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राजस्थान की मुख्यमंत्री : माननीया श्रीमती वसुंधरा राजे जी

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सन्देश
 
 

"मेरी सुराज संकल्प यात्रा के दौरान मैंने राज्य भर में 14,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की और राजस्थान की जनता को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करते देखा और उनकी हताशा को करीब से महसूस किया । 

मुझे राजस्थान की जनता से अभूतपूर्व समर्थन, प्यार और स्नेह प्राप्त हुआ है जिसके लिए मैं सदैव ऋणी रहूंगी । यही समर्थन मुझे अधिक से अधिक श्रम और बेहतर कार्य करने का उत्साह देता है ।

एक नए राजस्थान के हमारे सपने को साकार करने के लिए सरकार, समाज और आप - 'टीम राजस्थान'का तालमेल अपेक्षित है । 

मैं एक स्वाभिमानी राजस्थान का हिस्सा रही हूँ जिसका मुझे सदैव गर्व है ।
राजस्थान की जनता को विचारशील, संवेदनशील और प्रभावी प्रशासन प्रदान करने के लिए हम दृढ़-संकल्प हैं । हम एक खुशहाल, शिक्षित, संवेदनशील और समृद्ध राजस्थान की कामना करते हैं । 

जब समाज के सभी वर्ग सौहार्दपूर्वक इस दिशा मैं प्रयासरत होंगे तभी हम एक सशक्त राजस्थान का नवनिर्माण कर पाएंगे । हम सुनिश्चित करते हैं कि समाज के सभी वर्गों के साथ बेहतर तालमेल के साथ कार्य हो । 

राजस्थान को विकास के स्वर्ण - युग में सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने विजन-2020 का लक्ष्य निर्धारित किया है । विजन दस्तावेज में पाँच मुख्य क्षेत्रों की पहचान की गयी है - जिनमें निवेश को बढ़ावा, बेरोजगारी को कम करना, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और कौशल विकास में सुधार शामिल हैं ।

मैं आप सभी का आह्वान करती हूँ - राजस्थान के समग्र विकास, शान्ति और आपसी सौहार्द के लिए - आओ साथ चलें ।"
भवदीया, 
वसुंधरा राजे


राजस्थान की मुख्यमंत्री : माननीया श्रीमती वसुंधरा राजे



नामश्रीमती वसुंधरा राजे
पिता का नामस्व. श्री जीवाजी राव सिंधिया
माता का नामश्रीमती विजया राजे सिंधिया, राजमाता
जन्म दिनांक8 मार्च, 1953
जन्म स्थानमुंबई (महाराष्ट्र)
वैवाहिक स्थितिशादीशुदा
विवाह दिनांक17 नवंबर, 1972
पति का नामश्री हेमंत सिंह
संततिएक पुत्र
शैक्षणिक योग्यताबी.ए. (ऑनर्स) (अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान), सोफिया कॉलेज, मुंबई विश्वविद्यालय, (महाराष्ट्र) में शिक्षित
व्यवसायराजनीतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता
निर्वाचन क्षेत्रझालरापाटन (झालावाड़)
राजनीतिक दलभारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
विधानमंडल की सदस्यता
1985 - 1989सदस्य, 8 वीं राजस्थान विधान सभा
2003 - 2008सदस्य, 12 वीं राजस्थान विधान सभा
2008 - 2013सदस्य, 13 वीं राजस्थान विधान सभा
2013 से अब तकसदस्य, 14 वीं राजस्थान विधान सभा

संसद की सदस्यता
1989 - 1991सदस्य, 9 वीं लोकसभा
1991 - 1996सदस्य, 10 वीं लोकसभा
1996-98सदस्य, 11 वीं लोकसभा
1998-99सदस्य, 12 वीं लोकसभा
1999-18/12/2003सदस्य, 13 वीं लोकसभा
पदों पर कार्य
1984सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
1985-87 उपाध्यक्षा, युवा मोर्चा, भाजपा, राजस्थान
1987उपाध्यक्षा, भाजपा, राजस्थान
1990-1991सदस्य, पुस्तकालय समिति 
सदस्य, सलाहकार समिति, वाणिज्य और पर्यटन मंत्रालय
1991-1996
सदस्य, परामर्शदात्री समिति, ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और पर्यटन मंत्रालय
1996-1997
सदस्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी समिति 
सदस्य, परामर्शदात्री समिति, ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पर्यटन मंत्रालय
1997-1998संयुक्त सचिव, भाजपा संसदीय दल
1998-1999विदेश राज्य मंत्री
13 अक्टूबर 1999 - 31 अगस्त 2001
केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), लघु उद्योग और कृषि एवं ग्रामीण उद्योग; कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, पेंशन और पेंशनर्स लाभार्थ विभाग, लोक शिकायत और पेंशन विभाग; परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष विभाग
1 सितम्बर 2001-1 नवंबर 2001
केंद्रीय राज्य मंत्री, लघु उद्योग, कार्मिक, प्रशिक्षण, पेंशन, प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत, परमाणु ऊर्जा विभाग, और अंतरिक्ष विभाग (स्वतंत्र प्रभार)
2 नवंबर 2001-29 जनवरी 2003
केंद्रीय राज्य मंत्री, लघु उद्योग, कार्मिक, प्रशिक्षण, पेंशन, प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत, परमाणु ऊर्जा विभाग, और अंतरिक्ष विभाग (स्वतंत्र प्रभार)
14 नवंबर 2002-14 दिसंबर 2003अध्यक्षा, भाजपा, राजस्थान
8 दिसंबर 2003 to 13 दिसंबर 2008मुख्यमंत्री, राजस्थान
2 जनवरी, 2009 to 25 फ़रवरी, 2010
9 मार्च, 2011 to 20 फ़रवरी, 2013
नेता प्रतिपक्ष, राजस्थान विधान सभा
13 दिसंबर 2013 से अब तकमुख्यमंत्री, राजस्थान

पसंदपढ़ना, संगीत एवं बाग़वानी
स्थायी निवाससिटी पैलेस, धौलपुर (राजस्थान)
वर्तमान निवास13, सिविल लाइन्स, जयपुर - 302 006
दूरभाष2229900, 2224400 (नि.)


राष्ट्रीय परिदृश्य

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अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 2016, नागौर

-: राष्ट्रीय परिदृश्य :-


1) महिला और मंदिर प्रवेश :- गत कुछ दिनों से महिलाओं के मंदिर प्रवेश को लेकर कुछ समूहों द्वारा विवाद का मुद्दा बनाया जा रहा है। भारत में प्राचीन काल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में पूजा-पाठ की दृष्टि से महिला-पुरुषों की सहभागिता सहजता से रही है, यह अपनी श्रेष्ठ परम्परा है। सामान्यतः सभी मंदिरों में महिला-पुरुष भेद न रखते हुए सहजता से प्रवेश होता ही है। महिलाओं द्वारा वेदाध्ययन, पौरोहित्य के कार्य भी सहजता से संपन्न हो रहे हैं। अनुचित रुढ़ी परंपरा के कारण कुछ स्थानों पर मंदिर प्रवेश को लेकर असहमति दिखाई देती है। जहां पर यह विवाद है संबंधित बंधुओं से चर्चा हो एवं मानसिकता में परिवर्तन लाने का प्रयास हो। इस प्रकार के विषयों का राजनीतिकरण न हो एवं ऐसे संवेदनशील विषयों का समाधान संवाद, चर्चा से ही हो नहीं कि आंदोलन से। इसे भी ध्यान में रखना आवश्यक है। सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र का नेतृत्व, मंदिर व्यवस्थापन आदि के समन्वित प्रयासों से सभी स्तर पर मानसिकता में परिवर्तन के प्रयास सामाजिक स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है।
2) सुरक्षा संस्थान, देश विरोधी शक्तियों का लक्ष्य :- गत कुछ दशकों से बार-बार सुरक्षा संस्थानों को लक्ष्य बनाकर किए गए हमले देश की सुरक्षा व्यवस्था के सामने एक आह्वान है। सुरक्षा बल के जवानों द्वारा पूरे साहस के साथ संघर्ष करते हुए देश विरोधी शक्तियों के प्रयासों को विफल करने में अच्छी सफलता पायी है। अभी-अभी पठानकोट स्थित वायुसेना के मुख्य शिविर पर किया गया आक्रमण तजा उदाहरण है। इस प्रकार के घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस दृष्टि से सुरक्षा व्यवस्थाओं को अधिक सक्षम बनाने की आवश्यकता है। सुरक्षाबलों की कार्यक्षमता, साधन एवं नियुक्त अधिकारियों की समुचित समीक्षा करते हुए आवश्यक सुधारों पर भी अधिक ध्यान देना होगा। सीमाओं से अवैध नागरिकों का प्रवेश, होनेवाली तस्करी तथा पाक प्रेरित आतंकवादी तत्वों के गतिविधियों की और अधिक कड़ी निगरानी आवश्यक है। इस दृष्टि से समय-समय पर सीमावर्ती क्षेत्र का विकास, सीमा सुरक्षा एवं सुरक्षा संसाधनों की ढांचागत व्यवस्थाओं की समीक्षा भी आवश्यक है। ऐसा लगता है कि भारत के संदर्भ में पाकिस्तान की नीति चयनीत सरकार नहीं तो वहां की सेना तय करती है। मुंबई में हुए हमले से लेकर पठानकोट की घटना इस बात की पुष्टि करती है। आज सारा विश्व समूह बढ़ती आतंकवादी घटनाओं से चिंतित है।
3) देश में बढ़ता साम्प्रदायिक उन्माद :- देश में विभिन्न स्थानों पर घटित हिंसक उग्र घटनायें, देशभक्त, शांतिप्रिय जन एवं कानून व्यवस्था के सम्मुख गंभीर संकट का रूप ले रही हैं। छोटी-मोटी घटनाओं को कारण बनाकर शस्त्र सहित विशाल समूह में सड़कों पर उतरकर भय-तनाव का वातावरण निर्माण किए जाने की मालदा जैसी घटनाएं विविध स्थानों पर गत कुछ दिनों में हुई हैं। सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति का नुकसान, कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर पुलिस दल पर हमले की घटनाएं और विशेषतः हिन्दू बंधुओं के व्यावसायिक केन्द्र, सभी लूटपाट-आगजनी के भक्ष बनते हैं। राजनीतिक दलों ने तुष्टिकरण की नीति छोड़कर ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए, कानून-प्रशासन व्यवस्था को शांति बनाई रखने में सहयोगी बनने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब राजनीतिक दल, सत्ता दल संकुचित ओछी राजनीति से मुक्त होकर सामूहिक प्रयास करेंगे। देश की सुरक्षा से महत्वपूर्ण कोई राजनीतिक दल अथवा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता। प्रशासनों का कर्तव्य है कि कानून एवं व्यवस्था बनाए रखे और सुरक्षा की दृष्टि से देशवासियों को आश्वस्त करें।
4) विश्वविद्यालय परिसर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के केन्द्र :- विगत कुछ महिनों से, देश के कुछ विश्वविद्यालयों में, अराष्ट्रीय और देश विघातक गतिविधियों के जो समाचार मिल रहे हैं वे चिंताजनक हैं। देश के प्रतिष्ठित एवं प्रमुख विश्वविद्यालयों से तो यह अपेक्षा थी कि वे देश की एकता, अखण्डता की शिक्षा देकर देशभक्त नागरिकों का निर्माण करेंगे, किन्तु जब वहां पर देश को तोड़नेवाले और देश की बर्बादी का आवाहन देनेवाले नारे लगते हैं तब देशभक्त लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है। यह चिन्ता तब और भी बढ़ जाती है जब यह देखने को मिलता है कि कुछ राजनीतिक दल ऐसे देशद्रोही तत्वों के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि देश को तोड़नेवाले और देश को बर्बाद करनेवाले नारे लगाए जाए तथा देश की संसद को उड़ाने की साजिश करनेवाले अपराधियों को शहीद का दर्जा देकर सम्मानित किया जाए। ऐसे कृत्य करनेवालों का देश के संविधान, न्यायालय तथा देश की संसद आदि में कोई विश्वास नहीं है। इन देश विघातक शक्तियों ने लम्बे समय से इन विश्वविद्यालयों को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाकर रखा है। संतोष की बात यह भी है कि जैसे ही इन गतिविधियों के बारे में समाचार सार्वजनिक हुए देश में सर्वदूर इसका व्यापक विरोध हुआ है। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों से यह अपेक्षा है कि ऐसे राष्ट्र, समाज विरोधी तत्वों के साथ कठोरता से कारवाई करते हुए कोई भी शैक्षिक संस्थान राजनीतिक गतिविधि के केन्द्र न बने और उनमें पवित्रता, संस्कारक्षम वातावरण बना रहे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। सामाजिक वातावरण प्रदूषित करनेवाली उपरोक्त घटनाओं से समाज जीवन प्रभावित होता है।
गत वर्ष राजनीतिक क्षेत्र में आए परिवर्तन से जन सामान्य और भारत के बाहर अन्य देशों में रह रहे भारतवासी संतोष और गर्व का अनुभव कर रहे हैं। भारत बाहरी देशों में विविध स्थानों पर आयोजित भारत मूल समूहों के सम्मेलनों से यही मनोभाव प्रकट हुआ है। वैश्विक स्तर पर बहुसंख्य देशों द्वारा ‘‘योग दिन’’ की स्वीकार्यता भारतीय आध्यात्मिक चिंतन एवं जीवन शैली की स्वीकार्यता ही प्रकट करती है। स्वाभाविक रूप से सभी देशवासियों की अपेक्षाएं बढ़ी है। एकता का वातावरण बना हुआ है। अतः सत्ता संचालक उस विश्वास को बनाए रखने की दिशा में उचित हो रही पहल अधिक प्रभावी एवं गतिमान करें, यही अपेक्षा है।
राष्ट्रीय विचारधारा को प्राप्त हो रही स्वीकृति से अराष्ट्रीय, असामाजिक तत्वों की अस्वस्थता गत कुछ दिनों में घटित घटनाओं से प्रकट हो रही है। भाग्यनगर (हैदराबाद) विश्वविद्यालय और जे.एन.यू. परिसर में नियोजित देशविरोधी घटनाओं ने इन षड्यंत्रकारी तत्वों को ही उजागर किया है। गुजरात, हरियाणा राज्यों में आरक्षण की मांग को लेकर किया गया हिंसक आंदोलन समस्त प्रशासन व्यवस्था के सम्मुख चुनौतियों के रूप में खड़ा होता ही है परंतु सामाजिक सौहार्द्र और विश्वास में भी दरार निर्माण करता है। सामाजिक जीवन निश्चित ही ऐसी घटनाओं से प्रभावित होता है। यह सबके लिए गंभीर चिंता का विषय है। किसी के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय, अत्याचार न हो लेकिन योजनापूर्वक देश विरोधी गतिविधि चलानेवाले व्यक्ति एवं संस्थाओं के प्रति समाज सजग हो और प्रशासन कठोर कार्रवाई करें। ऐसी विभिन्न समस्याओं का समाधान सुसंगठित समाज में ही है। अपने विभिन्न कार्यक्रमों में बढ़ती सहभागिता, शाखाओं में निरंतर हो रही वृद्धि यह हम सभी के लिए समाधान का विषय है। आज सर्वत्र अनुकूलता अनुभव कर रहे हैं। सुनियोजित प्रयास और परिश्रमपूर्वक, व्याप्त अनुकूलता को कार्यरूप में परिवर्तित किया जा सकता है। एक दृढ़ संकल्प लेकर हम बढ़ेंगे तो आनेवाला समय अपना है, यह विश्वास ही अपनी शक्ति है।
विजय इच्छा चिर सनातन नित्य अभिनव, 
आज की शत व्याधियों का श्रेष्ठतम उपचार है,
चिर विजय की कामना ही राष्ट्र का आधार है।।

देश में 58477 स्थानों पर संघ की शाखाएं लगती हैं

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नागौर में हुई संघ की अ.भा.प्रतिनिधि सभा बैठक में
अनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाने का आह्वान

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वीर भूमि राजस्थान के इतिहास में 36 राजवंशों का उल्लेख मिलता है। इनमें मेवाड़ का सीसोदिया वंश तो विश्व-विख्यात है, किन्तु साहस, शौर्य और पराक्रम में चौहानों का भी कोई सानी नहीं रहा। दिल्ली और अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान अपने समय के अग्रणी योद्धा थे। पुराणों में बताया गया है कि ॠषियों ने दैत्यों का सामना करने के लिये एक यज्ञ कुण्ड निर्मित किया। उसमें बारी-बारी से चार योद्धा प्रकट हुए। पहले तीन तो दैत्यों से पराजित हुए। चौथे योद्धा का नाम चौहान (चाह-मान अर्थात् चार भुजाओं वाला) रखा गया और उसने दैत्यों को पराजित किया। ऐसे महा-पराक्रमी चौहानों की एक शाखा नाडौल में थी। नाडौल में तैनात वीरवर पज्जूनराय ने मोहम्मद गोरी को धूल चटाई थी।

यही नाडौल आज-कल नागौर के नाम से प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक नगरी में 11,12 तथा 13 मार्च को रा.स्व.संघ की अ.भा.प्रतिनिधि सभा की बैठक हुई। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा संघ की सर्वोच्च नीति-नियामक इकाई है। तीन साल में एक बार होने वाले चुनावों में चुने गये प्रतिनिधि इसमें आते है। उनके अतिरिक्त देश के सभी प्रांतों व क्षेत्रों की कार्यकारिणी तथा समान विचार वाले संगठनों के प्रमुख राष्ट्रीय पदाधिकारी भी इसमें रहते हैं। संघ की रीति-नीति सम्बन्धी सभी निर्णय तीन दिनों की इस बैठक में होते है। नागौर की इस बैठक में देश के कोने-कोने से आये लगभग बारह सौ कार्यकर्ता सम्मिलित हुये।
11 मार्च को प्रातःकाल इस बैठक की विधिवत् शुरुआत हुई, जिसमें सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने गत एक वर्ष की गतिविधियों का विवरण प्रतिवेदन के रुप में प्रस्तुत किया। इसमें संगठन की एक वर्ष में हुई प्रगति, प्रमुख कार्यक्रम एवं वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख था। प्रारम्भ में गत एक वर्ष में दिवंगत हुए जाने-माने महानुभावों को श्रद्धांजलि दी गई। संघ एवं समान विचार वाले अन्य संगठनों के प्रमुख कार्यकर्ता तथा राजनीति, कला साहित्य आदि से जुड़े दिवंगत महानुभावों का आदर पूर्वक स्मरण किया गया । जयपुर प्रांत के पूर्व संघ-चालक श्री बीरेन्द्र प्रसाद अग्रवाल, भारतीय मजदूर संघ-राजस्थान के संगठन मंत्री रामदौर सिंह तथा विहिप के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष श्री जगन्नाथ गुप्ता को भी भाव-भीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। बाढ़ में अकाल काल-कलवित हुए चेन्नई-वासियों तथा सियाचिन में ग्लेसियर की आपदा का शिकार बने सुरक्षा-बल के जवानों को भी श्रद्धा-सुमन अर्पित किये गये।

सरकार्यवाह भैय्या जी जोशी ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि पठानकोट स्थित वायु-सेना की छावनी पर हुआ आतंकी हमला चिंताजनक है तथा सीमाओं की सुरक्षा में अधिक सावधानी की आवश्यकता है। माल्दा में दिखे साम्प्रदायिक उन्माद पर भी उन्होंने चिन्ता जताई और राजनैतिक पार्टियों से तुष्टीकरण की नीति त्यागने का आग्रह किया। कतिपय विश्वविद्यालयों में बढ़ती राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों और कुछ राजनैतिक दलों का इनको समर्थन को भैय्याजी ने अनुचित बताया और ऐसे तत्वों पर कड़ी कार्रवाई किये जाने की जरूरत बताई।

महिलाओं के मन्दिर प्रवेश को लेकर उठे विवादों को सरकार्यवाह ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया और ऐसे मामलों का राजनीति-करण न करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले आपसी बात-चीत से हल किये जाने चाहिये। इसी प्रकार आरक्षण की माँग के समर्थन में होने वाले हिंसक आन्दोलनों को उन्होंने सामाजिक सौहार्द्र में बाधक बताया। इसी के साथ उन्होंने देश के उज्ज्वल भविष्य की ओर भी संकेत किया। उन्होंने कहा-
“वैश्विक स्तर पर बहुसंख्य देशों द्वारा ‘योग-दिवस’ की स्वीकार्यता भारतीय आध्यात्मिक चिन्तन एवं जीवन शैली की स्वीकार्यता ही प्रकट करती है।” देश में संघ-कार्य के प्रति बढ़ती अनुकूलता का लाभ उठाने का आह्वान भी उन्होंने किया।
तीन दिन की बैठक में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक समरसता पर विस्तार से चर्चा हुई तथा तीन प्रस्ताव भी पारित किये गये।
इस बार 1 लाख 37 हजार को प्रशिक्षण
वर्ष 2015 में पूरे देश में 1 लाख 37 हजार 351 स्वयंसेवकों ने विभिन्न प्रशिक्षण वर्गों में संघ की रीति-नीति का शिक्षण प्राप्त किया। इनमें से 1 लाख 12 हजार 520 स्वयंसेवकों ने सात दिनों के प्राथमिक वर्ग में शिक्षण लिया तथा 24 हजार 831 कार्यकर्ताओं ने प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया। संघ-शिक्षण लेने वाले उक्त कार्यकर्ताओं में केवल 2400 कार्यकर्ता ही 45वर्ष से अधिक की आयु के थे।
देश में अट्ठावन हजार स्थानों पर संघ की शाखा
प्रतिनिधि सभा की बैठक में एकत्रित हुए आँकड़ों के अनुसार इस समय देश के 36867 नगरों, कस्बों एवं ग्रामों में 56859 शाखाएं लग रही हैं। इनके अतिरिक्त लगभग 14 हजार स्थानों पर साप्ताहिक शाखा लगती है तथा आठ हजार ग्रामों में महीनें में एक-दो बार हिन्दुत्व के विचार से प्रभावित लोगों की बैठकें होती हैं। इस प्रकार इस समय देश में 58477 स्थानों पर संघ की शाखाएं लगती हैं।

'तब कहां थे अभिव्यक्ति के पैरोकार' : तरुण विजय

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'तब कहां थे अभिव्यक्ति के पैरोकार'

तारीख: 14 Mar 2016  अतिथि लेखक - तरुण विजय
http://panchjanya.com

कोई आजादी संपूर्ण नहीं होती, परंतु इस संपूर्णता का अनुभव सबसे अधिक उसी भूमि पर हो सकता है जहां हिंदू बहुसंख्यक हो। यह इस देश में ही संभव है कि आप मूर्ति पूजक हैं या मूर्तिपूजा का खंडन करते हैं, आस्तिक हैं, नास्तिक हैं या स्वयं को ही भगवान घोषित करते हों तब  भी.. कोई आपत्ति नहीं करेगा। न ही आपको काफिर घोषित कर दंडित करेगा। लेकिन कोई भी स्वतंत्रता अमर्यादित, निस्सीम और संविधान-निरपेक्ष नहीं हो सकती। आज संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोगकर मुक्त विचारों के हिंसक प्रतिरोधी गुट उसी संविधान और लोकतंत्र पर हमला कर रहे हैं।
जिस देश ने पृथ्वी पर सहिष्णुता और भिन्न मत के प्रति आदर के कीर्तिमान स्थापित किए उस माटी के पुत्रों को वे लोग सहिष्णुता का ककहरा समझा रहे हैं जिनके हाथ असहिष्णु, बर्बर व्यवहार के इतिहास में रंगे हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों को धन्यवाद देना चाहिये जिसने जेएनयू के देश विरोधी वगार्ें को भी जय हिंद बोलना और तिरंगा लहराना सिखा दिया और सिद्ध कर दिया कि भारत में केवल तिरंगे के लिए जीने-मरने वालों की विजय हो सकती है, न कि तिरंगा जलाने वालों की। दुर्भाग्यवश आज सहिष्णुता और विभिन्न मतों के प्रति आदर को उन विचारधाराओं से खतरा है जिन्होंने दुनिया भर में दूसरों के विचारों का दमन किया। चीन में माओ की सांस्कृतिक क्रांति के कारण चार करोड़ से अधिक लोगों का समूल नाश हुआ। कंबोडिया के कम्युनिस्ट शासक पोल पॉट की क्रूरता का शिकार एक-तिहाई जनता बनी। और इन सबसे कहीं पहले, कम्युनिस्ट रूस में गुलाग और साइबेरिया के शिविरोंं में उन लोगों की सामूहिक हत्याएं हुईं जो बोल्शोविक क्रांतिकारियों से भिन्न विचार रखते थे। भारत में ही केरल के मुख्यमंत्री ईएमएस नम्बूदरीपाद ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि उन्होंने संविधान की शपथ तो ली है, परंतु वे उसे अंदर से तोड़ने का काम करेंगे। ('एंथरो महानुभावुलु'द ऑटोबायोग्राफी ऑफ सी़पी़ नायर, पूर्व मुख्य सचिव, केरल)।
संविधान को तोड़ने की घोषणा करने वाले वही लोग आज अपनी कमियां छुपाने के लिए 'सहिष्णुता'और 'अभिव्यक्ति की आजादी'का शोर मचा रहे हैं, जिसके तहत वे कभी इसी संविधान और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी देने वाली न्यायपालिका से नाखुशी जताते थे।
जेएनयू की दीवारों पर वाम संगठनों ने ऐसे पोस्टर चिपकाए जिसमें याकूब मेमन को फांसी सुनाने वाले सवार्ेच्च न्यायालय के जज को 'मनुवादी'घोषित किया गया। इनकी नजर में 900 भारतीयों की जानें लेने वाला याकूब 'निदार्ेष'और देर रात तक सुनवाई कर प्रमाणों के आधार पर सजा सुनाने वाला जज पक्षपातपूर्ण था।
दरअसल, यह विरासत उनकी है जो अपनी राष्ट्र-विरोधी हरकतें छुपाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार बन बैठे हैं। इन तत्वों की अभिव्यक्ति तब खामोश हो जाती है, जब दिल्ली में 3,000 से अधिक सिखों का नरसंहार होता है, जब लाखों कश्मीरी हिंदुओं को घर-बार छोड़कर घाटी से भागने को विवश कर दिया जाता है, जब नंदीग्राम हत्याकांड होता है! लेकिन जब पता लगता है कि इशरत जहां लश्कर आतंकी थी तो वे आतंकी के बचाव में मुखर हो उठते हैं। जो सियाचिन में (-)चालीस डिग्री तापमान में सरहद के रखवाले जवान के प्रति सम्मान नहीं रखते, जो किसानों की भलाई के लिए सर्वाधिक लाभकारी योजनाएं बनाने वाले प्रधानमंत्री के विरुद्ध घटिया वाक्य प्रहार करते हैं, क्या अब उनसे सीखना होगा कि देश को कैसे सहिष्णु-लोकतांत्रिक बनाया जाए? 
वास्तव में जिन तत्वों ने पिछले बारह वर्ष लगातार एक विचारधारा और उसके श्रेष्ठ शासक के विरुद्ध तर्कहीन आरोपण किया, वे उसी नायक को अभूतपूर्व बहुमत के साथ विजयी होते देख सहन नहीं कर पाये। अब ऐसे लोग झूठे मुद्दे गढ़कर मीडिया के एक वर्ग के कंधों पर चढ़कर जनादेश पर आघात करना अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मान रहे हैं। भारत के गरीब, किसान, मजदूरों को इन्हीं वामपंथी गुटों के कारण अथाह अंधकार का युग झेलना पड़ा। ये वह निर्दयी और संवेदनहीन लोग हैं जिन्हें कन्हैया की माताजी का उल्लेख कर आंसू बहाने का तो ख्याल आता है लेकिन झारखंड की बहादुर बेटी संजीता कुमारी की मां का ध्यान नहीं आता जिन्होंने अपनी बीस साल की होनहार बेटी को माओवादियों की क्रूरता का शिकार होते देखा क्योंकि संजीता ने शिक्षा को बर्बर माओवादियों की राह से बेहतर माना था। क्या अभिव्यक्ति की आजादी वालों, जेएनयू के लाल सलाम वालों को संजीता का दु:ख, दु:ख नहीं लगता? इसलिए कि संजीता को मारने वाले जेएनयू के वामपंथियों के सहोदर, वैचारिक भाई हैं?
(लेखक भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं)

भारत में अनिवार्य हो सैन्य प्रशिक्षण

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भारत में अनिवार्य हो सैन्य प्रशिक्षण
(7 Feb)
अजीत शर्मा लेखक,
विहार विधानसभा के सदस्य हैं

 भारतीय सुरक्षा परिवेश पर नजर डाली जाए तो यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि न तो हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं और न ही सीमा के अंदर का कोई क्षेत्र। आज भारत के समक्ष सुरक्षा चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। ऐसे में अधिक सजग रहने की आवश्यकता है। यह जरूरत तब तक बनी रहेगी जब तक कि दक्षिण एशिया में भारत के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी देशों पाकिस्तान व चीन हथियारों की प्रतिस्पर्धा समाप्त नहीं करते, या फिर इन देशों के साथ भारत के आपसी संबंध मधुर नहीं बनते। दूसरी तरफ, देश के अंदर फैला आतंकवाद जन-जन की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। कहने का तात्पर्य यह कि भारत का प्रत्येक नागरिक असुरक्षा की परिधि में आ चुका है और असुरक्षा की यह परिधि तभी समाप्त हो सकती है, जब भारत का हर नवयुवक सुरक्षा के लिए न सिर्फ कुशल तरीके से प्रशिक्षित हों, बल्कि अपनी व अपने देश की सुरक्षा करने में सक्षम हो। फिलहाल, सरकार इसके लिए तैयार होती दिखाई नहीं पड़ रही। विदित हो कि कुछ दिन पहले राज्य सभा सांसद अविनाश राय खन्ना ने निजी विधेयक के जरिए कहा था कि रूस और इजरायल की तर्ज पर भारत के किशोरों व युवाओं को भी अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। साथ ही, स्कूल में 10वीं के स्तर तक के पाठ्यक्रम में भी सैन्य प्रशिक्षण को शामिल किया जाना चाहिए। इस विधेयक के जवाब में रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने कहा कि यह योजना अच्छी है, लेकिन फिलहाल इस पर अमल करना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि आर्थिक कारणों से देश के तकरीबन 16 करोड़ किशोरों को अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण देने की योजना को अमल में नहीं लाया जा सकेगा। हां, उन्होंने यह जरूर कहा कि सीमावर्ती इलाकों के किशोरों को सैन्य प्रशिक्षण देने का प्रयोग जरूर किया जा सकता है। वर्तमान में संसार के सभी देश अपनी सजगता का परिचय देते हुए अपनी सजगता का परिचय देते हुए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निरंतर युद्ध की तैयारियों में प्रयत्नशील हैं और कई देशों ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के कारण ऐसे महाविनाशक हथियारों का निर्माण कर लिया है, जिनकी मदद से समस्त धरा को क्षण भर में ही ध्वस्त किया जा सकता है। वहीं, दूसरी तरफ भारत समेत विश्व भर में आतंकवाद और अलगाववाद की जड़ें इतनी गहराई तक पहुंच चुकी हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना मुश्किल दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, चीन की बढ़ती सैन्य ताकत एवं बांग्लादेश में बढ़तीं भारत विरोधी गतिवधियां भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने की चेतावनी दे रही है। देश में फैले आतंकवाद एवं अलगाववाद से निपटने तथा भारत की आंतरिक व बाहरी सुरक्षा के लिए जरूरी यह है कि सैन्य अध्ययन एवं प्रशिक्षण को अनिवार्य करते हुए युद्धों तथा उनके परिणामों के बारे में प्रत्येक नागरिक को जानकारी होनी चाहिए। तभी मानवीय मूल्यों की रक्षा हो सकेगी और मानवता के खिलाफ जारी संघर्ष को समाप्त किया जा सकेगा। इसके लिए देश की युवा शक्ति को जागरूक व सक्रिय होने की जरूरत है, परंतु दु:ख इस बात का है कि भारत की नई पीढ़ी का एक हिस्सा दिशाहीन व दिग्भ्रमित है। इसलिए ऐसे तनावपूर्ण वातावरण में सुरक्षा से जुड़ीं मुख्य बातों, युद्ध के परिणामों की जानकारी तथा विश्व शांति स्थापना में सक्रिय सहयोग देने हेतु युवाओं के लिए सैन्य प्रशिक्षण की अनिवार्यता महसूस की जाने लगी है। इन चुनौतियों एवं स्थितियों के मद्देनजर सरकार को चाहिए कि देश के समस्त महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में सैनिक प्रशिक्षण को अनिवार्य किए जाने की योजना को मूर्त रूप प्रदान करे। युवाओं को कम से कम दो साल का सैनिक प्रशिक्षण अवश्य रूप से दिया जाना चाहिए। यदि इसे संवैधानिक रूप से देखा जाए तो संविधान में उल्लेख है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र सेवा व रक्षा के लिए तत्पर रहे। इस मुद्दे पर चिंतन मनन किया जाए तो यह निर्णय भारतीय सुरक्षा परिवेश को काफी मजबूत बनाएगा। वर्तमान समय में विश्व के तकरीबन सात दर्जन देशों में सैन्य अध्ययन एवं प्रशिक्षण अनिवार्य है, जिनमें ईरान, इराक, इजरायल, मिस्त्र, ताइवान, रूस, जर्मनी, सूडान, कोरिया, अंगोला एवं अल्जीरिया आदि प्रमुख हैं। सैनिक प्रतिभा के धनी, महान सैन्य विचारक, दुर्दमनीय योद्धा व महान शासक नैपोलियन ने अनिवार्य सैनिक सेवा योजना लागू करके ही अपनी सैन्य शक्ति को कई गुना ज्यादा बढ़ाकर विभिन्न प्रकार की जीतें हासिल की थीं। यही नहीं, स्वीडन के सम्राट गुस्टावस एडाल्फस ने भी अनिवार्य सैनिक भर्ती योजना लागू करके अनेक सफलताएं अर्जित कीं और सत्रहवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ सैनिक अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध हुए। अब सवाल उठता है कि इस प्रशिक्षण का प्रारूप किस तरह का होना चाहिए। वितद हो कि भारत के अनेक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में इस समय रक्षा अध्ययन, सुरक्षा अध्ययन, युद्ध अध्ययन, स्त्रातजित अध्ययन, सैन्य अध्ययन एवं सैन्य विज्ञान आदि नामों से एक ही पाठ्यक्रम की पढ़ाई जारी है। इन सभी का पाठ्यक्रम सैन्य संगठनों, शस्त्रास्त्रों के विकास, विशेषताओं व प्रयोग के अध्ययन के साथ-साथ युद्ध कला, युद्ध कौशल एवं प्रशासन से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। इसके अलावा, इनके अध्ययन में सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, भौतिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, औद्योगिक व सांस्कृतिक आदि सभी तत्व आते हैं, और यही तत्व राष्ट्रीय चेतना व जागरूकता के मूल आधार है। इन्हीं तत्वों व मूल आधारों से युवाओं में कर्तव्य निष्ठास, नि:स्वार्थ राष्ट्र सेवा, राष्ट्र के लिए त्याग व सर्वोच्च बलिदान भावना, सामाजिक हित व प्रतिबद्धता अनुशासन, राष्ट्रीय एकता व अखंडता जेसे मूल गुणों का विकास होता है। इनसे ही राष्ट्रीय कूटयोजना व समरतंत्र सशक्त बनता है। अपने विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के तहत इस अध्ययन में नवयुवक व युवतियां इतिहास के आरंभ से अब तक के क्रम में वैदिक, रामायण, महाभारत, मौर्य, राजपूत मुगल, मराठा, सिख, तथा ब्रिटिशकालीन सैन्य व्यवस्था की जानकारी के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के रक्षा संगठन एवं शस्त्रास्त्रों की जानकारी हासिल करते हैं। इसके अतिरिक्त, विश्व प्रसिद्ध अन्य सैन्य व्यवस्थाओं व युद्धों के अध्ययन से प्राप्त सैन्य शिक्षाओं व अनुभवों से भिज्ञ होते हैं। यही नहीं, युद्ध की परिभाषा, क्षेत्र विशेषताओं, कमियों, युद्ध के सिद्धांत, कूटयोजना, समरतंत्र आदि के अलावा भारत की रक्षा नीति, परमाणु नीति, विदेश नीति, पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की ििसति, युद्धकालीन वित्त व्यवस्था व लागत, रक्षा बजट, नागरिक-सैनिक संबंध व नागरिक प्रशासन में सैनिक सहयोग आदि की जानकारी हासिल करते हैं। इस विषय का दूसरा हिस्सा, जिसे युवा वर्ग प्रयोगात्मक रूप में पढ़ता है, भी सैन्य प्रशिक्षण ही है। शांति एवं युद्धकाल के लिए एक कमांडर व उसके दल के सैनिक अपनी क्षमता-दक्षता विकसित करने के लिए कुछ खास चीजें भी सीखते हैं। इनमें वे सैनिक सांकेतिक चिह्नों की जानकारी, मानचित्र अध्ययन, दिशाओं का विस्तृत ज्ञान, दिक्मान परिवर्तन, कम्पास व सर्विस प्रोटेक्टर के उपयोग के अलावा अंत:दृष्टि गोचरता, ढालांश, प्रावण्य, प्लाटून संगठन बटालियन सहित व उनके हथियार, फायर प्रयोग, फायर आदेश क्रम, फायर नियंत्रण आदेश, मौखिक आदेश, क्षेत्र कला, गश्ती दल व उसके कार्य, आक्रमण व प्रतिरक्षा की स्थिति में संग्राम कार्यविधि, संदेश भेजने व लिखने के तरीके, प्लाटून व सेक्शन की सामरिक संरचनाओं के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की युद्ध व शांतिकालीन जानकारी हासिल करते हैं। इस तरह के अध्ययन के बाद नवयुवक सैन्य गुणों से परिपूर्ण व समस्त सुरक्षा चुनौतियों को समझने में सक्षम हो जाता है। यदि सरकार उपर्युक्त विषय की अध्ययनवस्तु पर गंभीरतापूर्वक विचार करे तो अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण योजना को लागू किया जा सकता है। इसके लागू हो जाने से भारत विश्व के उन देशों की सूची में सम्मिलित हो जाएगी जिनमें युवाओं के लिए सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य है।वैसे, रक्षा की द्वितीय पंक्ति के रूप में युवाओं के लिए नेशनल कैडेट कोर ऐच्छिक कार्यक्रम पहले से ही चल रहा है, लेकिन इसमें छात्र-छात्राएं सीमित संख्या में होते हैं, और यह खचीर्ला होने के साथ ही सीमित पाठ्यक्रम वाला कार्यक्रम है। इसलिए अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण के लिए इसकी अनिवार्यता में सफलता के अवसर कम दिखाई देते हैं। जहां तक राष्ट्रीय सेवा योजना क बात है, तो वह समाज सेवा से जुड़ा कार्यक्रम है। ऐसे में भारत के युवाओं के लिए उचित यही होगा कि सैन्य प्रशिक्षण की अनिवार्यता के लिए कम खर्चे वाले तथा आसानी से लागू हो जाने वाले विषय पर फैसला किया जाए जिससे रक्षा व अन्य चुनौतियों से निपटने वाली युवा पीढ़ी शीघ्र तैयार हो सके। ( सोमनाथ आर्य से बातचीत पर आधारित )

देशहित के लिऐ भाजपा कार्यकर्ता निरंतर पार्टी को मजबूत करते रहें - नारायण पंचारिया

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देशहित के लिऐ भाजपा कार्यकर्ता निरंतर पार्टी को मजबूत करते रहें - नारायण पंचारिया


17 मार्च कोटा । भाजपा के प्रदेश महामंत्री एवं राज्यसभा सांसद नारायण पंचारिया ने गुरूवार को कोटा सर्किट हाउस में प्रातः 11 बजे भाजपा शहर जिला कोटा की बैठक ली तथा पार्टी को निंरंतर मजबूत करने का आव्हान किया। अध्यक्षता जिला अध्यक्ष हेमन्त विजयवर्गीय ने की तथा संचालन जिला महामंत्री अरविन्द सिसोदिया ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन जिला महामंत्री अमित शर्मा ने किया।
उन्होने कहा “ कार्यकर्ताओं के त्याग तपस्या और बलिदान से अपनी भाजपा ग्राम पंचायत के पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक है। केन्द्र की सत्ता में आने के बाद देश का सभी स्तरों पर मान सम्मान स्वाभिमान बढ़ा है। विकास के कार्यों ने गति पकड़ी है, रूके पडे कार्यों को पूर्ण करने की दिशा में देश चल पडा है। हर क्षैत्र में हर वर्ग में मोदी सरकार की सराहना हो रही है। भाजपा की राज्य सरकारें विकास की कल्याणकारी नीतियां बना कर काम कर रहीं हैं। ”
उन्होने कहा ” देश की सरकार क्यों चल रही है, उसका मान सम्मान क्यों बड रहा है, विजन बना कर काम क्यों हो रहे हैं, कांग्रेस और कम्युनिष्टों को भा नहीं रहा हे। वे राजनैतिक द्वेषता एवं निहित स्वार्थ की राजनीती के लिये निरंतर बाधा उत्पन्न कर रहे है। मोदी सरकार के विरूद्ध , धुर विरोधी रहे कांग्रेस और कम्युनिष्ट अब आपस में समझोता कर राह रोकनें के प्रयत्नों में रत हैं।“
पंचारिया ने कहा ” देश विरोधी ताकतों एवं विपक्ष की राजनैतिक स्वार्थ से उत्पन्न स्थिती में कार्यकर्ता की भूमिका ओर भी बढ़ जाती है। कार्यकर्ता सिर्फ सत्ता के सिंहासन तक लानें वाला ही नहीं होता बल्कि वह सुशासन की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता को दिलानें में सहायक की भूमिका निभानें वाला भी बनें और भ्रम पूर्वक फैलाये जा रहे झूठ के बादलों को छांटने वाला भी बनें।“ उन्होने कहा “ भाजपा का जन्म ही देशहित के लिये हुआ है उसे देशहित से कोई रोक नहीं सकता, कार्यकर्ता सरकार के कार्यों को जन जन में लेजाकर सरकार को शक्ति प्रदान करें , उसे मजबूती दें।”
भाजपा के जिला अध्यक्ष हेमन्त विजयवर्गीय ने कहा भाजपा शहर जिला कोटा केन्द्र एवं राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारीयां पत्रक के द्वारा जन जन तक पहुंचायेगी।
भाजपा के जिला अध्यक्ष हेमन्त विजयवर्गीय ने पार्टी के कार्यकर्ताओं का परिचय करवाया तथा पंचारिया ने कार्यकर्ताओं से बातचीत की । इस दौरान प्रमुख रूप से पूर्व मंत्री मदन दिलावर, उप महापौर श्रीमती सुनीता व्यास, महामंत्री जनजाती मोर्चा प्रहलाद पंवार, प्रदेश कार्यकारणी सदस्य हनुमान शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता जटाशंकर शर्मा, पूर्व जिला अध्यक्ष महेश विजयवर्गीय, पूर्व जिला अध्यक्ष मनमोहन जोशी, पूर्व प्रदेश मंत्री हीरेन्द्र शर्मा, कोर कमेटी सदस्य महेश वर्मा, जिला उपाध्यक्ष कृष्णकुमार रामबाबू सोनी, विशाल जोशी, अशोक चौधरी, लक्ष्मणसिंह खीची, त्रिलोक सिंह, जिला मंत्री मुकेश विजय,राकेश मिश्रा,राजेन्द्र अग्रवाल,कैलाश गौतम, अशोक जैन, अमित दाधीच,अर्थपाल सिंह,कोषध्यक्ष कपिल जैन,एस सी मोर्चा जिला अध्यक्ष अशोक बादल, किसान मोर्चा जिला अध्यक्ष गिरिराज गौतम , पूर्व महामंत्री नेता खण्डेलवाल, पूर्व महामंत्री दिनेश सोनी, रविन्द्रसिंह सोलंकी, किशन पाठक, पार्षद कृष्णमुरारी सांवरिया, महिला मोर्चा की श्रीमती कृष्णा खण्डेलवाल, श्रीमती प्रभा तंवर, श्रीमती संगीता महेश्वरी, रेखा खेलवाल, राधारानी श्रीवास्तव, युवा मोर्चा से प्रद्युमन सिंह पौमी, प्रखर कौशल, सचिन मिश्रा,देबू राही, गोपालकृष्ण सोनी सहित बडी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित थे।
अरविन्द सिसोदिया
जिला महामंत्री
9414180151

अफजल की जगह शहीदों का नाम लेते तो गर्व होता

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संसद हमले की पीड़िता बोलीं- अफजल के बेटे पर सुर्खियां, मेरी बेटी का जिक्र भी नहीं
उपमिता वाजपेयी  March 20, 2016

नई दिल्ली |
अफजल पर हो रहे हंगामे पर संसद हमले के शहीदों के फैमिली मेंबर्स ने नाराजगी जताई है। हमले में मारे गए कैमरामैन की पत्नी का कहना है कि संसद पर हमले के दोषी अफजल के बेटे को 95% मार्क्स आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी टॉप करती है तो कोई नहीं पूछता?

नेता JNU जाते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता...
इनसेट में शहीद विजेंद्र सिंह और उनकी पत्नी जयावती। (फाइल)
- हरियाणा-दिल्ली की सीमा पर मोहड़बंद गांव में शहीद विजेंद्र सिंह का घर है।
- उनकी पत्नी जयावती ने कहा- 'संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों के तो नाम तक किसी को याद नहीं। उन राजनेताओं को भी नहीं जिनकी जान शहीदों ने बचाई थी।'
- 'सारे नेता जेएनयू जाकर बातें करते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता।'
- संसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे।
- जयावती के मुताबिक, 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई।
- 'मैंने उससे कहा- अरे, जहां तेरे पापा की ड्यूटी है, वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई।'
पिता दस साल हमारे घर में रहे
- 'हमारे यहां लड़की का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे।'
- 'हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम।'
- 'उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे।'
- 'हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।'
हर साल आती है सिर्फ चिट्ठी
-जयावती कहती हैं- साल में सिर्फ एक चिट्‌ठी आती है। संसद के ऑफिस से।
- 'बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।'
- वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्‌टठियां निकालकर दिखाती भी हैं।

2-----
शहीद कमलेश कुमारी। (फाइल)
अफजल की जगह शहीदों का नाम लेते तो गर्व होता
- कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है।
- उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं।
- अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता।
- कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे।
- 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।'
- 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान के बॉर्डर पर।'
3------
शहीद मातबर सिंह की पत्नी। (फाइल)
शहीदों के घर कोई नहीं जाता
- शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी।
- मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है।
- गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है।
- 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'
4----------

विक्रम बिष्ट की पत्नी सुनीता। (फाइल)

अफजल के नाम पर जलसे क्यों ?
- सुनीता के पति विक्रम बिष्ट एएनआई न्यूज एजेंसी के कैमरामैन थे।
- वो कहती हैं कि मेरे पति हमला हुआ तो भागे नहीं, रिकॉर्डिंग करते रहे। पेट में गोली लगी थी।
- 'जब हमला हुआ मेरी बेटी तीन महीने की थी। वो भी बहुत अच्छा पढ़ती है। स्कूल में अच्छे नंबर लाती है। उसको भी मैं डॉक्टर बनाऊंगी। लेकिन उसके नंबर तो कोई नहीं पूछता।
- 'वो आतंकवादी अफजल का बेटा 95 फीसदी ले आया तो बड़ी तारीफें हुई उसकी।'
- 'अफजल के नाम पर जलसे हो रहे हैं। कश्मीर से लेकर दिल्ली तक बरसी मनाई जाती है।'
- सुनीता कहती हैं, मैं पहली बार दिल्ली आई थी तो सारे मकान एक से दिखते थे। नहीं जानती थी कि शहर में रहते कैसे हैं।
- 'हमले के बाद पति का एम्स में एक साल इलाज चला। फिर उनकी मौत हो गई।'
- 'मैं दसवीं पास थी। फिर बच्चों के लिए नौकरी करनी पड़ी। बेटा पूछता था सबके पापा हैं तो मेरे क्यों नहीं। मैं कहती थी वो ऊपर हैं जब तुम बड़े हो जाओगे तो वो आ जाएंगे।'

श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : शहरी विकास

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श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : शहरी विकास
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं
30 मार्च, 2016
‘‘हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते’’
हमारा बजट प्रदेश के विकास और सब जन के कल्याण की भावना से प्रेरित बजट है, राजनीतिक लाभ से नहीं। हमने कोशिश की है जन भावना और स्थानीय मांगों के अनुरूप प्रस्ताव बजट में शामिल हों। बजट प्रस्तुत करने के बाद भी कुछ मांगें आई हैं, इनको मैं सकारात्मक रूप से देखती हूं।

उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते,
दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते।
हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का,
वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते।।
बजट के बाद प्राप्त मांगों में से कुछ मांगों के संबंध में मैं निम्न घोषणाएं करती हूं –
शहरी विकास
1. महुआ, जिला दौसा में नगरपालिका बनाये जाने की घोषणा करती हूँ।
2. नगरपालिका मांगरोल जिला बारां में बाढ़ एवं वर्षा के पानी की निकासी के लिए लगभग 18 करोड़ रुपये के विकास कार्य सार्वजनिक निर्माण विभाग के माध्यम से कराने की मैं घोषणा करती हूँ।
3. कोटा शहर, NCR दिल्ली के Counter Magnet City के रूप में विकसित हो रहा है। कोटा शहरी क्षेत्र में निम्न विकास कार्य करवाये जायेंगेः-
– रंगपुर रोड़ पर RoB का निर्माण।
– नयापुरा क्षेत्र में मौजुदा आधारभूत खेल सुविधाओं को एकीकृत कर sports complex का विकास एवं निजी जनसहभागिता के आधार पर खिलाडि़यों के लिए प्रथम तल पर sports rest house एवं भूतल पर commercial गतिविधियों के लिए निर्माण।
– दशहरा मैदान के विकास कार्य।
– NH 76 के chainage 09725 पर underpass का विस्तार कार्य।
– कोटा कलक्टर कार्यालय तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश परिसर को भूमिगत मार्ग से जोड़ने तथा दोनों ही कार्यालय के लिए भूमिगत पार्किंग का निर्माण कार्य।
4. मैंने इस बजट में शहरी क्षेत्रों के विकास हेतु 4 हजार 200 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की घोषणा की थी। इसमें आंशिक संशोधन करते हुए जिला अलवर के स्थान पर जिला चूरू पढा जाये। इसी क्रम में 670 करोड़ रुपये के निम्न कार्य करवायेे जाने की भी मैं घोषणा करती हूँः-
– 100 करोड़ रुपये की लागत से माउंटआबू में पेयजल एवं sewerage के विकास कार्य।
– झालावाड़ तथा झालरापाटन शहरों में 100 करोड़ रुपये की लागत से sewerage कार्य।
– आयड़ नदी के सौंदर्यकरण एवं उसमें आने वाले दूषित पानी को रोकने के लिए 120 करोड़ रुपये की लागत से विकास कार्य।
– सवाईमाधोपुर शहर की sewerage समस्या के समाधान के लिए 100 करोड़ रुपये की लागत से विकास कार्य।
– कोटा शहर की sewerage एवं पेयजल व्यवस्था की समस्या के समाधान हेतु प्रथम चरण में 250 करोड़ रुपये के विकास कार्य।
5. अंता जिला बारां में पुराने खेमजी महाराज तालाब की सफाई, संवर्धन एवं सौदर्यकरण हेतु लगभग 4 करोड़ 45 लाख रुपये के विकास कार्य सार्वजनिक निर्माण विभाग के माध्यम से करवाये जायेंगे।

श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सड़कें विकास

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श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सड़कें विकास
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं
30 मार्च, 2016
‘‘हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते’’
हमारा बजट प्रदेश के विकास और सब जन के कल्याण की भावना से प्रेरित बजट है, राजनीतिक लाभ से नहीं। हमने कोशिश की है जन भावना और स्थानीय मांगों के अनुरूप प्रस्ताव बजट में शामिल हों। बजट प्रस्तुत करने के बाद भी कुछ मांगें आई हैं, इनको मैं सकारात्मक रूप से देखती हूं।

उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते,
दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते।
हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का,
वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते।।

बजट के बाद प्राप्त मांगों में से कुछ मांगों के संबंध में मैं निम्न घोषणाएं करती हूं –

सड़कें 
6. मैंने अपने बजट भाषण में ऐसे शहर जहाँ पर नेशनल हाईवे द्वारा बाई-पास बना दिया गया है, वहाँ शहर से गुजर रहे पुराने नेशनल हाईवे की सड़क की मरम्मत 300 करोड़ रुपये की लागत से करवाये जाने की घोषणा की थी। अब इस राशि को बढ़ाकर 350 करोड़ रुपये करने की घोषणा करती हूँ।
7. राज्य में 80 करोड रूपए की लागत से जिला चुरू में 10, जिला हनुमानगढ़ में 8, जिला नागौर में 6, जिला बाड़मेंर में 4, जिला चित्तौडगढ, जिला सीकर, जिला करौली तथा जिला भरतपुर मं एक-एक RuB सहित कुल 32 RuB का निर्माण करवाया जाएगा।
8. काफी लंबे समय से देबारी पावर हाउस से गुडली-खेमली-घासा पलाना कला मावली संपर्क सड़क की मांग की जा रही है। अतः मैं 54 करोड़ 78 लाख रुपये की लागत से इस सड़क के निर्माण की घोषणा करती हूँ।

9. बीकानेर में 135 करोड़ रुपये की लागत से Elevated सड़क बनाए जाने की घोषणा करती हूं।
10. उदयपुर में 136 करोड़ रुपये की लागत से Elevated सड़क बनाये जाने की घोषणा करती हूँ।
11. गढ़ी व घाटोल के बीच चाप नदी पर 6 करोड़ रुपये की लागत से पुल का निर्माण करवाया जायेगा।
12. माही अनास नदी पर संगमेश्वर चिखली पुल का निर्माण 100 करोड़ रुपये की लागत से करवाया जायेगा।
13. ‘मांगनियार‘ राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर ओर जोधपुर जिलों में निवास करने वाले मुस्लिम समुदाय है। वंशानुगत पेशेवर संगीतकारों का यह समुदाय अपने शास्त्रीय लोक संगीत के लिए प्रसिद्ध है। इस समुदाय के विकास के लिए 37 गाँव-ढाणियों को सड़क से जोड़ने हेतु सड़कों का निर्माण चरणबद्ध रूप से 23 करोड़ 62 लाख रुपये की लागत से करवाये जाने की मैं घोषणा करती हूँ।
14. मुझे सदन को यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि केन्द्र सरकार ने लगभग 625 किलोमीटर लंबाई की निम्न तीन सड़कों को नये राष्ट्रीय राजमार्ग घोेषित करने की सैद्धांतिक सहमति प्रदान कर दी हैः-
– झिरखा फिरोजपुर (हरियाणा)-पहाड़ी – नगर – खेड़ली – महुआ – हिण्डौन – करौली – मण्डरायल-मुहाना
– सिरसा-नोहर-तारानगर-चूरू
– जालौर-रामसिन-भीनमाल-करडा-सांचैर


साथ ही, जोधपुर बाई पास को भी नेशनल हाईवे बनाने की सैद्धांतिक सहमति केन्द्र सरकार द्वारा दी गयी है।

श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सूचना एवं प्रौद्योगिकी

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श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सूचना एवं प्रौद्योगिकी 
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं
30 मार्च, 2016
‘‘हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते’’
हमारा बजट प्रदेश के विकास और सब जन के कल्याण की भावना से प्रेरित बजट है, राजनीतिक लाभ से नहीं। हमने कोशिश की है जन भावना और स्थानीय मांगों के अनुरूप प्रस्ताव बजट में शामिल हों। बजट प्रस्तुत करने के बाद भी कुछ मांगें आई हैं, इनको मैं सकारात्मक रूप से देखती हूं।

उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते,
दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते।
हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का,
वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते।।

बजट के बाद प्राप्त मांगों में से कुछ मांगों के संबंध में मैं निम्न घोषणाएं करती हूं –
श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सूचना एवं प्रौद्योगिकी
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं

सूचना एवं प्रौद्योगिकी
15. राज्य, संभाग एवं जिला स्तर की तरह पंचायत स्तर तक के समस्त सरकारी कर्मियों को सरकारी कार्यों हेतु सूचना के सुगम आदान प्रदान के लिए राजकीय ई-मेल एवं अटल सेवा केन्द्रों पर IP Phone की सुविधा उपलब्ध करवाये जाने की घोषणा करती हूँ।
16. विभिन्न विकास योजनाओं में प्रदेश के नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए मैं crowd sourcing portal बनाने की घोषणा करती हूँ। जिसके माध्यम से हमारी किसी भी परियोजना में, सभी इच्छुक व्यक्ति प्रदेश से और प्रदेश के बाहर से अपनी पसंदीदा योजना में अपनी सामथ्र्य अनुसार योगदान कर सकेंगे।
17. Digital राजस्थान का सपना तभी साकार होगा जब शहर के साथ साथ ग्रामीण प्रदेशवासी भी IT में साक्षर होंगे। इसके लिए आवश्यक है कि हर घर में IT literate व्यक्ति हों। मैं आगामी वर्ष में 2 लाख प्रदेशवासियों को IT training प्रदान किये जाने की घोषणा करती हूँ।
18. प्रदेशवासियों को सरलता और सुगमता से सरकारी सेवायें उपलब्ध करवाने के लिए 200 से अधिक सेवायें online उपलब्ध करवायी जा रही है। Online होने के बाद भी कई बार प्रक्रियात्मक जटिलता जैसे आवेदन पर हस्ताक्षर करना तथा दस्तावेज की प्रति upload करना आदि से आमजन को पूर्ण सुविधा नहीं मिल पाती है। जनता की इस परेशानी को दूर करने के लिए मैं निम्न सुविधाएं उपलब्ध करवाने की घोषणाः-
– Rajasthan Single – Sign – On (RajSSO) : One Identity and One Application for all departmental e-services के माध्यम से केवल एक log in के द्वारा प्रत्येक प्रदेशवासी अपने से संबंधित चयनित समस्त सेवाओं को access कर सकता है। अलग अलग website पर जाने और अलग अलग password याद रखने की आवश्यकता नहीं होगी।
– Rajasthan e-Vault (Raj e-Vault / e-Locker : Central and Secure Respository for all Documents Integrated with Various Departmental Applications) के माध्यम से प्रत्येक प्रदेशवासी द्वारा अपने पारिवारिक और व्यक्तिगत locker जिसमें सरकारी और निजी दस्तावेज आसानी से electronic form में रखे जा सकेंगे और single sign on के माध्यम से कहीं भी कभी भी आवश्यकतानुसार print लिये जा सकेंगे या electronic माध्यम से किसी भी आवेदन पत्र के साथ संलग्न किये जा सकेंगे।
– Rajasthan e-Sign (Raj e-Sign) : Secure e-Signature (e-Sign) mechanism for residents and government employees – On-line आवेदन तभी सही मायने में काम के हैं, जब उन्हेें अलग से हस्ताक्षरित करवाने की आवश्यकता न हो। इसके लिए हमनें सभी को e-Sign की सुविधा उपलब्ध कराने का निर्णय लिया हैै। देश में, ऐसी सुविधा देने वाला राजस्थान पहला प्रदेश होगा।
– नित्य-प्रतिदिन के राजकीय कार्यों का IT enablement करके राजकीय कार्यालयों को less paper offices बनाने का कार्य प्रारंभ किया जायेगा। इसके अंतर्गत प्रथम चरण में meeting, appointment, leave, transfer, posting, deputation, APR, tour एवं travel management, leave encashment, medical एवं अन्य विभिन्न प्रकार के बिलों केे भुगतान, विभिन्न NoC, project approvals, sanctions आदि कार्यों को online कर इन कार्यों में manual files का उपयोग समाप्त किया जायेगा। यह राज्य सरकार का intent है, हमनें एक पहल की है जिससे आमजन को पारदर्शी और त्वरित सेवाएं मिलेंगी। इस बदलाव में समय तो लगेगा, परंतु इनकी निश्चित तौर पर क्रियान्विति की जायेगी।
– इसके साथ ही RIICO, BIP, Commissioner, Industry एवं MSME के कार्यालयोें को less paper किया जायेगा। इसके लिए आवश्यक government process re-engineering भी की जायेगी ताकि निवेशकों को सुगमता से सुविधाएं उपलब्ध हो सकें।

– आमजन को सरकारी योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए विभिन्न दस्तावेज जमा कराने की व्यवस्था से छुटकारा दिलाने के लिए आगामी वर्षों में चरणबद्ध रूप से e-Mitra के माध्यम से मिलने वाली सेवाओं में दस्तावेज संलग्न करने की आवश्यकता को भी समाप्त किये जाने की मैं घोषणा करती हूँ।

श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : स्कूल शिक्षा

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श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : स्कूल शिक्षा
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं
30 मार्च, 2016
‘‘हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते’’
हमारा बजट प्रदेश के विकास और सब जन के कल्याण की भावना से प्रेरित बजट है, राजनीतिक लाभ से नहीं। हमने कोशिश की है जन भावना और स्थानीय मांगों के अनुरूप प्रस्ताव बजट में शामिल हों। बजट प्रस्तुत करने के बाद भी कुछ मांगें आई हैं, इनको मैं सकारात्मक रूप से देखती हूं।

उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते,
दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते।
हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का,
वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते।।

बजट के बाद प्राप्त मांगों में से कुछ मांगों के संबंध में मैं निम्न घोषणाएं करती हूं –
स्कूल शिक्षा
19. राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय मण्डली चारणा, कजनऊ (बावड़ी), जिला जोधपुर को निर्धारित मापदण्ड के अनुसार माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत करने की घोषणा।
20. विद्यालय सहायक की नियुक्ति के विभिन्न प्रकरण माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन होने से इनकी भर्ती प्रक्रिया पूर्ण नहीं की जा सकी। इस समस्या के समाधान के लिए मंत्रीमण्डल की उप समिति विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रही है। उप समिति द्वारा रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करने पर उस पर विचार किया जाएगा।
21. तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा – 2012 से संबंधित षिक्षकगण के नियमित वेतनमान की समस्या का पंचायती राज विभाग ने विधिवत निराकरण कर लिया है।
22. सीकर स्थित राजकीय महाविद्यालय में स्नातक स्तर पर भौतिक शास्त्र विषय खोले जाने की घोषणा को संशोधित करते हुए इस विषय को स्नातकोत्तर स्तर पर खोले जाने की घोषणा। इसी महाविद्यालय में स्नातकोत्तर स्तर पर प्राणी शास्त्र, वनस्पति विज्ञान, भूगोल, समाजशास्त्र विषय प्रारंभ किये जाने की घोषणा। साथ ही, इसी महाविद्यालय में 50 लाख रुपये की लागत से आॅडिटोरियम बनाये जाने की घोषणा।
23. राजकीय कन्या महाविद्यालय, सादुलशहर में बजट भाषण में गृह विज्ञान विषय प्रारंभ किये जाने की घोषणा के बाद अब स्नातक स्तर के पंजाबी विषय को प्रारंभ किये जाने की घोषणा।
24. राजकीय महाविद्यालय, होद (खण्डेला) में भूगर्भ शास्त्र विषय प्रारंभ करने की बजट घोषणा को संशोधित करते हुए इसके स्थान पर गृह विज्ञान विषय प्रारंभ करने की घोषणा।
25. राजकीय धर्मचन्द महाविद्यालय, बहरोड़ में छात्रों की मांग को देखते हुए स्नातक स्तर पर विज्ञान संकाय खोलने की घोषणा।
26. नागौर के माड़ी देवी मिर्धा महाविद्यालय में विज्ञान संकाय-वनस्पति शास्त्र, प्राणी शास्त्र एवं रसायन शास्त्र प्रारंभ किये जाने की घोषणा।
27. राजकीय महाविद्यालय चूरू में भौतिक शास्त्र, प्राणी शास्त्र और गणित में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रारंभ किये जाने की घोषणा।

28. मंगलाना तहसील परबतसर जिला नागौर में एक राजकीय महाविद्यालय प्रारंभ किये जाने की घोषणा।

29. चैमहला – जिला झालावाड़, गोगून्दा – जिला उदयपुर तथा मांगरोल – जिला बारां में राजकीय महाविद्यालय खोले जाने की घोषणा।

श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं :ग्रामीण विकास

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श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं :ग्रामीण विकास 
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं
30 मार्च, 2016
‘‘हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते’’
हमारा बजट प्रदेश के विकास और सब जन के कल्याण की भावना से प्रेरित बजट है, राजनीतिक लाभ से नहीं। हमने कोशिश की है जन भावना और स्थानीय मांगों के अनुरूप प्रस्ताव बजट में शामिल हों। बजट प्रस्तुत करने के बाद भी कुछ मांगें आई हैं, इनको मैं सकारात्मक रूप से देखती हूं।

उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते,
दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते।
हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का,
वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते।।

बजट के बाद प्राप्त मांगों में से कुछ मांगों के संबंध में मैं निम्न घोषणाएं करती हूं –
श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सूचना एवं प्रौद्योगिकी
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं :- 


पेयजल
30. अटरू जिला बारां की पेयजल समस्या के समाधान हेतु 15 करोड़ रुपये की लागत से अटरू – खेड़लीगंज पेयजल योजना प्रारंभ की जायेगी।
31. Fluoride प्रभावित क्षेत्र में 2 हजार गांवों में 330 करोड़ रुपये की लागत से सामुदायिक आधार पर जल शोधन यंत्र (RO Plant) स्थापित किये जायेंगे।
जल संसाधन
32. जनजाति बाहुल्य बांसवाड़ा जिले की कुशलगढ़ तहसील के गंभीर रूप से जल अभावग्रस्त क्षेत्र में खांदू नदी जल ग्रहण क्षेत्र में वडलावाला नाका खजुरा एवं वडला की रेल खजुरा में 907 लाख रूपये की लागत से 2 Micro Storage Tanks का निर्माण किया जाएगा।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य
33. एलोपेथी के चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु अप्रेल 2016 से 60 से 62 वर्ष किये जाने की बजट घोषणा, अब मार्च 2016 से ही लागू।
34. पूर्व में स्वीकृत 7 मेडिकल काॅलेज के अलावा सीकर में भी भारत सरकार के सहयोग से एक नवीन मेडिकल काॅलेज की स्थापना की जायेगी। अलवर मेडिकल काॅलेज के लिए भी वर्तमान जेल परिसर में स्थान चिन्हित कर लिया गया है।

ग्रामीण विकास
35. MLA LAD योजना के तहत प्रत्येक विधायक के स्तर पर प्रत्येक वर्ष 2 करोड रूपए की राशि की सीमा को 25 लाख रूपए से बढ़ाते हुए अब वार्षिक 2 करोड 25 लाख रूपए का प्रावधान करने की घोषणा।
36. मैंने बजट में महात्मा गाँधी नरेगा से convergence के माध्यम से ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं को संचालित किये जाने पर विशेष बल दिया था। इसी क्रम में मैं निम्न घोषणायें करती हूँः-
– खाद्यान्न को सुरक्षित किये जाने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में 2 हजार खाद्यान्न भंडार निर्मित किये जायेंगे।
– पशुओं के लिए स्वच्छ वातावरण एवं छाया-पानी की उचित व्यवस्था हेतु लगभग 50 हजार परिवारों के लिए cattle shed, जिसमें पशुओं के लिए छाया, चारा एवं पानी की खेळी का निर्माण करवाया जायेगा।

श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : वन, जनजाति,गृह,पत्रकार कल्याण

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श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : वन, जनजाति,गृह,पत्रकार कल्याण
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं
30 मार्च, 2016
‘‘हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का, वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते’’
हमारा बजट प्रदेश के विकास और सब जन के कल्याण की भावना से प्रेरित बजट है, राजनीतिक लाभ से नहीं। हमने कोशिश की है जन भावना और स्थानीय मांगों के अनुरूप प्रस्ताव बजट में शामिल हों। बजट प्रस्तुत करने के बाद भी कुछ मांगें आई हैं, इनको मैं सकारात्मक रूप से देखती हूं।

उम्मीदों के दिए बुझाया नहीं करते,
दूर हो मंजिल पर पांव डगमगाया नहीं करते।
हो दिल में जिसके जज्बा मंजिल छूने का,
वो मुश्किलों से कभी घबराया नहीं करते।।

बजट के बाद प्राप्त मांगों में से कुछ मांगों के संबंध में मैं निम्न घोषणाएं करती हूं –
श्रीमती वसुंधरा राजे : महत्वपूर्ण घोषणाएं : सूचना एवं प्रौद्योगिकी
विधानसभा में वित्त और विनियोग विधेयक पर जवाब देते हुए महत्वपूर्ण घोषणाएं :- 


वन
37. विलायती बबूल से निर्मित कोयले के परिवहन को सरल बनाने के उद्देश्य से transit pass जारी करने की प्रक्रिया का सरलीकरण एवं decentralisation किये जाने की घोषणा करती हूँ। नवीन व्यवस्था के तहत जिले में transit pass जारी करने के लिए पटवारी authorised होगा, राज्य में कहीं भी परिवहन हेतु transit pass जारी करने के लिए संबंधित तहसीलदार तथा राज्य से बाहर का transit pass जारी करने के लिए संबंधित उपखण्ड अधिकारी authorised होगा।
जनजाति
38. जनजाति क्षेत्र विकास विभाग द्वारा आवासीय विद्यालय संचालित कियेे जा रहे हैं जिसमें से 10 विद्यालयों में विज्ञान संकाय संचालित नहीं हैं। आगामी वर्ष से इन 10 आवासीय विद्यालयों में भी विज्ञान संकाय प्रारंभ किये जाने की मैं घोषणा करती हूँ।
गृह
39. वर्तमान में विशेष शाखा के अंतर्गत anti-sabotage check team, bomb disposal squad तथा dog squad कार्यरत हैं। जिनमें एकरूपता नहीं है। इन आठ विशेष शाखाओं के norms निर्धारित करते हुए मैं घोषणा करती हूँ कि 3 पुलिस निरीक्षक, 17 उप-निरीक्षक, 23 हैड कांस्टेबल, 41 कांस्टेबल, 2 कांस्टेबल चालक, 8 चतुर्थ श्रेणी के अतिरिक्त पद सृजित किये जायेंगे।
40. पुलिस लाईन सिटी, जयपुर में बैरक निर्माण हेतु 5 करोड़ रुपये स्वीकृत किया जाना प्रस्तावित है।
कौशल एवं श्रम
41. राज्य की समृद्ध लोक कलाओं तथा लोक कलाकारों के हुनर विश्व प्रसिद्ध हैं। युवा वर्गों में हमारी इस अटूट परंपरा को अधिक सशक्त करने के लिए राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम द्वारा आगामी वित्तीय वर्ष में विशेष कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किये जायेंगे। इस कड़ी में सर्वप्रथम जैसलमेर में मंगणियार एवं लंघा कलाकारों के लिए पारंपरिक कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ करने की घोषणा करती हूं।
42. निर्माण श्रमिकों को अपने व्यवसाय हेतु आवश्यक गुणात्मक औजार खरीदने में सहायता करने के लिए निर्माण श्रमिक कल्याण मंडल द्वारा न्यूनतम 3 वर्ष तक निरंतर पंजीकृत हितधारियों को स्वयं के स्तर पर tool kit खरीदने की स्थिति में 2 हजार रुपये का पुनर्भरण उनके बैंक खाते में किये जाने की घोषणा करती हूँ।
पत्रकार कल्याण
43. अधिस्वीकृत पत्रकारों के लिए वर्तमान में 2 लाख एवं 10 लाख रुपये की मेडिक्लेम पाॅलिसी का विकल्प है। अब यह विकल्प 5 लाख की mediclaim policy के लिए भी उपलब्ध करवाये जाने की घोषणा करती हूँ।

44. accredited पत्रकारों को रोड़वेज की वोल्वो बसों में निःशुल्क यात्रा की सुविधा प्रदान किये जाने की घोषणा करती हूँ।

ईश्वर तो है

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 ईश्वर तो है 

एक प्रसिद्ध कैंसर स्पैश्लिस्ट था|
नाम था मार्क,
एक बार किसी सम्मेलन में
भाग लेने लिए किसी दूर के शहर जा रहे थे।
वहां उनको उनकी नई मैडिकल रिसर्च के महान कार्य के लिए पुरुस्कृत किया जाना था।
वे बड़े उत्साहित थे,
व जल्दी से जल्दी वहां पहुंचना चाहते थे। उन्होंने इस शोध के लिए बहुत मेहनत की थी।
बड़ा उतावलापन था,
उनका उस पुरुस्कार को पाने के लिए।

जहाज उड़ने के लगभग दो घण्टे बाद उनके जहाज़ में तकनीकी खराबी आ गई,
जिसके कारण उनके हवाई जहाज को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।
डा. मार्क को लगा कि वे अपने सम्मेलन में सही समय पर नहीं पहुंच पाएंगे,
इसलिए उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों से रास्ता पता किया और एक टैक्सी कर ली, सम्मेलन वाले शहर जाने के लिए।
उनको पता था की अगली प्लाईट 10 घण्टे बाद है।
टैक्सी तो मिली लेकिन ड्राइवर के बिना इसलिए उन्होंने खुद ही टैक्सी चलाने का निर्णय लिया।

जैसे ही उन्होंने यात्रा शुरु की कुछ देर बाद बहुत तेज, आंधी-तूफान शुरु हो गया।
रास्ता लगभग दिखना बंद सा हो गया। इस आपा-धापी में वे गलत रास्ते की ओर मुड़ गए।
लगभग दो घंटे भटकने के बाद उनको समझ आ गया कि वे रास्ता भटक गए हैं। थक तो वे गए ही थे,
भूख भी उन्हें बहुत ज़ोर से लग गई थी। उस सुनसान सड़क पर भोजन की तलाश में वे गाड़ी इधर-उधर चलाने लगे।
कुछ दूरी पर उनको एक झोंपड़ी दिखी।
झोंपड़ी के बिल्कुल नजदीक उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी।
परेशान से होकर गाड़ी से उतरे और उस छोटे से घर का दरवाज़ा खटखटाया।
एक स्त्री ने दरवाज़ा खोला।
डा. मार्क ने उन्हें अपनी स्थिति बताई और एक फोन करने की इजाजत मांगी। उस स्त्री ने बताया कि उसके यहां फोन नहीं है।
फिर भी उसने उनसे कहा कि आप अंदर आइए और चाय पीजिए।
मौसम थोड़ा ठीक हो जाने पर,
आगे चले जाना।

भूखे,
भीगे
और
थके हुए डाक्टर ने तुरंत हामी भर दी।
उस औरत ने उन्हें बिठाया,
बड़े सम्मान के साथ चाय दी व कुछ खाने को दिया।
साथ ही उसने कहा, "आइए, खाने से पहले भगवान से प्रार्थना करें
और उनका धन्यवाद कर दें।"
डाक्टर उस स्त्री की बात सुन कर मुस्कुरा दिेए और बोले,
"मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता।
मैं मेहनत पर विश्वास करता हूं।
आप अपनी प्रार्थना कर लें।"
टेबल से चाय की चुस्कियां लेते हुए डाक्टर उस स्त्री को देखने लगे जो अपने छोटे से बच्चे के साथ प्रार्थना कर रही थी।
उसने कई प्रकार की प्रार्थनाएं की। डाक्टर मार्क को लगा कि हो न हो,
इस स्त्री को कुछ समस्या है।
जैसे ही वह औरत
अपने पूजा के स्थान से उठी,
तो डाक्टर ने पूछा,
"आपको भगवान से क्या चाहिेए?
क्या आपको लगता है कि भगवान आपकी प्रार्थनाएं सुनेंगे?"
उस औरत ने धीमे से उदासी भरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा,
"ये मेरा लड़का है
और इसको कैंसर रोग है
जिसका इलाज डाक्टर मार्क नामक व्यक्ति के पास है
परंतु मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं
कि मैं उन तक,
उनके शहर जा सकूं
क्योंकि वे दूर किसी शहर में रहते हैं।
यह सच है की कि भगवान ने अभी तक मेरी किसी प्रार्थना का जवाब नहीं दिया किंतु मुझे विश्वास है
कि भगवान एक न एक दिन कोई रास्ता बना ही देंगे।
वे मेरा विश्वास टूटने नहीं देंगे।
वे अवश्य ही मेरे बच्चे का इलाज डा. मार्क से करवा कर इसे स्वस्थ कर देंगे।
डाक्टर मार्क तो सन्न रह गए।
वे कुछ पल बोल ही नहीं पाए।
आंखों में आंसू लिए धीरे से बोले,
"भगवान बहुत महान हैं।"
(उन्हें सारा घटनाक्रम याद आने लगा। कैसे उन्हें सम्मेलन में जाना था।
कैसे उनके जहाज को इस अंजान शहर में आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।
कैसे टैक्सी के लिए ड्राइवर नहीं मिला और वे तूफान की वजह से रास्ता भटक गए और यहां आ गए।)
वे समझ गए कि यह सब इसलिए नहीं हुआ कि भगवान को केवल इस औरत की प्रार्थना का उत्तर देना था
बल्कि भगवान उन्हें भी एक मौका देना चाहते थे
कि वे भौतिक जीवन में
धन कमाने,
प्रतिष्ठा कमाने, इत्यादि
से ऊपर उठें और असहाय लोगों की सहायता करें।
वे समझ गए की भगवान चाहते हैं
कि मैं उन लोगों का इलाज करूं जिनके पास धन तो नहीं है
किंतु जिन्हें भगवान पर विश्वास है।

हर इंसान को ये ग़लतफहमी होती है
की जो हो रहा है,
उस पर उसका कण्ट्रोल है
और वह इन्सान ही
सब कुछ कर रहा है ।
पर अचानक ही कोई
अनजानी ताकत सबकुछ बदल देती है
कुछ ही सेकण्ड्स लगते हैं
सबकुछ बदल जाने में
फिर हम याद करते हैं
परमपिता परमात्मा को।
अतः या तो ईश्वर को छोड़ दें
या फिर ईश्वर के ऊपर छोड़ दें।

'भारत माता की जय' - प्रशान्त बाजपेई

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कौन नहीं बोलना चाहता जय ?
तारीख: 28 Mar 2016



'दु:स्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता'भारत को स्नेहमयी मां कहने वाली ये पंक्तियां गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना 'जन -गण-मन'की हैं जिसके प्रथम छंद को भारत के राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया है। अर्थात् 'जन-गण-मन'की पृष्ठभूमि में भी राष्ट्र का मातृरूप समाहित है। जिस मातृरूप को सामने रखकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी गई, और वंदेमातरम् भारत का राष्ट्र मंत्र बन गया। पर भारत में तथाकथित 'सेकुलर', लिबरल और वामपंथी बुद्धिजीवियों का एक ऐसा वर्ग है जिन्हंे 'भारत की बरबादी'के नारे तो  विचलित नहीं करते लेकिन 'भारत माता की जय'या 'वंदेमातरम्'का उद्घोष बेचैन कर देता है। उन्हीं की ताल पर असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग मजहबी उन्माद का आलाप देते हैं। इन लोगों का तर्क  है कि मुसलमान देश के नागरिक मात्र बनकर रहें  लेकिन जन्मभूमि का बेटा होने का गौरव न करें।
बुद्धिजीवी कहलाने वाले इसे 'मर्जी'का मामला'बताते हैं तो कट्टरपंथी इसे मजहब का मामला कहते हैं और इससे सवाल उठता है कि  क्या मां को मां कहने से ईश्वर नाराज हो सकता है? क्या मां को नकारकर अपनी पहचान बचाई जा सकती है? जिन प्रश्नों  का उत्तर कोई बच्चा भी दे सकता है, कई बार वे प्रश्न राजनीति के खिलाडि़यों को बड़े कठिन लगते हैं। नागरिकता तो कानूनी मान्यता है लेकिन अपनी धरती का बेटा होना भावनात्मक संबंध है। इस भावनात्मक संबंध के बिना राष्ट्र खड़े नहीं होते। भावों के जागरण के लिए मां-बेटे से ज्यादा शक्तिशाली कौन-सा प्रतीक हो सकता है? नकार  की इस शृंखला में नया पैंतरा यह है कि बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास 'आनंदमठ' (प्रकाशन 1882) से पहले भारत माता की परिकल्पना थी ही नहीं। तर्क  के ऐसे धनी लोगों को हजारों वर्ष पहले रचित वाल्मीकि रामायण पढ़नी चाहिए जिसमें श्रीराम जन्मभूमि की तुलना जन्म देने वाली माता से करते हुए कहते हैं, 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी', प्राचीन काल से ही भारत माता को ज्ञानदायिनी, जीवनदायिनी और रक्षा करने वाली के रूप में देखा गया। वेदों ने ही इस देश को भारत कहा है। अब 'सेकुलर'टोली भारत नाम को भी सांप्रदायिक घोषित कर सकती है।

जब बंकिमचन्द्र 'वंदेमातरम् 'गाते हैं और 'जन -गण-मन'की (अगली) पंक्तियों में जब रवीन्द्रनाथ कहते हैं कि—
'तव करुणारुण-रागे, निद्रित भारत जागे, तव चरणे नत माथा'तो क्या वे उसी भाव को नहीं जगाते जो कहता है कि 'मां के कदमों के तले जन्नत है।'फिर भारत माता संबोधन का विरोध क्यों?
मुस्लिम बहुल बांग्लादेश के राष्ट्रगीत में बार-बार 'मां'संबोधन आता है। देखिये इन पंक्तियों को- 'मां, तोर मुखेर बानी, आमार काने लागे सुधामृतो।'अर्थ है कि मां तुम्हारी वाणी मेरे कानों को अमृत समान लगती है। आगे की पंक्तियां कहती हैं- 'मां तोर बदन खानी मलिन होले, आमी नयन ओ मां आमी नयन जोले भाषी। सोनार बंगला, आमी तोमाय भालो बाशी।'अर्थ हुआ- 'मां यदि तुम्हारा मुख दु:ख से मलिन होता है, तो हमारी आंखों में अश्रु भर जाते हैं। ओ स्वर्णमय बंगाल, मैं तुमसे प्यार करता हूं।' 87 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया के राष्ट्र गीत की पंक्तियां कहती हैं- 'मेरे देश इंडोनेशिया, वह धरती जिसके लिए मैं अपना खून बहाता हूं, मैं यहां हूं अपनी मातृभूमि का सेवक बनने के लिए।'मुस्लिम बहुल तुर्क मेनिस्तान के मुस्लिम  अपने राष्ट्रगीत में गाते हैं- 'पर्वत, नदियां और मैदानों की शोभा, प्रेम और भाग्य, प्रकटन है मेरा। ओ मेरे पुरखों और मेरी संतानों की मातृभूमि।' 98 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले अजरबैजान के आड़े इस्लाम नहीं आता जब वे गाते हैं- 'गौरवशाली मातृभूमि! गौरवशाली मातृभूमि! अजरबैजान! अजरबैजान!'मिस्रवासी मिस्र को सभी देशों की माता निरूपित करते हैं। मिस्र का राष्ट्रगान कहता है- 'मिस्र! ओ मिस्र, हे सभी देशों की माता, तुम मेरी आशा और मेरी महत्वाकांक्षा हो।  तुम्हारी नील (नदी) में असीम गौरव है।'मिस्र में मुस्लिम आबादी कुल जनसंख्या का 90 प्रतिशत है। तजाकिस्तानवासी अपने देश के लिए गाते हैं- 'तुम हम सबकी माता हो, तुम्हारा भविष्य हमारा भविष्य है। हमारी देह और आत्मा का अर्थ तुमसे है।'तजाकिस्तान में मुस्लिम कुल आबादी का 99 फीसदी हैं। एक अन्य मुस्लिम देश उज्बेकिस्तान (मुस्लिम जनसंख्या 96.5 प्रतिशत) का राष्ट्रगान कहता है- 'स्वातंत्र्य की  प्रकाश स्तम्भ, शान्ति की संरक्षक, सत्यप्रेमी मातृभूमि! सदा फलो फूलो।'अब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब बांग्लादेश, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अजरबैजान, मिस्र, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों को अपनी भूमि को मातृभूमि कहने में गौरव का भान होता है तो फिर भारत में 'भारत माता की जय'बोलने में इस्लाम पर खतरा कैसे आ सकता है? इस धोखेबाजी के बारे में सभी देशवासी और विशेष रूप से मुसलमानों को बताना जरूरी है। वास्तव में ऐसे लोगों का उद्देश्य भारत के मुसलमानों को भारत की जड़ों से जुड़ने से रोकना और उनका अरबीकरण करना है। इसी सोच के चलते कट्टरपंथियों द्वारा मुसलमानों से शेष देशवासियों से अलग दिखने, अलग वेशभूषा धारण करने का आग्रह किया जाता है।  इसी राग में एक नया कुतर्क जोड़ा गया है कि 'मैं भारत माता की जय नहीं कहूंगा क्योंकि ऐसा संविधान में नहीं लिखा है।' इसी कुतर्क और मुसलमानों के अरबीकरण के छिपे एजेंडे पर चोट करते हुए गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने राज्यसभा में कहा कि''शेरवानी और टोपी क्यों पहनते हो? ऐसा करने के लिए भी तो संविधान में नहीं लिखा है।''
आजकल जब कभी ऐसे मुद्दों पर चर्चा होती है तो सेक्युलर वीरों को अटल जी की याद सताने लगती है। जब जेएनयू में लगे राष्ट्रविरोधी नारों के संबंध में गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप किया तो ऐसे लोगों द्वारा कहा जाने लगा कि सरकार गलत लड़ाई का चुनाव कर रही है और अटल जी होते तो कहते कि 'छोकरे हैं, जाने दो।'ऐसे लोगों को 29 मार्च, 1973 को (बांग्लादेश निर्माण के सवा साल बाद) लोकसभा में दिए गए उनके भाषण को पढ़ना चाहिए।  अटल जी ने कहा था ''हम आशा करते थे कि पाकिस्तान का विभाजन हो गया, मजहब के आधार पर पाकिस्तान एक नहीं रह सका। स्वाधीन बांग्लादेश का आविर्भाव हुआ। अब भारत का भी वातावरण बदलेगा और मजहब के आधार पर संघर्ष या विशेषाधिकारों की मांग नहीं होगी। लेकिन ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की मुक्ति से हमने कोई पाठ नहीं सीखा।  आज मुसलमानों में एक वर्ग ऐसा क्यों निकल रहा है जो मुंबई में खड़े हो कर कहता है कि हम 'वंदेमातरम्'कहने के लिए तैयार नहीं हैं। 'वंदेमातरम्'इस्लाम विरोधी नहीं है। क्या इस्लाम को मानने वाले जब नमाज पढ़ते हैं तो इस देश की धरती पर, इस देश की पाक जमीन पर सिर नहीं टेकते हैं? ऐसे मुद्दे पर किसी को भी असहमत होने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कल यह कहेंगे कि  'तिरंगा झंडा है, मगर हम तिरंगे के आगे झुकेंगे नहीं, क्योंकि हम अल्लाह के आगे झुकते हैं। हिंदुस्थान में रहने वाले हर आदमी को तिरंगे के सामने झुकना पड़ेगा।''यहां पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मुहम्मद खान को उद्धृत करना समीचीन होगा कि ''भारत सरकार ने एक परिपत्र के जरिये जब से राज्य सरकारों से राष्ट्रीय गीत गाने  के लिए कहा है, तब से एक अनावश्यक विवाद शुरू हो गया है। सबसे पहले परिपत्र का विरोध मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने किया।  उनके प्रवक्ता ने मुस्लिम अभिभावकों को हिदायत जारी की कि वे अपने बच्चों को 7 सितंबर को स्कूल न भेजें। 'फरमान'जारी करने से पहले पर्सनल लॉ बोर्ड के पास न तो गीत का प्रामाणिक अनुवाद था, और न ही उस भाषा की जानकारी जिसमें यह गीत लिखा है।  आज तक उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि क्या वे सिर्फ  स्कूलों में राष्ट्रीय गीत गाए जाने के विरोधी हैं या फिर संसद जहां हर सत्र का समापन वंदेमातरम् से होता है और राजनैतिक दल, जिनके हर अधिवेशन में वंदेमातरम् गाया जाता है, उसके मुसलमान सदस्यों पर भी वह यही हुक्म जारी करेंगे? .... कोई व्यक्ति अगर गाना नहीं चाहता, तो हम कानून बना लें, तो भी उसे मजबूर नहीं कर पाएंगे, लेकिन क्या हम यह अधिकार किसी व्यक्ति या पर्सनल लॉ बोर्ड को दे सकते हैं कि वह राष्ट्रीय गीत का विरोध करे, गाने से परहेज करे? दूसरों को विरोध के लिए भड़काना और उकसाना केवल राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।''
आरिफ मुहम्मद खान, नजमा हेपतुल्ला जैसे मुसलमानों की बात सुनी जानी चाहिए। देश में ऐसी हरकतों के खिलाफ विरोध मुखर हो रहा है। और 'सेक्युलर'महारथी भी देश के मिजाज को भांप रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने में आया महाराष्ट्र विधानसभा में, जब कांग्रेस और एनसीपी के विधायक भी अपने केंद्रीय नेतृत्व द्वारा रखी गई मिसालों के उलट 'भारत माता की जय'न बोलने वाले एआईएमआईएम के विधायक को निलंबित करने के लिए भाजपा-शिवसेना विधायकों के साथ आ खड़े हुए। माहौल भांपते हुए ओवैसी भी लीपापोती करने आए और बोले 'भारत माता की जय'नहीं 'जय हिंद'बोलूंगा। अभिनेत्री शबाना आजमी ने ओवैसी पर कटाक्ष किया कि चलो 'भारत अम्मी की जय'ही बोल दो। सोशल मीडिया उबला भी और ओवैसी का मखौल भी उड़ाया कि 'नहीं बोलूंगा-नहीं बोलूंगा'कहकर एआईएमआईएम प्रमुख ने बार-बार 'भारत माता की जय'तो बोली ही।  


दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति में हिन्दू धर्म की झलक

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सनातन धर्म के 90 हजार से भी ज्यादा वर्षों के लिखित इतिहास में लगभग 20 हजार वर्ष पूर्व नए सिरे से वैदिक धर्म की स्थापना हुई और नए सिरे से सभ्यता का विकास हुआ। विकास के इस प्रारंभिक क्रम में हिमयुग की समाप्ति के बाद घटनाक्रम तेजी से बदला। वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, रुद्र, मरुदगण, किन्नर, नाग आदि। प्रारंभ में ब्रह्मा और उनके पुत्रों ने धरती पर विज्ञान, धर्म, संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। इस दौर में शिव और विष्णु सत्ता, धर्म और इतिहास के केंद्र में होते थे। देवता और असुरों का काल अनुमानित 20 हजार ईसा पूर्व से लगभग 7 हजार ईसा पूर्व तक चला। फिर धरती के जल में डूब जाने के बाद ययाति और वैवस्वत मनु के काल और कुल की शुरुआत हुई। दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का कनेक्शन था। संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी। 

आज दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी, यजीदी, रोमा, पारसी, बौद्ध धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो। अफगानिस्तान पहले था हिन्दू राष्ट्र भातीय लोगों ने इस दौर में विश्‍वभर में विशालकाय मंदिर, भवन और नगरों का निर्माण कार्य किया किया था। हिन्दू धर्म ने अपनी जड़ें यूरोप से लेकर एशिया तक फैला रखी थी, जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। आज हम आपको विश्व की ऐसी ही जगहों के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि यहां कभी हिन्दू धर्म अपने चरम पर हुआ करता था। 1.सिन्धु-सरस्वती घाटी की हड़प्पा एवं मोहनजोदोड़ो सभ्यता (5000-3500 ईसा पूर्व) : हिमालय से निकलकर सिन्धु नदी अरब के समुद्र में गिर जाती है। प्राचीनकाल में इस नदी के आसपास फैली सभ्यता को ही सिन्धु घाटी की सभ्यता कहते हैं। इस नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता के अवशेष मिले। इसके बाद चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा (राजस्थान), सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा (गुजरात), अलीमुराद (सिंध प्रांत), कच्छ (गुजरात), रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक सीमा) आदि जगहों पर खुदाई करके प्राचीनकालीन कई अवशेष इकट्ठे किए गए। अब इसे सैंधव सभ्यता कहा जाता है। 

हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते रहे हैं और आधुनिक काल में भी कर रहे हैं। यहां हुई खुदाई से पता चला है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। चार्ल्स मेसन ने वर्ष 1842 में पहली बार हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने 1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी तथा इसमें एक अन्य पुरातत्वविद माधो सरूप वत्स ने उनका सहयोग किया था। इस दौरान हड़प्पा से कई ऐसी ही चीजें मिली हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म से जोड़ा जा सकता है। पुरोहित की एक मूर्ति, बैल, नंदी, मातृदेवी, बैलगाड़ी और शिवलिंग। 1940 में खुदाई के दौरान पुरातात्विक विभाग के एमएस वत्स को एक शिव लिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है। शिवजी को पशुपतिनाथ भी कहते हैं। बाली का प्राचीन मंदिर : इंडोनेशिया कभी हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था, लेकिन इस्लामिक उत्थान के बाद यह राष्ट्र आज मुस्लिम राष्ट्र है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जहां आज इंडोनेशियन इस्लामिक यूनिवर्सिटी है वहां कभी हिन्दू मंदिर हुआ करता था, जिसमें शिव और गणेश की पूजा की जाती थी। यहां से एक ऐतिहासिक शिवलिंग भी मिला है। इंडोनेशिया के एक द्वीप है बाली जो हिन्दू बहुल क्षेत्र है। यहां के हिन्दुओं ने अपने धर्म और संस्कृति को नहीं छोड़ा था। बाली में एक इमारत के निर्माण की खुदाई के दौरान मजदूरों को मंदिर के कुछ अंश मिले जिसके बाद यह खबर बाली के ऐतिहासिक संरक्षण विभाग को दी गई जिसने खुदाई करने पर एक विशाल हिन्दू इमारत को पाया, जो कभी हिन्दू धर्म का केंद्र था। यह विशालकाय मंदिर आज बाली द्वीप की पहचान बन गया है। इंडोनेशिया के द्वीप बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा की गुफा कहा जाता है। 19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं। शंकर पुत्र सुकेश के तीन पुत्र थे- माली, सुमाली और माल्यवान। माली, सुमाली और माल्यवान नामक तीन दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल (सुमेरु) पर्वत पर बसाई गई थी लंकापुरी। माली को मारकर देवों और यक्षों ने कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी। अपने नाना के उकसाने पर रावण ने अपनी सौतेली माता इलविल्ला के पुत्र कुबेर से युद्ध की ठानी थी और लंका को फिर से राक्षसों के अधीन लेने की सोची। रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलय द्वीप, वराह द्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, यव द्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था, परंतु पिता ने लंका के लिए रावण को दिलासा दी तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप (तिब्बत) क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। इसी तारतम्य में रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया। आज के युग अनुसार रावण का राज्य विस्तार, इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका पर रावण का राज था। वेटिकन शहर का शिवलिंग : कुछ लोग कहते हैं कि वेटिकन तो वाटिका का बिगड़ा रूप है। वैदिक काल में यह स्थान भी हिन्दू धर्म का केंद्र हुआ करता था। यहां पुरातात्विक खुदाई के दौरान शिवलिंग प्राप्त हुआ है जो रोम के ग्रेगोरियन इट्रस्केन संग्रहालय (Gregorian Etruscan Museum) में रखा गया है। यह भी कहा जाता है कि वेटिकन सिटी का मूल स्वरूप शिवलिंग के समान ही है। इतिहासकार पी.एन.ओक ने अपने शोध में यह दावा किया है कि धर्म चाहे कोई भी हो उसका उद्भव सनातन धर्म यानि की हिन्दू धर्म में से ही हुआ है। अपने दावो को आधार देने के लिए पी.एन.ओक ने कई उदाहरण भी पेश किए हैं जिनमें से रोम का वेटिकन शहर प्रमुख है। ओक का कहना है कि वेटिकन शब्द की उत्पत्ति हिन्दी के ‘वाटिका’ शब्द से हुई है। इतना ही नहीं उनका कहना है कि ईसाई धर्म यानि ‘क्रिश्चैनिटी’ को भी सनातन धर्म की ‘कृष्ण नीति’ और अब्राहम को ‘ब्रह्मा’ से ही लिया गया है। पी.एन.ओक का कहना है कि इस्लाम और ईसाई, दोनों ही धर्म वैदिक मान्यताओं के विरुपण से जन्में हैं। वेटिकन शहर की संरचना और शिवलिंग की आकृति में एक गजब की समानता है। इस तस्वीर को देखकर आप समझ सकते हैं कि हिन्दुओं के पवित्र प्रतीक शिवलिंग और वेटिकन शहर के प्रांगण की रचना में अचंभित कर देने वाली समानता है। शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंडर) और एक बिन्दु होती हैं, ये रेखाएं शिवलिंग पर भी समान रूप से अंकित होती हैं। ध्यान से देखने पर आपको समझ आएगा कि जिन तीन रेखाओं और एक बिन्दू का जिक्र यहां कर रहे हैं वह पिआज़ा सेन पिएट्रो के रूप में वेटिकन शहर के डिजाइन में समाहित है। 

कंबोडिया का हिन्दू सम्राज्य : विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर'था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था। कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था। पौराणिक काल का कंबोजदेश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। पहले हिंदू रहा और फिर बौद्ध हो गया। सदियों के काल खंड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिंदू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह हैं ही, लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो और फिर अंगकोर वाट की बात ही निराली है। ये दुनिया का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है। विश्व विरासत में शामिल अंगकोर वाट मंदिर-समूह को अंगकोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चौदहवीं सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरूप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रांसिसी पुरातत्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मंदिर जिस रूप में है, उसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। सन् 1986 से 93 तक एएसआई ने यहाँ संरक्षण का काम किया था। अंगकोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियाँ कहती हैं। यह मंदिर लगभग 1 स्क्वेयर मील क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां की दीवारों पर पर छपे चित्र और उकेरी गई मूर्तियां हिन्दू धर्म के गौरवशाली इतिहास की कहानी को बयां करती हैं। सीताहरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अंगकोर वाट के आसपास कई प्राचीन मंदिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अंगकोर पार्क कहा जाता है। सियाम रीप क्षेत्र अपने आगोश में सवा तीन सौ से ज्यादा मंदिर समेटे हुए है। अफ्रीकी में हिन्दू : भगवान शिव कहां नहीं हैं? कहते हैं कण-कण में हैं शिव, कंकर-कंकर में हैं भगवान शंकर। कैलाश में शिव और काशी में भी शिव और अब अफ्रीका में शिव। साउथ अफ्रीका में भी शिव की मूर्ति का पाया जाना इस बात का सबूत है कि आज से 6 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीकी लोग भी हिंदू धर्म का पालन करते थे। साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6 हजार वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा। हाल ही में दुनिया की सबसे ऊंची शिवशक्ति की प्रतिमा का अनावरण दक्षिण अफ्रीका में किया गया। इस प्रतिमा में भगवान शिव और उनकी शक्ति अर्धांगिनी पार्वती भी हैं। बेनोनी शहर के एकटोनविले में यह प्रतिमा स्थापित की गई। हिन्दुओं के आराध्य शिव की प्रतिमा में आधी आकृति शिव और आधी आकृति मां शक्ति की है। 10 कलाकारों ने 10 महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस प्रतिमा को तैयार किया है। ये कलाकार भारत से आए थे। इस 20 मीटर ऊंची प्रतिमा को बनाने में 90 टन के करीब स्टील का इस्तेमाल हुआ है। चीन में हिन्दू : चीन के इतिहासकारों के अनुसार चीन के समुद्र से लगे औद्योगिक शहर च्वानजो में और उसके चारों ओर का क्षे‍त्र कभी हिन्दुओं का तीर्थस्थल था। वहां 1,000 वर्ष पूर्व के निर्मित हिन्दू मंदिरों के खंडहर पाए गए हैं। इसका सबूत चीन के समुद्री संग्रहालय में रखी प्राचीन मूर्तियां हैं। वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं है, लेकिन 1,000 वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फुच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं। 

यजीदी हिन्दू है? : इस्लामिक आतंकवाद के चलते यजीदी अब खत्म हो रही मनुष्य की विशिष्ट प्रजाति में शामिल हो चुके हैं। यजीदी धर्म भी विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। इस कुछ इतिहासकार हिन्दू धर्म का ही एक समाज मानते हैं। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है। यजीदी मंदिर की इस तस्वीर से यह सिद्ध हो जाएगा कि ये सभी हिन्दू हैं। शोध से पता चलता है कि यजीदियों का यजीद या ईरानी शहर यज्द से कोई लेना-देना नहीं। उनका संबंध फारसी भाषा के 'इजीद'से है जिसके मायने फरिश्ता है। इजीदिस के मायने हैं 'देवता के उपासक'और यजीदी भी खुद को यही कहते हैं। यजीदियों की कई मान्यताएं हिन्दू और ईसाइयत से भी मिलती-जुलती हैं। ईसाइयत के आरंभिक दिनों में मयूर पक्षी को अमरत्व का प्रतीक माना जाता था। बाद में इसे हटा दिया गया। 'यजीदी'का शाब्दिक अर्थ 'ईश्वर के पूजक'होता है। ईश्वर को 'यजदान'कहते हैं। यजीदी अपने ईश्वर को 'यजदान'कहते हैं। यजदान से 7 महान आत्माएं निकलती हैं जिनमें मयूर एंजेल है जिसे मलक ताउस कहा जाता है। मयूर एंजेल को दैवीय इच्छाएं पूरा करने वाला माना जाता है। यजीदी ईश्‍वर को इतना ऊपर मानते हैं कि उनकी सीधे उपासना नहीं की जाती। उन्हें सृष्टि का रचयिता तो मानते हैं, लेकिन रखवाला नहीं। हिन्दुओं की तरह ही यजीदियों में जल का महत्व है। धार्मिक परंपराओं में जल से अभिषेक किए जाने की परंपरा है। तिलक लगाते हैं और अपने मंदिर में दीपक जलाते हैं। हिन्दू देतता कार्तिकेय जैसे दिखाई देने वाले देवता की पूजा करते हैं। उनके मंदिर और हिन्दुओं के मंदिर समान नजर आते हैं। पुनर्जन्म को मानते हैं। यजीदी अपने ईश्‍वर की 5 समय प्रार्थना करते हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त में सूर्य की ओर मुंह करके प्रार्थना की जाती है। स्वर्ग-नरक की मान्यता भी है। धार्मिक संस्कार कराने वाले विशेषज्ञों की परंपरा है। व्रत, मेले, उत्सव की परंपरा भी है। समाधियां व पूजागृह (मंदिर) भी हैं। इनकी धार्मिक भाषा कुरमांजी है, जो प्राचीन परशियन (ईरान) की शाखा है। पृथ्वी, जल व अग्नि में थूकने को पाप समझते हैं। यजीदी धर्म परिवर्तन नहीं करते। यजीदी के लिए धर्म निकाला सबसे दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है, क्योंकि ऐसा होने पर उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता। रूस में हिन्दू : एक हजार वर्ष पहले रूस ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। माना जाता है कि इससे पहले यहां असंगठित रूप से हिन्दू धर्म प्रचलित था और उससे भी पहले संगठित रूप से वैदिक पद्धति के आधार पर हिन्दू धर्म प्रचलित था। वैदिक धर्म का पतन होने के कारण यहां मनमानी पूजा और पुजारियों का बोलबाला हो गया अर्थात हिन्दू धर्म का पतन हो गया। यही कारण था कि 10वीं शताब्दी के अंत में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग देवी-देवताओं को मानना छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें। इसके बाद रूसी राजा व्लादीमिर ने यह तय कर लिया कि वह और उसकी कियेव रियासत की जनता ईसाई धर्म को ही अपनाएंगे। रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर ने जब आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपनी जनता से भी इस धर्म को स्वीकार करने के लिए कहा तो उसके बाद भी कई वर्षों तक रूसी जनता अपने प्राचीन देवी और देवताओं की पूजा भी करते रहे थे। बाद में ईसाई पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सका है और धीरे-धीरे रूस के प्राचीन धर्म को नष्ट कर दिया गया। एक हजार वर्ष पूर्व रूस में था हिन्दू धर्म? प्राचीनकाल के रूस में लोग जिन शक्तियों की पूजा करते थे, उन्हें तथाकथित विद्वान लोग अब प्रकृति-पूजा कहकर पुकारते हैं। सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता। आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था। कोई भी संधि या समझौता करते हुए इन पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं और उन्हीं की पूजा मुख्य पूजा मानी जाती थी। प्राचीनकाल में रूस के दो और देवताओं के नाम थे- रोग और स्वारोग। सूर्य देवता के उस समय के जो नाम हमें मालूम हैं, वे हैं- होर्स, यारीला और दाझबोग। सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं जिनके नाम हैं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना कहीं इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा नहीं हुआ? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता कहीं हिन्दी का ‘जीव’ ही तो नहीं? ‘जीव’ यानी हर जीवंत आत्मा। रूस में यह जीवन की देवी थी। रूस में आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। कुछ मूर्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज्यादा समानता है। प्राचीनकाल में रूस के मध्यभाग को जम्बूद्वीप का इलावर्त कहा जाता था। यहां देवता और दानव लोग रहते थे। कुछ वर्ष पूर्व ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना (Staraya Maina) गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईस्वी सन् का बताया गया। यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था। स्ताराया मायना का अर्थ होता है गांवों की मां। उस काल में यहां आज की आबादी से 10 गुना ज्यादा आबादी में लोग रहते थे। माना जाता है कि रूस में वाइकिंग या स्लाव लोगों के आने से पूर्व शायद वहां भारतीय होंगे या उन पर भारतीयों ने राज किया होगा। महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता-जुलता है। अर्जुन के बाद बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है। यह विष्णु की मूर्ति शायद वही मूर्ति है जिसे ललितादित्य ने स्त्री राज्य में बनवाया था। चूंकि स्त्री राज्य को उत्तर कुरु के दक्षिण में कहा गया है तो शायद स्ताराया मैना पहले स्त्री राज्य में हो। खैर...! 2007 को यह विष्णु मूर्ति पाई गई। 7 वर्षों से उत्खनन कर रहे समूह के डॉ. कोजविनका कहना है कि मूर्ति के साथ ही अब तक किए गए उत्खनन में उन्हें प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं। मौजूदा रूस की जगह पहले ग्रैंड डची ऑफ मॉस्को का गठन हुआ। आमतौर से यह माना जाता है कि ईसाई धर्म करीब 1,000 वर्ष पहले रूस के मौजूदा इलाके में फैला। यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी के प्रख्यात विद्वान डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार रूसी भाषा के करीब 2,000 शब्द संस्कृत मूल के हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव से भी पहले का यह गांव 1,700 साल पहले आबाद था। अब तक कीव को रूस के सभी शहरों की जन्मस्थली माना जाता रहा है, लेकिन अब यह अवधारणा बदल गई है। ऊल्यानफस्क स्टेट यूनिवर्सिटी के पुरातत्व विभाग के रीडर डॉ. एलिग्जैंडर कोझेविन ने सरकारी न्यूज चैनल को बाताया कि हम इसे अविश्वनीय मान सकते हैं, लेकिन हमारे पास इस बात के ठोस आधार मौजूद हैं कि मध्यकालीन वोल्गा क्षे‍त्र प्राचीनकालीन रूस की मुख्य भूमि है। डॉ. कोझेविन पिछले साल साल से मैना गांव की खुदाई से जुड़े रहे हैं। उन्होंने कहा कि वोल्गा की सहायक नदी स्तराया के हर स्क्वैयर मीटर जमीन अपने आप में अनोखी है और पुरातत्व का खजाना मालूम होती है। वानर साम्राज्य का रहस्य : वानर का शाब्दिक अर्थ होता है 'वन में रहने वाला नर।'वन में ऐसे भी नर रहते थे जिनको पूछ निकली हुई थी। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था। हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है। वानरों के साम्राज्य की राजधानी किष्किंधा थी। सुग्रीव और बालि इस सम्राज्य के राजा थे। यहां पंपासरोवर नामक एक स्थान है जिसका रामायण में जिक्र मिलता है। 'पंपासरोवर'अथवा 'पंपासर'होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। भारत के बाहर वानर साम्राज्य कहां? सेंट्रल अमेरिका के मोस्कुइटीए (Mosquitia) में शोधकर्ता चार्ल्स लिन्द्बेर्ग ने एक ऐसी जगह की खोज की है जिसका नाम उन्होंने ला स्यूदाद ब्लैंका (La Ciudad Blanca) दिया है जिसका स्पेनिश में मतलब व्हाइट सिटी (The White City) होता है, जहां के स्थानीय लोग बंदरों की मूर्तियों की पूजा करते हैं। चार्ल्स का मानना है कि यह वही खो चुकी जगह है जहां कभी हनुमान का साम्राज्य हुआ करता था। एक अमेरिकन एडवेंचरर ने लिम्बर्ग की खोज के आधार पर गुम हो चुके ‘Lost City Of Monkey God’ की तलाश में निकले। 1940 में उन्हें इसमें सफलता भी मिली पर उसके बारे में मीडिया को बताने से एक दिन पहले ही एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई और यह राज एक राज ही बनकर रह गया। अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पेरू, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी। 250 ईस्वी से 900 ईस्वी के बीच माया सभ्यता अपने चरम पर थी। इस सभ्यता में खगोल शास्त्र, गणित और कालचक्र को काफी महत्व दिया जाता था। मैक्सिको इस सभ्यता का गढ़ था। आज भी यहां इस सभ्यता के अनुयायी रहते हैं। यूं तो इस इलाके में ईसा से 10 हजार साल पहले से बसावट शुरू होने के प्रमाण मिले हैं और 1800 साल ईसा पूर्व से प्रशांत महासागर के तटीय इलाक़ों में गांव भी बसने शुरू हो चुके थे। लेकिन कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ईसा से कोई एक हजार साल पहले माया सभ्यता के लोगों ने आनुष्ठानिक इमारतें बनाना शुरू कर दिया था और 600 साल ईसा पूर्व तक बहुत से परिसर बना लिए थे। सन् 250 से 900 के बीच विशाल स्तर पर भवन निर्माण कार्य हुआ, शहर बसे। उनकी सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं, जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों में बनाईं लेकिन फिर सन् 900 के बाद माया सभ्यता के इन नगरों का ह्रास होने लगा और नगर खाली हो गए। अमेरिकन इतिहासकार मानते हैं‍ कि भारतीय आर्यों ने ही अमेरिका महाद्वीप पर सबसे पहले बस्तियां बनाई थीं। अमेरिका के रेड इंडियन वहां के आदि निवासी माने जाते हैं और हिन्दू संस्कृति वहां पर आज से हजारों साल पहले पहुंच गई थी। 

अमेरिका महाद्विप में आर्य सभ्यता की छाप

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अमेरिका महाद्विप में आर्य सभ्यता की छाप
अश्विन भट्ट


कभी हिन्दू संस्कृति से समृद्ध था अमेरिका महाद्वीप हिन्दू धर्म “धीयते इति धर्मः” यानि “मनुष्य अपनी धारणा
जो स्वीकार करता है वो ही धर्म है” के सिद्धांत पर चलता है | रोम संस्कृति के राजा के विरुद्ध ईसामसीह ने अल्लाह को परमेश्वर कहा तो राजद्रोह में मृत्युदंड मिला… इसाइयत को अपनी संख्या बढ़ाना था तो उसने धर्मांतरण को और चर्च आधारित राजनीति और कूटनीति से अनुयायियों की संख्या बढ़ाया क्यों की उसको डर था की संख्या कम रहेगी तो इसाइयत के विरोधी उसका खात्मा कर देंगे | इस्लाम ने हिजरत से ही हथियार थाम लिया और उसे अपनी संख्या बढ़ाने के लिए गुलामों पर अत्याचार कर के और क्रूरता से लोगों को मुसलमान बनाया क्यों की रोम की विशाल सत्ता के विपरीत अरब में छोटी छोटी आबादी और उनके खलीफा होते थे जिन्हें हथियारों से हराया जा सकता था | हिन्दू धर्म ने कभी किसी को जबरन हिन्दू नहीं बनाया, क्योंकि ये सनातन सभ्यता के ऊपर किसी विरोधियों या शत्रुओं का भय नहीं था की अपनी आबादी बढाओ | इतिहास देखो हमारी संस्कृति ने “पृथ्वी शान्तिः” “अन्तरिक्षम शान्ति” का उद्घोष किया है| अयोध्या” संस्कृत के अयुध्य शब्द से बना है यानि जहाँ कभी युद्ध न हुआ हो | 

अवध का भी सामान अर्थ है की जहाँ पर कभी “वध” न हुआ हो | ये अलग बात है की मुग़ल आक्रान्ताओं और लुटेरों ने इसे नरसंहार का सबसे बड़ा अखाडा बना दिया | हमारे हिन्दू मनीषियों ने अपने संस्कृति को इतना श्रेष्ठ बनाया की पूरा विश्व उसकी ओर आकर्षित हुआ | फाह्यान, ह्वेनसांग और तुम्हारे अलबरूनी जैसे कितने मुल्ले भी यहाँ इस देश की माटी में धन्य होने और मुक्ति पाने आ गये थे | इस्लाम के अभ्युदय के हज़ारों साल पहले पूरा संसार आर्यों ने नाप लिया था| आज युरोप जिसे “navigation” कहता है वो कुछ और नहीं संस्कृत शब्द “नवगतिम” है जिसका अर्थ है नौका संचालन| पूरे विश्व को नौका संचालन का ज्ञान आर्यों ने ही दिया है | भले ही आज हम मुर्ख भारतीय कहते हैं की भारत की खोज “वास्कोडिगामा” ने किया था |

अमेरिका महाद्वीप और हिन्दू धर्म :
अमेरिका के रेड इंडियन वहां के आदि निवासी माने जाते हैं और हिन्दू संस्कृति वहां पर आज से हजारों साल पहले पहुंच गई थी इन्ही लाल मनुष्यों के द्वारा यानी की इतिहासकारों के आधार पर महाभारत काल में| सभी अमेरिकन इतिहासकार मानते हैं की भारतीय आर्यों ने ही अमेरिका महाद्वीप पर सबसे पहले बस्तियां बनाई | अमेरिकन महाद्वीप में मक्सिको सबसे पुराना है | मैक्सिको के सबसे आदि धर्म AZTEC के देवता TLALOC हैं और ये AZTEC और कुछ नहीं अपितु संस्कृत का “आस्तिक” ही है और TLALOC, संस्कृत का
शब्द त्रिलोक है | मेक्सिको में TLALOC की पूजा का इतिहास AZTEC साम्राज्य के इतिहास से भी १००० साल
पुराना है | मजे की बात यह है की त्रिलोक (TLALOC) के मदिरों को वहां त्रिलोचन (TLALOCAN) कहा जाता है और उनका सबसे महत्वपूर्ण मंदिर “Mount Tlaloc” पर स्थित है यानि हिमालय वासी शिव का त्रिलोचन स्वरुप उसी रूप में वहां पहुंचा | TLALOC को वहां के लोग गुफाओं, झीलों और पर्वतों का वासी मानते हैं और अकाल मृत्यु से मुक्ति का देवता भी | हमारे सनातन संस्कृति में भी शिव मुक्ति दाता हैं |

यदि हम बात करें वहां के मूल भाषा पुरानी नौहाटी की तो उसमे इसका उच्चारण “त्रालोक” से करते हैं | त्रिलोक की एक मूर्ती Templo Mayor (मयूर मंदिर) में आज के वर्तमान मक्सिको सिटी शहर में है | जिसमे त्रिलोक की
मूर्ती में मुकुट पर सर्प विराजमान है | यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत घोषित किया है | उसी के साथ माया सभ्यता का भी प्रभाव मक्सिको पर पड़ा जो की हिन्दू संस्कृति से बहुत कुछ आत्मसात कर चुकी थी विशेषकर पंचांग और गणित |

चिली पेरू और बोलीविया में हिन्दू धर्म :
अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने अपनी बस्तियां बनाएँ और कृषि का भी विकास किया | Quechua Pachakutiq “he who shakes the earth” की महान घटना कुर्म पुराण के “कच्छप प्रिष्ठौती” है और वही एक सामान पौराणिक कथा भी |

प्रसिद्द थिअहुअन्को के कैलासिय मंदिर “Temple of Kalasasaya” के द्वारपाल विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार सब कुछ हिन्दू संस्कृति की महान गाथा का साक्षी है | सांप या नाग, हिंदू धर्म के सभी पंथ महत्वपूर्ण है और यहां
तक कि अमेरिका में, अभी भी बहुत स्थानों में प्रचलित है जो प्राचीन अमेरिका के व्यापक नाग पंथ और उसके समानता के प्रति समर्पित हैं | यहां तक कि ईसाई धर्म में, यीशु ने बाइबिल में कहा : “तु रहो नागों, और कबूतर के रूप में हानिरहित के रूप में इसलिए बुद्धिमान. “मूसा ने अपने भगवान से निर्देशन में बेशर्म नाग की स्थापना करके लोगों को चंगा किया | रोमन और ग्रीक में प्रचलित शब्द serpent संस्कृत शब्द “सर्प” ही है |प्राचीन हिन्दुओं की पूजा पधतियों ने अमेरिका पर प्रभुत्व किया|

संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना के नेटिव अमेरिकन की एक ४५वि मिलिट्री इन्फैन्ट्री डिविसन का चिन्ह एक पीले रंग का स्वास्तिक था | नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरुण को चिन्ह अपनान पड़ा | अमेरिकी महाद्वीप के होपी आदिवासीयों का एक महत्वपूर्ण घटना की गाथा “Saquasohuh” “Day of Purification” (संस्कृत : स्वच्छ होहु) में Blue Star Kachina की घटना में वर्णित ८ प्रमुख चिन्हों में वृष आरूढ़ शिव और नागों से लिपटती धरती का वर्णन है जो हमारे पौराणिक गाथाओं से पूरा पूरा मिलता है | 

अमेरिकी महाद्वीप के पेमा इंडियन की गाथा हिन्दू गरुण के थंडर बर्ड और क्रेते सिक्कों के चक्रव्यूह की रचना सभी भारतीय प्रवासों की गाथा कह रहे हैं | प्राचीन अमेरिका महाद्वीप के पेमा इंडियन हों या रोमन साम्राज्य (युरोप)में मिलने वाला लोकप्रिय खेल “करेते”Crete (Greek: Κρήτη, Kríti) या Labyrinth वास्तव में भारत के प्रसिद्द चक्रव्यूह भेदन की कृति है और यही कृति वहां करेते बन गई महाभारत काल से ही चक्रव्यूह भेदन और धनुर्विद्या भारत के लोकप्रिय खेल थे | यूरोप में भी युद्ध के खेलों का बहुत प्रचलन था और चक्रव्यूह भेदन की कला करेते के लोकप्रिय आयोजन होते थे, इसी कारण आज भी मैराथन खेलों के लिए विश्व प्रसिद्द ग्रीस का सबसे सुन्दर और प्रसिद्द स्थान का नाम “करेते” Crete है और ये शहर अपने खेलों, संगीत और साहित्य के लिए आज भी प्रसिद्ध है| ये शहर यूरोप के सबसे पुराने ज्ञात मानव सभ्यता के लिए जाना जाता है |

गुयाना : दक्षिण अमेरिका के गुयाना में १५० साल पहले उत्तर प्रदेश और बिहार से लोगों का पलायन हुआ था | आज वहां की आबादी के ४०% लोग हिन्दू है और वहां फगुआ और दीपावली राष्ट्रीय त्यौहार घोषित है | भारतीय भाषा में हिंदी भोजपुरी बोली जाती है |

सूरीनाम : इस देश का नाम ही भोजपुरी शब्द सरनाम से सूरीनाम पड़ा जिसका मतलब है प्रसिद्ध | ३० % हिन्दुओं के साथ हिन्दू देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है | गिरमिटिया मजदूरों के समूह में वहां गन्ने के खेतों में काम करने गए हिन्दू आज उन देशों की राजनीति में ऊंचे स्थानों पर हैं और दक्षिण अमेरिका में एक शसक्त पहचान के साथ उभरे हैं |
जमैका : जमैका में हिन्दू दूसरा सबसे बड़ा धर्म है | ये हिन्दू गिरमिटिया मजदूर के रूप में वहां पहुचे और दीवाली देश की राष्ट्रीय छुट्टी है |
त्रिनिदाद एवं टोबैगो : इस देश में हिन्दू ३० % हैं | और हिन्दुओं का राजनीति पर बेहद मजबूत पकड़ है | सनातन धर्म महासभा के माध्यम से हिन्दू धर्म इस देश में सबसे तेजी से मजबूत हो रहा है | फगवा सबसे बड़ा त्यौहार है | वासुदेव पाण्डेय यहां के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और कमला प्रसाद बिस्वेस्वर देश की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं | और रोचक बात ये है की मशहूर रैपर और गायिका निकी मीनाज इसी देश की एक हिन्दू ब्राह्मण की बेटी हैं जिनका वास्तविक नाम ओनिका तान्या महाराज है| प्रसिद्ध पिपिल भाषा जो मेक्सिको में प्रारंभ हुई वो हिन्दुस्तानी नाविकों की बस्तियों में प्रारम्भ हुआ और वहां इसे आज भी नाविक (nawat) भाषा कहते है इसी प्रकार nahua भी संस्कृत के नाविक से निकली है | पूरा मेसो अमेरिकन सभ्यता हिन्दू धर्म से भरी पड़ी है | यहाँ तक की आज की स्पेनिश भाषा जो मेक्सिको और अमेरिका की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है वह भी हिंदी-यूरोपीय भाषा परिवार है | हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार (Indo-European family of languages) दुनिया का सबसे बड़ा भाषा परिवार (यानी कि सम्बन्धित भाषाओं का समूह) हैं । हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा परिवार में विश्व की सैंकड़ों भाषाएं और बोलियां सम्मिलित हैं ।
आधुनिक हिन्द यूरोपीय भाषाओं में से कुछ हैं : हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, फ़्रांसिसी, जर्मन, पुर्तगाली, स्पैनिश, डच,
फ़ारसी, बांग्ला, पंजाबी, रूसी, इत्यादि । ये सभी भाषाएँ एक ही आदिम भाषा से निकली है | स्पेनिश का बोय्नेस दियास में दियास हमारा “दिवस” है जिसका अर्थ है गुड मार्निंग |

आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (Proto-Indo-European language), जो संस्कृत से काफ़ी मिलती-जुलती थी, जैसे
कि वो संस्कृत का ही आदिम रूप हो ।
Annotata : अन्नदाता
Banff : वाष्प
Bahia : बाहु (हाथ)
Cuika : कविता
Chocaya : शोकः
Chaacâ : चक्र देवी (माया सभ्यता)
Huascar : भास्कर (सूर्य)
Havana : हवन
Wanaco : वन वासी (जंगली)
Jaguarâ : व्याघ्र
Montezuma/Moktesuma : मुक्ति कुसुमः
Matawan : मात्री वन
Nazca/Naska : नक्षत्र
Papeetee : पाप इति
Palenque : पालक (मंदिर के देवता)
इस तरह के बहुत शब्द हैं जो आर्यों की वैदिक परम्पराओं से
वहां तक पहुंचे|
मनुष (संस्कृत) >> menos (यूनानी) >> mens(लैटिन) >> men (अंग्रेजी)|
आज पूरा विश्व खुद को मनुष्य यानि मनु की संतान कहता है
| यही तो सनातन का गौरव है 

कांग्रेस के पाप बनाम भगवा आतंक : हरि शंकर व्यास

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कांग्रेस के पाप व भगवा आतंक! भाग 1

: हरि शंकर व्यास (नया इंडिया में प्रकाशित)
पता नहीं सोनिया गांधी और राहुल गांधी को शर्म आई या नहीं! पर डा. मनमोहन सिंह को आनी चाहिए। आखिर बतौर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के कलंक अभी भी खुल रहे हैं। उन्हें शर्म आनी चाहिए कि वे ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिनकी छत्रछाया में चिदंबरम के नाम का एक ऐसा गृहमंत्री था जिसने अपने हाथों एक आरोपी आतंकी की हकीकत के हलफनामे को बदला। सोचें, भारत का गृहमंत्री ऐसा जिसने सरकार की ही एजेंसियों की रिपोर्ट, आकलन के विपरीत अपनी बात थोपी। किसलिए? ताकि नरेंद्र मोदी, अमित शाह, उनकी सरकार झूठे हत्यारा बनें। वे फर्जी मुठभेड़ के मामले में फंसें। देश, दुनिया, अदालत जाने कि हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति करने वाले कैसे हत्यारे हैं! उन दिनों को याद करें तो कांग्रेस ने चौतरफा हिंदुओं को बदनाम करने की मुहिम चलाई थी। हिंदू की वैश्विक बदनामी का वह मिशन था जिसमें दिग्विजय सिंह से ले कर राहुल गांधी तक ने प्रचार किया था कि भारत में ‘भगवा आतंकवाद’ भी है।

हां, याद है आपको साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद, कर्नल पुरोहित के नाम? याद है अभिनव भारत और उसकी मालेगांव साजिश? मतलब ‘हिंदू आतंकवाद’ की प्रायोजित कालिख! उसे याद कर इशरत जहां मामले के ताजा खुलासे के साथ सोचें तो लगेगा कि कांग्रेस, मनमोहन सिंह, चिदंबरम एंड पार्टी ने ही तो हिंदुओं को बदनाम करने के लिए इन चेहरों को झूठ मूठ में फंसा कर ‘हिंदू आतंकवाद’ का हल्ला पैदा करने की साजिश तो नहीं बनाई थी?
यह सवाल ‘द इकोनोमिक टाइम्स’ में कल छपी रिपोर्ट और पिछले 6-8 सालों की जांच, उसके नतीजों की हकीकत पर भी बना है। कल रपट थी कि अभिनव भारत के यशपाल भड़ाना ने मजिस्ट्रेट के आगे बयान दे कर कहा है कि स्वामी असीमानंद को फंसाने के लिए उस पर ‘दबाव’ डाला गया। दबाव के चलते उसने झूठ बोला कि जनवरी 2008 में वह फरीदाबाद की हरी पर्वत बैठक में, अप्रैल की भोपाल बैठक में था। इनमें विचार हुआ था कि बम का बदला बम से लेना है।

इस खबर पर चाहे तो आप मान सकते हैं कि फिलहाल क्योंकि मोदी की सरकार है इसलिए एनआईए उसके असर में होगी। उसने इस गवाह से नया बयान करवा दिया। इस बात को मालेगांव बम विस्फोट के मामले में एनआईए की तरफ से पेश होने वाली रोहिणी सालियान के बयान से भी जोड़ सकते हैं। रोहिणी ने केस से हटते हुए आरोप लगाया था कि एनआईए अब हिंदू कट्टरपंथियों के प्रति नरमी बरतने का दबाव बना रही है।
मतलब इशरत जहां की हकीकत खुल रही है, हिंदू आतंकवादी असीमानंद को फंसाने वाला गवाह पलट रहा है तो यह मोदी सरकार का प्रायोजन है। यदि ऐसा है तब पी. चिदंबरम, डा. मनमोहन सिंह, कांग्रेस खुल कर मैदान में क्यों नहीं आते? क्यों नहीं कहते कि इशरत जहां को निर्दोष मानने की उनकी वजह अभी भी कायम है?



कांग्रेस के पाप व भगवा आतंक! भाग 2
: हरि शंकर व्यास

बोलें, बताएं तथ्य।
इससे अधिक संगीन हकीकत भगवा आतंक का हल्ला कराने की कांग्रेसी साजिश की है। 2008 से ले कर मई 2014 तक चिदंबरम के गृहमंत्री रहते, डा. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते अदालत के आगे हिंदू आतंकवादियों उर्फ असीमानंद, कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ सबूत, अदालत में चार्जशीट तक दायर नहीं की जा सकी। मान सकते हैं कि 2014 से 2016 के बीच मोदी सरकार स़ॉफ्ट है। पर रोहिणी सालियान या हिंदू आतंकियों के होने की बात मानने वालों को यह तो बताना चाहिए कि मनमोहन सिंह की ‘हार्ड’ सरकार और उस वक्त की एनआईए क्योंकर प्रमाण, चार्जशीट नहीं पेश कर पाई? इतना बड़ा केस जिससे मनमोहन सरकार ने पूरी दुनिया में हिंदुओं के ‘भगवा आतंकवादी’ चेहरे दिखाए, उसकी वैश्विक बदनामी कराई, उसमें भी यदि अदालत के आगे तथ्य नहीं आए और जो गवाह पेश किए गए वे बदलते गए तो दुनिया में हिंदू को बदनाम करने की सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन, चिदंबरम एंड पार्टी की जिम्मेवारी बनती है या नहीं?
मीडिया अपना क्योंकि नेताओं के असर में रहता है इसलिए वह नरेंद्र मोदी, अमित शाह की वजह से आज इशरत जहां मामले में हुई धांधली को प्रचारित कर रहा है पर असलियत में उसे भंडाफोड़ यह करना चाहिए कि हिंदू को दुनिया में बदनाम करने के लिए सोनिया गांधी व कांग्रेस ने 2006 से 2014 के बीच कैसी साजिश रची हुई थी? हिंदू को बदनाम करने वाला भगवा आतंकवाद कितने झूठों से भरा था?
हां, यह तथ्य अब बनता है कि मनमोहन सरकार ने झूठ को सच, सच को झूठ बनवाने के लिए ‘एनआईए’ एजेंसी बनवाई। एक मोटा तथ्य जानें। 2006 में मालेगांव में बम धमाकों में 31 लोग मारे गए थे। महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते यानी एटीएस ने नौ मुस्लिम आरोपी गिरफ्तार किए। 2006 के अंत में इनके खिलाफ चार्जशीट हुई। बाद में मामला सीबीआई को सौंपा गया। उसने 2010 में इन्हीं आरोपियों के खिलाफ एक और चार्जशीट दाखिल की। मगर 2011 में जांच एनआईए ने अपने हाथ में ली। तभी हल्ला हुआ कि यह करतूत हिंदू कट्टरपंथियों की है।
घटना को दस साल हो गए हैं अदालत के आगे दोनों तरह के वाद हैं। मूल जांच क्या थी, क्या हुई और पहुंची कहां? इसके चपेटे में कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा इतने साल से जेल में हैं तो इसलिए कि उन पर महाराष्ट्र का माफिया रोधी मकोका एक्ट लगा हुआ है। उसमें जमानत नहीं हो सकती। मनमोहन सरकार, चिदंबरम ने, एनआईए सबने दम लगाया लेकिन भगवा आतंकवाद के साक्ष्य या तो बनावटी निकले हैं या गवाह दबाव वाले पाए गए। सुप्रीम कोर्ट में बताया जा चुका है कि मकोका के तहत चार्जशीट लायक साक्ष्य नहीं मिले हैं।
क्या अर्थ निकालें?

क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ? : संजय राउत

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अतिथि लेखक - क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?
तारीख: 18 Apr 2016 12:43:21

एक वर्ग ऐसा है जिसने हमेशा देश विरोधी बातें की हैं और उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दिया है, और भारत ऐसे लोगों को बर्दाश्त करता रहा है
संजय राउत
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं प्रमुख मराठी समाचार पत्र 'सामना'के संपादक हैं)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में इन दिनों काफी कहा और लिखा जा रहा है। हमारे देश में इस शब्द 'स्वतंत्रता'का मतलब क्या है? हमने स्वतंत्रता की वास्तविक अवधारणा को कभी समझा ही नहीं।  इस कारण पीढियों में स्वतंत्रता क्या होनी चाहिए और क्या नहीं इसे लेकर एक अबूझ भ्रम की स्थिति बनी हुई है। हमारे देश में स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है इसे लेकर कौतुहल बना हुआ है। हम ऐसे लोग हैं जो भगवान जाने किससे स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हममें स्पष्ट समझ नहीं है, हममें जीवन की सही समझ ही नहीं है; और हम कुछ निश्चित विचारों और अवास्तविक विश्वासों से ही स्वतंत्र नहीं हुए हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर वाल्टर ने कहा है, ''आप जो भी कहते हैं वह मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है, लेकिन आपको वह बात कहने का पूरा अधिकार है जो आप कहना चाहते हैं। यदि कोई आपको आपके इस अधिकार से वंचित करना चाहता है तो मैं आपके लिए संघर्ष करुंगा।''लोग जो कुछ कहते हैं उस सब पर हमें सहमत होने की कोई जरूरत नहीं है, लोगों के अपने-अपने विचार हो सकते हैं और फिर भी वे एक साथ रह सकते हैं। जरूरी नहीं कि जो लोग हमारे विचारों से सहमत नहीं, वे हमारे दुश्मन हों।

महान अमेरिकी न्यायाधीश होम्स ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इस तरह से परिभाषित किया है, ''अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यह नहीं है कि हम उन्हें बोलने दें जिनके विचारों से हम सहमत हैं बल्कि उन्हें बोलने का अवसर देना है जिनसे हम नफरत करते हैं।''तमाम राजनैतिक दलों के प्रति रूझान रखने वाले और सभी विचारधाराओं के लोगों को अभिव्यक्ति का अवसर मिलना चाहिए, यही लोकतंत्र है। लेकिन हमारे देश में इस तरह की आजादी की अधिकता हो चुकी है। असामाजिक तत्वों को भी अपने देश विरोधी विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए मंच मिल रहा है जो देश के लिए खतरनाक हो सकता है, इससे युवाओं में गलत संदेश जाएगा और  न केवल देश का माहौल खराब होगा बल्कि सामाजिक ताना-बाना भी प्रभावित होगा।

जेएनयू में जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र का उपहास था। ''अफजल गुरू जिंदाबाद और ''हम भारत को टुकड़ों में बांट देंगे''ये नारे कहीं से भी अभिव्यक्ति के आस-पास नहीं थे, इन्हें केवल आतंकवाद से जोड़ा जा सकता है। अफजल गुरू जैसे लोगों ने देश की संपूर्णता और आजादी को कमजोर करने, तोड़ने और उस पर हमला करने की कोशिश की। सर्वोच्च अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई।

जिन लोगों को इस तथ्य पर भरोसा नहीं उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी पर बात करने का अधिकार नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी विचारों का वही लोग समर्थन कर सकते हैं जिनका देश के लिए कोई योगदान नहीं है।

एक वर्ग है जिसने हमेशा देश विरोधी बातें की हैं और उसे आजादी का नाम दिया है। अपने विचारों को व्यक्त करने के नाम पर ऐसे लोगों ने खासतौर पर आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। और भारत ऐसे लोगों को बर्दाश्त करता रहा है। एक तरफ हमारी सेना के जवान देश के लिए अपनी जान दे रहे हैं, उसी समय हम कश्मीर को तोड़कर भारत से अलग करने की बातें बर्दाश्त कर रहे हैं। ये केवल भारत में ही हो सकता है।
ओवैसी जैसा व्यक्ति कह सकता है, ''यदि मेरी गर्दन काट दोगे तब भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा''और उसके बाद भी वह देश में एक संवैधानिक स्थिति में रह सकता है। ये हमारे देश का दुर्भाग्य और अभिव्यक्ति की आजादी है कि हम बेमतलब की बातें बर्दाश्त कर रहे हैं। किसी भी चीज की अधिकता नुकसानदेह होती है, और अभिव्यक्ति की आजादी के मामले में भी ऐसा ही है। देश में कोई भी व्यक्ति समान नागरिक संहिता और अनुच्छेद 370 पर स्टैंड नहीं लेता लेकिन लोगों की जिंदगियों में हिंसा और जहर घोलने वाले देश विरोधी लोगों को सारे अधिकार दिए जाते हैं।

हमारे देश को सबसे बड़ा खतरा बाहरी लोगों से नहीं है लेकिन भीतर के ऐसे लोगों से हैं जो हमारी मजबूत जड़ों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। सीमा पर होने वाले हमलों से ज्यादा देश के भीतर रहने वाले कुछ लोग देश को डराते हैं। इसे सही तरह से नियंत्रित करके ही देश को बचाया जा सकता है। ऐसे तत्वों का दमन और राष्ट्रवादी तत्वों, चाहे वे जेएनयू में संघर्ष कर रहे हों या एनआइटी, श्रीनगर में, का समर्थन करने की जरूरत है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश के मूलाधार पर चोट करने की इजाजत किसी को नहीं मिलनी चाहिए। लोगों को सचेत रहना होगा और विविधता में एकता के जरिए देश की अखंडता की रक्षा करनी होगी। राष्ट्र पहले है, बाकी सब चीजें बाद में।


भारतीय नववर्ष अभिनंदन उत्सव

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भारतीय नववर्ष अभिनंदन उत्सव
तारीख: 18 Apr 2016 नई दिल्ली


प्रतिवर्ष की तरह नववर्ष के स्वागतार्थ यमुना के सूरघाट पर जैसे ही सूर्य देव ने अपनी लालिमा आसमान में बिखेरी, तभी ढोल नगाड़ों की गूंज, जयकारों के उद्घोष मंत्रोचार के बीच उपस्थित जनसमूह ने हाथों में फूल और दीप प्रज्जवलित कर अभिनंदन करते हुए अर्ध्य दिया। संस्कार भारती दिल्ली प्रांत द्वारा 8 अप्रैल को विक्रमी संवत् 2073 के अभिनंदन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, विशिष्ट अतिथि श्री विजय जिंदल व श्री एस के जिंदल।  डा. कृष्ण गोपाल ने भारतीय नववर्ष को अपनाने और युवा पीढ़ी को इसकी जानकारी देने के आग्रह पर जोर देते हुए कहा कि यह हमारी भारतीय परंपरा और संस्कृति का अटूट हिस्सा है, इस पर हमें गर्व करना चाहिए।
श्री अवनीश त्यागी एवं उनकी टोली ने संस्कार भारती का ध्येय गीत प्रस्तुत किया। मंत्रोच्चारण, हनुमान संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा योग एवं सूर्य नमस्कार किया गया। प्रख्यात गायिका डॉ. कुमुद दीवान ने लोकगीत और भजन गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध किया। नृत्यांगना श्रीमती सीमा शर्मा की शिष्याओं ने कथक, भरतनाट्यम एवं असमिया नृत्य का मिश्रण कर सुंदर नाट्य की प्रस्तुतियां दी। वरिष्ठ कवि श्री विमल विभाकर ने कविता पाठ किया।
कार्यक्रम के संयोजक श्री देवेन्द्र खन्ना ने आभार प्रकट किया। दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष श्री विजेन्द्र गुप्ता एवं श्री शिवकुमार गोयल, महामंत्री श्री सुबोध शर्मा, जितेंद्र मेहता, श्री अनुपम भटनागर, श्री विजय बहल सहित अनेकानेक कार्यकर्ताओं के सहयोग से यह कार्यक्रम सफल रहा।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एनडीटीएफ द्वारा नववर्ष प्रतिपदा कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री सुनील आंबेकर थे जिन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने चाणक्य, चन्द्रगुप्त, विवेकानंद और टैगोर के दर्शन को प्रासंगिक बताया। समारोह में एनडीटीएफ के वरिष्ठ नेता प्रो. एन.के. कक्कड़, एनडीटीएफ अध्यक्ष ए.के. भागी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। धन्यवाद ज्ञापन एनडीटीएफ के महासचिव डा. वीरेन्द्र सिंह नेगी ने और संचालन डा. गीता भट्ट ने किया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कई शिक्षक व शोधार्थी उपस्थित थे।
स्वदेशी जागरण मंच द्वारा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2073 नववर्ष का स्वागत समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य, स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री अरुण ओझा, राष्ट्रीय संगठक श्री कश्मीरी लाल व अखिल भारतीय सह संयोजक श्री सरोज मित्तल ने कार्यकर्ताओं को संबोधित कर नववर्ष की बधाई दी।
डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि अतीत में भारत पर 800 वर्षों तक मुसलमानों का शासन था उन्होंने कन्वर्जन के हरसंभव प्रयास किये। लेकिन केवल 12 प्रतिशत हिन्दुओं को ही मुसलमान बना पाए, 150 वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा उन्होंने भी कन्वर्जन के अनेक प्रयास किये लेकिन 2 प्रतिशत से अधिक लोगों का धर्म परिवर्तन नहीं कर पाए। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि हमारा समाज शासनों पर आधारित नहीं था। समाज की रचना हमें करनी है तो अपने पुरुषार्थ के बलबूते पर कुछ कार्य-रचनाएं खड़ी करने का प्रयास करना होगा। 1,60,000 सेवा कार्य संघ के स्वयंसेवक देशभर में चलाते हैं। 90 प्रतिशत सेवा कार्य सरकार की मदद के बिना समाज के बलबूते चल रहे हैं। राज्य आधारित नहीं, हम समाज के नाते अपने बलबूते पर अपना काम खड़ा करेंगे। समन्वय, परहित, दूसरों को देने का वातावरण संभवत: बनेगा तो हमारा देश अपने आप आगे बढेगा।
श्री कश्मीरी लाल ने कहा कि विक्रमी संवत् हमें सात्विकता की प्रेरणा देते हुए शरीर में नई ऊर्जा का संचार करता है।
श्री अरुण ओझा ने कहा कि नववर्ष शक्ति की उपासना का पर्व है। कार्यक्रम के समापन पर श्री अश्विनी महाजन ने सभी अधिकारियों व कार्यकर्ताओं का धन्यवाद दिया।
अमरावती
नववर्ष के स्वागत में संस्कार भारती की स्थानीय इकाई द्वारा 'पाडवा पहाट'कार्यक्रम आयोजित किया गया।
गुड़ी पाड़वा के दिन प्रात: साढ़े पांच बजे अमरावती के 5,000 से अधिक नागरिकों की उपस्थिति में संस्कार भारती के करीब सौ से अधिक स्थानीय कला साधक नृत्य, संगीत, नाट्य, चित्रकला आदि विधाओं के माध्यम से किसी एक विषय को लेकर एक सुरुचिपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। इस वर्ष भी कार्यक्रम में दर्शकों की रिकॉर्ड भीड़ रही। कार्यक्रम के मध्य नववर्ष का सूयार्ेदय होते ही 'गुड़ी'का पारंपरिक पद्घति से पूजन किया गया, जिसमें राजस्व राज्यमंत्री डॉ. रणजीत पाटील, विधायक डा. सुनील देशमुख, कमिश्नर ज्ञानेश्वर राजूरकर आदि उपस्थित थे।
इस वर्ष के कार्यक्रम का विषय 'भारतमाता की जय'था, वारकरी पंथ ने सामाजिक समरसता के विषय में किये प्रयास, देशभक्तों की आहूतियां आदि विषयों को प्रभावी रूप से नृत्य, नाट्य, संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में विदर्भ के करीब सभी गांव व कस्बों के लोग उपस्थित रहे।
मुरादाबाद
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा गांधी नगर पार्क में वर्ष प्रतिप्रदा एवं संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जयंती उत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में स्वयंसेवकों ने शारीरिक, योग, दण्ड, समता आदि का प्रदर्शन किया। मुख्य वक्ता के रूप में क्षेत्र शारीरिक प्रमुख श्री रणवीर सिंह ने भारतीय कालगणना को सर्वाधिक पुरातन, श्रेष्ठ एवं पूर्णत: वैज्ञानिक बताया। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री भोपाल सिंह अध्यक्ष मुरादाबाद एलपीज़ी. गैस वितरण संघ ने नव संवत्सर के शुरू होने की शुभकामनाएं दीं। गांधी पार्क पर संचलन का समापन हुआ। संचलन का महानगर में अनेकों स्थानों पर लोगों द्वारा पुष्पवर्षा कर स्वागत किया गया।
इस अवसर पर श्री अजय, विभाग संघचालक, श्री हरिकृष्ण महानगर संघचालक, कवीश राना महानगर कार्यवाह, रवि, सुभाष, सुभाष शर्मा, महेंद्र, अजय गोयल, ओम प्रकाश, संदीप, नीरज, अशोक सिंघल, ब्रिजेश,  अर्पित, नमन जैन आदि उपस्थित थे
गुरुग्राम
गौशाला मैदान में अर्घ्यदान के कार्यक्रम में पूरे शहर से सैकड़ों बन्धु-बहनों ने भाग लिया। प्रात: 5  बजे उगते सूर्य की प्रथम रश्मियों को अर्घ्य देने के लिए शहर भर से लोग जुटे।
प्रख्यात अर्थशास्त्री व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र के संघ चालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त ने कहा कि भारतमाता की जय बोलने वालों की संख्या निरन्तर बढ़नी चाहिए। भारत में रहने वाला भारत की जय नहीं बोलेगा तो किसकी बोलेगा। मुख्य अतिथि हरियाणा कला परिषद के निदेशक श्री अजय सिंहल ने कहा कि हरियाणा सरकार कला के माध्यम से भारतीय मूल्यों व संस्कृति को बचाने के लिए वचनबद्घ है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष मेजर दीनदयाल सैनी ने धन्यवाद किया। इस अवसर पर हरियाणा कला परिषद की ओर से मंचीय प्रस्तुतियों का प्रदर्शन किया गया और शीतला माता गुरुकुल की ओर से आए बटुकों द्वारा आदित्य हृदय स्त्रोत्र व चाक्षुसी विद्या का पाठ किया गया। मंच संचालन श्री राम बहादुर सिंह ने किया, जबकि संयोजन श्री श्रवण दुबे व यशवंत शेखावत द्वारा किया गया।
गोहाना
संस्कार भारती की गोहाना इकाई ने नववर्ष अभिनन्दन समारोह आयोजित किया। सुबह 5.45  पर ध्येय गीत से प्रारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम सैनी ने की। इस अवसर पर उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए , माधव गंगनेजा ने जहां युवा पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाया वहीं कुमारी खुशबू ने भारतीय नववर्ष की महत्ता बताती कविता प्रस्तुत की। सरस्वती विद्या निकेतन के बच्चों ने सामूहिक देशभक्ति गीत से मन मोहा तो रमन ने बदलती जीवन शैली को सांस्कृतिक रूप देने पर बल दिया। मुख्य अतिथि समाजसेवी अरुण बड़ौक, प्रान्त कोषाध्यक्ष राकेश गंगाना व जितेन्द्र पांचाल ने अपने विचार रखे। संयोजन संतलाल रोहिल्ला व बादल मधु ने किया।
इलाहाबाद
नव संवत्सर के अवसर पर 8 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयाग उत्तर जिले में स्वयंसेवकों ने बारह स्थानों पर एक साथ और एक ही समय पथ संचलन किया। लोगों ने कई स्थानों पर स्वयंसेवकों पर फूलों की वर्षा कर स्वागत किया।
संघ कार्यालय जॉर्जटाउन से आजाद नगर के पथ संचलन में बाल स्वयंसेवकों के साथ ही कई वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हुए। यह पथ संचलन चिन्तामणि मार्ग होते हुए सरस्वती हार्ड केयर चौराहे, बालसन चौराहे और गांधी प्रतिमा के पास से वापस संघ कार्यालय पर समाप्त हुआ। इसी तरह भारद्वाज पार्क से शुरू होकर कर्नलगंज कटरा बाजार, वापस भारद्वाज पार्क पर समाप्त हुआ। विश्वविद्यालय नगर और एनी बेसेन्ट स्कूल भगीरथ नगर से शुरू होकर चौथम लाइन होते हुए पुन: वहीं जाकर समाप्त हुआ। दयानन्द नगर, त्रिवेणी नगर, श्रीकृष्ण नगर, साकेत नगर, गंगा नगर में रसूलाबाद ज्वाला देवी, गोविन्दपुर नगर में श्रीराम पार्क से शुरू होकर विभिन्न मागार्े से होते हुए स्वयंसेवकों ने पथ संचलन किया।
पथ संचलन में प्रमुख रूप से विभाग प्रचारक मनोज, जिला प्रचारक अनुराग, विभाग कार्यवाह नागेन्द्र, जिला कार्यवाह संजीव, जिला संघचालक वेंकटेश्वर, विभाग कार्यवाह मनीष के नेतृत्व में हजारों स्वयंसेवकों ने कुल 48 किमी. पथ
संचलन किया।    -प्रतिनिधि

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