Quantcast
Channel: ARVIND SISODIA
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2978

परमात्मा के परिवार की सदस्य है आत्मा - अरविन्द सिसोदिया Sanatan Hindu

$
0
0
परमात्मा के परिवार की सदस्य है आत्मा 

- आत्मा और परमात्मा का संबंध

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, आत्मा और परमात्मा के बीच एक गहरा संबंध होता है। विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में, आत्मा को एक अविनाशी तत्व माना जाता है जो कि परमात्मा का अंश है। यह विचार विशेष रूप से सनातन हिंदू धर्म की धार्मिक परंपराओं में प्रचलित है।

- आत्मा की परिभाषा - 

आत्मा को अक्सर “अहम्” या “स्वयं” के रूप में देखा जाता है। यह शरीर का वह नेतृत्व है जो शरीर को निर्देशित करता है। आत्मा न केवल जीवन का स्रोत होती है, बल्कि यह ज्ञान, संवेदनाएं और अनुभवों का भंडार भी होती है। आत्मा को चेतना माना जाता है, इसे एक प्रकार का आवेश समूह भी माना जाता है। जैसे हीं आत्मा शरीर छोड़ देती है शरीर अपने आपको नष्ट करने लगता है।

जब हम कहते हैं कि आत्माएं परमात्मा के परिवार का हिस्सा हैं, तो इसका तात्पर्य यह होता है कि सभी आत्माएं एक ही स्रोत से उत्पन्न हुई हैं और वे अंततः उसी स्रोत के पास शरीर छोड़नें के बाद पुनः पहुंच जातीं हैँ।

- परमात्मा की भूमिका

परमात्मा को सृष्टि का मूल कारक माना जाता है। उन्हें सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी और सर्वव्यापी और समस्त नियमों को निर्माता अर्थात नियंता कहा जाता है। अर्थात संपूर्ण बृह्माण्ड का स्वामी माना जाता है।

परमात्मा सभी जीवों के लिए प्रेम और करुणा का प्रतीक होते हैं। उनके पास सभी आत्माओं की देखभाल करने की क्षमता होती है, और वे उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं ताकि वे अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकें।

- शरीर का महत्व
शरीर को एक साधन या ईश्वर निर्मित मशीन के रूप में देखा जा सकता है जो आत्मा को इस भौतिक संसार में अनुभव प्राप्त करने में मदद करता है।

 जैसे कार या स्कूटर हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए होते हैं, वैसे ही शरीर भी आत्मा को विभिन्न अनुभवों से गुजरने में मदद करता है। क्षमता प्रदान करता है।

- शरीर की सीमाएँ

हालांकि शरीर महत्वपूर्ण होता है, लेकिन इसे स्थायी नहीं माना जाता। शरीर जन्म से लेकर मृत्यु तक एक निश्चित समयावधि तक ही अस्तित्व में रहता है। जिस तरह कार स्कूटर धीरे धीरे नष्ट हो जाते हैँ। खराब हो जाते हैँ। और अंततः उन्हें नष्ट कर दिया जाता है। 
यही आत्मा और शरीर के बारे में है, जब शरीर खराब होकर काम नहीं कर पाता तो आत्मा उसे छोड़ देती है।

मृत्यु के बाद, आत्मा उस शरीर को छोड़ देती है और नए शरीर को धारण करती है। इसे पुनर्जन्म भी कहा जाता है।

- मृत्यु और पुनः मिलन

जब शरीर की मृत्यु होती है, तब आत्मा उस शरीर को छोड़ देती है और पुनः अपने मूल स्रोत यानी परमात्मा की व्यवस्था में लौट जाती है। यह प्रक्रिया जीवन चक्र का हिस्सा होती है जिसमें आत्माएं विभिन्न जन्मों में यात्रा करती हैं ताकि वे ज्ञान अनुभव और ईश्वरीय कार्य को प्राप्त होती रहें ।

- पुनर्जन्म का सिद्धांत

पुनर्जन्म का सिद्धांत यह बताता है कि आत्माएं कई बार जन्म लेती हैं ताकि वे अपने कर्मों के फल भोग सकें, या ईश्वरीय निर्देशों को पूरा कर सकें और अंततः मोक्ष को प्राप्त हो सकें। मोक्ष वह अवस्था होती है जब आत्मा अपने सारे बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा के साथ विलीन हो जाती है। इसे यह भी कहा जा सकता है कि वह आवागमन से मुक्त हो जाता है।

- निष्कर्ष

इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि परमात्मा सभी आत्माओं का मुखिया हैं और शरीर केवल एक साधन या ईश्वर प्रदत्त मशीन है जो हमें इस जीवन में अनुभव प्रदान करता है। मृत्यु के बाद, आत्माएं पुनः अपने मुखिया परमात्मा के पास लौट जाती हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य परमात्मा से मिलन करना ही होता है।

Viewing all articles
Browse latest Browse all 2978

Trending Articles