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अखंड भारत का परिदृश्य संभव हैं : प्रोफेसर सदानंद सप्रे

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परिस्तिथि निर्माण से परिवर्तन सम्भव - प्रोफेसर सदानंद सप्रे

प्रोफेसर सदानंद सप्रे उध्बोधन देते हुए 
 
जोधपुर ८ अगस्त २०१५। १५ अगस्त को विभाजन के प्रति वेदना मन में है। राष्ट्र स्वाधीन हुआ किन्तु दुर्भाग्यवश विभाजन भी हुआ , विभाजन मजहब आधारित हुआ जो षड्यंत्र का परिणाम था।  मुस्लिम मूलतः राष्ट्रवादी थे मजहब के नाम पर षड्यंत्र पूर्वक अलगाव पैदा कर अलगाववादी बनाया गया।  क्या 1857 का वृह्द भारत या कहे अखंड भारत का परिदृश्य पुनः  है ? संभव है सम्भावना  है। उक्त विचारो को प्रकट करते हुए प्रोफेसर सदानंद सप्रे ने कहा कि परिस्थिति निर्माण से विचार व् भाव पैदा कर अखंड भारत का परिदृश्य संभव हैं। 

इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स के सभागार में मरू विचार मंच द्वारा आयोजित "अखंड भारत : संकल्पना एवं चिंतन"विषयक संगोष्ठी एवं व्याख्यान में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के विश्व विभाग के सह संयोजक प्रोफेसर सदानंद सप्रे ने कहा कि १८५७ के परिदृश्य के समक्ष आज का मानचित्र रखेंगे तो पता चलेगा कि केवल एक भाग ही स्वाधीन हुआ है।  

1857 के स्वाधीनता संग्राम का दृश्य व् इतिहास उकेरते हुए प्रो. सप्रे ने अंग्रेजों  की मानसिकता व भारतीय समाज के आंदोलन का विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि 1857 का संग्राम कुचलने के बाद ऐसा लगता था की अब स्वाधीन नहीं होंगे लेकिन 90 वर्षों  में यह हो गया। यहूदियों को विपरीत परिस्तिथियों में रहते हुए भी 1700 -1800  वर्षो के संघर्ष व् संकल्पशक्ति से पुनः राष्ट्र प्राप्ति व् स्वाधीनता मिली, यह असम्भव  से सम्भव  का बहुत बड़ा उदाहरण  व मिसाल है.

राष्ट्र के जीवन में 100 -200 या 400 -500 अथवा 1700 -1800 वर्ष कोई मायने नहीं रखते , भाव व विचार तथा संकल्प मौजूद व् जीवित रहना चाहिए। भारत व् नेपाल राष्ट्र पृथक है राजनैतिक दृष्टि से किन्तु आम भारतीय व नेपाली इसे अलग नहीं मानता, अपनत्व भाव है।   क्या पाकिस्तान पृथक राजनीतिक  राष्ट्र रहते हुए नेपाल जैसे  भाव वाला नहीं हो सकता क्या ? 

प्रो. सप्रे ने राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास व् विचार समाज के समक्ष सही तरीके से रखने व् पुनः विचार करने पर बल दिया।  1857 का संग्राम , 1905 का बंग -भंग आंदोलन व 1937 में हुए चुनाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने मुस्लिम समाज की राष्ट्रीय  मानसिकता का दृश्य रखा और स्पष्ट किया कि मुस्लिम पूर्व में कभी भी मज़हब  आधार पर अलग महसुस नहीं करता न ही उनके मन , मस्तिष्क  में मज़हब आधारित अलग राष्ट्र का विचार था। 1857 व् 1905 के आंदोलन में सभी मुस्लिम साथ थे।  यही नहीं 1937 में अंग्रेजों   पहली बार समुदाय की सीटे  आरक्षित कर अलगाववाद पैदा करने की नाकाम कोशिश की।  उस वक्त भी मुस्लिम लीग को आरक्षित सीटों  पर 20 % वोट मिले थे, क्योंकि भारतीय समाज मज़हब  आधारित था ही नहीं, वो संस्कृति आधारित था. 

मोहम्मद करीम छागला  जी की आत्मकथा को उद्धत करते हुए कहा कि मुस्लिम सोच वैसी थी जिसमे उन्होंने कहा था कि "Ï am muslim by religion but hindu by race"हिन्दू एक संस्कृति है मज़हब नहीं।  हिन्दू  को धर्म  के नाम पर तथाकथित साम्प्रदायिक  मानसिकता वाले, बौद्धिक आतंक फ़ैलाने वालो की साजिश बताया। 

प्रो. सप्रे ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि क्या इतने बड़े राष्ट्र में मज़हब  विभाजन  सम्भव है क्या ? यह नेतृत्व के कमजोरी थी कि उस वक्त राष्ट्रवादी मुस्लिमो की भावनाओं  व् विचारों  का सरंक्षण नहीं किया व् अंग्रेजो की चाल का शिकार हुए।  यह आज भी संभव नहीं है। 

हिन्दू संस्कृति है, जीवन पद्धति  है जो हज़ारों  वर्षों  से पल्लवित होती आ रही है जिसका ऐतिहासिक प्रमाण है।  

क्या हम अलगाववाद के विचारों के साथ जीते हुए मज़हब के आधार पर पूर्ण पृथक राज्य की कल्पना अब भी साकार होने की सोच सकते है क्या ? सम्भवतः  नहीं। 

प्रो. सप्रे ने अपने उध्बोधन में आगे कहा कि पाकिस्तान के निर्माण की पृष्टभूमि को ध्यान से देखना होगा।  जिस मुस्लिम लीग को 1937 में आरक्षित सीटों पर जो मुस्लिम समुदाय के लिए ही थी पर केवल 20 % सफलता ही मिली थी ,उसी मुस्लिम लीग को 9 वर्ष बाद 1946 में 90% वोट के साथ 40% सीटों  पर सफलता मिलि. २० फ़रवरी १९४७ को अंग्रेजों  ने घोषणा की थी कि जून १९४८ तक स्वतन्त्र  कर देंगे लेकिन फिर ३ जून १९४७ को कहा कि १५ अगस्त १९४७ को ही स्वतंत्र कर देंगे यह परिवर्तन कबीले गौर है इस पर शोधार्थियों को चिंतन कर सही तस्वीर समाज राष्ट्र के समक्ष रखनी चाहिए।  यह आश्चर्यजनक परिवर्तन षड्यंत्र कारक थे। 

भारत-पाक के रिश्ते ठीक वैसे हो जैसे भारत-नेपाल  यही अखण्ड  भारत के संकल्पना है।  यह संभव है परिस्थिति निर्माण से।  हमें सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को अलगाववादी नहीं मानना  चाहिये  न ही पुरे समुदाय को राष्ट्रविरोधी कहना चाहिए।  राष्ट्रवादी मुस्लिम भाईयो  को सरंक्षण व् प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है वो ही परिस्तिथि निर्माण करेंगे।  पूर्व में भी राष्ट्रवादी मुस्लिम के प्रति समाज व् नेतृत्व उदासीन रहा जिसका परिणाम पाकिस्तान है।  यह त्रुटि हमें  दोहराना नहीं चाहिए। १९३७ तक बहुत कम मुस्लिम अलगाववादी थे। 

अलगाववादी मुस्लिमो को आज भी राष्ट्र में शक्ति प्राप्त नहीं होती उनका शक्ति स्त्रोत -धन आज भी बाहरी है।  हमें उस स्त्रोत को कमजोर करने का भी चिंतन करना चाहिए।  परिस्तिथि निर्माण से परिवर्तन सम्भव केवल कुछ प्रतिशत परिवर्तन से ही समाज का परिदृश्य तुरंत बदलता है। 

अपने उध्बोधन को विराम देते हुए प्रो सप्रे ने समाज से सकारात्मक चिंतन व् समग्र दृष्टि से विचार करते हुए अखण्ड भारत की संकल्पना को साकार करने का आव्हान किया। 

अध्यक्षता इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स जोधपुर के अध्यक्ष श्री आर के विश्नोई ने की एवं धन्यवाद ज्ञापन महानगर संयोजक डॉ. जी. एन. पुरोहित ने किया। 

हमारा देश : जम्बू दीपे भरत खण्डे आर्याव्रत देशांतर्गते

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जम्बू दीपे भरत खण्डे 

Acharya Bal Krishna

क्या आप जानते हैं कि....... ....... हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????

साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप"था....?????

परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप""क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????

दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????

क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष"पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!

लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।

आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।

अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।

परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम ""खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .

इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप"का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।

चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष"पड़ा....।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।

इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही "भारतवर्ष"कहलाया.........।

ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।

इस विषय में हमारा वायु पुराणकहता है....—

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....

हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।

हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।

परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।

इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।

परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।

परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????

सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!

आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????

इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।

हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।

ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।

परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?

विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।

और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।

क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।

इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!

ब्रिटेन में अनूठा संघ शिविर

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ब्रिटेन में अनूठा संघ शिविर
तारीख: 10 Aug 2015
लिसेस्टेरशायर (ब्रिटेन) में आयोजित 9 दिवसीय नेतृत्व प्रशिक्षण और चरित्र निर्माण शिविर का समापन 2 अगस्त को हो गया। इसका आयोजन हिन्दू स्वयंसेवक संघ (यू.के.) और हिन्दू सेविका समिति (यू.के.) ने किया था। शिविर में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के 170 स्वयंसेवकों और हिन्दू सेविका समिति की 104 बहनों ने भाग लिया। ये कार्यकर्ता ब्रिटेन के 28 शहरों से आए थे। 9 दिनों तक इन कार्यकर्ताओं की बेहद ही संयमित और अनुशासन वाली दिनचर्या रही। सुबह 6 बजे जागरण से इनकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। इसके बाद प्रार्थना, योग, नियुद्ध और अन्य शारीरिक गतिविधियां होती थीं। दिन में अनेक सत्र होते थे, जैसे बौद्धिक, किसी विषय पर चर्चा, सामान्य ज्ञान, हिन्दू धर्म की जानकारी आदि। इन सभी सत्रों में इन शिक्षणार्थियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। शिविर में 37 पूर्णकालिक प्रशिक्षकों ने प्रशिक्षण दिया और इसे सफल बनाने के लिए 50 से अधिक कार्यकर्ताओं ने दिन-रात मेहनत की। शिविरार्थियों के भोजन के लिए 80,000 चपातियां तैयार हुईं। ये चपातियां दान के रूप में 140 स्थानीय परिवारों ने भेंट कीं। शिविर के समापन समारोह की अध्यक्षता नाटिंघमशायर कॉलेज की प्राचार्य श्रीमती आशा खेमका ने की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिन्दू स्वयंसेवक संघ एक अनूठा संगठन है और यह अपने समुदाय के हित एवं अनुशासन के क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। समापन समारोह में सैकड़ों आम नागरिक भी उपस्थित थे।                -प्रतिनिधि


कांग्रेसी नेता अपने घोटालों का जवाब तो दें

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क्या रॉल विंसी ( तथाकथित राहुल गांधी ), उसकी माँ और सभी कांग्रेसी नेता जनता को इन घोटालों का जवाब देंगे??.....

1. कोयला घोटाला-1855913.4 मिलीयन(भारत का सबसे न. 1घोटाला)......
2. 2G स्पेक्ट्रम घोटाला-1760बिलीयन(भारत का 2सबसे बड़ा घोटाला)........
3. वोडाफोन टेक्स घोटाला-11000करोड़......
4. सारधा ग्रुप चीट फंड घोटाला.......
5. रेल प्रमोशन(पवन बंसल)......
6. बैशाखी घोटाला (सलमान खुर्शीद).........
7. रार्बट बढ़ेरा घोटाला......
8. अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला.....
9. उत्तर प्रदेश खाद्य अनाज घोटाला-350बिलीयन.....
10. कर्नाटक वक्फ भूमि घोटाला-200बिलीयन.......
11. उत्तर प्रदेश NHRMघोटाला-100बिलीयन.....
12. सत्यम घोटाला-10000करोड़.....
13. अरूणाचल प्रदेश के गेगांग अपाँग द्वारा घोटाला- 1000करोड़......
15. ताज को-ऑपरेटीव हाउसींग घोटाला-4000करोड़.....
16. बिहार बाढ़ घोटाला-170मिलीयन.......
17. उत्तर प्रदेश आयुर्वेद घोटाला-260मिलीयन......
18. स्टेट बैंक आफ सौराष्ट्र-950मिलीयन......
19. आर्मी राशन घोटाला-50बिलीयन......
20. झारखंड मेडिकल घोटाला-1.3बिलीयन......
21. हरियाणा शिक्षक रिक्युरीमेंट......
22. उड़िसा मिनींग घोटाला-70बिलीयन.....
23. कामनवेल्थ खेल घोटाला-70000करोड़......
24. आंध्र प्रदेश Emmar घोटाला-25बिलीयन.....
25. झारखंड मनरेगा घोटाला......
26. चंडीगढ़ बुथ घोटाला......
27. बेल्लारी मीनींग घोटाला......
28. Tatra घोटाला-130मिलीयन......
29. LIC हाउसींग लोन घोटाला......
30. NTRO घोटाला-140मिलीयन.......
31. पुणे हाउसींग घोटाला......
32. पुणे भूमि घोटाला......
33. उड़िसा दाल घोटाला-120मिलीयन......
34. केरला इन्वेसटमेन्ट घोटाला-170मिलीयन......
35. मुंबई फ्राड टेक्स घोटाला-175मिलीयन.......
36. महाराष्ट्र शिक्षा घोटाला-10बिलीयन... ..
37. महाराष्ट्र PDS घोटाला.....
38. उत्तर प्रदेश TET घोटाला.......
39. उत्तर प्रदेश मनरेगा घोटाला.......
40. उड़िसा मनरेगा घोटाला.......
41. बिहार सोलर लैम्प घोटाला-400मिलीयन.......
42. B.L कश्यप EPFO घोटाला-16.29मिलीयन........
43. आसाम शिक्षा घोटाला......
44. अब्दुल करीम तेलगी स्टाम्प पेपर घोटाला-400000 करोड़......
45. पुणे ULCघोटाला......
46. तामिलनाडु ग्रेनाइट घोटाला.......
46. फाइनेंस लिमीटेड घोटाला.......
47. महाराष्ट्र irrigation घोटाला.......
48. अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट घोटाला-290.33 बिलीयन.....
49. FOREX घोटाला-320बिलीयन.......
50. महाराष्ट्र स्टॉम्प ड्युटी घोटाला-110 मिलीयन.....
51. महाराष्ट्र भूमि घोटाला(2).
52. आंध्र प्रदेश Liquar घोटाला......
53. जम्मु कश्मीर क्रिकेट एसोसीयन घोटाला.....
54. जम्मु कश्मीर PHE घोटाला.....
55. जम्मु कश्मीर रिक्युरीमेंट घोटाला......
56. जम्मु कश्मीर डेन्टल घोटाला.......
57. NHPसिमेन्ट घोटाला.........
58. हरियाणा फॉरेस्ट घोटाला......
59. उत्तर प्रदेश स्टाम्प पेपर ड्युटी घोटाला-1200 करोड़.....
60. उत्तर प्रदेश हाल्टीकल्चर घोटाला-700 मिलीयन......
61. उत्तर प्रदेश पाल्म ट्री घोटाला-550 मिलीयन.......
62. उत्तर प्रदेश बीज घोटाला-500मिलीयन.....
63. Tax Refund घोटाला-30 मिलीयन.....
64. राँची इस्टेट......
65. आधार घोटाला......
66. BEML हाउसींग सोसायटी घोटाला......
67. MSTC सोना डयुटी घोटाला......
68. TIN घोटाला..........
69. करप्शन कैश घोटाला........
70. हाइवे घोटाला.....
71 सैनिक जुते घोटाला.........
72 किसान कर्ज घोटाला-52000 करोड़ ₹......
73. 2009-स्विस बैंकों में लाखों करोड़ का काला धन....

हमारे इस राष्ट्रवादी पेज से भी जुडे.....

जड़ी - बूटियां उम्मीद से बढ़कर फायदेमंद

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तुलसी के अनंत फायदे-
प्रकृति ने मनुष्य को ऐसे ऐसे वरदानों से नवाजा है कि वह चाहे तो भी जीवन भर उनसे उऋण नहीं हो सकता है । तुलसी भी ऐसा ही एक अनमोल पौधा है । जो प्रकृति ने मनुष्य को दिया है। सामान्य से दिखने वाले तुलसी के पौधे में अनेक दुर्लभ और बेशकीमती गुण पाए जाते हैं । आइये जाने कि तुलसी का पौधा हमारे किस किस काम आ सकता है ।  तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है । विशेषकर सर्दी खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है । इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है ।
– शरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु भी तुलसी अत्यंत गुणकारी है ।
– इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है । एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है । यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।
– तुलसी जी के पौधा की तेज खुशबू मच्छरों को परेशान कर देती है और वे भाग जाते हैं।
– तुलसी के रस की कुछ बूंदों में थोड़ा सा नमक मिलाकर बेहोश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है ।
– चाय ( बिना दूध की ) बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएं तो सर्दी बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है
– 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी एवं अस्थमा के रोगी को ठीक किया जा सकता है ।
– तुलसी के काढ़े में थोड़ा सा सेंधा नमक एवं पिसी सौंठ मिलाकर सेवन करने से कब्ज दूर होती है ।
– तुलसी हिचकी, खांसी, जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है । इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है । यह दुर्गंध भी दूर करती है ।
– तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली, दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है ।
– तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली, कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है । तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे । शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है । सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है ।
तुलसी की मुख्य जातियां – तुलसी की मुख्यत: 2 प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं । इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है । रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है । इसलिए इसे गौरी कहा जाता है । श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है । इसमें कफनाशक गुण होते हैं । यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है । तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है । इसमें जबरदस्त जहर नाशक प्रभाव पाया जाता है । लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है । आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है । एक अन्य जाति मरूवक है जो कम ही पाई जाती है । राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है ।
– मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है । तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है । जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए । इससे बुखार में आराम मिलता है । शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें , आराम मिलेगा ।
– साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है ।
– तुलसी के रस में मुलहठी व थोड़ा सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है ।
– १-२ लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है ।
– शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है ।
– किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है ।
– फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है ।
– तुलसी थकान मिटाने वाली औषधि है । बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है ।
– प्रतिदिन तुलसी की 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है ।
– तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है  इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है ।
– तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है ।
– तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें । कम से कम 1 सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें । यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं ।
– दिल की बीमारी में यह अमृत है । यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है । दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए ।
– दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी की पत्तियां चबाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है ।
– 10 ग्राम तुलसी के रस के साथ 5 ग्राम शहद एवं 2 ग्राम पिसी काली मिर्च का सेवन करने से पाचन शक्ति की कमजोरी समाप्त हो जाती है ।
– दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है ।

मेंहदी के फायदे –
– लगभग 5 ग्राम मेंहदी के पत्ते लेकर रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें और प्रातःकाल इन पत्तियों को मसलकर तथा छानकर रोगी को पिला दें | एक सप्ताह के सेवन से पुराने पीलिया रोग में अत्यंत लाभ होता है |
– मेंहदी और एरंड के पत्तों को समभाग पीसकर थोड़ा गर्म करे घुटनों पर लेप करने से घुटनों की पीड़ा में लाभ होता है |
– लगभग 4.5 ग्राम मेंहदी के फूलों को पानी में पीसकर कपड़े से छान लें, इसमें ७ ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन पीने से गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द शीघ्र ही ठीक हो जाता है |
– मेंहदी में दही और आंवला चूर्ण मिलाकर २- ३ घंटे बालों में लगाने से बल घने, मुलायम, काले और लम्बे होते हैं |
– दस ग्राम मेंहदी के पत्तों को २०० मिली पानी में भिगोकर रख दें, थोड़ी देर बाद छानकर इस पानी से गरारे करने से मुँह के छाले शीघ्र शांत हो जाते हैं |
– मेंहदी के बीजों को बारीक पीसकर, घी मिलाकर ५०० मिग्रा की गोलियां बना लें | इन गोलियों को सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से खूनी दस्तों में लाभ होता है |
– अग्नि से जले हुए स्थान पर मेंहदी की छाल या पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप करने से लाभ होता है |
हल्दी के फायदे-
– अगर त्वचा पर अनचाहे बाल उग आए हों तो इन बालों को हटाने के लिए हल्दी पाउडर को गुनगुने नारियल तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को हाथ-पैरों पर लगाएं। ऐसा करने से शरीर के अनचाहे बालों से निजात मिलती है।
–  धूप में जाने के कारण त्वचा अक्सर टैन्ड हो जाती है। टैन्ड त्वचा से निजात पाने के लिए हल्दी पाउडर, बादाम चूर्ण और दही मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाइए। इससे त्वचा का रंग निखर जाता है और सनबर्न की वजह से काली पड़ी त्वचा भी ठीक हो जाती है। यह एक तरह से सनस्क्रीन लोशन की तरह काम करता है।
– दाग, धब्बे व झाइंया मिटाने के लिए हल्दी बहुत फायदेमंद है। चेहरे पर दाग या झाइंया हटाने के लिए हल्दी और काले तिल को बराबर मात्रा में पीसकर पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं।
– हल्दी को दूध में मिलाकर इसका पेस्ट बना लीजिए। इस पेस्ट को चेहरे पर लगाने से त्वचा का रंग निखरता है और आपका चेहरा खिला-खिला दिखेगा।
– लीवर संबंधी समस्याओं में भी इसे बहुत उपयोगी माना जाता है।
– सर्दी-खांसी होने पर दूध में कच्ची हल्दी पाउडर डालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
– पेट में कीड़े होने पर 1 चम्मच हल्दी पाउडर में थोडा सा नमक मिलाकर रोज सुबह खाली पेट एक सप्ताह तक ताजा पानी के साथ लेने से कीड़े खत्म हो जाते हैं।
– खांसी होने पर हल्दी का इस्तेमाल कीजिए। अगर खांसी आने लगे तो हल्दी की एक छोटी सी गांठ मुंह में रख कर चूसें, इससे खांसी नहीं आती।
– मुंह में छाले होने पर गुनगुने पानी में हल्दी पाउडर मिलाकर कुल्ला करें या हलका गर्म हल्दी पाउडर छालों पर लगाएं। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
– चोट लगने या मोच होने पर हल्दी बहुत फायदा करती है। मांसपेशियों में खिंचाव या अंदरूनी चोट लगने पर हल्दी का लेप लगाएं या गर्म दूध में हल्दी पाउडर डालकर पीजिए।
– हल्दी का प्रयोग करने से खून साफ होता है जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढती है।
– अनियमित माहवारी को नियमित करने के लिए महिलाएं हल्दी का इस्तेमाल कर सकती हैं।
– हल्दी का सेवन करने से खून साफ होता है । इससे रक्त संचार बढ़ता है और लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण भी होता है। हल्दी से लीवर भी संतुलित रहता है। घावों को भरने में भी सहायक होती है और ऊतकों का नवीनीकरण भी कर देती है।
– हल्दी त्वचा के लिए भी फायदेमंद होती है। इससे मुहासे की समस्या दूर होती है और त्वचा चिकनी तथा मुलायम होती है।
– हल्दी कैंसर में भी लाभदायक है। यह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकती है। इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि हल्दी के सेवन से त्वचा, स्तन, आँत और प्रोस्टेट कैंसर को भी बढ़ने से रोका जा सकता है।
– गठिया के रोगियों को भी हल्दी का सेवन करना चाहिए। हल्दी की गाँठों का सेवन अपच में लाभदायक होता है। हल्दी डायबिटीज के रोगियों के लिए भी गुणकारी है। इससे रक्त में शर्करा का स्तर संतुलित रहता है। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम से ग्रसित लोगों को भी हल्दी का सेवन करना चाहिए। हल्दी के सेवन से पेट की गड़बड़ी दूर होती है। इससे हृदय रोगों की संभावना भी कम होती है।
खीरा के फायदे –
– डायबिटीज, एसिडिटी, ब्लड प्रेशर से पीड़ित व्यक्ति या जो वजन को नियंत्रित करना चाहते है, उन्हे सुबह खाली पेट खीरे का जूस लेना चाहिए। स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा नीबू का रस डाल सकती है। ब्लड प्रेशर की समस्या हो तो जूस में नमक न डालें।
– खीरे में प्रचुर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेट होते है जो हमारे शरीर के इम्यून फंक्शन को बरकरार रखने मदद करते है। इसे रोजाना खाने से गर्मी से लू नहीं लगती। इसमें पानी की मात्रा भी अधिक होती है, जो शरीर में पानी की कमी नहीं होने देती। इसके सेवन से थकावट नहीं होती है।
– इसका प्रयोग गर्मी से राहत देने और जलन को दूर करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में किया जाता रहा है। यह सिर्फ डाइट में ही नहीं प्रयोग किया जाता है, स्त्रियां इसका खास उपयोग आंखों की थकावट को दूर करने के लिए भी करती है।
-. इसे अच्छी तरह से साफ करके छिलके समेत खाएं तो अच्छा रहता है। खीरे में फाइबर बहुत होता है।
-. अगर आपको इसे साबुत खाने में समस्या है तो जूस पिएं।
-यह आंखों की सूजन कम करता है और उन्हे राहत के साथ ठंडक भरा एहसास देता है।
– खीरा एक बेहतरीन क्लींजर और टोनर होता है।
– खीरे में मिनरल की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, सल्फर, सिलिकॉन, क्लोरीन भी पाया जाता है। न्यूट्रीशनल वैल्यू बढ़ाने के लिए आप इसे सब्जियों, फलों, सीरियल्स और सैलेड के साथ उपयोग कर सकती है।
– कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए प्रतिदिन दो छिलके सहित खीरे खाने चाहिए।
– हाइपरएसिडिटी और गैस्ट्रिक से निजात पाने के लिए रोजाना खीरे का जूस पीना चाहिए। बेहतर होगा कि हर दो घंटे के अंतराल में 4-6 औंस जूस लें। आप चाहे तो इसमें पर्याप्त पानी मिलाकर पी सकती है, इससे पेट की जलन से तत्काल छुटकारा मिलता है।
– इसका जूस नियमित रूप से पीने से मुंहासे, ब्लैक हेड्स , झुर्रियां दूर रहती है।

आंवले का सेवन करने के फायदे –
–  आंवला विटामिन ‘सी’ का अनूठा भण्डार है। जितना विटामिन ‘सी’ आंवले में होता है उतना किसी अन्य फल में नहीं होता। आंवले में विटामीन ‘सी’ नारंगी और मौसम्बी की तुलना में बीस गुना होता है। ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि इसमें विटामिन ‘सी’ किसी भी सूरत में नष्ट नहीं होता।
– आंवला खाने से लीवर को शक्ति मिलती है, जिससे हमारे शरीर में विषाक्त पदार्थ आसानी से बाहर निकलते हैं।
– आंवला विटामिन-सी का अच्छा स्रोत होता है। एक आंवले में 3 संतरे के बराबर विटामिन सी की मात्रा होती है।
– आंवला का सेवन करने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।
– आवंले का जूस भी पिया जा सकता है। आंवला का जूस पीने से खून साफ होता है।
– आंवला खाने से आंखों की रोशनी बढती है।
– आंवला शरीर की त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
–  सुबह नाश्ते में आंवले का मुरब्बा खाने आपका शरीर स्वस्थ बना रहता है।
– डायबिटीज के मरीजों के लिए आंवला बहुत फायदेमंद होता है। मधुमेह के मरीज हल्दी के चूर्ण के साथ आंवले का सेवन करे। इससे मधुमेह रोगियों को फायदा होगा ।
– बवासीर के मरीज सूखे आंवले को महीन या बारीक करके सुबह-शाम गाय के दूध के साथ हर रोज सेवन करे। इससे बवासीर में फायदा होगा।
– यदि नाक से खून निकल रहा है तो आंवले को बारीक पीसकर बकरी के दूध में मिलाकर सिर और मस्तिक पर लेप लगाइए। इससे नाक से खून निकलना बंद हो जाएगा।
– आंवला खाने से दिल मजबूत होता है। दिल के मरीज हर रोज कम से कम तीन आंवले का सेवन करें। इससे दिल की बीमारी दूर होगी। दिल के मरीज मुरब्बा भी खा सकते हैं।
– खांसी आने पर दिन में तीन बार आंवले का मुरब्बा गाय के दूध के साथ खाएं। अगर ज्यादा तेज खांसी आ रही हो तो आंवले को शहद में मिलाकर खाने से खांसी ठीक हो जाती है।
– यदि पेशाब करने में जलन हो तो हरे आंवले का रस शहद में मिलाकर सेवन कीजिए। इससे जलन समाप्त होगी ओर पेशाब साफ आएगा।
– पथरी की शिकायत होने पर सूखे आंवले के चूर्ण को मूली के रस में मिलाकर 40 दिन तक सेवन कीजिए। इससे पथरी समाप्त हो जाएगी।
– आंवले के सेवन से कई रोग मिटाये जा सकते हैं। आंवले में स्थित विटामीन ‘सी’ शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति में बेहद वृद्धि करता है । आवंला रक्तशुद्धि करता है, साथ ही नया रक्त उत्पन्न करने में बहुत उपयोगी है। आंवले में पाया जाने वाला विटामिन ‘सी’ नेत्र ज्योति, केश, बहरापन दूर करने, मधुमेह मिटाने, रक्त बुद्धि, मसूढ़े व दांत, फैफड़े व त्वचा के लिये बहुत उपयोगी है।
– सौंदर्य सजग महिलाओं के लिये यह वरदान है। आंवले का चूर्ण और पिसी मेहंदी मिलाकर लगाने से बाल पकते नहीं हैं और काले बने रहते हैं । आंवले के उपयोग से सुंदर नेत्र, कान्तिपूर्ण स्वच्छ त्वचा और तेजस्वी मुख आपके रूप लावण्य को और बढ़ाते हैं यह शरीर को स्फूर्तिवान एवं बलवान रखकर वृद्धावस्था को दूर रखने के लिये अत्यंत गुणकारी है।
– आंवले का स्वाद पूर्णत: रूचिकर नहीं है, अत: इसका सेवन खाकर न करके इसके रस का सेवन कर अपेक्षित लाभ उठा सकते हैं। वैसे भी आंवले के मूल्यवान तत्वों का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिये उसका रसपान करना चाहिए। प्रात: काल खाली पेट आंवले का रसपान विशेष गुणकारी है। इसका रस आसानी से निकाला जा सकता है । ३—४ आंवलों का रस सुबह शाम लेना चाहिए। यदि थोड़ा बहुत जी मिचलाता है तो घबराना नहीं चाहिए । आंवला चटनी, मुरब्बा , आचार, चूर्ण आदि के रूप में भी गुणकारी बना रहता है।
पुदीना या पिपरमिंट के फायदे –
– मुंह की दुर्गध दूर करने के लिए पुदीने की सूखी पत्तियों को पीसकर उसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को मंजन की तरह दांतों पर रगड़ें। मुंह की दुर्गन्ध तो दूर हो ही जाएगी, मसूड़े भी मजबूत होंगी।
– एक गिलास पानी में 8-10 पुदीने की पत्तियां, थोड़ी-सी काली मिर्च और जरा सा काला नमक डालकर उबालें। 5-7 मिनट उबालने के बाद पानी को छानकर पीएं, खांसी, जुकाम और बुखार से राहत मिलेगी।
– हाजमा खराब हो तो एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें, उसमें थोड़ा-सा काला नमक डालें और पुदीने की 8-10 पत्तियां पीसकर मिलाएं। अब पीड़ित व्यक्ति को इसे पिलाएं, तुरंत लाभ मिलेगा।
– हिचकियां न रुकें तो पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर उन्हें पीसें और उनका रस निकालकर पिलाएं, हिचकी आनी बंद हो जाएगी।
– गर्मी के मौसम में लू लगने से बचने के लिए पुदीने की चटनी को प्याज डालकर बनाएं। अगर इसका सेवन नियमित रूप से किया जाए तो लू लगने की आशंका खत्म हो जाती है।
– मुंहासे दूर करने के लिए पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर पीस लें। अब उसमें 2-3 बूंदे नींबू का रस डालकर इसे चेहरे पर कुछ देर के लिए लगाएं। फिर चेहरा ठंडे पानी से धो लें। कुछ दिन ऐसा करने से मुंहासे तो ठीक हो ही जाएंगे, चेहरे पर चमक भी आ जाएगी।
– पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है।
– अगर नमक के पानी के साथ पुदीने के रस को मिलाकर कुल्ला करें तो गले की खराश और आवाज में भारीपन दूर हो जाते हैं। आवाज साफ हो जाती है।

हरण के फायदे –
– हरड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दो किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी ) ठीक हो जाती है |
– हरीतकी चूर्ण सुबह शाम काले नमक के साथ खाने से कफ ख़त्म हो जाता है |
– हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आनी बंद हो जाती है|
– हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |
– छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर प्रतिदिन 3 बार लगाने से मुहं के छाले नष्ट हो जाते हैं | इसको आप रात को भोजन के बाद भी चूंस सकते हैं |
– छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस कम हो जाती है |
– कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर चटनी बना लें | एक -एक चम्मच की मात्रा में तीन बार इस चटनी के सेवन से पतले दस्त बंद हो जाते हैं |

पपीता के फायदे –
–  कच्चा पपीता एक मल रोधक तथा कफ, और वात को कुपित करने वाला होता है । किंतु पका फल खाने में मीठा, रुचिकर और पित्तनाशक भारी तथा सुस्वादिष्ट होता हैं। प्रकृतिक रूप से पके पपीते को खाने से पेट का दर्द, पेट के कीड़े भोजन के प्रति अरुचि, उदर शूल, आँतों में मल जमना, अजीर्ण (कब्ज) आदि रोग दूर हो जाते है। पपीते में आँतों में जमें मल को खरोंचकर बाहर निकालने की शक्ति होती है। पपीता आँखों की रोशनी को बढ़ाता है। जिन लोगों को रतौंधी की बीमारी हो उन्हें पपीता जरूर सेवन करना चाहिए। पपीता पाचन शक्ति मजबूत कर भूख बढ़ाता है।
– पपीते में विषैले पदार्थों को बाहर निकालने की शक्ति हैं। पपीता मूत्र संबंधी विकारों को निकालकर गुर्दें की सफाई करता है। इसके खाने से गुर्दें में विषैले तत्व इकट्ठे ही नहीं हो पाते हैं।
अनार के फायदे –
– दाँतों के मसूड़ों से खून आता हो तो अनार के फूलों के चूर्ण से मंजन करने से आराम मिलता है।
– सूखा अनारदाना पानी में भिगो दें, तीन—चार घंटे बाद इस जल को थोड़ा—थोड़ा मिश्री मिलाकर कई बार पीने से उल्टी, जलन, अधिक प्यास आदि रोग नष्ट होते हैं।
– अधिक प्यास लगने, जी मचलाने आदि में अनार के रस में आधा नींबू निचोड़कर पीयें।
– अनारदाना, सौंफ, धनिया तीनों बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, दो ग्राम चूर्ण में एक ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में चार बार सेवन करने से खूनी दस्त, खूनी आँव में आराम मिलता है।
– अनार के छिलके को उबालकर उसके पानी से घावों को धोने से घाव जल्दी भरता है।
अमरूद  के फायदे –
– अमरूद के पत्तों को पीसकर उसके रस को पीने से उदर में होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
– कुछ देर बाद उस पानी को छानकर पीने से मधुमेह या बहुमूत्रता से उत्पन्न प्यास दूर होती है।
– अमरूद को गरम रेत में भूनकर खाने से खाँसी में लाभ मिलता है।
– दन्त पीड़ा में अमरूद के पत्तों को फिटकरी के साथ मिलाकर कुल्ला करने से आराम मिलता है।
– अमरूद के पत्ते में पान की तरह कत्था लगाकर खाने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
केला के फायदे –
– पीलिया रोग में रोगी को कम से कम चार पके केले (बिना कार्बाइड से पका हुआ) नित्य खाने चाहिए।
– टायफाइड बुखार उतरने के बाद छोटी इलायची के चूर्ण के साथ रोगी को पका केला खिलाने से बुखार में आई दुर्बलता शीघ्र दूर हो जाती है।
– पेट में जलन हो तो पका केला खाना चाहिए।
– मुँह में छाले हों तो पका केला खाना चाहिए।
– दस्त लगने पर पका केला दही में मथकर खाना चाहिए।
संतरे  के फायदे –
– कब्ज , सूखा, दन्तरोग आदि में संतरे का रस लाभदायक है।
– संतरे का रस आँखो के लिये भी लाभदायक है।
– भूख न लगने पर संतरे के रस में सोंठ का चूर्ण मिलाकर नियमित पीने से भूख लगती है।
– संतरे के छिलकों को पीसकर नीबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे का रंग साफ होता है।
आम के फायदे –
आम का फल सबका बहुत प्रिय होता है और छोटे बड़े सभी इसे बहुत मन से खाते है। प्रस्तुत है आम के सभी औषधीय गुणों का वर्णन-
– अच्छे पके हुए मीठे देशी आमों का ताजा रस 250 से 350 मिलीलीटर तक, गाय का ताजा दूध 50 मिलीलीटर, अदरक का रस 1 चम्मच- तीनों को कांसे की थाली में अच्छी तरह फेट लें, लस्सी जैसा हो जाने पर धीरे-धीरे पी लें। 2-3 सप्ताह सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता, सिर पीड़ा, सिर का भारी होना, आंखों के आगे अंधेरा हो जाना आदि दूर होता है। यह गुर्दे के लिए भी लाभदायक है।
– पके आम को गर्म राख में भूनकर खाने से सूखी खांसी खत्म हो जाती है।
– दूध के साथ पका आम खाने से अच्छी नींद आती है।
– आम के रस में सेंधानमक तथा चीनी मिलाकर पीने से भूख बढ़ती है।
– 300 मिलीलीटर आम का जूस प्रतिदिन पीने से खून की कमी दूर होती है।
– आम की गुठली की गिरी (गुठली के अंदर का बीज) पीसकर मंजन करने से दांत के रोग तथा मसूढ़ों के रोग दूर हो जाते हैं।
– बच्चे को मिट्टी खाने की आदत हो तो आम की गुठली का चूर्ण ताजे पानी से देना लाभदायक है। गुठली को सेंककर सुपारी की तरह खाने से भी मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।
– मकड़ी के जहर पर कच्चे आम के अमचूर को पानी में मिलाकर लगाने से जहर का असर दूर हो जाता है।
– गुठली को पीसकर लगाने से अथवा अमचूर को पानी में पीसकर लगाने से छाले मिट जाते है।
– आम की गुठली की गिरी का एक चम्मच चूर्ण बवासीर तथा रक्तस्राव होने पर दिन में 3 बार प्रयोग करें।
– आम के पत्तों को जलाकर इसकी राख को जले हुए अंग पर लगायें। इससे जला हुआ अंग ठीक हो जाता है।
– गुठली की गिरी को थोड़े पानी के साथ पीसकर आग से जले हुए स्थान पर लगाने से तुरन्त शांति प्राप्त होती है।
– आम के बौर (आम के फूल) को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच दूध के साथ नियमित रूप से लें। इससे धातु की पुष्टि (गाढ़ा) होती है।
– आम की बौर (फल लगने से पहले निकलने वाले फूल) को रगड़ने से हाथों और पैरों की जलन समाप्त हो जाती है।
– 15 ग्राम शहद में लगभग 70 मिलीलीटर आम का रस रोजाना 3 हफ्ते तक पीने से तिल्ली की सूजन और घाव में लाभ मिलता है। इस दवा को सेवन करने वाले दिन में खटाई न खायें।
– जिस आम में रेशे हो वह भारी होता है। रेशेदार आम अधिक सुपाच्य, गुणकारी और कब्ज को दूर करने वाला होता है। आम चूसने के बाद दूध पीने से आंतों को बल मिलता है। आम पेट साफ करता है। इसमें पोषक और रुचिकारक दोनों गुण होते हैं। यह यकृत की निर्बलता तथा रक्ताल्पता (खून की कमी) को ठीक करता है। 70 मिलीलीटर मीठे आम का रस, 2 ग्राम सोंठ में मिलाकर सुबह पीने से पाचन-शक्ति बढ़ती है।
– आम के कोमल पत्तों का छाया में सुखाया हुआ चूर्ण 25 ग्राम की मात्रा में सेवन करना मधुमेह में उपयोगी है।
– छाया में सुखाए हुए आम के 1-1 ग्राम पत्तों को आधा किलो पानी में उबालें, चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पिलाने से कुछ ही दिनों में मधुमेह दूर हो जाता है।
– आम के 8-10 नये पत्तों को चबाकर खाने से मधुमेह पर नियंत्रण होता है।
– कच्चे आम के अमचूर को भिगोकर उसमें 2 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 चम्मच दिन में 2 बार लेने से सूखा रोग में आराम मिलता है।
– लगभग 10-15 ग्राम आम की चटनी को अजीर्ण रोग में रोगी को दिन में दो बार खाने को दें।
– 3-6 ग्राम आम की गुठली का चूर्ण अजीर्ण में दिन में 2 बार दें।
– आम की अन्त:छाल का रस दिन में 20-40 मिलीलीटर तक दो बार पिलायें। इससे बवासीर, रक्तप्रदर या खूनी दस्त में आराम होता है।
– गुठली की गिरी के 50-60 मिलीलीटर काढ़े में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से भयंकर प्यास शांत होती है।
– आम के फल को पानी में उबालकर या भूनकर इसका लेप बना लें और शरीर पर लेप करें इससे जलन में ठंडक मिलती है।
– आम की गुठलियों के तेल को लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा काले बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं। इससे बाल झड़ना व रूसी में भी लाभ होता है।
– आम के 50 ग्राम पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर चौथाई भाग शेष काढ़े में मधु मिलाकर धीरे-धीरे पीने से स्वरभंग में लाभ होता है।
– लीवर की कमजोरी में (जब पतले दस्त आते हो, भूख न लगती हो) 6 ग्राम आम के छाया में सूखे पत्तों को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर छानकर थोड़ा दूध मिलाकर सुबह पीने से लाभ होता है।
– गुठली की गिरी 10 ग्राम, बेलगिरी 10 ग्राम तथा मिश्री 10 ग्राम तीनों का चूर्णकर 3-6 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है। गुठली की गिरी व आम का गोंद समभाग लेकर 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अतिसार मिटता है।
– 25 ग्राम आम के मुलायम पत्ते पीसकर एक गिलास पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी आधा न हो जाये और छानकर गर्म-गर्म दिन में दो बार पिलाने से अथवा कच्चे आम 20 ग्राम कूट कर दही के साथ सेवन करने से हैजा खत्म हो जाता है।
– नरम टहनी के पत्तों को पीसकर लगाने से बाल बड़े व काले होते हैं। पत्तों के साथ कच्चे आम के छिलकों को पीसकर तेल मिलाकर धूप में रख दें। इस तेल के लगाने से बालों का झड़ना रुक जाता है व बाल काले हो जाते हैं।
– आम के ताजे कोमल 10 पत्ते और 2-3 कालीमिर्च दोनों को पानी में पीसकर गोलियां बना लें। किसी भी दवा से बंद न होने वाले, उल्टी-दस्त इससे बंद हो जाते हैं।
– ताजे मीठे आमों के 50 मिलीलीटर ताजे रस में 20-25 ग्राम मीठा दही तथा 1 चम्मच शुंठी चूर्ण बुरककर दिन में 2-3 बार देने से कुछ ही दिन में पुरानी संग्रहणी (पेचिश) दूर होती है।
– कच्चे आम की गुठली (जिसमें जाली न पड़ी हो) का चूर्ण 60 ग्राम, जीरा, कालीमिर्च व सोंठ का चूर्ण 20-20 ग्राम, आम के पेड़ के गोंद का चूर्ण 5 ग्राम तथा अफीम का चूर्ण एक ग्राम इनको खरलकर, वस्त्र में छानकर बोतल में डॉट बंद कर सुरक्षित करें। 3-6 ग्राम तक आवश्यकतानुसार दिन में 3-4 बार सेवन करने से संग्रहणी, आम अतिसार, रक्तस्राव (खून का बहना) आदि का नाश होता है।
– आम के फूलों (बौर) का काढ़ा या चूर्ण सेवन करने से अथवा इनके चूर्ण में चौथाई भाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से अतिसार, प्रमेह, भूख बढ़ाने में लाभदायक है।
– आम के फूलों के 10-20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम खांड मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।
– आम के ताजे कोमल पत्ते तोड़ने से एक प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है इस द्रव पदार्थ को एंड़ी के फटे हिस्से में भर देने से तुरन्त लाभ होता है।
– आम के 10 पत्ते, जो पेड़ पर ही पककर पीले रंग के हो गये हो, लेकर 1 लीटर पानी में 1-2 ग्राम इलायची डालकर उबालें, जब पानी आधा शेष रह जाये तो उतारकर शक्कर और दूध मिलाकर चाय की तरह पिया करें। यह चाय शरीर के समस्त अवयवों को शक्ति प्रदान करती है।
– आम के फूलों के चूर्ण (5-10 ग्राम) को दूध के साथ लेने से स्तम्भन और कामशक्ति की वृद्धि होती है।
– कच्चे आम की गुठली का चूर्ण 250 से 500 मिलीग्राम तक दही या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सूत जैसे कृमि नष्ट हो जाते हैं।
– रोज सुबह मीठे आम चूसकर, ऊपर से सौंठ व छुहारे डालकर पकाये हुए दूध को पीने से पुरुषार्थ वृद्धि और शरीर पुष्ट होती है।
– आम को तोड़ते समय, आमफल की पीठ में जो गोंदयुक्त रस (चोपी) निकलती है, उसे दाद पर खुजलाकर लगा देने से फौरन छाला पड़ जाता है और फूटकर पानी निकल जाता है। इसे 2-3 बार लगाने से रोग से छुटकारा मिल जाता है।
– गरमी के दिनों में शरीर पर पसीने के कारण छोटी-छोटी फुन्सियां हो जाती हैं, इन पर कच्चे आम को धीमी अग्नि में भूनकर, गूदे का लेप करने से लाभ होता है।
– आम के ताजे पत्ते खूब चबायें और थूकते जायें। थोड़े दिन के निरंतर प्रयोग से हिलते दांत मजबूत हो जायेंगे तथा मसूढ़ों से रक्त गिरना बंद हो जायेगा।
शंखपुष्पी के फायदे –
– शंखपुष्पी की पत्ती और तना बुद्धिवर्धक माने जाते हैं सो, परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों को सदैव शंखपुष्पी को प्रयोग में लेते हुए अपनी बुद्धि का अधिकाधिक विकास करना चाहिए।
सफेद मूसली के फायदे –
– बलिष्ठ बनाये रखने हेतु मूसली अति आवश्यक समझी जाती है । चिकित्सकों की राय में, मूसली की जड़ यौनवर्धक, वीर्यवर्धक तथा शक्तिवर्धक होती है जिससे व्यक्ति का शारीरिक कष्ट भी छूमंतर हो जाता है।
मुलहठी के फायदे –
– मुलहठी की जड़ को सर्दी , खांसी, जुकाम, अल्सर जैसे रोगों के शमन हेतु अक्सर उपयोग में लाया जाता है।
चमेली के फायदे –
– मुंह के छाले की रूकावट को दूर करने में यह बहुत ही सक्षम है।
छुहारा के फायदे –
– लकवा और सीने के दर्द की शिकायत को दूर करने में भी सहायता करता है।
– भूख बढ़ाने के लिये छुहारे का गुदा निकाल कर दूध में पकाएं, उसे थोड़ी देर पकने के बाद ठंडा करके पीस लें वह दूध बहुत पौष्टिक होता है।
– छुहारा आमाशय को बल प्रदान करता है।
– छुहारे का सेवन नाड़ी के दर्द में भी आराम देता है।
– छुहारा के प्रयोग से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है। शरीर को शक्ति देने के लिये मेवों के साथ छुहारे का प्रयोग खासतौर पर किया जाता है।
– छुहारे दिल को शक्ति प्रदान करते हैं। यह शरीर में रक्त वृद्धि करते हैं।
– साइटिका रोग से पीड़ित लोगों को इससे विशेष लाभ होता है।
– इसके सेवन से दमे के रोगियों के फेफड़ों से बलगम आसानी से निकल जाता है।

सौंफ के फायदे –
– बेल का गूदा 1० ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है अतिसार में लाभ होता है।
– यदि आपको पेटदर्द होता है तो भूनी हुई सौंफ चबाइये, आराम मिलेगा। सौंफ की ठंडाई बनाकर पीजिए, इससे गर्मी शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।
– हाथ पाँव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट छान कर मिश्री मिलाकर खाना खाने के पश्चात् 5- 6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।
– सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें । इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आंखों की कमजोरी दूर होती है तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।
– सौंफ का अर्क दस ग्राम चाशनी मिलाकर लें। खांसी में तत्काल आराम मिलेगा।
सेंधा नमक के फायदे –
– हम रोजाना जो सब्जियाँ या दालें खाते हैं उनमें आजकल भरपूर मात्रा में DA, REA के रूप में रासायनिक खाद, कीटनाशक डाले जाते हैं। जिसके कारण यह विष हमारे शरीर में जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार हम साल भर में लगभग ७० ग्राम विष खा लेते हैं। सेंधा नमक जहर को कम करता है और थाइराइड, लकवा, मिर्गी आदि बीमारियों को रोकता है।
बथुआ का साग के फायदे –
– बथुआ का साग स्त्रियों के रूप सौन्दर्य को निखारने में अमृत के समान होता है।एक नवीनतम शोध के अनुसार बथुआ के साग में वैरोटीन नामक तैल तथा जीवशक्ति पाया जाता है। यह मूत्रल विकारों को दूर करके स्त्रियों के सौन्दर्य में निखार लाता है, फिगर को सुन्दर रूप देता है। प्रतिदिन एक कप बथुआ साग (जो कि बिना कीटनाशक का हो) के सूप को पीते रहने से स्त्रियों की सुन्दरता अस्सी वर्ष की आयु तक बनी रहती है।

सरसों का तेल के फायदे –
– सरसों के तेल की मालिश करने से शरीर के अन्दर से हानिकारक जीवाणुओं का नाश होता है और त्वचा के अन्दर रक्त संचार भी ठीक रहता है । तेल की मालिश करने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और इससे थकान और आलस्य भी दूर होता है। शरीर में चुस्ती—फुर्ती और तरोताजगी महसूस होती है।
– अधिक थकान होने पर पैरों के तलवों में भी तेल की मालिश करने से थकान दूर होती है तथा नींद अच्छी आती है । पैरों का फटना, और आंखों की रोशनी भी तेल मालिश से बढ़ती है।
सिंघाड़ा के फायदे –
– सिंघाड़ा थायराइड के लिए बहुत अच्छा है, सिंघाड़े में मौजूद आयोडीन, मैग्नीज जैसे मिनरल्स थायरॉइड और घेंघा रोग की रोकथाम में अहम भूमिका निभाते हैं।
– मान्यता है कि जिन महिलाओं का गर्भकाल पूरा होने से पहले ही गर्भ गिर जाता है उन्हें खूब सिंघाड़ा खाना चाहिए। इससे भ्रूण को पोषण मिलता है और मां की सेहत भी अच्छी रहती है जिससे गर्भपात नहीं होता है। गर्भवती महिलाओं को दूध के साथ सिंघाड़ा खाना चाहिए। खासतौर पर जिनका गर्भ सात महीने का हो चुका है उनके लिए यह बहुत ही लाभप्रद होता है। इसे खाने से ल्यूकोरिया नामक रोग भी ठीक हो जाता है। (सावधानियां:-एक स्वस्थ व्यक्ति को रोजाना 5-10 ग्राम ताजे सिंघाड़े खाने चाहिए। पाचन प्रणाली के लिहाज से सिंघाड़ा भारी होता है, इसलिए ज्यादा खाना नुकसानदायक भी हो सकता है। पेट में भारीपन व गैस बनने की शिकायत हो सकती है। सिंघाड़ा खाकर तुरंत पानी न पिएं। इससे पेट में दर्द हो सकता है। कब्ज हो तो सिंघाड़े न खाएं)
– इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है। सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है। सिंघाड़े के नियमित और उपयुक्त मात्र में सेवन से गर्भस्थ शिशु स्वस्थ व सुंदर होता है।
– सिंघाड़े में विटामिन ए और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो त्वचा की सेहत और खूबसूरती बरकरार रखने में बेहद मददगार है। इसे सलाद के रूप में सर्दियों में नियमित खाने से आपकी त्वचा निखरेगी और ड्राइनेस की समस्या नहीं होगी।
– लू लगने पर सिंघाड़े का चूर्ण ताजे पानी से लें।
– गर्मी के रोगी भी इसके चूर्ण को खाकर राहत पाते हैं।
– कच्चे सिंघाड़े में बहुत गुण रहते हैं। कुछ लोग इसे उबालकर खाते हैं। दोनों रूपों में यह स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है। सुपाच्य भी तो होता है।
– सूजन और दर्द में राहतः सिंघाड़ा सूजन और दर्द में मरहम का काम करता है। शरीर के किसी भी अंग में सूजन होने पर सिंघाड़े के छिलके को पीस कर लगाने से आराम मिलता है।
– यह एंटीऑक्सीडेंट का भी अच्छा स्रोत है। यह त्वचा की झुर्रियां कम करने में मदद करता है। यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों से त्वचा की रक्षा करता है।
– पेशाब के रोगियों के लिए सिंघाड़े का क्वाथ बहुत फायदा देता है।
– सिंघाड़ा की तासीर ठंडी होती है, इसलिए गर्मी से जुड़े रोगों में लाभकर होता है।
– प्रमेह के रोग में भी सिंघाड़ा आराम देने वाला है।
– सिंघाड़े को ग्रंथों में श्रृंगारक नाम दिया जाता है।
– यह विसर्प रोग में लेने पर हमें रोग मुक्त कर देता है।
– प्यास बुझाने का इसका गुण रोगों में बहुत राहत देता है।
– प्रमेह के रोगी भी सिंघाड़ा या श्रृंगारक से आराम पा लेते हैं।
– टांसिल्स होने पर भी सिंघाड़े का ताजा फल या बाद में चूर्ण के रूप में खाना ठीक रहता है। साथ ही गले के दूसरे रोग जैसे- घेंघा, तालुमूल प्रदाह, तुतलाहट आदि ठीक होता है।
– नींबू के रस में सूखे सिंघाड़े को दाद पर घिसकर लगाएँ। पहले तो कुछ जलन लगेगी, फिर ठंडक पड़ जाएगी। कुछ दिन इसे लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
– वजन बढ़ाने में सहायकः सिंघाड़े के पाउडर में मौजूद स्टार्च पतले लोगों के लिए वरदान साबित होती है। इसके नियमित सेवन से शरीर मोटा और शक्तिशाली बनता है।
– सिंघाड़े की रोटी खाने से रक्त- प्रदर ठीक हो जाता है।
– खून की कमी वाले रोगियों को सिंघाड़े के फल का सेवन खूब करना चाहिए।
– सिघांड़े के आटे को घी में सेंक ले | आटे के समभाग खजूर को मिक्सी में पीसकर उसमें मिला ले | हलका सा सेंककर बेर के आकार की गोलियाँ बना लें | २-४ गोलियाँ सुबह चूसकर खायें, थोड़ी देर बाद दूध पियें | इससे अतिशीघ्रता से रक्त की वृद्धी होती है | उत्साह, प्रसन्नता व वर्ण में निखार आता है | गर्भिणी माताएँ छठे महीने से यह प्रयोग शुरू करे | इससे गर्भ का पोषण व प्रसव के बाद दूध में वृद्धी होगी |
तिल के फायदे –
– मस्तिष्क के लिए लाजवाब है। इसमें लैसीथिन नामक पदार्थ होता है जो कि मस्तिष्क के लिए आवश्यक है । तिल का सेवन मस्तिष्क और स्नायुतंत्र के लिए बहुत लाभकारी है।
– कब्ज से निजात पाने के लिए काले तिल में गुड़ मिलाकर सुबह शाम 25 —25 ग्राम सेवन करें।
– यदि गठिया का दर्द सताए तो 150 ग्राम काले तिल में 1० ग्राम सौंठ, 25 ग्राम अखरोट की गिरी तथा 1०० ग्राम गुड़ मिलाकर रख लें। सुबह शाम 2०—2० ग्राम सेवन करें।
– यदि बच्चा बिस्तर गीला करता हो तो काले तिल से बने लडडू खिलाना चाहिए।
– शारीरिक कमजोरी महसूस होने पर 5०—5० ग्राम काला तिल और दालचीनी मिलाकर चूर्ण बना लें तथा एक—एक चम्मच सुबह शाम दूध से सेवन करें।
– हड्डियों से जुड़ी तमाम बीमारियों में तिल का सेवन हितकारी है।
– तिल का सेवन उच्च रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल में लाभदायक है।
– तिल का सेवन रक्त नलिकाआें को मजबूती तथा लचीलापन भी प्रदान करता है।
– अस्थमा के रोगियों के लिए तो यह विशेष लाभदायक है और उन्हें दौरे से राहत दिलाती है।
– यदि माइग्रेन की शिकायत हो तो नियमित रूप से तिल का सेवन करना चाहिए।
– तिल का तेल एक प्राकृतिक सनस्क्रीन का काम करता है त्वचा में जख्म या कटे होने पर तिल का तेल ठीक करने में मदद करता है । त्वचा की टैनिंग कम करने में मदद करता है।
शिमला मिर्च के फायदे –
– शिमला मिर्च को आदिवासी कोलेस्ट्रॉल की अचूक दवा मानते हैं। आधुनिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि शिमला मिर्च शरीर की मेटाबॉलिक क्रियाओं को सुनियोजित करके ट्रायग्लिसेराईड को काम करने में मदद करती है।
– शिमला मिर्च की सब्जी खाने से वजन कम होता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट और वसा कम मात्रा में पाये जाते हैं । इसलिए वह शरीर को फिट रखने में मददगार होती है।
जो लोग अक्सर शिमला मिर्च की सब्जी खाते हैं, उन्हें कमर दर्द, सायटिका और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याएं कम होती हैं। शिमला मिर्च में पाया जाने वाला प्रमुख रसायन केप्सायसिन दर्द निवारक माना जाता है। शिमला मिर्च में भरपूर मात्रा में, विटामीन ए, बी और सी पाए जाते हैं। इसलिए यह एक टॉनिक की तरह काम करता है।
– आधुनिक शोधों के अनुसार शिमला मिर्च में बीटा, करोटीन, ल्युटीन और जिएक्सेन्थिन और विटामिन सी जैसे महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते हैंं। शिमला मिर्च के लगातार सेवन से शरीर बीटा केरोटीन को रेटिनोल में परिवर्तित कर देता है। रेटिनोल वास्तव में विटामिन ए का ही एक रूप है। इन सभी रसायनो के संयुक्त प्रभाव से दिल से सम्बन्धित बीमारियों ओस्टियोआर्थरायटिस, ब्रोंकायटिस और अस्थमा जैसी समस्याओं में जबरदस्त फायदा होता है।
– शिमला मिर्च में लाइकोपिन भी पाया जाता है। यह तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्या को दूर करने में बहुत कारगर होता है। शिमला मिर्च उच्च रक्त चाप (हाई ब्लडप्रेशर) के रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद होती है।
शहतूत के फायदे –
– अधिक ताप के कारण गाढ़ा, पीला मूत्र आने लगे तो शहतूत के रस में मिश्री घोलकर पीने से राहत महसूस होती है। अधिक प्यास लगने पर शहतूत खाना और उसका रस पीना दोनों लाभ पहुंचाते हैं। शहतूत का शरबत ज्वर में पथ्य के रूप में दिया जाता है । यह शांति प्रदान करता है। शहतूत का शरबत खांसी, गले की खराश तथा टांसिल्स में भी लाभदायक होता है । कमजोरी महसूस होने पर शहतूत का रस और चुटकी भर प्रवाल भस्म लेने से ताकत आती है। शहतूत के पत्ते और जड़ की छाल को पीसकर प्रतिदिन एक चाय का मिश्री की चाशनी के साथ चाटने से पेट के कीड़े समाप्त होने लगते हैं। बच्चों के दांत पीसने की बीमारी में भी यह लाभदायक होता है।
लौंग के फायदे –
– तेज सिर दर्द हो तो लौंग को पीसकर थोडा पानी मिलाकर माथे पर लगाएं। सिर दर्द कम हो जाएगा। दांतों के दर्द में लौंग पाउडर से मालिश फायदेमंद है।
– 1 लौंग को हल्का भून लें और चूसते रहें। खांसी नजदीक फटकेगी तक नहीं।
– शरीर में कहीं भी फोडा फुंसी, नासूर हो गया हो तो लौंग- हल्दी पीसकर लगाएं।
– हिचकी आ रही है तो इलायची-लौंग को पानी में उबाल कर पी लें। यदि आराम न मिले तो प्रयोग को दो तीन बार दोहरा लें। निश्चित ही हिचकी आनी बंद हो जाएगी।


नीम के फायदे –
– नीम का उपयोग विषम ज्वर में भी किया जाता है। इसके पानी का उपयोग एनिमा व स्पंज बाथ में किया गया है। बुखार में एक काढ़ा तैयार किया जा सकता है। ज्वर उतारने के लिये नीम के इस काढ़े काे आयुर्वेदाचार्यों ने अमृत कहा है। काढ़ा तैयार करने के लिए 251 ग्राम पानी, तुलसी 1० पत्ते, काली मिर्च के 1० पत्ते, नींबू एक, नीम की पांच पत्तियां प्रयोग में लायी जाती हैं।
– नीम कुष्ठरोग, वात रोग, विष दोष, खांसी, ज्वर, रुधिर दोष, टी. बी. खुजली आदि दूर करने में सहायक है। प्राकृतिक चिकित्सा में इसका उपयोग प्रमेह, मधुमेह, नेत्र रोग में भी किया जाता है। नीम में साधारण रूप से कीटाणुनाशक शक्ति है। नयी कोपलों का नित्य प्रति सेवन करने से शरीर स्वस्थ व प्रसन्न रहता है। नीम के तेल में मार्गेसिन नामक उड़नशील तत्व पाया जाता है। इस तेल की मालिश करने से गठिया व लकवा रोग में लाभ होता है। इसके बीज में 31 प्रतिशत तक एक तेल रहता है जो गहरे पीले रंग का कड़वा, तीखा व दुर्गन्धयुक्त होता है। इस तेल में ओलिड एसिड रहता है।
– सबसे पहले काली मिर्च को पीसकर 250 ग्राम पानी में डालकर नींबू का रस व नीम की पत्तियाँ डालकर अच्छी तरह उबाला जाता है। पानी आधा रहने पर उसको छानकर उस काढ़े को पीकर सो जाते हैं जिससे शरीर में पसीना निकलता है। इससे बुखार, खांसी व सिरदर्द में लाभ होता है। चर्म रोग में नीम का मरहम उपयोग किया जाता है। शरीर में घाव, चोट आदि ठीक हो जाते हैं। नीम के मरहम में नीम का रस व घी समान मात्रा में मिलाकर नीम का रस छीजकर केवल घी बचा रहता है और मरहम तैयार हो जाता है। महिलाओं के श्वेत प्रदर रोग में भी नीम लाभकारी है। इस रोग में नीम व बबूल की छाल का काढ़ा तैयार करके श्वेत प्रदर में उपयोग करने से अच्छा लाभ मिलता है।
– नीम की सूखी पत्तियां कपड़ों व अनाज में रखने से कपड़ा व अनाज खराब नहीं होता। नीम का वृक्ष आक्सीजन भी अधिक बनाता है अत: इससे पर्यावरण शुद्ध होता है तथा कुष्ठ, टी.बी. जैसे रोगी भी स्वस्थ हो जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में नीम बहुत उपयोगी वृक्ष माना जाता है।
जीरा के फायदे –
– जीरे के पानी का सीधा असर श्वास प्रणाली पर भी पड़ता है। चूकि जीरा प्राकृतिक तौर पर श्वास प्रणाली की जकडन दूर करता है इसलिए छाती में बलगम भी काफी मात्रा में बाहर निकल जाता है। खंखारने पर बलगम फैफड़ों और श्वास नलिका में अटकता नहीं है।
– जीरे में एंटीसेप्टिक प्रोपर्टी होने के कारण जुकाम और बुखार के लिए जिम्मेदार माइक्रोऑग्रेनिज्म को मार देता है। जीरे का पानी अनिद्रा दूर करता है और नियमित रूप से लेने वाले को गहरी नींद आती है । इससे मस्तिष्क की ताकत बढ़ती है।
– जीरा रात भर पानी में भिगोकर रखें। सुबह इसके पानी से धो लें। इससे बाल पुष्ट तो होंगे ही साथ ही जीरे में मौजूद विटामिन्स और मिनरल्स जड़ों को खोखला होने से बचाएंगे। बालों में रेशम सी चमक आ जाएगी जो किसी हेअर सीरम से या लोशन से हासिल नहीं हो पाएगी।
– किसी भी इन्सान को स्वस्थ रहने के लिए शरीर में लौह तत्व की उपस्थिति निहायत जरूरी है। इसलिए रक्तअल्पता के मरीजों को इसका उपयोग करना चाहिए।
– गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए जीरें का पानी एक वरदान के रूप मे सामने आता है इससे गर्भवती महिला एवं स्तनपान कराने वाली महिला को लौह तत्व की पर्याप्त आपूर्ति होती है। गर्भस्थ शिशु की वृद्धि सहज होती है।
ईख / गन्ने  के फायदे –
– पीलिया रोग के लिए इसका रस रामबाण है। इसे लेने से पीलिया रोगी को बहुतायत से पेशाब होता है और पीलिया रोग को शीघ्र नष्ट कर देता है।
– पुरानी ईख बल वीर्यवर्धक, रक्तपित्त और क्षय रोग नष्ट करने वाली होती है।
– ईख को रात में खुली जगह अथवा छत पर रखकर सुबह दांतों द्वारा चूसने से पीलिया रोग चार दिनों में ही लाभ होना प्रारंभ हो जाता है।
– गर्मी के दिनों में इसके रस में नमक और नींबू का रस मिलाकर ठंड़े के रूप में पीने से शरीर को पोष्टिकता प्रदान होती है। यह सर्वोत्तम पेय है।
– मूत्रावरोध को दूर कर देता है। दांतो के द्वारा इसको चूसने से सूखी खांसी, दमा, यक्ष्मा , कब्ज, दस्त, पेशाब, छाती की जलन, पसली का दर्द, तिल्ली, जिगर की सूजन, फैफड़ों में पुराने चिपके हुए कफ को बाहर निकालने वाली, रक्त—पित्त, पथरी, शरीर की थकावट, हाथ—पैर के तलुओं, आखों व पूरे शरीर में होने वाली जलन आदि रोगों को ठीक कर देता है।
पालक  के फायदे –
– पालक में लोहा काफी अधिक मात्रा में होता है अत: इसके सेवन से रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है। शरीर में खून की कमी पालक के सेवन से दूर हो जाती है। (नोट -पालक में आजकल बहुत ज्यादे कीटनाशक का प्रयोग होता है)
– रक्त शुद्ध होता है तथा हड्डियां मजबूत बन जाती हैं। पालक कैल्शियम और क्षारीय पदार्थों का जाना—माना स्त्रोत है। अत: इससे पेट से अम्लता दूर होती है और रक्त की क्षारीयता का स्तर बना रहता है।
– गर्भावस्था में पालक का प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। इसमें लोहे की बहुतायत होने के कारण बच्चा और मां दोनों की लोहे की आवश्यकताएं पूरी होती हैं।
– विटामिन ए की बहुतायत से मां, बच्चा दोनों को ही लाभ होता है। पालक के सेवन से मां का दूध भी बढ़ता है।
– पालक का पतला रस गोले के रस के साथ मिलाकर पीने से मूत्र खुलकर आता है। इसका सेवन दिन में दो बार करना चाहिए।
दालचीनी  के फायदे –
– वायरस जन्य रोगों का आक्रमण इसके प्रयोग से नहीं हो पाता। मौसमी बीमारियां— एन्फ्लुएन्जा, मलेरिया, गला बैठना आदि में दालचीनी को पानी में उबालकर उसमे चुटकी भर कालीमिर्च व मिश्री मिलाकर पीने से  ठीक हो जाता है।
– इसकी प्रकृति गर्म होती है। इसलिए गर्मी के दिनों में ज्यादा सेवन नहीं किया जाता।
– दालचीनी एंटीसेप्टिक, एंटीफगल, और एंटीवायरल होती है। यह पाचक रसों के स्राव को भी उत्तेजित करती है। दालचीनी वात, पित्तशामक है तथा जीवनी शक्तिवर्धक है।
– बार बार होने वाले अपच और बुखार के कारण थोड़ी थोड़ी देर में मुंह सूखता हो तो दालचीनी मुंह में रखकर चूसने से प्यास मिटती है।
– रात में एक गिलास दूध में पिसी दालचीनी मिलाकर पीने से शक्ति बढ़ती है। रक्त के सफेद कण बढ़ते हैं।
– दालचीनी से कोलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है। जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है।
– दालचीनी पाउडर से मंजन करना व पानी में इसे उबालकर कुल्ले करने से दांत के हर प्रकार के रोगों को दूर करता है। कहीं भी दर्द हो शरीर में, सिर में, सूजन, पेट दर्द, जोड़ों का दर्द हो तो आधा चम्मच दालचीनी, और पानी मिलाकर मालिश करना, लेप करना और एक कप गर्म पानी में चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर नित्य लेने से ठीक हो जाता है।
– इसी प्रकार ज्वर, टाईफाईड, मोतीझारा, डायबिटीज, कब्ज, स्मरणशक्ति व मानसिक तनाव आदि बिमारियों में भी दालचीनी काफी लाभकारी औषधी है।

दाल  के फायदे –
– अरहर के उबले हुए पत्तों को घाव पर बाँधने से घाव भरने में मदद मिलती है। खाने में छिलका रहित दाल का प्रयोग किया जाता है, जिससे कफ और खांसी में आराम मिलता है।
– दालों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, फास्फोरस और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है ।
– अरहर: यह पित्त, कफ और खून के विकार को समाप्त करती है। इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, विटामिन ए तथा बी तत्व पाए जाते हैं। इसका छिलका पशुओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
– उड़द: इसमें फास्फोरिस एसिड ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भी होता है। इसकी चूनी का इस्तेमाल कई रोगों से उपचार के लिए किया जाता है।
– उड़द की दाल वात, कब्जनाशक और बलवर्धक होती है।
– फोड़ा होने पर उड़द की दाल की पीठी रखने से फायदा होता है।
– हड्डी में दर्द होने पर इसे पीस कर लेप लगाने से फायदा होता है।
– मूंग: इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा रेशे जैसे तत्व पाए जाते हैं ।
–यह कफ और पित्त के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद है। खाने के बाद यह आसानी से पच जाती है।
– मूंग की दाल आंखों की रोशनी बढ़ाती है। बुखार होने पर मूंग की दाल खाने से फायदा होता है। चावल के साथ तैयार खिचड़ी मरीजों के लिए पौष्टिक और सुपाच्य होती है।


चने के फायदे –
– मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें। अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है।
– गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
– चना और चने की दाल दोनों के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है। चना खाने से अनेक रोगों का इलाज हो जाता है। रोजाना 5० ग्राम चना खाना शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। चना बहुत सस्ता होता है, लेकिन इसी सस्ती चीज में कई बड़ी बीमारियों से लड़ने की क्षमता है। चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है। साथ ही, दिमाग भी तेज हो जाता है।
– चना पाचन शक्ति को संतुलित करता है। यह दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है।
– रोज चने खाने से खून साफ होता है । इससे त्वचा निखरती है, चेहरा चमकने लगता है।
– चने के आटे का अलवा कुछ दिन तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने वाले रोगों में और अस्थमा में फायदेमंद होता है।
– चने के आटे की बिना नमक की रोटी ४० से ६० दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे— दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती है।
– 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। समान मात्रा में जौं व चने का आटा मिलाकर रोटी बनाकर खाने से भी लाभ होता है।
– रात को चने की दाल भिगों दें। सुबह पीसकर चीनी व पानी मिलाकर पिएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है।
– हिचकी की समस्या ज्यादा परेशान कर रही हों तो चने के पौधो के सूखे पत्तों का ध्रूमपान करें। इससे कफ के कारण आने वाली हिचकी और आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
– चने की 1०० ग्राम दाल को दो गिलास पानी में भिगो दें। कुछ देर बाद दाल पानी में से निकालकर 1०० ग्राम गुड़ मिलाकर तक खाने से पीलिया के रोगी को राहत मिलती है।
– 25—3० ग्राम देसी काले चनों में 1० ग्राम त्रिफला चूर्ण मिला लें। चने को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो दें। उसके बाद किसी कपड़े में बांध कर अंकुरित कर लें। सुबह नाश्ते के रूप में इन्हें खूब चबा चबाकर खाएं। इससे कब्ज दूर हो जाएगी और खून बढ़ेगा।
– बुखार में ज्यादा पसीना आए तो भूने चने पीसकर उसे अजवाइन के तेल में मिलाएं। इस मिश्रण में थोड़ा वच पाउडर मिलाकर मालिश करने से आराम मिलता है।
– गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है।
– बार—बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने हुए चनों का सेवन करना चाहिए।
– गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से जुड़ी समस्या में राहत मिलती है । रोजाना भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।
– 5० ग्राम चने पानी में उबालकर मसल लें। यह पानी गर्म—गर्म पिएं। लगभग एक महिने तक सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
– भीगे हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है ।
– चने को पानी में भिगो दें । उसके बाद चना निकालकर पानी को पी जाएं कमजोरी की समस्या दूर हो जाती है।
– दस ग्राम चने की भीगी दाल और १० ग्राम शक्कर दोनों मिलाकर ४० दिनोंं तक खाने से पुरूषों की कमजोरी दूर हो जाती है।
तरबूज के फायदे –
– उन्माद या पागलपन में— इसके गूदे का रस और गौदुग्ध 250 ग्राम लेकर मिश्री 2० ग्राम मिला, श्वेत—बोतल में भर, चन्द्र के प्रकाश में रातभर किसी खूंटी पर लटकाकर प्रात: निराहार पिलावें। इस प्रकार 21 दिन पिलाने से लाभ होता है।
– खांसी पर— फल का पानी 1० ग्राम सोंठ—चूर्ण 3 ग्राम और मिश्री 1० ग्राम एकत्र कर थोड़े गरम कर पिलावें।
– कच्चा तरबूज फल— ग्राही, गुरु, शीतल, पित्त, शुक्र और दृष्टि शक्तिनाशक है।
– पका फल— उष्ण, क्षारयुक्त, पित्तकारक, कफवात नाशक, वृक्कश्मरी, कामला, पांडु, पित्तज अतिसार, आंत्रशोथ आदि में उपयोगी है।
– रक्तोद्वेग, पित्ताधिक्य, अम्लपित्त, तृष्णाधिक्य, पित्तज ज्वर, आंत्रिकसन्निपात—ज्वर आदि में पके फल का रस (पानी) पिलाते हैं।
– मूत्र—दाह, सुजाक आदि पर— पके फल के ऊपर चाकू से चोकोर गहरा चीर एक छोटा टुकड़ा निकाल, उसके भीतर शक्कर या मिश्री भरकर फिर उसमें वह निकाला हुआ टुक़ड़ा पूर्ववत् जमाकर रात को बाहर ओस में ऊपर खूंटी आदि में टांग देवें। प्रात: उसके अन्दर से गूदे को मसलकर छानकर पीने से मूत्रकृच्छ् दाह दूर होकर मूत्र साफ होता है। शिश्न के ऊपर हुए चट्टे , फुसिया दूर होती है। यदि सुजाक हो तो फल के पानी २५० ग्राम में जीरा और मिश्री का चूर्ण मिलाकर पिलाते रहें। अथवा—उक्तविधि से फल के भीतर शक्कर के स्थान में सोरा ४ ग्राम और मिश्री ५० ग्राम चूर्ण कर भर दें, और उसके बाद छिद्र को उसके काटे हुए टुकड़े से ही बन्द कर, रात को ओस में रख , प्रात: छानकर नित्य १ बार ७ दिन तक पिलावें । इससे अश्मरी में भी लाभ होता है।
– शिर:शूल (विशेषत: पैत्तिक हो) आदि पर— इसके गूदे को निचोड़, छानकर (कांच के पात्र में) उसमें थोड़ी मिश्री मिला पिलावें। उष्णता से होने वाले सिर दर्द, लू लगने, हृदय की धड़कन, मूच्र्छा आदि में दिन में 2-3 बार पिलाते हैं।
– दाद, छाजन (उकौत या चम्बल) और व्रण पर— फलों के ऊपर के हरे, मोटे छिलकों को सुखाकर आग में राख कर लें। यदि दाद या चम्बल गीली हो तो उस पर इसे बुरकते रहें, सूखी हो तो प्रथम उस पर कडुवा तेल चुपड़ कर इस राख को लगाया करें।
– व्रणों को पकाने के लिये—उक्त छिलकों को पानी में उबाल कर बांध देने से वे शीघ्र पक जाते हैं। सुपारी के अधिक खाने से कभी—कभी नशा सा चढ़ता व चक्कर आते हैं, ऐसी दशा में इसके खाने से लाभ होता है। नोट— फल का सेवन कफज या शीतप्रकृति वालों को, जिन्हें बार—बार जुखाम होता हो, तथा श्वास, हिक्का के रोगी को एवं मधुमेही , कुष्ठी या रक्तविकृति वाले को हानिकारक होता है। विशेषत: सायंकाल या रात्रि में इसे नहीं खाना चाहिए। इसकी हानि निवारणार्थ गुलकन्द का सेवन कराते हैं। इसका प्रतिनिधि पेठा है। बीज— शीतवीर्य, स्नेहन, पौष्टिक,  मूत्रल, पित्तशमन, कृमिघ्न, मस्तिष्क शक्तिवर्धक है, और कृशता, रक्तोद्वेग, पित्ताधिक्य, वृक्कदौर्बल्य, आमाशयशोथ, पित्तज कास एवं पित्तज ज्वर, उर:क्षत यक्ष्मा, मूत्रकृच्छ आदि में उपयोगी है। उक्त विकारों पर प्राय: बीजों की गिरी को ठंडाई की भाँति पीस छानकर पिलाते हैं। अनिद्रा, मस्तिक दौर्बल्य एवं दाह प्रशमनार्थ भी इन्हें पीसकर पिलाते लेप करते या नस्य देते हैं। पुष्टि के लिए— बीजों की गिरी 5० ग्राम और 5 ग्राम एकत्र पीसकर, हलुवा जैसा बना या केवल ठंडाई की भांति पीस छान कर नित्य सेवन करते हैं।
– उन्माद या मस्तिष्क विकृति पर —इसकी गिरी 1० ग्राम रात को पानी में भिगोंएँ, प्रात: पीसकर 2० ग्राम मिश्री, छोटी इलायची 4 नग के दानों का चूर्ण एकत्रकर मिलाकर गाय के मक्खन के साथ खिलाये।
– मूत्रकृच्छ् , अश्मरी पर—बीज १० ग्राम को पीसकर ठंडाई की भांति आधा सेर जल में घोल छानकर मिश्री मिला, पिलाते रहने से लाभ होता है। साधारण पथरी भर मूत्र द्वारा निकल जाती है। कृमि, सिरदर्द और ओष्ठ— पर— बीजों को थोड़ा आग पर सेंककर, मींगी निकाल कर खाने से उदर—कृमि नष्ट होते हैं। इसकी गिरी को खरल में खूब घोटकर सिर—दर्द पर लेप करते हैं। शीतकाल में या वात—प्रकोप से ओष्ठ फटकर कष्ट देते हों, तो गिरी को पानी में पीसकर रात्रि के समय लेप करने से लाभ होता है। रक्तचाप में वृद्धि पर नित्य 1०—2० ग्राम इसके बीजों को भुनकर खाते रहने से ब्लडप्रेशर घट जाता है। अथवा उत्तम गुड़ की चाशनी बना, उसमें भुने हुए बीज मिला लड्डू, बनाकर खाने से स्वाद के साथ—साथ लाभ की प्राप्ति भी होती है। नोट— बीज गिरी की मात्रा 5 ग्राम से 1० ग्राम तक।
जायफल के फायदे –
– जायफल तथा सौंठ बराबर मात्रा में लेकर जल में घिसकर सेवन करने से शीघ्र ही दस्त बंद हो जाते हैं |
– जायफल को पानी में घिसकर पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है |
– जायफल को पानी में घिसकर मस्तक पर लगाने से सर का दर्द ठीक होता है |
– जायफल को पीसकर कान के पीछे लेप करने से कान की सूजन में आराम मिलता है |
– जायफल के तेल में भिगोई हुई रुई के फाहे को दांतों में रखकर दबाने से दांत के दर्द में लाभ होता है |
– 5०० मिलीग्राम जायफल चूर्ण में मधु मिलकर सेवन करने से खांसी, सांस फूलना, भूख न लगना, क्षय रोग एवं सर्दी से होने वाले जुकाम में लाभ होता है |
– एक से दो बूँद जायफल तेल को बताशे में डालकर खिलाने से पेट दर्द में लाभ होता है |
– जायफल तथा जावित्री के बारीक चूर्ण को जल में घोलकर लेप करने से झाइयाँ दूर होती हैं |
जामुन के फायदे-
– जामुन शरीर की पाचन शक्ति को मजबूत करता है और पेट से संबंधित विकार कम करता है। जामुन को भुने हुए चूर्ण और काला नमक के साथ सेवन करने से एसिडिटी समाप्त होती है। मधुमेह के रोगी जामुन की गुठलियों को सुखाकर, पीसकर उनका सेवन करें। इससे शुगर का स्तर ठीक रहता है।

अजवाइन के फायदे-
– आधा चम्मच अजवाइन में दो काली मिर्च और एक चुटकी खाने वाला सोडा मिलाकर भोजन के बाद पानी के साथ लेने से वायु विकार दूर होता है। अजवाइन का चूर्ण नमक मिले गुनगुने जल में घोल कर उससे गरारे करें। गले की सूजन में लाभ होगा।
– सूखी खांसी से परेशान हों, तो अजवाइन को चबाने के बाद गर्म पानी पिएं। तेजपत्ते के साथ भी इसे सोने से पहले ले सकती हैं।
– पेट में किसी कारण से दर्द हो, तो गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच अजवाइन दो या तीन चुटकी नमक के साथ ले सकती हैं।
– कोल्ड हो या माइग्रेन से सिर में दर्द हो, तो अजवायन को पोटली में बांधकर बार — बार सूंघें।
– अजवाइन को गुड़ में मिलाकर सेवन करने से पित्त से छुटकारा मिलता है।
– दांतो में दर्द हो तो अजवाइन को पानी में डालकर कुछ देर उबालें । इस पानी से दिन में दो या तीन बार गार्गल करें।
– अजवाइन का बफारा देने से बच्चे को सर्दी और जुकाम से छुटकारा मिलता है।
– देशी खांड में अजवाइन के तेल की 5-6 बूंदें डालकर खाने से वमन, अजीर्ण और थकान में लाभ होता है।
– कब्ज , कफ, पेट दर्द, वायुगोला, सुखी खांसी, हैजा, अस्थमा तथा पथरी आदि अधिकांश रोगोपचार में अपनी अहम भूमिका निभाता है।
देशी गाय के घी के फायदे-
– देशी गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
– हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है।
– कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है।
– गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है।
– यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है।
– चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए, ये बुझती नहीं।
– बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है।
– घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
– दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती।
– एकदम देशी गाय का शुद्ध घी खाने से मोटापा कम होता है।
– घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है।
– वनस्पति घी कभी न खाए। ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है।
– घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए।  इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है।
–  गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
– गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
– (20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है।
– गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
– नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है।
– देशी गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
– गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
– गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
– हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है।
– हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।
– गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
– गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है।
– गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
– अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
– हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
– गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
– जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हृदय मज़बूत होता है।
– देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
– घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।
– फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है। गाय के घी की झाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बाहर निकालने मे सहायक होता है।
– सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
– दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
– यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
– एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
– गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
– गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है।
– अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
देशी गाय के दूध  के फायदे-
– दूध में गुड़ या घी डालकर पिलाने से पेशाब करते समय होने वाली तकलीफ एवं मधुमेह में फायदा होता है।
– गरम सुहाता हुआ दूध २ चम्मच फीका ही लेकर धीरे—धीरे उसे पेट पर खाने से पहले मलें फिर एक घंटे तक विश्राम करने के बाद भोजन कर लें, तत्पश्चात् लघु शंका को जाना चाहिए। इससे आँतों में होने वाला शोथ दूर हो जाता है तथा आँते मजबूत हो जाती हैं।
– हमारी शारीरिक आवश्यकता के सभी प्रकार के तत्व हमारे दूध में मिल जाते हैं। गाय के दूध के पीने से थायराइड नहीं होता है क्योंकि गाय के दूध में थायराइडग्लाण्ड का अंश भी मिलता है। गौ दुग्ध निर्बल को सबल तथा रोगी को नीरोगी बनाने में सबसे उत्तम है।
– जो लोग शुद्ध शाकाहारी हैं, उन्हें जितने प्रोटीन की जरूरत है, वह उनको दूध और घी के सिवाय किसी अन्य वस्तु से नहीं मिल सकती।
– दूध में  में शक्कर मिलाकर या घी मिलाकर नाक में टपकाने से नक्सीर बंद हो जाती है।
– दूध की मलाई में चीनी और इलायची मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है।
– भोजन के पश्चात् मीठा दूध पीने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।
– गाय के दूध का खोआ खाने से, बादाम की पिसी हुई गिरी दूध में डालकर खोआ बनाकर खाने से आधासीस या आधे सिर में होने वाले दर्द में फायदा करता है।
– पाव भर दूध में 5० ग्राम खसखस के दाने एवं शक्कर डालकर उबालें। कुछ देर बाद छान लें। शाम समय यह दूध पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है और नींद आराम से आ जाती है।
– लोहे के बर्तन में गर्म किया हुआ दूध 7 दिन तक पथ्य के साथ पीने से पाण्डु रोग तथा संग्रहणी में लाभ करता है।
– दूध, घी, चासनी पीने से शरीर में बल की वृद्धि होती है। बल बढ़ाने वाला, हल्का, ठण्डा, अमृत के समान दीपन—पाचन होता है। दिन के प्रारम्भ में पीया हुआ दूध वीर्य बढ़ाने वाला पौष्टिक और अग्नि बढ़ाने वाला होता है। दिन के उत्तरार्ध (सांय) में दिया हुआ दूध बलकारक, कफ नाशक, पित्त—हारी, टी.वी. रोग को दूर करने वाला, वृद्धों में यौवन का संचार करने वाला होता है।
भैंस का दूध –
– अनिद्रा को दूर करने में श्रेष्ठतम होता है।
– यह अधिक चिकनाई युक्त होता है अत: मोटापा बढ़ाने में उपयोगी होता है।
– नेत्रों के लिए हानिकारक होता है ।
गुडहल (फूल) के फायदे –
– गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं।
– अगर गुडहल को गरम पानी के साथ या फिर उबाल कर फिर हर्बल टी के जैसे पिया जाए तो यह हाई ब्लड प्रेशर को कम करेगा और बढे कोलेस्ट्रॉल को घटाएगा क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता है।
– कई गुडहल के फूल हैं जो कि अलग-अलग रंगों में पाये जाते हैं जैसे, लाल, सफेद , गुलाबी, पीला और बैगनी आदि। यह  लाल फूल की बात हो रही है जिसका इस्तेमाल खाने- पीने या दवाओं लिए किया जाता है।
– इससे कॉलेस्ट्रॉल, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और गले के संक्रमण जैसे रोगों का इलाज किया जाता है। यह विटामिन सी, कैल्शियम, वसा, फाइबर, आयरन का बढिया स्रोत है। गुडहल के ताजे फूलों को पीसकर लगाने से बालों का रंग सुंदर हो जाता है। मुंह के छाले में गुडहल के पते चबाने से लाभ होता है। डायटिंग करने वाले या गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं।
– गुडहल की चाय भी बनती है। जी हां, गुडहल की चाय एक स्वास्थ्य हर्बल टी है। गुडहल से बनी चाय को प्रयोग सर्दी-जुखाम और बुखार आदि को ठीक करने के लिये प्रयोग की जाती है।
– गुड़हल के फूल का अर्क दिल के लिए फायदेमंद है ।
– विज्ञानियों के मुताबिक चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि गुड़हल का अर्क कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक है। इसलिए यह इनसानों पर भी कारगर होगा।
– गुडहल का फूल काफी पौष्टिक होता है क्योंकि इसमें विटामिन सी, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट होता है। यह पौष्टिक तत्व सांस संबन्धी तकलीफों को दूर करते हैं। यहां तक की गले के दर्द को और कफ को भी हर्बल टी सही कर देती है।
– गुडहल के फूलों का असर बालों को स्वस्थ्य बनाने के लिये भी होता है। इसे पानी में उबाला जाता है और फिर लगाया जाता है जिससे बालों का झड़ना रुक जाता है। यह एक आयुर्वेद उपचार है। इसका प्रयोग केश तेल बनाने मे भी किया जाता है।
– गुडहल के पत्ते तथा फूलों को सुखाकर पीस लें। इस पावडर की एक चम्मच मात्रा को एक चम्मच मिश्री के साथ पानी से लेते रहने से स्मरण शक्ति तथा स्नायुविक शक्ति बढाती है।
– गुडहल के फूलों को सुखाकर बनाया गया पावडर दूध के साथ एक एक चम्मच लेते रहने से रक्त की कमी दूर होती है | यदि चेहरे पर बहुत मुंहसे हो गए हैं तो लाल गुडहल की पत्तियों को पानी में उबाल कर पीस लें और उसमें शहद मिला कर त्वचा पर लगाए |
खरबूजा के फायदे –
इसमें मौजूद द्रव से शरीर को ठंडक तो मिलती ही है, हृदय में जलन जैसी शिकायत भी दूर हो जाती हैं। नियमित रूप से खरबूजे का सेवन करने वालों की किडनी स्वस्थ बनी रहती है. साथ ही, यह शरीर का वजन कम करने में भी मददगार है।
– खरबूजा एंटी ऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है इसलिए खरबूजा खाने वालों को दिल की बीमारियां और कैंसर होने की आशंका कम रहती है।
– सरल शब्दों में कह दिया जाता है कि खरबूजे में तो पानी ही होता है लेकिन 95 फीसद पानी समेटे हुए खरबूजे में वे विटामिन और मिनरल्स भी मौजूद होते हैं जिनके चलते खरबूजे से शरीर को कई तरह के फायदे होते हैं।
– वजह यह है कि खरबूजे में शुगर और कैलोरी की मात्रा ज्यादा नहीं पायी जाती. यह एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में विटामिन का अच्छा स्रोत है इसलिए खरबूजा खाने वालों को दिल की बीमारियां और कैंसर होने की आशंका कम रहती है।
– इसमें विटामिन ए मौजूद रहने के चलते यह हमारी त्वचा को सेहतमंद रखने में भी सहायक है।
– खरबूजा लंग कैंसर से हमारे शरीर की रक्षा करने में मदद कर सकता है. साथ ही, इसमें मौजूद विटामिन सी और बिटा- कैरोटेन मिलकर कैंसर रोकने में सहायक हो सकते हैं।
– इसे गर्मी के मौसम का परफेक्ट फ्रूट माना गया है। इसमें मौजूद पानी की ज्यादा मात्रा शरीर में पानी की कमी की भरपाई करता है इसी वजह से हमारा शरीर गर्मियों में पसीने के रूप में शरीर से निकले पानी की भरपाई तुरंत कर लेता है।
– इस मौसम में खरबूजा शरीर की गर्मी और उससे जुड़ी बीमारियों को रोक देता है अगर आप नियमित रूप से अपने शरीर में मौजूद कैलोरी को जानने के आदी हैं तो रोज खरबूजे खाइए। वजन कम करने की इच्छा वालों के लिए खरबूजा बहुत अनुकूल फल है क्योंकि इसमें काफी मात्रा में कैलोरी या शुगर मौजूद होती है इसलिए खरबूजे को काफी उम्दा फल समझना चाहिए। इसके गूदे में मौजूद नारंगी रंग के रेशे या फाइबर काफी मुलायम होते हैं। जिन्हें कब्जियत की शिकायत रहती है, वे खरबूजा खाएं, तो इससे फायदा होता है।
– खरबूजे में उच्च स्तर का बेटाकैरोटेन, फोलिक एसिड, पोटैशियम, विटामिन सी और ए मौजूद होते हैं इसलिए अगर आप सेहतमंद और जवां दिखना चाहते हैं तो अपने दैनिक आहार में खरबूजे को शामिल करना मत भूलिएगा।
– खरबूजे में मौजूद पोटैशियम शरीर से सोडियम को निकालने का काम करता है जिससे हाई ब्लडप्रेशर को लो करने में मदद मिलती है। पीरियड के दौरान महिलाओं को खरबूजा खाते रहना चाहिए क्योंकि यह हेवी फ्लो और क्लॉट्स को कम कर देता है। थकान में भी यह राहत देता है साथ ही, यह नींद ना आने की बीमारी को भी भगाता है।
केला के फायदे –
–  (बिना कार्बाइड से पका हुआ)  केला अनेक बीमारियों की औषधि भी है। दिल के मरीजों के लिए यह काफी फायदेमन्द है क्योंकि इसमें मैग्नीशियम काफी मात्रा में प्राप्त होता है। केले में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, लोहा तथा तांबा पर्याप्त मात्रा में रहते हैं। रक्त के निर्माण में मैग्नीशियम, लोहा तथा तांबा बहुत ही सक्रिय काम करते हैं। इनसे बना हुआ रक्त ऑक्सीजन को स्नायुओं तक पहुंचाने में बहुत सहायक होता है, इसलिए रक्त निर्माण एवं रक्तशोध के रूप में केले का बहुत महत्व है।
– अल्सर के रोगियों के लिए भी केला रामबाण औषधि है। ऐसे रोगियों को कच्चा केला लाभ पहुंचाता है। दही और चीनी के साथ पका हुआ केला खाने से पेट की जलन मिटती है। पेट सम्बन्धी सभी रोग इससे दूर हो जाते हैं। जीभ के छालों के लिए भी केला अत्यन्त लाभप्रद है। प्रतिदिन सुबह दही के साथ केला खाने से छाले मिटते हैं। सामान्य व्यक्ति भी प्रतिदिन केले का सेवन करे तो कई रोगों से बच सकता है।
– यदि अन्य कारणों से बार—बार पेशाब आने लगता है । इसे ठीक करने के लिए एक पके केले के साथ दो ग्राम विदारीकन्द का चूर्ण तथा दो ग्राम शतावरी का चूर्ण खाकर ऊपर से दूध पी लेना अत्यन्त लाभदायक होता है। कच्चे केले को काटकर धूप में सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर देशी शक्कर के साथ पांच ग्राम की मात्रा में लेकर ऊपर से दही की लस्सी पी लेने से ‘सुजाक’ की बीमारी समाप्त हो जाती है।
– केला खूब पका तथा तुरन्त पेड़ से तोड़ा हुआ कभी नहीं खाना चाहिए। पेट भर केला खाना हानि पहुंचाता है। केले का अधिक उपयोग कफ कारक होता है। केले के साथ दही नहीं खाना चाहिए। अधपका केला भी नहीं खाना चाहिए कृत्रिम रूप से पकाये गये केले के सेवन से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है तथा हृदय एवं नाड़ी की गति तेज हो जाती है।
 काली मिर्च के फायदे –
– आधा चम्मच घी, आधा चम्मच पिसी हुई कालीमिर्च और आधा चम्मच मिश्री इन तीनों को मिलाकर सुबह घोट लें। आंखों की कमजोरी दूर होती है और नेत्र ज्योति बढ़ती है।
– कालीमिर्च को उबालकर उसके पानी से कुल्ला करने से मसूडों का फूलना रुक जाता है । मसूड़े स्वस्थ तथा मजबूत होते हैं।
– मक्खियों के बचाव के लिए किसी बर्तन में एक चम्मच मलाई व आधा चम्मच काली मिर्च मिलाकर रख देने से मक्खियां भागने लगेंगी।
– रात को आधा चम्मच पिसी काली मिर्च एक कप दूध में डालकर उबालें। इस तरह तीन दिन तक बनाकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
– मिश्री और काली मिर्च चबाने व चूसने से बैठा गला ठीक हो जाता है।
– काली मिर्च को पानी में घिसकर बालतोड़ वाले स्थान पर लगाने से बालतोड़ ठीक हो जाता है।
– पाचन क्रिया को ठीक करने के लिए काली मिर्च व सेंधा नमक पीस कर भूनी अदरक के बारीक टुकड़ों के साथ मिलाकर खाएं।
– काली मिर्च व तुलसी की पत्तियों को बराबर पीसकर दांतों के नीचे दबाने से व मंजन की तरह मलने से दांतों में लाभ होता है।
– गैस की शिकायत होने पर एक प्याले पानी में आधा चम्मच नींबू का रस डालकर आधी चम्मच काली मिर्च का चूर्ण और काला नमक मिलाकर नियमित कुछ दिनों तक पियें।
करेला के फायदे –
– छोटे करेले में लौह तत्व अधिक होता है। करेले के कुछ उपयोग नीचे दिये जा रहे हैं। :— मधुमेह के रोगियों के लिए करेला विशेष हितकारी है। प्रतिदिन सुबह करेले का रस पीने से मधुमेह में लाभ मिलता है। 50 ग्रा. करेले का रस कुछ दिन लगातार पीने से रक्त साफ होता है और रक्तविकार से छुटकारा मिलता है|
– करेला, वात, पित्त विकार, पाण्डु, प्रमेह एवं मिर्गीनाशक होता है। बड़े करेले के सेवन से प्रमेह, पीलिया और अफारा में लाभ मिलता है। छोटा करेला बड़े करेले की तुलना में ज्यादा गुणकारी होता है।
– करेला ज्वर , पित्त, कफ, रूधिर विकार, पाण्डुरोग, प्रमेह और मिर्गी रोग का नाश भी करता है। करेली के गुण भी करेले के समान हैं। करेले का साग उत्तम पथ्य है। यह आमवात, वातरक्त, यकृत, प्लीहा, वृद्धि एवं जीर्ण त्वचा रोग में लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ‘‘ए’’ अधिक मात्रा में होता है। इसमें लोहा, फास्फोरस तथा कम मात्रा में विटामीन ‘सी’ भी पाया जाता है।
– इसके पत्ते का रस गर्म पानी के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
– करेले के पत्ते का रस मालिश करने से पैरों की जलन मिटती है।
– करेले का फूल पीसकर सेंधा नमक मिलाकर व्रण शोध पर बांधने से लाभ मिलता है।
– करेले का रस एक कप पीने से कब्ज मिटता है।
– करेले के पत्ते के 5० ग्राम रस में थोड़ा सा हींग मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर होता है और मूत्रघात दूर हो जाता है।
– करेले की सब्जी खाने तथा दो करेले का रस लगातार कुछ दिन पीने से वृक्क और मूत्राशय की पथरी टूट कर पेशाब के साथ निकल जाती है।
– पीलिया होने पर एक करेला पानी में पीसकर सुबह—शाम पीने से लाभ मिलता है।
– करेली के पत्तों या फल का रस शक्कर मिलाकर एक चम्मच लेने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
– करेली तीन पत्तों के साथ तीन काली मिर्च पीसकर पीने से मलेरिया का बुखार मिटता है। करेली के पत्तों का रस शरीर पर मलना भी लाभदायक होता है।
बादाम के फायदे –
– बादाम हृदय रोगियों की आरटरीज को स्वस्थ रखता है। यह एलडीएल को कम कर एचडीएल को बढ़ाता है। बादाम का फाइवर घुलनशील होने के कारण कोलेस्ट्रोल को कम करता है। बादाम में निहित कैल्शियम और मैग्नीशियम हृदय की धड़कन को नियन्त्रित कर हमारे कार्डियोवास्कुलर सिस्टम को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। बादाम रोगन त्वचा तथा बालों के लिए उत्तम टानिक होता है। इसके नियमित प्रयोग से बाल काले और चमकदार रहते हैं तथा त्वचा में निखार आता है।
– यह प्रोटीन, विटामिन ए, बी काम्पलेक्स, ई, फौलिक एसिड, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, कपूर,फाइवर, मैग्नीशियम, पोटाशियम अनेको न्यूट्रिएटस से भरपूर है। इसमे सेचुरेटिड वसा अधिक होती है जो हमारे शरीर के लिये लाभप्रद मानी जाती है। बादाम के नियमित सेवन से मस्तिष्क के स्नायु चुस्त बने रहते हैं और शरीर में यह एन्टी आक्सीडेन्ट का काम करता है। बादाम बच्चों, जवान और बड़ों के लिये उत्तम खाद्य पदार्थ है।
– बादाम में निहित प्रोटीन की तुलना सोयाबीन से की जाती है इसलिए यह बढ़ते बच्चों के शारीरिक विकास और मानसिक शक्ति के लिए बहुत उचित होता है। बच्चों को शहद में भीगे बादाम दिए जा सकते हैं जो बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में मदद करते हैं।
– जवां आदमी के लिए नियमित बादाम का सेवन उसकी मांसपेशियों को सुदृढ़ बनाता है और शारीरिक सहनशक्ति को भी बढ़ाता है।
– बादाम को छिलके के साथ खाने से कब्ज होती है और छिलका उतार कर खाने से कब्ज दूर होती है। पुरानी कब्ज होने पर गर्म दूध में थोड़ा बादाम रोगन मिलाकर पीना चाहिए।
– बादाम में उचित आयरन होने के कारण यह मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों में रक्त संचार को बढ़ाता है जिससे बुढ़ापे में कई रोगों से दूर रहते हैं। रात को सोते समय चार छिलका उतरे बादाम, काली मिर्च और शहद का सर्दियों में नियमित सेवन करने से सर्दी के कई रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
– बादाम के नियमित सेवन से मस्तिष्क में रक्त संचार सुचारु रूप से कार्य करता है। बादाम का केल्शियम दिमागी नसों को सहनशील बनाता है। इसमें निहित विटामिन बी—1, बी—12, और ई मस्तिष्क की कोशिकाओं और स्नायु तंत्र को शक्ति प्रदान करता है।
– बादाम उच्च कैलोरी खाद्य होने के कारण इसका प्रयोग सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। बहुत अधिक सेवन नुकसान भी पहुंचा सकता है।
– बादाम का छिलका उतार कर ही लेना चाहिए। सेवन करने से पहले इसे पानी में तीन चार घंटे भिगो कर रखना चाहिए।
– बादाम को अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए ताकि पचने में आसानी रहे।
– एक दिन में 1० बादाम से अधिक का सेवन नहीं करना चाहिए वैसे प्रतिदिन 4—5 बादाम की गिरी लेना ही हितकर होता है।

मेथी दाना के फायदे –
– मेथी के प्रयोग से गले की खरास भी दूर होती है एवं मेथी से तैयार काफी में केफीन के हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं जिस प्रकार हम फ्लश सिस्टम को लेट्रीन ब्रुश से रगड़कर साफ करते हैं ठीक उसी प्रकार मेथीदाना हमारे पेट में जाकर गलेगा, फूलेगा एवं चिकनाई के कारण हमारे पेट की आँतों को रगड़—रगड़कर जमे हुए मल को निकालेगा एवं मल गुठलियाँ भी नहीं बनने देगा। मेथी दाना हमारे पेट को साफ करके कब्ज को दूर करेगा।
– मेथी दाना एक पौष्टिक खाद्य, स्फूर्तिप्रदायक एवं रक्त शोधक टॉनिक है। मेथीदाना पाचन क्रिया में लाभदायक है। मेथी की चाय तेज बुखार में राहत देती है ताजी मेथी के बने पेस्ट को लगाने से मुहाँसे दूर होते हैं एवं फोड़े—फुन्सी पर पुल्टिश बाँधने से लाभ होता है। मेथी के ताजे पत्तों को पीसकर सिर पर लगाने से बाल मुलायम होते हैं। रात को सोने के पूर्व पत्तों का पेस्ट चेहरे पर लगाने से चेहरे का रंग साफ होता है।
– मेथी में फॉस्फोरस, लेसोटिन एवं एलबुमिन, आयरन व कैल्सियम पाया जाता है। मेथी में कैल्सियम के कारण इसके सेवन से महिलाओं के स्तन में दूध की मात्रा बढ़ती है।
मेथीदाना हमारे शरीर के अन्दर के किसी भी भाग की टूटी हुई हड्डी तक को जोड़ने की सामर्थ्य रखता है एवं हाथ—पैर के एक—एक जोड़ ठीक करता है। मेथीदाना का नित्य प्रतिदिन सेवन करने वाले व्यक्ति को सौ साल तक भी निम्न प्रकार के रोग नहीं होंगे, – लकवा, पोलियो, निम्न एवं उच्च रक्तचाप, शुगर, गठियावात, गैस की बीमारी, हड्डी के बुखार, बवासीर एवं जोड़ों का दर्द इत्यादि ।
– तेल मूंगफली, सरसों का जितना तेल लें उसका चौथाई उसमें मेथीदाना मिलाकर कढ़ाई में डालकर आग के ऊपर गर्म करें मेथीदाने काले हो जाने पर उसे नीचे उतार लें। मेथीदाना बाहर निकालकर तेल को छानकर रखें। इस तेल की नियमित मालिश करने से शरीर की बादी में बहुत लाभ होगा।
– रात को ठीक सोने से पहले एक चाय का चम्मच (मीडियम साइज) कच्चा साबुत मेथीदाना मुँह में रखकर पानी से निगल जाइये ठीक उसी प्रकार सुबह शौच आदि स्नान, मंजन से निपटकर पुन: एक चम्मच मेथी का प्रयोग करें इसके बाद अपने दैनिक कार्य करें। मेथीदाना अन्न नहीं होता।
अमरूद के फायदे –
– अमरूद को मिश्री में मिलाकर दो या तीन दिन में खाने से पतले दस्त ठीक होते हैं।
– यदि सरदर्द हो तो सूर्योदय से पूर्व कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर लेप करें।
– अमरूद के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पीने से अनेक रोग दूर होते हैं।
– अमरूद विटामिन ‘सी’ पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है। विटामिन ‘सी’ छिलके में और उसके ठीक नीचे होता है तथा भीतरी भाग में यह मात्रा घटती जाती है। फल के पकने के साथ—साथ यह मात्रा बढ़ती जाती हैं। अमरूद में प्रमुख सिट्रिक अम्ल है। छह से बारह प्रतिशत भाग में बीज होते हैं। इसमें नारंगी, पीला सुगंधित तेल प्राप्त होता है। अमरूद स्वादिष्ट फल होने के साथ—साथ अनेक गुणों से भरा होता है। इसके द्वारा कई रोगों का इलाज होता है।
– दांत दर्द में इसके पत्ते को चबाने और उबाल कर कुल्ला करने से आराम मिलता है।
– यह कब्ज को दूर करता है।
– अमरूद को बालू में भूनकर खाने से खांसी दूर होती है।
– पत्ते में कत्था मिलाकर लगाने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
– बवासीर का रोगी यदि रोज अमरूद खाए तो मस्सों को आराम मिलता है । खाली पेट अमरूद खायें। अधिक लाभ होगा । जिसे बहुत कब्ज रहता हो, उसे रोज अमरूद खाने चाहिए| अमरूद की कोमल पत्तियां लेकर धोकर पीसें। फिर पानी में मिलायें, छाने व पी लें । पेट दर्द में आराम मिलेगा ।
मिट्टी के फायदे –
– तेज ज्वर होने पर पेट एवं सिर पर मिट्टी बांधने से तेज बुखार एक दो घण्टे में कम हो जाता है।
– जोड़ों के दर्द पर मिट्टी लगाने से आराम मिलता है।
– काली मिट्टी घाव, दाह, रक्त विकार, प्रदर— (सफेद पानी) कफ एवं पित्त को मिटाती है। मिट्टी कई प्रकार के रोगों का उपचार करने में प्रयुक्त की जाती है। यह अतिसार, सिरदर्द , आंखों में दर्द, कब्ज, ज्वर, पेट दर्द, पेचिश, बवासीर, जोड़ों के दर्द, प्रदर, प्रमेह आदि रोगों में हितकारी है।
– शरीर में कहीं भी पेट, छाती, गला, कान, कनपटी, मूत्राशय, जिगर आदि में दर्द या सूजन होने पर मिट्टी को गीला करके रोेटी सी बनाकर रख देना चाहिए। इससे आशातीत लाभ होता है। इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी ठीक दर्द वाले स्थान पर ही रखी जाए। रोगी की दशा के अनुसार 2-4 घन्टे तक इस प्रकार की पुल्टिस बांधे रख सकते हैं। यदि लगातार रखने से मिट्टी गरम हो जाए तो उसे बदल देना चाहिए।
– फोड़े, फुन्सी, घाव, जलने आदि पर या शरीर का कोई हिस्सा जल गया हो तो सादी, चिकनी मिट्टी को गीली करके घाव पर रोटी सी बनाकर रख देनी चाहिए। यदि घाव गहरा हो तो घाव में मिट्टी लगाकर उस पर कपड़ा बांध देना चाहिए। इसे ‘पुल्टिस’ बांधना कहते हैं। इस से घाव तेजी से भरने लगता है। मिट्टी को बांधने से पहले बारीक छलनी से छान लें तो यथोचित होगा। छलनी से छानी हुई बारीक साफ मिट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर आटे की तरह गूंथकर मरहम सा गाढ़ा बना लेना चाहिए। तत्पश्चात् ही घाव आदि में भरकर पुल्टिस बांध देनी चाहिए।
– चर्म रोगों में भी उपरोक्तानुसार मिट्टी की पुल्टिस दिन में दो बार दो—दो घण्टे तक बांधने से लाभ होता है। जलने पर भी मिट्टी बांधने से जलन कम हो जाती है। फोड़े – फुन्सियों, खुजली, दाद आदि सभी में मिट्टी बांधने से लाभ होता है।
– दांत का दर्द हो तो बाहर दुखती जगह पर गाल या जबड़े पर मिट्टी की पुल्टिस बांधनी चाहिए। इस प्रकार मिट्टी एक प्रकार से मानव के लिए प्रकृति की अनुपम देन है। मिट्टी में शरीर में गर्मी उत्पन्न करने वाले रोगों को शान्त करने की अपूर्ण क्षमता है। शरीर को निरोगी एवं स्वस्थ रखने के लिए मिट्टी से स्नान करना बेहद बढ़िया है। मिट्टी को विषहरण रखने की शक्ति से परिपूर्ण माना गया है।
अखरोट के फायदे –
– अखरोट के साथ कुछ बादाम भूनकर खाने व इसके ऊपर दूध पीने से वृद्धों को बहुत फायदा मिलता है।
– अखरोट कफ बढ़ाता है। इसलिए अखरोट चार से ज्यादा न खाएं।
– बच्चे को बहुत ज्यादा कृमि हो गई हो तो उसे रोज एक अखरोट की गिरी खिलाएं। इससे कृमि बाहर आ जाते हैं।
– अखरोट की गिरी को बारीक पीस लें। रोज सुबह शाम ठंडे पानी के साथ लगातार 15 दिनों तक एक—एक चम्मच लें पथरी मूत्र मार्ग से बाहर आ जाती है।
– अखरोट नर्वस सिस्टम को फायदा व दिमाग को तरावट पहुँचाता है।
सेब के फायदे (बिना कीटनाशक वाला) –
यूनिवर्सिटी ऑफ मेसाचुएट्स लावेल में किये गये एक अध्ययन के अनुसार सेब या सेब का जूस बच्चों व बुजुर्गों के लिए बेहतर आहार साबित हो सकता है । अध्ययन में यह पता चला है कि स्नायु अंतरण से प्रभावित याददाश्त के लिए सेब का जूस काफी लाभदायक होता है। सेब के जूस का सेवन करने से मस्तिष्क में आवश्यक स्नायु अंतरण ‘एसेटाइलकोलाइन’ के उत्पादन में वृद्धि हो जाती है।
हींग के फायदे –
हींग पेट की अग्नि बढ़ाने वाली, पित्तवर्धक, मल बाँधने वाली, खाँसी, कफ, अफरा मिटाने वाली एवं हृदय से संबंधित छाती के दर्द, पेट दर्द को मिटाने वाली औषधि है। भोजन में रोज  (सरसो के दाने के बराबर) इसका प्रयोग करना चाहिए । बच्चों के पेट में कृमि हो जाए तो हींग पानी में घोलकर पिलाते हैं। बहुत छोटे बच्चों के पेट में दर्द होने पर एकदम थोड़ी—सी हींग,  पानी में घोलकर पेट पर हल्के से मालिश करने से लाभ होता है। (सरसो के दाने से ज्यादा हींग रोज खाने से नुकसान होता है)
इमली के फायदे –
– 1० ग्राम इमली को 1 लीटर पानी में उबाल लें जब आधा रह जाए तो उसमे 1० मिलीलीटर गुलाबजल मिलाकर, छानकर, कुल्ला करने से गले की सूजन ठीक होती है
– इमली के दस से पंद्रह ग्राम पत्तों को 4०० मिलीलीटर पानी में पकाकर, एक चौथाई भाग शेष रहने पर छानकर पीने से आंवयुक्त दस्त में लाभ होता है |
– इमली की पत्तियों को पीसकर गुनगुना कर लेप लगाने से मोच में लाभ होता है |
– इसके फल में शर्करा, टार्टरिक अम्ल, पेक्टिन, ऑक्जेलिक अम्ल तथा मौलिक अम्ल आदि तथा बीज में प्रोटीन, वसा, कार्बोहायड्रेट खनिज लवण प्राप्त होते हैं | यह कैल्शियम, लौह तत्व, विटामिन B, C तथा फॉस्फोरस का अच्छा स्रोत है |
– 1० ग्राम इमली को एक गिलास पानी में भिगोकर, मसल-छानकर, शक्कर मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है |
– इमली को पानी में डालकर, अच्छी तरह मसल- छानकर कुल्ला करने से मुँह के छालों में लाभ होता है|
– इमली के बीज को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद में लाभ होता है |
– गर्मियों में ताजगी दायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शक़्कर , नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं, अतः ताजे पुदीने की पत्तियाँ भी इस पेय में डाली जा सकती हैं |
(नोट – किसी भी नुस्खे को आजमाने से पहले वैदकीय परामर्श लेना उचित होता है)

पाकिस्तान के लिए 10 कड़े संदेश : सुषमा स्वराज

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हुर्रियत से मिलना या कश्‍मीर पर बात करनी है, तो न आएं पाक NSA : सुषमा

Reported by NDTVKhabar.com team , Last Updated: शनिवार अगस्त 22, 2015
नई दिल्‍ली: भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली NSA वार्ता पर छाए संशय के बादल आज और गहरा गए। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने पाकिस्तान को आज रात तक का वक्त देते हुए उससे हुर्रियत से मुलाकात या कश्‍मीर पर बात ना करने का आश्वासन मांगा। इसके साथ ही उन्होंने साफ किया कि पाक अगर इन दो मुद्दों पर आश्वासन नहीं देता, तो राजधानी दिल्ली में रविवार को होने अहम वार्ता नहीं होगी। वहीं पाकिस्तान सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि भारत की बताई शर्तों के बाद बातचीत गई सी हो गई है।

सुषमा स्वराज ने कहा, 'अगर शिमला समझौते और उफा में बनी सहमति की भावना का सम्‍मान करते हुए पाकिस्‍तान आतंकवाद पर बातचीत चाहता है और हुर्रियत से बातचीत न करे, तो भारत वार्ता को राजी है। अगर पाक ये दोनों शर्तें मानता है तो वह आज रात तक जवाब दे। इसके बाद कल से पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत बातचीत शुरू हो जाएगी।'भारत के इस सवाल के बाद अब पाकिस्‍तान की तरफ से जवाब का इंतजार है।

भारतीय विदेश मंत्री ने स्‍पष्‍ट कहा, 'पाकिस्‍तान के NSA सरताज अजीज शिमला समझाैते की भावना का सम्‍मान करते हुए हुर्रियत या किसी अन्‍य को पक्षकार न बनाए और उफा सहमति का सम्‍मान करते हुए बातचीत का दायरा आतंकवाद से आगे न बढ़ाए। अगर वे इसके लिए राजी हैं, तो बातचीत के लिए जरूर आएं, लेकिन अगर हुर्रियत से मिलना चाहते हैं और कश्‍मीर पर बातचीत करना चाहते हैं तो पाकिस्‍तान के NSA सरताज अजीज न आएं। हालांकि अगर वे इन दोनों मुद्दों राजी हैं तो आज रात तक जवाब दे दें, बातचीत कल से ही शुरू हो जाएगी और इसका नतीजा जरूर निकलेगा। विदेश मंत्री ने सरताज अजीज के उस आरोप को भी नकारा, जिसमें उन्‍होंने मीडिया के जरिए कूटनीति करने की बात कही थी।

पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज द्वारा रुख स्‍पष्‍ट करने और बातचीत के लिए गेंद भारत के पाले में डालने के बाद भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने भी प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर भारत का पक्ष रखा। उन्‍होंने साफ कहा, भारत-पाक के बीच होने वाली हर बातचीत को वार्ता नहीं कहा जा सकता। कंपोजिट डायलॉग ही वार्ता है। वार्ता के 8 मुद्दों में एक सियाचीन और कश्‍मीर भी है और हर मुद्दे पर बातचीत के लिए अलग-अलग लोग तय हैं।

विदेश मंत्री ने कहा, 'उफा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच कोई कंपोजिट डायलॉग की बात तय नहीं हुई। उनके बीच आतंकवाद, फायरिंग और सीमा के उल्‍लंघन के मुद्दे पर बातचीत को लेकर सहमति बनी। यह बातें मौखिक नहीं, बल्कि लिखित हुई थीं।'

उन्‍होंने आरोप लगाया कि 'NSA स्‍तरीय बातचीत से पाकिस्‍तान बचना चाह रहा है। हमने 23 जुलाई को बातचीत होने का पत्र भेज दिया था, जिसका उनकी तरफ से जवाब 14 अगस्‍त‍ को आया और एक एजेंडा भी भेजा। पाकिस्‍तान ने भारत को 22 दिन का इंतजार करवाया।'

उन्‍होंने कहा, 'पाकिस्तान ने आतंक को गहराया है। उफा के बाद से अब तक 91 बार पाकस्तान की तरफ से संघर्षविराम का उल्‍लंघन हुआ। इसके बाद गुरदासपुर हमला और उधमपुर की घटना हुई और एक पाकिस्‍तानी आतंकी भी जिंदा पकड़ा गया। इसके बाद हम पर राजनीतिक दलों की तरफ से NSA स्‍तरीय वार्ता को रद्द करने का दबाव भी आया, लेकिन हमने इसे रद्द नहीं किया, क्‍योंकि हम आतंकवाद के मुद्दे पर बातचीत करना चाहते थे। हमने पहले ही पाकिस्‍तान को साफ कर दिया था कि इस वार्ता में आतंकवाद पर बातचीत होती।'

उन्‍होंने सरताज अजीज द्वारा भारत पर बातचीत से भागने का आरोप लगाए जाने पर जवाब देते हुए कहा कि 'भारत किसी भी मुद्दे पर बातचीत से भाग नहीं रहा, बल्कि वो वह माहौल बनाना चाहता है, जिसमें बातचीत हो सके। शिमला समझौते की भावना को बनाए रखते हुए इस बातचीत में हुर्रियत या किसी अन्‍य को तीसरा पक्षकार मत बनाइये।'

उन्‍होंने साफ किया कि जब तक माहौल आतंक और हिंसा से मुक्‍त नहीं होगा, तब तक कश्‍मीर पर बातचीत नहीं होगी। भारत ने कोई पूर्व शर्त नहीं रखी है। उन्‍होंने पाकिस्‍तान से आह्वान करते हुए कहा, उन ताकतों के दबाव से मुक्‍त हो जाइए, जो इसे रद्द करना चाहते हैं। उन्‍होंने सरताज अजीज से कहा, अगर आप आना चाहते हैं तो केवल आतंकवाद पर बातचीत करने आइए।

पाकिस्‍तान द्वारा भारत को डॉजियर दिए जाने के सरताज अजीज के कथन पर सुषमा ने कहा कि वो हमें डॉजियर क्‍या देंगे, हम तो उधमपुर में जिंदा पकड़ा गया आतंकी नवेद दे देंगे।

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इन 10 मुद्दों पर सुषमा ने PAK को घेरा

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संवाददाता सम्मेलन कर NSA बातचीत को कश्मीर के मुद्दे पर खींचने की कोशिश कर रहे पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया. हम यहां आपको बता रहे हैं कि सुषमा स्वराज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान के लिए 10 बड़े संदेश क्या रहे जिसने पाकिस्तान को आईना दिखा दिया.

1. हर बातचीत वार्ता नहीं, अलग-अलग मुद्दों पर बातचीत के लिए अलग-अलग लोग तय.

2. जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर विदेश सचिव ही करेंगे बात.

3. उफा को लेकर सरताज अजीज के दावे गलत, उफा में समग्र वार्ता बहाली पर कोई फैसला नहीं हुआ.

4. आगरा में वार्ता पर पाकिस्तान ने ही अड़ंगा लगाया.

5. मुंबई में हुए हमलों के बाद वार्ता पटरी से उतरी, उसमें पाकिस्तानी आतंकियों की सीधी संलिप्तता.

6. NSA वार्ता के न्योते पर 22 दिन में पाकिस्तान से मिला जवाब, ये दिखाता है पाकिस्तान कितना गंभीर है.

7. सीमा पर हरकतें जारी, उफा में प्रधानमंत्रियों की मुलाकात से लेकर अबतक 91 बार हुआ सीजफायर उल्लंघन.

8. सीजफायर पर DGMO वार्ता के प्रस्ताव पर अभी तक पाकिस्तान की ओर से जवाब नहीं.

9. शिमला समझौते के अनुसार चले पाक, बातचीत में हुर्रियत की कोई भूमिका नहीं, भारत-पाक बातचीत में कोई भी तीसरा पक्ष स्वीकार्य नहीं.

10. आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते, केवल आतंकवाद के मुद्दे पर ही होनी है NSA वार्ता.

जिंदा सबूत से भागा पाकिस्तान

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दोटूक बोलीं सुषमा : बातचीत नहीं, 
Aug 23, 2015  विशेष प्रतिनिधि, नई दिल्ली

भारत-पाकिस्तान के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) स्तर की बातचीत होने की उम्मीद शनिवार को उस समय लगभग टूट गई, जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दोटूक कहा कि पाकिस्तान अगर कश्मीर पर चर्चा पर दबाव बनाएगा और कश्मीरी अलगाववादियों से संपर्क करेगा तो बातचीत नहीं हो पाएगी। इससे पहले, पाकिस्तानी एनएसए सरताज अजीज ने इस्लामाबाद में कहा कि कश्मीर पर चर्चा के बिना भारत के साथ कोई गंभीर वार्ता संभव नहीं है।
दोनों तरफ से साफ संकेत दिए गए कि मौजूदा हालात में वार्ता संभव नहीं है, लेकिन खबर लिखे जाने तक किसी ने वार्ता रद्द करने का ऐलान नहीं किया। अगर सरताज आए तो आज दोपहर करीब 3 बजे दिल्ली उनका प्लेन दिल्ली में उतरेगा। शाम को पाकिस्तानी उच्चायोग में रिसेप्शन होगा। कल सुबह 10 बजे उनकी भारतीय एनएसए अजीत डोभाल से वार्ता प्रस्तावित है।
शनिवार दोपहर को सरताज अजीज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह दिल्ली जाने को तैयार हैं, लेकिन भारत कोई शर्त न लगाए। भारत उनके रिसेप्शन की गेस्ट लिस्ट को सीमित करना चाह रहा है। हुर्रियत जैसी छोटी बात का बहाना लगाकर बातचीत रद्द करना चाहता है। इसके करीब तीन घंटे बाद सुषमा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पाकिस्तान को दो मुद्दों पर स्पष्ट आश्वासन देने की जरूरत है। पहला, शिमला समझौते के अनुरूप आपसी विवादों के हल के लिए सीधे बातचीत करे और किसी तीसरे पक्ष को बीच में न लाए। दूसरा, रूस के उफा में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बनी सहमति के अनुसार एनएसए वार्ता में सिर्फ आतंकवाद पर चर्चा करे। सुषमा से पूछा गया कि अगर पाकिस्तान ने यह बात नहीं मानी तो क्या होगा? उनका साफ कहना था कि तब बातचीत नहीं होगी। विदेश मंत्री ने कहा कि हम शनिवार रात 12 बजे तक जवाब का इंतजार करेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह बातचीत के लिए कोई शर्त नहीं लगा रही हैं। एनएसए स्तर की बातचीत समग्र वार्ता का हिस्सा नहीं है, इसलिए इसमें कश्मीर जैसे मुद्दों पर बात नहीं होगी। किसी तीसरे देश में भारत-पाक बातचीत करने की बात को उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया। बाद में, पाकिस्तान के सूचना मंत्री ने कहा कि अजीज भारत जाने को तैयार हैं।
जिंदा डॉजियर : पाकिस्तान में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ की कथित भूमिका पर डॉजियर (दस्तावेज) सौंपने के अजीज के बयान पर सुषमा ने कहा कि वह कागजी डॉजियर देंगे तो हम उन्हें जिंदा डॉजियर देंगे। उनका इशारा उधमपुर हमले मामले में जिंदा पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी नावेद की तरफ था।
घरेलू दबाव : सुषमा ने कहा कि पाकिस्तानी नेतृत्व घरेलू दबाव में एनएसए वार्ता रद्द करने की कोशिश कर रहा है। उफा बयान (से कश्मीर गायब होने) को लेकर नवाज शरीफ की पाकिस्तान में जबर्दस्त आलोचना हुई थी। तभी से ही कोशिश की जा रही है कि एनएसए वार्ता न हो पाए।
भारत नहीं, पाकिस्तान बातचीत से भाग रहा है। अगर वह हुर्रियत नेताओं को अलग रखे और आतंकवाद के अलावा अन्य मुद्दों पर जोर न दे तो अजीज का स्वागत है।
- सुषमा स्वराज, विदेश मंत्री
सरताज अजीज भारत जाएंगे, बशर्ते भारत उन्हें नहीं रोके। अजीज का बैग, फाइलें और टिकट सब तैयार है।
- परवेज राशिद, पाक सूचना मंत्री
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जिंदा सबूत से भागा पाकिस्तान, रद्द की एनएसए वार्ता
Written by जनसत्ता ब्यूरो and भाषा | इस्लामाबाद/नई दिल्ली|August 23, 2015 

तमाम अटकलों को विराम देते हुए पाकिस्तान ने शनिवार रात भारत व पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की वार्ता को रद्द कर दिया। इससे पहले भारत ने साफ कर दिया था कि उसे वार्ता में कश्मीर पर चर्चा और अलगाववादियों से मुलाकात स्वीकार्य नहीं है। पाकिस्तान विदेश विभाग ने एक बयान में कहा कि एनएसए स्तरीय वार्ता भारत की ओर से तय की गई पूर्व शर्तों के आधार पर नहीं हो सकती।
पाकिस्तान की इस घोषणा से इस सस्पेंस का पटाक्षेप हो गया है कि पहले कौन वार्ता रद्द करने की पहल करता है। दोनों पक्षों के बीच पिछले दो दिन से चली आ रही तनातनी के चलते वार्ता का भविष्य पहले ही स्पष्ट नजर आ रहा था लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को यह वस्तुत: अल्टीमेटम दिया था कि वह आधी रात तक स्पष्ट प्रतिबद्धता जाहिर करे कि वह अलगाववादियों से मुलाकात नहीं करेगा। वार्ता रद्द करने के एलान के साथ ही पाकिस्तान ने रविवार को नई दिल्ली स्थित उच्चायोग में पाकिस्तानी उच्चायुक्त की तरफ से दिए जाने वाले उस भोज को भी रद्द कर दिया है जिसमें हुर्रियत नेताओं को बुलाया गया था।
भारत ने पाकिस्तान के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और जोर देकर कहा कि उसने कोई ‘पूर्व शर्त’ नहीं रखी थी जैसा कि पड़ोसी देश दावा कर रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि भारत ने केवल यह दोहराया था कि इस्लामाबाद, शिमला और उफा समझौतों की भावना का सम्मान करे जिसके लिए वह अपनी प्रतिबद्धता पहले ही जता चुका था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत ने कोई पूर्व शर्त नहीं लगाई थी।
पाकिस्तानी विदेश विभाग ने देर रात एक बयान में कहा कि पाकिस्तान ने सुषमा स्वराज की प्रेस कांफ्रेंस पर ‘सावधानीपूर्वक गौर’ किया है। इसमें कहा गया है कि हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अगर सुषमा की ओर से रखी गई शर्तों के आधार पर वार्ता होती है तो इससे कोई मकसद हल नहीं होगा। बयान में सुषमा के बयान का जिक्र करते हुए कहा गया कि वे इस बात को स्वीकार करती हैं कि दोनों देशों के बीच स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए सभी लंबित मुद्दों पर बातचीत की जरूरत है, उसके बाद वे एकतरफा रूप से एजंडे को केवल दो चीजों तक सीमित कर देती हैं : आतंकवाद मुक्त माहौल का निर्माण और नियंत्रण रेखा पर समरसता।
इसमें कहा गया है, ‘ इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कई आतंकवादी घटनाएं जिनका आरोप शुरू में भारत ने पाकिस्तान पर मढ़ा, वे अंतत: फर्जी निकलीं। इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत एक दो घटनाओं को गढ़कर और नियंत्रण रेखा पर तनाव बनाए रखकर बहाल हुई वार्ता को अनिश्चितकाल तक लटकाए रख सकता है। यह याद रखना भी उतना ही अहम है कि आतंकवाद हमेशा से आठ सूत्री समग्र वार्ता का हिस्सा रहा है और गृह सचिवों के बीच हमेशा अन्य मुद्दों के साथ इस पर विचार विमर्श किया गया है। अब भारत के लिए यह सही नहीं है कि वह एकतरफा रूप से यह अनुमान लगा ले कि अब से आगे अन्य मुद्दों पर आतंकवाद पर विचार विमर्श और उसे समाप्त करने के बाद ही चर्चा की जाएगी।
इससे पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि पाकिस्तान को दो मुद्दों पर स्पष्ट आश्वासन देने की जरूरत है। ये दो मुद्दे हैं, कश्मीर पर चर्चा का दबाव नहीं बनाना और कश्मीरी अलगाववादियों से बात नहीं करना। यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान ने अगर अलगाववादियों से नहीं मिलने और कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाने की बात नहीं मानी तब क्या होगा, सुषमा ने दो टूक कहा कि बातचीत नहीं होगी।
सुषमा ने बार-बार कहा कि वे अजीज और उनके भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल के बीच सोमवार को होने वाली बातचीत के लिए कोई पूर्व शर्त नहीं रख रही हैं। वे केवल शिमला समझौते की भावना की याद दिला रही है जिसमें दोनों देशों ने मुद्दों को द्विपक्षीय आधार पर निपटाने की प्रतिबद्धता जताई है। साथ ही उन्होंने हाल ही में उफा में हुई सहमति की भी याद दिलाई जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ इस बात पर सहमत हुए थे कि दोनों देश के एनएसए केवल आतंकवाद पर चर्चा के लिए मिलेंगे।
सुषमा ने इस्लामाबाद में अजीज की प्रेस कांफ्रेंस के लगभग तीन घंटे बाद यहां मीडिया से बात की। अजीज ने अपनी प्रेस वार्ता में कहा था कि वे बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत के लिए दिल्ली जाने को तैयार हैं। अजीज ने भारत सरकार के उस रुख की कड़ी आलोचना की कि जिसमें कहा जा रहा है कि उन्हें नई दिल्ली में कश्मीरी अलगाववादियों से मुलाकात नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा कहना पाकिस्तान उच्चायोग की ओर से रविवार को आयोजित किए जाने वाले समारोह के मेहमानों की सूची को नियंत्रित किए जाने जैसा है।
सुषमा ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि भारत के साथ बातचीत का विरोध करने वाली पाकिस्तान की ज्ञात शक्तियों के दबाव में उसने एनएसए वार्ता को दरकिनार करने का रास्ता ढूंढना शुरू किया क्योंकि उफा से लौटने के बाद नवाज शरीफ की अपने ही देश में तीखी आलोचना शुरू हो गई थी। विदेश मंत्री ने गेंद पाकिस्तान के पाले में डालते हुए कहा कि भारत नहीं बल्कि ये पाकिस्तान है जो बातचीत से भाग रहा है। अगर हुर्रियत नेताओं को अलग रखा जाए और अजीज अगर आतंकवाद के अलावा अन्य मुद्दों पर जोर नहीं दें तो उनका स्वागत है।
बातचीत का विरोध करने वाली पाकिस्तान की ज्ञात शक्तियों के संदर्भ में सुषमा ने कहा कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व दबाव को झेल लेता है लेकिन पाकिस्तान का नेतृत्व ऐसा नहीं कर पाता है। उन्होंने कहा कि उफा के बाद 91 बार संघर्षविराम का उल्लंघन करने पर पाकिस्तान के साथ एनएसए वार्ता को रद्द करने का विपक्ष द्वारा भारतीय नेतृत्व पर दबाव पड़ा। इसके बाद गुरदासपुर और उधमपुर में हुए आतंकी हमलों के बाद भी ऐसा दबाव बना लेकिन सरकार उस दबाव को भी झेल गई क्योंकि वह चाहती है कि बातचीत का सिलसिला चले और मुद्दों का समाधान हो।
सुषमा ने भारत पाकिस्तान की वार्ताओं को किसी तीसरे देश में आयोजित किए जाने की बात को भी सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि उफा में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के मध्य भारत और पाक के बीच तीन तरह की बैठकें आयोजित करने पर सहमति बनी जिसमें आतंकवाद पर एनएसए स्तरीय, सीमा पर शांति के बारे में बीएसएफ और पाकिस्तानी रेंजर्स के महानिदेशकों के स्तर की बैठक और संघर्षविराम के उल्लंघन के विषय पर डीजीएमओ स्तर की वार्ता शामिल है।
उन्होंने कहा कि यहां तक कि एनएसए स्तर की बातचीत की तिथियों की पुष्टि के बारे में भारत को जवाब देने में देरी की गई। हमने बातचीत के लिए प्रस्तावित तारीख के संबंध में उन्हें एक पत्र 23 जुलाई को लिखा लेकिन इसका जवाब 22 दिन बाद 14 अगस्त को आया। पाकिस्तान ने अब तक डीजीएमओ स्तर की बैठक की तारीख के बारे में नहीं बताया। बीएसएफ और पाकिस्तानी रेंजर्स के महानिदेशकों के बीच बैठक के बारे में यह सहमति बनी थी कि इसे जल्द से जल्द आयोजित किया जाए। पाकिस्तान ने छह सितंबर की तारीख का सुझाव शायद इस सोच के साथ दिया कि एनएसए स्तर की बातचीत नहीं होगी।
यह पूछे जाने पर कि अगर बातचीत रद्द होती है तब क्या भारत को निराशा होगी, सुषमा ने कहा कि जाहिर है, अगर आप दोस्ती की दिशा में कदम उठाते हैं और यह नहीं होती है तब निराशा सामान्य बात है। अगर बातचीत नहीं होती है, तो इससे संबंध समाप्त नहीं होंगे। भारत-पाक संबंध ऐसी सड़क की तरह है जो गड्ढों से भरी हुई है। इसमें झटके लगेंगे लेकिन आप कुछ समय में वापस आ जाएंगे। उन्होंने हालांकि स्पष्ट कर दिया कि एनएसए स्तर की बातचीत कोई समग्र वार्ता का हिस्सा नहीं है बल्कि यह उसका माहौल बनाने के लिए उफा में बनी सहमति का हिस्सा है।
यह याद दिलाए जाने पर कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हुर्रियत नेताओं और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच भारत में मुलाकात की अनुमति दी थी, विदेश मंत्री ने कहा कि बीती ताहि बिसार दे।
बहाने न बनाए पाक: सुषमा
* बातचीत की कोई पूर्व शर्त नहीं रख रहे, बस पाकिस्तान को शिमला समझौते में और उफा में उनकी ओर से जताई गई प्रतिबद्धता की याद दिला रहे हैं।
* राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात कोई समग्र वार्ता नहीं है जिसमें कश्मीर और दुनियाभर के मुद्दों पर चर्चा हो। यह सिर्फ आतंकवाद पर चर्चा के लिए थी।
* भारत का राजनीतिक नेतृत्व दबाव को झेल लेता है लेकिन पाकिस्तान का नेतृत्व ऐसा नहीं कर पाता है। हम जानते हैं कि वे किसके दबाव में पीछे हट रहे हैं।
* अजीज अगर डॉजियर के डर की बात कर रहे हैं तो हमारा कहना है कि वे आएं, ङम उनके सामने आतंक का जिंदा सबूत (नवेद) पेश करने को तैयार हैं।

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रक्षा बंधन पर बीमा योजना का उपहार दें : नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील की है कि वे इस बार रक्षा बंधन के पहले ग़रीब महिलाओं को प्रधानमंत्री जन सुरक्षा बीमा योजना का उपहार दें. उन्होंने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि ऐसा करने से करोड़ों महिलाओं को बीमा का फ़ायदा मिलेगा और उनका जीवन सुरक्षित हो जाएगा.

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल रक्षा बंधन के मौके को महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से खास बनाने का खाका तैयार कर लिया है। उन्होंने कहा है कि इस मौके पर लोग समाज की महिलाओं को सुरक्षा बीमा योजना भेंट करें। उनकी इस अपील के बाद अब आम लोगों के साथ ही भाजपा विधायकों व सांसदों से लेकर मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की ओर से भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं।
सुरक्षा बीमा
योग दिवस की सफलता के बाद अब प्रधानमंत्री अगले दो महीने महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा के लिए विशेष अभियान चलाना चाहते हैं। पिछले महीने उन्होंने 'प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना'शुरू की है। सिर्फ 12 रुपये के सालाना प्रीमियम वाली इस बीमा योजना के तहत दुर्घटना में होने वाली मौत या अपंगता पर दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता का प्रावधान है। अब प्रधानमंत्री ने इसे खास तौर पर महिलाओं तक पहुंचाने का विशेष अभियान छेड़ा है।
रविवार को रेडियो पर प्रसारित अपने 'मन की बात'कार्यक्रम में उन्होंंने कहा कि अगस्त महीने में रक्षाबंधन त्योहार है। क्यों न हम सभी देशवासी रक्षाबंधन के पहले एक जबरदस्त जन आंदोलन खड़ा करें और हमारे देश की माताओं -बहनों को जन सुरक्षा योजना का लाभ दें।
उन्होंने अपील की है कि इस दिन लोग अपने परिवार की महिलाओं से ले कर घरेलू आया तक को यह बीमा पालिसी भेट करें। सुरक्षा बीमा योजना के अलावा उन्होंने 'प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना'का विकल्प भी बताया है। जीवन ज्योति का प्रीमियम 330 रुपये सालाना है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री की अपील के बाद अब भाजपा ने अपने विधायकों, सांसदों, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को ही नहीं पार्टी के अधिकारियों को भी इस पर अमल करने को कहा है। रक्षाबंधन के दिन ये लोग समाज की महिलाओं को आमंत्रित कर उन्हें यह भेट देंगे।

रक्षा बंधन पर दें जीवन सुरक्षा उपहार चेक, PM मोदी की योजना
August 10, 2015 02:04 PM
रक्षा बंधन पर दें जीवन सुरक्षा उपहार चेक, PM मोदी की योजना
रक्षा बंधन त्योहार को भुनाने के इरादे से सरकार की उपहार चैक तथा विशेष जमा जैसे अनूठे कार्यक्रमों के जरिये अपनी प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को गति देने के लिये सुरक्षा बंधन अभियान शुरू करने की योजना बनाई है.वित्त मंत्रालय की इस योजना के मुताबिक आगामी रक्षा बंधन त्योहार के मौके पर भागीदार बैंकों तथा बीमा कंपनियों द्वारा अगस्त-सितंबर के दौरान विशेष नामांकन अभियान शुरू किया जाएगा.रक्षा बंधन के दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं. रक्षा बंधन 29 अगस्त को है. वित्त मंत्रालय के अनुसार इसी प्रकार, सुरक्षा बंधन अभियान के तहत लोगों को अपने प्रियजन को सामाजिक सुरक्षा योजना उपहार देने को प्रोत्साहित किया जाएगा.मंत्रालय की इस नई मुहिम का मकसद देश में खासकर गरीब और वंचित तबकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली तैयार करने के सरकार के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है.
351 रुपये में मिलेगा उपहार चेक
इस मुहिम के तहत जीवन सुरक्षा उपहार चैक जारी किया जाएगा जिसे संबंधित व्यक्ति बैंक शाखाओं से 351 रुपये देकर खरीद सकता है. यह प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) तथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) दोनों के लिये एक साल का प्रीमियम है. उपहार चेक प्राप्त करने वाला 342 रुपये (12 रुपये जमा 330 रुपये) प्राप्त करने के लिये उसे अपने बैंक खाते में जमा करेगा ताकि पीएमजेजेबीवाई तथा पीएमएसबीवाई के एक साल का प्रीमियम कवर हो सके. बचे हुए 9 रुपये जारीकर्ता बैंक सेवा शुल्क के रूप में अपने पास रखेगा.
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नयी दिल्ली (ब्यूरो)। भाई-बहनों का सबसे बड़ा त्योहार राखी पर सरकार एक स्पेशल गिफ्ट लांच करने की योजना में है। जी हां रक्षा बंधन पर सरकार ने उपहार चैक तथा विशेष जमा जैसे अनूठे कार्यक्रमों के जरिये अपनी प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को गति देने के लिये सुरक्षा बंधन अभियान शुरू करने की योजना बनाई है। इस अभियान के जरिए गिफ्ट चेक और स्‍पेशल डिपॉजिट के जरिए अपने परिजनों को केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई सोशल सिक्‍युरिटी के तहत बीमा और पेंशन प्‍लान गिफ्ट करने का प्रावधान किया जा रहा है। वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि इस योजना के मुताबिक आगामी रक्षा बंधन त्योहार के मौके पर भागीदार बैंकों तथा बीमा कंपनियों द्वारा अगस्त-सितंबर के दौरान विशेष नामांकन अभियान शुरू किया जाएगा। आपको बताते चलें कि रक्षा बंधन के दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं। रक्षा बंधन 29 अगस्त को है। वित्त मंत्रालय के अनुसार इसी प्रकार, 'सुरक्षा बंधन'अभियान के तहत लोगों को अपने प्रियजन को 'सामाजिक सुरक्षा'योजना उपहार देने को प्रोत्साहित किया जाएगा। कैसे खरीदा जा सकेगा यह गिफ्ट इस अभियान को जीवन सुरक्षा गिफ्ट चेक के जरिए बल मिलेगा, जिसे महज 351 रुपए की कीमत पर बैंकों की ब्रांच से खरीदा जा सकता है। और इस गिफ्ट को प्रधानमंत्री जीवन ज्‍योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के लिए एक साल के प्रीमियम के तौर पर जमा किया जा सकता है। 351 रुपए की खरीद कीमत में से 9 रुपए बैंक सर्विस चार्ज के रूप में अपने पास रख लेगा।

देश को सशक्त तकनीकी राष्ट्रवाद की आवश्यकता : डाॅ. भगवती प्रकाश शर्मा

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आज देश को सशक्त तकनीकी राष्ट्रवाद की आवश्यकता है: डाॅ. भगवती प्रकाश शर्मा

जोधपुर 22 अगस्त . स्वदेशी जागरण मंच जोधपुर प्रांत द्वारा ‘‘भारतीय औद्योगिक विकास के लिए स्वदेशी अवधारणा’’ विषय पर जोधपुर इण्डस्ट्रीज एसोसिएशन सभागार में प्रांतीय संगोष्ठी आयोजित की गयी।
    संगोष्ठी में क्षेत्रीय संघचालक राजस्थान व अखिल भारतीय सह संयोजक स्वदेशी जागरण मंच के डाॅ. भगवती प्रकाश शर्मा ने बताया कि देश के उद्योगो को बढाने के लिए तकनीकी राष्ट्रवाद की आवश्यकता है। अमेरीका, चीन इसी राष्ट्रवाद के कारण वैश्वीकरण के लीडर है। देश में उद्यमता को अनुकूल वातावरण देने की जरूरत है। तभी हम विश्व के अगुवा राष्ट्र बन पायेगे। आज विश्व की कुल जीडीपी में हमारा योग मात्र 2.04 प्रतिशत है जबकि 1500 वर्ष पहले 32 प्रतिशत था। उस समय हमारे देश में सभी उद्योग फलफूल रहे थे। राजाओं द्वारा उन्हें प्राश्रय देने की आवश्यकता है। इसके लिए जोधपुर में भी अलग-अलग उद्योग सहायता समूह बनाकर आर एण्ड डी विकसित करने की जरूरत है। सोलर ऊर्जा, स्टील उद्योग, ग्वारगम, हैण्डीक्राफ्ट आदि में इसके द्वारा जोधपुर देश का शीर्ष औद्योगिक शहर बनने की क्षमता रखता है। केवल इनकी उचित ब्रांडिग की आवश्यकता है। इसके लिए तकनीकी लोगो के सहयोग की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि हम चीनी माल खरीद कर अपनेदेश को नुकसान पहुंचा रहे है। 1917 में एक रूपये में  13 डाॅलर आता था आज 63 रूपये में 1 डाॅलर आता है। इसका मुख्य कारण विदेशी व्यापार घाटा है। इसको हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर रोक सकते है। 1947 से 1991 तक समाजवाद के कारण हमारी कम्पनीयें का विकास अवरूद्ध हो गया। आज भी विभिन्न लाइसन्सों के द्वारा यह अवरूद्ध है। इसको हटाने की आवश्यकता है।

     संगोष्ठी में मुख्य अतिथि कश्मीरी लाल अखिल भारतीय संगठक स्वदेशी जागरण मंच ने बताया कि राजस्थान की धरती के अन्दर सोना है और यहां की गर्मी आने वाले दिनों में सोलर ऊर्जा द्वारा पूरे देश को रोशन करेगी। उन्होने उद्यमियों को कहा कि उन्हें आर एण्ड डी में अधिक निवेश की आवश्यकता है। नयी-नयी तकनीकों को अपनाकर ही हम विश्व की एक मजबूत आर्थिक ताकत बन सकते है। सरकार का भी दायित्व है कि उनहे खुला वातावरण प्रदान करे तथा रिसर्च के लिए वास्तविक छूट प्रदान करे। उन्होने कहा कि आज विश्व के कई देशो को हमारे फार्मा, सोलर, आईटी सेक्टरो से ईष्र्या है तथा इसको रोकने के लिए कई अवैध प्रतिबिम्बों का सहारा ले रही है। स्वदेशी जागरण मंच ऐसे बौद्धिक लोगो का समूह है जो राष्ट्रवादी राजनेता व उद्योगेपतियों के साथ लेकर किस प्रकार देश को समृद्ध बना सकता है और सभी वर्गो को समान रूप से इसका लाभ मिले। इसके लिए चिन्तन व प्रयास करता है।

    संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डीआडीओ के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामगोपाल ने बताया कि स्वदेशी, स्वालंबी व स्वाभिमानी लोगो के द्वारा ही एक आदर्श देश का निर्माण होता है और मंच ऐसे ही लोगो का समूह व संगठन है जो कि देश निर्माण के लिए आम लोगो, युवा व बच्चो को जागृत कर रहा है। इसके लिए मंच के लोग अनेको कार्यो के द्वरा लोगो को प्रशिक्षित कर रहा है। उन्होने कहा कि अच्छा उत्पाद वही है जिसमें ग्राहक का लाभ छिपा हो। हमारी स्वदेशी कम्पनियां इसी ध्येय से उत्पाद बनाती है। इसके लिए हमें जीरो डिफेक्ट प्रबन्धन करना पड़ेगा व टोटल क्वालिटि मेंटेन करनी पड़ेगी। यदि आज यह हसंकल्प ले कि हम चाईनीज वस्तुओं को काम में न ले तो कुछ ही वर्षो में चाइना टूट जायेगा।
    संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि जेआइए के उपाध्यक्ष रमेश गांधी ने बताया कि आज लघु कुटीर उद्योगो को बचाने की जरूरत है। और विदेशी उत्पादों के कारण जो धन देश से बाहर जा रहा है इसको स्वदेशी अपनाकर रोकना है। जिससे सभी को रोजगार प्राप्त होगा।

राष्ट्रीय सम्मेलन के पोस्टर का विमोचन - संगोष्ठी में दिसम्बर माह के 25, 26, 27 तारीख को प्रस्तावित स्वदेशी राष्ट्रीय सम्मेलन के पोस्टर का विमोचन भगवती प्रकाश शर्मा, कश्मीरी लाल, सतीश कुमार भागीरथ चौधरी  द्वारा किया गया।

अभ्यास वर्ग सम्पन्न - स्वदेशी जागरण मंच के जोधपुर प्रांत का जेआईए सभागार में फलौदी, बीकानेर, पाली, सिरोही, बाड़मेर आदि जिलो से आये कार्यकर्ताओं का अभ्यास वर्ग आयोजित किया गया। इसमें विभिन्न सत्र हुआ जिसमें डाॅ. भगवती प्रकाश शर्मा ने कार्यकर्ताओं को विभिन्न उदाहरणो को देते हुए स्वदेशी अवधारणा को समझाया।
    मंच के अखिल भारत के संगठक कश्मीरीलाल ने बताया कि कार्यकर्ताओं को जागरूक रहने की आवश्यकता है तभी वह समाज को जागृत कर सकेगा। मंच के उत्तरी भारत के संगठक सतीश कुमार राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए कार्यकर्ताओं को कमर कसने को कहा तथा स्वदेशी विचारधारा को समाज के सभी वर्गो तक पहुंचाने की आवश्यकता है।

    इस संगोष्ठी में मंच के राजस्थान के संयोजक भागीरथ चैधरी, सह संयोजक धर्मेन्द्र दुबे, मंच के प्रवक्ता संदीप काबरा, राष्ट्रीय सह संपर्क प्रमुख डाॅ. रणजीत सिंह, राष्ट्रीय परिषद सदस्य देवेन्द्र डागा व लूणाराम, जिला संयोजक अनिल माहेश्वरी, सहसंयोजक मनोहर चारण, अनिल वर्मा, रोहिताष पटेल, विनोद मेहरा, मिथिलेश कुमार झा, महेश गौड़, प्रमोद पालीवाल, महेश जांगिड़, लक्ष्मीकांत, राजेश दवे आदि अनेक जिलो से आये दायित्ववान कार्यकर्ता उपस्थित थे।

उप राष्ट्रपति बताएं, कौन-सा भेदभाव दूर करना है ... ?

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उप राष्ट्रपति बताएं, कौन-सा भेदभाव दूर करना होगा ?
लोकेन्द्र सिंह  Source: न्यूज़ भारती हिंदी


उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत के स्वर्ण जयंती समारोह से मुसलमानों को लेकर केन्द्र सरकार को नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि सबका साथ-सबका विकास अच्छा, लेकिन सरकार को मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर करना चाहिए। मुसलमानों का भरोसा जीतने के लिए सरकार उन गलतियों को जल्द सुधारे, जो सरकार या उसके एजेंटों ने की हैं। किसी सांप्रदायिक राजनेता की तरह उप राष्ट्रपति ने सरकार को मुस्लिम आबादी की भी धौंस देने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि देश की आबादी में 14 फीसदी से अधिक मुसलमान हैं, सरकार उनकी अनदेखी न करे। भारत के उप राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर बैठे हामिद अंसारी के बयान को लेकर सियासी और सामाजिक विरोध शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन उप राष्ट्रपति के बयान को असंवैधानिक तथा सांप्रदायिक बताया है। मुस्लिम राजनीति करनेवाले दल, कांग्रेस और वामपंथी सहित अन्य पार्टियां उनका समर्थन भी कर रही हैं।

बहरहाल, हिन्दू और मुस्लिम, दोनों की भावनाओं को उकसाने वाला बयान देकर उपराष्ट्रपति आगे नहीं बढ़ सकते। उनकी खामोशी सामाजिक समरसता-एकता के लिए खतरनाक हो सकती है। उन्हें कुछ सवालों के जवाब देने चाहिए, जो उनके ही बयान से उपजे हैं। यथा- संवैधानिक पद पर बैठकर क्या उन्हें इस तरह का बयान देना चाहिए था? क्या इस बयान ने समाज में गलत संदेश नहीं जाएगा? सबसे महत्वपूर्ण, क्या अंसारी साहब बताएंगे कि सरकार ने कब-कब मुसलमानों के साथ भेदभाव किया है? किस तरह का भेदभाव किया गया है? उप राष्ट्रपति मुसलमानों के साथ 'भेदभाव'की बात कह रहे हैं तो मामला गंभीर हो जाता है। इसलिए हामिद अंसारी जी को बताना होगा कि भारत सरकार ने मुसलमानों के साथ समानता का व्यवहार कब और कहां नहीं किया? भाजपा के सवाल का भी जवाब उन्हें देना चाहिए कि वे भारत के उप राष्ट्रपति हैं या किसी वर्ग विशेष के? वरना उनके बयान को तुष्टीकरण की राजनीति से प्रेरित मान लिया जाएगा। अपने अबतक के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने ऐसा एक भी कार्य या फैसला नहीं किया है, जिससे यह संदेश गया हो कि भारत में अब मुसलमानों की खैर नहीं। या फिर उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा हो। बल्कि उन्होंने तो सबके साथ की बात की है। एक साल में ऐसा क्या घट गया कि हामिद अंसारी को सांप्रदायिक बयान देना पड़ा है?

अगर हम एक साल का सिंहावलोकन करें तो ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता है। मुसलमान पूरे हक के साथ अपनी बात कह रहा है। यहां तक कि आतंकवादी याकूब मेमन का भी समर्थन कर पा रहा है। उप राष्ट्रपति यह भली-भांति जानते ही होंगे कि मुसलमानों को इतनी आजादी भारत में ही संभव है। दुनिया के मुसलमान भी भारत के मुसलमान से जलते हैं। ईर्ष्या करते हैं। किसी भी इस्लामिक देश से ज्यादा आजादी और समानता मुसलमानों को भारत में हासिल है। भारत सरकार ही नहीं वरन राज्य सरकारें भी उनका उचित ख्याल रखती हैं। भारत का प्रगतिशील मुसलमान खुशहाल है। उप राष्ट्रपति को चाहिए कि पहले वे स्वयं आत्मावलोकन करें। क्या उनका व्यवहार भारतीय नागरिक की तरह है? राष्ट्रीय ध्वज को सलामी नहीं देकर किसने 'भेदभाव'की रेखा खींची थी? कौन लोग हैं जो देश में समान नागरिक संहिता की बात नहीं करते हैं? समान नागरिक संहिता के जिक्र पर ही बिदकने लगते हैं? देश की आबादी में 14 फीसदी से भी अधिक की हिस्सेदारी रखने के बाद भी विशेषाधिकारों की मांग करने वाले लोग कौन हैं? विशेषाधिकार भेदभाव को बढ़ाता है या घटाता है? भारत में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति ने भेदभाव को बढ़ावा दिया है।

उप राष्ट्रपति को चाहिए कि वे सबसे पहले सभी राजनीतिक दलों को वोट बैंक की राजनीति से बाज आने की नसीहत दें। मुसलमानों से आग्रह करें कि राष्ट्र से ऊपर धर्म को न माने। समान नागरिक संहिता का स्वागत करें। देश में समान नागरिक संहिता होगी तो भेदभाव बहुत हद तक खत्म हो जाएगा। सबके लिए समान कानून। देश की नजर में हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई सब के सब एक समान भारतीय नागरिक। आखिर में एक और वाजिब सवाल, भेदभाव खत्म करने के लिए उप राष्ट्रपति समान नागरिक संहिता का समर्थन करेंगे क्या? क्या वे सरकार को नसीहत देंगे कि सरकार एक देश-एक कानून जल्द लेकर आए?

जड़ से काटने वाली 'शिक्षा' : अरुण कुमार सिंह

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जड़ से काटने वाली 'शिक्षा' :  अरुण कुमार सिंह


देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे भारत में कुछ मजहबी और गैर-सरकारी संगठन अपने विद्यालयों में भारत की सदियों पुरानी संस्कृति के विरुद्ध शिक्षा देते हैं और अपनी-अपनी संस्कृति को सबसे श्रेष्ठ बताते हैं। इस एजेंडा आधारित शिक्षा का उद्देश्य होता है अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाना, अपने मजहब का प्रचार-प्रसार करना और अपनी संस्कृति को ही सबसे श्रेष्ठ बताना। इसके लिए बच्चों को पहली कक्षा से ही सम्प्रदाय विशेष की बातें पढ़ाई जाने लगती हैं। इससे बच्चे दूसरे सम्प्रदाय के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हो जाते हैं। उम्र के साथ उनका यह पूर्वाग्रह और दृढ़ होता जाता है। वे यह मानकर चलने लगते हैं कि उनका अपना ही मजहब ठीक है, उनकी अपनी ही संस्कृति अच्छी है और बाकी बेकार।

पूर्वोत्तर भारत में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा के नाम पर  ऐसा जाल बिछाया कि इस क्षेत्र के तीन राज्य (नागालैण्ड, मिजोरम और मेघालय) पूरी तरह ईसाई-बहुल हो चुके हैं। बाकी राज्यों में भी ये मिशनरियां बड़े जोर-शोर से इसी उद्देश्य की प्राप्ति में लगी हैं।  समाजसेवी भूषणलाल पाराशर, जो पूर्वोत्तर भारत में  कार्य करने वाले राष्ट्रवादी संगठनों के लिए दान इकट्ठा करते हैं, कहते हैं, 'ईसाई मिशनरियों ने बहुत ही रणनीतिपूर्वक शिक्षा की आड़ में पूर्वोत्तर भारत में अपनी जड़ें जमा ली हैं। मिशनरियों ने वनवासी बच्चों को शिक्षित तो किया, लेकिन उन्हें अपनी ओर खींच भी लिया। वे बच्चे अपने पूजा स्थल 'नाम घर'में पूजा नहीं करते हैं, बल्कि चर्च जाते हैं। वे अपने पुरखों की मान्यताओं और परम्पराओं को नहीं मानते हैं। वे लोग उन्हें अपनी जड़ों से ही काट चुके हैं।'

विद्या भारती के मार्गदर्शक श्री ब्रह्मदेव शर्मा 'भाईजी'कहते हैं,'सामान्यत: किसी राष्ट्र की शिक्षा में उसके सांस्कृतिक मूल्यों, उसके गौरवशाली इतिहास, धरोहर और ज्ञान-विज्ञान को शामिल किया जाना चाहिए। विद्या भारती अपने विद्यालयों में ऐसी ही शिक्षा देती है। किसी भी सूरत में बच्चों को राष्ट्रीय चिन्तन से विपरीत शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। जो लोग ऐसी शिक्षा देते हैं, उन्हें रोकना सरकार की जिम्मेदारी है।'

 झारखण्ड के एक सामाजिक कार्यकर्ता विजय घोष का भी कुछ ऐसा ही मानना है। घोष कहते हैं, 'ईसाई मिशनरियों ने एजेंडा आधारित अपनी शिक्षा के लिए पूरे झारखण्ड को निशाने पर रखा है। सुदूर क्षेत्रों में भी विदेशी चंदे के बल पर विशाल विद्यालय और छात्रावास बन रहे हंै। इन छात्रावासों में मुख्य रूप से लड़कियों को रखा जाता है। लड़कियों को पढ़ाना तो बहुत अच्छी बात है, पर वहां लड़कियांे को ईसाइयत की ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि वे पढ़-लिखकर अपने माता-पिता, अपने कुल और अपनी परम्पराओं की ही विरोधी हो जाती हैं। इनके जरिए ईसाई मिशनरियां उनके घर वालों को ईसाई बनाती हैं। बहुत ही सोची-समझी साजिश के तहत इन लड़कियों का विवाह किसी हिन्दू परिवार के लड़के से कराया जाता है। विवाह के कुछ समय बाद ही लड़के को ईसाई बनने के लिए बाध्य किया जाता है। जब लड़का ईसाई बन जाता है तो दोनों पति-पत्नी घर के अन्य सदस्यों को ईसाई बनने के लिए तैयार करते हैं।

यही कारण है कि गुमला और सिमडेगा जिले में ईसाइयों की संख्या 32 से 33 प्रतिशत हो गई है। इससे भारत विरोधी गतिविधियां भी बढ़ रही हैं।'अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष कृपा प्रसाद सिंह कहते हैं, 'मुस्लिम जगत भी भारत में एजेंडा आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने में लगा है। पेट्रो डॉलर की ताकत पर पूरे देश में मदरसों और अन्य  शिक्षण संस्थानों का जाल बुना जा रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्यों के कुछ हिस्सों में हाल के वर्षों में अनेक इस्लामी शिक्षण संस्थान प्रारंभ हुए हैं। अपने समाज के लोगों को शिक्षित करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे कुछ संस्थानों में भारत विरोधी मानसिकता पनप रही है। समय-समय पर इसके अनेक उदाहरण देश के सामने आए हैं। इसके बावजूद इन शिक्षण संस्थानों को देश की कुछ राज्य सरकारें बढ़ावा दे रही हैं।'

यह अच्छी बात है कि जो संगठन एजेंडा आधारित शिक्षा देने में लगे हैं, उनके सामने विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती जैसी संस्थाएं चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं। पूरे देश में विद्या भारती के 23 हजार से अधिक विद्यालय लाखों विद्यार्थियों को संस्कारयुक्त शिक्षा दे रहे हैं। वहीं कल्याण आश्रम के तत्वावधान में देश के अनेक भागों में 240 छात्रावास संचालित हो रहे हैं।

इनमें सुदूर वनवासी क्षेत्रों के 1,18,716 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से 98 प्रतिशत बच्चे वनवासी हैं। किसी भी सूरत में बच्चों को राष्ट्रीय चिन्तन से विपरीत शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। जो लोग ऐसी शिक्षा देते हैं,उन्हें रोकना सरकार की जिम्मेदारी है।-ब्रह्मदेव शर्मा 'भाईजी', मार्गदर्शक, विद्या भारती

मिशनरियों ने वनवासी बच्चों को शिक्षित तो किया, लेकिन उन्हें अपनी ओर खींच भी लिया। वे बच्चे अपने पूजा स्थल 'नाम घर'में पूजा नहीं करते हैं, बल्कि चर्च जाते हैं। वे अपने पुरखों की मान्यताओं और परम्पराओं को नहीं मानते हैं। वे लोग उन्हें अपनी जड़ों से ही काट चुके हैं। - भूषणलाल पाराशर, समाजसेवी, दिल्ली

मुस्लिम जगत भी भारत में एजेंडा आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने में लगा है। पेट्रो डॉलर की ताकत पर पूरे देश में मदरसों और अन्य इस्लामी शिक्षण संस्थानों का जाल बुना जा रहा है। -कृपा प्रसाद सिंह, उपाध्यक्ष, वनवासी कल्याण आश्रम

झारखण्ड में लड़कियांे को ईसाइयत की ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि वे पढ़-लिखकर अपने माता-पिता, अपने कुल और अपनी परम्पराओं की ही विरोधी हो जाती हैं। इनके जरिए ईसाई मिशनरियां उनके घर वालों को ईसाई बनाती हैं। - विजय घोष, समाजसेवी, झारखण्ड

साभार:: पाञ्चजन्य

प्रताप महान, अकबर नहीं : विश्लेषण

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फारुख अहमद खान
Source: न्यूज़ भारती
केवल ‘महान‘ कह देने से या लिख देने से कोई ‘महान‘ नहीं हो जाता है। ‘महान‘ अथवा ‘महानता‘ का भावार्थ, ‘उत्कृष्ट, अति उत्तम, सर्वश्रेष्ठ तथा बहुत बढ़िया/शानदार, उद्देश्यपूर्ण कर्म, जिसमें व्यक्ति विशेष, स्वयं का त्याग/बलिदान/नि:स्वार्थ भाव/सहायता या भागीदारी प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित हो और जिसकी एक स्वर में प्रशंसा की जा सके।

इतिहास में सिकन्दर, अशोक एवं अकबर को महान लिखा गया, ये तीनों विजेता थे। सिकन्दर ने यूनान से लेकर झेलम के पूर्व में मगध राज्य तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया, अशोक ने कलिंगा युद्ध में विजय प्राप्त की तथा अकबर ने समकालीन हिन्दुस्तान में मेवाड़ और दक्षिण भारत को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण देश में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। क्योंकि इतिहास विजेता द्वारा लिखा अथवा लिखवाया जाता है, इसलिए पराजित को कभी भी ‘महान‘ नहीं कहा गया। चाहे उसके कर्म और गुण विजेता से उत्तम हों।

सिकन्दर महान 30 वर्ष से कम आयु में लगभग विश्व विजेता कहलाया, परन्तु हिन्दुस्तान से लौटते समय मलेरिया - बुखार से हारकर इस संसार को अलविदा कह गया, क्योंकि उस समय तक ‘कुनेन‘ नामक दवा की खोज नहीं हुई थी, इसलिए सिकन्दर महान एक हिन्दुस्तानी मच्छर से हार गया। अशोक महान कलिंगा युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् महात्मा बुद्ध की शरण में चला गया और भिक्षु बन गया। यदि सम्राट अशोक कलिंगा युद्ध में पराजित हो जाता तो क्या इतिहास उसे ‘महान‘ कहता?

तैमूरवंशी उमर शेख मिर्जा जो तैमूर लंग की चौथी पीढ़ी का सदस्य था और मंगोल (तातारी) हलाकू खां की पडनातिन कतलक निगार बेगम जो की चंगेज खां की तेरहवी पीढी में हुई। - हुमायूनामा, पृष्ठ-140
उमर शेख मिर्जा जो की फरगना का  शासक था तथा कतलक निगार बेगम का पुत्र बाबर का पौत्र ‘अकबर’ हिन्दुस्तान के लिए आक्रांन्ता था, जिसे महान बनाने में उसके दरबारी, चाटूकार इतिहासकार अबुल फजल, अल बदायुनी, मोहम्मद कासिम एवं यूरोपियन इतिहासकारों ने बड़ा सहयोग दिया, क्योंकि उन्हें व्यक्तिगत तथा संस्थागत लाभ (व्यापार के लिए शाही फरमान) प्राप्त करना था।

सन् 14 अक्टूबर 1542 को थार रेगिस्तान की छोटी सी जागीर अमरकोट के राणा की शरण में हमीदा बानों की कोख से अकबर का जन्म हुआ। उस समय उसका पिता हुमायूँ, शेरशाह सूरी से कन्नौज युद्ध में बुरी तरह हारकर हिन्दुस्तान से अफगानिस्तान व इरान की ओर भाग रहा था और शेरशाह सूरी उसका पिछा करते हुए मारवाड़ की सरहद (रास-बावरा) गांव तक पहुंच गया था। परास्त, निराश हुमायूँ बदहवासी में अपनी गर्भवती पत्नी हमीदा बानो को अमरकोट के राणा के संरक्षण में छोड़कर पश्चिम दिशा में भागता चला गया। उसे काबुल और कंधार के शासक सगे भाइयों से भी समर्थन नहीं मिला, इसलिए उसे शाह ईरान की शरण में जाना पड़ा।
इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद श्रीवास्तव ने अकबर के लिए लिखा है:
            'Born under the sheltering care of a Hindu. Akbar was a broad minded & Tolerant Ruler.'

मेवाड़ के सूर्यवंशी सिसोदिया राजपूत शासक, जो स्वयं को भगवान रामचन्द्र जी का वंशज मानते रहे, उस वंश के राणा हम्मीरसिंह की ग्यारहवीं पीढ़ी के शासक और मेवाड़ के प्रसिद्ध राणा संग्रामसिंह के पौत्र तथा राणा उदयसिंह तथा जैवन्ता बाईजी की प्रथम संतान प्रताप का जन्म ईस्वी 9 मई, 1540 को सूर्य उदय की बेला में कुम्भलगढ़ में हुआ। महराणा प्रताप के सम्बन्ध में एक दोहा बहुत प्रसिद्ध है:
      ‘मां पूत ऐसो जणजै जेसौ राणा प्रताप‘
सम्राट अकबर और महाराणा प्रताप- यदि मुख्य इन दोनों शासकों के शौर्य, प्रशासनिक, सैन्य एवं संगठनात्मक क्षमता, त्याग एवं बलिदान के साथ-साथ व्यक्तिगत गुणों एवं व्यक्तिगत गुणों की निष्पक्ष तुलना करते हैं तो निम्न ऐतिहासिक घटनाओं/तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है:

1.हुमायूँ का आकस्मिक निधन दिनांक 27 जनवरी, 1556 को हो जाने के कारण पंजाब के ‘कलानौर‘ गांव में 14 वर्ष से कम आयु के बालक अकबर का राज्याभिषेक दिनांक 27 जनवरी, 1556 को किया गया। उस स्थान पर आज भी एक कच्चा चबूतरा बना हुआ है।

इस दिन मुगल फौज स्वयंभू सम्राट हेमू की सेना के सामने पानीपत के मैदान में खड़ी थी। युद्ध अवश्यंभावी था। दिनांक 5 नवम्बर, 1556 को लड़ा गया युद्ध इतिहास में ‘पानीपत की दूसरी लड़ाई‘ के नाम से दर्ज हो गया। ईरानी संरक्षक ‘बेहराम खां‘ के संरक्षण में अकबर ने विजय प्राप्त कर दिल्ली एवं आगरा पर कब्जा कर लिया।
बेहराम खां के संरक्षण एवं धाय मां महाअग्ना के साये में पल रहा अवयस्क सम्राट ने किसी प्रकार की कोई शिक्षा हासिल नहीं की। इसलिए वह जीवन पर्यन्त ‘निरक्षर‘ ही रहा।

इतिहासकार डॉ. श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक ‘‘अकबर-द-ग्रेट’’ भाग - 1, पृष्ठ - 497 में लिखा है कि - ‘‘अकबर लिखने-पढने से दूर भागता था, इसलिए वह जीवन भर अनपढ़ रहा...।’’
जेयुष्ट पादरी मौसारत जिसने अकबर को करीब से देखा है अपनी पुस्तक ‘‘द ग्रेट मुगल’’ पृष्ठ 281 पर लिखा है ‘‘वह कुछ भी पढना-लिखना नहीं जानता था’’

प्रताप के जन्म के समय उत्तर भारत में केवल मेवाड़ ही ऐसा राज्य था जिसने किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की। महाराणा प्रताप की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कुम्भलगढ़ में हुई। प्रतापसिंह ने शैक्षणिक तथा शस्त्र शिक्षा परम्परागत गुरूकुल पद्धति के साथ धार्मिक शिक्षा भी प्राप्त की।

प्रतापसिंह अपने बाल्यकाल से भील आदिवासी के सादा रहन-सहन, स्वामिभक्ति, पहाड़ो की उंची चोटियों पर आसानी से चढ़ जाने की कला, कठिन कांटेदार झाड़ियों में कूद जाना, पत्थर और तीर से अचूक निशाना लगा कर शिकार करना और जलवायु के परिवर्तन को आसानी से सहन करने की क्षमता के कारण उनसे बहुत प्रभावित था। वह अपना अधिकतर समय भील आदिवासियों के साथ बीतता था और उनके साथ, पंक्ति में बैठकर भोजन करता था। इसलिए भील आदिवासियों के साथ-साथ उसे जनसामान्य का भी पूर्ण स्नेह एवं स्वामीभक्ति प्राप्त कर लिया था।

राणा उदयसिंह की मृत्यु फरवरी, 1572 में हुई। राणा उदयसिंह ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रतापसिंह की बजाय धीर बाई भटियानी के पुत्र जगमालसिंह को मेवाड़ का शासक बनाने की वसीयत लिख दी थी। कुँवर प्रतापसिंह ने अपने पिता की अन्तिम इच्छा का आदर करते हुए मेवाड़ से बाहर जाने का निश्चय कर प्रस्थान कर दिया, परन्तु मेवाड़ के सामंत और जागीरदारों में प्रताप के व्यक्तिगत शौर्य एवं गुणों के कारण हठ कर उन्हें मेवाड़ की गद्दी पर आसीन कर दिया गोगुन्दा में 32 वर्ष की आयु में उसका राज्याभिषेक दिनांक 28 फरवरी, 1572 को परम्परागत संस्कारों के साथ कर दिया।

महाराणा बनने से पहले प्रताप कई युद्धों में मेवाड़ की सेना का सफल नेतृत्व कर चुके थे। महाराणा प्रताप को भली-भांति ज्ञात था कि अकबर किसी भी स्थिति में उन पर हमला अवष्य करेगा। इसलिए उन्होंने युद्ध की समस्त तैयारियां पूरी की। अपने विश्वासनीय “लुहार समुदाय” के कुशल कारीगरों को बड़ी संख्या में अच्छी तलवारें बनाने का आदेश दिया। स्वामिभक्त लुहार-कारीगरों ने महाराणा की ईच्छा अनुसार तलवारों तथा धनुष-बाण आदि का निर्माण किया तथा स्वयं भी महाराणा के साथ लड़ाई के मैदान में डटे रहे। इस समुदाय ने महाराणा का अनुसरण करते हुए अपने घर-परिवार बैल गाडियों पर स्थानान्तरित कर लिये थे इसलिए इन्हें     ‘‘गाड़िया लुहार’’ कहा जाता है। आज भी यह घुमन्तु जाति गडिया लुहार के नाम से ही प्रसिद्ध है और सरकार के कई बार प्रयास करने के बाद भी इनके परिवार बैल गाडियों पर ही अपना जीवन व्यतीत करते है। यह स्वामिभक्ति और देषप्रेम की अनोखी मिसाल है। 

मेवाड़ की राजगद्दी से वंचित कुँवर जगमाल-
अकबर की शरण में चला गया। उसका बड़ा भाई शक्तिसिंह पहले से ही अकबर के दरबार में शरण ले चुका था। महाराणा प्रताप, राजगद्दी संभालने के उपरान्त भी चित्तौड़ का पतन, मेवाड़ की स्त्रियों एवं बच्चों का जौहर तथा राजपूत वीरों का धर्म युद्ध तीसरा शाका की यादें अपने मस्तिष्क से नही निकाल सका। क्योंकि उसने यह सबकुछ अपनी आंखों से देखा था इसलिए यह घटना उस पर अमिट छाप छोड़ चुकी थीं। जब अकबर ने भारी सैन्य बल, भारी तोपखाना तथा 300 हाथी लेकर 23 अक्टूबर 1567 को चित्तौड़गढ को घेर लिया। उस समय चित्तौड़ की कुल आबादी चित्तौड़गढ़ में ही बसी हुई थी। लगभग 4 माह की कोशिश के बाद भी जब दुर्ग नहीं टूटा तो अकबर ने यह मन्नत मांगी थी कि यदि वह इस गढ़ को जीत जाएगा तो वह पैदल ही चलकर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह (अजमेर) में जियारत करने जाएगा।

यह किला इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि यह आगरा/दिल्ली से सूरत/दक्षिण दिषा में व्यापार/हज यात्रा के रास्ते में स्थित था।
अपने सलाहकारों की सलाह से उसने दीवार तोड़ने के लिए दो सुरंगे किले की दीवार में भरवायी। 24 फरवरी 1568 को गोधूली के समय 200-मन बारूद की 2 सुरंगों से किले की दीवार को तोड़ने का निश्चय किया एवं अपनी सेना के सबसे बहादुर 200 घुड़सवारों को आदेश दिया कि जैसे ही किले की दीवार टूटे, वे किले के अन्दर घुस जाएं, परन्तु यहाँ पर अकबर से बहुत बड़ी सैन्य भूल हो गयी, क्योंकि उसने 24 फरवरी को 1568, गोधूली के समय बारूदी सुरंगे उड़ाने का आदेश दिया। जैसे ही एक सुरंग में विस्फोट हुआ, अकबर ने अपने घुड़सवारों को किले में घुसने का आदेश दे दिया। जिस समय घुड़सवार किले की दीवार पर पहुँचे, उसी समय दूसरी बारूदी सुरंग में विस्फोट हुआ। यह विस्फोट इतना भयंकर था कि कई मन भारी पत्थर कई-कई मील दूर जाकर गिरे। इसके साथ ही 200 घुड़सवारों के भी टूकड़े उड़ गए। किले की दीवार की मरम्मत के लिए आए किलादार जयमल मेडतियां  अकबर की बंदूक ’’संग्राम’’ के निशाने पर आ गया। 25 फरवरी, 1568 को ब्रह्म मुहूर्त में 300 क्षत्राणी वीरांगनाओं ने अपने मान-सम्मान एवं पवित्रता की रक्षा हेतु जौहर की ज्वाला को गले से लगा लिया। ¼Cambridge History of India, Page 68½ प्रातःकाल (25 फरवरी 1567) को राजपूत यौद्धा केसरिया-बाना बांधकर युद्ध भूमि में शत्रु पर टूट पडे़। यह था चित्तौड़ का तीसरा शाका ¼Fight unto Death½। मुगलों ने तोपों और बन्दूकों के बल पर दोपहर के समय चित्तौड़गढ में प्रवेश किया क्रोधित युवा अकबर ने शुद्ध मंगोल क्रूरतम परम्परा के अनुसार गढ़ में ’’कत्ले आम’’ का हुक्म जारी किया। इस कत्ले आम में 12000 निर्दोषों की हत्या हुई थी। इस विवरण को मुगल इतिहासकार का अबुल फजल अल्लामी का दिल भी इस कत्लेआम को देखकर चीत्कार कर उठा और वह इस वीभत्सतम नरसंहार का वर्णन गद्य में नहीं लिख सका और उसने पद्य में लिखा है-
अकबरनामा, भाग द्वितीय, पृष्ठ 475
अनुवाद : ‘‘किसी ने ऐसा युद्ध नहीं देखा.....मैं तो लाख में एक भी बयान नहीं कर सकता।”
निश्चय ही यह दृश्य और जौहर की ज्वाला, राजपूत सैनिकों का शाका तथा असहाय नागरिकों की चीत्कारें, महाराणा प्रताप के मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ गईं। चित्तौड़गढ़ युद्ध वास्तव में बारूद तथा राजपूतों की तलवारों के बीच लडा गया युद्ध था जिसमें जीत बारूद की हुई।

राजगद्दी संभालने के पश्चात् उसने शपथ ली कि जब तक मेवाड़ की भूमि पर एक भी शत्रु सैनिक है वह कुटिया में रहेगा, भूमि पर सोएगा तथा पतल में खाना खाएगा। महाराणा प्रताप ने अपने इस वचन का जीवनपर्यन्त निर्वहन किया।

मेवाड़ की राजधानी उदयपुर स्थापित हो जाने तथा चित्तौड़ युद्ध समाप्त होने के लगभग एक वर्ष की अवधि में प्रताप के शौर्य व पराक्रम दिखाते हुए मेवाड़ की 80 प्रतिशत भूमि पर मुगलों का आधिपत्य समाप्त कर दिया था।
चित्तौड़ युद्ध 1568 से लेकर 1572 तक लगभग चार वर्ष शांति रही। इस अवधि में महाराणा प्रताप ने मुगलों के विरुद्ध युद्ध हेतु समस्त तैयारियां पूर्ण कर लीं।

हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व अकबर ने महाराणा प्रताप से बिना युद्ध अधीनता स्वीकार करने के लिए कई प्रयास किए। सर्वप्रथम उसने अपनी विश्वसनीय जलाल खां कोरची (1572), उसके बाद कुंवर मानसिंह (जून 1573), इसके पश्चात् आमेर के राजा भगवन्तदास (दिसम्बर 1573), अन्त में अपने विश्वसनीय दरबारी टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास संधि संदेश लेकर भेजा, परन्तु सूर्यवंशी प्रताप ने अकबर के सामने शीश झुका अपनी मातृभूमि का अपमान समझा।

इसलिए महत्वकांक्षी एवं साम्राज्यवादी अकबर के सामने शस्त्र बल से महाराणा प्रताप को झुकाने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि उसे सदैव आशंका बनी रहती थी कि कही हिन्दुस्तान के राजपूत मेवाड़ के झंडे के नीचे संगठित होकर उसके साम्राज्य को नष्ट न कर दें।

‘‘बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप से अपमानित आमेर के कुंवर मानसिंह को बड़ी सेना एवं भारी तोपखाना देकर तारीख 2 मोहर्रम हिजरी संवत् 98 को ईस्वी सन् 1576 तारीख 2 अप्रेल में महाराणा प्रताप के विरुद्ध 20 हजार घुड़सवार लेकर भेजा। मानसिंह ने मांडलगढ़ से चलकर खमणोर गांव के समीप हल्दीघाटी से कुछ दूर बनास नदी के किनारे डेरा डाला। (अल बदायूनी-मुन्तखबुत्तवारीख अंग्रेजी अनुवाद, वॉल्यूम 2, पृष्ठ 236)
‘‘महाराणा भी अपनी सेना तैयार कर गोगुंदा से चला और मानसिंह से तीन कोस की दूरी पर आ ठहरा। (अकबरनामा, लेखक अबुल फजल, अनुवाद वॉल्यूम 3, पृष्ठ 236-37)
महाराणा प्रताप की सेना पहाड़ी के दूसरी तरफ रूक गई थी। दोनों सेनाओं के बीच बहुत संकरी हल्दीघाटी थी, जिसमें से एक-दो सैनिक साथ निकल सकते थे।
      वीर विनोद, भाग 2, पृष्ठ 151, तथा ख्यातें के अनुसार-
‘‘युद्ध छिड़ने के एक दिन पूर्व कुंवर मानसिंह थोड़े से साथियों सहित शिकार को गया था, जिसकी सूचना भील गुप्तचरों ने महाराणा को दी और सामंतों ने निवेदन किया इस अच्छे अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए, परन्तु वीर महाराणा ने उत्तर दिया कि इस तरह छल और धोखे से शत्रु को मारना सच्चे क्षत्रियों का काम नहीं है।
देशकाल, समयकाल, भौगोलिक परिस्थितियाँ तथा युद्ध के स्थान का चयन इन सब बातों को ध्यान में रखकर महाराणा प्रताप के सैन्य संचालन का विश्लेषण किया जावें तो निश्चित ही यह तथ्य सामने आते हैं कि महाराणा प्रताप में एक उच्च सेनापति के गुण प्राकृतिक रूप से विद्यमान थे।

क्योंकि मुगलों के पास भारी तोपखाना और दूर तक मार करने वाली बन्दूकें थीं, इसलिए मैदान की बजाय पहाड़ों में लड़ना ही उचित था, क्योंकि पहाड़ों पर भारी तोपे लेकर नहीं चढ़ा जा सकता था एवं भीलों के तीरों का वार भी अचूक था। क्योंकि मुगल ठण्डे मुल्क (ताशकंद, समरकन्द और बल्ख) के रहने वाले थे, इसलिए हिन्दुस्तान की गर्मी सहन करना बहुत दुष्कर था। इसीलिए महाराणा ने सैन्य चतुराई से युद्ध के लिए सबसे ज्यादा गर्म दिन 18 जून, 1576 चुना। दूसरे शब्दों में श्रेष्ठ युद्ध कला एवं सैन्य चतुराई का परिचय देते हुए प्रताप ने समय, स्थान एवं दिन का चयन स्वयं अपनी शर्तों पर किया और अपनी शर्तों के अनुसार शत्रु को लड़ने के लिए बाध्य भी किया।

एक उच्चतम कोटि के सेनानायक की तरह सैनिक और घोड़ों को पहचानने के लिए प्रताप को ऊपर वाले ने बहुत पारखी नजर ¼keen insight½ दी थी। इसीलिए उसने अपने हरावल ¼assault squadron½ की कमान निडर, साहसी एवं स्वामीभक्त हकीम खां सूर को सौंपी तथा अपनी सवारी के लिए स्वामीभक्त ‘चेतक‘ का चयन किया।
हल्दीघाटी का युद्ध के नाम से विख्यात युद्ध 18 जून, 1976 को खमणोर गांव और हल्दीघाटी के बीच में लड़ा गया।

‘हल्दीघाटी‘ से कुछ ही दूर खमणोर के निकट दोनों सेनाओं का भीषण युद्ध हिजरी संवत् 984 रबी उल् अव्वल के प्रारम्भ ई.वी. 1576 जून में हुआ। - ओझा, राजपूताना, पृष्ठ 744
मुगल इतिहासकार अल बदायूनी, जो स्वयं इस युद्ध में मुगल फौज के साथ उपस्थित था, लिखता है - ‘‘राजा की सेना दर्रे के पीछे से आयी थी। इसका सेनापति हकीम सूर था। पहाड़ों की तरफ से निकल कर हमारी हरावल पर आक्रमण किया। भूमि ऊँची-नीची और रास्ते टेड़े-मेढ़े औरउ कांटों से भरे होने के कारण हमारी हरावल में हड़बड़ी मच गई, जिससे हमारी हरावल की पूरी तरह से हार हुई। हमारी सेना के राजपूत, जिनका मुखिया राजा लूणकरण था, और जिनमें से अधिकतर वाम पार्श्व में थे, भेड़ों के झुण्ड की तरह भाग निकले और हरावल को चीरते हुए अपनी रक्षा के दक्षिण पार्श्व की तरफ दौड़े। इस समय मैंने (अल बदायूनी), जबकि मैं हरावल के खास सैन्य के साथ था,....।’’

‘‘राणा कीका (प्रताप) के सैन्य के दूसरे भाग में, जिसका संचालक राणा स्वयं था, घाटी से निकलकर काजीखान के सैन्य पर, जो घाटी के द्वार पर था, हमला किया और उसकी सेना का संहार करता हुआ मध्य तक पहुँच गया जिससे सबस के सब सीकरी के शैखजादे भाग निकले और उनके मुखिया शैख मन्सूर को भागते हुए तीर लगा। काजी खां मुल्ला कुछ देर तक टिका रहा, परन्तु दाहिने हाथ का अंगूठा तलवार से कट जाने पर वह भी अपने साथियों के पीछे यह कहता हुआ भाग गया कि ‘संकट सामने जब सहने लायक नहीं रहे, वहां से भाग जाना पेगम्बर की ही एक परम्परा है।‘’ अल बदायूनी आगे लिखता है -
‘‘हमारी जो फौज पहले ही भाग निकली थी, नदी (बनास) को पार कर 5-6 कोस तक भागती ही रही। इस तबाही के समय चन्दावल का सेनानाक मिहतर खान ने मुगल ढोल और नगाड़े बजाकर यह अफवाह फैलाई कि शहंशाह अकबर खुद अपनी फौज के साथ आ पहुँचा है, इसलिए भागती हुई सेना के पैर टिक गए।‘‘

महाराणा प्रताप की तलवार की जद में जो भी आया उसे अपने प्राण गंवाने पड़े। वह रौद्र रूप धारण कर चुका था, बुरी तरह घायल होने के उपरांत भी वह पूरे मुगल सैन्य बल को चीरता हुआ शत्रु के सबसे सुरक्षित स्थान ‘सेनापति कुंवर मानसिंह‘ के हाथी के सामने पहुँच गया। चेतक, अपने स्वामी का इशारा पाते ही मानसिंह के हाथी पर चढ़ दौड़ा। चेतक के पांव की अगली टाप मानसिंह के हाथी के मस्तिष्क पर पडी। महाराणा प्रताप ने शत्रु सेनापति का वध करने के लिए पूरी ताकत से अपना भाला फेंका, मानसिंह ने हाथी के हौदे में छुपकर अपनी जान बचाई, परन्तु भाला महावत के कवच को भी चीरता हुआ हाथी के हौदे के अन्दर समा गया। हाथी की सूंड में बंधी तरवार से चेतक का एक पांव और पेट पर गहरे घाव आएं। महाराणा प्रताप भी इस समय तक बुरी तरह घायल हो चुके थे। इस संघर्ष में उन्हें 5 घाव लगे, जिनमें 2 तलवारों के घाव, 1 गोली का घाव और 2 भालों के घाव थे। झाला सरदार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मेवाड़ का राज्य-चिन्ह अपने ऊपर ले लिया और विनती कर महाराणा को युद्ध भूमि से प्रस्थान करने को विवश कर दिया।

उधर महाराणा की हरावल का सेनानायक हकीम खां, मुगल सेना का संहार करते हुए उसे बनास नदी के तट के उस पार तक खदेड़ता हुआ ले गया। उसी समय बहुसंख्यक मुगल सेना की चंदावल (रक्षित फौज) के सेनानायक मेहतर खां ने ढोल और नगाड़े बजाकर यह अफवाह फैला दी कि बादषाह अकबर स्वयं तेज घोड़ों पर सवार अपनी फौज के साथ पहुंच गया है। इस खबर से भारतीय मुगल सेना रूक गई। इस समय भीषण युद्ध हुआ जिसमें हकीम खां अद्धितीय रण कौषल दिखाता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ। परंतु उसके हाथ से तलवार नही छुटी।

जब उसे दफनाने के लिए ‘‘गुस्ल’’ (अंतिम स्नान) दिया गया तब भी कई शक्तिषाली लोगों ने पूरी शक्ति लगाई, परंतु तलवार नही छुडा सके। तब सामंतों ने महाराणा से हाथ काटने का निवेदन किया परंतु महाराणा ने वीर का सम्मान करते हुए हाथ काटने से मना कर दिया। इसलिए हकीम खां सूर को तलवार के साथ ही दफनाया गया।
      इतिहास में एकमात्र यही वीर है जो तलवार हाथ में लेकर सो रहा है।
      “मेवाड़ फाउण्डेशन” से आज भी ‘‘हकीम खां सूर – अवॉर्ड” दिया जाता है।

      जन-राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी इस अवॉर्ड से सम्मानित किए गए थे।

युद्ध भूमि से जाते समय दो शत्रु सैनिक घुड़सवारों ने महाराणा का पीछा किया। महाराणा के पास पहुंचकर एक मुगल सरदार ने महाराणा पर तलवार से वार करने का प्रयास किया, परन्तु महाराणा की तलवार बिजली की तरह कौंधी और उस मुगल सरदार का लोहे का कवच काटते हुए उस यवन के साथ-साथ उसके अश्व को भी काट डाला। दूसरे सैनिक का भी यही हश्र हुआ।

      घायल महाराणा को उनके भाई शक्तिसिंह ने अपना घोड़ा दिया।
‘‘जिस स्थान पर चेतक ने प्राण त्यागे वह स्थान हल्दी घाटी से लगभग 2 मील दूर वलीचा गांव के पास स्थित है जहां नाले के निकट उसका चबूतरा बना हुआ है।’’
                                                       - कर्नल टॉड
                                                      ए.ए.क्यू. - राजपूताना

झाला सरदार के वीरगति को प्राप्त होते ही हल्दी घाटी का युद्ध समाप्त हो गया।
‘‘उस दिन गर्मी इतनी भीषण थी कि भेजा उबला जाता था और गरम लू तीर की तरह बदन में घुस रही थी। मुगल सेनिकों में चलने-फिरने की भी हिम्मत नही रही थी। यह भी अंदेषा था कि प्रताप पहाड़ी की दूसरी तरफ घात लगाये खड़ा है, इसलिए हमारे सैनिकों ने उसका पीछा नही किया और अपने डेरे पर लौट आए।’’
- अल बदायूनी।

‘‘दूसरे दिन हमारी सेना ने रणभूमि का अवलोकन किया तथा गोगुन्दा पर कब्जा कर लिया। गोगूंदा में केवल 20 पुजारी और सेवक थे जिन्होंने बहादुरी से लड़कर मौत को गले लगाया।”
‘‘हमारी फौज को हमले का खतरा था इसलिए गहरी-गहरी खन्दकें खोद कर हर मौहल्ले में ऊंची-ऊंची आड़ खड़ी कर दी गई ताकि घोड़ें नहीं फांद सके।’’
- अल बदायूनी

शाही सेना गोगूंदा में कैदी की भांति सीमाबद्ध रही और राषन तक ना ला सकी। परन्तु यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के संघर्ष का प्रारंभ था।
‘‘अकबर 29 सितम्बर 1576 को ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स पर अजमेर आया और उसने कुतुबुद्धीन, मौहम्मद खां, कुलीज खां और आसफ खां को आज्ञा देकर भेजा कि वह गोगून्दे से राणा के मुल्क में सब जगह फिरें और जहां कहीं उसका पता लगे वहीं उसे मार डालें’’।
- मुन्तखबुत्तावारीख का अंग्रेजी अनुवाद, जिल्द 2, पृष्ठ 246

शाही सेना गोगून्दा में कैदियों की तरह पडी हुई थी। जब कभी थोडे से आदमी रसद का सामान लेने के लिए जाते तो उन पर राजपूत धावा बोल देते थे। अतः शाही सेना घबराकर बादषाह के पास अजमेर चली गई और महाराण बहुत से बादषाही थानों के स्थान पर अपने थाने नियत कर कुंभलगढ़ चला गया। - वीर विनोद, भाग 2 पृष्ठ 155
शाही सेना के लौट जाने के बाद महाराणा ने सिरोही के राव सुरताण, जालोर के स्वामी ताजखां और अपने श्वसुर ईडर के राजा नाराणदास के साथ मिलकर गुजरात के कई स्थानों पर शाही थानों को नष्ट कर दिया और कई गांव और शहरों को अपने अधीन कर लिया।
- मुंशी देवीप्रसाद : महाराणा श्रीप्रतापसिंहजी का जीवन चरित्र, पृष्ठ - 26

‘‘बादशाह अकबर स्वयं 13 अक्टूबर 1576 को अजमेर से गोगून्दा को रवाना हुआ। गोगूंदा से अकबर ने कुतुबुद्धीन खां, राजा भगवन्तदास और कुंवर मानसिंह को राणा के पीछे पहाड़ों में भेजा। परन्तु महाराणा उन पर हमला ही करता रहा। अन्त में वे पराजित होकर बादशाह के पास लौट आए।’’ - अबुलफजल

‘‘वे राणा के प्रदेश में गए परन्तु उसका कुछ पता ना लगने से बिना आज्ञा ही लौट आएं जिस पर अकबर ने अप्रसन्न हो उनकी डयोढ़ी बंद कर दी, जो माफी मांगने पर फिर बहाल की गई।”
- अबुलफ़जल-अकबरनामा अंग्रेजी अनुवाद, जिल्द सं. 3, पृष्ठ - 274-75

अकबर मेवाड़ के इलाके में 6 महीने तक रहा और सारी कोशिशों के बावजूद प्रताप का या उसकी सेना का कोई ओहदेदार उसके हाथ में नहीं आया।
- अकबरनामा भाग 3, पृष्ठ 193-194

बादशाह ने फिर एक बड़ी सेना लेकर मिर्जाखां (खानखाना) व अन्य अफसरों को राणा पर भेजा। एक बार राजपूत सेना ने हमला किया जिसमें कुंवर अमरसिंह ने खानखाना की औरतों को बंदी बना लिया, जिनका महाराणा ने बहन बेटी का सम्मान कर प्रतिष्ठा के साथ पीछा उनके पति के पास पहुंचा दिया। महाराणा के उत्तम बर्ताव के कारण खानखाना उस समय से ही मेवाड़ के महाराणाओं की तरफ सद्भाव रखने लगा।
- मुंशी देवीदास, महाराणा श्रीप्रतापसिंहजी का जीवन चरित्र, पृष्ठ-40

बादशाह ने फिर 15 अक्टूबर, 1578 को एक बड़ा सैन्य दल महाराणा प्रताप के विरूद्ध भेजा परंतु वह भी महाराणा तक नहीं पहुंच सके केवल राव सुरजन, हाडा के बेटे दूदा को साथ लेकर अकबर के दरबार में हाजिर हुए। - अकबरनामा जिल्द 3, पृष्ठ -355-56

इसी बीच भामाशाह के नेतृत्व में राजपूत सेना ने मालवा पर चढ़ाई कर, वहां से 25 लाख रूपये और 20 हजार अशर्फियां लूटकर चुलिया गांव में महाराणा को भेंट की।
महाराणा जीवन पर्यन्त पहाड़ों की चट्टानों तथा गुफाओं में अपने परिवार के सहित सुरक्षित रहे। कई अवसर पर उन्हें और उनके परिवार को समय पर खाना भी नसीब नही होता था। एक बार तो उनकी पत्नी और कुंवर अमरसिंह की पत्नी ने मिलकर घास के बीज की रोटी बनाई। आधी रोटी एक बच्ची के हाथ में से जंगली बिल्ली छीनकर ले गई। परंतु इन सब प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद महाराणा ने अक्रांता से अपनी मातृभूमि का सौदा नहीं किया।
संक्षिप्त में इस संघर्ष का अंत यह हुआ कि महाराणा ने अपने छोटे से राज्य का 80 प्रतिषत भू-भाग मुगलों से दुबारा प्राप्त कर लिया। महाराणा एक ही वर्ष 1586 में चित्तौड़ और मांडलगढ को छोडकर सारे मेवाड को अपने अधीन कर लिया था।-
वीर विनोद भाग - 2, पृष्ठ - 164
अकबर ने साम्राज्य विस्तार के लिए जितने युद्ध किए उससे ज्यादा युद्ध उसे अपने नजदीकी रिष्तेदारों और सेनानायकों के विद्रोह को दबाने के लिए करना पडा। - मई 1562 ई. में अकबर का दूध शरीक भाई ¼Foster Brother½ आदम खां को वजीर शमशुद्दीन की हत्या का कठोर दंड देते हुए उसे दुर्ग की दूसरी मंजिल से नीचे फिकवा दिया। अकबर ने उसके शरीर में जीवन का संकेत पाने पर उसे दुबारा दुर्ग से नीचे फिकवा दिया। कुछ इतिहासकार कहते है कि अकबर ने स्वयं आदम खां को नीचे फेका था।

- अकबर का बहनोई और सेनापति सरफुद्दीन की बगावत 5 नवम्बर 1562 में हुई। ख्वाजा मुअज्जम, (अकबर के मातृ पक्ष का चाचा) द्वारा विद्रोह 1564 ई.।
- मालवा के सूबेदार अब्दुला खां उजबेक की बगावत जुलाई 1564 ई.।
-रानी दुर्गावती के विरूद्ध सैनिक अभियान। तथा सेनापति आसफ खां द्वारा विद्रोह 1565-66 ई.
- अकबर का भाई मो. हकीम - काबुल का सूबेदार द्वारा पंजाब पर आक्रमण - फरवरी 1567 ई.।
- खान जमान तथा बहादुर खां की बगावत। बन्दी बनाएं जाने पर शहंषाह ने उन्हें हाथी के पांव तले कुचलवाकर मरवा डाला - मई 1567 ई.।
-  चित्तोडगढ के विरूद्ध फौजी अभियान 1567।
- गुजरात में मो. हुसैन का विद्रोह-अगस्त-अक्टूबर 1573।
- काबुल में मोहम्मद हकीम का विद्रोह, अकबर स्वयं काबुल पहुंचा-9 अगस्त 1581
‘‘असीरगढ के युद्ध के बाद अकबर के प्रभुत्व में कमी होने लगी। वह लगभग 45 वर्ष तक युद्ध करता रहा। जहांगीर के विद्रोह के कारण अकबर मई में आगरा लौट आए। सलीम के लगातार विद्रोह, शहजादा दानियाल की मृत्यु और अन्य घटनाओं के कारण अकबर, जीवन के अंतिम वर्षों में अकबर का मन खिन्न हो गया था.......।‘‘- इतिहासकार विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक ‘‘अकबर द ग्रेट मुगल’’ पृष्ठ 207 से 222
अकबर की शाही सेना जो कार्य 10 वर्षों में नही कर सकी वह कार्य महाराणा ने एक साल में कर दिखाया। सन् 1585 के पश्चात् महाराणा ने आमेर की प्रमुख व्यवसायिक मंडी मालपुरा पर हमला कर दिया और उसे तहस-नहस कर उस पर अधिकार कर लिया।
                                                      - राणा रासो पद्य 458

उदयपुर आदि शहर भी महाराणा के अधीन आ गए थे परंतु महाराणा अपनी राजधानी चावंड को ही रखा। महाराणा ने अपना अंतिम राज्यकाल अपने राज्य को सुव्यवस्थित करने में लगाया। महाराणा ने अपने जीवन के अंतिम 9-10 वर्ष अपने राज्य को सभी दृष्टि से सुदृढ करने के लिए कार्य किया। 19 जनवरी 1597 को षिकार खेलते समय धनुष पर ‘‘ताण‘‘ चढाते समय दुर्घटनावश गंभीर रूप से घायल हो जाने के कारण महाराणा की मृत्यु चावंड में हो गई। चावंड से लगभग डेढ मील दूर बंडोली गांव के निकट महाराणा का अग्नि-संस्कार हुआ।
कुंवर अमरसिंह ने मेवाड की परंपरा के विरूद्ध महाराणा प्रताप की अंत्येष्टि, विधि-विधान के अनुसार स्वयं श्रुति, स्मृति, पुराण आदि शास्त्रो युक्त विधि से अपनी उपस्थिति में पूर्ण करवाई तथा मुखाग्नि स्वयं दी।

जब महाराणा के स्वर्गवास का समाचार अकबर के पास पहुंचा तब वह भी उदास होकर स्तब्ध सा हो गया। उसकी यह दशा देखकर दरबारी लोगों को भी आश्चर्य हुआ। उस समय चारण दुरसा आढा ने जो वहां उपस्थित था नीचे लिखा हुआ छप्पय कहा -
अस लेगो अणदाग, पाघ लेगो उणनामी।
गौ आडा गवडाय, जिको बहतो धुर वामी।।
आशय – हे गुहिलोत राणा प्रतापसिंह! तेरी मृत्यु पर शाह ने दांतों के बीच जीभ दबाई और निष्वास के साथ आंसू टपकाये, क्योंकि तूने अपने घोड़ को दाग नही लगने दिया, अपनी पगडी को किसी के आगे नही झुकाया।
दूसरी और अकबर अपने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए अथक प्रयत्नशील रहा।
- गुजरात के शासक मुजफ्फर खां का विद्रोह - सितम्बर 1583।
- कश्मीर अभियान शासक यूसुफ खां को गिरफ्तार किया गया। पर बगावत जारी रही दिसम्बर 1586।
- अज्ञात व्यक्ति द्वारा राजा टोडरमल की छुरा घोंपकर हत्या - 28 जुलाई, 1587।
- शहजादा सलीम का विद्रोह। स्वयं को शासक घोषित कर दिया - 01 अगस्त 1601।
इस्वी सन् 1602 में शहजादा सलीम ने अपने पिता बादशाह अकबर के खिलाफ खुली बगावत का ऐलान कर स्वयं को हिन्दुस्तान का शहंशाह घोषित कर दिया तथा इलाहाबाद में अपना दरबार भी लगाने लगा, उसने अपने नाम के सोने व चांदी के सिक्के भी ढलवाएं और अकबर के पास नमूने के तौर पर आगरा/फतेहपुर सीकरी भिजवाए। लगभग दो साल तक हरम की वरिष्ठ महिलाएं जिनमें जोधा बाई भी सम्मिलित थी बाप-बेटे के बीच सुलह का प्रयास करते रहे।

अंत में 21 अगस्त 1604 को जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने शहजादा सलीम के विरूद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया, अकबर स्वयं इस युद्ध में शामिल होने के लिए कूच भी कर चुका था। परंतु रास्ते में आठवें दिन, अचानक अकबर की माता का देहान्त हो जाने का समाचार पाकर वह लौट आया। कुछ समय बाद सलीम भी अपनी दादी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का बहाना लेकर आगरा पहुंचा। जोधाबाई के अथक प्रयास से अकबर ने सलीम को क्षमा कर दिया। परंतु 22 सितम्बर 2005 को शहंशाह अचानक बीमार पड गया। 21 अक्टूबर 1605 को अकबर ने शहंशाह बाबर की तलवार (राजसी चिन्ह) सलीम को सौंप दी। अकबर की बीमारी ज्यादा बढती गई। वह नीम बेहोशी (अर्द्धमूर्छित अवस्था) के हालत में बडबडाया करता था कि ‘‘शेखूं, तूने ऐसा क्यों किया’’ ? ‘‘शेखूं, तूने ऐसा क्यों किया’’ ? इसी बीमारी में 26-27 अक्टूबर 1605 की रात को अकबर का निधन हो गया।

इस बीच उसके सगे-सम्बन्धी और रिश्तेदारों ने कई अवसर पर बगावत की। यहां तक की उसके पुत्र शहजादा सलीम ने भी एक अवसर पर स्वयं को हिन्दुस्तान का शहंशाह घोषित कर दिया। अकबर के विरूद्ध ऐतिहासिक विवरण निम्न प्रकार है -
नोट - अकबर ने अपने शासन काल में सबसे भयंकर भूल स्वयं को मालिक का दूत ¼Messanger½ मानकर और दीन-ए-ईलाही धर्म चलाकर की, जिसका विवरण आगे दिया जा रहा है।
- मासूम खां फर्हनखुदी का विद्रोह - मार्च 1582।
1576 ई. के बाद अकबर का ध्यान अपने साम्राज्य के अन्य ईलाकों की ओर गया। क्योंकि अकबर को मेवाड में व्यस्त देखकर उसके रिश्ते का भाई हाकीम खां ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया था। इसलिए अकबर को अपनी सेना सहित पश्चिम दिशा की ओर जाना पडा। हाकिम खां के विद्रोह का दमन कर अकबर अपनी राजधानी लौटा, परंतु वह हाकिम खां का विद्रोह कभी भी पूरी तरह समाप्त नही कर पाया।
अकबर ने अपने साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ धार्मिक मामलों में भी रूचि लेना शुरू कर दिया था जिसका मुख्य सूत्रधार यमन का मूल निवासी शेख मुबारक था। जिसके दोनों लडके अबुल फजल तथा फैजी अकबर के नवरत्नों में शामिल थे।

श्री मुबारक ने अकबर को हिन्दुस्तान पर लंबे समय तक राज्य करने के लिए यह समझाया, वह उपर वाले की तरफ से हिन्दुस्तान की जनता का सबसे बडा ‘‘मजहबी खलीफा’’ है। इसी धारणा से प्रभावित होकर अकबर ने 1579 में ‘मजहर’ (मजहबी मामलों का सर्वोच्च निर्णायक) की घोषणा की। अकबर ने स्वयं को ‘इमामे-आदिल’ घोषित करवाया। -ईमाम यानि मुखिया तथा आदिल का मतलब होता है इंसाफ करने वाला। दूसरे शब्दों में मजहबी / धार्मिक मामलों में भी अकबर सर्वोच्च न्यायाधीष बन गया। मजहबनामा की नियमावली बनाने वाला यही शेख मुबारक था।

अकबर की धार्मिक तृष्णा यही शांत नही हुई। वह अति महत्वकांशी बनता चला गया। अकबर को अति महत्वकांशी बनाने में मुख्य सहयोगी यही शेख मुबारक था।

दीन-ए-ईलाही -  फतेहपुर सीकरी में बनाये गये ईबादतखाना में सभी धर्मावलियों/धर्मगुरूओं से अकबर सभी धर्मों के प्रवचन सुना करता था। तथा उनकी आपस में शास्त्रार्थ भी करवाया करता था। क्योंकि वह स्वयं पढा-लिखा नही था इसलिए वह समस्त विचार-विमर्श को याद रखने की कोषिष करता था। शेख मुबारक के द्वारा प्रेरित करने पर उसने 1582 में दीन-ए-इलाही मजहब की घोषणा कर डाली। इस नए धर्म में शुक्रवार के दिन मांसाहार वर्जित था। तथा इस धर्म की दीक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति को अपना सिर अकबर के चरणों में झुकाना पडता था। और पगडी अकबर के चरणों में रखनी पडती थी। सम्राट उसे उठाकर उसके सर पर पुनः रखकर ‘शष्ठ’ करता था अर्थात उसे अपना स्वरूप प्रदान करता था। इस पष्ठ पर अल्लाह-हो-अकबर खुदा रहता था। अनुनायी को अपने जीवन में श्राद्ध भोज देना होता था। इसके अतिरिक्त पूर्व की ओर सिर करके सोना शुभ माना जाता था।

अकबर द्वारा प्रचलित धर्म दीन-ए-ईलाही में सभी धर्मों का समावेष करने का असफल प्रयास किया गया था। बीरबल पहला व अंतिम हिन्दू था जिसने दीन-ए-ईलाही को स्वीकार किया। बीरबल के अतिरिक्त अबुल फजल, अबुल फैजी तथा शेख मुबारक ने भी यह धर्म अपनाया। अबुल फजल को दीन-ए-ईलाही का प्रधान मुकर्रर किया गया था। अकबर के द्वारा दीन-ए-ईलाही धर्म को राजकीय धर्म घोषित किया गया था। अकबर की मृत्यु 1605 ई. तक यह राजकीय धर्म रहा।

इतिहासकार स्मिथ ने दीन-ए-ईलाही के बारे में लिखा है - ’’यह साम्राज्यवादी भावनाओं का शिशु व उसकी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं का एक धार्मिक जामा है।’’
अकबर ने नया कैलेण्डर ‘इलाही संवत’’ भी शुरू किया था। अकबर के नौ के नौ नवरत्न भी इस धर्म में शामिल नही हुए। अकबर के केवल तीन नवरत्न ही इस धर्म में शामिल हुए।
नया धर्म दीन-ए-ईलाही की अवधारणा - इस्लाम धर्म के शत प्रतिषत प्रतिकूल होने के कारण अकबर के साम्राज्य के मुल्ला, मौलवी, ईमाम तथा कट्टर मुसलमान अकबर के विरोधी हो गए थे। इस कारण अकबर को धार्मिक व मजहबी तिरस्कार का सामना करना पडा। क्योंकि अकबर दृढ शक्तिशाली सम्राट था तथा उसे राजपूतों व अन्य जाति का समर्थन प्राप्त था इसलिए इस तिरस्कार की भावना को व्यक्त करने का साहस किसी में नही था। परंतु मजहबी बिन्दुओं को लेकर पैदा होने वाले विरोधाभास पर मुफ्ती तथा उलमाओं ने अकबर के विरूद्ध ‘‘फतवा‘‘ जारी करने में कोई देर नही करते थे। क्योंकि ईस्लाम अपने पैगंबर मोहम्मद (स.अ.) को अंतिम पैगम्बर ¼Last Messenger½ मानता है। तथा यह अविवादित मान्यता है कि ईस्लाम मजहब मोहम्मद साहब के साथ पूर्ण हो चुका है। अब इसमें किसी प्रकार की ‘‘जैर और जबर‘‘ (एक मात्रा) की गुंजाइश नहीं है। इसलिए अकबर के प्रति मुसलमानों के दिलों में घृणा पनप गई थी। कई मौकों पर अकबर को मस्जिद में प्रवेश करने पर भी फतवा जारी किया गया।

‘‘मृत अकबर की अंत्येष्टि बिना किसी उत्साह के जल्दी ही कर दी गई। दुर्ग की दीवार तोडकर एक मार्ग बनवाया गया तथा शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफन कर दिया गया।’’
- विन्सेन्ट स्मिथ, अकबर द ग्रेट, पृष्ठ – 236
इस प्रकार प्रमाणित ऐतिहासिक घटनाओं/तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि -
- अकबर तैमूर एवं मंगोल वंश का था एवं उसकी रगों में तुर्क एवं मंगोल खून दोडता था। जबकि महाराणा प्रताप का संबंध सूर्यवंषी सिसोदिया राजपूत खानदान से था जो स्वयं को भगवान राम का वंशज मानते है।
- अकबर निरक्षर था, पढने-लिखने में उसको कोई रूचि नही थी। जबकि महाराणा प्रताप ने उच्च कोटि की समायिक, गुरूकुल पद्धति से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी।
- अकबर आक्रान्ता था। बाल्यकाल से ही साम्राज्यवादी एवं विस्तारवादी था। जबकि प्रताप को जनसामान्य विशेषतया आदिवासी एवं गाडिया लुहारों की स्वामिभक्ति प्राप्त थी।
- अकबर ने ’’मंगोल - कू्ररता’’ अपनी चरम पर थी। चितोडगढ युद्ध के बाद 12000 निहिर और निसहाय आदमी - औरतों और बच्चों का कत्ले आम इस बात का प्रमाण है।
- अकबर एक धनलोलुप एवं लालची शासक था। वह जिस व्यक्ति से अप्रसन्न होता था। चुपके से उसकी हत्या भी करवा दिया करता था।
- महाराणा प्रताप मातृभूमि प्रेम, स्वाभिमान, एवं त्याग ज्वलंत उदाहरण थे क्योंकि उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक वे एक भी शत्रु को अपने राज्य से नही निकाल देंगे कुटिया में रहेंगे, पतल में खाएंगे तथा जमीन पर सोएंगे। जबकि अकबर शाही महलों में रहने का आदि था।
- शोर्य - हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा द्वारा प्रदर्षित वीरता अविस्मरणीय है। 5 घांव खाने के पश्चात् भी शत्रु के सेनापति पर घोडा चढा देना कोई विरला वीर ही कर सकता है।  अकबर द्वारा ऐसी वीरता का प्रदर्शन का वर्णन उसके किसी दरबारी इतिहासकार ने भी नही लिखा है।

- जननायक - प्रताप को जन सामान्य की स्वामिभक्ति प्राप्त थी। जिसके सहारे वह दुनिया के बहुत बडे शासक तथा हर तरह से साधन सम्पन्न सम्राट अकबर से हर कदम पर मुकाबला करता रहा। जबकि अति धार्मिक महत्वकाक्षांओं के कारण अकबर के द्वारा प्रचलित दीन-ए-इलाही का केवल 4 आदमियों ने ही समर्थन किया। और इस कारण उसके खिलाफ कई फतवें जारी हुए। यहां तक की उसे मुसलमान मानने पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया गया था। इस प्रकार मजहब से अकबर एक बहिष्कृत व्यक्तित्व का व्यक्ति था।

व्यक्तिगत जीवन - अकबर अपनी मृत्यु के पश्चात् 500 औरतों का हरम छोड गया। सवेरे के समय वह पोस्त (अफीम, सूखें मेवे तथा अन्य प्रकार की यौन वर्धक दवाईयों के साथ) खाया करता था और रात को अर्क (ईरानी अंगूरी शराब) पीने का आदी था जबकि महाराणा प्रताप शराब को छूते भी नहीं थे।

अंत्येष्टि - महाराणा प्रताप की अंत्येष्टि विधि पूर्वक की गई, जबकि अकबर का शव किले की दीवार तोड़कर चुपचाप निकाला गया व दफना दिया गया।
अतः वस्तुस्थिति का वर्णन स्वयं ही एक खुला प्रश्न है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपनी समझ के अनुसार विष्लेषण कर सकता है कि दोनों समकालीन शासक में कौन महान था?
साभार: newsbharati.com

शिक्षा व विकास मॉडल भारतीय चिंतन के आधार पर हो – संघ

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शिक्षा व विकास मॉडल भारतीय चिंतन के आधार पर हो – दत्तात्रेय होसबले जी


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी एवं अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ मनमोहन जी वैद्य 

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि संघ की समन्वय बैठक में विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई, विचार-अनुभवों का आदान प्रदान हुआ. समाज जीवन में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव रखे, लोगों से मिले इनपुट दिए. इसी प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में कार्य कर रहे संघ के स्वयंसेवक, देश की बागडोर संभाल रहे स्वयंसेवकों ने भी अपने अनुभव बताए कि कार्य कैसा चल रहा है, कैसा हो सकता है. यह स्वाभाविक प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि समन्वय चिंतन बैठक निर्णय लेने वाली बैठक नहीं है, न ही बैठक में सरकार की समीक्षा की गई. केवल विचारों, अनुभवों का आदान प्रदान हुआ. 14 माह के कार्यकाल में सरकार की दिशा सही है, लगन है, प्रतिबद्धता है, जनता में विश्वास उत्पन्न हुआ है, तो पूरा विश्वास है कि सही दिशा में आगे बढ़ेगा. देश में शासन सत्ता का महत्व है, इसे संघ भी मानता है, लेकिन देश में शासन किसका है, इससे संघ का कार्य नहीं चलता. संघ समाज की ताकत के आधार पर कार्य करता है.
सह सरकार्यवाह नई दिल्ली में समन्वय बैठक के तीसरे दिन प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि संघ ने सरकार को कोई एजेंडा नहीं दिया है, न ही रिमोट कंट्रोल जैसी कोई बात है, सरकार जनता द्वारा प्रदत्त एजेंडे पर कार्य कर रही है. कांग्रेस द्वारा रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने के आरोपों पर कहा कि कांग्रेस क्या कहती है, संघ इस पर टिप्पणी नहीं करेगा. पर, रिमोट कंट्रोल से चलने वालों को सवाल उठाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक देश के नागरिक हैं, संघ कोई गैर कानूनी संस्था नहीं है, सरकार के मंत्री जैसे अन्य स्थानों, कार्यक्रमों, समूहों, प्रेस वार्ता में अपनी बात रखते हैं, वैसे ही बात रखी. कहीं कोई गोपनीयता, नियम का उल्लंघन नहीं हुआ. मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है. बैठक काफी लाभकारी रही है, विभिन्न विषयों पर बैठक में चर्चा हुई.
दत्तात्रेय जी ने कहा कि आर्थिक विकास के समस्त मॉडल फेल हो चुके हैं, इसलिए बैठक में भारतीय विचार, चिंतन के आधार पर युगानुकूल मॉडल विकसित करने पर चर्चा हुई. जिससे आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी हो. कमाई, पढ़ाई, दवाई के लिए ग्रामीण गांव से शहर की तरफ भाग रहे हैं, गांव के अंदर यह सुविधाएं उपलब्ध हों, इसे लेकर ग्राम विकास के अनुभवों का आदान प्रदान हुआ. देश में शिक्षा का भारतीयकरण हो, आधुनिकता को भी शामिल किया जाए, देश में शिक्षा के दायरे से कोई बाहर न रहे, साक्षरता दर को आने वाले वर्षों में 100 प्रतिशत तक कैसे पहुंचाया जाए, शिक्षा महंगी न हो, व्यावसायीकरण पर रोक लगे, तथा इसमें समाज, सामाजिक संस्थाओं की भी भागदारी हो, इसे लेकर चर्चा हुई. समाज का कमजोर दुर्बल वर्ग स्वाभिमानी हो, सभी की रोटी, कपड़ा, मकान की आवश्यकता पूरी हो, इसके लिए योजना बने, सेवा क्षेत्र में स्वयंसेवकों ने अपने कार्य अनुभव बताए, सरकार कैसे कर सकती है, इस विषय पर चर्चा हुई. हालांकि सभी को 100 प्रतिशत संतुष्ट करना संभव नहीं. उन्होंने बताया कि देश के सांस्कृतिक –ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर रखरखाव सही ढंग से हो, इस पर चर्चा हुई, जिससे विदेश से आने वाले पर्यटकों में सही संदेश जाए. उन्होंने कहा कि देश की आंतरिक-बाह्य सुरक्षा के मामले पर भी चर्चा हुई, संघ का स्वयंसेवक कार्यकर्ता विषय पर जागरूक रहता है, सरकार भी तंत्र को मजबूत करने के लिए शीघ्र कदम उठाए, समाज को भी जागरूक करने को लेकर भी चर्चा हुई.
उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश हमसे ही कटकर अलग हुए हैं, हमारे भाई हैं. ऐसे सार्क देशों से संबंध अच्छे हों, सांस्कृतिक संबंध भी अच्छे हों. पाक के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कौरव और पांडव भी भाई थे, लेकिन धर्म की संस्थापना के लिए कुछ भी करना पड़ता है. राम मंदिर के विषय पर कहा कि संघ कोई कार्यक्रम तय नहीं करता है, संत धर्माचार्य, धर्म संसद ने निर्णय लिया है, संघ उसके अनुसार ही कार्य करता है, संघ का मानना है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण देश की आस्था, जनभावनाओं का केंद्र है. मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है तथा सरकार अपने अनुसार सकारात्मक कार्य करेगी, ऐसा मानना है. धर्म आधारित जनगणना पर कहा कि आंकड़ों का अध्ययन नहीं किया है, विषय आया था जिस पर कार्यकर्ताओं की एक टीम बनाई गई है. कार्यकर्ता जनगणना आंकड़ों का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करेंगे, जिसे रांची में होने वाली कार्यकारी मंडल की बैठक में चर्चा के लिए रखा जाएगा.
संघ की समन्वय बैठक 2 सितंबर से मध्यांचल भवन में शुरू हुई थी, जिसमें विभिन्न 15 संगठनों के 93 प्रमुख कार्यकर्ता तीन दिन तक उपस्थित रहे. 04 सितंबर को अंतिम दिन बैठक के अंतिम सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उपस्थित रहे। 

मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट : संघ

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संघ मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट
sanjeevnitoday.com | Saturday, September 5, 2015

नई दिल्ली। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (संघ) के शिखर नेतृत्व की तीन दिवसीय बैठक शुक्रवार को खत्म हो गई। इस बैठक की जानकारी देते हुए संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने सरकार के कामकाज से संतुष्टि जताई। उन्होंने कहा कि बैठक सरकार की समीक्षा के लिए नहीं थी लेकिन 'यह कहा जा सकता है कि सरकार सही दिशा में चल रही है। 100 प्रतिशत संतुष्टि तो कहीं नहीं मिलती है, लेकिन सरकार की दिशा और सही नीयत से चल रही है।'

राम मंदिर मुद्दे पर भी सवाल
बैठक में राम मंदिर का मु्द्दा भी उठा। एक सवाल के जवाब में भी उन्होंने सरकार के साथ ही खड़े होने का संकेत दिया। उन्होंने कहा, 'राम मंदिर का मुद्दा आदलत में है, सरकार सही रास्ता निकालने का प्रयास कर रही है। बीजेपी के घोषणापत्र में भी इसका उल्लेख किया गया है... हम उन्हें समय देना चाहते हैं। इंतजार करेंगे।'

वन रैंक वन पेंशन को लेकर भी विचार
वन रैंक वन पेंशन को लेकर भी उन्होंने ऐसे ही विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बैठक में भी कुछ बातें कही हैं। हमें भरोसा है कि वह पूरा हो जाएगा।  इसके लिए नये नियम बनाये जा रहे है।

गांव पर जोर
उन्होंने बताया कि तीन दिवसीय बैठक में आंतरिक सुरक्षा, बाह्य सुरक्षा, संस्कृति, शिक्षा सहित कई अन्य मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ और संघ मानता है कि विकास का माडल पश्चिमी नहीं, भारतीय होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'गांवों के देश में अब लोग गांव पढ़ाई, कमाई और दवाई के लिए गांव छोड़ रहे हैं। यह देखना होगा कि गांवों का विकास हो। देश के विकास में पर्यावरण की बलि न चढ़े।'

पाकिस्तान पर बदला रुख
पिछले दिनों में कई बाधाओं के बावजूद मोदी सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई थी। संघ की सोच में भी अब यही झलक दिखने लगी है। होसबोले ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी हमारे ही अंग थे। उनके साथ अच्छे संबंध होने चाहिए। पाकिस्तानी रुख के बावजूद इस विचार पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'पांडव और कौरव भी भाई थे... लड़ाई हुई थी।'

धार्मिक जनगणना
धार्मिक जनगणना को लेकर संघ परिवार विहिप से तो कड़ी प्रतिक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन संघ थोड़ा समय लेना चाहता है। दत्तात्रेय ने कहा कि चार-पांच लोगों को कहा गया है कि अध्ययन कर रिपोर्ट दें। उस पर रांची की बैठक में चर्चा होगी।

कांग्रेस पर साधा निशाना
संघ के हाथ रिमोट कंट्रोल के कांग्रेस के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए दत्तात्रेय ने कहा कि उसे कोई अधिकार नहीं है। वह दस साल तक यही करती रही है। मंत्री कहीं भी जाकर अपने विचार रख सकते हैं। फिर संघ की विचारधारा के प्रेरित सरकार के मंत्री अगर बैठक में आकर अपने विचार रखते हैं, हमारे विचार सुनते हैं तो गलत क्या है। संघ कोई गैर कानूनी संस्था नहीं है।

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RSS की बैठक में मोदी ने कहा, ''स्वयंसेवक होने पर गर्व, जल्द दिखेंगे नतीजे''

sanjeevnitoday.com | Saturday, September 5, 2015

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की समन्वय बैठक के आखिरी दिन शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग किया। संघ और भाजपा के कई नेताओं की मौजूदगी में पीएम मोदी ने करीब 15 मिनट का भाषण दिया। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि मुझे  'स्वयंसेवक होने पर गर्व है'। हमारी सरकार ने कई सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं लागू की हैं जिनका असर जल्द ही देखना को ही मिलेगा।

जनधन योजना का भी जिक्र
पीएम मोदी ने गिवएटअप और जनधन योजना के बारे में भी बात की। मोदी ने कहा कि हमें पांच का समय मिला है जिनका असर आने वाले समय में देखने के लिए मिलेगा। मोदी ने कहा कि हमें देशवासियों को हमारे द्वारा किए गए कामों के बारे में बताना होगा। हमे देश को आगे बढ़ाना है।

राम मंदिर मुद्दे पर भी सवाल
बैठक में राम मंदिर का मु्द्दा भी उठा। एक सवाल के जवाब में भी उन्होंने सरकार के साथ ही खड़े होने का संकेत दिया। उन्होंने कहा, 'राम मंदिर का मुद्दा आदलत में है, सरकार सही रास्ता निकालने का प्रयास कर रही है। बीजेपी के घोषणापत्र में भी इसका उल्लेख किया गया है... हम उन्हें समय देना चाहते हैं। इंतजार करेंगे।'

वन रैंक वन पेंशन को लेकर भी विचार
वन रैंक वन पेंशन को लेकर भी उन्होंने ऐसे ही विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बैठक में भी कुछ बातें कही हैं। हमें भरोसा है कि वह पूरा हो जाएगा।  इसके लिए नये नियम बनाये जा रहे है।

गांव पर जोर
उन्होंने बताया कि तीन दिवसीय बैठक में आंतरिक सुरक्षा, बाह्य सुरक्षा, संस्कृति, शिक्षा सहित कई अन्य मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ और संघ मानता है कि विकास का माडल पश्चिमी नहीं, भारतीय होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'गांवों के देश में अब लोग गांव पढ़ाई, कमाई और दवाई के लिए गांव छोड़ रहे हैं। यह देखना होगा कि गांवों का विकास हो। देश के विकास में पर्यावरण की बलि न चढ़े।'

पाकिस्तान पर बदला रुख
पिछले दिनों में कई बाधाओं के बावजूद मोदी सरकार ने पाकिस्तान से बातचीत आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई थी। संघ की सोच में भी अब यही झलक दिखने लगी है। होसबोले ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी हमारे ही अंग थे। उनके साथ अच्छे संबंध होने चाहिए। पाकिस्तानी रुख के बावजूद इस विचार पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'पांडव और कौरव भी भाई थे... लड़ाई हुई थी।'
धार्मिक जनगणना
धार्मिक जनगणना को लेकर संघ परिवार विहिप से तो कड़ी प्रतिक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन संघ थोड़ा समय लेना चाहता है। दत्तात्रेय ने कहा कि चार-पांच लोगों को कहा गया है कि अध्ययन कर रिपोर्ट दें। उस पर रांची की बैठक में चर्चा होगी।
कांग्रेस पर साधा निशाना
संघ के हाथ रिमोट कंट्रोल के कांग्रेस के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए दत्तात्रेय ने कहा कि उसे कोई अधिकार नहीं है। वह दस साल तक यही करती रही है। मंत्री कहीं भी जाकर अपने विचार रख सकते हैं। फिर संघ की विचारधारा के प्रेरित सरकार के मंत्री अगर बैठक में आकर अपने विचार रखते हैं, हमारे विचार सुनते हैं तो गलत क्या है। संघ कोई गैर कानूनी संस्था नहीं है।

नेहरू के समाजवाद से चरमराया भारतीय उद्योग - सतीश पेडणेकर

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नेहरू के समाजवाद से चरमराया भारतीय उद्योग
- सतीश पेडणेकर

हमारे देश में चीनी सामान जिस तेजी के साथ अपनी पकड़ बढ़ाता जा रहा है वह हैरान करने वाली है। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सामूहिक योग में इस्तेमाल हुई चटाइयां चीनी ही थीं। चीन का सामान बाजार में जितनी आसानी से उपलब्ध है उतनी आसानी से तो भारतीय सामान भी उपलब्ध  नहीं है।

पिछली दीपावली पर अपने एक पड़ोसी के घर जाना हुआ। वे बहुत भक्तिभाव से और शास्त्रोक्त पद्धति से लक्ष्मी पूजन करते हैं। लेकिन उनके घर जाकर मैं हक्का-बक्का रह गया। सारे धार्मिक विधि-विधान के साथ पूजन करने वाले हमारे इन पड़ोसी महाशय के यहां जिन लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमाओं का पूजन हो रहा था वे चीन में बनी थीं। उन्होंने पूजास्थल के आसपास जो छोटे बल्बों की माला लगाई थी वह भी चीन में बनी थी। हमारे देसी भारतीय त्योहारों पर चीन में बनी मूर्तियों का प्रचलन मेरे लिए एक भावनात्मक सदमा था, लेकिन इसमें कोई नई बात नहीं थी। हम भारतीय अपने त्योहारों को चीनी सामान के साथ मनाने के आदी होते जा रहे हैं। दीपावली पर हमें लक्ष्मी की मूर्ति, राखी के त्योहार पर चीन में बनी राखी या होली पर चीन में बनी पिचकारियों का प्रयोग करने से गुरेज नहीं होता। चीनी हमारे देवताओं की प्रतिमाएं अपने तरीके से बनाने लगे हैं। हाल ही में रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर ने कहा था-'मैंने गौर किया कि हमारी गणेश मूर्तियों की आंखें छोटी से छोटी होती जा रही हैं। मूर्ति के पीछे देखा तो मेड इन चाइना लिखा हुआ था।'

हमने कभी सोचा ही नहीं कि कम से कम भारतीय त्योहारों पर तो हम भारतीय सामानों का प्रयोग करें। लेकिन
किसी को दोष देना निरर्थक है। सारे बाजार तरह-तरह के चीनी सामान से पटे पड़े हैं और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सस्ता होने के साथ-साथ वह आकर्षक  और  नवीनतापूर्ण भी होता है। यह अलग बात है कि वह टिकाऊ  नहीं होता। लेकिन हर तरह का उपभोक्ता सामान हाजिर है-बोलिए, क्या-क्या खरीदंेगे?

यह एक तरह से हमारे प्रति वैर भाव रखते आ रहे चीन का भारत की अर्थव्यवस्था पर परोक्ष हमला है, भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने की एक चाल है। हम इस चाल में फंसते जा रहे हैं। चीन हमारे बाजारों पर कब्जा कर हमें हमारे घर में घुसकर चुनौती दे रहा है। लेकिन हम हैं कि शुतुरमुर्ग की तरह समस्या को नजरअंदाज करते चले जा रहे हैं। हम चीन के बाजार में घुसकर अपना सामान बेचने की महत्वाकांक्षा पालना तो दूर, अपने ही देश के बाजार में चीन के मुकाबले अपना माल नहीं बेच पा रहे।

यूं तो भारतीय बाजारों में सर्वव्यापी चीनी सामान के मुद्दे को यह कहकर टाला जा सकता है कि वैश्वीकरण का जमाना है, सभी देश एक-दूसरे के घरेलू बाजारों में माल बेच रहे हैं तो फिर चीन के माल को लेकर यह रोना किसलिए। आज सारी दुनिया एक बाजार है जिसमें जो माल उपभोक्ताओं को उनके पैसे का मूल्य देगा वह बिकेगा। वही बाजार पर छा जाएगा। आखिर चीनियों ने भारतीय माल को भारतीय बाजारों में बेचने पर कोई पाबंदी तो नहीं लगाई है। लेकिन भारत में ऐसा सस्ता और आकर्षक माल बन कहां रहा है, जो चीन के माल से होड़ ले सके?

अजीब बात है कि एक तरफ तो हमारे देश में करोड़ों बेरोजगार हैं, मगर हम उनकी क्षमताओं का उपयोग कर आम जरूरतों की पूर्ति तक का सामान भी नहीं बना पा रहे हैं जबकि इसमें कोई जोखिम भी नहीं है, क्योंकि बाजार तो है ही, तभी तो चीन अपना माल धड़ल्ले से बेच रहा है। पर हम बस टुकुर-टुकुर ताक रहे हैं। कुछ जानकार लोगों का कहना है कि चीनी माल के बढ़ते चलन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया है। चीन की आक्रामक व्यापार नीति के कारण चीनी माल भारतीय बाजार पर छा गया है। होना यह चाहिए था कि भारतीय व्यापारी ऐसे माल से बाजार को पाट देते जो चीनी माल की टक्कर ले सके। लेकिन हमारे देश के उद्योगपतियों ने पलायनवादी नीति अपनाई।

नतीजतन हजारों लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योग बंद हो गए। हमारी राजनीति या आर्थिक जगत में यह बात कभी मुद्दा ही नहीं बन पायी कि भारत जैसा आर्थिक महाशक्ति बनने के हसीन सपने देखने वाला देश अपने ही देश में चीन के सामानों का मुकाबला क्यों नहीं कर पा रहा। चीन के साथ सीमा विवाद पर बढ़-चढ़कर बोलने वाले राजनीतिक नेताओं का ध्यान इस मुद्दे पर कभी जाता ही नहीं।

कुछ समय पहले एक जाने-माने अर्थशास्त्री ने एक अखबार में खुला पत्र लिखकर इस मुद्दे पर एक स्पष्ट टिप्पणी की थी कि भारत श्रमोन्मुख विनिर्माण के क्षेत्र में मार खा रहा है। हमारे उद्योग जगत के कर्णधार अपने ढर्रे को बदलना नहीं चाहते। वे सिर्फ वही करते रहना चाहते हैं जो वे करते रहे हैं यानी ऊंची पूंजी वाले उद्योग चलाना चाहते हैं, जैसे ऑटोमोबाइल, आटो पार्ट्स, मोटर साइकिल, इंजीनियरिंग उत्पाद, केमिकल्स या कुशल श्रमोन्मुख सामान जैसे कि साफ्टवेयर, टेलीकम्युनिकेशन, फार्मास्यूटिकल आदि। लेकिन देश में जो विशाल अकुशल श्रमशक्ति है उसका उपयोग करने वाले उद्योगों को चलाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। यही कारण है कि भारत चीन के साथ गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति या राखी बनाने के मामले में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा।

यदि भारतीय उद्योगपति श्रमोन्मुख उद्योगों में दिलचस्पी नहीं ले रहे तो इसके बीज कहीं और नहीं, इतिहास में हैं। वे खासकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के शासन की नीतियों में छुपे हुए हैं। उनके कारण भारत इस मोर्चे पर चीन से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा है। दरअसल आजाद भारत का इतिहास बड़े तथा पूंजी पर आधारित उद्योगों के वर्चस्व और श्रम पर आधारित उद्योगों की घोर उपेक्षा का इतिहास है। बात तब की है जब देश आजाद हुआ था और पूर्ववर्ती सोवियत संघ के समाजवादी विकास मॉडल से प्रभावित पंडित नेहरू  पंचवर्षीय योजनाओं के जरिये देश का नियोजित विकास करना चाहते थे।

वे कोलकाता के एक सांख्यिकी विशेषज्ञ से भी बहुत प्रभावित थे, जिनका नाम था प्रशांत चंद्र महालनोबिस। नतीजतन उन्होंने महालनोबिस को भारत सरकार का मानद सांख्यिकी सलाहकार बना लिया। नेहरू पर महालनोबिस का प्रभाव ऐसा बढ़ता गया कि नेहरू ने उनसे दूसरी पंचवर्षीय योजना का मसौदा तैयार कराया जिसमें महालनोबीस ने अपने और नेहरू के निवेश के बारे में  समाजवादी नजरिये यानी निजी क्षेत्र की कीमत पर विशाल सरकारी क्षेत्र के निर्माण पर बल दिया। मतलब उन्होंने उपभोक्ता वस्तुआंे के उद्योगों की कीमत पर भारी उद्योगों को बढ़ावा दिया गया। इसके अलावा निर्यात को प्रोत्साहन देने के बजाय आयात को महत्वपूर्ण बना दिया गया। इसी कारण छोटे और उपभोक्ता सामानों के उद्योगों की कीमत पर भारी उद्योग लगाने का प्रचलन हो गया।


तब जाने-माने अर्थशास्त्री सी.एन. वकील और ब्रह्मानंद ने उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन देने वाला वैकल्पिक मॉडल पेश किया था, लेकिन वह न तो चकाचौंध वाला था,  न ही महालनोबिस मॉडल की तरह तकनीकोन्मुख था। लेकिन वह भारत जैसे विकासशील देश के लिए ज्यादा अनुकूल था। इसके पीछे सोच यह थी कि हमारे  देश में पूंजी की कमी है मगर  विशाल जनबल होने के कारण उनसे कम पूंजी लगाकर उत्पादक काम कराया जा सकता है। लेकिन नेहरू और अन्य नेताओं को औद्योगिक विकास का यह रास्ता आकर्षक नहीं लगा। उन्हें महालनोबिस का औद्योगिक भारत का सपना ज्यादा रास आया।

दूसरी तरफ देश के बड़े पूंजीपतियों ने भी 1944 के 'बॉम्बे प्लान'को स्वीकार करके अपने पांवों पर ही कुल्हाड़ी मार ली। इस प्लान में तीव्र गति से औद्योगिकीकरण की बात कही गई थी। इसके अलावा वे निजी उद्योगों पर आयात छूट की सीमाएं लगाने पर सहमत हो गए। इससे भी बुरी बात थी कि वे मूल्य तय करना, लाभांश तय करना, विदेशी व्यापार और विदेशी विनिमय पर नियंत्रण, उत्पादन के लिए लाइसेंस आदि सरकारी नियंत्रणों को स्वीकार करने में कामयाब हो गए। उन्हें शायद तब पता नहीं था इस सबके कितने गंभीर नतीजे होंगे। लेकिन इस तरह उन्होंने अपनी कब्र खुद खोद ली थी। ये सारे अधिकार पाकर सरकार तो माई-बाप सरकार हो गई, जो लाइसेंस-कोटा आदि महत्वपूर्ण चीजें बांटने लगी और पूंजीपतियों का लाइसेंस लेने के लिए सरकार-नेताओं के साथ जुड़ना जरूरी हो गया। भारत सरकार का झुकाव बड़े उद्योगों की स्थापना की तरफ था। लेकिन सरकार खुद जो उद्योग नहीं लगाना चाहती थी उसका लाइसेंस वह निजी क्षेत्र को दे देती थी। मगर उसके लिए जरूरी था सरकार के नेताओं से नजदीकी होना। लेकिन इस सबका नतीजा यह हुआ कि सरकारी और निजी क्षेत्र, दोनों में बड़ी पूंजी वाले उद्योगों का लगना जारी रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि श्रम प्रधान उद्योगों की  उपेक्षा हुई।

भारत के मौजूदा विकास की सबसे बड़ी  खामी ही यही है कि विकास की उच्च दर हासिल करने के बावजूद श्रमोन्मुख औद्योगिक क्रांति यहां नहीं आई। यदि ऐसा होता तो इसका लाभ उन लोगों को मिलता जो ग्रामीण क्षेत्र में अब भी गरीबी के दलदल में फंसे हुए हैं। हमारे देश में सकल घरेलू उत्पाद में  कृषि और औद्योगिक क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र का योगदान कहीं ज्यादा है। लेकिन जब तक बड़े पैमाने पर श्रमोन्मुख औद्योगिक क्रांति नहीं जुड़ती, विकास को समवेत विकास नहीं कहा जा सकता।

दरअसल भारतीय संदर्भ में समवेत विकास तभी हो सकता है जब श्रमोन्मुख अत्पादन के जरिये टिकाऊ और तीव्र विकास हासिल किया जाए और लोगों को उत्पादक रोजगार दिलाया जाए। हाल ही में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 85 प्रतिशत भारतीय परिधान उद्योग मजदूर छह-सात श्रमिकों वाली छोटी इकाइयों में काम करते हैं, जबकि चीन में केवल ़ 06 प्रतिशत मजदूर इस तरह की इकाइयों में काम करते हैं। दूसरी तरफ 57 प्रतिशत चीनी मजदूर 200 से ज्यादा श्रमिकों वाली बड़ी इकाइयों में काम करते हैं। उल्लेखनीय है कि चीन में मध्यम दर्जे
की कंपनियों की संख्या अच्छी-खासी है, लेकिन भारत में इस तरह की इकाइयां गिनती की हैं। चीन को पटखनी देनी है तो हमें अपने लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों को बढ़ावा देना होगा।
साभार:: पाञ्चजन्य

स्त्री-पुरुष एक ही तत्व के दो प्रकटीकरण- परम पूज्य डा. भागवत

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 हिन्दू जीवन दृष्टि में स्त्री-पुरुष
एक ही तत्व के दो प्रकटीकरण- डा0 भागवत
- स्तम्भ लेखक संगोष्ठी का समापन
 जयपुर, 13 सितम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूज्य श्री मोहनराव भागवत ने दो दिवसीय स्तम्भ लेखक संगोष्ठी के समापन पर रविवार को कहा कि हिन्दू जीवन दृष्टि के आधार पर ही सारे विषयों को और समस्याओं को देखना चाहिए। हिन्दू जीवन दृष्टि एकात्म होने के नाते स्त्री-पुरुष को एक ही तत्व के दो प्रकटीकरण के रूप में देखती है, इसलिए समानता के बदले एकत्व पर उसका बल है। 

श्री भागवत ने कहा कि भारत की परिवार व्यवस्था का मूल्य और महत्व अनेक चुनौतियों के बावजूद अक्षुण्ण टिका हुआ है। यह हिंदू समाज की एक ताकत है। अपनी जड़ों की पहचान के साथ जड़ों को मजबूत करते रहने से पश्चिमीकरण या ऐसे अनेक आक्रमणों का मुकाबला करने की शक्ति समाज में निर्माण होगी। 

उन्होंने कहा कि गलत रूढ़ियों को नकारते हुए शाश्वत जीवन मूल्यों के आधार पर दुनिया से अच्छी बातों को स्वीकार करने की भारत की परम्परा रही है। इसी के आधार पर समाज संगठित होकर खड़ा रहेगा और सारी मानवता को जीवन का उद्देश्य और जीवन की दिशा देने का कार्य वह सक्षमतापूर्वक करेगा।

श्री भागवत ने कहा कि आज वैज्ञानिक कसौटियों पर प्रचलित हिंदू धर्म का विचार करने की आवश्यकता  है, कसौटियों पर खरा नहीं उतरने वाली बातों को छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि समन्वय को लेकर सृष्टि को आगे बढ़ाने का सामर्थ्य सिर्फ हिन्दू धर्म में ही है। इसके लिए हमें सनातन मूल्य और आधुनिक परिस्थितियों को जोड़ कर आगे बढ़ना होगा।

सरसंघचालक जी के समापन भाषण के पूर्व प्रो. राकेश सिन्हा, एडवोकेट मोनिका अरोरा, डॉ. सुवर्णा रावल और श्रीमती मृणालिनी नानिवडेकर ने हिन्दू चिंतन में नारी विमर्श, मीडिया, राजनीति एवं कानूनी प्रावधान के क्षेत्रों में महिला के सामने चुनौती विषयों पर अपने विचार रखे। 

महिला विषयक भारतीय दृष्टिकोण संगोष्ठी - झलकियाँ

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महिला विषयक भारतीय दृष्टिकोण विषय पर स्तम्भ लेखक संगोष्ठी - झलकियाँ
 

















संघ वातावरण बनाएगा, जनता काम करेगी !

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सत्ता नहीं, जनता करेगी बीस वर्ष में सपने पूरे



जयपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत इन दिनों राजस्थान प्रवास पर हैं। हाल ही दिल्ली में हुई भारतीय जनता पार्टी और संघ की समन्वय बैठक में केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद एजेंडे से हटने को लेकर संघ की केंद्र सरकार से नाराजगी चर्चाओं में छाई हुई है। 

इधर, देश में भ्रष्टाचार, आरक्षण जैसे मुद्दे फिर तेजी से मुंह उठा रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में मंगलवार को मोहन भागवत एवं पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के मध्य जयपुर के भारती भवन में राष्ट्रहित से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।
कोठारी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विश्व का सबसे बड़ा जन संगठन बताते हुए कहा कि जितना बड़ा यह संगठन है, उतनी हीअधिक देशवासियों को इससे उम्मीदें भी हैं। 
ऐसे में उन्होंने भागवत से जानना चाहा कि संघ प्रमुख के रूप में वे देश के भविष्य की कैसी तस्वीर देखते हैं और देशवासियों को देश के बारे में कैसा सपना दिखाना चाहते हैं। 
उन्होंने कहा कि हम यह समझना चाहते हैं कि आने-वाले बीस-तीसवर्षों के भारत के लिए आपका क्या सपना है?
 
भागवत ने कहा कि मध्यकाल के दौरान बार-बार होने वाले हमलों ने देशवासियों के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाई थी। सनातन धर्म भी अव्यवस्था का शिकार होने से नहीं बच पाया। 

लेकिन पिछले कुछ दशकों में देशवासियों का न सिर्फ आत्मविश्वास लौटा है, बल्कि अब वे आने वाले समय में भारत को तेजी से आगे बढ़ता देख रहे हैं। उन्होंने विश्वास प्रकट किया कि अपने सांस्कृतिक वैभव के साथ अगले बीस वर्षों में भारत विश्व का अग्रणी और शक्ति-साधन सम्पन्न देश बन जाएगा। 

उन्होंने कहा, 'इस देश के मूल्यों की रक्षा में अपने-आप को झोंक देने वाले लोग अपने जीते जी इस सपने को पूरा होते देखेंगे-ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। कई पुराने स्वयं सेवक भी ऐसे ही सवाल करते हैं। मैं उनसे कहता हूं, इस सपने को पूरा होते देखने के लिए उन्हें बीस साल और जीना होगा।

उन्होंने कहा कि इस तरह के सपने पूरे करना आसान नहीं होता । ऐसे सपने सरकार नहीं, जनता के भरोसे पूरे होते हैं। जनता देश को आगे बढ़ते देख रही है। हम जनता के बीच जाएंगे और वातावरण बनाएंगे। सपनों को पूरा करने का काम जनता ही करेगी। 
परिवर्तन हमेशा जनता ही लाती है, सरकार नहीं। भागवत ने कहा-'जैसा वातावरण तैयार हो रहा है, उसे देख कर कह सकते हैं-अखंड भारत का सपना भी पूरा होगा। भारत के आसपास के देशों में सरकारें भले ही अलग-अलग रहीं, लेकिन ये देश समान हितों के लिए भारत के नेतृत्व में एकजुट हो जाएंगे।
 
इन देशों में भले ही धर्म भी दूसरे हों, पर इनके नागरिकों की जीवन पद्घति और जीवन-मूल्य एक जैसे हैं। उन्होंने विश्वास प्रकट किया कि सनातन धर्म समय के साथ अपने आप में परिवर्तन लाएगा। 

भाजपा भटकेगी तो संघ रोकेगा
कोठारी का कहना था कि देशवासी तो मौजूदा सरकार को संघ का ही राजनीतिक अंग मानते हैं और संघ के दिए एजेंडे पर ही यह सरकार सत्ता में आई। 
पर आज सरकार उस एजेंडे से हटती दिखाई दे रही है। देशवासियों का भरोसा हिला है। इसका भाजपा को फर्क पड़े न पड़े, संघ की छवि पर अवश्य असर पड़ेगा। उन्होंने इस बिन्दू पर भागवत के विचार जानने चाहे।

भाजपा भटकेगी तो संघ रोकेगा
सरसंघचालक ने कहा कि संघ समाज का संगठन है। सरकार या सत्ता में इसका प्रत्यक्ष तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं है। यह सही है संघ के स्वयंसेवक अनेक संगठनों के साथ, भाजपा और सरकार में भी हैं। पर वे अपने-अपने स्थान की परिस्थिति के अनुरूप काम करने को स्वतंत्र है। संघ से उन्हें विचारधारा मिली है, उद्देश्य मिला है। 
काम वे कैसे भी करें, मुख्य उद्देश्य-राष्ट्र को सनातन जीवन मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का-उन्हें ध्यान में रहना चाहिए। जिस तरह भारतीय मजदूर संघ में काम कर रहे स्वयंसेवकों को नारे भी लगाने होते हैं, प्रदर्शन भी करने होते हैं, उसी तरह सरकार चलाने में भी कई तरह की मजबूरियां सामने आती हैं। सत्ता कई कमजोरियां भी लाती है। 
हमारा मानना है-मंजिल हमेशा ध्यान में रहनी चाहिए, रास्ते सीधे भी हो सकते हैं और घुमावदार भी। भाजपा के पीछे संघ खड़ा है वह गलती करेगी या मंजिल से भटकेगी तो हम टोकेंगे, समझाएंगे। समझाते रहे भी हैं। 

बड़े मुद्दों का हल दीर्घकालीन
बातचीत में आरक्षण के मुद्दे की चर्चा करते हुए कोठारी ने कहा कि आरक्षण को जिस उद्देश्य से शुरू किया गया था, उसके विपरीत अब यह नुकसान ज्यादा पहुंचा रहा है। गांव-गांव तक में हिन्दू समाज दो वर्गों में बंट गया है। 
पिछड़ों के विकास की मूल अवधारणा पीछे छूट गई और समाज में कटुता बढ़ गई। कोठारी ने कहा कि समानता के हक के लिए युवा पीढ़ी को तैयार किया जाना चाहिए। आरक्षण गरीबों के लिए ही होना चाहिए। उन्होंने जानना चाहा कि इस स्थिति को क्या संघ एकता और अखण्डता के लिए खतरा नहीं मानता? 
भागवत ने माना कि आरक्षण की अवधारणा आज नुकसान पहुंचा रही है। इसका कारण यह है कि यह सामाजिक न होकर राजनीतिक अवधारणा है।
इसका हल सामाजिक स्तर पर ही हो सकता है। सामाजिक स्तर पर ही पिछड़े लोगों का उत्थान संभव है। इसके लिए नया वातावरण बनाना होगा। संघ इसके लिए पूरे प्रयास करेगा।

समान नागरिक संहिता, बांग्लादेशियों की घुसपैठ जैसे मूलभूत मुद्दों पर काम नहीं होने के कोठारी के सवाल पर भागवत ने कहा कि कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं, जिनका हल दीर्घकालीन होता है, बस ध्यान यह होना चाहिए कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं या नहीं। 
ये भी ऐसे ही मुद्दे हैं। बांग्लादेशियों की घुसपैठ रोकने के लिए तारबंदी हुई, वार्ताओं के दौर हुए। आगे भी और हल निकलेगा। कोठारी का कहना था कि ये महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिन पर समयबद्घ और ठोस कदमों की आवश्यकता है, तभी देशवासियों में विश्वास पैदा होगा। 

संघ वातावरण बनाएगा, जनता काम करेगी
भाजपा शासित प्रदेशों के शासन का जिक्र करते हुए कोठारी ने कहा कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विकास को आप देख ही रहे हैं। इन राज्यों में आम आदमी की चिंताएं दिखती ही नहीं। प्रमुख मुद्दे हों या भ्रष्टाचार के आरोप, प्रधानमंत्री से लेकर हर स्तर पर मौन है। ऐसे में देशवासियों को आपसे अपेक्षा है कि आप तो मौन नहीं रहेंगे। 

सर संघ चालक ने इस पर कहा कि वे समय-समय पर समाज के विभिन्न प्रतिनिधियों से मिलते रहते हैं, उनसे बात करते हैं। कई मुद्दे ऐसे हैं-जिनका हल सरकारें नहीं, केवल समाज ही निकाल सकता है। जिसके लिए वातावरण तैयार किया जा रहा है। स्वयं के मौन की बात पर उन्होंने मुस्कुरा कर कहा कि वे साल में एक बार विजयदशमी पर सार्वजनिक रूप से बोलते हैं।

बातचीत के दौरान कोठारी ने पश्चिम के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए हिन्दी भाषा को समयबद्घ तरीके से काम काज की भाषा बनाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता बताई। इससे ही 'इंडिया की जगह 'भारत''स्थापित होगा।

उन्होंने संविधान से धर्म निरपेक्षता के नाम पर सनातन परम्परा के प्रतीकों के चित्रों को हटाने को भी गलत बताया। भागवत ने उनके विचारों से सहमति प्रकट करते हुए कहा कि हिन्दी के लिए वे निश्चित ही कदम उठाएंगे। 

बातचीत के दौरान भागवत ने पत्रिका के संस्थापक कर्पूर चंद्र कुलिश के विजयदशमी कार्यक्रम में शामिल होने का भी जिक्र किया। इस मौके पर क्षेत्रीय प्रचारक दुर्गादास तथा प्रांत प्रचारक शिवलहरी भी मौजूद थे।

'अंतिम व्यक्ति के उद्धार से निकलता है देश की प्रगति का मार्ग' - परमपूज्य सरसंघचालक श्री भागवतजी

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'अंतिम व्यक्ति के उद्धार से निकलता है देश की प्रगति का मार्ग'
- परमपूज्य  सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत जी  का विशेष साक्षात्कार



एकात्म मानव दर्शन के माध्यम से देश के अंतिम व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का मार्ग दिखाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती को लेकर सारे देश में एक अनूठा उत्साह है। उनके द्वारा प्रतिपादित विचारों के आधार पर खड़ा राजनीतिक संगठन इस समय देश का संचालन सूत्र संभाले है तो उससे देश के मूल्यों और जीवन आदर्शों के आधार पर राष्ट्र का विकास करने की अपेक्षा सहज स्वाभाविक है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती और देश के सम्मुख उपस्थित विभिन्न विषयों के संदर्भ में पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और आर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का विशेष साक्षात्कार लिया। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश।
विशेष साक्षात्कार- 'अंतिम व्यक्ति के उद्धार से निकलता है देश की प्रगति का मार्ग'



* दीनदयाल जी के राजनीतिक दर्शन और आज की दलीय राजनीति में आपको क्या अन्तर दिखता है? क्या हकीकत वही है जिसका सपना देखा गया था?
दीनदयाल जी के एकात्म मानव दर्शन के अनुसार राजनीति को जैसा चलना चाहिए वैसी आज तो नहीं चल रही है, ये तो बिल्कुल साफ बात है। राजनीति में केवल दलीय स्वार्थ होना देश और समाज के लिए हितकारी नहीं होता। आज की राजनीति में राज, यह पहला शब्द है, नीति दूसरा शब्द है। इससे जो वातावरण बनता है उसमें राज्य पाना तो आसान हो जाता है लेकिन राज्य पाने के बाद नीति चलाना कठिन हो जाता है। इससे समाज में भी वही वातावरण बनता है। अभी समाज भी जो मूल्यांकन करता है वह जीत-हार के आधार पर ही करता है। जीतने के बाद कैसे रहें, हारने के बाद कैसे रहें, ये विचार नहीं होता। और जीत-हार तो उस समय की जो हवा रहती है, समस्यायें रहती हैं उसको वोटों के गणित के हिसाब से भुनाने पर निर्भर है। इसका कारण राजीनतिक दल या राजनीतिज्ञ या कोई संविधान है ऐसा नहीं है। लोगों की समझदारी भी विकसित नहीं हुई। इसलिए राज्य प्राप्त करने के लिए कोई एक दल नीति का अंगीकार करके चले भी तो स्वार्थ का अंगीकार करके चलने वाले दल आगे होते हैं। लोगों की भावनाओं से खेलकर राज्य प्राप्त करना आसान है। ऐसी अवस्था में पहले राज्य प्राप्त करना फिर बाकी की चिन्ता कैसे करना, इस दौड़ में अगर शामिल होना है तो फिर राज की तरफ झुकना पड़ता है। ये मजबूरी सभी राजनीतिक दलों की दिखाई है।

जिन गरीबों के लिए आप काम करते हैं वे तो पैसा देने वाले लोग नहीं हैं। पैसे देने वाला पूंजीपति है जो बाद में वसूलता भी है। यह सब राजनीतिक दलों को करना पड़ता है।

इस चक्र से कैसे बाहर आना, इसका उपाय होना चाहिए। चुनाव सुधार अगर हुआ तो ये सारी बातें नहीं चलेंगी। इस दुष्चक्र से बाहर आने के उपाय राजनीतिक दलों के हाथ में नहीं हैं। इस स्थिति को बदलना समाज के हाथ में है। मतदाता अगर समझदारी से मतदान करे, जाति या संप्रदाय के छोटे स्वाथार्ें से ऊपर उठकर देशहित में मतदान करे, तो फिर राजनीतिक दलों में उसके पीछे चलने का वातावरण बन सकता है।

* देश दीनदयाल जी की जन्मशती मनाने जा रहा है। एकात्म मानव दर्शन के विचार का पचासवां वर्ष है। आज के समय में क्या इसकी प्रासंगिकता या संदर्भ बदले हैं?
 
एकात्म मानव दर्शन की प्रासंगिकता बदलेगी नहीं क्योंकि जिन मूल तत्वों पर वह आधारित है वे शाश्वत हैं। सदा सर्वदा व्यक्ति के जीवन को केन्द्रित करने वाले तत्वों की प्रासंगिकता कभी नहीं बदलेगी। संदर्भ बदलते हैं, तद्नुसार उनको उसे व्याख्यायित करना पड़ता है। समाज की शक्ति उसके सबसे दुर्बल घटक की शक्ति जितनी ही होती है। कमजोर व्यक्ति समर्थ हो इसकी चिंता सबको करनी है। ये कभी नहीं बदलेगा।

* 50 वर्ष पहले जब दीनदयाल जी ने एकात्म मानवदर्शन का विचार दिया था तब समाजवाद शब्द का बोलबाला था। आज वैश्वीकरण का बोलबाला है। तो संदर्भ कितने बदले हैं और पुनर्व्याख्या कहां तक हुई है?

इन बातों का संदर्भ एक नहीं है। लेकिन मूल बात है विचारों के पीछे की प्रामाणिकता। समाजवाद की प्रामाणिकता, जों रूस में समाजवादी शासक आने के बाद कम होती गई, ऐसे ही पूंजीवाद की बात है। वे लोग शोषण करते हैं जिन्हें अपनी सुविधा की बात लेकर चलना है। जैसा बोलते हैं, वैसा करने वाले उदाहरण कम हैं।
आज रूस में समाजवाद और अमरीका में पूंजीवाद किन्हीं आदशार्ें पर चलता दिखाई नहीं दे रहा। दोनों में ही स्वार्थ मुख्य बात है। आज के संदर्भ में मुझे तो कोई विचारधाराओं की लड़ाई नहीं दिखती। अपने तत्वों पर प्रामाणिकता से चलने वाले लोग और उन तत्वों का उपयोग कर अपना उल्लू सीधा करने वाले, ये दो प्रकार के लोग हैं। यही दो पक्ष दुनिया में आज प्रबल हैं और सर्वत्र प्रभावी हैं। अपने यहां और सारी दुनिया में ऐसा ही है।

* राष्ट्रनीति के एक अंग के रूप में राजनीति पंडित जी के दर्शन का मूल थी। अब देश में एक राजनीतिक परिवर्तन हुआ है। क्या आपको लगता है कि तुष्टीकरण और समाज विभाजन की राजनीति खत्म होगी, नया दौर शुरू होगा?

यह तो करना ही पड़ेगा। नहीं तो नहीं होगा। केवल तुष्टीकरण करेंगे तो वे चल सकेंगे कि नहीं, इसका पता नहीं। समाज का प्रबोधन हो, समाज में स्वार्थ एवं भेदों के ऊपर उठकर देश के लिए जीने-मरने वाला भाव फैलाना आवश्यक है। समाज में इस दृष्टि से समझदारी बने और राजनीतिज्ञ भी इस कार्य में सहायक हों।

* एकात्म मानव दर्शन के क्रियान्वयन की दृष्टि से कौन से नीतिगत प्रयास हो सकते हैं?

हम किसी भी दर्शन या विचारधारा पर जब विचार करते हैं तो केवल भारत के लिए नहीं पूरी सृष्टि के हिसाब से विचार करते हैं। ज्ञानेश्वर महाराज ने कहा था विश्व स्वधर्म की स्थापना हो। डा़ हेडगेवार ने कांग्रेस अधिवेशन में भारत के लिए स्वतंत्रता और विश्व को पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त कराने संबंधी प्रस्ताव दिया था जो कांग्रेस को स्वीकार नहीं हुआ। भारतवर्ष के सामान्य लोगों के सामने भी अपने देश का लक्ष्य ठीक होना चाहिए। एकात्म मानव दर्शन भारतवर्ष के पुरुषार्थ को प्रकट करने वाला विचार है। ये केवल भारत की ही नहीं, विश्व की सभी छोटी-बड़ी समस्याओं का उत्तर दे सकता है। विश्व में जो भी व्यवस्था आई वह दमनकारी और भक्षण करने वाली थी। दीनदयाल जी ने एकात्म मानव दर्शन के माध्यम से धर्म संकल्पना पर आधरित एक मौलिक योगदान संपूर्ण विश्व को दिया है। विदेशी विचारधाराओं के आधार पर आज तक जो तंत्र बने वही अपने देश में भी चलता है। 'फैशन ऑफ द डे'जैसा चल रहा है। उसकी अच्छी बातें लेकर उसमें अपनी मिट्टी के 'इन्पुट्स'देकर हम भारत का कौन सा नया मॉडल खड़ा कर सकते हैं, ये तंत्र चलाने वालों को सोचना पड़ेगा। थोड़ा-बहुत वर्तमान तंत्र में ये आ रहा है। ये दिशा उन्होंने पकड़ी है तो बहुत अच्छा है। समर्थ भारत की अवधारणा वाला यह दर्शन विश्व के लिए कल्याणकारी, मंगलकारी है। ये बात आज भी प्रासंगिक है। इसे मूर्तरूप देने के लिए नीतिगत प्रयोग करने पड़ेंगे।

* देश कृषि प्रधान है लेकिन किसान सबसे ज्यादा व्यथित है। क्या पंडित जी के दर्शन के आलोक में आज के किसान की व्यथा के कारण एवं हल ढूंढे जा सकते हैं?

अपने देश के सारे जीवन मूल्य एवं समृद्ध संस्कृति जो बनी, उसका कारण है हमारा कृषि कार्य करना व वनों से जुड़ाव। इसी के साथ जीवन जीते-जीते हमारा विकास हुआ। हमने प्रकृति को भी अपने जैसा ही समझा। हम सारे विश्व में एक घटक के रूप में रहे। आज भी भारतवर्ष कृषि प्रधान देश ही है। भारत के हित, उसकी संस्कृति का वैभव और उसकी उन्नति के प्रेरक और जीवटता के मूल में कृषक एवं वनवासी समाज ही है। अब नीतिगत सुधारों को भी इसी दिशा में चलना पड़ेगा। केवल एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उद्योगों को हमने अपनी परम्परा के अनुसार संचालित करना है। यानी आज से 200 साल पहले जब अंग्रेजी शासन हावी रहा उस समय हमारी कृषि और उद्योग पर ग्रहण लग गया। अंग्रेजों के आने से पूर्व उद्योग जगत में भी हम पहले स्थान पर थे और हजारों वर्ष की परंपरा में उद्योग और कृषि का समन्वय करके हम चले। अभी ये जो प्रवृत्ति है किसानों का हित करने में ही किसानों का हित है, उद्योगों का हित करने में ही उद्योगों का हित है, ये एकांगी विचार पश्चिम की देन है। हमने तो ये विचार किया कि ये सब समन्वित रूप से ठीक चलने चाहिए। इसके लिए कृषकों का हित और उद्योगों का हित समान रूप से देखा जाए। हम उद्योग प्रधान या कृषि प्रधान जैसा कोई एक विशेषण नहीं लेना चाहते। हमें उद्योग भी चाहिए और कृषि भी चाहिए। गरीब से गरीब किसान भी गरीब न रहे। खेतीहर मजदूर भी आत्महत्य् ाा के लिए विवश न हो। ऐसी ही नीति और कानून होने चाहिए। परन्तु उसके साथ-साथ आज की दुनिया में उद्योग और तकनीकी के क्षेत्र में भी देश को आगे बढ़ाना पड़ेगा। औद्योगिकीकरण के बाद दीनदयाल जी ने कहा कि औद्योगिकीकरण जितना आवश्यक हो उतना होना चाहिए। बिना जंगल काटे और बिना खेती की उपजाऊ जमीन लिए हमें उद्योग लगाने पर विचार करना चाहिए। हमारे सारे लोगों का भरण-पोषण होने के साथ ही दुनिया को भी हम कुछ अन्न दे सकें इसके लिए किसान हित में कृषि के लिए कितनी जमीन आवश्यक है इसका आकलन करना चाहिए। जंगल कितने चाहिए ताकि पर्यावरण इत्यादि सब ठीक रहे और शेष जमीन में उद्योगों को हम कैसे आगे बढ़ा सकते हैं, इसका हिसाब लगाना होगा। इस दृष्टि से माननीय सुदर्शन जी ने झारखंड में एक प्रयोग करवाया था। जनजातीय समाज के लोगों को बुलाकर एक परंपरागत छोटी भट्टी से लोहा निर्माण की तकनीक को उन्होंने प्रदर्शित कराया। इसका आधार लेकर भारत को तकनीक के क्षेत्र में भी अपनी नई राह खोजनी होगी, नए प्रयोग करने पड़ेंगे। अमरीका-यूरोप की परिस्थिति एवं व्यवस्था अलग है। अत: वहां अलग प्रकार की प्रणाली होगी। समूची दुनिया में उनकी प्रणाली के अनुसार बदलाव करना अच्छा नहीं है। बाहर का जो अच्छा है उसे हम स्वीकार करें परंतु मुख्य रूप से हम अपने अनुसार ही तंत्र एवं नीति का निर्माण करें। मैं समझता हूं कि भारतवर्ष अपने यहां जो तकनीक, विद्या और परम्परा है, उसका समन्वय करके सबको सुखी रखने वाली व्यवस्था दे सकता हैे।

* लोकतंत्र  दबाव समूहों से मजबूत होता है, ऐसा राजनीति शास्त्र में विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों तक पढ़ाया जाता है। दीनदयाल जी का दर्शन एक-दूसरे की आवश्यकता समझते हुए आगे बढ़ने की बात करता है। 'वन रैंक वन पेंशन 'या भूमि अधिग्रहण के लिए आन्दोलन करने वाले किसान या आरक्षण की एक हवा उठाने का प्रयास, एकात्म मानव दर्शन के संदर्भ में इनको आप कैसे देखते हैं?

मुझे लगता नहीं कि एकात्म मानव दर्शन ने दबाव समूहों को नकार दिया है। दबाव समूह क्यों बनते हैं? प्रजातंत्र में कुछ आकांक्षाएं होती हैं, लेकिन दबाव समूहों के माध्यम से दूसरों को दुखी करके इन्हें पूरा नहीं किया जाना चाहिए। सब सुखी हों, ऐसा समग्र भाव होना चाहिए। लेकिन देश के हित में हमारा हित है, ये समझकर चलना समझदारी है। शासन को इतना संवेदनशील होना चाहिए कि आन्दोलन किए बिना समस्याएं ध्यान में लेकर उनके हल के प्रयास करें। एकात्म मानव दर्शन के प्रकाश में सरकार अलग है, यह सोच बदलने की जरूरत है। आपको पंखे की हवा चाहिए और मुझे नहीं चाहिए। हो सकता है हम दोनों तय करें कि, अच्छा पंखा 4 पर मत चलाओ, 1 पर चलाओ। इसके आधार पर बात आगे बढ़ती है। आगे बढ़ने का रास्ता संघर्ष नहीं, समन्वय है। इसलिए पूरे समाज के हित में हमारा हित है, ये दृष्टि शासनकर्ताओं और समाजवेत्ताओं,  दोनों की आनी चाहिए। उचित संतुलन दोनों ओर से होना चाहिए। वास्तव में तो ये दो पक्ष हैं ही नहीं, एक ही समाज है, सत्ता से एक अंतिम फटेहाल व्यक्ति तक, ये समाज एक इकाई है। और किसी एक वर्ग के द्वारा किसी एक के हित को लगातार दबाते रहना, यह समूचे हित के खिलाफ है। ये ध्यान में रखकर इस दृष्टि से कार्य होना चाहिए।

* एक विसंगति दिखती है। आपके कहने में आया कि समाज उतना समझदार नहीं है परन्तु जब सबसे कमजोर कड़ी पर ही एक आदर्श व्यवस्था खड़ी करने की जिम्मेदारी आ जाती है तो आपको नहीं लगता कि ये व्यवस्था व्यावहारिक कम है आदर्शवादी ज्यादा है? इसे जमीन पर उतारना सरल नहीं है? जो व्यक्ति अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है, अभी इतना समझदार नहीं हुआ कि अपने हित से आगे कुछ बड़ा सोच पाए, ऐसे में वही उस जिम्मेदारी का केन्द्र बन जाए। इस स्थिति को आप कैसे देखते हैं?

ये स्थिति बनती है, लेकिन तब तक एक राह भी है, जो आप देख रहे हैं। पर्याय होता तो समस्या खड़ी न होती, शाासन को अपनी नीतियां प्रभावी बनानी चाहिए। ये दोनों पर्याय का समूह हैं। समाज को सही दिशा में हमें ले चलना है। उस नजरिये से ये आज की स्थिति में उतर सकता है कि नहीं ये करके देखना पड़ेगा। क्या हम इसको कर सकते हैं? मेरा मानना है कि अब तक जितने राजनीतिक दल हैं उनमें 'हां हम ये कर सकते हैं'की दृढ़ता कम दिखायी दी है। ऐसा अभीष्ट अभी तक पूर्ण नहीं हुआ है, लेकिन हमको पूर्ण करना है। ये सत्ता की भी समझ में आए और समाज की  भी समझ में आए तो सब ठीक हो जाएगा। विषम परिस्थिति में भी चलना पड़ता है कभी-कभी। फिर स्थितियां अनुकूल हो सकती हैं। घोष वादन सतत् चलना चाहिए लेकिन कभी ऐसी परिस्थिति आती है कि घोष बजता ही नहीं, लेकिन लोग बिना घोष वादन के भी संचलन में अपने-अपने कदम ठीक रखें, यह आवश्यक है। समाज में आज जो प्रयास चल रहे हैं उनमें कुछ आशा दिखती है और इस प्रकार सुशासन चल सकता है। सत्ता और समाज के आपसी सहयोग से देश बना है, इसके संघर्ष से नहीं बना है। एकात्म मानव दर्शन बिल्कुल व्यावहारिक बात है। इसे धरती पर उतारने के लिए हमको और कुछ करना पड़ेगा। जब तक हम प्रयोग द्वारा वह दिखा नहीं पाते तब तक हम इसकी व्यावहारिकता को सिद्ध नहीं कर सकते।

* केन्द्र एवं राज्यों के बीच खींचतान लगातार चलती रहती है। एकात्म मानव दर्शन के परिप्रेक्ष्य में यदि कहा जाए तो क्या किसी राज्य के लिए  राजनीति से प्रेरित  विशेष पैकेज होना चाहिए या राष्ट्र हित से प्रेरित होना चाहिए? और इस खींचतान का हल क्या है?

इसका तो एक ही हल है-सद्भाव। केन्द्र भी देश के लिए सत्ता चलाता है। राज्य भी देश के लिए सत्ता चलाता है। राज्य नामक इकाई देश में एकात्म है। यह अलग इकाई नहीं है। स्वायत्त नहीं है। हाथ कहे कि मैं स्वायत्त हूं, पैर कहे मैं स्वायत्त हूं, दिमाग कहे मैं स्वायत्त हूं। पूरा शरीर उसका है तो राष्ट्र-पुरुष के रूप में हम एक पूर्ण इकाई हैं। ये भाव अगर हैं तब सब ठीक है। और इसलिए पैकेज देते समय ये हमेशा ध्यान में होना चाहिए कि अपने शरीर के सब अंग राजनीति से प्रेरित नहीं हैं। लेकिन सब लोग उसका राजनीति के लिए उपयोग करते हैं और उस स्पर्धा में अगर हम हैं तो हमको क्या करना है। ये तो चलने वालों को तय करना पड़ता है। उन्हीं को ये तय करना पड़ता है कि इस स्पर्धा में भी आगे जाएं। यह बाद में राजनीति का ही साधन बन जाए, ऐसा हमको नहीं करना है। लेकिन हम ऐसा सोचने वाले लोग स्पर्धा में पिछड़ जाएंगे, उपयोग करने वाले लोग ही हावी हो जाएंगे और ये साधन बन जाएगा, उसे भी टालना है। इसे युक्तिसंगत तरीके से देखना और करना पड़ेगा।

आपने कहा कि प्रामाणिकता ही कसौटी होती है। कोई ऐसी नीति जिसमें आपको लगता हो कि ये ठीक है और पूरी प्रामाणिकता से लागू की गई, ऐसी नीतियों से एकात्म मानव दर्शन साकार हो सकता है। क्या ऐसी कोई एक नीति आपको दिखाई देती है जो लागू की गई  है या नहीं भी की गई है? आपकी क्या कल्पना है?

जैसे अपने संविधान में सामाजिक पिछड़े वर्ग पर आधारित आरक्षण नीति की बात है तो उसको राजनीति के बजाय जैसा संविधानकारों के मन में था, वैसा उसको चलाते तो आज ये सारे प्रश्न नहीं खड़े होते। संविधान में जब से यह प्रावधान आ गया तब से उसका राजनीति के रूप में उपयोग किया गया है। हमारा कहना है कि एक समिति बना दो। जो राजनीति के प्रतिनिधियों को भी साथ ले, लेकिन चले उन लोगों की जो सेवाभावी हों तथा जिनके मन में सारे देश के हित का विचार हो। उनको तय करने दें कि कितने लोगों के लिए आरक्षण आवश्यक है। कितने दिन तक उसकी आवश्यकता पड़ेगी। इन सब बातों को लागू करने का पूरा अधिकार उस समिति के हाथ में हो। ध्यान में रखना होगा कि ये सारी बातें प्रामाणिकता से लागू हों।

* एकात्म मानव दर्शन में शिक्षा और शिक्षा नीति, दोनों को काम से और संस्कार से भी जोड़ा गया है। आज के संदर्भ में यदि शिक्षा नीति को ठीक करना है तो आप क्या सुझाव देंगे?

पहले तो हमें प्रचलित सोच को ही एक नया रूप देना पड़ेगा, इसे बदलना पड़ेगा। दुनिया में जितने शिक्षा केन्द्र हैं सबको मालूम है कि शिक्षा एक तरफ पेट भरने की कला सिखाती है तो दूसरी तरफ एक अच्छा मनुष्य बनाती है। उस दृष्टि से अपने देश के मूल्यों के आधार पर देश की शिक्षा हो, ऐसा अपने यहां कभी सोचा ही नहीं गया। एक बार इस विषय पर विचार कर शिक्षा नीति की दशा और दिशा बदलने की आवश्यकता है। शिक्षा नीति में बहुत कुछ बदलना है। शिक्षा नीति का प्रारंभ शिक्षक से होना चाहिए। योग्य शिक्षक चाहिए। योग्य शिक्षक चाहिए तो शिक्षकों को भी वह प्रेरणा देनी पड़ेगी। शिक्षा पर सत्ता में बैठे लोगों का हस्तक्षेप कम हो। शिक्षा सत्य पर आधारित हो। सत्य पर आधारित शिक्षा नागरिकों में आत्मविश्वास भरने वाली होती है। शिक्षा मनुष्य को मनुष्य बनाने वाली संजीवनी है। और एक बात मैं कहता हूं कि शिक्षा केवल विद्यालय में नहीं होनी चाहिए, घर में, समाज के वातावरण में होनी चाहिए। दीनदयाल जी बार-बार समाज केन्द्रित शिक्षा की बात करते थे। हमें प्रामाणिकता से उस दिशा में सोचना और कदम बढ़ाना चाहिए। *

बाबासाहेब अम्बेडकरजी की अंतर्दृष्टि के अनुरूप हैं परमपूज्य सरसंघचालक जी के विचार

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बाबासाहेब अम्बेडकरजी की अंतर्दृष्टि के अनुरूप हैं परमपूज्य सरसंघचालक जी  के विचार

 प्रवीण गुगनानी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहनरावजी भागवत के आरक्षण व्यवस्था पर पुनर्विचार की आवश्यकता व्यक्त करने से वैचारिक तूफ़ान खड़ा हो गया है। संघ प्रमुख ने आरक्षण के औचित्य पर प्रश्न कतई नहीं किया है, यह स्पष्ट है। मीडिया ने जानबूझकर उनसे बीते वर्षों में समय-समय पर सार्वजनिक तौर पर उलझाने वाले आरक्षण आधारित प्रश्न सदैव किए हैं। बीते वर्षों में संघ प्रमुख ने आरक्षण पर जिस प्रकार के वक्तव्य दिए हैं उनसे संघ का आरक्षण के प्रति तार्किक समर्थन भी प्रकट होता रहा है। हमारा समाज और नव उपजे संचार माध्यम, यदि नवाचारों व प्रयोगधर्मिता पर बवाल खड़ा करने के स्थान पर आत्मपरीक्षण व आत्मसमीक्षा का अभ्यस्त होता तो आज परिस्थितियां कुछ और होतीं।

संविधान शिल्पी बोधिसत्व बाबासाहेब अम्बेडकर ने भारतीय समाज की इस प्रयोगधर्मिता पर विश्वास करके ही आरक्षण का तर्क तथा समय सम्मत ढांचा खड़ा किया था। हाल के अपने साक्षात्कार में सरसंघचालक जी ने आगे कहा कि आरक्षण का राजनीतिक उपयोग हो रहा है और अब समय आ गया है कि एक अराजनीतिक समिति का गठन किया जाए जो यह परिक्षण करे कि किसे और कितने समय के आरक्षण की आवश्यकता है। आरक्षण नीति पर पुनर्विचार मात्र का विचार व्यक्त करने से समाज में इतना वितंडा हो तथा इतना भय निर्मित किया जाए ऐसा हमारा भारतीय समाज कभी नहीं रहा! हमारा समाज तो सदा से प्रयोगधर्मी व नवाचारों के विकास वाला समाज रहा है। सरसंघचालक मोहन भागवतजी के व्यक्त विचारों का यदि किसी प्रयोगशाला में परीक्षण हो सकता है तो वह केवल बाबासाहेब की वैचारिक प्रयोगशाला ही हो सकती है। आज के समय में संघ प्रमुख द्वारा व्यक्त विचार वस्तुतः बाबासाहेब की अंतर्दृष्टि तथा उनके मानस में चल रहे भविष्य बोध का प्रकटीकरण मात्र ही है।
भारत की चरों दिशाओं में जन्मे और आदरपूर्वक स्वीकार किए गए समाज विज्ञानी इस बात का ज्वलंत प्रतिनिधित्व करते हैं; इनमें ज्योतिबा फुले, बोधिसत्व बाबासाहेब, छत्रपति साहू जी महाराज, सावित्रीबाई फुले, श्रीनिवास पेरियार, अयोथिदास पंडितर, नारायण स्वामी आदि प्रमुख हैं। इस राष्ट्र का मुख्य हिन्दू समाज मूलतः उन्नयनोमुखी, बहिर्मुखी, प्रयोगधर्मी व समय-समय पर नव-विशिष्ट विचारों का जन्मदाता समाज रहा है। तनिक कल्पना कीजिए कि जब इन उपरोक्त लिखित महान संतों ने अपने समय में अपने विचारों को समाज के सम्मुख रखा होगा तो उन्हें कितना साहस व शक्ति लगी होगी? स्पष्टतः स्वीकार किया जाना चाहिए कि इन महान संतों व प्रयोगधर्मियों की बातों को सुनने, समझने व परीक्षण करने की प्रवृत्ति सदैव हमारे समाज में उपस्थित रही है।

यदि हमारा भारतीय हिन्दू समाज सदा से चैतन्य, जागृत व संवेदनशील व अर्पण भाव का धनी न रहा होता तो ये संत समाज में कभी भी आदरपूर्ण स्वीकार नहीं किए गए होते। यद्यपि इनकी स्वीकार्यता के पीछे सदैव संघर्ष रहा है तथापि स्वीकार्य हो जाना हमारे तत्कालीन व वर्तमान समाज के परिपक्व, परिवर्तन व प्रयोगधर्मी रहने का अकाट्य प्रमाण है। वस्तुतः इस देश में कांग्रेस और वामपंथियों ने स्वतंत्रता पूर्व और प्रारम्भिक स्वातंत्र्योत्तर दौर में बाबासाहेब के सामाजिक न्याय की अवधारणा को वर्ग संघर्ष का नाम देने का जो साशय प्रयास किया वह दुष्प्रयास बाद के दशकों में देश की नसों में विष की भांति प्रवाहित हुआ। इस विष ने ही बाद के वर्षों में आरक्षण जैसे पुण्य शब्द को एक ततैया शब्द बना डाला।

महाड़ आन्दोलन जैसे संघर्षों के उन दिनों में जब महात्मा गांधी देश में सर्वाधिक स्वीकार्य थे और बाबासाहेब से उनके मतभेद सार्वजनिक थे। तब डॉ.भीमराव आंबेडकर देश में हिंदुत्व और जातिवाद के नाम पर पनपी सामाजिक विषमता और सामाजिक असुरक्षा के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढाते हुए स्पष्टता से कह रहे थे कि उनका सामाजिक न्याय से आशय सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक समानता और सामाजिक स्वतंत्रता से है। और सामाजिक सुरक्षा से आशय प्राण, परिजन, आजीविका और संपत्ति की सुरक्षा से है और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के निष्कंटक प्रवाह से है। बाबासाहेब की बड़ी ही स्पष्ट भाषा और अभिव्यक्ति के बाद भी संकीर्ण राजनीतिक मानसिकता के चलते कांग्रेस के कई नेताओं ने उनकी भूमिका को संदिग्ध बनाने और इतर दलित समाज में उनकी स्वीकार्यता कम करनें के लिए बदनाम किया।

बाबासाहेब के विरुद्ध कांग्रेस का यह जन्मजात पूर्वाग्रह व बाद के वर्षों का सत्तामोह भारत में जातिगत समीकरणों को इस कदर उलझा गया कि भारतीय समाज की राजनीतिक प्रयोगधर्मिता व आत्मपरीक्षण की प्रवृत्ति ही समाप्त होती चली गई। स्मरण रहे कि एक समय में हम हमारे इस प्रगतिशील व प्रयोगधर्मी आचरण से ही हम एक ओर सोने की चिड़िया बनें तो दूसरी ओर विश्वगुरु भी कहलाए! इसके आगे चले तो हमारे राष्ट्र-समाज ने यह भी देखा कि जब हम नवविचार, नवआचार, नवचरित्र से तनिक दूरी बना कर परिवर्तनों को नकारने लगे तब हम न तो सोने की चिड़िया रहे और न ही विश्वगुरु! अपितु हम तो पिछले कुछ दशकों में आत्मग्लानि, आत्मसंकोच तथा आत्मविश्वास विहीन समाज के रूप में भी दिखे थे! निस्संदेह यह कहना होगा कि इस स्थिति की जवाबदारी केवल परिवर्तन हीनता से भरे हुए एक दौर पर ही आती है। साथ ही यह भी कहना होगा कि विश्व के साथ अपने संवाद-संचार का मिलान गलत दृष्टियों से करने का व पश्चिमोंन्मुखी समाज निर्माण का जो निकृष्ट कार्य पिछले दशकों के कांग्रेस काल में हुआ; वह भी इन परिस्थियों हेतु मुख्यतः जवाबदेह है।

हमारे समाज के समय की धुरी पर चलने के एक बड़े उदाहरण के रूप में देखें तो उसके एक प्रतिनिधि तौर पर कोल्हापूर के छत्रपति साहूजी महाराज का समय दिखता है जब उन्होंने 1902 दक्षिणी विंध्य के प्रेसीडेंसी रियासतों में पिछड़े वर्गों हेतु आरक्षण का प्रारम्भ किया था। बड़ी ही व्यापक सोच का यह आदेश भारत में प्रथम आरक्षण केन्द्रित अधिसूचना के रूप में जाना जाता है। 1932 के ‘पूना समझौता’ की परिस्थितियों में से कांग्रेस नेतृत्व के कुछ दुराग्रहों, पूर्वाग्रहों को घटा दिया जाए तो इसे भी हम हमारें सामाजिक नवाचार का एक विशिष्ट उदाहरण कह सकते हैं। स्वतंत्रता पश्चात मध्य का एक दौर रहा जब हमारी राजसत्ता जातिगत असंतोष तथा उनमें विभिन्न स्तर पर आती विसंगतियों को समझ पाने में असफल रही। अपने समाज को समय के साथ चैतन्य तथा जागृत करने के स्थान पर उसे बैसाखियों का आदती व लती बना देने की आत्मघाती व तुष्टिकारक नीतियों का ही परिणाम रहा कि भारत को 1990 का मंडल कमंडल जैसा भयावह दावानल झेलना पड़ा। उस समय वोट केन्द्रित भारतीय सत्ताधीशों का हो न  हो किन्तु भारतीय समाज ऐसा अवश्य था कि इस अनियंत्रित मंडल उलझन के बाद हमारे समाज ने जातिगत संवेदनाओं को पहचाना भी और उस अनुरूप स्वयं को ढाला भी।

बाबासाहेब आंबेडकर ने जिस जातिगत विसंगति और असमानता के शब्द को स्वतंत्र भारत के समक्ष रखा था उस शब्द में भारतीय जनमानस ने संवेदनशीलता के साथ प्राण स्थापना की। बंधुत्व तथा समता आधारित भारतीय समाज ने जातिगत असमानताओं के अंधे कुए में से स्वप्रेरणा से स्वयं को बाहर निकाला। मध्य में एक विचार जाति मुक्त भारत का भी चला जो संभवतः समय पूर्व जन्मा विचार था और जिसके कारण अनावश्यक टकराव उत्पन्न हुए थे। इन टकरावों में हिन्दू समाज ने समय-समय पर जातिगत संदर्भों में अपने चरित्र में अपने आपद धर्म का तथा प्रायश्चित भाव का मुखर तथा विनम्र प्रदर्शन भी किया है। अपने संघर्ष मार्ग में बोधिसत्व बाबासाहेब ने अपने जिस लेखन संसार के माध्यम से अपनी व्यथा, वेदना संत्रास व आशाओं को व्यक्त किया उसमें “द एनिहिलेशन आफ कास्ट” में भी उन्होंने जो विचार व्यक्त किए वे भारतीय समाज की मूल भावना व आत्मा के साथ समय आधारित परिवर्तनों के विचार थे। भारत में जातिगत परिस्थितियां केवल परिवर्तन शील नहीं रहेगी अपितु विकासशील भी रहेगी यह बाबासाहेब को विश्वास था किन्तु नेहरु के दौर में जन्मी राजनीतिक धुंध ने व बाद के दशकों में कांग्रेस के सत्ता मोह ने बाबासाहेब के इस अंतर्तत्व को कभी समझा ही नहीं। यदि समय के साथ साथ बाबासाहेब के विचारों पर नए नए प्रयोग, परीक्षण व उन पर शोध होते रहता तो हमारे देश को आरक्षण के नाम पर इतना भययुक्त वातावरण कभी न मिलता।  
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