सामाजिक समरसता के बिना आरक्षण उपाय आधा अधूरा सोच साबित होगा - अरविन्द सिसोदिया
हालही में सर्वोच्च न्यायालय की सात सदस्यों की एक पीठ नें आरक्षण पर नया आदेश दिया है कि अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाती में उप वर्गीकरण किया जा सकेगा और पहली पीढ़ी को आरक्षण का अधिकार होगा। कुल मिला कर आरक्षण की राजनीति करने वालों को नया अवसर डे दिया है। इससे कोई सामाजिक समरसता बड़ती नजर नहीं आरही है बल्कि इससे वर्ग, जाती, उपजाति संघर्ष को एक नया मोर्चा और खुल गया है। जबकि बाबा साहब चाहते थे कि दलितों, पिछड़े वर्गो के साथ सामाजिक समरसता का, उत्थान का विकास का व्यवहारिक व्यवहार हो, इस हेतु उपाय और योजनाओं पर कार्य हों ।
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर दिए ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के आरक्षण के तहत वर्गीकरण की मंजूरी दे दी है। यानी मौजूदा कोटे के अंदर भी नया कोटा बनाया जा सकेगा। साथ ही कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर बल दिया है।
हलाँकि इस निर्णय की पालना कैसे होगी यह बहुत जटिल है और उससे लाभ कैसे मिलेंगे इसको लेकर भी बहुत सारे प्रश्न है। कुछ विसनगतियों की तरफ ध्यानाकर्षण भी है, कुछ व्यवस्थायें भी दी गईं है। किन्तु देश की राजनीति में अब एक बार फिर आरक्षण में आरक्षण के कोटे का नया संघर्ष देखने को मिलेगा। आपसी प्रेम और भाईचारे की जगह नया संघर्ष जन्म लेता दिख रहा है।
जब भारत की संविधान सभा आरक्षण पर विचार कर रही थी तब बाबा साहब अंबेड़कर जी नें मात्र 10 वर्ष इस व्यवस्था के लिए दिये थे। मगर तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने सबसे पहले तो बाबा साहब के विरुद्ध कांग्रेस प्रत्याशी खड़ा कर चुनाव में हराया और फिर उन्हें भारत की राजनीति में ही आपरासंगिक कर दिया, उनके द्वारा बाबा साहब का इतना उत्पीड़न नेहरू सरकार नें उपेक्षा द्वारा किया कि उन्हें बौद्ध पंथ ग्रहण करना पड़ा।
वहीं आरक्षित वर्ग के लिए भी कुछ नहीं किया। जिससे आरक्षण का वास्तविक लाभ मिला ही नहीं। सबसे मजेदार बात रही कि आरक्षित वर्ग का वोट भी कांग्रेस झूठ और भ्रम के बल पर लगातार प्राप्त करती रही।
आरक्षण का उपयोग और आरक्षित वर्ग का उपयोग भारत में राजनैतिक फायदे के लिये कांग्रेस नें किया, जो परपरा बन गया। अन्य दलों में भी यही सब कुछ हुआ।
अन्यथा उनका वास्तविक विकास, उत्थान और समरसता के प्रयत्न विशेष कर कांग्रेस सरकारों की तरफ से कभी किये जाने चाहिए थे जो कभी हुये ही नहीं। इसके परिणाम स्वरूप सामाजिक समरसता का समावेश उपेक्षित ही गया।
सामाजिक समरसता के प्रयत्न सिर्फ देश भर में आर एस एस नें किये। संघ और संघ की शाखा में कोई किसी की जाती नहीं जानता वहाँ सिर्फ प्रथम नाम और फिर जी लगता है इससे आगे कुछ भी नहीं। जैसे राजेंद्र जी, दिनेश जी, अनुपम जी, रामलाल जी.... आदि आदि।
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को मात्र राजनैतिक और नौकरीपाने तक सीमित कर दिया गया, जबकि इसकी जरूरत संपूर्ण समाज में आपस में एकात्म का भाव जाग्रत करना, सभी क्षेत्रों में अपनत्व, भाईचारा, प्रेम स्नेह की वृद्धि करना भी है।
कांग्रेस नें वोट बैंक की राजनीति के लिये लगातार कई दसकों से मुसलमान को हिन्दू से डरा कर रखा। सवर्ण से दलित को डरा कर रखा। समाज को टुकड़े टुकड़े कर विभाजित करो राज करो के मकसद से काम किया। इसी कारण देश में सामाजिक विघटन आज भी मौजूद है और अधिक हो रहा है। उसे जाती समूहों में विभाजित किया जा रहा है।
आज भी आवश्यकता है इसी बात की है कि गांव, बस्ती, चौपाल पर सब एक साथ आपस में हिक मिल कर एक जुट हों....! जो फिलहाल संघ की शाखाओं में ही मिलता है। इस तरह के प्रयोग व्यापक स्तर पर सरकार की प्रेरणा से भी होनें चाहिए।