कथन ठीक नहीं। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, आतंकवाद को धर्म से जोडऩा गलत है। अब एक आतंकवादी में धर्म ढूंढऩे की घटना के समय
रहनुमाओं और सेक्युलरों की जमात कहां चली गईं? बहरहाल, समाज के अपराधियों का धर्म ढूंढऩेवाले कौन लोग हैं? आतंकवादी को धर्म से जोड़कर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं ये लोग? क्या हासिल होगा इन्हें?

मुसलमानों का समर्थन? पर क्यों? मुसलमानों का समर्थन कैसे हासिल होगा? बम विस्फोट में सैकड़ों लोगों की हत्या करनेवाले आतंकवादी का समर्थन भारतीय मुसलमान करेंगे क्या? क्या याकूब मेमन उनका हीरो हैं? नहीं, तो फिर ओवैसी क्यों आसमान सिर पर उठा रहा है? ये सवाल, बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं? एक सार्थक बहस की शुरुआत भी करते हैं?

ओवैसी ने जो विवाद खड़ा किया है, उसका रचनात्मक समाधान खोजना होगा। यह रचनात्मक समाधान आएगा, मुस्लिम समाज से। मुस्लिम समाज को आगे आकर ओवैसी और इस तरह की घटिया राजनीति का जमकर विरोध करना चाहिए। मुस्लिम समाज को जोर से कहना होगा कि याकूब मेमन की फांसी का मुस्लिम होने से कोई लेना-देना नहीं। वैसे भी उसने जो बम फोड़े थे, उसमें हिन्दू ही नहीं, कई मुस्लिम जिन्दगियां भी धुंआ हो गईं थीं। गोली, बम और तलवारें धर्म पूछकर नहीं मारतीं। इसलिए इनका इस्तेमाल करके लोगों खून बहानेवाले का कोई धर्म नहीं होता। भारतीय न्याय प्रणाली और न्यायालय पर इस तरह ओछी टिप्पणी करने के मामले को तत्काल संज्ञान में लेने की जरूरत है।

गैर-जिम्मेदारान तरीके से सम्मानित संस्थाओं पर टिप्पणी करनेवाले जिम्मेदार लोगों पर गंभीरता से कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे लोगों के खिलाफ की गई कार्रवाई नजीर बननी चाहिए, भविष्य के लिए। आखिर में, ओवैसी साहब जब आप ही आतंकवादी का मजहब ढूंढ़ेंगे तो फिर शेष समाज को दोष न देना कि आतंकवाद को किसी धर्म विशेष से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है? याकूब मेमन को 30 जुलाई को फांसी होनी है। मेमन ने अपनी सजा माफ कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आज सर्वोच्च न्यायालय की विशेष पीठ उसकी माफी की याचिका पर सुनवाई करेगी। 

कब तक बर्दाश्त करें पाकिस्तानी आतंक के दंश को ?'

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कब तक बर्दाश्त करें पाकिस्तानी  आतंक के दंश को ?'
- सिद्धार्थ शंकर गौतम

30 जुलाई को मुंबई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेनन की प्रस्तावित फांसी, 26 जुलाई को कारगिल विजय का जश्न और सोमवार 27 जुलाई को तड़के पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर पुलिस थाने पर आतंकी हमला। देखने पर ये तीनों घटनाएं भले ही अलग प्रतीत हों किन्तु इनके बीच समानता की एक महीन लकीर नज़र आती है। याकूब मेनन की प्रस्तावित फांसी के विरोध में जिस तरह कथित बुद्धिजीवी पत्र लिखते हुए भारतीय न्याय व्यवस्था का मखौल उड़ा रहे हैं, उसे पूरी दुनिया देख रही है। क्या संभव नहीं कि याकूब के पाकिस्तानी आका भी उसकी फांसी पर देश के भीतर छिड़ी मजहब आधारित बहस का फायदा उठाना चाह रहे हों? क्या भरोसा कि पंजाब के आतंकी हमले को याकूब की फांसी से जोड़कर सियासतदां इस पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने लगें? हो सकता पाक समर्थित आतंकी संगठन याकूब की फांसी का बदला लेने का मंसूबा पाले हों जैसा उन्होंने कसाब की फांसी के बाद कहा और किया। वहीं 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के एक दिन बाद ही यह आतंकी हमला साबित करता है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन आज भी कारगिल पराजय को बुरे स्वप्न की तरह याद करते हैं और भारत को अस्थिर करना उनका मुख्य शगल बन चुका है।

ख़बरों के अनुसार आतंकी अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाना चाहते थे किन्तु रास्ता भटकने की वजह से 20 सालों बाद पंजाब की धरती को आतंक का पुराना मंजर ताजा करवा दिया। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो पंजाब में खून की होली खेलनेवाले आतंकियों के हमले का तरीका बिलकुल लश्कर-ए-तैयबा जैसा है जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये आतंकी पाकिस्तान के रास्ते भारत में दहशत फैलाने आए थे। हालांकि पाकिस्तान इस सच को कभी स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि पाकिस्तान में होनेवाली तमाम आतंकी घटनाओं को शरीफ सरकार द्वारा ऐसे पेश किया जाता रहा है, मानो पाकिस्तान खुद आतंकवाद से पीड़ित हो।

देखा जाए तो 1995 के बाद पंजाब में इस तरह के हमले नहीं हुए हैं। यह हमला बिल्कुल कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए जाने वाले हमलों के पैटर्न पर है। इसका जिक्र जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी कर चुके हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पंजाब में खालिस्तान समर्थित आतंकवाद फिर सिर उठा सकता है। 26 जुलाई को ही शिरोमणि अकाली दल (शिअद-अमृतसर) के कार्यकर्ताओं द्वारा एक कार्यक्रम में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के संबोधन के दौरान खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे जिसपर बादल ने सांप्रदायिक विभाजन और कट्टरपंथ के खिलाफ लोगों को आगाह किया था। ऐसा संभव है किन्तु ताजा हमला खालिस्तान समर्थित आतंकवादी हमला नहीं है। वैसे भी खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों का इतिहास फिदायीन हमले का नहीं रहा है। हां, इतना जरूर है कि खालिस्तान के कई नेता अभी भी पाकिस्तान में बैठे हैं और यह संभव हो सकता है कि गुरुदासपुर में हमले को अंजाम देने के लिए स्थानीय आतंकियों की मदद ली गई होगी। ऐसी भी खबरें हैं कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई भारत में खालिस्तान आंदोलन को फिर से उभारने में जुटी है। आतंकी हमले को लेकर एक और तथ्य उभर रहा है कि चूंकि कश्मीर में फिलहाल सुरक्षा चौक-चौबंद है और वहां मौका नहीं मिलने के कारण पंजाब को सॉफ्ट टारगेट के रूप में चुना गया हो। वैसे भी पंजाब का यह इलाका पाकिस्तानी सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर है।

पंजाब में आतंकी हमले ने हमारी सुरक्षा एजेंसियों की चूक को पुनः उजागर किया है वहीं सीमा पर घुसपैठ से भी इंकार नहीं किया जा रहा। क्या इस स्थिति में बदलाव आएगा? साफ़ दिख रहा है कि यह आतंकी हमला पाकिस्तान समर्थिक आतंकियों की करतूत है तो क्या पाकिस्तान पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए? हो सकता है भारत की ओर से किसी भी प्रकार की अति मानवाधिकारवादियों व अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को खल सकती है, पर क्या पाकिस्तान की हरकतों को यूं ही नकारा जाना चाहिए? कदापि नहीं। फिर पाकिस्तान जैसा देश दुनिया के लिए नासूर बन चुका है उसके प्रति कैसा अपनापन? अपनापन भी उसी को शोभा देता है जो उसकी कद्र करना जानता हो। आखिर कब तक देश के बेगुनाह नागरिक और सुरक्षा बल के जवान अपनी जान गवांते रहेंगे? भारत सरकार आतंकवाद पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें, यही जनता चाहती है।

रघुवीरसिंह कौशल: प्रखर राजनेता और रक्तदान के प्रेरणा पुरूष

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भाई साहब रघुवीरसिंह कौशल: प्रखर राजनेता और मानव सेवा तथा रक्तदान के प्रेरणा पुरूष
- अरविन्द सिसौदिया जिला महामंत्री भाजपा कोटा
9414180151
9509559131



55 वर्ष के लगभग राजनैतिक जीवन में बेदाग छवि के व्यक्ति, राजस्थान विधानसभा में कुशाग्र वक्ता एवं दबंग किसान नेता के रूप में ख्याती प्राप्त विधायक रहे। स्पष्टतावादिता के लिए विख्यात रघुवीरसिंह कौशल ने नैतिकता के मुद्दों पर अपनी पार्टी को भी अनेकों अवसरों पर नहीं बख्शा। निर्विवाद छवि हेतु सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं के लिए एक आदर्श मार्ग आपने प्रस्तुत किया ।

कौशल राजस्थान में लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं के जनक, सहकार राजनीती के स्थापक, जी एस एसों का जाल बिछानें वाले तथा रक्तदान , वृक्षारोपड, मरीजों की सेवा और विद्यादान के प्रेरक हैं।
उन्होने राजनीति को मानव सेवा का माध्यम बना कर अनूठी मिशाल पेश की , अनेकों बार उनके भाषणों में होता था  ” वास्तविक गरीवों के बीपीएल का कार्ड बनवाया कि नहीं, मरीजों को देखने अस्पताल जाते हो कि नहीं , जरूरतमंद के इलाज को दान देतो हो कि नहीं , होली दिवाली गरीबों के घर राम राम करने जाते हो कि नहीं। “ उनका कहना रहता था कि हम अपने स्टेटस से, व्यक्तित्व से, क्षमता से जरूरतमंद की सेवा अवश्य करें, उनके काम अवश्य आयें।

उनके पास अक्सर इलाज और स्कूल की फीस के लिये लोग पहुंचते रहते थे और वे अक्सर सामने बैठे किसी भी कार्यकर्ता से पैसा मांग कर उसका काम करवा देते थे। प्रधानमंत्री सहायता कोष ओर मुख्यमंत्री सहायता कोष से लोगों के इलाज करवाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी। वे राजस्थन के एक मात्र इस तरह के सांसद थे कि जो प्रधानमंत्री कार्यालय में इलाज के लिये स्पेशल केस स्विकृत करवाने जाते थे। उनके कार्यकाल में जयपुर और दिल्ली के निवासों पर अक्सर दो चार मरीज इलाज के लिये ठहरे हुये मिलते ही थे। वे उनकी चाय पानी भोजन से लेकर अस्पताल तक जाने आने की चिंता करते थे।

उन्होने अपना जन्मदिन हमेशा ही तीर्थ स्थलों पर मनाया और वे अपनी मित्र मण्डली के साथ र्तीथ यात्रायें करते थे। 75 वां जन्मदिन धूमधाम से मनायें जानें का तय हुआ तो उन्होने आयोजन का स्पष्टता से मना करते हुए समाज को प्रेरणा देने के लिये , जन्मदिन पर, विवाह की सालगिरह पर , परिजनों की तेरहवीं पर, रक्तदान शिविरों के आयोजन की परम्परा डाली। वे कहता थे जोडे से रक्तदान करने पर ग्यारह गणा पुण्य मिलता हे। इस प्रकार महिलाओं में भी रक्तदान की जागरूकता के वे प्रेरक रहे। रक्तदान जो कि आज कोटा में फैसन के रूप में प्रचलित है उनकी ही देन है।

किसानों के हित में कार्यों में वे हमेशा ही अग्रणी रीे, राजनैतिक जीवन में सामाजिक कार्यों के प्रति वे हमेशा ही सजग एवं प्रयत्नशील रहे बीमारों का इलाज करवाने में हमेशा ही अग्रणी भूमिका निभाई । उन्होने अपने 75वें जन्म दिवस पर रक्तदान शिविारों की श्रृंखला आयोजित करवाई जिसमें 1500 यूनिट से अधिक रक्त एकत्र हुआ था। इसबे बाद प्रत्येक जन्म दिवस पर रक्तदान शिविर करवाया जो कोटा में एक प्रेरणा के रूप में स्थापित हो कर सम्पूर्ण हाडौती में फैल गया । एम बी एस स्थित ब्लड बैंक को एम्बूलैस एवं उन्नयन हेतु राशीयां दीं। आई एम ए हाल्ल के उन्नयन के लिये राशियां दीं। बर्नवार्ड और यूरोलोजी के लिये सांसद कोष से राशियां दीं। केसर विभाग के उन्नयन के लिये केन्द्र सरकार से राषी दिलवाई औश्र उसके उन्नयन के सतत प्रयत्न किये।

सांसद काल में सांसद कोष की राशी से बांयी मुख्य नहर की सफाई करवा कर टेल पर पानी पहुंचवाने का वर्षों से लंबित अत्यंत आवश्यक कार्य करवाया । गांव - गांव हेन्डपंप और टियूब बैल लगवाकर पेयजल समस्याओं का निदान करवाया । पेयजल की टंकियों के निर्माण और कस्बों में एम्बूलेंसों के लिये सांसद कोष से राशीयां दीं।

ऊर्जा मंत्री रहते हुए जी एस एसों का जाल बिछाया तो वन मंत्री के रूप में सघन वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया । शिक्षा के क्षैत्र में भमाशाहों को आगे लाने की परम्परा भी आपने प्रारम्भ की, स्वंय के गांव में विद्यालय की स्थापना हेतु भूमि दान की । आज वहां उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थापित है।

आध्यात्म में गहरी रूची वाले कौशल हनुमानजी के परम भक्त हैं वे नित्य सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हैं। उन्हे सुन्दरकाण्ड पूरा याद है। धर्मिक कार्यों एवं विचारों की उनके समक्ष सर्वोच्च प्राथमिका रही है।

ग्राम भोज्याखेडी के सरपंच से राजनैतिक यात्रा प्रारम्भ कर विधायक, मंत्री और सांसद तक की यात्रा निर्विधन जारी रही, राजनीति में व्यवहारिकता का उदाहरण बनें , यही कारण है कि बच्चे से लेकर बूढे़ तक के भाई साहब के नाम से पुकारे जाते रहे । 82 वर्ष की आयु में भी वे सामाजिक एवं अन्य विविध कार्यक्रमों में भाग लेते रहे। 2009 से सक्रीय राजनैतिक जीवन से सन्यास के पश्चात भी वे लगातार पार्टी के मार्ग दर्शक बनें।
उनकी राजनैतिक सूझ बूझ को पार्टी में बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से लिया जाता था। आपने राजाखेडा तथा झुंन्झुनू के विधानसभा उपचुनावों में पार्टी को पहलीवार विजयी दिलाई थी। आप लगातार संगठन एपं जनप्रतिनिधि चुनावों के प्रभारी रहे हैं।

पार्टी में प्रदेश महामंत्री, प्रदेश उपाध्यक्ष एवं प्रदेश अध्यक्ष पद पर पदासीन रहे ।  सांसद चुने जानें पर आप राजस्थान सांसद सेल के अध्यक्ष सुषोभित किया।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्वंयसेवक: दामोदर प्रसाद शांडिल्य के अनुसार
श्री कौशल शिक्षण काल में ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड गये थे आप न्याय मंदिर शाखा , रामतलाई मैदान एवं शक्ति शाख अफीम गोदाम के स्वंयसेवक रहे। जिला एवं विभाग कार्यवाह सहित संघ की अखिल भारतीय कार्यकारणी के सदस्य भी रहे। संघ की विभाग, प्रांत एवं  क्षैत्र स्तरीय समन्वय शाखाओं के सदस्य भी रहे। आपने ओटीसी इन्दौर से की थी तथा तृतीय वर्ष पूर्ण करके शिक्षित थें। आपने अटलबिहारी वाजपेयी , लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे, हरीदत्त पाठक सहित विभिन्न विभूतियों से मार्गदर्शन लेकर पूर्ण निष्ठा से कर्त्तव्य परायणता का परिचय दिया। कोटा में जब लालकृष्ण आडवाणी जी संघ के प्रचारक थे तब कौशलजी ने उनके साथ साथ कार्य किया।

जीवन परिचय

रघुवीरसिंह कौशल का जन्म 24 फरवरी 1933 में, अंता के पास स्थित किसान परिवार में, ग्राम भोज्याखेड़ी में हुआ था। उनके पिताजी का नाम स्व0 कन्हैयालाल जी कौशल एवं माताजी का नाम श्रीमति सोमवती देवी था। आप दो भाई एवं सात बहिनें थीं। आपका विवाह 10 फरवरी 1954 में कोटा नयापुरा की श्रीमति शकुन्तला देवी से हुआ । आपके दोपुत्र अरविन्द कौशल एवं अतुल कौशल  तथा एक पुत्री अंजना कौशल  है।  भरे पूरे परिवार में 4 पौत्र 1 पौत्र वधु तथा एक पडपोती भी है।

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अंता कस्बे में तथा उच्च शिक्षा कोटा में हुई, आपने बीए , एलएलबी किया है। आप एक सफल कृषक रहे हैं कृषि पंडित की उपाधी आपको गन्ना उत्पादन के लिये मिली थी।

आपका जुडाव बचपन से ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से हो गया था, आप ने इस संगठन के अनेकों पदों पर कार्य करते हुऐ विभाग कार्यवाह के पद तक कार्य किया। आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एवं भारतीय किसान संघ के राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष रहे। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे।

आप हाडौती के पहले सहकार नेता हैं जिन्होने सहकारी संस्थाओं को प्राथमिक स्तर तक ले जानें का महती कार्य किया, सेंट्रल कोपरेटिव बैंक के अध्यक्ष, जिला सहकार संघ के अध्यक्ष, मार्केटिंग समिती  अंता के अनेंकों बार, अध्यक्ष, कृषि उपज मण्डी अंता के भी अनंेकों बार अध्यक्ष रहे हें।

आप आपातकाल के दौरान 18 महीनें तक मीसाबंदी रहे हें। श्रीराम मंदिर मुक्ती आंदोलन में आप राजस्थान के इन्चार्ज रहे हें। कश्मीर आंदोलन, गौरक्षा आंदोलन सहित संघ विचारधारा के लगभग सभी आंदोलनों एवं कार्यक्रमों आपने अगुवाई की है।

आपातकाल के दौरान कौशल कोटा एवं अजमेर जेल में रहे हैं। उनके जेल के दौश्रान भी आपातकाल के विरूद्ध संघर्ष की समस्त गतिविधियां कौषल निवास नयापुरा कोटा सं संचालित होती थीं, मुख्य चिन्ता जेल में बंदी अन्य कार्यकर्ताओं के घरों की रासन व्यवस्था और अन्य कठनाईयों में मदद करना रहता था।

श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलनमें कौशल विधायक एवं राजस्थान से प्रभारी थे। जब छांचा छह गया तब पुनः श्रीराम मंदिन की स्थापना एवं त्वरत कार्य की योजना में वे भी थे और रातो रात अषेध्या में डांचे के मलवे के ऊपर श्रीराम का मंदिर निर्माण एवं पूर्जा अर्चना प्रारम्भ करने वाली टोली के वे अहम हिस्सा थे।


जनप्रतिनिधि क्षैत्र में सरपंच से राजनैतिक यात्रा प्रारम्भ कर चार बार विधायक , दो बार सांसद एवं राजस्थान सरकार में मंत्री भी रहे। सांसद रहते हुऐ राजस्थान सांसद दल के अध्यक्ष भी रहे। इस दौरान अनको कमेटियों के सदस्य के रूप में भी आपने कार्य किया। इजराईल, ब्रिटेन , अमरीका एवं वेस्टइंडीज की विदेश यात्रायें की!

राजनैतक रूप से आपने अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानीजी, भैरोंसिंह शेखावत,सुन्दरसिंह जी भण्डारी, ललितकिशोर चतुर्वेदी, हरीशंकर जी भाभडाजी, भंवरलाल शर्मा जी एवं श्रीमति वसुधरा राजे सिंधिया के साथ कार्य किया है।
ऐतिहासिक क्षण 24 नवम्बर 2013 अंता
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ने अंता में हुआ जन सभा में पूर्व सांसद रघुवीरसिंह कौशल के पैर मंच पर छुऐ।

बांरा जिले में:-
1.बांरा को जिला बनाया
2.बांरा में मिनि सचिवालय भवन का निर्माण करवाया
3.कालीसिंध नदी पर बडा पुल बनवाया
4.बांरा में रेल्वे ओवर ब्रिज की प्रक्रिया कौशल ने ही प्रारम्भा करवाई थी।
5.बांरा में जिला बनने से पूर्व अतिरक्त जिला अधिकारी स्तर के अनेकानेक कार्यालयों की स्थापना करवाई।
6.बांरा के जिला बनने पर जिला स्तरीय कार्यालय स्थापित करवाये।
7.लिफ्ट योजनायें चालू करवाईं
8.पूर्व - पश्चिम कारीडोर कोें बांरा कोटा बूंदी के रास्ते निलवाया , जिससे फोर लेन सड़क बन गई और कोटा में हैंगिग ब्रिज चम्बल पर बन रहा है।
9.कोटा बीना रेल लाईन का दोहरीकरण एवं विद्युतीकरण कौशल की ही देन है।

कोटा जिले में:-
1.आई एल को बचाया
2.पूर्व - पश्चिम कारीडोर कोें बांरा कोटा बूंदी के रास्ते निलवाया , जिससे फोर लेन सड़क बन गई और कोटा में हैंगिग ब्रिज चम्बल पर बन रहा है।
3.कोटा बीना रेल लाईन का दोहरीकरण एवं विद्युतीकरण कौशल की ही देन है।
4.ग्वालियर-श्योपुर नेरोगेज रेल लाईन को ब्राडगेज में बदलने और कोटा से जोडने के कौशल के प्रयास से ही यह रेल लाईन इटावा दीगोद होते हुऐ कोटा आयेगी।
5.अजमेर के नसीराबाद से बूंदी तक नयारेल मार्ग बनाये जाने के प्रयासों से ही सर्वे संभव हुआ , आगे यह लाईन भी बनेगी।
6.कोटा स्टेशन एवं ढकनिया पर रेल आरक्षण कार्यालय भी आपकी ही देन है।
7.कोटा में नया हवाई अडडा हेतु आपने प्रयास किये मण्डना के पास जमीन का सर्वे भी करवाया था। प्रयास अभी तक अधूरा है।
8.एनीकटों के जाल बिछवाये
बूंदी जिल में:-
1.बांयी मुख्य नहर की साफ सफाई करवा कर, टेल पर पानी पहुंचवाया ।
2.चाकन बांध बनवाया

विशेष:- कोटा में कर्फयू लगने पर जनता एवं कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करना

आंदोलन
1.कश्मीर मुक्ति आंदोलन
2.गौहत्या विरोधी आंदोलन
3.खुशहाली टैक्स को हटवानें का आंदोलन
4.श्रीराम मंदिर आंदोलन
5.आपातकाल में 18 महीने जेल यात्रा
6.कोटा में रेल रोको आंदोलन के गिरफतारों को मुक्त करवानें का आंदोलन

अंता -  संर्घष का मुख्य केन्द्र

1.नहरों के साथ ही सिंचित भूमि पर खुशहीली टैक्स मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया ने लगाया, जिसके विरूद्ध किसान संघर्ष समिति बना कर रघुवीरसिंह कौशल ने 10 हजार किसानों के साथ प्रदर्शन कर मॉफ करवाया ।
2.सरपंचकाल में डाबरी नक्कीजी गांव में नदी पर छोटासा पम्प हाउस बनाकर सिंचाई प्रारम्भ करवाई जो कि आगे जा कर लिफ्ट एरीकेशन की जनक बनीं । यही पम्प हाउस बाद में परवन सिंचाई परियोजना के रूप् में स्थापित है।
3.प्रथम विधायक काल ( 1977 - 80  ) में प्रथम बार दांयीं मुख्य नहर पर लिफ्ट योजनायें स्विकृत करवाईं जो कि उंचाई वाले असिंचित क्षैत्र के लिये वरदान साबित हुईं। अपने आप में तब अनूठी पहल थी।  इसमें देहल्याहेड़ी, चक शाहबाद, पचेल खुर्द  आदि में स्थापित हैं।
4.1977 में अंता को नगर पालिका बनवाया
5.अंता में एनटीपीसी की स्थापना
6.अंता में दांयी मुख्य नहर के एक्सईएन द्वितीय का कार्यालय खुलवाया
7.अंता में सामुदायिक स्वास्थय केन्द्र खुलवाया
8.पलायथा ब्रांच पर सड़क बनवाई
9.अंता मार्केटिंग के अध्यक्ष रहते हुऐ मार्केटिंग भवन बनवाया
10.अंता को नायब तहसील और बाद में तहसील बनवाया
11.अंता  पुलिस का डीएसपी कार्यालय
12.अंता एसीएम कार्यालय खुलवाया,
13.अंता  न्यायालय खुलवाया
14.अंता में कृषि विज्ञान केन्द्र खुलवाया
15.अंता में औघैगिक प्रशिक्षण संस्थान खुलवाया
16.अंता में सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेडियम का निर्माण
17.अंता  सार्वजनिक निर्माण विभाग का सहायक अभियंता कार्यालय खुलवाया
18.अंता बिजली विभाग का सहायक अभियंता कार्यालय खुलवाया
19.प्राथमिक विद्यालय एवं प्राथमिक स्वास्थय केन्द्र बडवा, पलायथा, पचेलकला,मिर्जापुर आदि को बनवाया। आयुर्वेदिक औषधालय बनवाये।
20.पर्यटन स्थल नागदा एवं सोरसन का विकास करवाया।

























देश को क्यों बांट रहा है टीवी मीडिया ? - संजय द्विवेदी

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मीडिया अपना लक्ष्य पथ भूल गया है। पूरी मीडिया की समझ को लांछित किए बिना यह  कहने में संकोच नहीं है कि टीवी मीडिया का ज्यादातर हिस्सा देश का शुभचिंतक नहीं है। वह बंटवारे की राजनीति को स्वर दे रहा है और राष्ट्रीय प्रश्नों  पर लोकमत के परिष्कार की जिम्मेदारी से भाग रहा है।

- संजय द्विवेदी

काफी समय हुआ पटना में एक आयोजन में माओवाद पर बोलने का प्रसंग था। मैंने अपना वक्तव्य पूरा किया तो प्रश्नों का समय आया। राज्य के बहुत वरिष्ठ नेता, उस समय विधान परिषद के सभापति रहे स्व.श्री ताराकांत झा भी उस सभा में थे, उन्होंने मुझे जैसे बहुत कम आयु और अनुभव में छोटे व्यक्ति से पूछा “आखिर देश का कौन सा प्रश्न या मुद्दा है जिस पर सभी देशवासी और राजनीतिक दल एक है?” जाहिर तौर पर मेरे पास इस बात का उत्तर नहीं था। आज जब झा साहब इस दुनिया में नहीं हैं, तो याकूब मेमन की फांसी पर देश को बंटा हुआ देखकर मुझे उनकी बेतरह याद आई।
आतंकवाद जिसने कितनों के घरों के चिराग बुझा दिए, भी हमारे लिए विवाद का विषय है। जिस मामले में याकूब को फांसी हुई है, उसमें कुल संख्या को छोड़ दें तो सेंचुरी बाजार की अकेली साजिश में 113 बच्चे, बीमार और महिलाएं मारे गए थे। पूरा परिवार इस घटना में संलग्न था। लेकिन हमारी राजनीति और मीडिया दोनों इस मामले पर बंटे हुए नजर आए। यह मान भी लें कि राजनीति का तो काम ही बांटने का है और वे बांटेंगें नहीं तो उन्हें गद्दियां कैसे मिलेंगीं? इसलिए हैदराबाद के औवेसी से लेकर दिग्विजय सिंह, शशि थरूर सबको माफी दी जा सकती है कि क्योंकि वे अपना काम कर रहे हैं। वही काम जो हमारी राजनीति ने अपने अंग्रेज अग्रजों से सीखा था। यानी फूट डालो और राज करो। इसलिए राजनीति की सीमाएं तो देश समझता है। किंतु हम उस मीडिया को कैसे माफ कर सकते हैं जिसने लोकजागरण और सत्य के अनुसंधान का संकल्प ले रखा है।
टीवी मीडिया ने जिस तरह हमारे राष्ट्रपुरूष, प्रज्ञापुरूष, संत-वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की खबर को गिराकर तीनों दिन याकूब मेमन को फांसी को ज्यादा तरजीह दी, वह माफी के काबिल नहीं है। प्रिंट मीडिया ने थोड़ा संयम दिखाया पर टीवी मीडिया ने सारी हदें पार कर दीं। एक हत्यारे-आतंकवादी के पक्ष पर वह दिन भर औवेसी को लाइव करता रहा। क्या मीडिया के सामाजिक सरोकार यही हैं कि वह दो कौमों को बांटकर सिर्फ सनसनी बांटता रहे। किंतु टीवी मीडिया लगभग तीन दिनों तक यही करता रहा और देश खुद को बंटा हुआ महसूस करता रहा। क्या आतंकवाद के खिलाफ लड़ना सिर्फ सरकारों, सेना और पुलिस की जिम्मेदारी है?

आखिर यह कैसी पत्रकारिता है, जिसके संदेशों से यह ध्वनित हो रहा है कि हिंदुस्तान के मुसलमान एक आतंकी की मौत पर दुखी हैं? आतंकवाद के खिलाफ इस तरह की बंटी हुयी लड़ाई में देश तो हारेगा ही दो कौमों के बीच रिश्ते और असहज हो जाएंगें। हिंदुस्तान के मुसलमानों को एक आतंकी के साथ जोड़ना उनके साथ भी अन्याय है। हिंदुस्तान का मुसलमान क्या किसी हिंदू से कम देशभक्त है? किंतु औवेसी जैसे वोट के सौदागरों को उनका प्रतिनिधि मानकर उन्हें सारे हिंदुस्तानी मुसलमानों की राय बनाना या बताना कहां का न्याय है? किंतु ऐसा हुआ और सारे देश ने ऐसा होते हुए देखा।

इस प्रसंग में हिंदुस्तानी टीवी मीडिया केबचकानेपन, हल्केपन और हर चीज को बेच लेने की भावना का ही प्रकटीकरण होताहै। आखिर हिंदुस्तानी मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग कर मीडिया क्यों देखता है? क्या हिंदुस्तानी मुसलमान आतंकवाद की पीड़ा के शिकार नहीं हैं? क्या जब धमाके होते हैं तो उसका असर उनकी जिंदगी पर नहीं होता? देखा जाए तो हिंदू-मुसलमान दुख-सुख और उनके जिंदगी के सवाल एक हैं। वे भी समान दुखों से  घिरे हैं और समान अवसरों की प्रतीक्षा में हैं। उनके सामने भी बेरोजगारी, गरीबी, मंहगाई के सवाल हैं। वे भी दंगों में मरते और मारे जाते हैं। बम उनके बच्चों को भी अनाथ बनाते हैं। इसलिए यह लड़ाई बंटकर नहीं लड़ी जा सकती। कोई भी याकूब मेमन मुसलमानों का आदर्श नहीं हो सकता। जो एक ऐसा खतरनाक आतंकी है जो अपने परिवार से रेकी करवाता हो, कि बम वहां फटे जिससे अधिक से अधिक खून बहे, हिंदुस्तानी मुसलमानों को उनके साथ जोड़ना एक पाप है। हिंदुस्तानी मुसलमानों के सामने आज यह प्रश्न खड़ा है कि क्या वे अपनी प्रक्षेपित की जा रही छवि के साथ खड़े हैं या वे इसे अपनी कौम का अपमान समझते हैं? ऐसे में उनको ही आगे बढ़कर इन चीजों पर सवाल उठाना होगा। इस बात का जवाब यह नहीं है कि पहले राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी दो या बेअंत सिंह के हत्यारों को फांसी दो। अगर 22 साल बाद एक मामले में फांसी की सजा हो रही है तो उसकी निंदा करने का कोई कारण नहीं है। कोई पाप इसलिए कम नहीं हो सकता कि एक अपराधी को सजा नहीं हुई है। हिंदुस्तान की अदालतें जाति या धर्म देखकर फैसले करती हैं यह सोचना और बोलना भी एक तरह का पाप है। फांसी दी जाए या न दी जाए इस बात का एक बृहत्तर परिप्रेक्ष्य है। किंतु जब तक हमारे देश में यह सजा मौजूद है तब तक किसी फांसी को सांप्रदायिक रंग देना कहां का न्याय है?
कांग्रेस के कार्यकाल में फांसी की सजाएं  हुयी हैं तब दिग्विजय सिंह और शशि थरूर कहां थे? इसलिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के सवालों को हल्का बनाना, अपनी सबसे बड़ी अदालत और राष्ट्रपति के विवेक पर संदेह करना एक राजनीतिक अवसरवाद के सिवा क्या है? राजनीति की इसी देशतोड़क भावना के चलते आज हम बंटे हुए दिखते हैं। पूरा देश एक स्वर में कहीं नहीं दिखता, चाहे वह सवाल कितना भी बड़ा हो। हम बंटे हुए लोग इस देश को कैसे एक रख पाएंगें? दिलों को दरार डालने वाली राजनीति,उस पर झूमकर चर्चा करने वाला मीडिया क्या राष्ट्रीय एकता का काम कर रहा है? ऐसी हरकतों से राष्ट्र कैसे एकात्म होगा? राष्ट्ररत्न-राष्ट्रपुत्र कलाम के बजाए याकूब मेमन को अगर आप हिंदुस्तान के मुसलमानों का हीरो बनाकर पेश कर रहे हैं तो ऐसे मीडिया की राष्ट्रनिष्ठा भी संदेह से परे नहीं है? क्या मीडिया को यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह किसी भी राष्ट्रीय प्रश्न लोगों को बांटने का काम करे? किंतु मीडिया ने ऐसा किया और पूरा देश इसे अवाक होकर देखता रहा।

मीडिया का कर्म बेहद जिम्मेदारी का कर्म है। डॉ. कलाम ने एक बार मीडिया विद्यार्थियों शपथ दिलाते हुए कहा था-“मैं मीडिया के माध्यम से अपने देश के बारे में अच्छी खबरों को बढ़ावा दूंगा, चाहे वो कहीं से भी संबंधित हों।” शायद मीडिया अपना लक्ष्य पथ भूल गया है। पूरी मीडिया की समझ को लांछित किए बिना यह कहने में संकोच नहीं है कि टीवी मीडिया का ज्यादातर हिस्सा देश का शुभचिंतक नहीं है। वह बंटवारे की राजनीति को स्वर दे रहा है और राष्ट्रीय प्रश्नों पर लोकमत के परिष्कार की जिम्मेदारी से भाग रहा है। सिर्फ दिखने, बिकने और सनसनी फैलाने के अलावा सामान्य नागरिकों की तरह मीडिया का भी कोई राष्ट्रधर्म है पर उसे यह कौन बताएगा। उन्हें कौन यह बताएगा कि भारतीय हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के नायक भारतरत्न कलाम हैं न कि कोई आतंकवादी। देश को जोड़ने में मीडिया एक बड़ी भूमिका निभा सकता है, पर क्या वह इसके लिए तैयार है?

- लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।  
साभार: न्यूज़ भारती

अखण्ड भारत दिवस

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14 अगस्त अखण्ड भारत दिवस
हेमा भारती
15 अगस्त, 1947 । देश आजाद पर विभाजित।
14 अगस्त, 1947  को आधी रात में भारत दो टुकड़ों में विभाजित हुआ --- भारत और पाकिस्तान। इसी दिन भारत की अखंडता खत्म हो गई।

परन्तु आज भी अधिकांश युवाओं को अखंड भारत के स्वरूप व विशेषताओं के इतिहास का पता ही नहीं है।उनमें इसके प्रति जागरूकता एवं राष्ट्रीय चेतना पैदा करने का हमें पूरा प्रयास करना चाहिए।ताकि वो भी अपनी महान गौरवशाली परंपरा और संस्कृति को जानकर उस पर गर्व कर सकें। कौन-कौन से कारण रहे भारत के खण्ड-खण्ड होने के। एक बहुत महत्वपूर्ण कारण रहा जो आज भी विदेशी हमारे खिलाफ अपनाते रहते हैं वह है फूट डालो और राज करो। पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी के पुरोधा अटल जी की एक कविता याद आती है -"दिन दूर नहीं, खंडित भारत को पुनः अखंड बनायेंगे गिलगिट से गारो पर्वत तक तिरंगा झंडा फहराएंगे"।

अखंड भारत राजनीतिक रूप से अभी संभव हो न हो, पर सांस्कृतिक रूप से भारत का स्वरूप काफी व्यापक है। भारत वर्ष का अखण्ड होना उसकी नियति है! परन्तु वर्तमान समय में भारत के अनेक टुकड़े हो गए हैं जिनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा इण्डिया है, बाकी अनेक पर भारत की आत्मा एक है अतः भारत का अखंड होना पक्का है।
भारत आध्यात्मिक, नैतिक, बौद्धिक और कलात्मक रूप से न जाने कितनी ही विविधताओं से भरा है। अनेकता में एकता का प्रतीक एक विशाल देश। भारत का पतन इसलिए हुआ कि लोगों का जीवन अधार्मिक, अहंकारी, स्वार्थी और भौतिक हो गया। एक ओर अत्यधिक बाह्याचार, कर्मकांड, भक्तिभावरहित पूजापाठ में हम सभी लोग भटक गए तो दूसरी ओर अत्यधिक पलायन, वैराग्य की भावना कि सब कुछ मोहमाया है में उलझ गये, जिसने समाज की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया जो लोग आध्यात्मिक समाज के जीवनदाता बन सकते थे वे समाज के लिए मृत हो गए।

श्रीमद्धगवद्गीता हमारी राष्ट्रीय धरोहर है अतः इससे प्रेरणा लेकर हमें शक्ति की साधना और देशभक्ति की भावना बढ़ानी चाहिए। अखण्ड भारत के प्राचीन समय के अविभाजित स्वरूप को कहा जाता है। प्राचीन काल में भारत बहुत विस्तृत था जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, थाइलैंड आदि देश शामिल थे। कुछ देश जो बहुत पहले के समय में अलग हो चुके थे वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि अंग्रेजों से स्वतन्त्रता के काल में अलग हुये। अखण्ड भारत महज सपना नहीं श्रद्धा है, निष्ठा है।

उसकी रज को जो माथे से लगाता हो, वन्देमातरम् जिनका राष्ट्रघोष और राष्ट्रगान हो, ऐसे  व्यक्ति मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं, अखण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं? किन्तु लक्ष्य के शिखर पर पहुंचने के लिए सच की कंकरीली-पथरीली, कहीं कांटे तो कहीं दलदल, कहीं गहरी खाई तो कहीं रपटीली चढ़ाई से होकर गुजरना ही होगा।

यात्रा को शुरू करने से पहले उस यथार्थ को पूरी तरह जानना-समझना जरूरी है। अन्यथा अंग्रेजी की वह कहावत ही चरितार्थ होगी कि "यदि इच्छाएं घोड़ा होतीं तो भिखारी भी उनकी सवारी करते।"अत: हमारे सामने पहला प्रश्न आता है कि भारत क्या है? क्या वह भूगोल है? क्या इतिहास है या कोई सांस्कृतिक प्रवाह है? यदि भूगोल है तो उस भूगोल को भारत कब मिला, किसने दिया? भूगोल तो पहले भी था पर तब वह भारत क्यों नहीं था? तब उसका नाम क्या था?

भारत की अखंडता का अर्थ क्या है? यदि कोई भौगोलिक मानचित्र है जिसे हम अखंड देखना चाहते हैं तो प्रश्न उठेगा कि उसकी सीमाएं क्या हैं? क्या हम ब्रिटिश भारत की अखंडता चाहते हैं। 1947 का विभाजन पहला और अंतिम विभाजन नहीं था। भारत की सीमाओं का  बंटना उसके बहुत पहले से ही शुरू हो चुका था। सातवीं से नवीं शताब्दी तक लगभग ढाई सौ साल तक अकेले संघर्ष करके हिन्दू अफगानिस्तान इस्लाम के पेट में समा गया। हिमालय की गोद में बसे नेपाल, भूटान आदि अपनी जटिल भौगोलिक स्थिति के कारण अविजित रह गए।

अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग अपनाया पर अब वह राजनीतिक स्वतंत्रता संस्कृति पर हावी हो गयी है। श्रीलंका पर पहले पुर्तगाल, फिर हालैंड और अन्त में अंग्रेजों ने राज्य किया और उसे भारत से पूरी तरह अलग कर दिया। किन्तु मुख्य प्रश्न तो भारत के सामने है। तेरह सौ वर्ष से भारत की धरती पर जो वैचारिक संघर्ष चल रहा था उसी का परिणाम 1947 के विभाजन में सामने आया। इसे तो स्वीकार करना ही होगा कि भारत का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर हुआ।

भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा संस्कृति और इतिहास में है। खंडित भारत में एक सशक्त, तेजोमयी राष्ट्र जीवन खड़ा करके ही अखंड भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना संभव होगा। भारत की सांस्कृतिक चेतना में और विविधता में एकता का प्रत्यक्ष दृश्य खड़ा करना होगा। इन सब प्रयासों को जोड़ने वाला महा व्यक्तित्व कहां से प्रगट होगा, इसी की सभी को प्रतीक्षा है।

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अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा- वीर नाथूराम गोडसे... 

19 मई 1910 को मुम्बई - पुणे के बीच 'बारामती 'में संस्कारित राष्ट्रवादी हिन्दु परिवार मेँ जन्मेँ वीर नाथूराम गोडसे एक ऐसा नाम है जिसके सुनते ही लोगोँ के मन-मस्तिष्क मेँ एक ही विचार आता है कि गांधी का हत्यारा।
इतिहास मेँ भी गोडसे जैसे परम राष्ट्रभक्त बलिदानी का इतिहास एक ही पंक्ति मेँ समाप्त हो जाता है...
गांधी का सम्मान करने वाले गोडसे को गांधी का वध आखिर क्योँ करना पडा, इसके पीछे क्या कारण रहे, इन कारणोँ की कभी भी व्याख्या नही की जाती।
नाथूराम गोडसे एक विचारक, समाज सुधारक, पत्रकार एवं सच्चा राष्ट्रभक्त था और गांधी का सम्मान करने वालोँ मेँ भी अग्रिम पंक्ति मेँ था। किन्तु सत्ता परिवर्तन के पश्चात गांधीवाद मेँ जो परिवर्तन देखने को मिला, उससे नाथूराम ही नहीँ करीब-करीब सम्पूर्ण राष्ट्रवादी युवा वर्ग आहत था। गांधीजी इस देश के विभाजन के पक्ष मेँ नहीँ थे। उनके लिए ऐसे देश की कल्पना भी असम्भव थी, जो किसी एक धर्म के अनुयायियोँ का बसेरा हो। उन्होँने प्रतिज्ञापूर्ण घोषणा की थी कि भारत का विभाजन उनकी लाश पर होगा। परन्तु न तो वे विभाजन रोक सके, न नरसंहार का वह घिनौना ताण्डव, जिसने न जाने कितनोँ की अस्मत लूट ली, कितनोँ को बेघर किया और कितने सदा - सदा के लिए अपनोँ से बिछड गये।
खण्डित भारत का निर्माण गांधीजी की लाश पर नहीँ, अपितु 25 लाख हिन्दू, सिक्खोँ और मुसलमानोँ की लाशोँ तथा असंख्य माताओँ और बहनोँ के शीलहरण पर हुआ।
किसी भी महापुरुष के जीवन मेँ उसके सिद्धांतोँ और आदर्शो की मौत ही वास्तविक मौत होती है। जब लाखोँ माताओँ, बहनोँ के शीलहरण तथा रक्तपात और विश्व की सबसे बडी त्रासदी द्विराष्ट्रवाद के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ। उस समय गांधी के लिए हिन्दुस्थान की जनता मेँ जबर्दस्त आक्रोश फैल चुका था। प्रायः प्रत्येक की जुबान पर एक ही बात थी कि गांधी मुसलमानोँ के सामने घुटने चुके है। रही - सही कसर पाकिस्तान को 55 करोड रुपये देने के लिए गांधी के अनशन ने पूरी कर दी। उस समय सारा देश गांधी का घोर विरोध कर रहा था और परमात्मा से उनकी मृत्यु की कामना कर रहा था।
जहाँ एक और गांधीजी पाकिस्तान को 55 करोड रुपया देने के लिए हठ कर अनशन पर बैठ गये थे, वही दूसरी और पाकिस्तानी सेना हिन्दू निर्वासितोँ को अनेक प्रकार की प्रताडना से शोषण कर रही थी, हिन्दुओँ का जगह - जगह कत्लेआम कर रही थी, माँ और बहनोँ की अस्मतेँ लूटी जा रही थी, बच्चोँ को जीवित भूमि मेँ दबाया जा रहा था। जिस समय भारतीय सेना उस जगह पहुँचती, उसे मिलती जगह - जगह अस्मत लुटा चुकी माँ - बहनेँ, टूटी पडी चुडियाँ, चप्पले और बच्चोँ के दबे होने की आवाजेँ।
ऐसे मेँ जब गांधीजी से अपनी जिद छोडने और अनशन तोडने का अनुरोध किया जाता तो गांधी का केवल एक ही जबाब होता- "चाहे मेरी जान ही क्योँ न चली जाए, लेकिन मैँ न तो अपने कदम पीछे करुँगा और न ही अनशन समाप्त करुगा।"
आखिर मेँ नाथूराम गोडसे का मन जब पाकिस्तानी अत्याचारोँ से ज्यादा ही व्यथित हो उठा तो मजबूरन उन्हेँ हथियार उठाना पडा। नाथूराम गोडसे ने इससे पहले कभी हथियार को हाथ नही लगाया था। 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने जब गांधी पर गोली चलायी तो गांधी गिर गये। उनके इर्द-गिर्द उपस्थित लोगोँ ने गांधी को बाहोँ मेँ ले लिया। कुछ लोग नाथूराम गोडसे के पास पहुँचे। गोडसे ने उन्हेँ प्रेमपूर्वक अपना हथियार सौप दिया और अपने हाथ खडे कर दिये। गोडसे ने कोई प्रतिरोध नहीँ किया। गांधीवध के पश्चात उस समय समूची भीड मेँ एक ही स्थिर मस्तिष्क वाला व्यक्ति था, नाथूराम गोडसे। गिरफ्तार होने के बाद गोडसे ने डाँक्टर से शांत मस्तिष्क होने का सर्टिफिकेट मांगा, जो उन्हेँ मिला भी।
नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के सम्मुख अपना पक्ष रखते हुए गांधी का वध करने के 150 कारण बताये थे। उन्होँने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वह अपने बयानोँ को पढकर सुनाना चाहते है। अतः उन्होँने वो बयान माइक पर पढकर सुनाए। लेकिन नेहरु सरकार ने (डर से) गोडसे के गांधी वध के कारणोँ पर रोक लगा दी जिससे वे बयान भारत की जनता के समक्ष न पहुँच पाये। गोडसे के उन क्रमबद्ध बयानोँ मेँ से कुछ बयान आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा जिससे आप जान सके कि गोडसे के बयानोँ पर नेहरु ने रोक क्योँ लगाई.?
तथा गांधी वध उचित था या अनुचित.??
दक्षिण अफ्रिका मेँ गांधीजी ने भारतियोँ के हितोँ की रक्षा के लिए बहुत अच्छे काम किये थे। लेकिन जब वे भारत लोटे तो उनकी मानसिकता व्यक्तिवादी हो चुकी थी। वे सही और गलत के स्वयंभू निर्णायक बन बैठे थे। यदि देश को उनका नेतृत्व चाहिये था तो उनकी अनमनीयता को स्वीकार करना भी उनकी बाध्यता थी। ऐसा न होने पर गांधी कांग्रेस की नीतियोँ से हटकर स्वयं अकेले खडे हो जाते थे। वे हर किसी निर्णय के खुद ही निर्णायक थे। सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहते हुए गांधी की नीति पर नहीँ चलेँ। फिर भी वे इतने लोकप्रिय हुए कि गांधीजी की इच्छा के विपरीत पट्टाभी सीतारमैया के विरोध मेँ प्रबल बहुमत से चुने गये। गांधी को दुःख हुआ, उन्होँने कहा की सुभाष की जीत गांधी की हार है। जिस समय तक सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस की गद्दी से नहीँ उतारा गया तब तक गांधी का क्रोध शांत नहीँ हुआ ।
मुस्लिम लीग देश की शान्ति को भंग कर रही थी और हिन्दुओँ पर अत्याचार कर रही थी । कांग्रेस इन अत्याचारोँ को रोकने के लिए कुछ भी नहीँ करना चाहती थी, क्योकि वह मुसलमानोँ को खुश रखना चाहती थी।गांधी जिस बात को अनुकूल नहीँ पाते थे उसे दबा देते थे । इसलिए मुझे यह सुनकर आश्चर्य होता है की आजादी गांधी ने प्राप्त की । मेरा विचार है की मुसलमानोँ के आगे झुकना आजादी के लिए लडाई नहीँ थी। गांधी व उसके साथी सुभाष को नष्ट करना चाहते थे ।
श्री नाथूराम गोडसे व अन्य राष्ट्रवादी युवा गांधीजी की हठधर्मिता और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से क्षुब्ध थे, हिन्दुस्थान की जनता के दिलोँ मेँ गांधीजी के झूठे अहिँसावाद और नेतृत्व के प्रति घृणा पैदा हो चुकी थी।उस समय गांधीजी के चरित्र पर भी अंगुली उठ रही थी जिसके चलते वरिष्ठ नेता जे. बी. कृपलानी और वल्लभ भाई पटेल आदि नेताओँ ने उनसे दूरी बना ली। यहा तक की कई लोगोँ ने उनका आश्रम छोड दिया था। अब उससे आगे के बयान....
इस बात को तो मैँ सदा से बिना छिपाए कहता रहा हूँ कि मैँ गांधीजी के सिद्धांतोँ के विरोधी सिद्धांतोँ का प्रचार  कर रहा हूँ। यह मेरा पूर्ण विश्वास रहा है कि अहिँसा का अत्याधिक प्रचार हिन्दू जाति को अत्यन्त निर्बल बना देगा और अंत मेँ यह जाति ऐसी भी नहीँ रहेगी कि वह दूसरी जातियोँ से, विशेषकर मुसलमानोँ के अत्याचारोँ का प्रतिरोध कर सके ।
हम लोग गांधीजी की अहिँसा के विरोधी ही नहीँ थे, प्रत्युत इस बात के अधिक विरोधी थे कि गांधीजी अपने कार्यो और विचारोँ मेँ मुस्लिमोँ का अनुचित पक्ष लेते थे और उनके सिद्धांतोँ व कार्यो से हिन्दू जाति की अधिकाधिक हानि हो रही थी।
मालाबार, नोआख्याली, पंजाब, बंगाल, सीमाप्रांत मेँ हिन्दुओँ पर अत्याधिक अत्याचार हुयेँ । जिसको मोपला विद्रोह के नाम से जाना जाता है । उसमेँ हिन्दुओँ की संपत्ति, धन व जीवन पर सबसे बडा हमला हुआ।हिन्दुओँ को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया, स्त्रियोँ के अपमान हुये । गांधीजी अपनी नीतियोँ के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे । प्रत्युत यह कहना शुरु कर दिया कि मालाबार मेँ हिन्दुओँ को मुसलमान नहीँ बनाया गया ।यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रोँ ने यह स्वीकार किया कि सैकडोँ घटनाऐँ हुई है। और उल्टे मोपला मुसलमानोँ के लिए फंड शुरु कर दिया ।
कांग्रेस ने गांधीजी को सम्मान देने के लिए चरखे वाले ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाया। प्रत्येक अधिवेशन मेँ प्रचुर मात्रा मेँ ये ध्वज लगाये जाते थे । इस ध्वज के साथ कांग्रेस का अति घनिष्ट सम्बन्ध था। नोआख्याली के 1946 के दंगोँ के बाद वह ध्वज गांधीजी की कुटिया पर भी लहरा रहा था, परन्तु जब एक मुसलमान को ध्वज के लहराने पर आपत्ति हुई तो गांधी ने तत्काल उसे उतरवा दिया। इस प्रकार लाखोँ - करोडोँ देशवासियोँ की इस ध्वज के प्रति श्रद्धा को गांधी ने अपमानित किया। केवल इसलिए की ध्वज को उतारने से एक मुसलमान खुश होता था।
कश्मीर के विषय मेँ गांधी हमेशा यह कहते रहे की सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौप दी जाये, केवल इसलिए की कश्मीर मेँ मुस्लिम है। इसलिए गांधीजी का मत था कि महाराजा हरिसिँह को संन्यास लेकर काशी चले जाना चाहिए, परन्तु हैदराबाद के विषय मेँ गांधी की नीति भिन्न थी । यद्यपि वहाँ हिन्दूओँ की जनसंख्या अधिक थी, परन्तु गांधीजी ने कभी नहीँ कहा की निजाम फकीरी लेकर मक्का चला जायेँ ।
जब खिलापत आंदोलन असफल हो गया तो मुसलमानोँ को बहुत निराशा हुई और अपना क्रोध हिन्दुओँ पर  उतारा । गांधीजी ने गुप्त रुप से अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया, जो गांधीजी के लेख के इस अंश से सिद्ध हो जाता है - "मैँ नही समझता कि जैसे खबर फैली है, अली भाईयोँ को क्योँ जेल मेँ डाला जायेगा और मैँ क्योँ आजाद रहूँगा? उन्होँने ऐसा कोई कार्य नही किया है जो मैँ न करु।यदि उन्होँने अमीर अफगानिस्तान को आक्रमण के लिए संदेश भेजा है, तो मैँ भी उनके पास संदेश भेज दूँगा कि जब वो भारत आयेँगे तो जहाँ तक मेरा बस चलेगा एक भी भारतवासी उनको हिन्द से निकालने मेँ सरकार की सहायता नहीँ करेगा।"
मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए गांधी ने एक मुसलमान के द्वारा भूषण कवि के विरुद्ध पत्र लिखने पर उनकी अमर रचना शिवबवनी पर रोक लगवा दी, जबकि गांधी ने कभी भी भूषण का काव्य या शिवाजी की जीवनी नहीँ पढी। शिवबवनी 52 छंदोँ का एक संग्रह है जिसमेँ शिवाजी महाराज की प्रशंसा की गयी है । इसके एक छंद मेँ कहा गया है कि अगर शिवाजी न होते तो सारा देश मुसलमान हो जाता । गांधीजी को ज्ञात हुआ कि मुसलमान वन्देमातरम् पसंद नही करते तो जहाँ तक सम्भव हो सका गांधीजी ने उसे बंद करा दिया ।
राष्ट्रभाषा के विषय पर जिस तरह से गांधी ने मुसलमानोँ का अनुचित पक्ष लिया उससे उनकी मुस्लिम समर्थक नीति का भ्रष्ट रुप प्रगट होता था । किसी भी दृष्टि से देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि इस देश की राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है । गांधीजी ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत मेँ हिन्दी को बहुत प्रोत्साहन दिया। लेकिन जैसे ही उन्हेँ पता चला कि मुसलमान इसे पसन्द नही करते, तो वे उन्हेँ खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी का प्रचार करने लगे । बादशाह राम, बेगम सीता और मौलवी वशिष्ठ जैसे नामोँ का प्रयोग होने लगा। मुसलमानोँ को खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी (हिन्दी और उर्दु का वर्ण संकर रुप) स्कूलोँ मेँ पढाई जाने लगी। इसी अवधारणा से मुस्लिम तुष्टिकरण का जन्म हुआ जिसके मूल से ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ है ।
गांधीजी का हिन्दू मुस्लिम एकता का सिद्धांत तो उसी समय नष्ट हो गया जिस समय पाकिस्तान बना। प्रारम्भ से ही मुस्लिम लीग का मत था कि भारत एक देश नही है। हिन्दू तो गांधी के परामर्श पर चलते रहे किन्तु मुसलमानोँ ने गांधी की तरफ ध्यान नही दिया और अपने व्यवहार से वे सदा हिन्दुओँ का अपमान तथा अहित करते रहे। अंत मेँ देश का दो टुकडोँ मेँ विभाजन हो गया और भारत का एक तिहाई हिस्सा विदेशियोँ की भूमि बन गया।
32 वर्षो से गांधीजी मुसलमानोँ के पक्ष मेँ कार्य कर रहे थे और अंत मेँ उन्होँने जो पाकिस्तान को 55 करोड रुपये दिलाने के लिए धूर्ततापूर्ण अनशन करने का निश्चय किया, इन बातोँ ने मुझे गांधी वध करने का निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया। 30 जनवरी 1948 को बिडला भवन की प्रार्थना सभा मेँ देश की रक्षा के लिए मैने गांधी को गोली मार दी।
वास्तव मेँ मेरे जीवन का उसी समय अन्त हो गया था जब मैने गांधी वध का निर्णय लिया था। गांधी और मेरे  जीवन के सिद्धांत एक है, हम दोनोँ ही इस देश के लिए जीये, गांधीजी ने उन सिद्धांतोँ पर चलकर अपने जीवन का रास्ता बनाया और मैने अपनी मौत का। गांधी वध के पश्चात मैँ समाधि मेँ हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ।
मैँ मानता हूँ कि गांधीजी एक सोच है, एक संत है, एक मान्यता है और उन्होँने देश के लिए बहुत कष्ट उठाए। जिसके कारण मैँ उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, लेकिन इस देश के सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नही था। किसी का वध करना हमारे धर्म मेँ पाप है, मै जानता हूँ कि इतिहास मेँ मुझे अपराधी समझा जायेगा लेकिन हिन्दुस्थान को संगठित करने के लिए गांधी वध आवश्यक था । मैँ किसी प्रकार की दया नही चाहता हँ । मैँ यह भी नही चाहता कि मेरी ओर से कोई और दया की याचना करेँ ।
यदि देशभक्ति पाप है तो मैँ स्वीकार करता हूँ कि यह पाप मैने किया है ।यदि पुण्य है तो उससे उत्पन्न  पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है। मुझे विश्वास है कि मनुष्योँ के द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमेँ मेरे काम को अपराध नही माना जायेगा । मैने देश और जाति की भलाई के लिए यह काम किया! मैने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियोँ के कारण हिन्दुओँ पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए!!
मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य 'नीति की दृष्टि'से पूर्णतया उचित है। मुझे इस बात मेँ लेश मात्र भी सन्देह नही की भविष्य मेँ किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेँगे तो वे मेरे कार्य को उचित आंकेगे।
मोहनदास गांधीजी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसेजी एवँ उनके मित्र नारायण आपटेजी को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। न्यायालय मेँ जब गोडसे को फाँसी की सजा सुनाई गई तो पुरुषोँ के बाजू फडक रहे थे, और स्त्रियोँ की आँखोँ मेँ आँसू थे। नाथूराम गोडसे व नारायण आपटे को 15 नवम्बर 1949 को अम्बाला (हरियाणा) मेँ फासी दी गई। फाँसी दिये जाने से कुछ ही समय पहले नाथूराम गोडसे ने अपने भाई दत्तात्रेय को हिदायत देते हुए कहा था, कि
"मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धू नदी मेँ ही उस समय प्रवाहित करना जब सिन्धू नदी एक स्वतन्त्र नदी के रुप मेँ भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमेँ कितने भी वर्ष लग जायेँ, कितनी ही पीढियाँ जन्म लेँ, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना ।"
श्रीनाथूराम गोडसे ने तो न्यायालय से भी अपनी अन्तिम इच्छा मेँ सिर्फ यही माँगा था - "हिन्दुस्थान की सभी नदियाँ अपवित्र हो चुकी है, अतः मेरी अस्थियोँ को पवित्र सिन्धू नदी मेँ प्रवाहित कराया जाए ।"
वीर नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे ने वन्दे मातरम् का उद्घोष करते हुये फाँसी के फंदे को अखण्ड भारत का स्वप्न देखते हुये चूमा और देश के लिए आत्म बलिदान दे दिया ।
नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी अंतिम इच्छा को पूर्ण करना तो दूर उनकी राख भी उनके परिवार वालोँ को नहीँ सौँपी गई थी । जेल अधिकारियोँ ने अस्थियोँ और राख से भरा मटका रेलवे पुल के ऊपर से घग्गर मेँ फेँक दिया था । दोपहर बाद मेँ उन्ही जेल कर्मचारियोँ मेँ से किसी ने बाजार मेँ जाकर यह बात एक दुकानदार को बताई, उस दुकानदार ने तत्काल यह सूचना स्थानीय हिन्दू महासभा कार्यकर्ता इन्द्रसेन शर्मा तक पहुँचाई ।इन्द्रसेन उस समय 'द ट्रिब्यून 'के कर्मचारी भी थे। इन्द्रसेन तत्काल अपने दो मित्रोँ को साथ लेकर दुकानदार द्वारा बताये गये स्थान पर पहुँचेँ । उन दिनोँ घग्गर नदी मेँउस स्थान पर बहुत ही कम पानी था । उन्होँने वह मटका वहाँ से सुरक्षित निकालकर प्रोफेसर ओमप्रकाश कोहल को सौप दिया, जिन्होँने आगे उसे डाँ. एल वी परांजये को नासिक मेँ ले जाकर सुपुर्द किया। उसके पश्चात वह अस्थिकलश 1965 मेँ नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे तक पहुँचाया गया, जब वे जेल से रिहा हुए । वर्तमान मेँ यह अस्थिकलश पूना मेँ उनके निवास पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी होने की प्रतिक्षा मेँ रखा हुआ है।
15 नवम्बर 1950 से अभी तक प्रत्येक 15 नवम्बर को महात्मा गोडसे का "शहीद दिवस"मनाया जाता है। सबसे पहले नाथूराम गोडसे और नारायण आपटे के चित्रोँ को अखण्ड भारत के चित्र के साथ रखकर फूलमाला पहनाई जाती है ।उसके पश्चात जितने वर्ष उनके आत्मबलिदान को हुए है उतने दीपक जलाये जाते है और आरती होती है। अन्त मेँ उपस्थित सभी लोग यह प्रतिज्ञा लेते है कि वे महात्मा गोडसेजी के "अखण्ड हिन्दुस्थान"के स्वप्न को पूरा करने के लिये काम करते रहेँगे। हमे पूर्ण विश्वास है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश एक दिन टुकडे- टुकडे होकर बिखर जायेगे और अन्ततः उनका भारत मेँ विलय होगा और तब गोडसेजी का अस्थि विर्सजन किया जायेगा।
हमेँ स्मरण रखना होगा कि यहूदियोँ को अपना राष्ट्र पाने के लिये 1600 वर्ष लगे, प्रत्येक वर्ष वे प्रतिज्ञा लेते थे कि अगले वर्ष यरुशलम हमारा होगा। इसी प्रकार हमेँ भी प्रत्येक 15 नवम्बर को अखण्ड भारत बनाने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिये।
मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य किसी की भावनाओँ को ठेस पहुँचाना नहीँ, बल्कि उस सच को उजागर करना है, जिसे अभी तक इतिहासकार और भारत सरकार अनदेखा करती रही है।
गांधीजी के बलिदान को नही भूला जा सकता है तो गोडसेजी के बलिदान को भी नही।
वन्दे मातरम्..
जय हिंद...जय भारत....
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बिहार अपने ऊपर जारी जंगल राज को खत्म कर दें - नरेंद्र मोदी

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JDU – Janta ka Daman aur Utpeedan, kya unhe Bihar saunpna theek hai?: PM Narendra Modi at Parivartan rally in Gaya.

परिवर्तन रैली: मोदी ने कहा, जंगलराज से मुक्ति का पर्व बनेगा बिहार चुनाव
Sun, Aug 9th, 2015

गया |  मुजफ्फरपुर के बाद गया में आज ( 09 अगस्त 2015 ) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार ऐतिहासिक गांधी मैदान से मगध की जनता को संबोधित करते हुए जदयू और राजद गंठबंधन पर जोरदार हमलाकिया. उन्होंने कहा कि पता नहीं कौन है चंदन कुमार और कौन है भुजंगा प्रसाद ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली में उपस्थित लोगों से कहा कि जगह बहुत कम है इसलिए आपको दिक्कत हो रही है. एयरपोर्ट से यहां तक रास्ते तक लोगों ने स्वागत किया. मोदी ने कहा,  मेरी गया के लोगों से एक शिकायत हैं करूं ?.. मैं लोकसभा चुनाव के लिए भी यहां आया था उस वक्त तो यहां आधे लोग भी नहीं आये थे. मेरी यह शिकायत प्यार की है  नाराजगी की नहीं है.  यह जीतन राम मांझी की धरती रही है.   बिहार के चुनाव बहुत जल्द आ रहे हैं. मैं साफ देख रहा हूं बिहार की जनता ने दो निर्णय कर लिये हैं एक बिहार के जीवन में, बिहार के विकास में, बिहार का भाग्य बदलने के लिए, ताकतवर बिहार बनाने का किया है और दूसरा निर्णय किया है परिवर्तन का.
25 साल से हर जुल्म को झेला है, अहंकार का झेला हो इन सबसे मुक्ति के लिए यह चुनाव आने वाला है. बिहार में यह चुनाव अंहकारी से मुक्ति का पर्व बनने वाला है. 25 साल से इन्ही लोगों ने बिहार पर राज किया है. आज जैसे 25 साल बीतें है आने वाले 5 साल बीते तो आपका भविष्य बर्बाद हो जायेगा कि नहीं. आपको बिहार में कैसा शासन चाहिए. आज मैं बिहार की जनता के पास आर्शीवाद लेना आया हूं. क्या करके रख दिया बिहार को. आज भी सांस्कृति विकास की चर्चा करेगा तो बिहार के बगैर  नहीं होगी. शांति की चर्चा बुद्ध के बगैर नहीं हो सकती है. विज्ञान हो संस्कृति हो पराकर्म हो सबकी चर्चा बिहार से ही शुरू होती है. ऐसी है ये पवित्र भूमि. ऐसे सपनों को सत्ता के नशे बेठे लोगों ने चूर- चूर कर दिए. जो बिहार देश को उत्तम मानव संसाधन दे सकता है.
नरेंद्र मोदी ने कहा,  आप सोचिये के क्या कारण है कि बिहार आगे नहीं बढ़ पा रहा आप बताइये कि बिहार के सपने को किसने चूर कर दिया. कौन जंगलराज बिहार में वापस लाने की कोशिश कर रहा है. अब बिहार का विकास होगा. दिल्ली बिहार के साथ है. गंगा जी तो बहती है लेकिन उल्टा लोटा लेकर जायेंगे तो नहीं भर पायेंगे. दिल्ली से विकास की गंगा बह रही है लेकिन यहां के शासक उल्टा लोटा लेकर आ रहे हैं. अपने निजी स्वार्थ के लिए एक बार फिर जंगल राज को वापस ला रहे हैं. ये जो जहर पिया गया है वो चुनाव के बाद जहर उगलेंगे की नहीं. जिन्होंने जहर पिया है उन्हें जहर उगलने का मौका नहीं दें. मुझे तो पता नहीं चल रहा है कौन जहर प्रसाद और भुजंग कुमार है.

आप बताइये बिहार में नयी सरकार क्यों बनानी चाहिए. मैं अनुभव से बताता हूं हमारे देश में कई वर्षों से चर्चा चली और एक शब्द चला पड़ा बीमारू राज्य इसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान को गिना जाता था. 10 से 12 साल के अंदर मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य से बाहर निकाल लिया गया. राजस्थान को भी बीमारू राज्य कहा जाता था  लेकिन उसे भी बाहर निकाला गया. बिहार भी बीमारू राज्य से बाहर आ सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे कई देशों में जाने का मौका मिला. जो लोग मिले उनमें से ज्यादा लोग बोद्ध गया जाने की इच्छा जतायी. जितने यात्री ताजमहल देखने जाते हैं उससे ज्यादा बोद्ध गया आने वाले लोग हैं. बोद्ध गया को और बेहतर बनाना चाहिए की नहीं. भारी संख्या में जब यात्री

आयेंगे तो इन इलाकों में गरीबी रहेगी क्या. इन इलाकों में फुल बेचने वाला चाय बेचने वाला भी कमायेगा. बोद्ध गया के विकास की कोशिश नहीं की गयी .

अमित शाह

इस रैली में भाजपा और केंद्रीय मंत्री समेत भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद हैं. इस रैली को संबोधित करते हुए भाजपा अध्यक्ष ने कहा, जंगल राज बिहार छोड़कर बाहर जाए और यहां भाजपा की सरकार बनें शाह ने सबसे पहले पूछा कि आप सभी चाहते हैं कि बिहार मे एनडीए का शासन हो. बिहार में बड़ी इडस्ट्री लगे, बिहार के युवाओं को बाहर जाकर काम ना करना पड़े. नरेंद्र मोदी जी सभी गांवों में बिजली और  पीने का पानी पहुंचाना चाहते हैं. एनडीए की सरकार यह सब करना चाहती है.


मंगल पांडेय

इस रैली को संबोधित करते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मंगल पांडेय ने रैली से सत्ता परिवर्तन पर जोर देते हुए लोगों को दोनों हाथ उठाकर संकल्प लेने का कहा कि आप संकल्प लें कि आप सभी एनडीए विधायकों को जीताकर भेजेंगे.  हम इस विधानसभा चुनाव में सत्ता बदलना चाहते हैं हम सत्ता बदलना चाहते हैं क्योंकि विकास हो, बेरोजगारी हटे, बिहार भी दूसरे विकसित राज्यों के साथ खड़ा हो.  परिवर्तन रैली की सारी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. मंच भी सज गया है, सुरक्षा का भी पुख्ता इंतजाम किया गया है.

रामबिलास पासवान

पासवान ने मंच पर सबसे पहले सिपाहियों को कहा कि हमारे कार्यकर्ताओं पर डंडे मत चलाइये हमारे कार्यकर्ता है जोश में हैं और होश में ही है. लोजपा प्रमुख ने कहा, आज जूता बनाने वाले के बेटे के पैर में हवाई चप्पल नहीं है. साफ सफाई करने वाले को गंदगी में गुजारा करना पड़ता है, महल बनाने वाले बेघर है.

हम गरीबों के घरों में दिया जलाने के लिए हैं. लालू और नीतीश की सरकार कालिया नाग बनकर बैठी है नरेंद्र मोदी जी मथुरा से कृष्ण बनकर चलें हैं.  सरकार कई काम कर रही है ढोगा वालों के लिए ढेले खोमचा लगाने वालों के लिए योजनाएं ला रही है.  रामबिलास पासवान ने लालू यादव पर निशाना साधते हुए कहा, आप एक खास जाति के नेता बनते हैं लालू जी हमारे पास रामकृपाल यादव जैसे कई नेता हैं. लालू जी आप नीतीश कुमार के चरण में जाकर गिर गये हो. दोनों एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं नीतीश कहते हैं लालू नाग है, लालू कहते हैं नीतीश जहर है. नीतीश ने कई योजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद नहीं की.  ये वहीं नीतीश हैं जिन्होंने जार्ज फर्नाडिस को बेइज्जत करके निकाला है.

सुशील कुमार मोदी

कौन करेगा इन पर एतबार मांझी के हाथ से छिन लिया पतवार. सुशील कुमार मोदी ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के साथ हुए अन्याय का जिक्र किया. उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टर फाड़ने से कुछ नहीं होगा. वह लोगों के दिलों मे रहते हैं. हमें पांच साल का वक्त दिजिए हम बिहार को हरियाणा और पंजाब जैसा राज्य बनाकर दिखायेंगे.

जीतन राम मांझी

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने मगही में अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, नीतीश कुमार कुर्सी के लिए बेचैन रहते हैं. मेरे निर्णय को उन्होंने गलत बताया लेकिन मेरे 34 में से 9 निर्णय को लागू कर दिया. जो आदमी कुर्सी के लिए बेचैन रहता है उसका न्याय आप लोग करें. नीतीश कुमार अपनी जाति के लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं सबसे बड़े जातिवाद तो वहीं कहते हैं. हमारा बिहार कभी उनके झांसे में नहीं आयेगा. नीतीश कुमार को हरायें झासे में ना आयें. कई योजनाएं अभी भी जस के तस पड़ी है. कई योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम किया था लेकिन उन्होंने रोक दिया.    

उपेन्द्र कुशवाहा

इस रैली में उपेन्द्र कुशवाहा भी मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि इस भारी भीड़ को देखकर लगता है यह रैली नहीं रैला है. साफ है कि सभी ने परिवर्तन का मन बना लिया है. विपक्षियों को भी इस बात का अहसास हो गया है.  इतने सालों में बड़े और छोटे भाई( लालू- नीतीश) का शासन रहा. इस दौरान विकास का कोई काम नहीं हुआ. उपेन्द्र कुशवाहा ने लालू यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि  उन्होंने एक बयान दिया कि हम 1990 का बिहार नहीं बनने देंगे. हम 1990 का बिहार नहीं बनने देंगे. कुशावाहा ने कहा, हम ऐसा बिहार बनाना चाहते हैं जिसमें किसानों को पानी मिले. बरोजगारों को नौकरी मिले. शिक्षा मिले. सबको रोटी मिले.   इस मंच से जातिय जनगणना पर सफाई देते हुए कहा, उसे जारी किया जाए लेकिन गणना पूरा होने के बाद. विरोधियों के पास मुद्दा नहीं है इसलिए ऐसे मुद्दे ढुढ़कर आपको गुमराह कर रहे हैं.

गया के ऐतिहासिक गांधी मैदान के मंच से नरेंद्र मोदी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जो संबोधित करनेवाले हैं. फिलहाल गांधी मैदान के आसपास के  इलाके पुलिस छावनी में तब्दील हो गये हैं. गांधी मैदान के पश्चिम-उत्तर दिशा में बड़ा सा मंच बना है. उसकी बगल में दक्षिण की ओर स्टेडियम की दीवार तोड़ कर एक छोटा मंच बनाया गया है.

जानकारी के मुताबिक, छोटे मंच पर प्रधानमंत्री के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, सूबे के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, गिरिराज सिंह, रविशंकर,  राधामोहन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, राम कृपाल यादव, पूर्व मुख्यमंत्री  प्रमुख जीतन राम मांझी, रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार, सांसद चिराग पासवान व हरि मांझी मंचासीन होंगे. दूसरे बड़े मंच पर गया समेत आस-पास के जिलों से आये एनडीए के विधायक, विधान पार्षद, प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के नेता व जिलाध्यक्ष रहेंगे.

नेत्र भी निगरानी में

सुरक्षा के दृष्टिकोण से चप्पे-चप्पे पर पुलिसिया इंतजाम है. बिहार पुलिस के जवानों को डी एरिया से बाहर लोगों की सुरक्षा में लगाया गया है. डी एरिया के अलावा वीआइपी गैलरी तक बिहार पुलिस की धमक नहीं होगी. आकाशीय निगरानी के लिए नेत्र को लगाया गया है. वहीं हर एक गतिविधि पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं. मंच से दूर के लोगों के लिए 12 एलइडी लगाये गये हैं, जो मंचीय कार्यक्रम को वह उसपर देख पायेंगे. डी एरिया व वीआइपी गैलरी, एनडीए कार्यकर्ता गैलरी में साउंड बॉक्स लगाये गये हैं. जबकि, पब्लिक गैलरी में पार्टी की ओर से 50 व जिला प्रशासन की ओर से 40 लाउडस्पीकर सहित लगभग सौ से अधिक लाउडस्पीकर लोगों को भाषण सुनने के लिए लगाया गया है. मंच के अलावा गैलरियों में लगे तंबू वाटरप्रुफ हैं, जो बारिश की स्थिति में बचाव कर सकता है. जानकारी के मुताबिक 20 हजार पानी के बोतल भी होंगे, जिनपर एनडीए की परिवर्तन रैली का रैपर लगा रहेगा. बताते हैं कि प्रति बोतल इसकी कीमत साढ़े पांच रुपये है.

पूर्व सीएम की योजना

गौरतलब है कि यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री व हम के प्रमुख जीतन राम मांझी का है. ऐसे में वह भीड़ जुटाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. उनके कार्यकर्ता दोगुने दम-खम के साथ लगे हैं. श्री मांझी प्रधानमंत्री के सामने दक्षिण बिहार की त्रासदी सूखे से निबटने के लिए उत्तर कोयल नहर परियोजना, तिलैया ढाढ़र सिंचाई परियोजना, अंत:सलिला फल्गु को सतत सलिला बनाने के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अन्य प्रोजेक्ट से संबंधित स्मार पत्र रखने की योजना बना रहे हैं.

मैदान में दो लाख की क्षमता
ऐतिहासिक  गांधी मैदान के तीन लाख वर्गफुट में मंच के अलावा सभास्थल व आम लोगों को  भाषण सुनने की व्यवस्था की गयी है. गांधी मैदान में पहले चार गेट थे.  प्रधानमंत्री के आगमन को लेकर नौ और गेट बनाये गये हैं. इनमें जयप्रकाश  झरने के पास का गेट पूरी तरह बंद रहेगा. 12 गेट खुले रहेंगे. गेट नंबर वन  से प्रधानमंत्री व अन्य वीआइपी व 13 से मीडिया के प्रवेश करने की व्यवस्था  की गयी है. भाजपा नेताओं व खुफिया एंजेंसियों का दावा है कि गांधी मैदान  में दो लाख लोग श्री मोदी का भाषण सुन पायेंगे. बाहर जो लोग सुन पायेंगे,  उनकी संख्या और अधिक होगी.

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अगर जंगल राज-2 आता है, तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा- मोदी
By  एबीपी न्यूज़ Sunday, 09 August 2015 03:44 PM
पटना : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के गया में पार्टी के परिवर्तन रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव पर जमकर निशाना साधा और जनता से अपील की कि वे जंगल राज-2 को नहीं आने दें और एनडीए के नेतृत्व में सरकार बनाएं.

बिहार में अक्टूबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
मोदी ने कहा,''अगर बिहार में जंगल राज-2 आता है तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा.''पीएम ने कहा, ''आप बीते 25 साल से अहंकार और उत्पीड़न को सह रहे हैं. क्या आप चाहते हैं कि यही सरकार अगले पांच साल तक रहे.''

पीएम ने कहा, ''ये चुनाव आपके लिए मौका है कि आप अपने ऊपर जारी जंगल राज को खत्म कर दें. अगर आप जंगल राज-2 को आने देते हैं तो ये आप पर और मुसीबतें लाएंगे.''

जंगल राज  का जिक्र करते वक़्त मोदी ने अपने भाषण में लालू प्रसाद यादव पर भी जमकर निशाना साधा और चारा घोटाले में उनके जेल जाने का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ''क्या कोई जेल में अच्छी बात सीखता है? जंगल राज-1 में जेल का अनुभव नहीं था. जंगल राज-2 में जेल का भी अनुभव होगा.''

मोदी ने मुजफ्फरपुर की रैली में आरजेडी पर हमला करते वक़्त 'रोजाना जंगल राज का डर'का नारा दिया था जो कामयाब भी हुआ था. एक बार फिर उन्होंने गया की रैली में उसे नारे को दोहराया.



मोदी ने कहा कि बिहार को बीमारू राज्य से बाहर निकाल है. इसके साथ ही बोध गया को दुनिया में बेहतर बनाएंगे. पीएम का कहना था कि नीतीश ने बिलजी वादा करके जनता को ठगा है. उनका कहना था कि युवाओं को रोजगार, बेहतर उद्योग और बेहतर शिक्षा देंगे.

JDU का मतलब?
नीतीश की पार्टी JDU का मज़ाक उड़ाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने इस पार्टी का नया नाम 'जनता का दमन और उत्पीड़न'बताया.

मोदी ने कहा कि सत्ताधारी पार्टी ने जानबुझकर राज्य को पिछड़ा रखा है और सरकार विकास के किसी काम की इजाजत नहीं दे रही है.

मोदी ने कहा कि यहां गंगा बहती है, लेकिन उल्टा लोटा के साथ कैसे उसमें पानी भर सकते हैं.
मोदी ने कहा, ''दिल्ली से विकास की गंगा बह रही है, लेकिन  यहां की सरकार कुछ भी नहीं कर रही है.''


अखंड भारत का परिदृश्य संभव हैं : प्रोफेसर सदानंद सप्रे

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परिस्तिथि निर्माण से परिवर्तन सम्भव - प्रोफेसर सदानंद सप्रे

प्रोफेसर सदानंद सप्रे उध्बोधन देते हुए 
 
जोधपुर ८ अगस्त २०१५। १५ अगस्त को विभाजन के प्रति वेदना मन में है। राष्ट्र स्वाधीन हुआ किन्तु दुर्भाग्यवश विभाजन भी हुआ , विभाजन मजहब आधारित हुआ जो षड्यंत्र का परिणाम था।  मुस्लिम मूलतः राष्ट्रवादी थे मजहब के नाम पर षड्यंत्र पूर्वक अलगाव पैदा कर अलगाववादी बनाया गया।  क्या 1857 का वृह्द भारत या कहे अखंड भारत का परिदृश्य पुनः  है ? संभव है सम्भावना  है। उक्त विचारो को प्रकट करते हुए प्रोफेसर सदानंद सप्रे ने कहा कि परिस्थिति निर्माण से विचार व् भाव पैदा कर अखंड भारत का परिदृश्य संभव हैं। 

इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स के सभागार में मरू विचार मंच द्वारा आयोजित "अखंड भारत : संकल्पना एवं चिंतन"विषयक संगोष्ठी एवं व्याख्यान में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के विश्व विभाग के सह संयोजक प्रोफेसर सदानंद सप्रे ने कहा कि १८५७ के परिदृश्य के समक्ष आज का मानचित्र रखेंगे तो पता चलेगा कि केवल एक भाग ही स्वाधीन हुआ है।  

1857 के स्वाधीनता संग्राम का दृश्य व् इतिहास उकेरते हुए प्रो. सप्रे ने अंग्रेजों  की मानसिकता व भारतीय समाज के आंदोलन का विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि 1857 का संग्राम कुचलने के बाद ऐसा लगता था की अब स्वाधीन नहीं होंगे लेकिन 90 वर्षों  में यह हो गया। यहूदियों को विपरीत परिस्तिथियों में रहते हुए भी 1700 -1800  वर्षो के संघर्ष व् संकल्पशक्ति से पुनः राष्ट्र प्राप्ति व् स्वाधीनता मिली, यह असम्भव  से सम्भव  का बहुत बड़ा उदाहरण  व मिसाल है.

राष्ट्र के जीवन में 100 -200 या 400 -500 अथवा 1700 -1800 वर्ष कोई मायने नहीं रखते , भाव व विचार तथा संकल्प मौजूद व् जीवित रहना चाहिए। भारत व् नेपाल राष्ट्र पृथक है राजनैतिक दृष्टि से किन्तु आम भारतीय व नेपाली इसे अलग नहीं मानता, अपनत्व भाव है।   क्या पाकिस्तान पृथक राजनीतिक  राष्ट्र रहते हुए नेपाल जैसे  भाव वाला नहीं हो सकता क्या ? 

प्रो. सप्रे ने राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास व् विचार समाज के समक्ष सही तरीके से रखने व् पुनः विचार करने पर बल दिया।  1857 का संग्राम , 1905 का बंग -भंग आंदोलन व 1937 में हुए चुनाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने मुस्लिम समाज की राष्ट्रीय  मानसिकता का दृश्य रखा और स्पष्ट किया कि मुस्लिम पूर्व में कभी भी मज़हब  आधार पर अलग महसुस नहीं करता न ही उनके मन , मस्तिष्क  में मज़हब आधारित अलग राष्ट्र का विचार था। 1857 व् 1905 के आंदोलन में सभी मुस्लिम साथ थे।  यही नहीं 1937 में अंग्रेजों   पहली बार समुदाय की सीटे  आरक्षित कर अलगाववाद पैदा करने की नाकाम कोशिश की।  उस वक्त भी मुस्लिम लीग को आरक्षित सीटों  पर 20 % वोट मिले थे, क्योंकि भारतीय समाज मज़हब  आधारित था ही नहीं, वो संस्कृति आधारित था. 

मोहम्मद करीम छागला  जी की आत्मकथा को उद्धत करते हुए कहा कि मुस्लिम सोच वैसी थी जिसमे उन्होंने कहा था कि "Ï am muslim by religion but hindu by race"हिन्दू एक संस्कृति है मज़हब नहीं।  हिन्दू  को धर्म  के नाम पर तथाकथित साम्प्रदायिक  मानसिकता वाले, बौद्धिक आतंक फ़ैलाने वालो की साजिश बताया। 

प्रो. सप्रे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि क्या इतने बड़े राष्ट्र में मज़हब  विभाजन  सम्भव है क्या ? यह नेतृत्व के कमजोरी थी कि उस वक्त राष्ट्रवादी मुस्लिमो की भावनाओं  व् विचारों  का सरंक्षण नहीं किया व् अंग्रेजो की चाल का शिकार हुए।  यह आज भी संभव नहीं है। 

हिन्दू संस्कृति है, जीवन पद्धति  है जो हज़ारों  वर्षों  से पल्लवित होती आ रही है जिसका ऐतिहासिक प्रमाण है।  

क्या हम अलगाववाद के विचारों के साथ जीते हुए मज़हब के आधार पर पूर्ण पृथक राज्य की कल्पना अब भी साकार होने की सोच सकते है क्या ? सम्भवतः  नहीं। 

प्रो. सप्रे ने अपने उध्बोधन में आगे कहा कि पाकिस्तान के निर्माण की पृष्टभूमि को ध्यान से देखना होगा।  जिस मुस्लिम लीग को 1937 में आरक्षित सीटों पर जो मुस्लिम समुदाय के लिए ही थी पर केवल 20 % सफलता ही मिली थी ,उसी मुस्लिम लीग को 9 वर्ष बाद 1946 में 90% वोट के साथ 40% सीटों  पर सफलता मिलि. २० फ़रवरी १९४७ को अंग्रेजों  ने घोषणा की थी कि जून १९४८ तक स्वतन्त्र  कर देंगे लेकिन फिर ३ जून १९४७ को कहा कि १५ अगस्त १९४७ को ही स्वतंत्र कर देंगे यह परिवर्तन कबीले गौर है इस पर शोधार्थियों को चिंतन कर सही तस्वीर समाज राष्ट्र के समक्ष रखनी चाहिए।  यह आश्चर्यजनक परिवर्तन षड्यंत्र कारक थे। 

भारत-पाक के रिश्ते ठीक वैसे हो जैसे भारत-नेपाल  यही अखण्ड  भारत के संकल्पना है।  यह संभव है परिस्थिति निर्माण से।  हमें सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को अलगाववादी नहीं मानना  चाहिये  न ही पुरे समुदाय को राष्ट्रविरोधी कहना चाहिए।  राष्ट्रवादी मुस्लिम भाईयो  को सरंक्षण व् प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है वो ही परिस्तिथि निर्माण करेंगे।  पूर्व में भी राष्ट्रवादी मुस्लिम के प्रति समाज व् नेतृत्व उदासीन रहा जिसका परिणाम पाकिस्तान है।  यह त्रुटि हमें  दोहराना नहीं चाहिए। १९३७ तक बहुत कम मुस्लिम अलगाववादी थे। 

अलगाववादी मुस्लिमो को आज भी राष्ट्र में शक्ति प्राप्त नहीं होती उनका शक्ति स्त्रोत -धन आज भी बाहरी है।  हमें उस स्त्रोत को कमजोर करने का भी चिंतन करना चाहिए।  परिस्तिथि निर्माण से परिवर्तन सम्भव केवल कुछ प्रतिशत परिवर्तन से ही समाज का परिदृश्य तुरंत बदलता है। 

अपने उध्बोधन को विराम देते हुए प्रो सप्रे ने समाज से सकारात्मक चिंतन व् समग्र दृष्टि से विचार करते हुए अखण्ड भारत की संकल्पना को साकार करने का आव्हान किया। 

अध्यक्षता इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स जोधपुर के अध्यक्ष श्री आर के विश्नोई ने की एवं धन्यवाद ज्ञापन महानगर संयोजक डॉ. जी. एन. पुरोहित ने किया। 

हमारा देश : जम्बू दीपे भरत खण्डे आर्याव्रत देशांतर्गते

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जम्बू दीपे भरत खण्डे 

Acharya Bal Krishna

क्या आप जानते हैं कि....... ....... हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????

साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप"था....?????

परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप""क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????

दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????

क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष"पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!

लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।

आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।

अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।

परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम ""खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .

इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप"का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।

चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष"पड़ा....।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।

इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही "भारतवर्ष"कहलाया.........।

ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।

इस विषय में हमारा वायु पुराणकहता है....—

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....

हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।

हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।

परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।

इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।

परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।

परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????

सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!

आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????

इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।

हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।

ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।

परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?

विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।

और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।

क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।

इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!

ब्रिटेन में अनूठा संघ शिविर

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ब्रिटेन में अनूठा संघ शिविर
तारीख: 10 Aug 2015
लिसेस्टेरशायर (ब्रिटेन) में आयोजित 9 दिवसीय नेतृत्व प्रशिक्षण और चरित्र निर्माण शिविर का समापन 2 अगस्त को हो गया। इसका आयोजन हिन्दू स्वयंसेवक संघ (यू.के.) और हिन्दू सेविका समिति (यू.के.) ने किया था। शिविर में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के 170 स्वयंसेवकों और हिन्दू सेविका समिति की 104 बहनों ने भाग लिया। ये कार्यकर्ता ब्रिटेन के 28 शहरों से आए थे। 9 दिनों तक इन कार्यकर्ताओं की बेहद ही संयमित और अनुशासन वाली दिनचर्या रही। सुबह 6 बजे जागरण से इनकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। इसके बाद प्रार्थना, योग, नियुद्ध और अन्य शारीरिक गतिविधियां होती थीं। दिन में अनेक सत्र होते थे, जैसे बौद्धिक, किसी विषय पर चर्चा, सामान्य ज्ञान, हिन्दू धर्म की जानकारी आदि। इन सभी सत्रों में इन शिक्षणार्थियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। शिविर में 37 पूर्णकालिक प्रशिक्षकों ने प्रशिक्षण दिया और इसे सफल बनाने के लिए 50 से अधिक कार्यकर्ताओं ने दिन-रात मेहनत की। शिविरार्थियों के भोजन के लिए 80,000 चपातियां तैयार हुईं। ये चपातियां दान के रूप में 140 स्थानीय परिवारों ने भेंट कीं। शिविर के समापन समारोह की अध्यक्षता नाटिंघमशायर कॉलेज की प्राचार्य श्रीमती आशा खेमका ने की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिन्दू स्वयंसेवक संघ एक अनूठा संगठन है और यह अपने समुदाय के हित एवं अनुशासन के क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। समापन समारोह में सैकड़ों आम नागरिक भी उपस्थित थे।                -प्रतिनिधि


कांग्रेसी नेता अपने घोटालों का जवाब तो दें

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क्या रॉल विंसी ( तथाकथित राहुल गांधी ), उसकी माँ और सभी कांग्रेसी नेता जनता को इन घोटालों का जवाब देंगे??.....

1. कोयला घोटाला-1855913.4 मिलीयन(भारत का सबसे न. 1घोटाला)......
2. 2G स्पेक्ट्रम घोटाला-1760बिलीयन(भारत का 2सबसे बड़ा घोटाला)........
3. वोडाफोन टेक्स घोटाला-11000करोड़......
4. सारधा ग्रुप चीट फंड घोटाला.......
5. रेल प्रमोशन(पवन बंसल)......
6. बैशाखी घोटाला (सलमान खुर्शीद).........
7. रार्बट बढ़ेरा घोटाला......
8. अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला.....
9. उत्तर प्रदेश खाद्य अनाज घोटाला-350बिलीयन.....
10. कर्नाटक वक्फ भूमि घोटाला-200बिलीयन.......
11. उत्तर प्रदेश NHRMघोटाला-100बिलीयन.....
12. सत्यम घोटाला-10000करोड़.....
13. अरूणाचल प्रदेश के गेगांग अपाँग द्वारा घोटाला- 1000करोड़......
15. ताज को-ऑपरेटीव हाउसींग घोटाला-4000करोड़.....
16. बिहार बाढ़ घोटाला-170मिलीयन.......
17. उत्तर प्रदेश आयुर्वेद घोटाला-260मिलीयन......
18. स्टेट बैंक आफ सौराष्ट्र-950मिलीयन......
19. आर्मी राशन घोटाला-50बिलीयन......
20. झारखंड मेडिकल घोटाला-1.3बिलीयन......
21. हरियाणा शिक्षक रिक्युरीमेंट......
22. उड़िसा मिनींग घोटाला-70बिलीयन.....
23. कामनवेल्थ खेल घोटाला-70000करोड़......
24. आंध्र प्रदेश Emmar घोटाला-25बिलीयन.....
25. झारखंड मनरेगा घोटाला......
26. चंडीगढ़ बुथ घोटाला......
27. बेल्लारी मीनींग घोटाला......
28. Tatra घोटाला-130मिलीयन......
29. LIC हाउसींग लोन घोटाला......
30. NTRO घोटाला-140मिलीयन.......
31. पुणे हाउसींग घोटाला......
32. पुणे भूमि घोटाला......
33. उड़िसा दाल घोटाला-120मिलीयन......
34. केरला इन्वेसटमेन्ट घोटाला-170मिलीयन......
35. मुंबई फ्राड टेक्स घोटाला-175मिलीयन.......
36. महाराष्ट्र शिक्षा घोटाला-10बिलीयन... ..
37. महाराष्ट्र PDS घोटाला.....
38. उत्तर प्रदेश TET घोटाला.......
39. उत्तर प्रदेश मनरेगा घोटाला.......
40. उड़िसा मनरेगा घोटाला.......
41. बिहार सोलर लैम्प घोटाला-400मिलीयन.......
42. B.L कश्यप EPFO घोटाला-16.29मिलीयन........
43. आसाम शिक्षा घोटाला......
44. अब्दुल करीम तेलगी स्टाम्प पेपर घोटाला-400000 करोड़......
45. पुणे ULCघोटाला......
46. तामिलनाडु ग्रेनाइट घोटाला.......
46. फाइनेंस लिमीटेड घोटाला.......
47. महाराष्ट्र irrigation घोटाला.......
48. अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट घोटाला-290.33 बिलीयन.....
49. FOREX घोटाला-320बिलीयन.......
50. महाराष्ट्र स्टॉम्प ड्युटी घोटाला-110 मिलीयन.....
51. महाराष्ट्र भूमि घोटाला(2).
52. आंध्र प्रदेश Liquar घोटाला......
53. जम्मु कश्मीर क्रिकेट एसोसीयन घोटाला.....
54. जम्मु कश्मीर PHE घोटाला.....
55. जम्मु कश्मीर रिक्युरीमेंट घोटाला......
56. जम्मु कश्मीर डेन्टल घोटाला.......
57. NHPसिमेन्ट घोटाला.........
58. हरियाणा फॉरेस्ट घोटाला......
59. उत्तर प्रदेश स्टाम्प पेपर ड्युटी घोटाला-1200 करोड़.....
60. उत्तर प्रदेश हाल्टीकल्चर घोटाला-700 मिलीयन......
61. उत्तर प्रदेश पाल्म ट्री घोटाला-550 मिलीयन.......
62. उत्तर प्रदेश बीज घोटाला-500मिलीयन.....
63. Tax Refund घोटाला-30 मिलीयन.....
64. राँची इस्टेट......
65. आधार घोटाला......
66. BEML हाउसींग सोसायटी घोटाला......
67. MSTC सोना डयुटी घोटाला......
68. TIN घोटाला..........
69. करप्शन कैश घोटाला........
70. हाइवे घोटाला.....
71 सैनिक जुते घोटाला.........
72 किसान कर्ज घोटाला-52000 करोड़ ₹......
73. 2009-स्विस बैंकों में लाखों करोड़ का काला धन....

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जड़ी - बूटियां उम्मीद से बढ़कर फायदेमंद

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तुलसी के अनंत फायदे-
प्रकृति ने मनुष्य को ऐसे ऐसे वरदानों से नवाजा है कि वह चाहे तो भी जीवन भर उनसे उऋण नहीं हो सकता है । तुलसी भी ऐसा ही एक अनमोल पौधा है । जो प्रकृति ने मनुष्य को दिया है। सामान्य से दिखने वाले तुलसी के पौधे में अनेक दुर्लभ और बेशकीमती गुण पाए जाते हैं । आइये जाने कि तुलसी का पौधा हमारे किस किस काम आ सकता है ।  तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है । विशेषकर सर्दी खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है । इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है ।
– शरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु भी तुलसी अत्यंत गुणकारी है ।
– इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है । एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है । यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।
– तुलसी जी के पौधा की तेज खुशबू मच्छरों को परेशान कर देती है और वे भाग जाते हैं।
– तुलसी के रस की कुछ बूंदों में थोड़ा सा नमक मिलाकर बेहोश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है ।
– चाय ( बिना दूध की ) बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएं तो सर्दी बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है
– 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी एवं अस्थमा के रोगी को ठीक किया जा सकता है ।
– तुलसी के काढ़े में थोड़ा सा सेंधा नमक एवं पिसी सौंठ मिलाकर सेवन करने से कब्ज दूर होती है ।
– तुलसी हिचकी, खांसी, जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है । इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है । यह दुर्गंध भी दूर करती है ।
– तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली, दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है ।
– तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली, कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है । तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे । शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है । सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है ।
तुलसी की मुख्य जातियां – तुलसी की मुख्यत: 2 प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं । इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है । रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है । इसलिए इसे गौरी कहा जाता है । श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है । इसमें कफनाशक गुण होते हैं । यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है । तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है । इसमें जबरदस्त जहर नाशक प्रभाव पाया जाता है । लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है । आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है । एक अन्य जाति मरूवक है जो कम ही पाई जाती है । राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है ।
– मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है । तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है । जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए । इससे बुखार में आराम मिलता है । शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें , आराम मिलेगा ।
– साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है ।
– तुलसी के रस में मुलहठी व थोड़ा सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है ।
– १-२ लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है ।
– शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है ।
– किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है ।
– फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है ।
– तुलसी थकान मिटाने वाली औषधि है । बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है ।
– प्रतिदिन तुलसी की 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है ।
– तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है  इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है ।
– तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है ।
– तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें । कम से कम 1 सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें । यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं ।
– दिल की बीमारी में यह अमृत है । यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है । दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए ।
– दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी की पत्तियां चबाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है ।
– 10 ग्राम तुलसी के रस के साथ 5 ग्राम शहद एवं 2 ग्राम पिसी काली मिर्च का सेवन करने से पाचन शक्ति की कमजोरी समाप्त हो जाती है ।
– दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है ।

मेंहदी के फायदे –
– लगभग 5 ग्राम मेंहदी के पत्ते लेकर रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें और प्रातःकाल इन पत्तियों को मसलकर तथा छानकर रोगी को पिला दें | एक सप्ताह के सेवन से पुराने पीलिया रोग में अत्यंत लाभ होता है |
– मेंहदी और एरंड के पत्तों को समभाग पीसकर थोड़ा गर्म करे घुटनों पर लेप करने से घुटनों की पीड़ा में लाभ होता है |
– लगभग 4.5 ग्राम मेंहदी के फूलों को पानी में पीसकर कपड़े से छान लें, इसमें ७ ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन पीने से गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द शीघ्र ही ठीक हो जाता है |
– मेंहदी में दही और आंवला चूर्ण मिलाकर २- ३ घंटे बालों में लगाने से बल घने, मुलायम, काले और लम्बे होते हैं |
– दस ग्राम मेंहदी के पत्तों को २०० मिली पानी में भिगोकर रख दें, थोड़ी देर बाद छानकर इस पानी से गरारे करने से मुँह के छाले शीघ्र शांत हो जाते हैं |
– मेंहदी के बीजों को बारीक पीसकर, घी मिलाकर ५०० मिग्रा की गोलियां बना लें | इन गोलियों को सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से खूनी दस्तों में लाभ होता है |
– अग्नि से जले हुए स्थान पर मेंहदी की छाल या पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप करने से लाभ होता है |
हल्दी के फायदे-
– अगर त्वचा पर अनचाहे बाल उग आए हों तो इन बालों को हटाने के लिए हल्दी पाउडर को गुनगुने नारियल तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को हाथ-पैरों पर लगाएं। ऐसा करने से शरीर के अनचाहे बालों से निजात मिलती है।
–  धूप में जाने के कारण त्वचा अक्सर टैन्ड हो जाती है। टैन्ड त्वचा से निजात पाने के लिए हल्दी पाउडर, बादाम चूर्ण और दही मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाइए। इससे त्वचा का रंग निखर जाता है और सनबर्न की वजह से काली पड़ी त्वचा भी ठीक हो जाती है। यह एक तरह से सनस्क्रीन लोशन की तरह काम करता है।
– दाग, धब्बे व झाइंया मिटाने के लिए हल्दी बहुत फायदेमंद है। चेहरे पर दाग या झाइंया हटाने के लिए हल्दी और काले तिल को बराबर मात्रा में पीसकर पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं।
– हल्दी को दूध में मिलाकर इसका पेस्ट बना लीजिए। इस पेस्ट को चेहरे पर लगाने से त्वचा का रंग निखरता है और आपका चेहरा खिला-खिला दिखेगा।
– लीवर संबंधी समस्याओं में भी इसे बहुत उपयोगी माना जाता है।
– सर्दी-खांसी होने पर दूध में कच्ची हल्दी पाउडर डालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
– पेट में कीड़े होने पर 1 चम्मच हल्दी पाउडर में थोडा सा नमक मिलाकर रोज सुबह खाली पेट एक सप्ताह तक ताजा पानी के साथ लेने से कीड़े खत्म हो जाते हैं।
– खांसी होने पर हल्दी का इस्तेमाल कीजिए। अगर खांसी आने लगे तो हल्दी की एक छोटी सी गांठ मुंह में रख कर चूसें, इससे खांसी नहीं आती।
– मुंह में छाले होने पर गुनगुने पानी में हल्दी पाउडर मिलाकर कुल्ला करें या हलका गर्म हल्दी पाउडर छालों पर लगाएं। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
– चोट लगने या मोच होने पर हल्दी बहुत फायदा करती है। मांसपेशियों में खिंचाव या अंदरूनी चोट लगने पर हल्दी का लेप लगाएं या गर्म दूध में हल्दी पाउडर डालकर पीजिए।
– हल्दी का प्रयोग करने से खून साफ होता है जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढती है।
– अनियमित माहवारी को नियमित करने के लिए महिलाएं हल्दी का इस्तेमाल कर सकती हैं।
– हल्दी का सेवन करने से खून साफ होता है । इससे रक्त संचार बढ़ता है और लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण भी होता है। हल्दी से लीवर भी संतुलित रहता है। घावों को भरने में भी सहायक होती है और ऊतकों का नवीनीकरण भी कर देती है।
– हल्दी त्वचा के लिए भी फायदेमंद होती है। इससे मुहासे की समस्या दूर होती है और त्वचा चिकनी तथा मुलायम होती है।
– हल्दी कैंसर में भी लाभदायक है। यह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकती है। इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि हल्दी के सेवन से त्वचा, स्तन, आँत और प्रोस्टेट कैंसर को भी बढ़ने से रोका जा सकता है।
– गठिया के रोगियों को भी हल्दी का सेवन करना चाहिए। हल्दी की गाँठों का सेवन अपच में लाभदायक होता है। हल्दी डायबिटीज के रोगियों के लिए भी गुणकारी है। इससे रक्त में शर्करा का स्तर संतुलित रहता है। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम से ग्रसित लोगों को भी हल्दी का सेवन करना चाहिए। हल्दी के सेवन से पेट की गड़बड़ी दूर होती है। इससे हृदय रोगों की संभावना भी कम होती है।
खीरा के फायदे –
– डायबिटीज, एसिडिटी, ब्लड प्रेशर से पीड़ित व्यक्ति या जो वजन को नियंत्रित करना चाहते है, उन्हे सुबह खाली पेट खीरे का जूस लेना चाहिए। स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा नीबू का रस डाल सकती है। ब्लड प्रेशर की समस्या हो तो जूस में नमक न डालें।
– खीरे में प्रचुर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेट होते है जो हमारे शरीर के इम्यून फंक्शन को बरकरार रखने मदद करते है। इसे रोजाना खाने से गर्मी से लू नहीं लगती। इसमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है, जो शरीर में पानी की कमी नहीं होने देती। इसके सेवन से थकावट नहीं होती है।
– इसका प्रयोग गर्मी से राहत देने और जलन को दूर करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में किया जाता रहा है। यह सिर्फ डाइट में ही नहीं प्रयोग किया जाता है, स्त्रियां इसका खास उपयोग आंखों की थकावट को दूर करने के लिए भी करती है।
-. इसे अच्छी तरह से साफ करके छिलके समेत खाएं तो अच्छा रहता है। खीरे में फाइबर बहुत होता है।
-. अगर आपको इसे साबुत खाने में समस्या है तो जूस पिएं।
-यह आंखों की सूजन कम करता है और उन्हे राहत के साथ ठंडक भरा एहसास देता है।
– खीरा एक बेहतरीन क्लींजर और टोनर होता है।
– खीरे में मिनरल की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, सल्फर, सिलिकॉन, क्लोरीन भी पाया जाता है। न्यूट्रीशनल वैल्यू बढ़ाने के लिए आप इसे सब्जियों, फलों, सीरियल्स और सैलेड के साथ उपयोग कर सकती है।
– कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए प्रतिदिन दो छिलके सहित खीरे खाने चाहिए।
– हाइपरएसिडिटी और गैस्ट्रिक से निजात पाने के लिए रोजाना खीरे का जूस पीना चाहिए। बेहतर होगा कि हर दो घंटे के अंतराल में 4-6 औंस जूस लें। आप चाहे तो इसमें पर्याप्त पानी मिलाकर पी सकती है, इससे पेट की जलन से तत्काल छुटकारा मिलता है।
– इसका जूस नियमित रूप से पीने से मुंहासे, ब्लैक हेड्स , झुर्रियां दूर रहती है।

आंवले का सेवन करने के फायदे –
–  आंवला विटामिन ‘सी’ का अनूठा भण्डार है। जितना विटामिन ‘सी’ आंवले में होता है उतना किसी अन्य फल में नहीं होता। आंवले में विटामीन ‘सी’ नारंगी और मौसम्बी की तुलना में बीस गुना होता है। ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि इसमें विटामिन ‘सी’ किसी भी सूरत में नष्ट नहीं होता।
– आंवला खाने से लीवर को शक्ति मिलती है, जिससे हमारे शरीर में विषाक्त पदार्थ आसानी से बाहर निकलते हैं।
– आंवला विटामिन-सी का अच्छा स्रोत होता है। एक आंवले में 3 संतरे के बराबर विटामिन सी की मात्रा होती है।
– आंवला का सेवन करने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।
– आवंले का जूस भी पिया जा सकता है। आंवला का जूस पीने से खून साफ होता है।
– आंवला खाने से आंखों की रोशनी बढती है।
– आंवला शरीर की त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
–  सुबह नाश्ते में आंवले का मुरब्बा खाने आपका शरीर स्वस्थ बना रहता है।
– डायबिटीज के मरीजों के लिए आंवला बहुत फायदेमंद होता है। मधुमेह के मरीज हल्दी के चूर्ण के साथ आंवले का सेवन करे। इससे मधुमेह रोगियों को फायदा होगा ।
– बवासीर के मरीज सूखे आंवले को महीन या बारीक करके सुबह-शाम गाय के दूध के साथ हर रोज सेवन करे। इससे बवासीर में फायदा होगा।
– यदि नाक से खून निकल रहा है तो आंवले को बारीक पीसकर बकरी के दूध में मिलाकर सिर और मस्तिक पर लेप लगाइए। इससे नाक से खून निकलना बंद हो जाएगा।
– आंवला खाने से दिल मजबूत होता है। दिल के मरीज हर रोज कम से कम तीन आंवले का सेवन करें। इससे दिल की बीमारी दूर होगी। दिल के मरीज मुरब्बा भी खा सकते हैं।
– खांसी आने पर दिन में तीन बार आंवले का मुरब्बा गाय के दूध के साथ खाएं। अगर ज्यादा तेज खांसी आ रही हो तो आंवले को शहद में मिलाकर खाने से खांसी ठीक हो जाती है।
– यदि पेशाब करने में जलन हो तो हरे आंवले का रस शहद में मिलाकर सेवन कीजिए। इससे जलन समाप्त होगी ओर पेशाब साफ आएगा।
– पथरी की शिकायत होने पर सूखे आंवले के चूर्ण को मूली के रस में मिलाकर 40 दिन तक सेवन कीजिए। इससे पथरी समाप्त हो जाएगी।
– आंवले के सेवन से कई रोग मिटाये जा सकते हैं। आंवले में स्थित विटामीन ‘सी’ शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति में बेहद वृद्धि करता है । आवंला रक्तशुद्धि करता है, साथ ही नया रक्त उत्पन्न करने में बहुत उपयोगी है। आंवले में पाया जाने वाला विटामिन ‘सी’ नेत्र ज्योति, केश, बहरापन दूर करने, मधुमेह मिटाने, रक्त बुद्धि, मसूढ़े व दांत, फैफड़े व त्वचा के लिये बहुत उपयोगी है।
– सौंदर्य सजग महिलाओं के लिये यह वरदान है। आंवले का चूर्ण और पिसी मेहंदी मिलाकर लगाने से बाल पकते नहीं हैं और काले बने रहते हैं । आंवले के उपयोग से सुंदर नेत्र, कान्तिपूर्ण स्वच्छ त्वचा और तेजस्वी मुख आपके रूप लावण्य को और बढ़ाते हैं यह शरीर को स्फूर्तिवान एवं बलवान रखकर वृद्धावस्था को दूर रखने के लिये अत्यंत गुणकारी है।
– आंवले का स्वाद पूर्णत: रूचिकर नहीं है, अत: इसका सेवन खाकर न करके इसके रस का सेवन कर अपेक्षित लाभ उठा सकते हैं। वैसे भी आंवले के मूल्यवान तत्वों का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिये उसका रसपान करना चाहिए। प्रात: काल खाली पेट आंवले का रसपान विशेष गुणकारी है। इसका रस आसानी से निकाला जा सकता है । ३—४ आंवलों का रस सुबह शाम लेना चाहिए। यदि थोड़ा बहुत जी मिचलाता है तो घबराना नहीं चाहिए । आंवला चटनी, मुरब्बा , आचार, चूर्ण आदि के रूप में भी गुणकारी बना रहता है।
पुदीना या पिपरमिंट के फायदे –
– मुंह की दुर्गध दूर करने के लिए पुदीने की सूखी पत्तियों को पीसकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को मंजन की तरह दांतों पर रगड़ें। मुंह की दुर्गन्ध तो दूर हो ही जाएगी, मसूड़े भी मजबूत होंगी।
– एक गिलास पानी में 8-10 पुदीने की पत्तियां, थोड़ी-सी काली मिर्च और जरा सा काला नमक डालकर उबालें। 5-7 मिनट उबालने के बाद पानी को छानकर पीएं, खांसी, जुकाम और बुखार से राहत मिलेगी।
– हाजमा खराब हो तो एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें, उसमें थोड़ा-सा काला नमक डालें और पुदीने की 8-10 पत्तियां पीसकर मिलाएं। अब पीड़ित व्यक्ति को इसे पिलाएं, तुरंत लाभ मिलेगा।
– हिचकियां न रुकें तो पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर उन्हें पीसें और उनका रस निकालकर पिलाएं, हिचकी आनी बंद हो जाएगी।
– गर्मी के मौसम में लू लगने से बचने के लिए पुदीने की चटनी को प्याज डालकर बनाएं। अगर इसका सेवन नियमित रूप से किया जाए तो लू लगने की आशंका खत्म हो जाती है।
– मुंहासे दूर करने के लिए पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर पीस लें। अब उसमें 2-3 बूंदे नींबू का रस डालकर इसे चेहरे पर कुछ देर के लिए लगाएं। फिर चेहरा ठंडे पानी से धो लें। कुछ दिन ऐसा करने से मुंहासे तो ठीक हो ही जाएंगे, चेहरे पर चमक भी आ जाएगी।
– पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है।
– अगर नमक के पानी के साथ पुदीने के रस को मिलाकर कुल्ला करें तो गले की खराश और आवाज में भारीपन दूर हो जाते हैं। आवाज साफ हो जाती है।

हरण के फायदे –
– हरड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दो किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी ) ठीक हो जाती है |
– हरीतकी चूर्ण सुबह शाम काले नमक के साथ खाने से कफ ख़त्म हो जाता है |
– हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आनी बंद हो जाती है|
– हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |
– छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर प्रतिदिन 3 बार लगाने से मुहं के छाले नष्ट हो जाते हैं | इसको आप रात को भोजन के बाद भी चूंस सकते हैं |
– छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस कम हो जाती है |
– कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर चटनी बना लें | एक -एक चम्मच की मात्रा में तीन बार इस चटनी के सेवन से पतले दस्त बंद हो जाते हैं |

पपीता के फायदे –
–  कच्चा पपीता एक मल रोधक तथा कफ, और वात को कुपित करने वाला होता है । किंतु पका फल खाने में मीठा, रुचिकर और पित्तनाशक भारी तथा सुस्वादिष्ट होता हैं। प्रकृतिक रूप से पके पपीते को खाने से पेट का दर्द, पेट के कीड़े भोजन के प्रति अरुचि, उदर शूल, आँतों में मल जमना, अजीर्ण (कब्ज) आदि रोग दूर हो जाते है। पपीते में आँतों में जमें मल को खरोंचकर बाहर निकालने की शक्ति होती है। पपीता आँखों की रोशनी को बढ़ाता है। जिन लोगों को रतौंधी की बीमारी हो उन्हें पपीता जरूर सेवन करना चाहिए। पपीता पाचन शक्ति मजबूत कर भूख बढ़ाता है।
– पपीते में विषैले पदार्थों को बाहर निकालने की शक्ति हैं। पपीता मूत्र संबंधी विकारों को निकालकर गुर्दें की सफाई करता है। इसके खाने से गुर्दें में विषैले तत्व इकट्ठे ही नहीं हो पाते हैं।
अनार के फायदे –
– दाँतों के मसूड़ों से खून आता हो तो अनार के फूलों के चूर्ण से मंजन करने से आराम मिलता है।
– सूखा अनारदाना पानी में भिगो दें, तीन—चार घंटे बाद इस जल को थोड़ा—थोड़ा मिश्री मिलाकर कई बार पीने से उल्टी, जलन, अधिक प्यास आदि रोग नष्ट होते हैं।
– अधिक प्यास लगने, जी मचलाने आदि में अनार के रस में आधा नींबू निचोड़कर पीयें।
– अनारदाना, सौंफ, धनिया तीनों बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, दो ग्राम चूर्ण में एक ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में चार बार सेवन करने से खूनी दस्त, खूनी आँव में आराम मिलता है।
– अनार के छिलके को उबालकर उसके पानी से घावों को धोने से घाव जल्दी भरता है।
अमरूद  के फायदे –
– अमरूद के पत्तों को पीसकर उसके रस को पीने से उदर में होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
– कुछ देर बाद उस पानी को छानकर पीने से मधुमेह या बहुमूत्रता से उत्पन्न प्यास दूर होती है।
– अमरूद को गरम रेत में भूनकर खाने से खाँसी में लाभ मिलता है।
– दन्त पीड़ा में अमरूद के पत्तों को फिटकरी के साथ मिलाकर कुल्ला करने से आराम मिलता है।
– अमरूद के पत्ते में पान की तरह कत्था लगाकर खाने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
केला के फायदे –
– पीलिया रोग में रोगी को कम से कम चार पके केले (बिना कार्बाइड से पका हुआ) नित्य खाने चाहिए।
– टायफाइड बुखार उतरने के बाद छोटी इलायची के चूर्ण के साथ रोगी को पका केला खिलाने से बुखार में आई दुर्बलता शीघ्र दूर हो जाती है।
– पेट में जलन हो तो पका केला खाना चाहिए।
– मुँह में छाले हों तो पका केला खाना चाहिए।
– दस्त लगने पर पका केला दही में मथकर खाना चाहिए।
संतरे  के फायदे –
– कब्ज , सूखा, दन्तरोग आदि में संतरे का रस लाभदायक है।
– संतरे का रस आँखो के लिये भी लाभदायक है।
– भूख न लगने पर संतरे के रस में सोंठ का चूर्ण मिलाकर नियमित पीने से भूख लगती है।
– संतरे के छिलकों को पीसकर नीबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे का रंग साफ होता है।
आम के फायदे –
आम का फल सबका बहुत प्रिय होता है और छोटे बड़े सभी इसे बहुत मन से खाते है। प्रस्तुत है आम के सभी औषधीय गुणों का वर्णन-
– अच्छे पके हुए मीठे देशी आमों का ताजा रस 250 से 350 मिलीलीटर तक, गाय का ताजा दूध 50 मिलीलीटर, अदरक का रस 1 चम्मच- तीनों को कांसे की थाली में अच्छी तरह फेट लें, लस्सी जैसा हो जाने पर धीरे-धीरे पी लें। 2-3 सप्ताह सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता, सिर पीड़ा, सिर का भारी होना, आंखों के आगे अंधेरा हो जाना आदि दूर होता है। यह गुर्दे के लिए भी लाभदायक है।
– पके आम को गर्म राख में भूनकर खाने से सूखी खांसी खत्म हो जाती है।
– दूध के साथ पका आम खाने से अच्छी नींद आती है।
– आम के रस में सेंधानमक तथा चीनी मिलाकर पीने से भूख बढ़ती है।
– 300 मिलीलीटर आम का जूस प्रतिदिन पीने से खून की कमी दूर होती है।
– आम की गुठली की गिरी (गुठली के अंदर का बीज) पीसकर मंजन करने से दांत के रोग तथा मसूढ़ों के रोग दूर हो जाते हैं।
– बच्चे को मिट्टी खाने की आदत हो तो आम की गुठली का चूर्ण ताजे पानी से देना लाभदायक है। गुठली को सेंककर सुपारी की तरह खाने से भी मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।
– मकड़ी के जहर पर कच्चे आम के अमचूर को पानी में मिलाकर लगाने से जहर का असर दूर हो जाता है।
– गुठली को पीसकर लगाने से अथवा अमचूर को पानी में पीसकर लगाने से छाले मिट जाते है।
– आम की गुठली की गिरी का एक चम्मच चूर्ण बवासीर तथा रक्तस्राव होने पर दिन में 3 बार प्रयोग करें।
– आम के पत्तों को जलाकर इसकी राख को जले हुए अंग पर लगायें। इससे जला हुआ अंग ठीक हो जाता है।
– गुठली की गिरी को थोड़े पानी के साथ पीसकर आग से जले हुए स्थान पर लगाने से तुरन्त शांति प्राप्त होती है।
– आम के बौर (आम के फूल) को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच दूध के साथ नियमित रूप से लें। इससे धातु की पुष्टि (गाढ़ा) होती है।
– आम की बौर (फल लगने से पहले निकलने वाले फूल) को रगड़ने से हाथों और पैरों की जलन समाप्त हो जाती है।
– 15 ग्राम शहद में लगभग 70 मिलीलीटर आम का रस रोजाना 3 हफ्ते तक पीने से तिल्ली की सूजन और घाव में लाभ मिलता है। इस दवा को सेवन करने वाले दिन में खटाई न खायें।
– जिस आम में रेशे हो वह भारी होता है। रेशेदार आम अधिक सुपाच्य, गुणकारी और कब्ज को दूर करने वाला होता है। आम चूसने के बाद दूध पीने से आंतों को बल मिलता है। आम पेट साफ करता है। इसमें पोषक और रुचिकारक दोनों गुण होते हैं। यह यकृत की निर्बलता तथा रक्ताल्पता (खून की कमी) को ठीक करता है। 70 मिलीलीटर मीठे आम का रस, 2 ग्राम सोंठ में मिलाकर सुबह पीने से पाचन-शक्ति बढ़ती है।
– आम के कोमल पत्तों का छाया में सुखाया हुआ चूर्ण 25 ग्राम की मात्रा में सेवन करना मधुमेह में उपयोगी है।
– छाया में सुखाए हुए आम के 1-1 ग्राम पत्तों को आधा किलो पानी में उबालें, चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पिलाने से कुछ ही दिनों में मधुमेह दूर हो जाता है।
– आम के 8-10 नये पत्तों को चबाकर खाने से मधुमेह पर नियंत्रण होता है।
– कच्चे आम के अमचूर को भिगोकर उसमें 2 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 चम्मच दिन में 2 बार लेने से सूखा रोग में आराम मिलता है।
– लगभग 10-15 ग्राम आम की चटनी को अजीर्ण रोग में रोगी को दिन में दो बार खाने को दें।
– 3-6 ग्राम आम की गुठली का चूर्ण अजीर्ण में दिन में 2 बार दें।
– आम की अन्त:छाल का रस दिन में 20-40 मिलीलीटर तक दो बार पिलायें। इससे बवासीर, रक्तप्रदर या खूनी दस्त में आराम होता है।
– गुठली की गिरी के 50-60 मिलीलीटर काढ़े में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से भयंकर प्यास शांत होती है।
– आम के फल को पानी में उबालकर या भूनकर इसका लेप बना लें और शरीर पर लेप करें इससे जलन में ठंडक मिलती है।
– आम की गुठलियों के तेल को लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा काले बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं। इससे बाल झड़ना व रूसी में भी लाभ होता है।
– आम के 50 ग्राम पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर चौथाई भाग शेष काढ़े में मधु मिलाकर धीरे-धीरे पीने से स्वरभंग में लाभ होता है।
– लीवर की कमजोरी में (जब पतले दस्त आते हो, भूख न लगती हो) 6 ग्राम आम के छाया में सूखे पत्तों को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर छानकर थोड़ा दूध मिलाकर सुबह पीने से लाभ होता है।
– गुठली की गिरी 10 ग्राम, बेलगिरी 10 ग्राम तथा मिश्री 10 ग्राम तीनों का चूर्णकर 3-6 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। गुठली की गिरी व आम का गोंद समभाग लेकर 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अतिसार मिटता है।
– 25 ग्राम आम के मुलायम पत्ते पीसकर एक गिलास पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी आधा न हो जाये और छानकर गर्म-गर्म दिन में दो बार पिलाने से अथवा कच्चे आम 20 ग्राम कूट कर दही के साथ सेवन करने से हैजा खत्म हो जाता है।
– नरम टहनी के पत्तों को पीसकर लगाने से बाल बड़े व काले होते हैं। पत्तों के साथ कच्चे आम के छिलकों को पीसकर तेल मिलाकर धूप में रख दें। इस तेल के लगाने से बालों का झड़ना रुक जाता है व बाल काले हो जाते हैं।
– आम के ताजे कोमल 10 पत्ते और 2-3 कालीमिर्च दोनों को पानी में पीसकर गोलियां बना लें। किसी भी दवा से बंद न होने वाले, उल्टी-दस्त इससे बंद हो जाते हैं।
– ताजे मीठे आमों के 50 मिलीलीटर ताजे रस में 20-25 ग्राम मीठा दही तथा 1 चम्मच शुंठी चूर्ण बुरककर दिन में 2-3 बार देने से कुछ ही दिन में पुरानी संग्रहणी (पेचिश) दूर होती है।
– कच्चे आम की गुठली (जिसमें जाली न पड़ी हो) का चूर्ण 60 ग्राम, जीरा, कालीमिर्च व सोंठ का चूर्ण 20-20 ग्राम, आम के पेड़ के गोंद का चूर्ण 5 ग्राम तथा अफीम का चूर्ण एक ग्राम इनको खरलकर, वस्त्र में छानकर बोतल में डॉट बंद कर सुरक्षित करें। 3-6 ग्राम तक आवश्यकतानुसार दिन में 3-4 बार सेवन करने से संग्रहणी, आम अतिसार, रक्तस्राव (खून का बहना) आदि का नाश होता है।
– आम के फूलों (बौर) का काढ़ा या चूर्ण सेवन करने से अथवा इनके चूर्ण में चौथाई भाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से अतिसार, प्रमेह, भूख बढ़ाने में लाभदायक है।
– आम के फूलों के 10-20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम खांड मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।
– आम के ताजे कोमल पत्ते तोड़ने से एक प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है इस द्रव पदार्थ को एंड़ी के फटे हिस्से में भर देने से तुरन्त लाभ होता है।
– आम के 10 पत्ते, जो पेड़ पर ही पककर पीले रंग के हो गये हो, लेकर 1 लीटर पानी में 1-2 ग्राम इलायची डालकर उबालें, जब पानी आधा शेष रह जाये तो उतारकर शक्कर और दूध मिलाकर चाय की तरह पिया करें। यह चाय शरीर के समस्त अवयवों को शक्ति प्रदान करती है।
– आम के फूलों के चूर्ण (5-10 ग्राम) को दूध के साथ लेने से स्तम्भन और कामशक्ति की वृद्धि होती है।
– कच्चे आम की गुठली का चूर्ण 250 से 500 मिलीग्राम तक दही या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सूत जैसे कृमि नष्ट हो जाते हैं।
– रोज सुबह मीठे आम चूसकर, ऊपर से सौंठ व छुहारे डालकर पकाये हुए दूध को पीने से पुरुषार्थ वृद्धि और शरीर पुष्ट होती है।
– आम को तोड़ते समय, आमफल की पीठ में जो गोंदयुक्त रस (चोपी) निकलती है, उसे दाद पर खुजलाकर लगा देने से फौरन छाला पड़ जाता है और फूटकर पानी निकल जाता है। इसे 2-3 बार लगाने से रोग से छुटकारा मिल जाता है।
– गरमी के दिनों में शरीर पर पसीने के कारण छोटी-छोटी फुन्सियां हो जाती हैं, इन पर कच्चे आम को धीमी अग्नि में भूनकर, गूदे का लेप करने से लाभ होता है।
– आम के ताजे पत्ते खूब चबायें और थूकते जायें। थोड़े दिन के निरंतर प्रयोग से हिलते दांत मजबूत हो जायेंगे तथा मसूढ़ों से रक्त गिरना बंद हो जायेगा।
शंखपुष्पी के फायदे –
– शंखपुष्पी की पत्ती और तना बुद्धिवर्धक माने जाते हैं सो, परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों को सदैव शंखपुष्पी को प्रयोग में लेते हुए अपनी बुद्धि का अधिकाधिक विकास करना चाहिए।
सफेद मूसली के फायदे –
– बलिष्ठ बनाये रखने हेतु मूसली अति आवश्यक समझी जाती है । चिकित्सकों की राय में, मूसली की जड़ यौनवर्धक, वीर्यवर्धक तथा शक्तिवर्धक होती है जिससे व्यक्ति का शारीरिक कष्ट भी छूमंतर हो जाता है।
मुलहठी के फायदे –
– मुलहठी की जड़ को सर्दी , खांसी, जुकाम, अल्सर जैसे रोगों के शमन हेतु अक्सर उपयोग में लाया जाता है।
चमेली के फायदे –
– मुंह के छाले की रूकावट को दूर करने में यह बहुत ही सक्षम है।
छुहारा के फायदे –
– लकवा और सीने के दर्द की शिकायत को दूर करने में भी सहायता करता है।
– भूख बढ़ाने के लिये छुहारे का गुदा निकाल कर दूध में पकाएं, उसे थोड़ी देर पकने के बाद ठंडा करके पीस लें वह दूध बहुत पौष्टिक होता है।
– छुहारा आमाशय को बल प्रदान करता है।
– छुहारे का सेवन नाड़ी के दर्द में भी आराम देता है।
– छुहारा के प्रयोग से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है। शरीर को शक्ति देने के लिये मेवों के साथ छुहारे का प्रयोग खासतौर पर किया जाता है।
– छुहारे दिल को शक्ति प्रदान करते हैं। यह शरीर में रक्त वृद्धि करते हैं।
– साइटिका रोग से पीड़ित लोगों को इससे विशेष लाभ होता है।
– इसके सेवन से दमे के रोगियों के फेफड़ों से बलगम आसानी से निकल जाता है।

सौंफ के फायदे –
– बेल का गूदा 1० ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है अतिसार में लाभ होता है।
– यदि आपको पेटदर्द होता है तो भूनी हुई सौंफ चबाइये, आराम मिलेगा। सौंफ की ठंडाई बनाकर पीजिए, इससे गर्मी शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।
– हाथ पाँव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट छान कर मिश्री मिलाकर खाना खाने के पश्चात् 5- 6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।
– सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें । इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आंखों की कमजोरी दूर होती है तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।
– सौंफ का अर्क दस ग्राम चाशनी मिलाकर लें। खांसी में तत्काल आराम मिलेगा।
सेंधा नमक के फायदे –
– हम रोजाना जो सब्जियाँ या दालें खाते हैं उनमें आजकल भरपूर मात्रा में DA, REA के रूप में रासायनिक खाद, कीटनाशक डाले जाते हैं। जिसके कारण यह विष हमारे शरीर में जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार हम साल भर में लगभग ७० ग्राम विष खा लेते हैं। सेंधा नमक जहर को कम करता है और थाइराइड, लकवा, मिर्गी आदि बीमारियों को रोकता है।
बथुआ का साग के फायदे –
– बथुआ का साग स्त्रियों के रूप सौन्दर्य को निखारने में अमृत के समान होता है।एक नवीनतम शोध के अनुसार बथुआ के साग में वैरोटीन नामक तैल तथा जीवशक्ति पाया जाता है। यह मूत्रल विकारों को दूर करके स्त्रियों के सौन्दर्य में निखार लाता है, फिगर को सुन्दर रूप देता है। प्रतिदिन एक कप बथुआ साग (जो कि बिना कीटनाशक का हो) के सूप को पीते रहने से स्त्रियों की सुन्दरता अस्सी वर्ष की आयु तक बनी रहती है।

सरसों का तेल के फायदे –
– सरसों के तेल की मालिश करने से शरीर के अन्दर से हानिकारक जीवाणुओं का नाश होता है और त्वचा के अन्दर रक्त संचार भी ठीक रहता है । तेल की मालिश करने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और इससे थकान और आलस्य भी दूर होता है। शरीर में चुस्ती—फुर्ती और तरोताजगी महसूस होती है।
– अधिक थकान होने पर पैरों के तलवों में भी तेल की मालिश करने से थकान दूर होती है तथा नींद अच्छी आती है । पैरों का फटना, और आंखों की रोशनी भी तेल मालिश से बढ़ती है।
सिंघाड़ा के फायदे –
– सिंघाड़ा थायराइड के लिए बहुत अच्छा है, सिंघाड़े में मौजूद आयोडीन, मैग्नीज जैसे मिनरल्स थायरॉइड और घेंघा रोग की रोकथाम में अहम भूमिका निभाते हैं।
– मान्यता है कि जिन महिलाओं का गर्भकाल पूरा होने से पहले ही गर्भ गिर जाता है उन्हें खूब सिंघाड़ा खाना चाहिए। इससे भ्रूण को पोषण मिलता है और मां की सेहत भी अच्छी रहती है जिससे गर्भपात नहीं होता है। गर्भवती महिलाओं को दूध के साथ सिंघाड़ा खाना चाहिए। खासतौर पर जिनका गर्भ सात महीने का हो चुका है उनके लिए यह बहुत ही लाभप्रद होता है। इसे खाने से ल्यूकोरिया नामक रोग भी ठीक हो जाता है। (सावधानियां:-एक स्वस्थ व्यक्ति को रोजाना 5-10 ग्राम ताजे सिंघाड़े खाने चाहिए। पाचन प्रणाली के लिहाज से सिंघाड़ा भारी होता है, इसलिए ज्यादा खाना नुकसानदायक भी हो सकता है। पेट में भारीपन व गैस बनने की शिकायत हो सकती है। सिंघाड़ा खाकर तुरंत पानी न पिएं। इससे पेट में दर्द हो सकता है। कब्ज हो तो सिंघाड़े न खाएं)
– इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है। सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है। सिंघाड़े के नियमित और उपयुक्त मात्र में सेवन से गर्भस्थ शिशु स्वस्थ व सुंदर होता है।
– सिंघाड़े में विटामिन ए और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो त्वचा की सेहत और खूबसूरती बरकरार रखने में बेहद मददगार है। इसे सलाद के रूप में सर्दियों में नियमित खाने से आपकी त्वचा निखरेगी और ड्राइनेस की समस्या नहीं होगी।
– लू लगने पर सिंघाड़े का चूर्ण ताजे पानी से लें।
– गर्मी के रोगी भी इसके चूर्ण को खाकर राहत पाते हैं।
– कच्चे सिंघाड़े में बहुत गुण रहते हैं। कुछ लोग इसे उबालकर खाते हैं। दोनों रूपों में यह स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है। सुपाच्य भी तो होता है।
– सूजन और दर्द में राहतः सिंघाड़ा सूजन और दर्द में मरहम का काम करता है। शरीर के किसी भी अंग में सूजन होने पर सिंघाड़े के छिलके को पीस कर लगाने से आराम मिलता है।
– यह एंटीऑक्सीडेंट का भी अच्छा स्रोत है। यह त्वचा की झुर्रियां कम करने में मदद करता है। यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों से त्वचा की रक्षा करता है।
– पेशाब के रोगियों के लिए सिंघाड़े का क्वाथ बहुत फायदा देता है।
– सिंघाड़ा की तासीर ठंडी होती है, इसलिए गर्मी से जुड़े रोगों में लाभकर होता है।
– प्रमेह के रोग में भी सिंघाड़ा आराम देने वाला है।
– सिंघाड़े को ग्रंथों में श्रृंगारक नाम दिया जाता है।
– यह विसर्प रोग में लेने पर हमें रोग मुक्त कर देता है।
– प्यास बुझाने का इसका गुण रोगों में बहुत राहत देता है।
– प्रमेह के रोगी भी सिंघाड़ा या श्रृंगारक से आराम पा लेते हैं।
– टांसिल्स होने पर भी सिंघाड़े का ताजा फल या बाद में चूर्ण के रूप में खाना ठीक रहता है। साथ ही गले के दूसरे रोग जैसे- घेंघा, तालुमूल प्रदाह, तुतलाहट आदि ठीक होता है।
– नींबू के रस में सूखे सिंघाड़े को दाद पर घिसकर लगाएँ। पहले तो कुछ जलन लगेगी, फिर ठंडक पड़ जाएगी। कुछ दिन इसे लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
– वजन बढ़ाने में सहायकः सिंघाड़े के पाउडर में मौजूद स्टार्च पतले लोगों के लिए वरदान साबित होती है। इसके नियमित सेवन से शरीर मोटा और शक्तिशाली बनता है।
– सिंघाड़े की रोटी खाने से रक्त- प्रदर ठीक हो जाता है।
– खून की कमी वाले रोगियों को सिंघाड़े के फल का सेवन खूब करना चाहिए।
– सिघांड़े के आटे को घी में सेंक ले | आटे के समभाग खजूर को मिक्सी में पीसकर उसमें मिला ले | हलका सा सेंककर बेर के आकार की गोलियाँ बना लें | २-४ गोलियाँ सुबह चूसकर खायें, थोड़ी देर बाद दूध पियें | इससे अतिशीघ्रता से रक्त की वृद्धी होती है | उत्साह, प्रसन्नता व वर्ण में निखार आता है | गर्भिणी माताएँ छठे महीने से यह प्रयोग शुरू करे | इससे गर्भ का पोषण व प्रसव के बाद दूध में वृद्धी होगी |
तिल के फायदे –
– मस्तिष्क के लिए लाजवाब है। इसमें लैसीथिन नामक पदार्थ होता है जो कि मस्तिष्क के लिए आवश्यक है । तिल का सेवन मस्तिष्क और स्नायुतंत्र के लिए बहुत लाभकारी है।
– कब्ज से निजात पाने के लिए काले तिल में गुड़ मिलाकर सुबह शाम 25 —25 ग्राम सेवन करें।
– यदि गठिया का दर्द सताए तो 150 ग्राम काले तिल में 1० ग्राम सौंठ, 25 ग्राम अखरोट की गिरी तथा 1०० ग्राम गुड़ मिलाकर रख लें। सुबह शाम 2०—2० ग्राम सेवन करें।
– यदि बच्चा बिस्तर गीला करता हो तो काले तिल से बने लडडू खिलाना चाहिए।
– शारीरिक कमजोरी महसूस होने पर 5०—5० ग्राम काला तिल और दालचीनी मिलाकर चूर्ण बना लें तथा एक—एक चम्मच सुबह शाम दूध से सेवन करें।
– हड्डियों से जुड़ी तमाम बीमारियों में तिल का सेवन हितकारी है।
– तिल का सेवन उच्च रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल में लाभदायक है।
– तिल का सेवन रक्त नलिकाआें को मजबूती तथा लचीलापन भी प्रदान करता है।
– अस्थमा के रोगियों के लिए तो यह विशेष लाभदायक है और उन्हें दौरे से राहत दिलाती है।
– यदि माइग्रेन की शिकायत हो तो नियमित रूप से तिल का सेवन करना चाहिए।
– तिल का तेल एक प्राकृतिक सनस्क्रीन का काम करता है त्वचा में जख्म या कटे होने पर तिल का तेल ठीक करने में मदद करता है । त्वचा की टैनिंग कम करने में मदद करता है।
शिमला मिर्च के फायदे –
– शिमला मिर्च को आदिवासी कोलेस्ट्रॉल की अचूक दवा मानते हैं। आधुनिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि शिमला मिर्च शरीर की मेटाबॉलिक क्रियाओं को सुनियोजित करके ट्रायग्लिसेराईड को काम करने में मदद करती है।
– शिमला मिर्च की सब्जी खाने से वजन कम होता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट और वसा कम मात्रा में पाये जाते हैं । इसलिए वह शरीर को फिट रखने में मददगार होती है।
जो लोग अक्सर शिमला मिर्च की सब्जी खाते हैं, उन्हें कमर दर्द, सायटिका और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याएं कम होती हैं। शिमला मिर्च में पाया जाने वाला प्रमुख रसायन केप्सायसिन दर्द निवारक माना जाता है। शिमला मिर्च में भरपूर मात्रा में, विटामीन ए, बी और सी पाए जाते हैं। इसलिए यह एक टॉनिक की तरह काम करता है।
– आधुनिक शोधों के अनुसार शिमला मिर्च में बीटा, करोटीन, ल्युटीन और जिएक्सेन्थिन और विटामिन सी जैसे महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते हैंं। शिमला मिर्च के लगातार सेवन से शरीर बीटा केरोटीन को रेटिनोल में परिवर्तित कर देता है। रेटिनोल वास्तव में विटामिन ए का ही एक रूप है। इन सभी रसायनो के संयुक्त प्रभाव से दिल से सम्बन्धित बीमारियों ओस्टियोआर्थरायटिस, ब्रोंकायटिस और अस्थमा जैसी समस्याओं में जबरदस्त फायदा होता है।
– शिमला मिर्च में लाइकोपिन भी पाया जाता है। यह तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्या को दूर करने में बहुत कारगर होता है। शिमला मिर्च उच्च रक्त चाप (हाई ब्लडप्रेशर) के रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद होती है।
शहतूत के फायदे –
– अधिक ताप के कारण गाढ़ा, पीला मूत्र आने लगे तो शहतूत के रस में मिश्री घोलकर पीने से राहत महसूस होती है। अधिक प्यास लगने पर शहतूत खाना और उसका रस पीना दोनों लाभ पहुंचाते हैं। शहतूत का शरबत ज्वर में पथ्य के रूप में दिया जाता है । यह शांति प्रदान करता है। शहतूत का शरबत खांसी, गले की खराश तथा टांसिल्स में भी लाभदायक होता है । कमजोरी महसूस होने पर शहतूत का रस और चुटकी भर प्रवाल भस्म लेने से ताकत आती है। शहतूत के पत्ते और जड़ की छाल को पीसकर प्रतिदिन एक चाय का मिश्री की चाशनी के साथ चाटने से पेट के कीड़े समाप्त होने लगते हैं। बच्चों के दांत पीसने की बीमारी में भी यह लाभदायक होता है।
लौंग के फायदे –
– तेज सिर दर्द हो तो लौंग को पीसकर थोडा पानी मिलाकर माथे पर लगाएं। सिर दर्द कम हो जाएगा। दांतों के दर्द में लौंग पाउडर से मालिश फायदेमंद है।
– 1 लौंग को हल्का भून लें और चूसते रहें। खांसी नजदीक फटकेगी तक नहीं।
– शरीर में कहीं भी फोडा फुंसी, नासूर हो गया हो तो लौंग- हल्दी पीसकर लगाएं।
– हिचकी आ रही है तो इलायची-लौंग को पानी में उबाल कर पी लें। यदि आराम न मिले तो प्रयोग को दो तीन बार दोहरा लें। निश्चित ही हिचकी आनी बंद हो जाएगी।


नीम के फायदे –
– नीम का उपयोग विषम ज्वर में भी किया जाता है। इसके पानी का उपयोग एनिमा व स्पंज बाथ में किया गया है। बुखार में एक काढ़ा तैयार किया जा सकता है। ज्वर उतारने के लिये नीम के इस काढ़े काे आयुर्वेदाचार्यों ने अमृत कहा है। काढ़ा तैयार करने के लिए 251 ग्राम पानी, तुलसी 1० पत्ते, काली मिर्च के 1० पत्ते, नींबू एक, नीम की पांच पत्तियां प्रयोग में लायी जाती हैं।
– नीम कुष्ठरोग, वात रोग, विष दोष, खांसी, ज्वर, रुधिर दोष, टी. बी. खुजली आदि दूर करने में सहायक है। प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग प्रमेह, मधुमेह, नेत्र रोग में भी किया जाता है। नीम में साधारण रूप से कीटाणुनाशक शक्ति है। नयी कोपलों का नित्य प्रति सेवन करने से शरीर स्वस्थ व प्रसन्न रहता है। नीम के तेल में मार्गेसिन नामक उड़नशील तत्व पाया जाता है। इस तेल की मालिश करने से गठिया व लकवा रोग में लाभ होता है। इसके बीज में 31 प्रतिशत तक एक तेल रहता है जो गहरे पीले रंग का कड़वा, तीखा व दुर्गन्धयुक्त होता है। इस तेल में ओलिड एसिड रहता है।
– सबसे पहले काली मिर्च को पीसकर 250 ग्राम पानी में डालकर नींबू का रस व नीम की पत्तियाँ डालकर अच्छी तरह उबाला जाता है। पानी आधा रहने पर उसको छानकर उस काढ़े को पीकर सो जाते हैं जिससे शरीर में पसीना निकलता है। इससे बुखार, खांसी व सिरदर्द में लाभ होता है। चर्म रोग में नीम का मरहम उपयोग किया जाता है। शरीर में घाव, चोट आदि ठीक हो जाते हैं। नीम के मरहम में नीम का रस व घी समान मात्रा में मिलाकर नीम का रस छीजकर केवल घी बचा रहता है और मरहम तैयार हो जाता है। महिलाओं के श्वेत प्रदर रोग में भी नीम लाभकारी है। इस रोग में नीम व बबूल की छाल का काढ़ा तैयार करके श्वेत प्रदर में उपयोग करने से अच्छा लाभ मिलता है।
– नीम की सूखी पत्तियां कपड़ों व अनाज में रखने से कपड़ा व अनाज खराब नहीं होता। नीम का वृक्ष आक्सीजन भी अधिक बनाता है अत: इससे पर्यावरण शुद्ध होता है तथा कुष्ठ, टी.बी. जैसे रोगी भी स्वस्थ हो जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में नीम बहुत उपयोगी वृक्ष माना जाता है।
जीरा के फायदे –
– जीरे के पानी का सीधा असर श्वास प्रणाली पर भी पड़ता है। चूकि जीरा प्राकृतिक तौर पर श्वास प्रणाली की जकडन दूर करता है इसलिए छाती में बलगम भी काफी मात्रा में बाहर निकल जाता है। खंखारने पर बलगम फैफड़ों और श्वास नलिका में अटकता नहीं है।
– जीरे में एंटीसेप्टिक प्रोपर्टी होने के कारण जुकाम और बुखार के लिए जिम्मेदार माइक्रोऑग्रेनिज्म को मार देता है। जीरे का पानी अनिद्रा दूर करता है और नियमित रूप से लेने वाले को गहरी नींद आती है । इससे मस्तिष्क की ताकत बढ़ती है।
– जीरा रात भर पानी में भिगोकर रखें। सुबह इसके पानी से धो लें। इससे बाल पुष्ट तो होंगे ही साथ ही जीरे में मौजूद विटामिन्स और मिनरल्स जड़ों को खोखला होने से बचाएंगे। बालों में रेशम सी चमक आ जाएगी जो किसी हेअर सीरम से या लोशन से हासिल नहीं हो पाएगी।
– किसी भी इन्सान को स्वस्थ रहने के लिए शरीर में लौह तत्व की उपस्थिति निहायत जरूरी है। इसलिए रक्तअल्पता के मरीजों को इसका उपयोग करना चाहिए।
– गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए जीरें का पानी एक वरदान के रूप मे सामने आता है इससे गर्भवती महिला एवं स्तनपान कराने वाली महिला को लौह तत्व की पर्याप्त आपूर्ति होती है। गर्भस्थ शिशु की वृद्धि सहज होती है।
ईख / गन्ने  के फायदे –
– पीलिया रोग के लिए इसका रस रामबाण है। इसे लेने से पीलिया रोगी को बहुतायत से पेशाब होता है और पीलिया रोग को शीघ्र नष्ट कर देता है।
– पुरानी ईख बल वीर्यवर्धक, रक्तपित्त और क्षय रोग नष्ट करने वाली होती है।
– ईख को रात में खुली जगह अथवा छत पर रखकर सुबह दांतों द्वारा चूसने से पीलिया रोग चार दिनों में ही लाभ होना प्रारंभ हो जाता है।
– गर्मी के दिनों में इसके रस में नमक और नींबू का रस मिलाकर ठंड़े के रूप में पीने से शरीर को पोष्टिकता प्रदान होती है। यह सर्वोत्तम पेय है।
– मूत्रावरोध को दूर कर देता है। दांतो के द्वारा इसको चूसने से सूखी खांसी, दमा, यक्ष्मा , कब्ज, दस्त, पेशाब, छाती की जलन, पसली का दर्द, तिल्ली, जिगर की सूजन, फैफड़ों में पुराने चिपके हुए कफ को बाहर निकालने वाली, रक्त—पित्त, पथरी, शरीर की थकावट, हाथ—पैर के तलुओं, आखों व पूरे शरीर में होने वाली जलन आदि रोगों को ठीक कर देता है।
पालक  के फायदे –
– पालक में लोहा काफी अधिक मात्रा में होता है अत: इसके सेवन से रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है। शरीर में खून की कमी पालक के सेवन से दूर हो जाती है। (नोट -पालक में आजकल बहुत ज्यादे कीटनाशक का प्रयोग होता है)
– रक्त शुद्ध होता है तथा हड्डियां मजबूत बन जाती हैं। पालक कैल्शियम और क्षारीय पदार्थों का जाना—माना स्त्रोत है। अत: इससे पेट से अम्लता दूर होती है और रक्त की क्षारीयता का स्तर बना रहता है।
– गर्भावस्था में पालक का प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। इसमें लोहे की बहुतायत होने के कारण बच्चा और मां दोनों की लोहे की आवश्यकताएं पूरी होती हैं।
– विटामिन ए की बहुतायत से मां, बच्चा दोनों को ही लाभ होता है। पालक के सेवन से मां का दूध भी बढ़ता है।
– पालक का पतला रस गोले के रस के साथ मिलाकर पीने से मूत्र खुलकर आता है। इसका सेवन दिन में दो बार करना चाहिए।
दालचीनी  के फायदे –
– वायरस जन्य रोगों का आक्रमण इसके प्रयोग से नहीं हो पाता। मौसमी बीमारियां— एन्फ्लुएन्जा, मलेरिया, गला बैठना आदि में दालचीनी को पानी में उबालकर उसमे चुटकी भर कालीमिर्च व मिश्री मिलाकर पीने से  ठीक हो जाता है।
– इसकी प्रकृति गर्म होती है। इसलिए गर्मी के दिनों में ज्यादा सेवन नहीं किया जाता।
– दालचीनी एंटीसेप्टिक, एंटीफगल, और एंटीवायरल होती है। यह पाचक रसों के स्राव को भी उत्तेजित करती है। दालचीनी वात, पित्तशामक है तथा जीवनी शक्तिवर्धक है।
– बार बार होने वाले अपच और बुखार के कारण थोड़ी थोड़ी देर में मुंह सूखता हो तो दालचीनी मुंह में रखकर चूसने से प्यास मिटती है।
– रात में एक गिलास दूध में पिसी दालचीनी मिलाकर पीने से शक्ति बढ़ती है। रक्त के सफेद कण बढ़ते हैं।
– दालचीनी से कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है।
– दालचीनी पाउडर से मंजन करना व पानी में इसे उबालकर कुल्ले करने से दांत के हर प्रकार के रोगों को दूर करता है। कहीं भी दर्द हो शरीर में, सिर में, सूजन, पेट दर्द, जोड़ों का दर्द हो तो आधा चम्मच दालचीनी, और पानी मिलाकर मालिश करना, लेप करना और एक कप गर्म पानी में चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर नित्य लेने से ठीक हो जाता है।
– इसी प्रकार ज्वर, टाईफाईड, मोतीझारा, डायबिटीज, कब्ज, स्मरणशक्ति व मानसिक तनाव आदि बिमारियों में भी दालचीनी काफी लाभकारी औषधी है।

दाल  के फायदे –
– अरहर के उबले हुए पत्तों को घाव पर बाँधने से घाव भरने में मदद मिलती है। खाने में छिलका रहित दाल का प्रयोग किया जाता है, जिससे कफ और खांसी में आराम मिलता है।
– दालों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, फास्फोरस और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है ।
– अरहर: यह पित्त, कफ और खून के विकार को समाप्त करती है। इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, विटामिन ए तथा बी तत्व पाए जाते हैं। इसका छिलका पशुओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
– उड़द: इसमें फास्फोरिस एसिड ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी होता है। इसकी चूनी का इस्तेमाल कई रोगों से उपचार के लिए किया जाता है।
– उड़द की दाल वात, कब्जनाशक और बलवर्धक होती है।
– फोड़ा होने पर उड़द की दाल की पीठी रखने से फायदा होता है।
– हड्डी में दर्द होने पर इसे पीस कर लेप लगाने से फायदा होता है।
– मूंग: इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा रेशे जैसे तत्व पाए जाते हैं ।
–यह कफ और पित्त के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद है। खाने के बाद यह आसानी से पच जाती है।
– मूंग की दाल आंखों की रोशनी बढ़ाती है। बुखार होने पर मूंग की दाल खाने से फायदा होता है। चावल के साथ तैयार खिचड़ी मरीजों के लिए पौष्टिक और सुपाच्य होती है।


चने के फायदे –
– मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें। अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है।
– गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
– चना और चने की दाल दोनों के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है। चना खाने से अनेक रोगों का इलाज हो जाता है। रोजाना 5० ग्राम चना खाना शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। चना बहुत सस्ता होता है, लेकिन इसी सस्ती चीज में कई बड़ी बीमारियों से लड़ने की क्षमता है। चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है। साथ ही, दिमाग भी तेज हो जाता है।
– चना पाचन शक्ति को संतुलित करता है। यह दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है।
– रोज चने खाने से खून साफ होता है । इससे त्वचा निखरती है, चेहरा चमकने लगता है।
– चने के आटे का अलवा कुछ दिन तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने वाले रोगों में और अस्थमा में फायदेमंद होता है।
– चने के आटे की बिना नमक की रोटी ४० से ६० दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे— दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती है।
– 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। समान मात्रा में जौं व चने का आटा मिलाकर रोटी बनाकर खाने से भी लाभ होता है।
– रात को चने की दाल भिगों दें। सुबह पीसकर चीनी व पानी मिलाकर पिएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है।
– हिचकी की समस्या ज्यादा परेशान कर रही हों तो चने के पौधो के सूखे पत्तों का ध्रूमपान करें। इससे कफ के कारण आने वाली हिचकी और आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
– चने की 1०० ग्राम दाल को दो गिलास पानी में भिगो दें। कुछ देर बाद दाल पानी में से निकालकर 1०० ग्राम गुड़ मिलाकर तक खाने से पीलिया के रोगी को राहत मिलती है।
– 25—3० ग्राम देसी काले चनों में 1० ग्राम त्रिफला चूर्ण मिला लें। चने को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो दें। उसके बाद किसी कपड़े में बांध कर अंकुरित कर लें। सुबह नाश्ते के रूप में इन्हें खूब चबा चबाकर खाएं। इससे कब्ज दूर हो जाएगी और खून बढ़ेगा।
– बुखार में ज्यादा पसीना आए तो भूने चने पीसकर उसे अजवाइन के तेल में मिलाएं। इस मिश्रण में थोड़ा वच पाउडर मिलाकर मालिश करने से आराम मिलता है।
– गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है।
– बार—बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने हुए चनों का सेवन करना चाहिए।
– गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से जुड़ी समस्या में राहत मिलती है । रोजाना भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।
– 5० ग्राम चने पानी में उबालकर मसल लें। यह पानी गर्म—गर्म पिएं। लगभग एक महिने तक सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
– भीगे हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है ।
– चने को पानी में भिगो दें । उसके बाद चना निकालकर पानी को पी जाएं कमजोरी की समस्या दूर हो जाती है।
– दस ग्राम चने की भीगी दाल और १० ग्राम शक्कर दोनों मिलाकर ४० दिनोंं तक खाने से पुरूषों की कमजोरी दूर हो जाती है।
तरबूज के फायदे –
– उन्माद या पागलपन में— इसके गूदे का रस और गौदुग्ध 250 ग्राम लेकर मिश्री 2० ग्राम मिला, श्वेत—बोतल में भर, चन्द्र के प्रकाश में रातभर किसी खूंटी पर लटकाकर प्रात: निराहार पिलावें। इस प्रकार 21 दिन पिलाने से लाभ होता है।
– खांसी पर— फल का पानी 1० ग्राम सोंठ—चूर्ण 3 ग्राम और मिश्री 1० ग्राम एकत्र कर थोड़े गरम कर पिलावें।
– कच्चा तरबूज फल— ग्राही, गुरु, शीतल, पित्त, शुक्र और दृष्टि शक्तिनाशक है।
– पका फल— उष्ण, क्षारयुक्त, पित्तकारक, कफवात नाशक, वृक्कश्मरी, कामला, पांडु, पित्तज अतिसार, आंत्रशोथ आदि में उपयोगी है।
– रक्तोद्वेग, पित्ताधिक्य, अम्लपित्त, तृष्णाधिक्य, पित्तज ज्वर, आंत्रिकसन्निपात—ज्वर आदि में पके फल का रस (पानी) पिलाते हैं।
– मूत्र—दाह, सुजाक आदि पर— पके फल के ऊपर चाकू से चोकोर गहरा चीर एक छोटा टुकड़ा निकाल, उसके भीतर शक्कर या मिश्री भरकर फिर उसमें वह निकाला हुआ टुक़ड़ा पूर्ववत् जमाकर रात को बाहर ओस में ऊपर खूंटी आदि में टांग देवें। प्रात: उसके अन्दर से गूदे को मसलकर छानकर पीने से मूत्रकृच्छ् दाह दूर होकर मूत्र साफ होता है। शिश्न के ऊपर हुए चट्टे , फुसिया दूर होती है। यदि सुजाक हो तो फल के पानी २५० ग्राम में जीरा और मिश्री का चूर्ण मिलाकर पिलाते रहें। अथवा—उक्तविधि से फल के भीतर शक्कर के स्थान में सोरा ४ ग्राम और मिश्री ५० ग्राम चूर्ण कर भर दें, और उसके बाद छिद्र को उसके काटे हुए टुकड़े से ही बन्द कर, रात को ओस में रख , प्रात: छानकर नित्य १ बार ७ दिन तक पिलावें । इससे अश्मरी में भी लाभ होता है।
– शिर:शूल (विशेषत: पैत्तिक हो) आदि पर— इसके गूदे को निचोड़, छानकर (कांच के पात्र में) उसमें थोड़ी मिश्री मिला पिलावें। उष्णता से होने वाले सिर दर्द, लू लगने, हृदय की धड़कन, मूच्र्छा आदि में दिन में 2-3 बार पिलाते हैं।
– दाद, छाजन (उकौत या चम्बल) और व्रण पर— फलों के ऊपर के हरे, मोटे छिलकों को सुखाकर आग में राख कर लें। यदि दाद या चम्बल गीली हो तो उस पर इसे बुरकते रहें, सूखी हो तो प्रथम उस पर कडुवा तेल चुपड़ कर इस राख को लगाया करें।
– व्रणों को पकाने के लिये—उक्त छिलकों को पानी में उबाल कर बांध देने से वे शीघ्र पक जाते हैं। सुपारी के अधिक खाने से कभी—कभी नशा सा चढ़ता व चक्कर आते हैं, ऐसी दशा में इसके खाने से लाभ होता है। नोट— फल का सेवन कफज या शीतप्रकृति वालों को, जिन्हें बार—बार जुखाम होता हो, तथा श्वास, हिक्का के रोगी को एवं मधुमेही , कुष्ठी या रक्तविकृति वाले को हानिकारक होता है। विशेषत: सायंकाल या रात्रि में इसे नहीं खाना चाहिए। इसकी हानि निवारणार्थ गुलकन्द का सेवन कराते हैं। इसका प्रतिनिधि पेठा है। बीज— शीतवीर्य, स्नेहन, पौष्टिक,  मूत्रल, पित्तशमन, कृमिघ्न, मस्तिष्क शक्तिवर्धक है, और कृशता, रक्तोद्वेग, पित्ताधिक्य, वृक्कदौर्बल्य, आमाशयशोथ, पित्तज कास एवं पित्तज ज्वर, उर:क्षत यक्ष्मा, मूत्रकृच्छ आदि में उपयोगी है। उक्त विकारों पर प्राय: बीजों की गिरी को ठंडाई की भाँति पीस छानकर पिलाते हैं। अनिद्रा, मस्तिक दौर्बल्य एवं दाह प्रशमनार्थ भी इन्हें पीसकर पिलाते लेप करते या नस्य देते हैं। पुष्टि के लिए— बीजों की गिरी 5० ग्राम और 5 ग्राम एकत्र पीसकर, हलुवा जैसा बना या केवल ठंडाई की भांति पीस छान कर नित्य सेवन करते हैं।
– उन्माद या मस्तिष्क विकृति पर —इसकी गिरी 1० ग्राम रात को पानी में भिगोंएँ, प्रात: पीसकर 2० ग्राम मिश्री, छोटी इलायची 4 नग के दानों का चूर्ण एकत्रकर मिलाकर गाय के मक्खन के साथ खिलाये।
– मूत्रकृच्छ् , अश्मरी पर—बीज १० ग्राम को पीसकर ठंडाई की भांति आधा सेर जल में घोल छानकर मिश्री मिला, पिलाते रहने से लाभ होता है। साधारण पथरी भर मूत्र द्वारा निकल जाती है। कृमि, सिरदर्द और ओष्ठ— पर— बीजों को थोड़ा आग पर सेंककर, मींगी निकाल कर खाने से उदर—कृमि नष्ट होते हैं। इसकी गिरी को खरल में खूब घोटकर सिर—दर्द पर लेप करते हैं। शीतकाल में या वात—प्रकोप से ओष्ठ फटकर कष्ट देते हों, तो गिरी को पानी में पीसकर रात्रि के समय लेप करने से लाभ होता है। रक्तचाप में वृद्धि पर नित्य 1०—2० ग्राम इसके बीजों को भुनकर खाते रहने से ब्लडप्रेशर घट जाता है। अथवा उत्तम गुड़ की चाशनी बना, उसमें भुने हुए बीज मिला लड्डू, बनाकर खाने से स्वाद के साथ—साथ लाभ की प्राप्ति भी होती है। नोट— बीज गिरी की मात्रा 5 ग्राम से 1० ग्राम तक।
जायफल के फायदे –
– जायफल तथा सौंठ बराबर मात्रा में लेकर जल में घिसकर सेवन करने से शीघ्र ही दस्त बंद हो जाते हैं |
– जायफल को पानी में घिसकर पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है |
– जायफल को पानी में घिसकर मस्तक पर लगाने से सर का दर्द ठीक होता है |
– जायफल को पीसकर कान के पीछे लेप करने से कान की सूजन में आराम मिलता है |
– जायफल के तेल में भिगोई हुई रुई के फाहे को दांतों में रखकर दबाने से दांत के दर्द में लाभ होता है |
– 5०० मिलीग्राम जायफल चूर्ण में मधु मिलकर सेवन करने से खांसी, सांस फूलना, भूख न लगना, क्षय रोग एवं सर्दी से होने वाले जुकाम में लाभ होता है |
– एक से दो बूँद जायफल तेल को बताशे में डालकर खिलाने से पेट दर्द में लाभ होता है |
– जायफल तथा जावित्री के बारीक चूर्ण को जल में घोलकर लेप करने से झाइयाँ दूर होती हैं |
जामुन के फायदे-
– जामुन शरीर की पाचन शक्ति को मजबूत करता है और पेट से संबंधित विकार कम करता है। जामुन को भुने हुए चूर्ण और काला नमक के साथ सेवन करने से एसिडिटी समाप्त होती है। मधुमेह के रोगी जामुन की गुठलियों को सुखाकर, पीसकर उनका सेवन करें। इससे शुगर का स्तर ठीक रहता है।

अजवाइन के फायदे-
– आधा चम्मच अजवाइन में दो काली मिर्च और एक चुटकी खाने वाला सोडा मिलाकर भोजन के बाद पानी के साथ लेने से वायु विकार दूर होता है। अजवाइन का चूर्ण नमक मिले गुनगुने जल में घोल कर उससे गरारे करें। गले की सूजन में लाभ होगा।
– सूखी खांसी से परेशान हों, तो अजवाइन को चबाने के बाद गर्म पानी पिएं। तेजपत्ते के साथ भी इसे सोने से पहले ले सकती हैं।
– पेट में किसी कारण से दर्द हो, तो गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच अजवाइन दो या तीन चुटकी नमक के साथ ले सकती हैं।
– कोल्ड हो या माइग्रेन से सिर में दर्द हो, तो अजवायन को पोटली में बांधकर बार — बार सूंघें।
– अजवाइन को गुड़ में मिलाकर सेवन करने से पित्त से छुटकारा मिलता है।
– दांतो में दर्द हो तो अजवाइन को पानी में डालकर कुछ देर उबालें । इस पानी से दिन में दो या तीन बार गार्गल करें।
– अजवाइन का बफारा देने से बच्चे को सर्दी और जुकाम से छुटकारा मिलता है।
– देशी खांड में अजवाइन के तेल की 5-6 बूंदें डालकर खाने से वमन, अजीर्ण और थकान में लाभ होता है।
– कब्ज , कफ, पेट दर्द, वायुगोला, सुखी खांसी, हैजा, अस्थमा तथा पथरी आदि अधिकांश रोगोपचार में अपनी अहम भूमिका निभाता है।
देशी गाय के घी के फायदे-
– देशी गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
– हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है।
– कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है।
– गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है।
– यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है।
– चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए, ये बुझती नहीं।
– बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है।
– घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
– दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती।
– एकदम देशी गाय का शुद्ध घी खाने से मोटापा कम होता है।
– घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है।
– वनस्पति घी कभी न खाए। ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है।
– घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए।  इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है।
–  गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
– गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
– (20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है।
– गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
– नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है।
– देशी गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
– गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
– गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
– हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है।
– हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
– गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
– गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है।
– गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
– अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
– हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
– गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
– जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हृदय मज़बूत होता है।
– देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
– घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।
– फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है। गाय के घी की झाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बाहर निकालने मे सहायक होता है।
– सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
– दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
– यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
– एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
– गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
– गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है।
– अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
देशी गाय के दूध  के फायदे-
– दूध में गुड़ या घी डालकर पिलाने से पेशाब करते समय होने वाली तकलीफ एवं मधुमेह में फायदा होता है।
– गरम सुहाता हुआ दूध २ चम्मच फीका ही लेकर धीरे—धीरे उसे पेट पर खाने से पहले मलें फिर एक घंटे तक विश्राम करने के बाद भोजन कर लें, तत्पश्चात् लघु शंका को जाना चाहिए। इससे आँतों में होने वाला शोथ दूर हो जाता है तथा आँते मजबूत हो जाती हैं।
– हमारी शारीरिक आवश्यकता के सभी प्रकार के तत्व हमारे दूध में मिल जाते हैं। गाय के दूध के पीने से थायराइड नहीं होता है क्योंकि गाय के दूध में थायराइडग्लाण्ड का अंश भी मिलता है। गौ दुग्ध निर्बल को सबल तथा रोगी को नीरोगी बनाने में सबसे उत्तम है।
– जो लोग शुद्ध शाकाहारी हैं, उन्हें जितने प्रोटीन की जरूरत है, वह उनको दूध और घी के सिवाय किसी अन्य वस्तु से नहीं मिल सकती।
– दूध में  में शक्कर मिलाकर या घी मिलाकर नाक में टपकाने से नक्सीर बंद हो जाती है।
– दूध की मलाई में चीनी और इलायची मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है।
– भोजन के पश्चात् मीठा दूध पीने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।
– गाय के दूध का खोआ खाने से, बादाम की पिसी हुई गिरी दूध में डालकर खोआ बनाकर खाने से आधासीस या आधे सिर में होने वाले दर्द में फायदा करता है।
– पाव भर दूध में 5० ग्राम खसखस के दाने एवं शक्कर डालकर उबालें। कुछ देर बाद छान लें। शाम समय यह दूध पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है और नींद आराम से आ जाती है।
– लोहे के बर्तन में गर्म किया हुआ दूध 7 दिन तक पथ्य के साथ पीने से पाण्डु रोग तथा संग्रहणी में लाभ करता है।
– दूध, घी, चासनी पीने से शरीर में बल की वृद्धि होती है। बल बढ़ाने वाला, हल्का, ठण्डा, अमृत के समान दीपन—पाचन होता है। दिन के प्रारम्भ में पीया हुआ दूध वीर्य बढ़ाने वाला पौष्टिक और अग्नि बढ़ाने वाला होता है। दिन के उत्तरार्ध (सांय) में दिया हुआ दूध बलकारक, कफ नाशक, पित्त—हारी, टी.वी. रोग को दूर करने वाला, वृद्धों में यौवन का संचार करने वाला होता है।
भैंस का दूध –
– अनिद्रा को दूर करने में श्रेष्ठतम होता है।
– यह अधिक चिकनाई युक्त होता है अत: मोटापा बढ़ाने में उपयोगी होता है।
– नेत्रों के लिए हानिकारक होता है ।
गुडहल (फूल) के फायदे –
– गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं।
– अगर गुडहल को गरम पानी के साथ या फिर उबाल कर फिर हर्बल टी के जैसे पिया जाए तो यह हाई ब्लड प्रेशर को कम करेगा और बढे कोलेस्ट्रॉल को घटाएगा क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता है।
– कई गुडहल के फूल हैं जो कि अलग-अलग रंगों में पाये जाते हैं जैसे, लाल, सफेद , गुलाबी, पीला और बैगनी आदि। यह  लाल फूल की बात हो रही है जिसका इस्तेमाल खाने- पीने या दवाओं लिए किया जाता है।
– इससे कॉलेस्ट्रॉल, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और गले के संक्रमण जैसे रोगों का इलाज किया जाता है। यह विटामिन सी, कैल्शियम, वसा, फाइबर, आयरन का बढिया स्रोत है। गुडहल के ताजे फूलों को पीसकर लगाने से बालों का रंग सुंदर हो जाता है। मुंह के छाले में गुडहल के पते चबाने से लाभ होता है। डायटिंग करने वाले या गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं।
– गुडहल की चाय भी बनती है। जी हां, गुडहल की चाय एक स्वास्थ्य हर्बल टी है। गुडहल से बनी चाय को प्रयोग सर्दी-जुखाम और बुखार आदि को ठीक करने के लिये प्रयोग की जाती है।
– गुड़हल के फूल का अर्क दिल के लिए फायदेमंद है ।
– विज्ञानियों के मुताबिक चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि गुड़हल का अर्क कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक है। इसलिए यह इनसानों पर भी कारगर होगा।
– गुडहल का फूल काफी पौष्टिक होता है क्योंकि इसमें विटामिन सी, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट होता है। यह पौष्टिक तत्व सांस संबन्धी तकलीफों को दूर करते हैं। यहां तक की गले के दर्द को और कफ को भी हर्बल टी सही कर देती है।
– गुडहल के फूलों का असर बालों को स्वस्थ्य बनाने के लिये भी होता है। इसे पानी में उबाला जाता है और फिर लगाया जाता है जिससे बालों का झड़ना रुक जाता है। यह एक आयुर्वेद उपचार है। इसका प्रयोग केश तेल बनाने मे भी किया जाता है।
– गुडहल के पत्ते तथा फूलों को सुखाकर पीस लें। इस पावडर की एक चम्मच मात्रा को एक चम्मच मिश्री के साथ पानी से लेते रहने से स्मरण शक्ति तथा स्नायुविक शक्ति बढाती है।
– गुडहल के फूलों को सुखाकर बनाया गया पावडर दूध के साथ एक एक चम्मच लेते रहने से रक्त की कमी दूर होती है | यदि चेहरे पर बहुत मुंहसे हो गए हैं तो लाल गुडहल की पत्तियों को पानी में उबाल कर पीस लें और उसमें शहद मिला कर त्वचा पर लगाए |
खरबूजा के फायदे –
इसमें मौजूद द्रव से शरीर को ठंडक तो मिलती ही है, हृदय में जलन जैसी शिकायत भी दूर हो जाती हैं। नियमित रूप से खरबूजे का सेवन करने वालों की किडनी स्वस्थ बनी रहती है. साथ ही, यह शरीर का वजन कम करने में भी मददगार है।
– खरबूजा एंटी ऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है इसलिए खरबूजा खाने वालों को दिल की बीमारियां और कैंसर होने की आशंका कम रहती है।
– सरल शब्दों में कह दिया जाता है कि खरबूजे में तो पानी ही होता है लेकिन 95 फीसद पानी समेटे हुए खरबूजे में वे विटामिन और मिनरल्स भी मौजूद होते हैं जिनके चलते खरबूजे से शरीर को कई तरह के फायदे होते हैं।
– वजह यह है कि खरबूजे में शुगर और कैलोरी की मात्रा ज्यादा नहीं पायी जाती. यह एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में विटामिन का अच्छा स्रोत है इसलिए खरबूजा खाने वालों को दिल की बीमारियां और कैंसर होने की आशंका कम रहती है।
– इसमें विटामिन ए मौजूद रहने के चलते यह हमारी त्वचा को सेहतमंद रखने में भी सहायक है।
– खरबूजा लंग कैंसर से हमारे शरीर की रक्षा करने में मदद कर सकता है. साथ ही, इसमें मौजूद विटामिन सी और बिटा- कैरोटेन मिलकर कैंसर रोकने में सहायक हो सकते हैं।
– इसे गर्मी के मौसम का परफेक्ट फ्रूट माना गया है। इसमें मौजूद पानी की ज्यादा मात्रा शरीर में पानी की कमी की भरपाई करता है इसी वजह से हमारा शरीर गर्मियों में पसीने के रूप में शरीर से निकले पानी की भरपाई तुरंत कर लेता है।
– इस मौसम में खरबूजा शरीर की गर्मी और उससे जुड़ी बीमारियों को रोक देता है अगर आप नियमित रूप से अपने शरीर में मौजूद कैलोरी को जानने के आदी हैं तो रोज खरबूजे खाइए। वजन कम करने की इच्छा वालों के लिए खरबूजा बहुत अनुकूल फल है क्योंकि इसमें काफी मात्रा में कैलोरी या शुगर मौजूद होती है इसलिए खरबूजे को काफी उम्दा फल समझना चाहिए। इसके गूदे में मौजूद नारंगी रंग के रेशे या फाइबर काफी मुलायम होते हैं। जिन्हें कब्जियत की शिकायत रहती है, वे खरबूजा खाएं, तो इससे फायदा होता है।
– खरबूजे में उच्च स्तर का बेटाकैरोटेन, फोलिक एसिड, पोटैशियम, विटामिन सी और ए मौजूद होते हैं इसलिए अगर आप सेहतमंद और जवां दिखना चाहते हैं तो अपने दैनिक आहार में खरबूजे को शामिल करना मत भूलिएगा।
– खरबूजे में मौजूद पोटैशियम शरीर से सोडियम को निकालने का काम करता है जिससे हाई ब्लडप्रेशर को लो करने में मदद मिलती है। पीरियड के दौरान महिलाओं को खरबूजा खाते रहना चाहिए क्योंकि यह हेवी फ्लो और क्लॉट्स को कम कर देता है। थकान में भी यह राहत देता है साथ ही, यह नींद ना आने की बीमारी को भी भगाता है।
केला के फायदे –
–  (बिना कार्बाइड से पका हुआ)  केला अनेक बीमारियों की औषधि भी है। दिल के मरीजों के लिए यह काफी फायदेमन्द है क्योंकि इसमें मैग्नीशियम काफी मात्रा में प्राप्त होता है। केले में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, लोहा तथा तांबा पर्याप्त मात्रा में रहते हैं। रक्त के निर्माण में मैग्नीशियम, लोहा तथा तांबा बहुत ही सक्रिय काम करते हैं। इनसे बना हुआ रक्त ऑक्सीजन को स्नायुओं तक पहुंचाने में बहुत सहायक होता है, इसलिए रक्त निर्माण एवं रक्तशोध के रूप में केले का बहुत महत्व है।
– अल्सर के रोगियों के लिए भी केला रामबाण औषधि है। ऐसे रोगियों को कच्चा केला लाभ पहुंचाता है। दही और चीनी के साथ पका हुआ केला खाने से पेट की जलन मिटती है। पेट सम्बन्धी सभी रोग इससे दूर हो जाते हैं। जीभ के छालों के लिए भी केला अत्यन्त लाभप्रद है। प्रतिदिन सुबह दही के साथ केला खाने से छाले मिटते हैं। सामान्य व्यक्ति भी प्रतिदिन केले का सेवन करे तो कई रोगों से बच सकता है।
– यदि अन्य कारणों से बार—बार पेशाब आने लगता है । इसे ठीक करने के लिए एक पके केले के साथ दो ग्राम विदारीकन्द का चूर्ण तथा दो ग्राम शतावरी का चूर्ण खाकर ऊपर से दूध पी लेना अत्यन्त लाभदायक होता है। कच्चे केले को काटकर धूप में सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर देशी शक्कर के साथ पांच ग्राम की मात्रा में लेकर ऊपर से दही की लस्सी पी लेने से ‘सुजाक’ की बीमारी समाप्त हो जाती है।
– केला खूब पका तथा तुरन्त पेड़ से तोड़ा हुआ कभी नहीं खाना चाहिए। पेट भर केला खाना हानि पहुंचाता है। केले का अधिक उपयोग कफ कारक होता है। केले के साथ दही नहीं खाना चाहिए। अधपका केला भी नहीं खाना चाहिए कृत्रिम रूप से पकाये गये केले के सेवन से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है तथा हृदय एवं नाड़ी की गति तेज हो जाती है।
 काली मिर्च के फायदे –
– आधा चम्मच घी, आधा चम्मच पिसी हुई कालीमिर्च और आधा चम्मच मिश्री इन तीनों को मिलाकर सुबह घोट लें। आंखों की कमजोरी दूर होती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।
– कालीमिर्च को उबालकर उसके पानी से कुल्ला करने से मसूडों का फूलना रुक जाता है । मसूड़े स्वस्थ तथा मजबूत होते हैं।
– मक्खियों के बचाव के लिए किसी बर्तन में एक चम्मच मलाई व आधा चम्मच काली मिर्च मिलाकर रख देने से मक्खियां भागने लगेंगी।
– रात को आधा चम्मच पिसी काली मिर्च एक कप दूध में डालकर उबालें। इस तरह तीन दिन तक बनाकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
– मिश्री और काली मिर्च चबाने व चूसने से बैठा गला ठीक हो जाता है।
– काली मिर्च को पानी में घिसकर बालतोड़ वाले स्थान पर लगाने से बालतोड़ ठीक हो जाता है।
– पाचन क्रिया को ठीक करने के लिए काली मिर्च व सेंधा नमक पीस कर भूनी अदरक के बारीक टुकड़ों के साथ मिलाकर खाएं।
– काली मिर्च व तुलसी की पत्तियों को बराबर पीसकर दांतों के नीचे दबाने से व मंजन की तरह मलने से दांतों में लाभ होता है।
– गैस की शिकायत होने पर एक प्याले पानी में आधा चम्मच नींबू का रस डालकर आधी चम्मच काली मिर्च का चूर्ण और काला नमक मिलाकर नियमित कुछ दिनों तक पियें।
करेला के फायदे –
– छोटे करेले में लौह तत्व अधिक होता है। करेले के कुछ उपयोग नीचे दिये जा रहे हैं। :— मधुमेह के रोगियों के लिए करेला विशेष हितकारी है। प्रतिदिन सुबह करेले का रस पीने से मधुमेह में लाभ मिलता है। 50 ग्रा. करेले का रस कुछ दिन लगातार पीने से रक्त साफ होता है और रक्तविकार से छुटकारा मिलता है|
– करेला, वात, पित्त विकार, पाण्डु, प्रमेह एवं मिर्गीनाशक होता है। बड़े करेले के सेवन से प्रमेह, पीलिया और अफारा में लाभ मिलता है। छोटा करेला बड़े करेले की तुलना में ज्यादा गुणकारी होता है।
– करेला ज्वर , पित्त, कफ, रूधिर विकार, पाण्डुरोग, प्रमेह और मिर्गी रोग का नाश भी करता है। करेली के गुण भी करेले के समान हैं। करेले का साग उत्तम पथ्य है। यह आमवात, वातरक्त, यकृत, प्लीहा, वृद्धि एवं जीर्ण त्वचा रोग में लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ‘‘ए’’ अधिक मात्रा में होता है। इसमें लोहा, फास्फोरस तथा कम मात्रा में विटामीन ‘सी’ भी पाया जाता है।
– इसके पत्ते का रस गर्म पानी के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
– करेले के पत्ते का रस मालिश करने से पैरों की जलन मिटती है।
– करेले का फूल पीसकर सेंधा नमक मिलाकर व्रण शोध पर बांधने से लाभ मिलता है।
– करेले का रस एक कप पीने से कब्ज मिटता है।
– करेले के पत्ते के 5० ग्राम रस में थोड़ा सा हींग मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर होता है और मूत्रघात दूर हो जाता है।
– करेले की सब्जी खाने तथा दो करेले का रस लगातार कुछ दिन पीने से वृक्क और मूत्राशय की पथरी टूट कर पेशाब के साथ निकल जाती है।
– पीलिया होने पर एक करेला पानी में पीसकर सुबह—शाम पीने से लाभ मिलता है।
– करेली के पत्तों या फल का रस शक्कर मिलाकर एक चम्मच लेने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
– करेली तीन पत्तों के साथ तीन काली मिर्च पीसकर पीने से मलेरिया का बुखार मिटता है। करेली के पत्तों का रस शरीर पर मलना भी लाभदायक होता है।
बादाम के फायदे –
– बादाम हृदय रोगियों की आरटरीज को स्वस्थ रखता है। यह एलडीएल को कम कर एचडीएल को बढ़ाता है। बादाम का फाइवर घुलनशील होने के कारण कोलेस्ट्रोल को कम करता है। बादाम में निहित कैल्शियम और मैग्नीशियम हृदय की धड़कन को नियन्त्रित कर हमारे कार्डियोवास्कुलर सिस्टम को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। बादाम रोगन त्वचा तथा बालों के लिए उत्तम टानिक होता है। इसके नियमित प्रयोग से बाल काले और चमकदार रहते हैं तथा त्वचा में निखार आता है।
– यह प्रोटीन, विटामिन ए, बी काम्पलेक्स, ई, फौलिक एसिड, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, कपूर,फाइवर, मैग्नीशियम, पोटाशियम अनेको न्यूट्रिएटस से भरपूर है। इसमे सेचुरेटिड वसा अधिक होती है जो हमारे शरीर के लिये लाभप्रद मानी जाती है। बादाम के नियमित सेवन से मस्तिष्क के स्नायु चुस्त बने रहते हैं और शरीर में यह एन्टी आक्सीडेन्ट का काम करता है। बादाम बच्चों, जवान और बड़ों के लिये उत्तम खाद्य पदार्थ है।
– बादाम में निहित प्रोटीन की तुलना सोयाबीन से की जाती है इसलिए यह बढ़ते बच्चों के शारीरिक विकास और मानसिक शक्ति के लिए बहुत उचित होता है। बच्चों को शहद में भीगे बादाम दिए जा सकते हैं जो बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में मदद करते हैं।
– जवां आदमी के लिए नियमित बादाम का सेवन उसकी मांसपेशियों को सुदृढ़ बनाता है और शारीरिक सहनशक्ति को भी बढ़ाता है।
– बादाम को छिलके के साथ खाने से कब्ज होती है और छिलका उतार कर खाने से कब्ज दूर होती है। पुरानी कब्ज होने पर गर्म दूध में थोड़ा बादाम रोगन मिलाकर पीना चाहिए।
– बादाम में उचित आयरन होने के कारण यह मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों में रक्त संचार को बढ़ाता है जिससे बुढ़ापे में कई रोगों से दूर रहते हैं। रात को सोते समय चार छिलका उतरे बादाम, काली मिर्च और शहद का सर्दियों में नियमित सेवन करने से सर्दी के कई रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
– बादाम के नियमित सेवन से मस्तिष्क में रक्त संचार सुचारु रूप से कार्य करता है। बादाम का केल्शियम दिमागी नसों को सहनशील बनाता है। इसमें निहित विटामिन बी—1, बी—12, और ई मस्तिष्क की कोशिकाओं और स्नायु तंत्र को शक्ति प्रदान करता है।
– बादाम उच्च कैलोरी खाद्य होने के कारण इसका प्रयोग सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। बहुत अधिक सेवन नुकसान भी पहुंचा सकता है।
– बादाम का छिलका उतार कर ही लेना चाहिए। सेवन करने से पहले इसे पानी में तीन चार घंटे भिगो कर रखना चाहिए।
– बादाम को अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए ताकि पचने में आसानी रहे।
– एक दिन में 1० बादाम से अधिक का सेवन नहीं करना चाहिए वैसे प्रतिदिन 4—5 बादाम की गिरी लेना ही हितकर होता है।

मेथी दाना के फायदे –
– मेथी के प्रयोग से गले की खरास भी दूर होती है एवं मेथी से तैयार काफी में केफीन के हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं जिस प्रकार हम फ्लश सिस्टम को लेट्रीन ब्रुश से रगड़कर साफ करते हैं ठीक उसी प्रकार मेथीदाना हमारे पेट में जाकर गलेगा, फूलेगा एवं चिकनाई के कारण हमारे पेट की आँतों को रगड़—रगड़कर जमे हुए मल को निकालेगा एवं मल गुठलियाँ भी नहीं बनने देगा। मेथी दाना हमारे पेट को साफ करके कब्ज को दूर करेगा।
– मेथी दाना एक पौष्टिक खाद्य, स्फूर्तिप्रदायक एवं रक्त शोधक टॉनिक है। मेथीदाना पाचन क्रिया में लाभदायक है। मेथी की चाय तेज बुखार में राहत देती है ताजी मेथी के बने पेस्ट को लगाने से मुहाँसे दूर होते हैं एवं फोड़े—फुन्सी पर पुल्टिश बाँधने से लाभ होता है। मेथी के ताजे पत्तों को पीसकर सिर पर लगाने से बाल मुलायम होते हैं। रात को सोने के पूर्व पत्तों का पेस्ट चेहरे पर लगाने से चेहरे का रंग साफ होता है।
– मेथी में फॉस्फोरस, लेसोटिन एवं एलबुमिन, आयरन व कैल्सियम पाया जाता है। मेथी में कैल्सियम के कारण इसके सेवन से महिलाओं के स्तन में दूध की मात्रा बढ़ती है।
मेथीदाना हमारे शरीर के अन्दर के किसी भी भाग की टूटी हुई हड्डी तक को जोड़ने की सामर्थ्य रखता है एवं हाथ—पैर के एक—एक जोड़ ठीक करता है। मेथीदाना का नित्य प्रतिदिन सेवन करने वाले व्यक्ति को सौ साल तक भी निम्न प्रकार के रोग नहीं होंगे, – लकवा, पोलियो, निम्न एवं उच्च रक्तचाप, शुगर, गठियावात, गैस की बीमारी, हड्डी के बुखार, बवासीर एवं जोड़ों का दर्द इत्यादि ।
– तेल मूंगफली, सरसों का जितना तेल लें उसका चौथाई उसमें मेथीदाना मिलाकर कढ़ाई में डालकर आग के ऊपर गर्म करें मेथीदाने काले हो जाने पर उसे नीचे उतार लें। मेथीदाना बाहर निकालकर तेल को छानकर रखें। इस तेल की नियमित मालिश करने से शरीर की बादी में बहुत लाभ होगा।
– रात को ठीक सोने से पहले एक चाय का चम्मच (मीडियम साइज) कच्चा साबुत मेथीदाना मुँह में रखकर पानी से निगल जाइये ठीक उसी प्रकार सुबह शौच आदि स्नान, मंजन से निपटकर पुन: एक चम्मच मेथी का प्रयोग करें इसके बाद अपने दैनिक कार्य करें। मेथीदाना अन्न नहीं होता।
अमरूद के फायदे –
– अमरूद को मिश्री में मिलाकर दो या तीन दिन में खाने से पतले दस्त ठीक होते हैं।
– यदि सरदर्द हो तो सूर्योदय से पूर्व कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर लेप करें।
– अमरूद के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पीने से अनेक रोग दूर होते हैं।
– अमरूद विटामिन ‘सी’ पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है। विटामिन ‘सी’ छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ—साथ यह मात्रा बढ़ती जाती हैं। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है। छह से बारह प्रतिशत भाग में बीज होते हैं। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ—साथ अनेक गुणों से भरा होता है। इसके द्वारा कई रोगों का इलाज होता है।
– दांत दर्द में इसके पत्ते को चबाने और उबाल कर कुल्ला करने से आराम मिलता है।
– यह कब्ज को दूर करता है।
– अमरूद को बालू में भूनकर खाने से खांसी दूर होती है।
– पत्ते में कत्था मिलाकर लगाने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
– बवासीर का रोगी यदि रोज अमरूद खाए तो मस्सों को आराम मिलता है । खाली पेट अमरूद खायें। अधिक लाभ होगा । जिसे बहुत कब्ज रहता हो, उसे रोज अमरूद खाने चाहिए| अमरूद की कोमल पत्तियां लेकर धोकर पीसें। फिर पानी में मिलायें, छाने व पी लें । पेट दर्द में आराम मिलेगा ।
मिट्टी के फायदे –
– तेज ज्वर होने पर पेट एवं सिर पर मिट्टी बांधने से तेज बुखार एक दो घण्टे में कम हो जाता है।
– जोड़ों के दर्द पर मिट्टी लगाने से आराम मिलता है।
– काली मिट्टी घाव, दाह, रक्त विकार, प्रदर— (सफेद पानी) कफ एवं पित्त को मिटाती है। मिट्टी कई प्रकार के रोगों का उपचार करने में प्रयुक्त की जाती है। यह अतिसार, सिरदर्द , आंखों में दर्द, कब्ज, ज्वर, पेट दर्द, पेचिश, बवासीर, जोड़ों के दर्द, प्रदर, प्रमेह आदि रोगों में हितकारी है।
– शरीर में कहीं भी पेट, छाती, गला, कान, कनपटी, मूत्राशय, जिगर आदि में दर्द या सूजन होने पर मिट्टी को गीला करके रोेटी सी बनाकर रख देना चाहिए। इससे आशातीत लाभ होता है। इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी ठीक दर्द वाले स्थान पर ही रखी जाए। रोगी की दशा के अनुसार 2-4 घन्टे तक इस प्रकार की पुल्टिस बांधे रख सकते हैं। यदि लगातार रखने से मिट्टी गरम हो जाए तो उसे बदल देना चाहिए।
– फोड़े, फुन्सी, घाव, जलने आदि पर या शरीर का कोई हिस्सा जल गया हो तो सादी, चिकनी मिट्टी को गीली करके घाव पर रोटी सी बनाकर रख देनी चाहिए। यदि घाव गहरा हो तो घाव में मिट्टी लगाकर उस पर कपड़ा बांध देना चाहिए। इसे ‘पुल्टिस’ बांधना कहते हैं। इस से घाव तेजी से भरने लगता है। मिट्टी को बांधने से पहले बारीक छलनी से छान लें तो यथोचित होगा। छलनी से छानी हुई बारीक साफ मिट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर आटे की तरह गूंथकर मरहम सा गाढ़ा बना लेना चाहिए। तत्पश्चात् ही घाव आदि में भरकर पुल्टिस बांध देनी चाहिए।
– चर्म रोगों में भी उपरोक्तानुसार मिट्टी की पुल्टिस दिन में दो बार दो—दो घण्टे तक बांधने से लाभ होता है। जलने पर भी मिट्टी बांधने से जलन कम हो जाती है। फोड़े – फुन्सियों, खुजली, दाद आदि सभी में मिट्टी बांधने से लाभ होता है।
– दांत का दर्द हो तो बाहर दुखती जगह पर गाल या जबड़े पर मिट्टी की पुल्टिस बांधनी चाहिए। इस प्रकार मिट्टी एक प्रकार से मानव के लिए प्रकृति की अनुपम देन है। मिट्टी में शरीर में गर्मी उत्पन्न करने वाले रोगों को शान्त करने की अपूर्ण क्षमता है। शरीर को निरोगी एवं स्वस्थ रखने के लिए मिट्टी से स्नान करना बेहद बढ़िया है। मिट्टी को विषहरण रखने की शक्ति से परिपूर्ण माना गया है।
अखरोट के फायदे –
– अखरोट के साथ कुछ बादाम भूनकर खाने व इसके ऊपर दूध पीने से वृद्धों को बहुत फायदा मिलता है।
– अखरोट कफ बढ़ाता है। इसलिए अखरोट चार से ज्यादा न खाएं।
– बच्चे को बहुत ज्यादा कृमि हो गई हो तो उसे रोज एक अखरोट की गिरी खिलाएं। इससे कृमि बाहर आ जाते हैं।
– अखरोट की गिरी को बारीक पीस लें। रोज सुबह शाम ठंडे पानी के साथ लगातार 15 दिनों तक एक—एक चम्मच लें पथरी मूत्र मार्ग से बाहर आ जाती है।
– अखरोट नर्वस सिस्टम को फायदा व दिमाग को तरावट पहुँचाता है।
सेब के फायदे (बिना कीटनाशक वाला) –
यूनिवर्सिटी ऑफ मेसाचुएट्स लावेल में किये गये एक अध्ययन के अनुसार सेब या सेब का जूस बच्चों व बुजुर्गों के लिए बेहतर आहार साबित हो सकता है । अध्ययन में यह पता चला है कि स्नायु अंतरण से प्रभावित याददाश्त के लिए सेब का जूस काफी लाभदायक होता है। सेब के जूस का सेवन करने से मस्तिष्क में आवश्यक स्नायु अंतरण ‘एसेटाइलकोलाइन’ के उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।
हींग के फायदे –
हींग पेट की अग्नि बढ़ाने वाली, पित्तवर्धक, मल बाँधने वाली, खाँसी, कफ, अफरा मिटाने वाली एवं हृदय से संबंधित छाती के दर्द, पेट दर्द को मिटाने वाली औषधि है। भोजन में रोज  (सरसो के दाने के बराबर) इसका प्रयोग करना चाहिए । बच्चों के पेट में कृमि हो जाए तो हींग पानी में घोलकर पिलाते हैं। बहुत छोटे बच्चों के पेट में दर्द होने पर एकदम थोड़ी—सी हींग,  पानी में घोलकर पेट पर हल्के से मालिश करने से लाभ होता है। (सरसो के दाने से ज्यादा हींग रोज खाने से नुकसान होता है)
इमली के फायदे –
– 1० ग्राम इमली को 1 लीटर पानी में उबाल लें जब आधा रह जाए तो उसमे 1० मिलीलीटर गुलाबजल मिलाकर, छानकर, कुल्ला करने से गले की सूजन ठीक होती है
– इमली के दस से पंद्रह ग्राम पत्तों को 4०० मिलीलीटर पानी में पकाकर, एक चौथाई भाग शेष रहने पर छानकर पीने से आंवयुक्त दस्त में लाभ होता है |
– इमली की पत्तियों को पीसकर गुनगुना कर लेप लगाने से मोच में लाभ होता है |
– इसके फल में शर्करा, टार्टरिक अम्ल, पेक्टिन, ऑक्जेलिक अम्ल तथा मौलिक अम्ल आदि तथा बीज में प्रोटीन, वसा, कार्बोहायड्रेट खनिज लवण प्राप्त होते हैं | यह कैल्शियम, लौह तत्व, विटामिन B, C तथा फॉस्फोरस का अच्छा स्रोत है |
– 1० ग्राम इमली को एक गिलास पानी में भिगोकर, मसल-छानकर, शक्कर मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है |
– इमली को पानी में डालकर, अच्छी तरह मसल- छानकर कुल्ला करने से मुँह के छालों में लाभ होता है|
– इमली के बीज को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद में लाभ होता है |
– गर्मियों में ताजगी दायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शक़्कर , नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं, अतः ताजे पुदीने की पत्तियाँ भी इस पेय में डाली जा सकती हैं |
(नोट – किसी भी नुस्खे को आजमाने से पहले वैदकीय परामर्श लेना उचित होता है)

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