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नेताजी से संबंधित फाइलें सार्वजनिक करने के लिए अभिलेखागार को सौंपी

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पीएमओ ने नेताजी से संबंधित फाइलों की पहली खेप सार्वजनिक करने के लिए सौंपी

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पीएमओ ने नेताजी से संबंधित फाइलों की पहली खेप सार्वजनिक करने के लिए सौंपी
Reported by Bhasha , Last Updated: शुक्रवार दिसम्बर 4, 2015

नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 33 गोपनीय फाइलों की पहली खेप शुक्रवार को प्रधानमंत्री कार्यालय ने राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंप दी और इससे इनके अगले महीने सार्वजनिक होने का रास्ता साफ हो गया।

एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक को आगे प्रसंस्करण, संरक्षण और डिजिटलीकरण के लिए फाइलें सौंपी और इस तरह से अंतिम तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय में मौजूद सभी 58 फाइलों को देश के लिए जारी किया जाना है।

फाइलों को सौंपे जाने से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने मंजूरी दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अक्तूबर को घोषणा की थी कि गोपनीय फाइलों की पहली खेप को 23 जनवरी से सार्वजनिक करने का काम किया जाएगा जिस दिन नेताजी की जयंती है। बोस परिवार लंबे समय से यह मांग कर रहा था।

पीएम मोदी ने यहां अपने आधिकारिक आवास पर नेताजी के परिवार से मुलाकात के बाद यह घोषणा की थी।

पीएम मोदी ने तब कहा था कि अपना ही इतिहास भूल जाने वाले लोग इतिहास नहीं बना सकते। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि उनकी सरकार किसी तरह से इतिहास को रोकने या दबाने में विश्वास नहीं करती और नेताजी से संबंधित सूचना भारत की जनता तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

प्रधानमंत्री ने नेताजी के परिजनों को यह आश्वासन भी दिया था कि वह दस्तावेजों को सार्वजनिक करने के मुद्दे को अन्य देशों के नेताओं के साथ भी उठाएंगे। गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय अपने पास मौजूदा फाइलों को सार्वजनिक करने के लिए अलग से कार्रवाई कर रहे हैं।

साल 2016 में मकर संक्रांती 15 जनवरी को : देवताओं के दिन का सूर्योदय

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इस वार मकर संक्रांती 15 जनवरी को
पृथ्वी 15 जनवरी से होगी उत्तरायण 
देवताओं के  दिन का सूर्योदय  होता है उत्तरायण 
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मकर संक्रांति से जुड़ी रोचक बातें, जो शायद आप नहीं जानते
Posted by: Ajay Mohan Published: Monday, January 11, 2016

[कला, संस्कृति एवं धर्म] मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है। प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। यूं तो प्रति मास ही सूर्य बारह राशियों में एक से दूसरी में प्रवेश करता रहता है। वर्ष की बारह संक्रांतियों में यह सब से महत्वपूर्ण है। साल 2016 में मकर संक्रांति स्मार्त विप्र कर्मकांड परिषद के ज्योतिष ज्योतिर्विद पंडित सोमेश्वर जोशी कहते हैं कि मकर राशि में प्रवेश करने के कारण यह पर्व मकर संक्रांति व देवदान पर्व के नाम से जाना जाता है। धर्मसिंधु के अनुसार जिस वर्ष रात्रि में संक्रांति हो तो पुण्य काल दूसरे दिन होता है, उस वर्ष मकर सक्रांति 14 जनवरी को होती है। चूंकि इस वर्ष सूर्य भारतीय समयानुसार 14 जनवरी को आधी रात 1.25 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा, इसलिये उसका पुण्यकाल 15 जनवरी को ही माना जाएगा। संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5.26 मिनट तक रहेगा।

मकर सक्रांति मनाए जाने का यह क्रम हर दो साल के अन्तराल में बदलता रहता है। लीप ईयर वर्ष आने के कारण मकर संक्रांति 2017 व 2018, 2021 में वापस 14 जनवरी को व साल 2019 व 2020 में 15 जनवरी को मनाई जाएगी। यह क्रम 2030 तक चलेगा। इसके बाद तीन साल 15 जनवरी को व एक साल 14 जनवरी को सक्रांति मनाई जाएगी। 2080 से 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी।
क्यों होता है ऐसा
पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता हैं। करीब 1700 साल पहले 22 दिसम्बर को मकर संक्रांति मानी जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति के चलते यह धीरे-धीरे दिसम्बर के बजाय जनवरी में आ गयी है।

मकर संक्रांति का समय हर 80 से 100 साल में एक आगे बढ़ जाता है। 19 वी शताब्दी में कई बार मकर संक्रांति 13 और 14 जनवरी को मनाई जाती थी। पिछले तीन साल से लगातार संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। 2017 और 2018 में संक्रांति 14 जनवरी को शाम को अर्की होगी।

- पिता को तिलक लगायें सूर्य और शनि की पोजीशन इस दिन बदलती है, लिहाजा इसे पिता पुत्र पर्व के रूप में भी देखा जाता हे इस दिन पुत्र को पिता को तिलक लगाकर स्वागत करना चाहिए।
-मलमास समाप्त होता है इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्राम्भ होने के कारण लोग दान पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं।
-गंगाजी भागीरथ के पीछे आयी थीं मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। इसीलिये इस दिन लोग गंगा स्नान भी करते हैं।
-पूर्वजों को तर्पण कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
-महाभारत से संबंध महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।
-भगवान विष्णु ने किया असुरों का अंत इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
-पोंगल इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
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मकर संक्रांति का महत्व
Karnika Updated on Jul 25th, 2015

भारत देश में हर साल 2000 से अधिक festival मनाये जाते है| इन सभी festival के पीछे महज सिर्फ परंपरा या रूढि बातें नहीं होती है, हर एक festival के पीछे छुपी होती है ज्ञान, विज्ञान, कुदरत, स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़ी तमाम बातें| हर साल 14 जनवरी को हिन्दूओं द्वारा मनाये जाना वाला festival मकरसंक्रांति को ही लें, पौष मास में सूर्य से मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है| वैसे तो संक्राति साल में 12 बार हर राशि में आती है लेकिन मकर और कर्क राशि में इसके प्रवेश पर विशेष महत्व है| जिसके साथ बढती गति के चलते दिन बड़ा तो रात छोटी हो जाती है| जबकि कर्क में सूर्य के प्रवेश से रात बड़ी और दिन छोटा हो जाता है|



मकर संक्रांति (Makar Sankranti)किसानों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है, इसी दिन सभी किसान अपनी फसल काटते है| मकर संक्रांति (Makar Sankranti) भारत का सिर्फ एक ऐसा festival है जो हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है| हिन्दूओं के लिए सूर्य एक रोशनी, ताकत और ज्ञान का प्रतीक होता है| मकर संक्रांति festival सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है| एक नए तरीके से काम शुरू करने का प्रतीक है| मकरसंक्रांति (Makar Sankranti) के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान, व पूण्य का विशेष महत्व है| इस दिन लोग गुड़ व तिल लगाकर किसी पावन नदी में स्नान करते है| इसके पश्चात् गुड़, तिल, कम्बल, फल दान किया जाता है| इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं, और खिचड़ी का दान तो विशेष रूप से किया जाता है| जिस कारण यह (Makar Sankranti) पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है|

भारत वर्ष में मकर संक्रांति (Makar Sankranti)हर प्रान्त में बहुत हर्षौल्लास से मनाया जाता है| लेकिन इसे सभी अलग अलग जगह में अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है|

• तमिलनाडु में इसे पोंगल नाम से मानते है|
• उत्तरायण नाम से इसे गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है| इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने का comptition रखा जाता है जिसमे वहां के सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है| गुजरात में यह एक बहुत बड़ा festival है इस दौरान वहां 2 दिन का national holiday भी होता है|
• मकरसंक्रांति नाम से बिहार, गोवा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, सिक्किम में मानते है|
• मगही नाम से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में मानते है|
• पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते है|
• माघ बिहू असम के गाँव में मनाया जाता है|
• कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत नाम से जानते है|
• उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहते है|
• कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा नाम से मानते है|

भारत के अलावा मकर संक्रांति (Makar Sankranti) दुसरे देशों में भी प्रचलित है लेकिन वहां इसे किसी और नाम से जानते है|
• नेपाल में इसे माघे संक्रांति कहते है| नेपाल के ही कुछ हिस्सों में इसे मगही नाम से भी जाना जाता है|
• thailand में इसे songkran नाम से मनाते है|
• Myanmar में Thingyan नाम से जानते है|
• Cambodia में moha sangkran नाम से मनाते है|
• श्री लंका में Ulavar Thirunaal नाम से जानते है|
• Laos में Pi Ma Lao|
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किसानों के लिये वरदान साबित होगी मोदीजी की नई फसल बीमा योजना

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डेढ़ से दो हजार में एक लाख की फसल बीमा

http://abpnews.abplive.in


By: शिशिर सिन्हा, बिजनेस एडिटर, एबीपी न्यूज़ | Last Updated: Wednesday, 13 January 2016

नई दिल्ली: आम लोगों को सस्ती कीमत पर जीवन व दुर्घटना बीमा सुरक्षा मुहैया कराने के बाद सरकार ने अब किसानी की सुध ली है. इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने नयी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर अपनी मुहर लगा दी. नयी योजना इस साल खरीफ फसलों के मौसम से शुरु की जाएगी.

योजना के तहत खरीफ फसलों (प्रमुख फसल – धान, समय – मई से सितम्बर) और रबी फसलों (प्रमुख फसल – गेहूं, समय – नवम्बर से मार्च) के लिए अलग-अलग प्रीमियम की दर होगी. पूरे देश भर में खरीफ फसलों के लिए किसानों को एक समान 2 फीसदी (बीमित रकम का), और रबी के लिए एक समान 1.5 फीसदी (बीमित रकम का) की दर से प्रीमियम चुकाना होगा. पूरे नुकसान के बराबर मुआवजा मिलेगा. एक चौथाई मुआवजा, दावा दायर करने के तुरंत बाद और बाकी नुकसान की रिपोर्ट आने के बाद दिया जाएगा. मुआवजे की रकम का भुगतान बैंक अकाउंट के जरिए होगा. एक बार प्रीमियम चुकाने पर एक फसल कवर होगा.

वैसे तो फसल बीमा योजना पहली बार 1999-2000 में लांच की गयी थी. 2010 में इसमें बदलाव किया गया. लेकिन इसमें कई तरह की कमियां रही. पहला तो ये कि देश भर में अलग-अलग इलाके मे प्रीमियम की अलग-अलग दर थी. प्रीमियम की औसत दर 15 फीसदी थी. दूसरी और नुकसान चाहे जितना भी हो, लेकिन फसल की कुल कीमत के 11 फीसदी से ज्यादा मुआवजा नहीं देने का प्रावधान था. वहीं बैंकों से कर्ज पर बीमा सुरक्षा जरूरी किए जाने से योजना में शामिल होने वालों की संख्या सीमित थी. इन्ही सब कारणों से फसल बीमा योजना ज्यादा कामयाब नहीं हो पायी और आज की तारीख में कुल खेती योग्य जोत का 23 फीसदी ही फसल बीमा के दायरे में लाया जा सका.

अब सरकार ने तय किया है कि जो किसान बैंक या वित्तीय संस्थानों से कर्ज ले या नहीं ले, सभी के लिए फसल बीमा योजना का विकल्प होगा. इसके साथ ही मुआवजे की सीमा खत्म करने और प्रीमियम की दर को कम और एक समान रख सरकार ने अगले तीन सालों में खेती योग्य जोत का कम से कम 50 फीसदी को नयी योजना के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है. चूंकि कुल प्रीमियम का एक हिस्सा बराबर-बराबर आधार पर केंद्र और राज्य सरकार चुकाएंगे, इसीलिए सरकार का खर्च भी बढ़ेगा. केद्र सरकार का खर्च 3,100 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,800 करोड़ रुपये पर पहुंचेगा. इतना ही खर्च राज्य सरकारों को भी उठाना होगा.

नयी योजना में एक और बड़ा बदलाव किया गया है. पहले सिर्फ खड़ी फसल के नुकसान पर ही बीमा का फायदा मिलता था. लेकिन अब यदि बीजाई के बाद छोटे-छोटे पौधों को प्राकृतिक आपदा से नुकसान पहुंचता है या फिर काटने के बाद खेत में रखी फसल को चक्रवाती या बेमौसम बरसात से नुकसान होता है तो भी बीमा सुरक्षा का फायदा मिलेगा. एक बात और, बीमा योजना का फायदा केवल प्राकृतिक आपदा या कीड़े के हमले से नुकसान की सूरत में ही मिलेगा. इसके साथ ही बर्फबारी, जमीन धंसने या सैलाब से फसल को होने वाले नुकसान पर भी इस योजना का फायदा मिलेगा. बहरहाल, आगजनी या जानवरों के खेत में घुस जाने से फसलों को होने वाले नुकसान को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है.

आलोचना करने से अच्छा है, समाधान ढूंढना – इंद्रेश कुमार जी

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समस्याओं की आलोचना करने से अच्छा है, उनका समाधान ढूंढना – इंद्रेश कुमार जी

January 13, 2016


गुडगांव (हरियाणा). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि कांग्रेस नहीं झुकती तो देश का विभाजन भी नहीं होता. बापू (महात्मा गांधी) चुप नहीं रहते तो आजादी की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ती और आज भारत अखंड होता. इंद्रेश जी स्वामी विवेकानंद व्याख्यानमाला के पहले दिन “भारत की सीमाएं-चुनौतियां व समाधान” विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.

गौरीकुंज सभागृह में सोमवार शाम उन्होंने कहा कि समस्याओं की आलोचना करने से अच्छा है, उनको दूर करने के लिए रास्ते निकालना, समाधान ढूंढना. सीमाओं पर विकास करने के लिए आयोग बनाने, कानून बनाने और पलायन रोकने का भी उन्होंने सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि आतंक, नक्सलवाद, अलगाववाद और साम्प्रदायिक दंगे में जी नहीं सकते. खुद्दार, स्वाभिमानी बनें. छुरा, बंदूक, बम समाधान नहीं. संवाद समस्याओं का समाधान है.

व्याख्यान के दौरान इंद्रेश जी ने स्वामी विवेकानंद का किस्सा सुनाया. उन्होंने कहा कि मॉरल वैल्यू (नैतिक मूल्य) और प्रोफेशनल वैल्यू को समझने में भूल नहीं करनी चाहिए. यूरोप में स्वामी जी से एक महिला ने कहा कि मैं ग्रेट मदर बनना चाहती हूं, मुझे तुम्हारे जैसा पुत्र चाहिए. इसलिए आपसे विवाह करना चाहती हूं. स्वामी जी ने जवाब दिया, मेरे जैसा ही क्यों आप मुझे ही अपना बेटा बना लो. इंद्रेश जी ने शब्दों को अमूल्य बताते हुए कहा कि न हिंसा में जीओ और न हिंसा करो. पांच मिनट मुस्कराने से फोटो सुंदर बनती है. हमेशा मुस्कराओगे तो जिंदगी सुंदर हो जाएगी. अंत में उन्होंने नाम स्मरण और लॉफ्टर क्रिकेट खेलकर लोगों को खूब हंसाया.

अंत में श्रोताओं के प्रश्नों के जबाब भी दिए. श्रोता राम पंवार के बांग्लादेश के सीमा से जुड़े एक सवाल के जबाब में उन्होंने कहा की बांग्लादेश की सीमा में 80 किलोमीटर में 2 बार नाला, तीन बार बांग्लादेश की जमीन आती थी. इस कारण 2015 में समझौता कर 7 हजार किलोमीटर जमीन ली और 16000 देना पड़ी. इससे स्मगलिंग कम हुई, आगे भी ऐसे सुधार होंगे.

श्रोता प्रवीण शर्मा के सवाल पर इंद्रेश जी ने कहा कि जिस दिन रिजल्ट दिखेगा, लोग भारत को हार्ड पावर नहीं देखना चाहते. यथार्थ हमें कुछ बनाना चाहता है. वर्ष 2015 में दुनिया के किसी देश की जय नहीं हुई. विश्व में जगह-जगह केवल भारत माता की जय हुई और किसी ने इस पर आपत्ति नहीं की.

कार्यक्रम की अध्यक्षता इकबाल शंकर गुलाटी ने की. अतिथि स्वागत ब्रह्मानंद पाराशर, श्रीराम परिहार ने किया. स्मृति चिह्न विनय नेगी और डॉ.सुभाष जैन ने भेंट किए. मंच पर हेडगेवर स्मारक समिति के महेंद्र शुक्ल, डॉ. शशांक होरे मौजूद थे. संचालन ललित पटेल ने किया. आभार कार्यक्रम संयोजक आशीष अग्रवाल ने व्यक्त किया.

मकर संक्रांति : "सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार"

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तीर्थ  यात्रा - "सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार"

बैरकपुर  में  पोस्टिंग  की  खबर  सुन  कर  मेरे  माता  पिता  को  बहुत  ख़ुशी  हुईI उनकी  वर्षों  की इच्छा थी  कि  गंगा  सागर  की  तीर्थ  यात्रा की  जाये, किन्तु यात्रा के बारे में सुनी गए बातें और कोलकाता में कोई व्यवस्था न होने के कारण उनकी यह इच्छा अधूरी रही थीI कोलकाता में मेरी पोस्टिंग उनकी इस इच्छा पूर्ति की दिशा में सहायक थाI

पिताजी ने नववर्ष पर पत्र लिख कर मुझे गंगा सागर की यात्रा की तैयारी करने के निर्देश दे दिएI मैंने सोचा कि अभी जनवरी में बोले हैं, तो उनके आने में कुछ समय तो लगेगा हीI किन्तु मेरे आश्चचर्य की कोई सीमा नहीं रही, जब अगले ही सप्ताह पिताजी और माँ बैरकपुर आ गएI

"मैंने सोचा कि गंगा सागर तो मकर संक्रांति में ही जाना चहियेI इस लिए मैं तुरंत आ गयाI"आते ही पिताजी ने कहाI "क्या तुमने सारी बातें पता की?"पिताजी की धार्मिक प्रवृति को ध्यान में रखते हुए मुझे इसका ख्याल रखना चहिये थाI पिताजी को आश्वस्त कर मैं इंस्टिट्यूट के कर्मचारियों से इसके बारे में पता कियाI खैर, हमारा गंगा सागर जाने का कार्यक्रम बनने लगाI

समाचार पत्रों में गंगा सागर स्पेशल ट्रेन के समय के बारे में पता कियाI योजनानुसार 13 जनवरी रात्रि आठ बजे हम तीनों लोग (माँ पिताजी और मैं) गंगा सागर की यात्रा पर निकल गएI योजना थी कि  सारी रात सफ़र कर 14 जनवरी को तडके गंगा सागर पहुँच कर और स्नान दान कर जल्दी ही लौट जायेंगे ताकि दिन ढलते हम सब वापस इंस्टिट्यूट पहुच जाएI मकर संक्रांति की भीड़ भाड में रफ़्तार तेज रखने और यात्रा में अधिक वजन
 ढोने से बचने के लिए, हम लोगों ने निर्णय लिया की सामान कम से कम रखा  जायेI केवल जरूरत के गरम कपडे रखे गएI भीड़ भाड में पॉकेट मारों से बचने के लिए रुपये भी केवल जरूरत भर ही रखने का फैसला हुआI सारी  तैयारी कर लेने के बाद हम लोग गंगा सागर की यात्रा पर निकल पड़ेI नीलगंज (बैरकपुर) से बस द्वारा  बैरकपुर रेलवे स्टेशन पहुंचेI लोकल ट्रेन से हम लोग  स्यालदाह  रेलवे स्टेशन पहुँच गएI नौ बज कर पंद्रह मिनट हुए थेI समाचार पत्र की सूचना के अनुसार काकद्वीप के लिए गंगा सागर स्पेशल लोकल ट्रेन रात्रि 11.30 पर खुलने वाली थीI यह ट्रेन स्यालदाह दक्षिण से खुलने वाली थीI स्यालदाह दक्षिण रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचने पर पता चला की लक्ष्मिकान्तपुर के लिए एक लोकल रात्रि 10.10 पर खुलने वाली हैI  वहां खड़े स्थानीय यात्रियों  ने सलाह दिया कि  चूँकि लक्ष्मिकान्तपुर काकद्वीप के रास्ते में ही हैं, और लक्ष्मिकान्तपुर से दूसरी लोकल ट्रेन मिलने की भी सम्भावना है, इसलिए हम लोग उस ट्रेन से लक्ष्मिकान्तपुर तक की यात्रा कर सकते हैंI यदि लक्ष्मिकान्तपुर में कोई कंनेक्टिंग ट्रेन न भी मिला तो 11.30 की गंगा सागर स्पेशल तो मिलेगा हीI हम लोगों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं थाI एक घंटे की बचत का सवाल थाI हम लोग तुरंत 10 नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँच गएI ट्रेन खडी थीI पूरी की पूरी ट्रेन लग भग खाली थीI हम एक खाली कम्पार्टमेंट में बैठ गएI लोकल ट्रेन अपने स्वभाव के अनुसार टाइम से खुली और बीच में पड़ने वाले सभी स्टेशन पर रुकते हुए लक्ष्मिकान्तपुर को चलीI धीरे धीरे ठण्ड महसूस होने लगी और माँ ने शौल से अपने को ढँक लियाI मैंने उठ कर सारी खिडकियों को  बंद किया  और केवल एक खिड़की से बाहर  का नज़ारा देखने लगाI बाहर घनघोर अँधेरा था और लोकल अपनी रफ़्तार से अपने लक्ष्य को बढती जा रही थीI  

रात्रि 11.50 पर यह लोकल ट्रेन हम लोगों को लक्ष्मिकान्तपुर स्टेशन पंहुचा दीI हम लोग भाग्यवान थे कि 12.00 बजे एक दूसरी लोकल काकद्वीप को खुलने के लिए खडी मिल गईI हम लोग जल्दी जल्दी दुसरे प्लेटफ़ॉर्म पर खडी इस लोकल में चढ़ गएI एक घंटे में करीब 1.00 बजे रात्रि हम लोग काकद्वीप पहुच गएI यहाँ से हमें हर्वूद पॉइंट जेट्टी  नंबर ८ से समुद्री जहाज से आगे की यात्रा करनी थीI

हर्वूद पॉइंट जेट्टी   नंबर 8, काकद्वीप रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर थाI अर्ध रात्रि में इस दूरी को तय करने के लिए दो ही साधन  वहां उपलब्ध थे: रिक्शा वान और एक ट्रक जो की बालू या ईट ढोने का काम करता होगाI इस ट्रक का डाला धुल धूसरित थाI फिर भी समय की बचत का ख्याल रखते हुए हम लोगों ने निर्णय लिया कि  ट्रक से ही चला जाया, जो बाद में गलत निर्णय साबित हुआ, जिसे पाठक बाद में महसूस करेंगेI 10 रुपये प्रति आदमी पर ट्रक वाला हम लोगों को लोत नंबर 8 ले जाने की लिए तैयार हुआI  वृद्ध  माँ-पापा को ट्रक पर बैठाना मुझे उचित तो नहीं लग रहा था, किन्तु और कोई विकल्प भी नहीं थाI किसी तरह लोगों की मदद से माँ-पापा को खुला ट्रक पर बैठायाI ट्रक चल पड़ीI जैसे जैसे ट्रक अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी ठण्ड से माँ-पापा को परेशानी महसूस होने लगीI  

5-6 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद ट्रक अचानक रुक गईI ट्रक से उतर कर पता करने पर पता चला कि  यहाँ से लोत नंबर 8 तक ट्राफिक जाम के वजह से ट्रक का आगे जाना संभव नहीं हैंI ट्रक पर सवार दुसरे यात्री ट्रक वाले से पैसा वापस करने की जिद करने लगेI मेरे पापा जो अब तक ट्रक से उतर चुके थे एक नेता पुत्र होने के नाते यात्रियों की इस भीड़ का नेतृत्वा  कर रहे थे और ट्रक वाले से पैसे मांगने में सबसे आगे थेI ट्रक वाला 8/- रुपये काट कर 2/- रुपये देने को तैयार थाI किन्तु पब्लिक का तर्क था कि चूँकि उन्हें लोत नंबर 8 तक ट्रक वाला नहीं पहूँचा पाया, इसलिए अलिखित कांट्रेक्ट का उल्लंघन हुआ और उसे पूरे पैसे लौटानें चहियेI

तभी मुझे एक रिक्सावान दिखा, जो खाली थाI कोल्कता में रहने वाले रिक्शा वान से परिचित होंगेI दरअसल यह तीन पहियों वाला रिक्शा ही है जिसके  सीट को हटा कर पटरे लगा दिए जाते हैं ताकि अधिक से अधिक सवारी  को ले जाया जा सकेI लोग कम से कम भाड़े में सफ़र करना चाहते हैं क्योंकि किसी भी तरह के सवारी किराये में वृद्धि कोल्कता वासी जल्दी स्वीकार नहीं करते हैं इसी के समाधान का एक उदहारण है रिक्शा वान, जिसमे अधिक से अधिक लोग कम से कम पैसे में सवारी कर पाते हैंI रिक्सा  वाले से बात करने पर वह 25/- रुपये प्रति हेड जेट्टी तक ले जाने के लिए तैयार हो गयाI मैं पापा को लगभग खीचते हुए इस रिक्सा वान में माँ के साथ बैठा दिया और रिक्सा वाले से चलने को कहाI करीब 1.30 अर्ध रात्रि हम लोग जेट्टी पर थेI मैं मन ही मन बड़ा खुश था कि हम लोग बड़े समय से अपनी योजना के अनुसार जेट्टी पहुच गए थेI हमें क्या मालूम था कि असली समस्या तो अब शुरू होने वाली थी.I

रिक्सा वाले को पैसे देकर एवं  माँ-पापा को पीछे से आने को कह कर, मैं जल्दी जल्दी आगे बढ़ कर  स्टीमर का टिकेट लेने के लिए टिकेट खिड़की पर गया, जहाँ काउंटर क्लर्क ने मुझे टिकट देने के बाद  बताया कि सागर द्वीप को पहला स्टीमर प्रातः 6.00 बजे जाएगीI मेरा सारा उत्साह इस एक जानकारी से रफू चक्कर हो गयाI इस का मतलब यह था कि अब हमें 4-5 घंटे खुली आसमान के नीचे स्टीमर खुलने के इंतज़ार में बिताना थाI प्रति टिकट 35/- रुपये देने के बाद में अपना मूंह लटकाए टिकेट खिड़की के बाहर  निकल आयाI तब तक माँ-पापा भी पहुँच गएI मेरे चेहरे पर उडती हवाइयां को देख कर पापा ने अन्देशा लगा लिया कि कुछ गड़बड़ हैI मेरे बताने पर पापा जरा भी नाराज नहीं हुएI बोले तीर्थ यात्रा यदि शारीरिक कष्ट के बिना  पूर्ण हो तो पुण्य नहीं मिलताI उनके चेहरे पर एक भी शिकन नहीं थीI

टिकट खिड़की से लेकर जेट्टी तक 3 किलोमीटर के पूरे रास्ते पर तीर्थ्यात्र्यों की लम्बी कतारबद्ध भीड़ थीI धीरे धीरे हम लोग उस भीड़ में से रास्ता बनाते हुई आगे की ओर बढ़ने लगेI चूँकि ठण्ड से बचने के लिए लोग कम्बल में दुबके हुए सो रहे थे इसलिए किसीने हमें टोका नहींI जेट्टी के काफी पास आकर हम लोग भी जगह बना कर बैठ गए और सुबह का इंतज़ार करने लगेI उस समुद्र तट पर उस दिन नहीं तो लाख तीर्थयात्री अवश्य होंगे पर ठण्ड और रात्रि के समय में, सुबह के इंतज़ार में बैठे यात्रियों के उस विशाल जन सैलाब में जरा भी हल्ला  गुल्ला नहीं हो रहा थाI निस्तब्ध शांति ब्याप्त थीI ऐसी शांति जो किसी मुनि के आश्रम में रहती हैंI तीर्थ यात्रियों के आत्मसंयम और अनुशासन का नायiब उदाहरण थाI लोगों में गजब का संतोष और पैसेंस दिखाI तीर्थ का असली महत्व यहीं समाज में आयाI

सुबह 6.00 बजे समयानुसार जेट्टी के गेट खुलेI हमें 6.30 पर खुलने वाली पहली स्टीमर में जगह मिल गयीI यह स्टीमर तीन तल का स्टीमर था जिसमे कम से कम दस हज़ार यात्री यात्रा कर सकते थेI मुरी गंगा क्रीक से होते हुए यह स्टीमर सागर द्वीप की ओर चलीI दो घंटे की यात्रा के बाद हमारा स्टीमर केचुबेरिया द्वीप के उत्तर पश्चिम तट पर आ लगाI गंगा सागर का धार्मिक स्थान इसी केचुबेरिया द्वीप के दक्षिण पूरब तट का समुन्द्र तट है, जहाँ गंगा समुद्र में जा मिलती हैं, और जहाँ राजा के पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुई थी, जिसके लिए राजा भागीरथ ने इतनी कठीन तपस्या की थीI केचुबेरिया के इस तट से गंगा सागर 30 किलोमीटर दूर हैI टैक्सी और बस सर्विस दोनों ही यहाँ से उपलब्ध हैंI टैक्सी भाडा 50/-  रुपैये प्रति ब्यक्ति और बस भाडा 20/- रुपैये प्रति ब्यक्ति हैI हमने बस से जाने का निश्चय कियाI इस बस ने हमें गंगा सागर 9.30 बजे पंहुचा दियाI इस प्रकार गंगा सागर की एक तरफ की यात्रा हम लोगों ने 12 घंटे में पूरा कियाI

इस तट पर मौजूद जन सैलाब का कोई अंत नहीं थाI लोग आते ही जा रहे थेI मेले में खोने से बचने के लिए एक गाँव के लोग एक झुण्ड में चल रहे थेI सामान्यतः इन ग्रामीणों का नेत्रत्व उनके ही गाँव का कोई पंडित कर रहा होताI  यहीं गंगा सागर  समुद्र तट पर तीर्थ यात्रियों का एक जत्था दिखा जिसका नेतृत्व गाँव का एक पंडित कर रहा थाI वह पंडित जब भी चिल्लाता "सारे तीरथ बार बार"उसके साथ के ग्रामीण जवाब देते "गंगा सागर एक बार"I  संभवतः वह पंडित गंगा सगर की यात्रा से वाकिफ था और अपने गाँव वाले की तीर्थ यात्रा में मदद कर रहा थाI "इस पंडित को इसका पुण्य अवश्य मिलेगाI यह इतने ग्रामीण लोगों की तीर्थ यात्रा करवाने में मदद कर रहा है"मैंने कहाI पर पापा मेरे मत से सहमत नहीं थेI "अरे यह तो इसका धंधा है जिसके लिए वह ग्रामीणों से पैसे लेगाI किसी त्याग की भावना से वह पंडित थोड़े न  परेशान हो रहा है.Iइस  तीर्थ का पुण्य तो तुम्हे प्राप्त होगा जो माँ-पापा को तीर्थ यात्रा करवा रहे होI"पापा के इस वचन से मैं अभिभूत हो गयाI मन में एक गहरे आत्मिक संतोष का अनुभव हुआI इस हल्ला गुल्ला में कुछ भी पता नहीं चल रहा थाI गंगा सागर के इस पवित्र तट पर जहाँ नदियों की देवी गंगा का सागर में विलय होता है यह मान्यता हैं कि इस पवित्र पावनी गंगा और सागर तट पर एक डुबकी लगाने मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती हैंI

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में यह उल्लेख है कि इक्शवाक वंश के राजा सगर को कोई पुत्र नहीं थाI पूजा पाठ और हवन यज्ञ आदि के बाद राजा की पहली पत्नी केशनी को एक पुत्र हुआ जिनका नाम अजम्यश रखा गयाI राजा की दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र हुएI जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो राजा के ये साठ हज़ार पुत्र, अश्वमेध यज्ञ के अश्व की सुरक्षा में लगेI देवराज इन्द्र जिन्हें हमेशा अपने सिंहांसन के खिसकने का  भय रहता था, ने अपने दूतों से इस अश्व को इसी गंगा सागर के तट पर तपस्या कर रहे कपिल मुनि के आश्रम में बांध देने को कहाI अश्व को खोजते खोजते राजा सगर के पुत्र इस आश्रम में जब पहुचे तो उन्हें वो अश्व बंधा मिलाI मुनि को उन्होंने  युद्ध के लिए तो नहीं ललकारा पर अपशब्द कहने लगेI मुनि जब तपस्या से उठे और उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो उनके क्रोध का कोई पारावार नहीं रहाI इस क्रोध की प्रचंड ज्वाला में राजा सगर के सभी साठ हज़ार पुत्र भस्म हो गएI राजा सागर को जब अपने पुत्रों  का कोई समाचार नहीं मिला तब उन्होंने अपने पौत्र अंशुमन को उनका पता लगाने भेजाI अंशुमन पूरी पृथ्वी पर अश्व को खोजते खोजते कपिल मुनि के आश्रम पर पहुचे जहाँ उन्हें अपने साठ हज़ार चाचाओं के भस्म के दर्शन हुएI राजा अंशुमन के द्वारा बार बार विनती करने पर मुनि कपिल ने ही इन साठ हज़ार आत्माओं के मोक्ष हेतु गंगा को पृथ्वी पर लाने का उपाय बतायाI राजा सगर के बाद राजा अजम्यश, फिर राजा अंशुमन और अंत में राजा बने भागीरथ को अंततः इस प्रयास में सफलता मिली और माँ गंगा ने धरती पर अवतरण  कियाI मुनि के श्राप से भस्म हुए राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों को इस प्रकार मोक्ष प्राप्त हुईI राजा भागीरथ के अदम्य साहस और संकल्प से हर हिन्दू परिचित हैI जब उन्हें अपने साठ हज़ार पूर्वजों के श्राद्ध के लिए जल नहीं मिला (चूँकि राक्षसों के संहार के लिए समुद्र का जल ऋषि अगस्त्य पी गए थे)  तब उन्होंने कपिल मुनि के आदेशानुसार गंगा को धरती पर उतरने का संकल्प कियाI उन्होंने पहले ब्रह्मा की तपस्या कीI ब्रह्मा ने उन्हें विष्णु की तपस्या करने को कहाI जब विष्णु की तपस्या की तो भगवान्  विष्णु इस तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रकट हुए और कहा कि देवाधीदेव भगवन शंकर ही गंगा के प्रचंड वेग को पृथ्वी पर नियंत्रित कर सकते हैंI राजा भागीरथ ने हार नहीं मानी और फिर भगवान् शिव की तपस्या में लग गएI शिव ने प्रसन्न हो कर गंगा को अपने जटा में उतIरने के लिए सहमति प्रदान कीI इस प्रकार भागीरथी तपस्या सफल हुई और गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईI इसी गंगा को ले कर भागीरथ फिर कपिल मुनि के आश्रम पहुचे और अपने पूर्वजों का श्राद्ध कियाI

गंगा सागर का मेला भारत वर्ष में लगने वाले कतिपय बड़े मेलों में से एक हैI विश्वप्रसिद्ध कुम्भ के मेले के बाद गंगासागर का मेला दूसरा सबसे बड़ा मेला हैI बिहार का सोनपुर  मेला भी इस मेले जितना बड़ा नहीं हैI पर कुम्भ मेला हो यह गंगासागर का मेला या फिर सोनपुर का मेला: सभी मेला हिन्दू धर्म के आस्था से जुड़ा हैI  हर वर्ष 10 लाख से भी अधिक यात्री इस मेले में शिरकत करते हैंI सम्पूर्ण भारत वर्ष के कोने कोने से आये तीर्थ यात्री यहाँ मिल जायेंगेI इस मेले के लिए कोई खास प्रचार नहीं किया जाता हैंI कोई विशेष सरकारी सुविधाएँ भी तीर्थ यात्रयों को नहीं उपलब्ध कराये जाते  हैI तथापि यहाँ मौजूद विशाल जन समूह इस बात का गवाह था की भारत की आत्मा एक है और भारतवासी के हृदय में एक ही संस्कृति और धर्म का निवास हैंI देश की धड़कन का असली रूप यहीं नज़र आता हैI इस कठिन यात्रा के बाद भी लोगों में थकान का कोई असर नहीं थाI

"कपिल मुनि की जय"के नारे लगाता तीर्थ यात्रयों का जत्था मेले में घूम रहा थाI यहाँ कोई अमीर नहीं है और न ही कोई गरीबI वृद्ध, बच्चे और जवान सभी मेला घुमने में मग्न नज़र आयेI कुछ हिन्दू धार्मिक संघठनो के अखाड़े भी नज़र आये; जैसे भारत सेवाश्रम, राम कृष्ण आश्रम आदिI इन संगठनों का योगदान निश्चय ही सराहनीय हैI इन अखाड़ों के तम्बू में विशाल झंडे लहरा रहे थेI यह झंडे ही इन अखाड़ों की पहचान हैंI घंटी, शंख और प्रार्थना के स्वर से पूरा वातावरण गुंजयिमान थाI समुद्र तट पर चारों और दुकाने सजी थीI इन दुकानों में मिठाई, से ले कर पूजा सामग्री, रुद्राक्ष आदि बिक रहे थेI बच्चों  के खिलौने  की कुछ दुकाने भी थीI इस द्वीप पर यहाँ के लोगों के लिए ये कमाई का सीजन थाI यहाँ आने  वाले नागा साधू भी लोगों के कौतुहल के विषय होते हैंI उनके बिना यह मेला अधुरा हैI  कुछ छोटे मोटे मंदिर भी हैI किन्तु लोगों के आकर्षण का केंद्र मुनि कपिल का आश्रम हैI लोगों की मान्यता हैं कि असली आश्रम तो समुद्र में विलीन हो गया हैं और जो वर्त्तमान में मौजूद है वह हाल के वर्षों में सरकार द्वारा बनवाया गया हैI

कपिल मुनि ऋषि कर्दम और दक्ष पुत्री देवहूति के पुत्र थेI उन्हें विष्णु का अवतार माना जाता हैI वर्तमान कपिल मुनि के मंदिर में कपिल मुनि की एक बड़ी मूर्ति है जो योगासन में सागर के सम्मुख बैठी हैI यहाँ पर राम सीता की भी मूर्ति हैI एक अश्व की मूर्ति भी है जो अश्वमेध के अश्व का प्रतीक हैI एक शिला है जिसके बारे में ये मान्यता है कि वह कपिल मुनि के आदि आश्रम की शिला हैI

गंगा सागर समुद्र तट पर पहुँच कर हम लोग पहले एक निरापद और शांत जगह की तलाश में थे ताकि दैनिक कर्मों से मुक्त हुआ जा सकेI थोड़ी दूर चलने के बाद ऐसा स्थान मिला जो तट पर नहीं था वरण एक स्थानीय निवासी का घर थाI उनसे निवेदन करने पर उनलोगों ने हम लोगों की मदद की और अपना टोइलेट इस्तेमाल करने दियाI हम लोग फिर वापस समुद्र तट पर आ गएI यहाँ स्नान करने के बाद हम लोगों ने पूजा कियाI एक सज्जन मिले जो एक  बछिया ले कर घूम रहे थे और लोगों को बैतरनी पर करा रहे थेI धर्म के दुरुपयोग का ऐसा नमूना मैंने नहीं देखा थाI “ पापी पेट का सवाल हैंI इस पेट की भूख लोगों से क्या क्या न करवाती हैI यह सज्जन तो फिर भी को भ्रस्टाचार में लिप्त कोई काम नहीं कर रहे थेI”- मुझे उस सज्जन को देखते देख कर मेरे पिताजी ने कहाI मुझे अपने पिताजी की कही बात भी सही लगीI

गंगासागर में धार्मिक महत्त्व के अलावा भी कुछ देखने के लिए हैI इनमें सागर मरीन पार्क, सुषमा देवी चौधुरी मरीन रीसार्च इंस्टिट्यूट, बमंखाली, चिमागुदी मद फ्लैट (मंग्रोव फारेस्ट ) आदि प्रमुख हैंI पूजा, मेला और मंदिर स्थान में घुमने के बाद हम लोगों को भूख लग गईI एक छोटे से अस्थायी होटल में खाना खाने  और एक आश्रम में थोड़ी देर आराम करने के बाद हमने निर्णय लिया कि अब लौटना चाहिएI तीन घंटे हम लोगों ने सागर तट पर बिताया थाI अब तक दोपहर हो गयी थी और अभी भी लोगों का आना जारी थाI भीड़ पहले से काफी बढ़ गयी थीI पूरा का पूरा सड़क लोगों से पटा थाI इसी  स्थिति में बस, टैक्सी या रिक्शा वान का मिलना असंभव थाI हम लोग पैदल ही निकलेI तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ कर अब तक 3 लाख् से ऊपर हो चुकी थीI सूरज सर के ठीक ऊपर था और सूरज देवता की प्रचंड गर्मी से माँ खास कर व्याकुल होने लगीI पर कोई उपाई नज़र नहीं आ रहा थाI नीचे बालू भी काफी गरम हो चुकी थी जिससे पैदल चलने में भी काफी कठिनाई महसूस हो रही थीI खैर, 3 किलोमीटर चलने के बाद हमें कुछ टैक्सी और रिक्शा वान दिखे जो यात्रियों को वापस जेट्टी ले जा रही थीI मैं जल्दी से एक कार वाले से तीन सीट बुक करने पहुच गयाI“ सर, 500/- रुपैया प्रति ब्यक्ति लगेगाI”- टैक्सी वाले ने टका सा जवाब दियाI में तो हैरान ही रह गयाI इसी टैक्सी का भाडा सुबह 50/- था और अब 500/-I हम लोग अपने उस निर्णय को कोसने लगे जब पाकेट मारों से बचने के लिए हम लोगों ने ज्यादा पैसे नहीं रखने का निश्चय किया थाI हमलोगों के पास इतने पैसे नहीं थे कि हम लोग कार से जा  सकेंI मजबूरी में हम लोगों ने एक रिक्शा वान लिया जो हमें 40/- पर आदमी चमेर गुडिया के जेट्टी पर ले जाने को तैयार हुआ, जो यहाँ से सबसे नजदीक थाI रिक्शा वान वाले ने ही बताया की वहां से भी नामखाना के लिए स्टीमर खुलते हैंI 1.00 बजे अपराह्न हम लोग चमेर गुरिया जेट्टी पहुच गएI वहां भी तीर्थ यात्रयों की अपार भीड़ थीI मैं लाइन में खड़ा  हो गया और माँ-पापा को आगे जेट्टी के पास चले जाने को कहाI वहां एक पेड़ के छांव में बैठ गए और पापा तो गमछा बिछा कर लेट ही गएI यह लाइन भी 1 किलोमीटर लम्बी थीI धीरे धीरे बढ़ते हुई मेरा नंबर 2 घंटे बाद आयाI 60/- प्रति आदमी टिकट लेने के बाद हम लोग स्टीमर में सवार हो गएI स्टीमर पर भीड़ सामान्य थी और हम लोगों को बैठने के लिए बेंच मिल गयीI 3.00 बजे अपने नियत समय पर यह स्टीमर ऍम. भी. राजधानी, चमेर गुरिया जेट्टी से नामखाना के लिए खुलीI

स्टीमर पर ठंडी ठंडी हवा में माँ-पापा दोनों को नींद आ गयीI मैं समुद्र का विस्तार देखने लगाI विशाल समुद्र के सीने को चीरता हुआ हमारा जहाज एम्. भी. राजधानी बढती जा रही थीI मैंने चैन का सांस लिया कि कम से कम हम द्वीप पर फंसने से बच गएI जेट्टी पर कई लोग थे जो अपने परिजनों से बिछर गए थेI इनमें औरतें भी थी और वृद्ध भीI मेरा मन इनके दुःख  देख कर दुखी हो उठाI ज्यों ज्यों शाम गहराती जा रही थी, त्यों त्यों लोगों की बैचैनी  बढती जा रही थीI लोग रात्रि से पहले अपने अपने बसेरे में लौट जाना चाहते थेI मैं शांत मन से समुद्र में उठती गिरती लहरों को देखता रहाI सोचता रहा कि धार्मिक आस्था मनुष्य को कितने मुश्किलों का सामना करने के काबिल बना देती हैI कदाचित यदि धर्म का मामला इस यात्रा से नहीं जुड़ा रहता तो लोग शायद ही इस द्वीप में घूमने आतेI यही आस्था है सो मनुष्य को शकित्वान बनाती है और यही आस्था है जो मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा देती हैI यही वो विश्वास है जो ईश्वर में विश्वास कायम रखती हैंI ईश्वर की शक्ति में सर झुकाने को मजबूर करती हैI 5.00 बजे हम लोग नामखाना पहुँच गएI काकद्वीप यहाँ से 15 किलोमीटर दूर हैI हम लोग काकद्वीप कैसे जाए यह सोच ही रहे थे कि एक सहयात्री ने हमें बताया की जेट्टी से 2 किलोमीटर दूर ही नामखाना का बस स्टैंड है जहाँ से कोलकाता के लिए बसें मिलती हैI हम लोग रिक्शा से बस स्टैंड पहुंचेI पर मालूम हुआ कि बस के खुलने में थोड़ी देरी हैI इस बीच हमलोगों ने चाय पी और जब तक चाय पी कर तरोताजा होते, सूचना मिली कि कोलकाता के लिए बसें खुलने ही वाली हैI मैं दौड़ कर एक बस में चढ़ गया और बड़ी मुश्किल से तीन सीट कब्ज़ा कियाI बसें क्या थी, तीन ओर की सीट खोल दिए गए थे और फर्श पर पुवाल  बिछा दी गयी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ले जाया जा सके और अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकेI माँ को नीचे पुवाल पर बैठना ज्यादा सहूलियत वाला लगा और वो वहीँ पुवाल बिछे बस के फर्श पर बैठ गईI 5.30 पर बस खुलीI प्रारंभ में और भी तीर्थयात्रियों को उठाते हुए कोल्कता की और चल पड़ीI पूरी बस अब ठसाठस भरी थीI फर्श पर बैठने के भी 50/- प्रति व्यक्ति चार्ज किया गया जो हमने भी दिया. 8.00 बजे यह बस एस्प्लानद (कोलकाता) पहुंची और 9.00 बजे हावड़ाI

थकान के मारे पूरे रास्ते हममे से कोई भी कुछ भी नहीं बोलाI न ही कोई यात्रा के बारे में कुछ बोलने लायक बचा था न ही शरीर में इतनी शक्ति थी कि सहयात्रियों से कोई बात चीत की जाएI 9.00 बजे हावरा पहुचने पर हमलोगों ने एक टैक्सी किया इस शर्त पर कि पैसे हम लोग साहब बगान (बैरकपुर) पहुँच कर ही देंगेI टैक्सी वाला हमारी विचित्र शर्त को सुन कर अचंभित थाI मेरे पापा ने टैक्सी वाले को हमारी समस्या के बारे में बतायाI यह जान कर कि हम लोग गंगासागर से थके हारे आ रहे हैं और हमारे पैसे भी ख़त्म हो रहे हैं, वह भला मानुस हमें हमारी शर्तों पर ले जाने को तैयार हो गयाI उस टैक्सी वाले को आश्चर्य हो रहा था कि 30 वर्षों से कोल्कता में रहने के बाद भी वो गंगासागर जाने से घबराता है, जब कि हम सब इस तीर्थ से सकुशल वापस आ ने वाले तीर्थ यात्री थेI 10.15 रात्रि हम सब साहब बगान पहुंचेI टैक्सी वाले को पैसे चुकाए और घर में घुसते ही सोफे पर पसर गएI मेरी पत्नी ने गरमागरम खिचड़ी बना कर रखा था जो कि मकर संक्रांति का विशेष व्यंजन हैI हाथ पैर धो कर हम लोग खिचड़ी पर इस तरह टूट पड़े जैसे वर्षों से खाया पिया न होI सोने के समय मेरे कान में बार बार  गंगा सागर में साधू द्वारा लगाया नारा गूँज रहा था "सारे तीरथ बार बार, गंगासागर एक बार".

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गंगासागर में डुबकी लगाने पहुंचे सात लाख श्रद्धालु
Published: Wed, 13 Jan 2016

विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। मकर संक्रांति की पावन बेला में गंगासागर तट पर जनसमूद्र उमड़ पड़ा है। बुधवार तक करीब सात लाख पुण्यार्थी पहुंचे। सागरद्वीप में पैर रखने को अब जगह नहीं बची है। हर जगह श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं।

सागरद्वीप के सभी प्रवेश पथों पर अभी भी मोटरबोट पकड़ने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी हुई है। मूड़ीगंगा में पानी कम होने के कारण मोटरबोट कम चलाए जा रहे हैं जिसके कारण हजारों की तादाद में लोग वहां फंसे हुए हैं।

सागर मेले की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। बुधवार से सागरतट के आसमान ड्रोन ने भी काम करना शुरू कर दिया है।

कपिल मुनि मंदिर में खास चौकसी है। इस बीच अभी से ही सागर में स्नान करने लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है। कपिल मुनि मंदिर के महंत ज्ञानदास ने बताया कि पुण्य स्नान का सटीक समय 15 तारीख को प्रातः 7.34 बजे से शुरू होगा और अगले 16 घंटों तक चलेगा, हालांकि पुण्य स्नान के समय से आठ घंटे पहले से भी स्नान शुरू किया जा सकता है। पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी महाराज उस दिन सुबह आठ बजे पुण्य स्नान करेंगे।

ममता से क्षुब्ध शंकराचार्य

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने बंगाल सरकार द्वारा गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेला घोषित करने की केंद्र सरकार से मांग पर उनसे सलाह मशविरा नहीं करने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति परोक्ष तौर पर क्षोभ व्यक्त किया है।

मकर संक्रांति के पावन अवसर पर पुण्य स्नान करने सागरद्वीप पहुंचे शंकराचार्य ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ममता बनर्जी गंगासागर का विकास करना चाहती है तो यह अच्छी बात है लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम कि यह धार्मिक प्रशासन क्षेत्र पुरी पीठ का है और उनके शासन तंत्र के अधीन है इसलिए राज्य सरकार को सिर्फ केंद्र से संपर्क न करके दोनों तंत्रों से बातचीत करनी चाहिए थी। यहां विकास का स्वरूप क्या होगा, इस बाबत हम से भी संपर्क किया जाना चाहिए।
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गंगासागर तीर्थ का मकर संक्रांति पर विशेष महत्व
तारीख: 04 Jan 2014 15:18:19
पश्चिम बंगाल स्थित गंगासागर हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। मकर संक्रांति के दिन यहां देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहंुचकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है। यहां संक्रांति पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि 'सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार'।
गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से नामखाना की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। यहां से चामागुरी घाट तक नौकाएं जाती हैं और वहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर गंगासागर है।  सागर द्वीप पर साधुओं का निवास है और द्वीप 150 वर्गमील के लगभग है। यहां वामनखल नामक प्राचीन मंदिर भी है। इसी के निकट चंदनपीड़ी वन में जीर्ण मंदिर और बुड़बुड़ीर तट पर विशालाक्षी मंदिर है। गंगासागर में एक मंदिर भी है, जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। कपिल मुनि के मंदिर में पूजा-अर्चना भी की जाती है। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के  60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। यहां स्थित कपिल मुनि का मंदिर सागर में बह गया, उसकी मूर्ति अब कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व पुरोहितों को पूजा-अर्चना हेतु मिलती है। अब यहां एक अस्थायी मंदिर ही बना है। इस स्थान पर कुछ भाग चार वर्षों में एक बार ही बाहर आता है, शेष तीन वर्ष जलमग्न रहता है।
मान्यता है कि एक बार गंगासागर में डुबकी लगाने पर 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के समान फल मिलता है। गंगासागर में पांच दिनों तक मेला लगा रहता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है। मकर संक्रांति के अवसर पर कई लाख श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं। बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है, बस एक मील का स्थान निश्चित है। उसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।
मकर संक्रान्ति पर दान का विशेष महत्व
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दिए दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
सूर्य उत्तरायण होते हैं
सामान्यत सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसी जिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। इस लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी आस्था प्रकट की जाती है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष जनवरी में ही पड़ता है।
मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं सागर में जाकर मिल गयी थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए यही व्रत किया था। प्रतिनिधि 
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गंगासागर में डुबकी लगाने पहुंचे सात लाख श्रद्धालु
Published: Wed, 13 Jan 2016

विशाल श्रेष्ठ, गंगासागर। मकर संक्रांति की पावन बेला में गंगासागर तट पर जनसमूद्र उमड़ पड़ा है। बुधवार तक करीब सात लाख पुण्यार्थी पहुंचे। सागरद्वीप में पैर रखने को अब जगह नहीं बची है। हर जगह श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं।

सागरद्वीप के सभी प्रवेश पथों पर अभी भी मोटरबोट पकड़ने के लिए लोगों की लंबी कतार लगी हुई है। मूड़ीगंगा में पानी कम होने के कारण मोटरबोट कम चलाए जा रहे हैं जिसके कारण हजारों की तादाद में लोग वहां फंसे हुए हैं।

सागर मेले की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। बुधवार से सागरतट के आसमान ड्रोन ने भी काम करना शुरू कर दिया है।

कपिल मुनि मंदिर में खास चौकसी है। इस बीच अभी से ही सागर में स्नान करने लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है। कपिल मुनि मंदिर के महंत ज्ञानदास ने बताया कि पुण्य स्नान का सटीक समय 15 तारीख को प्रातः 7.34 बजे से शुरू होगा और अगले 16 घंटों तक चलेगा, हालांकि पुण्य स्नान के समय से आठ घंटे पहले से भी स्नान शुरू किया जा सकता है। पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी महाराज उस दिन सुबह आठ बजे पुण्य स्नान करेंगे।

ममता से क्षुब्ध शंकराचार्य

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने बंगाल सरकार द्वारा गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेला घोषित करने की केंद्र सरकार से मांग पर उनसे सलाह मशविरा नहीं करने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति परोक्ष तौर पर क्षोभ व्यक्त किया है।

मकर संक्रांति के पावन अवसर पर पुण्य स्नान करने सागरद्वीप पहुंचे शंकराचार्य ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ममता बनर्जी गंगासागर का विकास करना चाहती है तो यह अच्छी बात है लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम कि यह धार्मिक प्रशासन क्षेत्र पुरी पीठ का है और उनके शासन तंत्र के अधीन है इसलिए राज्य सरकार को सिर्फ केंद्र से संपर्क न करके दोनों तंत्रों से बातचीत करनी चाहिए थी। यहां विकास का स्वरूप क्या होगा, इस बाबत हम से भी संपर्क किया जाना चाहिए।
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गंगासागर तीर्थ का मकर संक्रांति पर विशेष महत्व
तारीख: 04 Jan 2014 15:18:19
पश्चिम बंगाल स्थित गंगासागर हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। मकर संक्रांति के दिन यहां देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहंुचकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है। यहां संक्रांति पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि 'सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार'।
गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से नामखाना की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। यहां से चामागुरी घाट तक नौकाएं जाती हैं और वहां से 10 किलोमीटर की दूरी पर गंगासागर है।  सागर द्वीप पर साधुओं का निवास है और द्वीप 150 वर्गमील के लगभग है। यहां वामनखल नामक प्राचीन मंदिर भी है। इसी के निकट चंदनपीड़ी वन में जीर्ण मंदिर और बुड़बुड़ीर तट पर विशालाक्षी मंदिर है। गंगासागर में एक मंदिर भी है, जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। कपिल मुनि के मंदिर में पूजा-अर्चना भी की जाती है। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के  60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। यहां स्थित कपिल मुनि का मंदिर सागर में बह गया, उसकी मूर्ति अब कोलकाता में रहती है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व पुरोहितों को पूजा-अर्चना हेतु मिलती है। अब यहां एक अस्थायी मंदिर ही बना है। इस स्थान पर कुछ भाग चार वर्षों में एक बार ही बाहर आता है, शेष तीन वर्ष जलमग्न रहता है।
मान्यता है कि एक बार गंगासागर में डुबकी लगाने पर 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने के समान फल मिलता है। गंगासागर में पांच दिनों तक मेला लगा रहता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है। मकर संक्रांति के अवसर पर कई लाख श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं। बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है, बस एक मील का स्थान निश्चित है। उसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।
मकर संक्रान्ति पर दान का विशेष महत्व
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दिए दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
सूर्य उत्तरायण होते हैं
सामान्यत सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। इसी जिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। इस लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी आस्था प्रकट की जाती है। भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष जनवरी में ही पड़ता है।
मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं सागर में जाकर मिल गयी थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए यही व्रत किया था। प्रतिनिधि 
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99 फ़ीसदी लोगों की दौलत के बराबर : एक फ़ीसदी अमीर

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एक फ़ीसदी लोगों के पास 99 फ़ीसदी की दौलत
एंथोनी रूबन, बिजनेस रिपोर्टर,  18 जनवरी 2016

http://www.bbc.com
दुनिया की आबादी की एक फ़ीसदी सबसे अमीर लोगों की दौलत बाक़ी 99 फ़ीसदी लोगों की कुल दौलत के बराबर है. ग़रीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली ग़ैर-सरकारी संस्था ऑक्सफ़ैम ने क्रेडिट स्विस के आंकड़ों के आधार पर ये दावा किया है. इस हफ़्ते डावोस में हुई बैठक में जुटे नेताओं के बीच असमानता को दूर करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने को लेकर बातचीत की गई. इस दौरान लॉबिंग करने वालों और कर की चोरी से धन जुटाने वालों की आलोचना की गई.

ऑक्सफ़ैम के अनुसार दुनिया के सबसे अमीर सिर्फ़ 62 लोगों के पास दुनिया भर के आधे सबसे ग़रीब लोगों जितनी दौलत है. संस्था के मुताबिक़ 68,800 डॉलर (यानी लगभग 47 लाख रुपए) के बराबर नक़द और संपत्ति रखने वाले लोग 10 फ़ीसदी सबसे अधिक धनी लोगों की श्रेणी में शुमार हैं जबकि 76 हज़ार डॉलर (यानी लगभग 51 लाख रुपए) के बराबर नक़दी और संपत्ति के मालिक सबसे अमीर एक फ़ीसदी लोगों की श्रेणी में हैं.

साल 2010 में 388 लोगों के पास दुनिया के आधे ग़रीब लोगों जितना धन था. रिपोर्ट अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहती है, "जिस अर्थव्यस्था को भावी पीढ़ी और पूरी धरती की तरक़्क़ी के लिए होना था वो केवल 1 फ़ीसदी लोगों की होकर रह गई है."क्रेडिट स्विस कई सालों से ये रिसर्च कर रही है. यदि रुझान की बात की जाए तो सबसे अधिक दौलतमंद 1 फ़ीसदी लोगों के पास धन का अनुपात साल 2000 से 2009 के बीच कम होता गया जबकि उसके बाद से अब तक की अवधि में इसमें वृद्धि हुई है.

ऑक्सफ़ैम ने सरकारों से इस रुझान के उलट के लिए कार्रवाई करने की गुज़ारिश की है. ये कामगारों को सही मज़दूरी मिलने और उनके व कंपनी के प्रबंधकों को मिलने वाले वेतन के बीच की खाई को कम करने की पैरवी करता है. इसके अलावा संगठन ने लिंग आधारित वेतन में असमानता, अवैतनिक देखभाल के लिए मुआवज़ा और महिलाओं को भूमि और संपत्ति में समान उत्तराधिकार देने की मांग की है.


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कहाँ पैसा लगा रहे हैं भारत के 'सुपर-रिच'?
विक्रम बारहाट, बीबीसी कैपिटल, 29 अप्रैल 2015
http://www.bbc.com

भारतीय उद्योगपति बी रघुराम शेट्टी ने 2005 में दुनिया की सबसे ऊंची इमारत दुबई के बुर्ज ख़लीफ़ा की 100वीं मंज़िल ख़रीदी.
828 मीटर ऊंची इस इमारत में 1.22 करोड़ डॉलर की ये खरीददारी भारत के 'सुपर रिच'की आसमान छू रही महत्वाकांक्षा का प्रतीक है.
दुनिया में बड़ी प्रॉपर्टी एजेंसियां के अनुसार भारतीय या फिर भारतीय मूल के ये रईस दुबई समेत संयुक्त अरब अमीरात, लंदन, अमरीका के कई शहरों, कनाडा के प्राइवेट द्वीपों और कई और महँगी लोकेशन में प्रॉपर्टी बनाने में लगे हुए हैं.
कंसलटैंसी फ़र्म कैपजैमिनाई और आरबीसी वेल्थ मैनेजमेंट के 2014 के अध्ययन के अनुसार यदि निवेश के लिए 3 करोड़ डॉलर से अधिक रकम हाथ में रखने वाले भारतीयों की संख्या देखी जाए, तो भारत दुनिया में 16वें नंबर पर है.
वेल्थ इनसाइट के मुताबिक 2014 से 2018 तक भारत के अल्ट्रा रिच या अमीरों में भी अमीर लोगों की संपत्ति 44 फ़ीसदी बढ़ेगी और चार साल में करीब 2000 अरब डॉलर या दो लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगी.
कंसलटेंसी फ़र्म नाइट फ्रैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के बेहद अमीर लोगों की कुल संपत्ति का 44 फ़ीसदी हिस्सा रियल एस्टेट में लगा हुआ है.
कौन हैं ये अल्ट्रा रिच भारतीय?
हममें से कई लोग 1.22 करोड़ डॉलर की रकम शायद पूरी जिंदगी में न देख पाएँ, जो 71 साल के बी रघुराम शेट्टी ने एक प्रॉपर्टी की खरीद में ख़र्च कर दिए. शेट्टी मध्य पूर्व से एक विशाल हेल्थ केयर और फॉरेन एक्सचेंज कारोबार चलाते हैं.

शेट्टी ने ईमेल के ज़रिए बीबीसी कैपिटल को बताया, "यह एक आयकॉनिक लैंडमार्क है जो अपने आर्किटेकचर और कम्फ़र्ट के लिए दुनिया भर में मशहूर है. इसे खरीदना गर्व की बात है. इससे आप पूरे दुबई की स्काईलाइन देख सकते हैं. यह बेहद खूबसूरत है."
दरअसल शेट्टी की गिनती उन भारतीयों में होती है जो आज किसी भी तरह की लग्ज़री को खरीदने की क्षमता रखते हैं.
भारतीयों की रिच लिस्ट में युवा ऑन्त्रप्रेन्योर, उद्योगपति, औद्योगिक और कारोबारी घराने ज़्यादा प्रभावशाली हैं जिनकी संपत्ति शेयर बाज़ार और रियल एस्टेट की बढ़ती क़ीमत पर आधारित है.
ब्रितानी कंपनी वेल्थ इनसाइट के मुताबिक भारत में 2013 तक दस लाख डॉलर या इससे अधिक संपत्ति वालों की संख्या 1,56,000 थी, जो 2018 तक बढ़कर 3,58,057 हो जाएगी.
वो अलग बात है कि आज भी भारत की ख़ासी आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है.

दुबई (संयुक्त अरब अमीरात)
दुनिया के महँगे शहरों में बड़ी-बड़ी प्रॉपर्टी डील्स पर ध्यान से नज़र दौड़ाएँ और आप पाएँगे कि कहीं न कहीं भारतीय निवेशक का हाथ है.

दुबई लैंड डिपार्टमेंट स्टेटिसटिक्स के मुताबिक बुर्ज ख़लीफ़ा समेत दुबई में रियल एस्टेट खरीदने वाले विदेशी लोगों में भारतीय सबसे आगे हैं.
बुर्ज ख़लीफ़ा बनाने वाली एम्मार प्रोपर्टीज की मीडिया एजेंसी की एसोसिएट एकाउंट डायरेक्टर निविने विलियम ने कहा, "हमारे विदेशी निवेशकों में भारतीयों की संख्या ख़ासी ज़्यादा है."


दुबई में भारतीय पाम आइलैंड में भी काफी संपत्ति खरीद रहे हैं. यह दुनिया का सबसे बड़ा कृत्रिम आइलैंड है. मेगास्ट्रक्चर डेवलपर नाखिल की मीडिया रिलेशन मैनेजर रेबेका रीस कहती हैं, "हमारे प्रोजेक्ट्स में भारतीय काफी निवेश कर रहे हैं."

लंदन में ख़ासा निवेश
लंदन के महँगे इलाक़ों - मेफ़ेयर जैसी लोकेशन्स में प्रॉपर्टी खरीदने वाले विदेशी लोगों में भारतीयों का समूह सबसे बड़ा है. एस्टेट एजेंजीस वीदरैल के मुताबिक कुल निवेशकों में 25 फ़ीसदी भारतीय हैं. ये ब्रिटिश लोगों के बाद वहां प्रॉपर्टी खरीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा समूह है और एशियाई, अन्य यूरोपीय, रूसी खरीददार भारतीयों से पीछे हैं.

2013 में सेंट्रल लंदन में 221 रेजीडेंशियल प्रोपर्टीज़ में भारतीयों ने 70 करोड़ डॉलर लगाए और इनमें मेफ़ेयर, सेंट जॉन्स वुड, बेलग्राविया और सेंट्रल लंदन के कई अन्य इलाक़े थे. वीदरैल के सीईओ पीटर वीदरैल ईमेल के ज़रिए बताते हैं, "भारत में गर्मियों के दौरान करीब 3000 अमीर भारतीय परिवार लंदन चले आते हैं अपने ही घरों में रहते हैं. भारतीय खरीददार मेफ़ेयर में प्रॉपर्टी खरीदने के लिए डेढ़ से दो करोड़ डॉलर ख़र्च करने के लिए तैयार हो जाते हैं."मेफ़ेयर के कई होटल भी भारतीयों के हैं. ग्रोवैनर हाउस होटल सुब्रत राय के सहारा इंडिया समूह का है जिन्होंने ये होटल 2010 में 73 करोड़ डॉलर का खरीदा था.

अमरीका में भी पैर पसारे
शिकागो स्थित नेशनल एसोसिएशन ऑफ रियलटेअर्स के मुताबिक अमरीका में प्रॉपर्टी खरीदने वालों में भारतीय चौथे नंबर पर हैं. वहाँ कनाडाई, चीनी और मैक्सिको निवासी प्रॉपर्टी खरीदने में भारतीयों से आगे हैं.
इसके अलावा भारतीय अरबपति प्राइवेट द्वीप खरीदने की होड़ में भी लगे हुए हैं. अनेक भारतीय कैनाडाई रियल एस्टेट कंपनी प्राइवेट आयलैंड्स से द्वीप और अन्य प्रॉपर्टीज़ ख़रीदने के लिए सलाह लेते रहे हैं.
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Lord Hanuman : US President Barack Obama

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Hanuman Figurine is President Obama’s Lucky Charm


http://www.indiadivine.org
A statuette of Lord Hanuman is among few items that US President Barack Obama always carries in his pocket and seeks inspiration from whenever he feels tired or discouraged.


President Obama disclosed this on a YouTube interview which the White House scheduled as a way to reach younger audiences as it promotes Obama’s final State of the Union address on Tuesday.

Asked to show off an item of personal significance during the interview with YouTube creator Nilsen yesterday, 54-year-old Obama pulled from his pockets a series of small totems, each of which he said reminded him “of all the different people I’ve met along the way.”

It included rosary beads given to him from Pope Francis, who he met at the White House this fall; a tiny Buddha statue procured upon him by a monk; a silver poker chip that was once the lucky charm of a bald, mustachioed biker in Iowa; a figurine of the Hindu monkey God Hanuman; and a Coptic cross from Ethiopia, where he visited in July, CNN reported.

“I carry these around all the time. I’m not that superstitious, so it’s not like I think I necessarily have to have them on me at all times,” Obama said.

But he said they do provide some reminders of the long path of his presidency.
“If I feel tired, or I feel discouraged sometimes, I can kind of reach into my pocket and say yeah, that’s something
I can overcome, because somebody gave me the privilege to work on these issues that are going to effect them,” he said.

Obama, whose father was a Kenyan and mother a white woman from Kansas, spent initial days of his life in Indonesia where Hinduism is a popular religion.

विदेशी ताकतें : अपना लाभ

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अपरोक्ष रूप  से पूरे पाश्चत्य जगत में ईसाई और इस्लाम संघर्षरत है ! मगर भारत में विदेशी ताकतें हिन्दू मुस्लिम संघर्ष उत्पन्न कर अपना फायदा उठा रहीं हैं ! ये वही ताकतें हैं जो इस तरह अपना लाभ  ब्रिटिश गुलामी के दौर में भी उठा  रहीं थीं ! 

- अरविन्द सिसोदिया कोटा 
नीचे के लेख में विचार लेखक के हैं इस सच को भी जानना चाहिए 
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हिन्दू और मुसलमान थोडा धीरज से और थोडा ध्यान से पढ़े **
लेखक - डा.जमुना प्रसाद वर्मा
TUESDAY, JANUARY 19, 2016

250 वर्ष का इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि
आधुनिक विश्व मतलब 1800 के बाद जो दुनिया मे
तरक़्क़ी हुई,
उस मे पश्चिम मुल्को यानी सिर्फ यहूदी
और ईसाई लोगो का ही हाथ है।
हिन्दू और मुस्लिम का इस विकास मे 1% का भी
योगदान नही है।
---
आप देखिये के 1800 से लेकर 1940 तक हिंदू और मुसलमान
सिर्फ बादशाहत या गद्दी के लिये लड़ते रहे।
अगर आप दुनिया के 100 बड़े वैज्ञानिको के नाम लिखे तो बस एक
या दो नाम हिन्दू और मुसलमान के मिलेंगे।
---
पूरी दुनिया मे 61 इस्लामी मुल्क है,
जिनकी जनसंख्या 1.50 अरब के करीब
है, और कुल 435 यूनिवर्सिटी है।
दूसरी तरफ हिन्दू की जनसंख्या 1.26
अरब के क़रीब है और 385 यूनिवर्सिटी
है,
जबकि अमेरिका मे 3 हज़ार से अधिक,
जापान मे 900 से अधिक यूनिवर्सिटी है।
ईसाई दुनिया के 45% नौजवान यूनिवर्सिटी तक पहुंचते
है,
वही मुसलमान के नौजवान 2% और
हिन्दू के नौजवान 8 % तक यूनिवर्सिटी तक पहुंचते
है।
दुनिया के 200 बड़ी यूनिवर्सिटी मे से
54 अमेरिका,
24 इंग्लेंड,
17 ऑस्ट्रेलिया,
10 चीन,
10 जापान,
10 हॉलॅंड,
9 फ़्राँस,
8 जर्मनी,
2 भारत और
1 इस्लामी मुल्क मे है .
---
अब हम आर्थिक रूप से देखते है।
अमेरिका का जी.डी.पी 14.9
ट्रिलियन डॉलर है
जबकि पूरे इस्लामिक मुल्क का कुल
जी.डी.पी 3.5 ट्रिलियन डॉलर
है।
वही भारत का 1.87 ट्रिलियन डॉलर है।
दुनिया मे इस समय 38000 मल्टिनॅशनल कंपनी है,
इनमे से सिर्फ 32000 कंपनी अमेरिका और युरोप मे
है।
अभी तक दुनिया के 10000 बड़ी
अविष्कारो मे 6103 अविष्कार अकेले अमेरिका मे और
8410 अविष्कार ईसाई या यहूदी ने किये है।
दुनिया के 50 अमीरो में
20 अमेरिका
5 इंग्लेंड
3 चीन,
2 मक्सिको,
2 भारत और
1 अरब मुल्क से है .
---
अब आपको बताते है के
हम हिन्दू और मुसलमान जनहित, परोपकार या समाज सेवा मे
भी ईसाई और यहूदी से पीछे
है।
रेडक्रॉस जो दुनिया का सब से बड़ा मानवीय संगठन है।
इस के बारे मे बताने की जरूरत नही है।
---
बिल गेट्स ने 10 बिलियन डॉलर से बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन
की बुनियाद रखी जो कि पूरे विश्व के 8
करोड़ बच्चो की सेहत का ख्याल रखती
है,
जबकि हम जानते है कि भारत मे कई अरबपति है।
मुकेश अंबानी अपना घर बनाने मे 4000 करोड़ खर्च
कर सकते है,
और
अरब के अमीर शहज़ादा अपना स्पेशल जहाज पर
500 मिलियन डॉलर खर्च कर सकते है .
मगर मानवीय सहायता के लिये आगे नही
आ सकते है.
---
बस हर हर महादेव
और
अल्लाह हो अकबर के नारे लगाने मे हम सबसे आगे हैं।
अब जरा सोचिये कि हमें किस तरफ अधिक ध्यान देने की जरुरत है।
क्यों ना हम भी दुनिया में मजबूत स्थान और भागीदारी पाने के लिए प्रयास करें बजाय विवाद उत्पन्न करने के। 

सूचना का अधिकार : लिखने का तरीका

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RTI लिखने का तरीका -
RTI मलतब है सूचना का अधिकार - ये कानून हमारे देश में 2005 में लागू हुआ।जिसका उपयोग करके आप सरकार और
किसी भी विभाग से सूचना मांग सकते है। आमतौर पर लोगो को इतना ही पता होता है।परंतु आज मैं आप को इस के बारे में कुछ और रोचक जानकारी देता हूँ -

RTI से आप सरकार से कोई भी सवाल पूछकर सूचना ले सकते है।
RTI से आप सरकार के किसी भी दस्तावेज़ की जांच कर सकते है।
RTI से आप दस्तावेज़ की प्रमाणित कापी ले सकते है।
RTI से आप सरकारी कामकाज में इस्तेमाल सामग्री का नमूना ले सकते है।
RTI से आप किसी भी कामकाज का निरीक्षण कर सकते हैं।
RTI में कौन- कौन सी धारा हमारे काम की है।

धारा 6 (1) - RTI का आवेदन लिखने का धारा है।
धारा 6 (3) - अगर आपका आवेदन गलत विभाग में चला गया है। तो वह विभाग
इस को 6 (3) धारा के अंतर्गत सही विभाग मे 5 दिन के अंदर भेज देगा।
धारा 7(5) - इस धारा के अनुसार BPL कार्ड वालों को कोई आरटीआई शुल्क नही देना होता।
धारा 7 (6) - इस धारा के अनुसार अगर आरटीआई का जवाब 30 दिन में नहीं आता है
तो सूचना निशुल्क में दी जाएगी।
धारा 18 - अगर कोई अधिकारी जवाब नही देता तो उसकी शिकायत सूचना अधिकारी को दी जाए।
धारा 8 - इस के अनुसार वो सूचना RTI में नहीं दी जाएगी जो देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा हो या विभाग की आंतरिक जांच को प्रभावित करती हो।
धारा 19 (1) - अगर आप
की RTI का जवाब 30 दिन में नहीं आता है।तो इस
धारा के अनुसार आप प्रथम अपील अधिकारी को प्रथम अपील कर सकते हो।
धारा 19 (3) - अगर आपकी प्रथम अपील का भी जवाब नही आता है तो आप इस धारा की मदद से 90 दिन के अंदर दूसरी
अपील अधिकारी को अपील कर सकते हो।

RTI कैसे लिखे?

इसके लिए आप एक सादा पेपर लें और उसमे 1 इंच की कोने से जगह छोड़े और नीचे दिए गए प्रारूप में अपने RTI लिख लें
...................................
सूचना का अधिकार 2005 की धारा 6(1) और 6(3) के अंतर्गत आवेदन।
सेवा में,
(अधिकारी का पद)/
जनसूचना अधिकारी
विभाग का नाम.............
विषय - RTI Act 2005 के अंतर्गत .................. से संबधित सूचनाऐं।
अपने सवाल यहाँ लिखें।

1-..............................
2-...............................
3-..............................
4-..............................

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू का पोस्टलऑर्डर ........ संख्या अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्डधारी हूं। इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल.कार्ड नं..............है।
यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित
नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोकसूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयावधि के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।
भवदीय
नाम:....................
पता:.....................
फोन नं:..................
हस्ताक्षर...................
ये सब लिखने के बाद अपने हस्ताक्षर कर दें।
अब मित्रो केंद्र से सूचना मांगने के लिए आप 10 रु देते है और एक पेपर की कॉपी मांगने के 2 रु देते है।
हर राज्य का RTI शुल्क अगल अलग है जिस का पता आप कर सकते हैं।

RTI का सदउपयोग करें और भ्रष्टाचारियों की सच्चाई /पोल दुनिया के सामने लाईए।

अनूप गौतम शहर जिला महामंत्री भा. ज. पा. आर टी. आई. सेल कोटा महानगर कोटा

भारतीय मूलतत्व “ एकात्म मानव दर्शन ” : परमपूज्य डॉ. मोहन भागवत जी

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भारतीय मनीषियों के चिंतन का मूल तत्व है “एकात्म मानव दर्शन”  – परम पूज्य डॉ. मोहन भागवत जी


नागपुर ।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हृदय की करुणा और तपस्वी जीवन यही पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का परिचय है. उनके द्वारा प्रतिपादित एकात्म-मानव दर्शन का रूप नया है, पर वह है पुराना ही. भारतीय मनीषियों के चिंतन का मूल तत्व है “एकात्म-मानव दर्शन”. सरसंघचालक जी डॉ. कुमार शास्त्री द्वारा लिखित “कारुण्य ऋषि” नामक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे. सरसंघचालक जी ने कहा कि एकात्म-मानव दर्शन यह एक दर्शन है, यह कोई ‘इज्म’ या ‘वाद’ नहीं. इज्म संकुचित शब्द है. आप इज्म के दायरे को लांघ नहीं सकते, आपको इज्म के चौखट में रहकर ही अपना काम करना होता है, जबकि दर्शन व्यापक होता है. दर्शन हर काल में विस्तारित होता है और वह युगानुकूल स्वरूप धारण करता है. लेकिन हम दर्शन के मार्गदर्शन को छोड़कर पाश्चात्य विचारों का अनुकरण कर रहे हैं. इस कारण हमारे जीवन में विडम्बना दिखाई देती है.
भारतीय विचार मंच, नागपुर द्वारा शंकर नगर स्थित “साई सभागृह” में आयोजित लोकार्पण समारोह के दौरान मंच पर वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक मा.गो. वैद्य, मराठी साहित्यकार आशा बगे, गिरीश गांधी, लेखक कुमार शास्त्री तथा भारतीय विचार मंच नागपुर के संयोजक उमेश अंधारे उपस्थित थे. पंडित दीनदयाल उपाध्या जी की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में पुस्तक प्रकाशित रचना की गई. डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारे देश में चाणक्य नीति, विदुर नीति, शुक्र नीति बहुत पहले लिखी गई है, जो समाज का मार्गदर्शन करती आई है. लेकिन भारत का अपना कोई विचार था ही नहीं, हम जंगली थे, हम अंग्रेजों की वजह से सभ्य बने, ऐसा हमें बताया गया और हमने गर्दन हिलाकर उसे स्वीकार भी कर लिया और उसके बाद पाश्चात्य विचारों के अनुकरण का सिलसिला शुरू हो गया. स्वतंत्रता के पश्चात् इसमें कुछ बदलाव आएगा ऐसा लगा था, पर ऐसा हुआ नहीं. ऐसे समय में दीनदयाल जी ने एकात्म-मानव दर्शन देश के सामने प्रस्तुत किया. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश का यह एकमात्र दर्शन है.
सरसंघचालक जी ने कहा कि सृष्टि के प्रत्येक घटक से हमारा सम्बन्ध है. इसलिए हम सबके कल्याण की कामना करते हैं, हम किसी के नाश की बात नहीं सोचते. हमारी अवधारणा है कि मूल तत्व एक है, पर उसकी अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न है. बाहर से दिखने वाली विविधता को स्वीकारते हुए भी हम सबमें एकात्म को निहारते हैं. यह हमारी विशेषता है. यह सनातन विचार युगानुकूल होता गया. इस सनातन विचार को हमारे मनीषियों ने समय-समय पर जन-जन तक पहुंचाया. स्वामी विवेकानन्द, रविंद्रनाथ टैगोर, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और योगी अरविन्द ने इस विचार को जन सामान्य तक पहुंचाने का कार्य किया.
उन्होंने कहा कि शरीर, मन, बुद्धि या व्यक्ति, समाज, सृष्टि अथवा अर्थ, काम, मोक्ष अलग-अलग नहीं है, वरन सबका एक-दूसरे से सम्बन्ध, सब एक-दूसरे के पूरक हैं. इन सबको जोड़ने वाला तत्व है परमेष्ठी. मनुष्य के विकास के साथ ही समाज और सृष्टि का विकास अपने आप होता है, यह अपना विचार है. धर्म सभी विचारों का चिति (आत्म तत्व) है. अर्थ, काम और मोक्ष में समन्वय साधने का कार्य धर्म करता है. धर्म सबको अनुशासित करता है और सबका मार्गदर्शन भी करता है. इसलिए स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भारत की चित्ति धर्म है, जब तक भारत में धर्म है, दुनिया की कोई ताकत भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकती. आज साधन बढ़ गए हैं, पर मनुष्य के जीवन से सुख, शांति और आराम खो गया है. इसका कारण है संकुचितता. हम संकुचितता को छोड़कर अपने साथ परिवार, समाज, राष्ट्र और सृष्टि के कल्याण का भी विचार करें. समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के प्रति गहन आत्मीयता को लेकर उसके विकास के लिए भी आगे आएं. यही पंडित दीनदयाल जी के एकात्म-मानव दर्शन का मूल है. पंडित जी ने केवल दर्शन ही नहीं दिया, वरन इस दर्शन को स्वयं जी कर दिखाया. उनके दर्शन से हमारे हृदय में भी समाज के अभावग्रस्त जनमानस के प्रति आत्मीयता जगे, यह आवश्यक है.
मा.गो. वैद्य जी ने कहा कि समाजवाद और कम्युनिज्म के दौर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म-मानव दर्शन देश के सम्मुख रखा. समाजवाद अर्थ के उत्पादन और वितरण का साधन मात्र है, जबकि दीनदयाल जी का दर्शन व्यष्टि से समष्टि को जोड़ता है. वह समाज के अभावग्रस्त व वंचितों के प्रति आत्मीयता को जगाता है. जाति गरीब नहीं होती, मनुष्य गरीब होता है. इसलिए आरक्षण की समीक्षा आज समय की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जिनकी दो पीढ़ियों को आरक्षण का लाभ मिल चुका है, उन्हें अपना आरक्षण छोड़ देना चाहिए. समृद्ध लोग लाभ न लें तो उसका फायदा वास्तविक पिछड़े लोगों को मिल सकेगा. अगर एक जिलाधिकारी का बेटा आरक्षण का लाभ ले रहा हो तो उस स्थिति में समाज का कल्याण कैसे हो सकता है ? वैद्य जी ने कहा कि सरसंघचालक डॉ. भागवत जी ने जब आरक्षण की समीक्षा की बात कही, तब उस पर बड़ा बवाल मचा. मगर वह बवाल सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए था. लेकिन आरक्षण की समीक्षा आज की आवश्यकता है.

ईसाई धर्मांतरण का भारत पर आक्रमण

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ईसाई धर्मांतरण का भारत पर आक्रमण तो ब्रिटिश शासन के आने से पूर्व ही हो गया था । ब्रिट्शि शासन में ये खूब फले फूले और स्वतंत्र भारत में भी जम  कर धर्मांतरण में लगे हुए हैं । कांग्रेस के सर्वोच्च पद पर ईसाई बर्चस्व के कारण ये अति उत्साही एवं आक्रामक कारी हो गए हैं । विदेशी धन , बहुराष्ट्रीय कंपनियों का परोक्ष सहयोग और मिडिया में धनबल से अपनी पकड़ के द्वारा ये लोग भारत की ,एकता को  भयंकर नुकसान पंहुचा रहे हैं । हिन्दू नामों से भी  ईसाई बनाना तो अब आम प्रचलन हो गया है ।

Pope John Paul II meets Rajiv Gandhi and Sonia Gandhi on 01 February 1986 in New Delhi.

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बाबा माधवदास की वेदना और ईसाई मिसनरियां

साभार: शंकर शरण
कई वर्ष पहले दूर दक्षिण भारत से बाबा माधवदास नामक एक संन्यासी दिल्ली में ‘वॉयस ऑफ इंडिया’ प्रकाशन के कार्यालय पहुँचे। उन्होंने सीताराम गोयल की कोई पुस्तक पढ़ी थी, जिसके बाद उन्हें खोजते-खोजते वह आए थे। मिलते ही उन्होंने सीताराम जी के सामने एक छोटी सी पुस्तिका रख दी। यह सरकार द्वारा 1956 में बनी सात सदस्यीय जस्टिस नियोगी समिति की रिपोर्ट का एक सार-संक्षेप था। यह संक्षेप माधवदास ने स्वयं तैयार किया, किसी तरह माँग-मूँग कर उसे छपाया और तब से देश भर में विभिन्न महत्वपूर्ण, निर्णयकर्ता लोगों तक उसे पहुँचाने, और उन्हें जगाने का अथक प्रयास कर रहे थे। किंतु अब वह मानो हार चुके थे और सीताराम जी तक इस आस में पहुँचे थे कि वह इस कार्य को बढ़ाने का कोई उपाय करेंगे।

माधवदास ने देश के विभिन्न भागों में घूम-घूम कर ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ स्वयं ध्यान से देखी थीं। उन्हें यह देख बड़ी वेदना होती थी कि मिशनरी लोग हिन्दू धर्म को लांछित कर, भोले-भोले लोगों को छल से जाल में फँसा कर, दबाव देकर, भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर आदि विधियों से ईसाइयत में धर्मांतरित करते थे। सबसे बड़ा दुःख यह था कि हिन्दू समाज के अग्रगण्य लोग, नेता, प्रशासक, लेखक इसे देख कर भी अनदेखा करते थे। यह भी माधवदास ने स्वयं अनुभव किया। वर्षों यह सब देख-सुन कर अब वे सीताराम जी के पास पहुँचे थे। सीताराम जी ने उन्हें निराश नहीं किया। उन्होंने न केवल जस्टिस नियोगी समिति रिपोर्ट को पुनः प्रकाशित किया, वरन ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की ऐतिहासिक क्रम में समीक्षा करते हुए ‘छद्म-पंथनिरपेक्षता, ईसाई मिशन और हिन्दू प्रतिरोध’ नामक एक मूल्यवान पुस्तिका भी लिखी। पर ऐसा लगता है कि हिन्दू उच्च वर्ग की की काहिली और अज्ञान पर शायद ही कुछ असर पड़ा हो।

उदाहरण के लिए, सात वर्ष पहले जब ‘तहलका’ ने साप्ताहिक पत्रिका आरंभ की तो अपना प्रवेशांक (7 फरवरी 2004) भारत में ईसाई विस्तार के अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र पर केंद्रित किया। इस के लिए अमेरिकी सरकार तथा अनेक विदेशी चर्च संगठनों द्वारा भारी अनुदान, अनेक मिशनरी संगठनों के प्रतिनिधियों से बात-चीत, उनके दस्तावेज, मिशनरियों द्वारा भारत के चप्पे-चप्पे का सर्वेक्षण और स्थानीय विशेषताओं का उपयोग कर लोगों का धर्मांतरण कराने के कार्यक्रम आदि संबंधी भरपूर खोज-बीन और प्रमाण ‘तहलका’ ने जुटा कर प्रस्तुत किया था। किंतु उस पर भारतीय नेताओं, बुद्धिजीवियों, प्रशासकों की क्या प्रतिक्रिया रही? कुछ नहीं, एक अभेद्य मौन! मानो उन्होंने कुछ न सुना हो। जबकि मिशनरी संगठनों में उस प्रकाशन से भारी चिंता और बेचैनी फैली (क्योंकि वे उस पत्रिका को संघ-परिवार का दुष्प्रचार बताकर नहीं बच सकते थे!)। उन्होंने तरह-तरह के बयान देकर अपना बचाव करने की कोशिश की। मगर हिन्दू समाज के प्रतिनिधि निर्विकार बने रहे! हमारे जिन बुद्धिजीवियों, अखबारों, समाचार-चैनलों ने उसी तहलका द्वारा कुछ ही पहले रक्षा मंत्रालय सौदों में रिश्वतखोरी की संभावना का पर्दाफाश करने पर खूब उत्साह दिखाया था, और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस समेत सबके इस्तीफे की माँग की थी। वही लोग उसी अखबार के इस पर्दाफाश पर एकदम गुम-सुम रहे। मानो इस में कोई विशेष बात ही न हो।

ठीक यही पचपन वर्ष पहले नियोगी समिति की रिपोर्ट आने पर भी हुआ था। जहाँ मिशनरी संगठनों में खलबली मच गई थी, वहीं हमारे नेता, बुद्धिजीवी, अफसर, न्यायविद सब ठस बने रहे। अंततः संसद में सरकार ने यह कह कर कि समिति की अनुशंसाएं संविधान में दिए मौलिक अधिकारों से मेल नहीं खाती, मामले को रफा-दफा कर दिया। कृपया ध्यान दें – किसी ने यह नहीं कहा कि समिति का आकलन, अन्वेषण, तथ्य और साक्ष्य त्रुटिपूर्ण है। बल्कि सबने एक मौन धारण कर उसे चुप-चाप धूल खाने छोड़ दिया। (उसके तैंतालीस वर्ष बाद, 1999 में, यही जस्टिस वधवा कमीशन रिपोर्ट के साथ भी हुआ, जिसने उड़ीसा में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस की हत्या के संबंध में विस्तृत जाँच की थी)। हिन्दू सत्ताधारियों व बौद्धिक वर्ग की इस भीरू भंगिमा को देख कर सहमे हुए मिशनरी संगठनों का साहस तुरत स्वभाविक रूप से बढ़ गया। सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में उनकी गतिविधियाँ इतनी अशांतिकारक हो गईं कि उड़ीसा व मध्य प्रदेश की सरकारों को क्रमशः 1967 और 1968 में धूर्तता और प्रपंच द्वारा धर्मांतरण कार्यों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने पड़े। उस से माधवदास जैसे दुखियारों को कुछ प्रसन्नता मिली। मगर वह क्षणिक साबित हुई क्योंकि उन कानूनों को लागू कराने में किसी ने रुचि नहीं ली। जिन स्थानों में मिशनरी सक्रिय थे, वहाँ इन कानूनों को जानने और उपयोग करने वाले नगण्य थे। जबकि शहरी क्षेत्रों में जो हिन्दू यह सब समझने वाले और समर्थ थे, उन्होंने रुचि नहीं दिखाई कि इन कानूनों के प्रति लोगों को जगाकर चर्च के विस्तारवादी आक्रमण को रोकें।
एक अर्थ में आश्चर्य है कि ब्रिटिश भारत में मिशनरी विस्तारवाद के विरुद्ध हिन्दू प्रतिरोध सशक्त था, जबकि स्वतंत्र भारत में यह मृतप्राय हो गया। 1947 से पहले के हमारे राष्ट्रीय विचार-विमर्श, साहित्य, भाषणों आदि में इस का नियमित उल्लेख मिलता है कि विदेशी मिशनरी भारतीय धर्म-संस्कृति को लांछित, नष्ट करने और भारत को विखंडित कर जहाँ-जहाँ संभव हो स्वतंत्र ईसाई राज्य बनाने के प्रयास कर रहे हैं। तब हमारे नेता, लेखक, पत्रकार अच्छी तरह जानते थे कि यूरोपीय साम्राज्यवाद और ईसाई विस्तारवाद दोनों मूलतः एक दूसरे के पूरक व सहयोगी हैं। इसलिए 1947 से पहले के राष्ट्रीय लेखन, वाचन में इस के प्रतिकार की चिंता, भाषा भी सर्वत्र मिलती है। किंतु स्वतंत्रता के बाद स्थिति विचित्र हो गई। स्वयं देश के संविधान में धर्म प्रचार को ‘मौलिक अधिकार’ के रूप में उच्च स्थान देकर मिशनरी विस्तारवाद को सिद्धांततः वैधता दे दी गई!

जबकि स्वतंत्रता से पहले गाँधीजी जैसे उदार व्यक्ति ने भी स्पष्ट कहा था कि यदि उन्हें कानून बनाने का अधिकार मिल जाए तो वह “सारा धर्मांतरण बंद करवा देंगे जो अनावश्यक अशांति की जड़ है”। पर उन्हीं गाँधी के शिष्यों ने, यह सब जानते हुए भी कि कौन, किन तरीकों, उद्देश्यों से धर्मांतरण कराते हैं, मिशनरियों को उलटे ऐसी छूट दे दी जो उन्हें ब्रिटिश राज में भी उपलब्ध न थी। देशी-विदेशी मिशनरी संगठनों को यह देख आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई, जो उन्होंने छिपाई भी नहीं! उन्होंने भारत को अपने प्रमुख निशाने के रूप में चिन्हित कर लिया। परिणामस्वरूप अंततः उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अलगाववाद की आँच सुलग उठी। इसके पीछे असंदिग्ध रूप से मिशनरी प्रेरणाएं थीं।

इसी पृष्ठभूमि में हम बाबा माधवदास जैसे देशभक्तों की वेदना समझ सकते हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष देखा कि भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता ने हिन्दू धर्म-संस्कृति व समाज की सुरक्षा निश्चित करने के बदले, उल्टे उसे अपने हाल पर छोड़ दिया है। विदेशी, साम्राज्यवादी, सशक्त संगठनों को खुल कर खेलने से रोकने का कोई उपाय नहीं किया। उन का अवैध, धूर्ततापूर्ण खेल देख-सुन कर भी स्वतंत्र भारत के नेता, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी उस से मुँह चुराने लगे। नियोगी समिति ने जो प्रमाणिक आकलन किया था, उसका महत्व इस में भी है कि स्वतंत्र भारत के मात्र पाँच-सात वर्षों में मिशनरी धृष्टता कितनी बेलगाम हो चली थी। उस रिपोर्ट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उस की एक-एक बात और अनुशंसाएं आज भी उतनी ही समीचीन हैं। कम से कम हम उसे पढ़ भी लें तो बाबा माधवदास की आत्मा को संतोष होगा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में ईसाई मिशनरी संगठनों को भय था कि अब उन का कारोबार बाधित होगा। आखिर स्वयं गाँधीजी जैसे सर्वोच्च नेता ने खुली घोषणा की थी कि कानून बनाने का अधिकार मिलने पर वह सारा धर्मांतरण बंद करवा देंगे। किंतु मिशनरियों की खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि उन की दुकान बंद कराने के बदले, भारतीय संविधान में धर्मांतरण कराने समेत धर्म प्रचार को ‘मौलिक अधिकार’ के रूप में उच्च स्थान मिल गया है! इसमें किसी संदेह को स्वयं प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने दूर कर दिया था। नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने पत्र (17 अक्तूबर 1952) में स्पष्ट कर दिया, “वी परमिट, बाई अवर कंस्टीच्यूशन, नॉट ओनली फ्रीडम ऑफ कांशेंस एंड बिलीफ बट आलसो प्रोजेलाइटिज्म”। और यह प्रोजेलाइटिज्म मुख्यतः चर्च-मिशनरी करते हैं और किन हथकंडों से करते है, यह उस समय हमारा प्रत्येक नेता जानता था!

जब स्वतंत्र भारत का संविधान बन रहा था, तो संविधान सभा में इस पर हुई पूरी बहस चकित करने वाली है। कि कैसे हिंदू समाज खुली आँखों जीती मक्खी निगलता है। एक ही भूल बार-बार करता, दुहराता है, चोट खाता है, फिर भी कुछ नहीं सीखता! धर्मांतरण कराने समेत ‘धर्म-प्रचार’ को मौलिक अधिकार बनाने का घातक निर्णय मात्र एक-दो सदस्यों की जिद पर कर दिया गया। इसके बावजूद कि धर्म-प्रचार के नाम पर इस्लामी और ईसाई मिशनरियों द्वारा जुल्म, धोखा-धड़ी, रक्तपात और अशांति के इतिहास से हमारे संविधान निर्माता पूर्ण परिचित थे। इसीलिए संविदान सभा में पुरुषोत्तमदास टंडन, तजामुल हुसैन, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, हुसैन इमाम, जैसे सभी सदस्य ‘धर्म-प्रचार’ के अधिकार को मौलिक अधिकार में जोड़ना अनुचित मानते थे। फिर भी केवल “ईसाई मित्रों का ख्याल करते हुए” उसे स्वीकार कर बैठे! यह उस हिन्दू भोलेपन का ही पुनः अनन्य उदाहरण था जो ‘पर-धर्म’ को गंभीरता-पूर्वक न जानने-समझने के कारण इतिहास में असंख्य बार ऐसी भूलें करता रहा है।

इसीलिए स्वतंत्र भारत में मिशनरी कार्य-विस्तार की समीक्षा करते हुए जेसुइट मिशनरी फेलिक्स अलफ्रेड प्लैटर ने अपनी पुस्तक द कैथोलिक चर्च इन इंडियाः येस्टरडे एंड टुडे (1964) में भारी प्रसन्न्ता व्यक्त की। उन्होंने सटीक समझा कि भारतीय संविधान ने न केवल भारत में चर्च को अपना धंधा जारी रखने की छूट दी है, बल्कि “टु इनक्रीज एंड डेवलप हर एक्टिविटी ऐज नेवर बिफोर विदाउट सीरियस हिंडरेंस ऑर एंक्जाइटी”। यह निर्विघ्न, निश्चिंत, अपूर्व छूट पाने का ही परिणाम हुआ कि चार-पाँच वर्ष में ही कई क्षेत्रों में मिशनरी गतिविधियाँ अत्यंत उछृंखल हो गईं। तभी सरकार ने मिशनरी गतिविधियों का अध्ययन करने और उस से उत्पन्न समस्याओं पर उपाय सुझाने के लिए 1954 में जस्टिस बी. एस. नियोगी की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया। इस में ईसाई सदस्य भी थे। समिति ने 1956 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसका संपूर्ण आकलन आँखें खोल देने वाला था। किंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। न किसी ने उस के तथ्यों, साक्ष्यों को चुनौती दी, न खंडन किया। केवल मौन के षड्यंत्र द्वारा उसे इतिहास के तहखाने में डाल दिया गया।

तब से आधी शती बीत गई, किंतु उस के आकलन और अनुशंसाएं आज भी सामयिक हैं। जो सामग्री नियोगी समिति ने इकट्ठा की उस से वह इस परिणाम पर पहुँची कि मिशनरी गतिविधियाँ किसी राज्य या देश की सीमाओं में स्वायत्त नहीं है। उनका चरित्र, संगठन और नियंत्रण अंतर्राष्ट्रीय है। जब समिति ने कार्य आरंभ किया तब पहले तो ईसाई मिशनों ने सहयोग की भंगिमा अपनाई। किंतु जब उन्होंने देखा कि समिति अपने काम में गंभीर है तब उन्होंने बहिष्कार किया। फिर नागपुर उच्च न्यायालय जाकर इस का कार्य बंद कराने का प्रयास किया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि समिति का गठन और कार्य किसी नियम के विरुद्ध नहीं है।

अपनी जाँच-पड़ताल के सिलसिले में नियोगी समिति चौदह जिलों में, सतहत्तर स्थानों पर गई। वह ग्यारह हजार से अधिक लोगों से मिली, उस ने लगभग चार सौ लिखित बयान एकत्र किए, इसकी तैयार प्रश्नावली पर तीन सौ पचासी उत्तर आए जिस में पचपन ईसाइयों के थे और शेष गैर-ईसाइयों के। समिति ने सात सौ गाँवों से भिन्न-भिन्न लोगों का साक्षात्कार लिया। समिति ने पाया कि कहीं किसी ने ईसा की निंदा नहीं की, सभी जगह केवल अवैध तरीकों से धर्मांतरण कराने पर आपत्ति थी। यह आपत्तियाँ सुदूर क्षेत्रों में, जहाँ यातायात न होने के कारण शासन या प्रेस का ध्यान नहीं, वहाँ गरीब लोगों को नकद धन देने; स्कूल-अस्पताल की बेहतर सुविधाएं देने के लोभ; नौकरी देने; पैसे उधार देकर दबाव डालने; नवजात शिशुओं को आशीर्वाद देने के बहाने जबरन बप्तिस्मा करने; आपसी झगड़ों में किसी को मदद कर के बाद में दबाव डालने; छोटे बच्चों और स्त्रियों का अपहरण करने; तथा विदेशों से आने वाले धन के सहारे इन्हीं तरीकों से किसी क्षेत्र में पर्याप्त धर्मांतरण करा कर पाकिस्तान जैसा स्वतंत्र ईसाई राज्य बना लेने के प्रयासों, आदि संबंधी थीं।

समिति ने पाया कि लूथरन और कैथोलिक मिशनों द्वारा नीतिगत रूप से धर्मांतरित ईसाइयों में अलगाववादी भाव भरे जाते हैं। उन्हें सिखाया जाता है कि धर्म बदल लेने के बाद उनकी राष्ट्रीयता भी वही नहीं रहती जो पहले थी। अतः अब उन्हें स्वतंत्र ईसाई राज्य का प्रयास करना चाहिए। मिशनरी दस्तावेजों, पुस्तकों, कार्यक्रमों आदि का अध्ययन कर समिति ने पाया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत के प्रति मिशनरी नीतियाँ हैं – (1) राष्ट्रीय एकता का प्रतिरोध करना, (2) भारत और अमेरिका के बीच सहअस्तित्व के सिद्धांत से मतभेद, (3) भारतीय संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए मुस्लिम लीग जैसी ईसाई राजनीतिक पार्टी बनाकर अंततः एक स्वतंत्र राज्य बनाना अथवा कम से कम एक जुझारू अल्पसंख्यक समुदाय बनाना। भारतीय संविधान की उदारता देखकर यूरोप और अमेरिका में मिशनरी सूत्रधारों ने अपना ध्यान भारत पर केंद्रित किया, समिति ने इसके भी प्रमाण पाए।
किंतु समिति की रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण अंश मध्य प्रदेश में मिशनरी गतिविधियों की स्थिति पर था। उस ने पाया कि जिन क्षेत्र में स्वतंत्रता से पहले स्वायत्त रजवाड़ो का शासन था और मिशनरियों पर अंकुश था, अब वहाँ उनकी गतिविधियाँ तीव्र हो गई हैं। इन नए खुले क्षेत्रों में पिछड़े आदिवासियों को धर्मांतरित कराने के लिए विदेशी धन उदारता से आ रहा है। ‘आज्ञाकारिता में भागीदारी’ नामक सिद्धांत के अंतर्गत चर्च को बताया जाता है कि वे जमीन से जुड़े रहें, किंतु अपनी निष्ठा और आज्ञाकारिता को राष्ट्रीय पहचान से ऊपर रखें। समिति ने ईसाई स्त्रोतों से ही पाया कि वे मानते हैं कि उन के कार्य में सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति केवल धन है, हर जगह, हर समय, हर चीज धन पर ही निर्भर है। यहाँ तक कि जो भी व्यक्ति मिशनरियों से मिलने आता है केवल धन के लिए। भारतीय ईसाई विदेशी मिशनरियों का स्वागत भी केवल पैस के लिए करते हैं। कहीं किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक चर्चा या प्रेरणा का नामो-निशान नहीं था।

यह तथ्य एक लाक्षणिक उदाहरण भर था कि ‘नेशनल क्रिश्चियन काऊंसिल ऑफ इंडिया’ के खर्च का मात्र बीसवाँ अंश ही भारतीय स्त्रोतों से आता है, शेष बाहर से। कमो-बेश आज भी स्थिति वही है। यह कितनी विचित्र बात है कि जब जोर-जबर्दस्ती, छल-प्रपंच आदि द्वारा ईसाइयत विस्तार कार्यक्रमों पर चिंता होती है, तो ईसाइयत को भारत में दो हजार वर्ष पुराना, इसलिए, ‘भारतीय’ धर्म बताया जाता है। किंतु जब उसे राष्ट्रीय और आत्मनिर्भर होने के लिए कहा जाता है, तो उसे निर्बल होने के कारण विदेशी सहायता की आवश्यकता का तर्क दिया जाता है! जो भी हो, नियोगी समिति ने विदेशी स्त्रोतों से मिशनरी कार्यों के लिए आने वाले धन का भी हिसाब किया था और पाया कि ‘शिक्षा और चिकित्सा’ के लिए आए धन का बड़ा हिस्सा धर्मांतरण कराने पर खर्च किया जाता है।

जिन तरीकों से यह कार्य होता है वह आज भी तनिक भी नहीं बदले हैं। नियोगी समिति ने ठोस उदाहरण नोट किए थे। हरिजनों, आदिवासी छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। उन्हें दी जानी वाली अतिरिक्त सुविधाओं को ईसाई प्रार्थनाओं में शामिल होने की शर्त से जोड़ा जाता है। बाइबिल कक्षा में शामिल न होने को पूरे दिन की अनुपस्थिति के रूप में दंडित किया जाता है। स्कूल के उत्सवों का उपयोग ईसाई चिन्ह की अन्य धर्मों के चिन्हों पर विजय दिखाने के लिए किया जाता है। अस्पतालों में गरीब मरीजों को ईसाई बनने के लिए दबाव दिया जाता है। सबसे जोरदार फसल अनाथालयों में काटी जाती है जहाँ बाढ़, भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदा में तबाह परिवारों के बच्चों को लाकर सबको ईसाई बना लिया जाता है। अधिकांश धर्मांतरण अनिच्छा से होते हैं, क्योंकि सबमें किसी न किसी लाभ-लोभ की प्रेरणा रहती है। समिति ने पाया कि किसी ने अपने नए धर्म का कोई अध्ययन या विचार जैसा कभी कुछ नहीं किया। धर्मांतरित लोग केवल साधारण आदिवासियों के झुंड थे जिनकी चुटिया कटवा कर बस उन्हें ईसाई के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है।

रोमन कैथोलिक मिशनरी जरूरतमंदों को उधार देकर बाद में उसे वापस न करने के बदले ईसाई बनाने की विधि में सिद्धहस्त हैं। अन्य ईसाई मिशनरियों ने ही नियोगी समिति को यह बात बतायी। यदि कोई वापस करना चाहे तो उसे कड़ा ब्याज देना पड़ता है। कर्ज पाने की शर्त में भी कर्ज माँगने वाले को अपने हिन्दू चिन्ह छोड़ने, जैसे सिर की चोटी कटाने को कहा जाता है। कई लेनदार किशोर उम्र के और मजदूर होते हैं। यदि कोई व्यक्ति कर्ज लेता है, तो मिशनरी रजिस्टर में उस के पूरे परिवार को संभावित धर्मांतरितों में नोट कर लिया जाता है। कर्ज लेते समय ही एक वर्ष का ब्याज उस में से काट लिया जाता है। समिति को अपने संपूर्ण आकलन, अन्वेषण के दौरान एक भी ऐसा धर्मांतरित ईसाई न मिला जिस ने धन के लोभ या दबाव के बिना ईसाई बनना स्वीकार किया हो!

कितने आश्चर्य है कि जो प्रगतिवादी लेखक संगठन और वामपंथी नाट्यकर्मी प्रेमचंद की कहानी ‘सवा सेर गेहूँ’ पर हजारों नाटक मंचित कर चुके हैं, वे मिशनरियों की इस स्थायी, अवैध और घृणित महाजनी पर कभी कोई नाटक क्यों नहीं करते! मगर इसमें कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि भारतीय वामपंथियों को वैसा हर साम्राज्यवाद प्रिय है जिसका निशाना हिन्दू समाज हो।

मिशनरी साहित्य में हिन्दू देवी-देवताओं की छवियों और उन की पूजा पर अत्यंत भद्दे आक्षेप रहते हैं। स्कूलों में मंचित नाटकों में उनकी हँसी उड़ाई जाती है। उनका मखौल बनाने वाले गाने लिखे, गाए जाते हैं। हिन्दू ग्रंथों को विकृत करके प्रस्तुत किया जाता है। संविधान बनने के बाद से सरगुजा जिले में बने ईसाइयों की एक सूची सरकार ने समिति को दी थी। नियोगी समिति ने पाया कि वहाँ दो वर्ष में चार हजार उराँव ईसाई बने। उन में एक वर्ष से साठ वर्ष के पुरुष, स्त्री शामिल थे। समिति ने पाया कि उन में अपने नए धर्म का कहीं, कोई भाव लेश मात्र न था। प्रायः लोगों को झुंड में थोक भाव में धर्मांतरित करा लिया जाता है। किंतु रोमन कैथोलिक मिशनों ने समिति को अपने द्वारा धर्मांतरित कराए लोगों का विवरण नहीं दिया। क्योंकि उस से यह सच्चाई सामने आ जाती कि वह स्वेच्छा से नहीं, बल्कि संगठित, प्रायोजित हुआ था।

नियोगी समिति का प्रमाणिक निष्कर्ष था कि धर्मांतरण लोगों को राष्ट्रीय भावनाओं से विलग करता है (यही अपने समय में गाँधीजी ने भी कहा था)। धर्मांतरित ईसाइयों को सचेत रूप से इस दिशा में धकेला जाता है। उन से ‘राम-राम!’ या ‘जय हिन्द’ जैसे अभिवादन छुड़वा कर ‘जय यीशू’ कहना सिखाया जाता है। मिशनरी स्कूलों के कार्यक्रमों में राष्ट्रीय ध्वज से ऊपर ईसाई झंडा लगाया जाता है। ईसाई अखबारों में गोवा पर पुर्तगाल की औपनिवेशिक सत्ता बने रहने के पक्ष में लेख रहते थे, और इस बात की आलोचना की जाती थी कि भारत उसे अपना अंग बनाना चाहता है (तब गोवा पुर्तगाल के अधिकार में था)।

मिशनरी गतिविधियों की एक तकनीक समिति ने नोट की कि वह स्थानीय शासन और सरकार पर नियमित आरोप और शिकायतें करके एक दबाव बनाए रखते हैं, ताकि कोई उन की अवैध कारगुजारियों पर ध्यान देने का विचार ही न करे। यह एक जबरदस्त तकनीक है जो आज भी बेहतरीन रूप से कारगर है। समिति ने पाया कि मध्य प्रदेश शासन मिशनरी सक्रियता के क्षेत्रों में पूरी तरह तटस्थ रहा है, उस ने कभी कोई हस्तक्षेप किया हो ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिला। किंतु मिशनरी संगठन सरकार पर प्रायः कोई न कोई भेद-भाव जैसी शिकायत करते रहने की आदत रखते हैं। समिति ने पाया था कि यह प्रशासनिक अधिकारियों को रक्षात्मक बनाए रखने की पुरानी मिशनरी तकनीक रही है। यही आज भी देखा जाता है, जब दिल्ली, गुजरात, झारखंड, उड़ीसा या मध्य-प्रदेश में मिशनरी संगठन अकारण या उलटी बयानबाजी करके सरकार को रक्षात्मक बने रहने के लिए विवश करते हैं। उलटा चोर कोतवाल को डाँटे जैसी सफल तकनीक।

नियोगी समिति ने अनेकानेक मिशनरी दस्तावेजों का अध्ययन करके पाया था कि भारत में मिशनरी धर्मांतरण गतिविधियाँ एक वैश्विक कार्यक्रम के अंग हैं जो पूरे विश्व पर पश्चिमी दबदबा पुनर्स्थापित करने की नीति से जुड़ी हुई हैं। उस में कोई आध्यात्मिकता का भाव नहीं, बल्कि गैर-ईसाई समाजों की एकता छिन्न-भिन्न करने की चाह है। जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरनाक है। समिति की राय में ईसाई मिशन भारत के ईसाई समुदाय को अपने देश से विमुख करने का प्रयास कर रहे हैं। यानी, धर्मांतरण कार्यक्रम कोई धार्मिक दर्शन नहीं, बल्कि राजनीतिक उद्देश्य के अंग हैं। भारत के चर्च स्वतंत्र नहीं, बल्कि उन के प्रति उत्तरदायी हैं जो उनके रख-रखाव का खर्च वहन करते हैं। समिति के अनुसार धर्मांतरण दूसरे तरीके से राजनीति के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

यह संयोग नहीं है कि नियोगी समिति ने अवैध, राष्ट्र-विरोधी, समाज-विरोधी मिशनरी गतिविधियों को रोकने के लिए जो अनुशंसाएं दी थीं, उन का आज भी उतना ही मूल्य है। वे अनुशंसाएं यह थीं – (1) जिन विदेशी मिशनों का प्राथमिक कार्य मात्र धर्मांतरण कराना है, उन्हें देश से चले जाने के लिए कह देना चाहिए, (2) चिकित्सा और अन्य सेवाओं के माध्यम से धर्मांतरण बंद करने के लिए कानून बनाए जाने चाहिए, (3) किसी की विवशता, बुद्धिहीनता, अक्षमता, असहायता आदि का लाभ उठाते हुए धोखे या दबाव से धर्मांतरण को पूर्णतः प्रतिबंधित करना चाहिए, (4) विदेशियों द्वारा तथा छल-प्रपंच से धर्मांतरण रोकने के लिए संविधान में उपयुक्त संशोधन होना चाहिए, (5) अवैध तरीकों से धर्मांतरण बंद करने के लिए नए कानून बनने चाहिए, (6) अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टरों, नर्सों और अन्य अधिकारियों के रजिस्ट्रेशन में ऐसे संशोधन करने चाहिए जिस से उनके द्वारा किसी मरीज के ईलाज और सेवा के कार्यों के दौरान उस का धर्मांतरण न होने की शर्त हो, (7) बिना राज्य सरकार की अनुमति के धार्मिक प्रचार वाले साहित्य के वितरण पर प्रतिबंध हो।

जब नियोगी समिति की यह रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो मिशनरी संगठनों ने इसे तानाशाही की ओर बढ़ने का उपाय बताकर निंदा की। किंतु किसी ने इस रिपोर्ट के तथ्यों, आकलनों को मिथ्या कहने का साहस नहीं किया। हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हमारे नेताओं, प्रशासकों, बुद्धिजीवियों ने समिति की किसी अनुशंसा को लागू करने का प्रयास नहीं किया। यही कारण है कि रोग, उस के फैलने के तरीके, उस से होने वाली हानि और देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा भी यथावत है। इस अर्थ में नियोगी समिति की ऐतिहासिक रिपोर्ट आज पचपन वर्ष बाद भी सामयिक और पठनीय है।

बाबा माधवदास संभवतः अब नहीं हैं, किंतु उनकी वेदना का कारण यथावत है। न रोग दूर हुआ, न उस के निदान की कोई चिंता है। कंधमाल (उड़ीसा) की घटनाएं इस का नवीनतम प्रमाण हैं। नियोगी समिति ने उस के सटीक उपचार के लिए जो सुचिंतित, विवेकपूर्ण अनुशंसाएं दी थीं। वह आज भी उतनी ही आवश्यक हैं जितनी तब थीं। परंतु उस के प्रति हिन्दू उच्च वर्ग की उदासीनता भी लगभग वैसी ही है। इन में वैसे हिन्दू भी हैं जो सभी बातें जानते हैं, किंतु अपने सुख-चैन में खलल डाल कोई कार्य नहीं करना चाहते। कोई दूसरा कर दे तो उन्हें अच्छा ही लगता है। पर उसके लिए एक शब्द कहने तक का कष्ट वह उठाना नहीं चाहते।

इस भीरू प्रवृत्ति को महान रूसी लेखक सोल्झेनित्सिन ने ‘म्यूनिख भावना’ की संज्ञा दी थी। इस मुहावरे की उत्पत्ति 1938 में जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली के बीच हुए म्यूनिख समझौते के बाद हुई। उस समझौते में महत्वपूर्ण यूरोपीय देशों ने चेकोस्वोवाकिया को हिटलरी जर्मनी की दया पर छोड़ कर स्वयं को सुरक्षित समझ लिया था। अपने नोबेल पुरस्कार भाषण (1970) में सोल्झेनित्सिन ने कहा था, “The spirit of Munich is a sickness of the will of successful people, it is the daily condition of those who have given themselves up to the thirst after prosperity at any price, to material well-being as the chief goal of earthly existence. Such people – and there are many in today’s world – elect passivity and retreat, just so that their accustomed life might drag on a bit longer, just so as not to step over the threshold of hardship today – tomorrow, you’ll see, it will all be all right. (But it will never be alright! The price of cowardice will only be evil; we shall reap courage and victory only when we dare to make sacrifices.)” भारत के उच्च वर्गीय हिन्दुओं में यह भावना केवल ईसाई मिशनरियों के आध्यात्मिक आक्रमण के प्रति ही नहीं, बल्कि इस्लामी आतंकवाद, कश्मीरी मुस्लिम अलगाववाद और नक्सली विखंडनवाद जैसे उन सभी घातक परिघटनाओं के प्रति है जिनका निहितार्थ उन्हें मालूम है। किंतु इन से लड़ने के लिए वे कोई असुविधाजनक कदम उठाना तो दूर, दो सच्चे शब्द कहने से भी वे कतराते हैं।

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चर्च के साम्राज्यवाद का खुलासा करती पुस्तक – ‘‘ऊँटेश्वरी माता का महंत”

मदर टैरेसा पर उठा विवाद अभी थमा भी नही है कि एक ईसाई संगठन से जुड़े कैथोलिक विश्वासी पी.बी.लोमियों की हाल ही में आई पुस्तक ‘‘ ऊँटेश्वरी माता का महंत” ने ईसाई समाज के अंदर चर्च की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल उठा दिये है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” र्शीषक से लिखी गई यह पुस्तक एक येसु समाजी (सोसाइटी ऑफ जीजस) कैथोलिक पादरी (फादर एंथोनी फर्नांडेज) जिन्होंने अपने जीवन के 38 वर्ष कैथोलिक चर्च की भेड़शलाओं का विस्तार करने में लगा दिए, चर्च की धर्मांतरण संबधी नीतियों का परत दर परत खुलासा करती है और साथ ही चर्च नेतृत्व का फरमान न मानने वाले पादरियों और ननों की दुर्दशा को बड़ी ही बेबाकी से उजागर करती है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” र्शीषक से लिखी गई यह पुस्तक कैथोलिक चर्च व्यवस्था, रोमन कूरिया, जेसुइट कूरिया पर कई स्वाल खड़े करते हुए ‘‘उतरी गुजरात” के कुछ हिस्सों में चर्च द्वारा अपनी भेड़शलाओं को बढ़ाने का चौंकाने वाला खुलासा करती है – कि, विदेशी मिश्नरियों की धर्म प्रचार क्षमता का लोहा मानना पड़ेगा। स्पेनिश फादर गैर्रिज ने यह देखा कि ‘ऊँट इस क्षेत्र का प्रधान पशु है’-(रेगिस्तान का जहाज) यह इस बंजर जमीन पर रहने वालों का परिवारिक अभिन्न अंग है व्यापार का साधन भी है। अतः ऊँट से संबधित रक्षक देवी के रुप में उन्होंने मदर मेरी को एक ‘नया अवतार’ प्रदान किया, ‘‘ऊँटेश्वरी माता” -ईशूपंथियों, ऊँट-पालकों की कुल माता!
विदेशो से आर्थिक सहायता प्राप्त कर उन्होंने मेहसाना क्षेत्र के बुदासान गांव में 107 एकड़ का विशाल भूखण्ड खरीद कर पहाड़ी नुमा जमीन पर एक विशाल वृक्ष के नीचे एक ‘डेहरी’ (चबूतरा) का निमार्ण करवाया और घोषणा की, कि यह डेहरी ऊँटेश्वरी माता की ‘डेहरी’ है। यह देवी जगमाता है। जो ऊँटों की रक्षा करती है।
फादर एंथोनी फर्नांडेज को आदिवासियो व मूल निवासियों को ईशुपंथी बनाने के काम पर लगाया गया था। उन्होंने जब वस्तु स्थिति का सामना किया तो उन्हें मिशनरियों की कुटिलता और धोखेबाजी का आभास होता गया। फादर एंथोनी इस तथ्य से बहुत आहत थे कि विदेशी मिशनरियों का मुख्य उदे्श्य, उत्तरी गुजरात के आदिवासियों और अनुसूचितजातियों का धर्मांतरण करवाना ही था, चाहे इसके लिए कोई भी नीति क्यों न अपनानी पड़े। वास्तव में उनके विकास से उनका कोई लेना देना नहीं था। सभी योजनाएं चाहे वह समाज सेवा, शिक्षा एवं स्वस्थ्य सेवाएं हो, वे केवल उन्हें लालच वश ही प्रस्तुत की जा रही थी।
इस हकीकत को सामने लाने का प्रयास करने वाला अब नहीं हैं – उनका देहान्त पिछले साल 11 मई 2014 को बनारस में हो चुका हैं – वह व्यक्ति थे फादर एन्थनी फर्नांडेज – येसु समाजी – एक कैथोलिक प्रीस्ट – एक सच्चा सन्यासी, एक सच्चा संत और एक राष्ट्रभक्त हिन्दुस्तानी।
महात्मा गांधी की भूमि – गुजरात में जन्मा – पला – बढ़ा, यह कैथोलिक प्रीस्ट गुजरातियों की धार्मिक आस्था का पर्याय था। गुजरात के महान संत नरसिंह मेहता के गीत और भजनों में रमा हुआ था – ’’वैष्णव जन तेने कहिए, जो पीर पराई जाने रे” – पराई पीर को दूर करने, पीड़ितों का कल्याण करने की साफ नीयत लिये हुए फादर एन्थनी फर्नांडेज, जेसुइट समाज (कैथोलिक चर्च) का अंग बन गया। उत्तरी गुजरात, जो अक्सर कम वर्षा का शिकार रहता हैं – के गरीब किसानों और आदिवासियों के लिए कैथौलिक जेसुइट मिशनरियों द्वारा चालयें जा रहे राहत कार्यों में अपने सुपीरियरों और प्रोविंशियलों द्वारा लगा दिया गया। लेकिन जब उसे इन देशी विदेशी मिशनरियों की धूर्ता और देश के प्रति षड्यंत्रों से साक्षात्कार हुआ तो उसने उनका पुरजोर विरोध करने के उपाय तलाशना शुरू कर दिया। लेकिन क्या यह ’’अकेला चना” भाड़ फोड़ सका?
ईसाइयत में शुरु से ही पूरी दुनियां को जितने का एक जानून रहा है और इसके इस कार्य में जिसने भी बाधा खड़ी करने की कौशिश की वह इस साम्राज्यवादी व्यवस्था से सामने ढेर हो गया। भारत में भी पोप का साम्राज्यवाद उसी नीति का अनुसरण कर रहा है। अगर कोई पादरी या नन व्यवस्था के विरुद्व कोई टिप्पणी करते है तो उनका हाल भी फादर एंथोनी फर्नाडिज जैसा ही होता है क्योंकि चर्च व्यवस्था में मतभिन्नता के लिए कोई स्थान नहीं है। इसी कारण भारत में कैथोलिक चर्च को छोड़ चुके सैकड़ों पादरी ओर नन चर्च व्यवस्था के उत्पीड़न से बचने के लिए ‘‘कैथोलिक चर्च रिफॉर्मेशन मूवमेंट (केसीआरएम) का गठन कर रहे है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” के नायक फादर एंथोनी फर्नांडेज को भी ‘ईसा की तरह कू्रसित’ (सलीबी मौत) करने का लम्बा षड्यंत्र चल पड़ा। इस संघर्ष में वह अकेला था – उसके साथ कोई कारवां नहीं था। ईसा भी तो अकेले ही रह गये थे – उनके शिष्य उन्हें शत्रुओं के हाथ सौंप कर भाग गये थे और जिस यहूदी जाति के उद्धार के लिए वे सक्रिय थे वही जनता रोमन राज्यपाल पिलातुस से ईसा को सलीब पर चढ़ाये जाने के लिए प्रचण्ड आन्दोलन कर रही थी। यही हुआ था – ऊंटेश्वरी माता के इस महंत – फादर टोनी फर्नांडेज़ के साथ।
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक श्री कुमारप्पा (जो कि स्वयं कैथोलिक ईसाई थे) का विचार था: – पश्चिमी देशों की सेना के चार अंग हैं – ’”थल सेना, वायु सेना और नौसेना तथा चर्च (मिशनरी) ।“ इन्हीं चार अंगीय सेना के बलबूते पर पश्चिमी देश पूरे विश्व पर राज्य करने की योजना रचने में माहिर हैं।“ आज की परिस्थतियों में एक और सेना भी जोड़ी जा सकती हैं – वह पांचवी सेना हैं ’’मीडिया”
वर्तमान समय में अविकसित या अर्द्धविकसित देशों की प्राकृतिक सम्पदाओं – तेल – वनों – खनिजों की जितनी समझ पाश्चात्य देशों की हैं, उतनी समझ या जानकारी स्वयं इन देशों की सरकारों को नहीं हैं।
इस पुस्तक में स्पेनिश मिशनरियों द्वारा अपनाई गई ’’ऊँट की चोरी” करने की नायाब तरकीब बताई गई हैं – इस चोरी की विधि में केवल ऊँट ही नहीं चुराया जा सकता हैं अपितु ऊँट पालकों की जर जमीन, मान मर्यादा, धर्म-संस्कृति आदि सभी पर हाथ साफ किया जा सकता हैं। यहाँ तक की आदिकाल से चली आई सामाजिक एकता और समरसता को भी आसानी से विभाजित किया जा सकता है।
इन विदेशी मिशनरियों की सोच है किः – ’’यदि कोई ’’ईसाई युवती” अपनी पूर्व जाति के, ’’गैर-ईसाई” युवक से विवाह करना चाहती है, तो उसे मना मत करो – कालान्तर में वह अपने पति व सास-ससुर तक को ईसाई बना लेगी और उसके बच्चे तो पैदायशी ईसाई होंगे ही।’’
आपने कई बार ’’समानान्तर सरकार” शब्द भी सुना होगा या पढ़ा होगा। लेकिन समानान्तर सरकार या पैरलल गवन्रमेंट का असली स्वरूप क्या होता है? कैसा होता हैं? इस तथ्य से शायद रू-ब-रू नहीं हुए होंगे – ‘‘ऊँटेश्वरी माता का महंत” में आप को यह तथ्य भी समझ में आ जायेगा। कुल 107 एकड़ तिकोनी जमीन पर स्थापित ’’वेटिकन नगर राज्य” किस प्रकार से विश्व के तमाम देशों में किस तरह अपनी समानान्तर सरकार चला रहा है यह तथ्य फादर टोनी की कहानी पढ़कर ही जाना जा सकता है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” पुस्तक में चर्च के साम्राज्यवाद का जिक्र जिस तरीके से किया गया है उसे पढ़कर देशभक्त भारतवासियों की आँखें खोल देने वाला है। पुस्तक का लेखक बताता है कि भारत में वेटिकन की ’’समानान्तर सरकार” स्वतंत्रता से पूर्व 1945 में ही स्थापित हो गई थी (जब यहाँ कैथोलिक बिशप्स कान्फ्रेंस ऑफ इण्डिया ;ब्ठब्प्द्ध का गठन हो गया था तथा वेटिकन का राजदूत (इंटरनुनसियों) नियुक्त हो गया था। भारत सरकार और राज्य सरकारों तथा उच्चधिकारियों पर इसकी कितनी मजबूत पकड़ हैं – को भी आप स्पष्ट रूप से देख-समझ सकेंगे – समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के खेल द्वारा यह समानान्तर सरकार जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को अपने पॉकिट में किस तरह और किस ठसक से रखती हैं, आप कल्पना ही नहीं कर सकते! इस कार्य में पांचवी सेना ’’मीडिया” भी अपना अहम रोल अदा करती हैं।
“ऊंटेश्वरी माता का महंत” पुस्तक उन लोगों को अवश्य ही पढ़ना चाहिए जो राष्ट्रीयता, स्वाभिमान और सार्वभौमिकता के मायने समझते हैं और उन्हें भी पढ़ना चाहिए जो धर्मों की चारदीवारी में कैदी जीवन बिता कर कूपमण्डूक स्थिति में जीवित रहकर, स्वयं को सार्वभौम समझे हुए है। इस पुस्तक में अप्रत्यक्ष रूप से उन लोगों के लिए भी संदेश उपस्थित हैं, जो धर्मान्तरितों की ’’घर वापसी” चाहते हैं।
यह पुस्तक धर्मांतरित ईसाइयों की दयनीय स्थिति और चर्च नेतृत्व एवं विदेशी मिशनरियों द्वारा भारत में धर्मांतरण के लिए अपनाई जाने वाली घातक नीतियों और चर्च के राष्ट्रीय – अतंरराष्ट्रीय नेटवर्क का भी खुलासा करती है। पुस्तक में आज की परिस्थितियों का सही आंकलन हैं और इसके घातक परिणामों को रोकने के कुछ उपाय भी ढूंढने के प्रयास किये गए हैं।
“ऊंटेश्वरी माता का महंत” पुस्तक बताती है कि धर्मों की स्थापना, मानव समाज को विस्फोटक स्थिति से बचाए रखने के लिए, ’’सेफ्टी वाल्व” के रूप में हुई है। लेकिन जब यह ’’सेफ्टी डिवाइस” (रक्षा उपकरण) गलत और अहंकारी लोगों की निजी संपत्ति बन जाते हैं, तो मानवता के लिए खतरा बढ़ जाता है। वर्तमान समय में, ऐसे ही स्व्यंभू धर्म माफियाओं की जकड़ में प्रायः प्रत्येक धर्म आ गया है। अतः अब समय आ गया है, कि ऐसे तत्वों को सिरे से नकारा जाये ताकि मानवता सुरक्षित रहे।“
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“ऊंटेश्वरी माता का महन्त”
लेखक – पी.बी.लोमियों
प्रकाशकः जे.के. इन्टरप्रईजर,
डब्लयू बी/27 प्रथम तल, शकरपुर, दिल्ली – 110 092
मूल्यः 300/-
पृष्ठः 184
प्रथम संस्करणः 2015
ISBN -978-93-84380-01-4


जाग्रत सरकार , जाग्रत भारत : सन् 2015 नरेन्द्र मोदी:

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सन् 2015 नरेन्द्र मोदी: 

जाग्रत सरकार , जाग्रत भारत 

लेखक - अरविन्द सिसोदिया
      भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पद संभालते ही देश को स्वाभिमान से भर दिया और बहुत कुछ इस तरह का सकारात्मक हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ था । मगर फिर भी मुझे नहीं लगता कि भारतीय विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी के लिये 2015 में बहुत कुछ खोज पायेगा। क्यों कि हमारी देखने की दृष्टि राष्ट्रहित न होकर पार्टीहित मात्र रह गयी। धर्मराज युधिष्टर ने एक बार भीम से कहा था हम घर में पांच पाण्डव और 100 कौरव हैं मगर दूसरे के लिये हम 105 भाई हैं। यह भाव भारतीय राजनीती में वर्षों से देखने में नहीं मिल रहा है। शत्रुता का भी एक अनुशासन होता है। किन्तु भारत में मीर जाफर और जयचंद जैसी वैचारिक सोच निरंतर बनी हुई है। जिसका फायदा बाहरी देश और हमलावर हमेशा उठाते आये हैं। अंग्रेज भी देश उन हाथों में सौंप कर गये थे, जो हमेशा ब्रिटिश क्राउन के नीचे कॉमनवेल्थ संघ में रहे अर्थात राष्ट्रीय स्वाभिमान के बजाये विदेशीयों को परमेश्वर मानने वाले तत्वों की भूमिका तब से अभी तक भी बनी हुई हैं।
     यह मोदी की सफलता है कि उन्होने दुनिया भर में भारत की धमक पैदा की और मौन तथा महाभ्रष्ट भारत सरकार की बुरी दशा से भारत को निकाल कर, एक भ्रष्टाचार रहित जाग्रत सरकार और जाग्रत भारत विश्व पटल पर खडा किया। कभी जो केन्द्रीय सचिवालय अपना अर्थ खो चुका था और जहां की सरकार रिमोट सरकार कहलाती थी, उस छवी को पूरी तरह निरस्त करते हुये , नये तरीके की कार्यशैली से देश की छवी को नये आयाम दिये हैं। बिहार में एक कहावत खूब कही और सुनी जाती है ” लीके-लीक गाड़ी चले, लीके चले कपूत ,य लीक छाड़ी के तीन चले सिंह, शायर, सपूत । मोदी लीक ही लीक चलने की औपचारिकता से उठे हैं तो हर्ज क्या हे।
     मोदी के केन्द्रीय सत्ता में आने से पहले, पूर्ण बहूमत की राजीव गांधी सरकार थी, जो कि श्रीमती इन्दिरा गांधी की नृशंस हत्या से उपजी साहनभूती के कारण भारी बहूमत से बनीं थी, उसके बाद से लगातार भारत में अल्पमत सरकारों का दौर चला, लगातार 25 वर्षों से आंतरिक तनाव की सरकारों के कारण, विदेशी हित तो निर्वाध पूरे होते रहे, मगर स्वदेशीहित बाधित हो गये। वाजपेयी सरकार का समय छोड कर देश में भ्रष्टाचार का साम्राज्य इस कदर व्यवस्था पर हाबी हुआ कि कोई और कार्य नजर ही नहीं आ रहा था। देश की जनता ने गतशासक दल और उनके अधिकांश सहयोगियों सहित आम चुनाव में पूरी तरह नकारते हुये नाकाबिल की स्थिति में डाल दिया। मोदी के पक्ष में 325 से अधिक सीटें देकर प्रखरता से राष्ट्र चलाने का जनादेश दिया। जिसे कांग्रेस लगातार संसद में असहष्णिु बन कर बंधक बनाये हुये हैं। अब भारत का जनमत भी कहने लगा है कि कांग्रेस, मोदी सरकार को काम नहीं करनें दे रही है।
    विदेशी कूटनीतियों के औजार और व्यापक विदेशी धन के द्वारा देश में आराजकता उत्पन्न करने वाले तत्वों के साथ - साथ, विदेशी फासिस्ट परिवार के स्वभाव से आई फासिस्ट विपक्षी राजनीती के अडंगों की सक्रीयता के बावजूद, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की गुम हो चुकी अपनी निजी आवाज, पहचान, सम्मान और स्वाभिमान की दमदार पुर्न वापसी की। भारत विश्व में हर मोर्चे पर उभरा है और उसकी स्विकार्यता को स्विकार किया गया है। विदेशी कूटनीतियों एवं प्रयासों का फायदा एक दिन में कभी भी नहीं मिलता, सबके अपने - अपने हित होते हैं। किन्तु यह भी सच है कि बात करने से ही बात बनती है। खेत स्वंय कभी गाय के पास नहीं आता, चारा चरने खेत तक गाय को ही जाना होता है। यह मानना ही पडे़गा कि मोदीजी ने जी तोड़ प्रयास किये हैं, कोई बाधा खड़ी नहीं होती है तो इन प्रयासों से भारत का भविष्य उज्जवलता के साथ संवरने वाला है।
     देश को भ्रामकता में डुबोये रखनें का खेल साठ सालों से निरंतर चलता रहा , सब कुछ पर्याप्त है की अफीम पिलाई जाती रही , जबकि सब कुछ ठीक होने से हम कोसों दूर रहे। देश के हित के लिये न तो विनिर्माण किये गये, न अनुसंधान किये गये, न वैज्ञानिकता अथवा सामरिकता के कार्य हुये और न ही आम नागरिक का जीवन संवारा गया, मगर गरीबों के हितैषी के दिखावे करके वोट ठगे जाते रहे हैं। भारतीय नागरिक की गुणवत्तावृद्धि और उसकी क्षमतावृद्धि के लिये काफी कुछ होना चाहिये था मगर मोदी से पहले प्रयास तक नहीं हुये। नरेगा जो बाद में मानरेगा कहलाया में जनता को गढ्डे खोदने लायक बना दिया। जबकि इससे उन्हे कुशल कारीगर भी बनाया जा सकता था। चीन ने अपने नागरिकों को कुशल कारीगर बना कर पूरे विश्व में विनिर्माण का ढंका बजा दिया। इस जड़ता को तोडने वाली मोदी सरकार को विदेशीहितों से जुडे़ तत्व हतोत्साहित करेंगे ही । मगर मोदी ने भारत में इसके लिये पहल की, एक आशा भरी राह दिखाई, क्या यह सराहनीय नहीं हे ! और आने वाले वर्षों में हम चीन को पीछे छोडने की राह पर निकल चुके हैं। यह भी सच है कि आत्मनिर्भरता और उत्थान का यह संघर्ष अभी कई दसकों तक चलेगा। जब लक्ष्य की ओर जले हैं तो मंजिल भी पायेंगे।

    अभी तक दुनिया भर में सबसे शक्तिशाली अमरीका की ही आवाज गूंज रही थी, किन्तु हम गर्व से कह सकते हैं नरेन्द्र मोदी के कारण 2015 में भारत का सारे विश्व में स्वागत होता रहा और गौर से हमारी बात सुनी गई। मोदी ने कोई भी प्रबंध किये हों , पर पूरा राष्ट्र विश्व के अनेकानेक देशों में हुये भव्य कार्यक्रमों से गौरवान्वित हुआ। वहीं 21 जून अर्न्तराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भारत को ऐतिहासिक तोहफा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिया, जिससे पूर्वजों के ज्ञान को मान, सम्मान और मान्यता मिली। एक सुप्रसिद्ध दैनिक के संपादक ने बीबीसी से बातचीत में बताया है कि भारत को आर्थिक, राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर जो स्थान मिल रहा है वह पहले नहीं मिलता था। वे  मानते हैं कि इस संबंध में भारत की स्थिति मजबूत हुई है और अंतरराष्ट्रीय शक्तियां अब भारत को ज्यादा महत्व दे रही हैं। उनके मुताबिक भारत को सामरिक क्षेत्र में भी अच्छी सफलता मिली है।
मोदी के विदेशी दौरों से सबसे ज्यादा खलबली उन्ही ताकतों में है जिनके इशारों पर कल तक भारत सरकारें और कुछ दल विशेष नाचा करते थे। भारत से अनाप सनाप लाभ कमानें वाले देश, कभी नहीं चाहेंगे कि भारत आत्म निर्भर हो। एक विदेशी मूल के नेतृत्व में चलने वाला दल सत्ता जाते ही विदेश सम्बंधों पर हायतौबा मचा रहा है। जब कांग्रेस सरकार थी वह भी यूरोप, अमरीका और अस्ट्रेलियाई हितों की चिंता करती थी। हमनें कांग्रेस सरकार को अमरीकी हितों में कानून बनाने के लिये अपने ही साथी वामपंथियों से संसद में हाथ छुडाते देखा है। पड़ौसी चाहे घर का हो चाहे देश का हो, उससे सम्बंध अच्छे हों यह नीतीगत जरूरी है वहीं यह भी सास्वत सत्य है कि उनसे खटपट भी निरंतर होती रहती हे। सब जगह यह है। विदेश नीतियां न तो दलीय सरकारों के बदलने से बदलती हैं, न ही कोई दल किसी देश विशेष के हित में संलिप्त हो सकता है। मोदी सरकार के विदेशी दौरों से देशहित के साथ - साथ विश्व में हमारी महत्वपूर्ण भूमिका खड़ी हुई है। कम से कम अटलबिहारी वाजपेयी सरकार के बाद आया शून्य समाप्त हो गया है।

   यूं तो कांग्रेस को ही जबाव देना है कि वह आयात - निर्यात असंतुलन , उत्पादनहीनता, बेरोजगारी, कालेधन, कन्या जनसंख्या असन्तुलन की समस्याओं सहित तमाम भारतीय हितों केे पिछडने के मामलों में , सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी देश को सुव्यवस्था क्यों नहीं दे पाई । और लगातार भारतीय हितों को आयात की विदेशी छोली में क्यों डाले रही ! कांग्रेस से देश को सवाल करने का अधिकार है कि आप भारत को एक वंश की जायदाद क्यों मान रहे हैं, लोकतंत्र में इसकी इजाजत नहीं है। कांग्रेस की स्थापना एक इग्लैंड निवासी अंग्रेज अफसर एलेन ओक्टेवियन ह्यूम ने की थी, मगर उसने तो कोई वसियत नेहरू खानदान के पक्ष में नहीं की। असली कांग्रेस का तो अपहरण हो गया, क्यों कि कांग्रेसजन अपने मूल संस्थापक की जयन्ति और पुण्यतिथि तक नहीं मनाते, एक भी योजना का नामकरण अपने संस्थापक के नाम पर नहीं कर पाये। अधिकांशतः नामकरण नेहरू परिवार के नामों पर हुए जैसे देश इस वंश की सम्पत्ती हो। लोकतंत्र में यह गुनाह है।

   सवाल यह भी है कि देश इतने सारे मुख्यमंत्री हैं और राज्य सरकारें हैं लगातार आजादी के समय से ही हें और वे पूरी ताकत से काम करें तो पांच - दस साल में कोई भी बडी समस्या बचे ही नहीं । मगर देश में गंदगी है, सफाई की जरूरत है ! देश में अच्छे कारीगरों का अभाव है, अच्छे कारीगरों की जरूरत है, इसके लिये गुणवत्ता युक्त शिक्षा तथा प्रशिक्षण चाहिये! बेटियों का जनसंख्यात्मक अनुपात भयानक रूप से असन्तुलित हो रहा है। इस दिशा में तत्काल कदम उठाना था, बेटी बचाओ - बेटी पढाओ की जरूरत बहुत पहले से थी ! भारतीय निर्यात का पिछडापन ! बैंकों में आम आदमी को खाता आसानी से खुल जाता होता तो जन धन योजना की जरूरत ही कहां होती ! गुणवत्तायुक्त शासन बनानें की फिकर कभी नहीं की गई। अब मोदी करते हैं तो वे अपने समय का सदउपयोग कर रहे हैं पहले वालों की तरह समय जाया नहीं कर रहे।

     केन्द्र सरकार तो बडे़ कामों के लिये ही होती है। उसे छोटी - छोटी बातों पर नहीं घेरा जा सकता। प्रांतीय विफलताओं पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उत्तरप्रदेश सरकार की नाकामी से कोई व्यक्ति मर गया या किसी राज्य सरकार की विफलता से कोई साहित्यकार नहीं रहा तो मुद्दा मोदी कैसे हो गया ? कानून व्यवस्था प्रदेश सरकार का काम है मगर विपक्ष आपराधिक भ्रामकता फैलाता रहा । पुरस्कार वापसी का षड़यंत्र चला किस के इशारे पर और क्यों ? क्या इसकी पैठ में राजनैतिक साजिश नहीं थी ? यहां तक कि हाजिरी का सम्मन न्यायालय निकाले और पूरे देश में धरने प्रदर्शन हों। अनैतिक दबाव और आराजकता की राजनीति करके देश का मखौल उड़ाया जा रहा है। देश चलाने के लिये कांग्रेस को भी मिला था, उनके दस साल भ्रष्टाचार और घोटालों की ही भेंट चढ़ गये। मोदी जनादेश के माध्यम से देश चला रहे हैं और उनके शासन में वे नकारात्मक बातें भी सामनें नहीं आईं जो कांग्रेस शासन में अपयश बनीं हुईं थी। वे उन समस्याओं पर फोकस कर रहे हैं जिनमें वास्तविक सुधार की जरूरत है, तो गलत क्या है।

अंतिम बात, साल 2015 के जाते - जाते तमाम चर्चित विदेश यात्राओं के अंत में अफगानिस्तान यात्रा से बिना योजना पाकिस्तान के लाहौर पहुच कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो हाई मास्टर स्ट्रोक मारा, उसने उन्हे ऐतिहासिक नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया, वहीं कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई की पत्रिका कांग्रेस दर्शन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती सोनियां गांधी के सत्य दर्शन करा दिये। जिस लेख में वास्तविकता का एक - एक शब्द , सही - सही लिखा था, उसको छापने के दुस्साहस में एडीटर को बाहर का जो रास्ता दिखाया गया, इससेे कांग्रेस नेतृत्व स्वंय असहिष्णु साबित हुआ तथा कांग्रेस प्रतिष्ठा भी धूलधूसरित हुई।

- बेकरी के सामनें, राधाकृष्ण मदिर रोड़, डडवाडा, कोटा जं0 राजस्थान ।






- अरविन्द सिसोदिया,
लेखक , विश्लेषक, ब्लागर एवं स्वतंत्र पत्रकार
बेकरी के सामनें, राधाकृष्ण मदिर रोड़,
डडवाडा, कोटा जं0 राजस्थान ।
sisodiaarvind0@gmail.com 


मुझ पर हर तरफ से हमले हो रहे : नरेंद्र मोदी

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आखिरकार बाहर आ ही गई पीएम नरेंद्र मोदी की टीस,
बोले - मुझ पर हर तरफ से हमले हो रहे
Reported by Indo-Asian News Service , Last Updated: शुक्रवार जनवरी 22, 2016

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार सुबह वाराणसी में डीजल रेल इंजन कारखाना (डीरेका) मैदान में 9000 से ज्यादा विकलांगों को उपकरण बांटकर रिकॉर्ड बनाया। मोदी ने खुद कई बच्चों को उपकरण, हाईटेक छड़ी, ट्राइसाइकिलें बांटी। पीएम मोदी ने इस मौके पर यह भी कहा कि उनपर लगातार हमले हो रहे हैं, लेकिन वे विचलित नहीं हैं। पीएम मोदी ने इस मौके पर नई मॉडल रेलगाड़ी महामना एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। यह रेलगाड़ी वाया लखनऊ हफ्ते में तीन दिन दिल्ली के लिए चलेगी।

पीएम मोदी ने कहा, "जब भी किसी को पुजारी कह कर परिचय कराया जाता है तो उसके चेहरे, उसके तिलक पर नजर जाता है। किसी को विद्वान कहकर परिचय कराया जाता है तो हम उसे एक अगल नजर से देखने लगते हैं।"

प्रधानमंत्री ने कहा, "जब किसी को विकलांग कह कर परिचय कराया जाता है तो नजर उस अंग पर जाती है जो काम नहीं करता। जबकि असलियत यह है कि विकलांग के पास भी ऐसी शक्ति होती है जो आम लोगों के पास नहीं होती। इनके पास दिव्य विशेषता होती है। इनके अंदर जो विशेष शक्ति है, उसे मैं दिव्यांग के रूप में देखता हूं।"

पीएम मोदी ने कहा, "विकलांगों के लिए 1992 से विभाग काम कर रहा है, लेकिन कभी इस तरह का आयोजन नहीं हुआ। इतने साल में बहुत कम लोगों को सहायता दी गई। 22 साल में सौ शिविर भी नहीं लगे, लेकिन एक साल में 1800 शिविर लगाए गए। पहले बिचौलिए फायदा उठाते थे, लेकिन शिविर लगने से बिचौलियों की दुकानें बंद हो गई हैं।"

पीएम मोदी ने कहा कि दो दिन पहले जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अपने देश में काशी और गंगा का गुणगान किया। शिंजो ने आरती के दौरान हुए अनुभव को दिव्य बताया है। ये काशी के लिए गौरव की बात है।

पीएम मोदी ने संबोधन की शुरुआत पूर्व सांसद शंकर प्रसाद जायसवाल और पूर्व विधायक हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को श्रद्घांजलि देने के साथ की। इसके बाद सबसे पहले उन्होंने कार्यक्रम में आ रही बस के दुर्घटनाग्रस्त होने पर अफसोस जताया और कहा कि घायलों की पूरी व्यवस्था सरकार की तरफ से होगी।

कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत, मनोज सिन्हा, कलराज मिश्र, विजय सांपला, उप्र सरकार के मंत्री बलराम यादव, सचिव लव वर्मा भी मौजूद रहे।

इससे पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को अपने संसदीय क्षेत्र पहुंचकर महामना एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। आरामदायक सीटों वाली सुपरफास्ट रेलगाड़ी, महामना एक्सप्रेस में सफर करने के लिए यात्रियों में जबर्दस्त उत्साह दिखा। गुरुवार को रेलगाड़ी का रिजर्वेशन खुलते ही अगले एक सप्ताह तक के लिए सभी सीटें फुल हो गईं। यह स्थिति तब है, जब इस गाड़ी का किराया अन्य मेल एक्सप्रेस से 15 फीसदी अधिक है।

इस रेलगाड़ी का संचालन 25 जनवरी से शुरू होगा। इसके बाद 22418 नई दिल्ली से सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को और वाराणसी से 22417 मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को जाएगी। गणतंत्र दिवस के मौके पर वाराणसी से नई दिल्ली के लिए पहली यात्रा करने वाली 22417 महामना एक्सप्रेस की शयनयान श्रेणी में अगले छह दिनों के लिए सीटें फुल हो चुकी हैं।

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99 साल की जगह फ्री होल्ड पट्टे : राजस्थान की श्रीमती वसुंधरा राजे सरकार का जन हितकारी निर्णय

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राजस्थान की श्रीमती वसुंधरा राजे सरकार का जन हितकारी निर्णय 

99 साल की जगह फ्री होल्ड पट्टे के प्रावधान को कैबिनेट की मंजूरी
Written By Goverdhan Choudhary , Update on 23-01-2016

— शहरी भूमि निष्पादन नियमों में संशोधन के बड़े फैसले
— 99 साल की लीज की जगह प्लॉट फ्री होल्ड करा सकेंगे
— बार— बार लीज जमा कराने के झंझट से मुक्ति
— लीज और फ्री होल्ड दोनों का विकल्प खुला रहेगा
— आवासीय जमीन को लीज राशि का 1.25 गुणा जमा करवाकर फ्री होल्ड करा सकेंगे, कमिर्शयल प्लाट के लिए 1.5 गुणा जमा कराकर फ्री होल्ड
— जिन प्लॉट की पहले लीज राशि जमा है, उनमें आवासीय में .25 फीसदी और कमिर्शयल में .50 फीसदी चार्ज लगेगा फ्री होल्ड का
— विशेष प्रयोजन के लिए आवंटित जमीन को इससे अलग रखा
— शहरी निकायों की आवासीय योजनाओं में प्रशासनिक चार्ज 30 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी किया
— अब 1 लाख की जनसंख्या तक वाले शहर में प्लॉट मकान वाले भी सरकारी स्कीम में दूसरे शहरों में प्लॉट ले सकेंगे
— आवासीय योजनाओं में विकलांगों का कोटा 2 से बढ़ाकर 3 फीसदी किया
— सरकारी अवासीय योजनाओं में लिए प्लॉट को अब 5 साल में बेचा जा सकेगा, पहले 10 साल तक नहीं बेचने का प्रावधान था
— शहरी क्षेत्रों में अब अधिकतम प्लॉट साइज 750 वर्ग मीटर से घटाकर 550 वर्गमीटर की, यानी 550 वर्गमीटर से बड़ा प्लॉट आवंटित नहीं होगा
— कांची कामकोटी मेडिकल ट्रस्ट को 8342 वर्गमीटर जमीन आवंटन को मंजूरी
—   ट्रस्ट जयपुर मेें 225 बेडेड आई हॉस्पिटल खोलेगा, 80 फीसदी ग्रामीण मरीजों का इलाज करेगा
— जनता जल योजना को पूरी तरह ग्रामीण विकास विभाग चलाएगा, कैबिनेट ने दी मंजूरी
—  अनुसूचित क्षेत्रों में सभी पदों पर भर्ती के लिए आयु सीमा एक समान होगी, न्यूनतम आयु 18 और अधिकतम 35 साल होगी
— तहसील राजस्व लेखाकार के लिए भी अब कंप्यूटर में डिप्लोमा अनिवार्य होगा
— राज्य कर्मचारियों को अब पंचकर्म क्रिया से इलाज कराने पर भी पुनर्भरण मिलेगा, नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ आयुर्वेद की दरों के हिसाब से पुनर्भरण राशि मिलेगी
जयपुर।  कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला करते हुए राजस्थान सुधार न्यास शहरी भूमि निष्पादन नियम 1974 में संशोधन किए हैं, फ्री होल्ड पट्टे के प्रावधान को मंजूरी दी है।  संशोधन के मुताबिक पहले 99 साल की लीज पर पलॅट मिलते थे, अब वन टाइम पैसा जमा करवाकर प्लॉट को फ्री होल्ड करवा कर ताउम्र मालिकाना हक ले सकेंगे।  बार बार लीज मनी जमा कराने से मुक्ति मिलेगी। आवासीय में लीज राशि का 1.25 गुणा और कमिर्शयल में 1.5 गुणा वन टाइम लीज राशि जमा करवाकर फ्री होल्ड करवा सकेंगे। वन टाइम लीज मनी आठ साल की जमा होती है, उसका 1.25 गुणा और 1.5 गुणा पैसाउ जमा होगा। अगर लीज राशि पहले जमा है तो फ्री होल्ड कराने के लिए  आवासीय में .25 फीसदी और कमिर्शयल में .50 फीसदी चार्ज लगेगा।  लेकिन इसमें विशेष प्रयोजन के लिए दी गई जमीनों को अलेग रखा हे। शहरी निकायों की आवासीय योजनाओं की लागत में पहले 30 फीसदी प्रशासनिक खर्च का पैसा शामिल होता था, उसे घटाकर अब 20 फीसदी कर दिया है। शही इलाकोें में अभी 50 हजार की जनसंख्या वाले शहर में प्लॉट होने पर सरकारी स्कीम में दूसा प्लॉट नही मिलता था अब एक लाख तक की जनसंख्या में प्लॉट होने पर भी आवासीय योजना में प्लॉट ले सकेंगे। आवासीय योजनाओं में विकलांगों का कोटा दो से बढाकर तीन फीसदी करने को मंजूरी दी हे। शहरी निकायों में अब अश्धिकतम 550 वर्गमीटर से ज्यदा प्लॉट आवंटित नहीं होगा, पहले यह साइज 750 वर्गमीटर थी।

कैबिनेट ने  कांचीकामकोटी मेडिकल ट्रस्ट को 8342 वर्गमीटर जमीन आवंटन को मंजूरी दी है। यह   ट्रस्ट जयपुर मेें 225 बेडेड आई हॉस्पिटल खोलेगा, 80 फीसदी ग्रामीण मरीजों का इलाज करेगा।  जनता जल योजना को पूरी तरह ग्रामीण विकास विभाग को सौंपने पर कैबिनेट ने मंजूरी दी है। अनुसूचित क्षेत्रों में सभी पदों पर भर्ती के लिए आयु सीमा एक समान होगी, न्यूनतम आयु 18 और अधिकतम 35 साल होगी।

आरपीएससी से होने वाली  तहसील राजस्व लेखाकार की भर्ती के लिए भी अब कंप्यूटर में डिप्लोमा अनिवार्य होगा।  राज्य कर्मचारियों को अब पंचकर्म क्रिया से इलाज कराने पर भी पुनर्भरण मिलेगा, नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ आयुर्वेद की दरों के हिसाब से पुनर्भरण राशि मिलेगी, अभी तक इसका प्रावधान नहीं था।

विवेकपूर्ण चेतना और हमारे नैतिक जगत का प्रमुख उद्देश्य शांति : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संदेश
Posted on: January 25, 2016 Updated on: January 25, 2016 10:22 PM IST
आईबीएन-7

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किया। पढ़ें: उनका पूरा भाषण--
मेरे प्यारे देशवासियो,
हमारे राष्ट्र के सड़सठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, मैं भारत और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं, हमारी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बल के सदस्यों को अपनी विशेष बधाई देता हूं। मैं उन वीर सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जिन्होंने भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने और विधि शासन को कायम रखने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
प्यारे देशवासियो,
छब्बीस जनवरी 1950 को हमारे गणतंत्र का जन्म हुआ। इस दिन हमने स्वयं को भारत का संविधान दिया। इस दिन उन नेताओं की असाधारण पीढ़ी का वीरतापूर्ण संघर्ष पराकाष्ठा पर पहुंचा था जिन्होंने दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र की स्थापना के लिए उपनिवेशवाद पर विजय प्राप्त की। उन्होंने राष्ट्रीय एकता, जो हमें यहां तक लेकर आई है, के निर्माण के लिए भारत की विस्मयकारी अनेकता को सूत्रबद्ध कर दिया। उनके द्वारा स्थापित स्थायी लोकतांत्रिक संस्थाओं ने हमें प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने की सौगात दी है। आज भारत एक उदीयमान शक्ति है,एक ऐसा देश है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवान्वेषण और स्टार्ट-अप में विश्व अग्रणी के रूप में तेजी से उभर रहा है और जिसकी आर्थिक सफलता विश्व के लिए एक कौतूहल है।
प्यारे देशवासियो,
वर्ष 2015 चुनौतियों का वर्ष रहा है। इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी रही। वस्तु बाजारों पर असमंजस छाया रहा। संस्थागत कार्रवाई में अनिश्चितता आई। ऐसे कठिन माहौल में किसी भी राष्ट्र के लिए तरक्की करना आसान नहीं हो सकता। भारतीय अर्थव्यवस्था को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। निवेशकों की आशंका के कारण भारत समेत अन्य उभरते बाजारों से धन वापस लिया जाने लगा जिससे भारतीय रुपये पर दबाव पड़ा। हमारा निर्यात प्रभावित हुआ। हमारे विनिर्माण क्षेत्र का अभी पूरी तरह उभरना बाकी है।
2015 में हम प्रकृति की कृपा से भी वंचित रहे। भारत के अधिकतर हिस्सों पर भीषण सूखे का असर पड़ा जबकि अन्य हिस्से विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गए। मौसम के असामान्य हालात ने हमारे कृषि उत्पादन को प्रभावित किया। ग्रामीण रोजगार और आमदनी के स्तर पर बुरा असर पड़ा।
प्यारे देशवासियो,
हम इन्हें चुनौतियां कह सकते हैं क्योंकि हम इनसे अवगत हैं। समस्या की पहचान करना और इसके समाधान पर ध्यान देना एक श्रेष्ठ गुण है। भारत इन समस्याओं को हल करने के लिए कार्यनीतियां बना रहा है और उनका कार्यान्वयन कर रहा है। इस वर्ष 7.3 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर के साथ, भारत सबसे तेजी से बढ़ रही विशाल अर्थव्यवस्था बनने के मुकाम पर है। विश्व तेल कीमतों में गिरावट से बाह्य क्षेत्र को स्थिर बनाए रखने और घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिली है। बीच-बीच में रुकावटों के बावजूद इस वर्ष उद्योगों का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
आधार 96 करोड़ लोगों तक मौजूदा पहुंच के साथ, आर्थिक रिसाव रोकते हुए और पारदर्शिता बढ़ाते हुए लाभ के सीधे अंतरण में मदद कर रहा है। प्रधान मंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए 19 करोड़ से ज्यादा बैंक खाते वित्तीय समावेशन के मामले में विश्व की अकेली सबसे विशाल प्रक्रिया है। सांसद आदर्श ग्राम योजना का लक्ष्य आदर्श गांवों का निर्माण करना है। डिजिटल भारत कार्यक्रम डिजिटल विभाजन को समाप्त करने का एक प्रयास है। प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना का लक्ष्य किसानों की बेहतरी है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जैसे कार्यक्रमों पर बढ़ाए गए खर्च का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दोबारा सशक्त बनाने के लिए रोजगार में वृद्धि करना है।
भारत में निर्माण अभियान से व्यवसाय में सुगमता प्रदान करके और घरेलू उद्योग की स्पर्द्धा क्षमता बढ़ाकर विनिर्माण तेज होगा। स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम नवान्वेषण को बढ़ावा देगा और नए युग की उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करेगा। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन में 2022 तक 30 करोड़ युवाओं को कुशल बनाने का विचार किया गया है।
हमारे बीच अकसर संदेहवादी और आलोचक होंगे। हमें शिकायत, मांग, विरोध करते रहना चाहिए। यह भी लोकतंत्र की एक विशेषता है। परंतु हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया है, हमें उसकी भी सराहना करनी चाहिए। बुनियादी ढांचे, विनिर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश से, हम और अधिक विकास दर प्राप्त करने की बेहतर स्थिति में हैं जिससे हमें अगले दस से पंद्रह वर्षों में गरीबी मिटाने में मदद मिलेगी।
प्यारे देशवासियो,
अतीत के प्रति सम्मान राष्ट्रीयता का एक आवश्यक पहलू है। हमारी उत्कृष्ट विरासत, लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती हैं। जब हिंसा की घृणित घटनाएं इन स्थापित आदर्शों, जो हमारी राष्ट्रीयता के मूल तत्व हैं, पर चोट करती हैं तो उन पर उसी समय ध्यान देना होगा। हमें हिंसा, असहिष्णुता और अविवेकपूर्ण ताकतों से स्वयं की रक्षा करनी होगी।
प्यारे देशवासियो:
विकास की शक्तियों को मजबूत बनाने के लिए, हमें सुधारों और प्रगतिशील विधान की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना विधि निर्माताओं का परम कर्तव्य है कि पूरे विचार-विमर्श और परिचर्चा के बाद ऐसा विधान लागू किया जाए। सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति बनाने की भावना निर्णय लेने का प्रमुख तरीका होना चाहिए। निर्णय और कार्यान्वयन में विलम्ब से विकास प्रक्रिया का ही नुकसान होगा।
प्यारे देशवासियो,
विवेकपूर्ण चेतना और हमारे नैतिक जगत का प्रमुख उद्देश्य शांति है। यह सभ्यता की बुनियाद और आर्थिक प्रगति की जरूरत है। परंतु हम कभी भी यह छोटा सा सवाल नहीं पूछ पाए हैं: शांति प्राप्त करना इतना दूर क्यों है? टकराव को समाप्त करने से अधिक शांति स्थापित करना इतना कठिन क्यों रहा है?
विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय क्रांति के साथ 20वीं सदी की समाप्ति पर, हमारे पास उम्मीद के कुछ कारण मौजूद थे कि 21वीं सदी एक ऐसा युग होगा जिसमें लोगों और देश की सामूहिक ऊर्जा उस बढ़ती हुई समृद्धि के लिए समर्पित होगी जो पहली बार घोर गरीबी के अभिशाप को मिटा देगी। यह उम्मीद इस शताब्दी के पहले पंद्रह वर्षों में फीकी पड़ गई है। क्षेत्रीय अस्थिरता में चिंताजनक वृद्धि के कारण व्यापक हिस्सों में अभूतपूर्व अशांति है। आतंकवाद की बुराई ने युद्ध को इसके सबसे बर्बर रूप में बदल दिया है। इस भयानक दैत्य से अब कोई भी कोना अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता है।
आतंकवाद उन्मादी उद्देश्यों से प्रेरित है, नफरत की अथाह गहराइयों से संचालित है, यह उन कठपुतलीबाजों द्वारा भड़काया जाता है जो निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार के जरिए विध्वंस में लगे हुए हैं। यह बिना किसी सिद्धांत की लड़ाई है, यह एक कैंसर है जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता; यह केवल बुराई है।
प्यारे देशवासियो,
देश हर बात से कभी सहमत नहीं होगा; परंतु वर्तमान चुनौती अस्तित्व से जुड़ी है। आतंकवादी महत्त्वपूर्ण स्थायित्व की बुनियाद, मान्यता प्राप्त सीमाओं को नकारते हुए व्यवस्था को कमजोर करना चाहते हैं। यदि अपराधी सीमाओं को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो हम अराजकता के युग की ओर बढ़ जाएंगे। देशों के बीच विवाद हो सकते हैं और जैसा कि सभी जानते हैं कि जितना हम पड़ोसी के निकट होंगे, विवाद की संभावना उतनी अधिक होगी। असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका, संवाद है, जो सही प्रकार से कायम रहना चाहिए। परंतु हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते।
भयानक खतरे के दौरान हमें अपने उपमहाद्वीप में विश्व के लिए एक पथप्रदर्शक बनने का ऐतिहासिक अवसर प्राप्त हुआ है। हमें अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण वार्ता के द्वारा अपनी भावनात्मक और भू-राजनीतिक धरोहर के जटिल मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए, और यह जानते हुए एक दूसरे की समृद्धि में विश्वास जताना चाहिए कि मानव की सर्वोत्तम परिभाषा दुर्भावनाओं से नहीं बल्कि सद्भावना से दी जाती है। मैत्री की बेहद जरूरत वाले विश्व के लिए हमारा उदाहरण अपने आप एक संदेश का कार्य कर सकता है।
प्यारे देशवासियो,
भारत में हर एक को एक स्वस्थ,खुशहाल और कामयाब जीवन जीने का अधिकार है। इस अधिकार का, विशेषकर हमारे शहरों में, उल्लंघन किया जा रहा है, जहां प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। जलवायु परिवर्तन अपने असली रूप में सामने आया जब 2015 सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया। विभिन्न स्तरों पर अनेक कार्यनीतियों और कार्रवाई की आवश्यकता है। शहरी योजना के नवान्वेषी समाधान, स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग और लोगों की मानसिकता में बदलाव के लिए सभी भागीदारों की सक्रिय हिस्सेदारी जरूरी है। लोगों द्वारा अपनाए जाने पर ही इन परिवर्तनों का स्थायित्व सुनिश्चित हो सकता है।
प्यारे देशवासियो,
अपनी मातृभूमि से प्रेम समग्र प्रगति का मूल है। शिक्षा, अपने ज्ञानवर्धक प्रभाव से, मानव प्रगति और समृद्धि पैदा करती है। यह भावनात्मक शक्तियां विकसित करने में सहायता करती है जिससे सोई उम्मीदें और भुला दिए गए मूल्य दोबारा जाग्रत हो जाते हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘शिक्षा का अंतिम परिणाम एक उन्मुक्त रचनाशील मनुष्य है जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक विपदाओं के विरुद्ध लड़ सकता है।’’ ‘चौथी औद्योगिक क्रांति’पैदा करने के लिए जरूरी है कि यह उन्मुक्त और रचनाशील मनुष्य उन बदलावों को आत्मसात करने के लिए परिवर्तन गति पर नियंत्रण रखे जो व्यवस्थाओं और समाजों के भीतर स्थापित होते जा रहे हैं। एक ऐसे माहौल की आवश्यकता है जो महत्त्वपूर्ण विचारशीलता को बढ़ावा दे और अध्यापन को बौद्धिक रूप से उत्साहवर्धक बनाए। इससे विद्वता प्रेरित होगी और ज्ञान एवं शिक्षकों के प्रति गहरा सम्मान बढ़ेगा। इससे महिलाओं के प्रति आदर की भावना पैदा होगी जिससे व्यक्ति जीवन पर्यन्त सामाजिक सदाचार के मार्ग पर चलेगा। इसके द्वारा गहन विचारशीलता की संस्कृति प्रोत्साहित होगी और चिंतन एवं आंतरिक शांति का वातावरण पैदा होगा। हमारी शैक्षिक संस्थाएं मन में जाग्रत विविध विचारों के प्रति उन्मुक्त दृष्टिकोण के जरिए,विश्व स्तरीय बननी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय वरीयताओं में प्रथम दो सौ में स्थान प्राप्त करने वाले दो भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के द्वारा यह शुरुआत पहले ही हो गई है।
प्यारे देशवासियो,
पीढ़ी का परिवर्तन हो चुका है। युवा बागडोर संभालने के लिए आगे आ चुके हैं। ‘नूतन युगेर भोरे’ के टैगोर के इन शब्दों के साथ आगे कदम बढ़ाएं :
‘‘चोलाय चोलाय बाजबे जायेर भेरी-
पायेर बेगी पॉथ केटी जाय कोरिश ने आर
देरी।’’
आगे बढ़ो, नगाड़ों का स्वर तुम्हारे विजयी प्रयाण की घोषणा करता है
शान के साथ कदमों से अपना पथ बनाएं;
देर मत करो, देर मत करो, एक नया युग आरंभ हो रहा है।
धन्यवाद,

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नई दिल्‍ली: 67वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्‍ट्र के नाम संदेश में कहा कि इस कठिन बताए जा रहे इस दौर में भारत की आर्थिक तरक्‍की दुनिया के लिए कौतू‍हल का विषय रही।

इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि हमारी राष्‍ट्रीयता की मान्‍यताओं को नुकसान पहुंचाने वाली हिंसा की जघन्‍य घटनाओं का हमें संज्ञान लेना होगा। पढ़ें उनके संबोध्‍ान की 10 खास बातें...

1. हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया है, हमें उसकी सराहना करना चाहिए। हमारी उत्कृष्ट विरासत, लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती हैं।

2. जब हिंसा की घृणित घटनाएं इन स्थापित आदर्शों, जो हमारी राष्ट्रीयता के मूल तत्व हैं, पर चोट करती हैं तो उन पर उसी समय ध्यान देना होगा।

3. हमें हिंसा, असहिष्‍णुता और अविवेकपूर्ण ताकतों से हमें खुद की रक्षा करनी होगी।

4. हमारे बीच ही कुछ शक करने वाले और लोभी किस्‍म के लोग भी होंगे।

5. हम असंतोष व्‍यक्‍त करने, मांग और विरोध करने का अपना रुख जारी रखें क्‍योंकि यही लोकतंत्र की खूबी है।

6. आज भारत एक उभरती हुई शक्ति है, एक देश जो विज्ञान, तकनीक, नवाचार और स्‍टार्ट-अप्‍स के क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में तेजी से उभर रहा है।

7. इस वर्ष 7.3 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि दर के साथ भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍था बन जाएगा।

8. साल 2015 चुनौतियों का साल रहा। साल के दौरान अंतरराष्‍ट्रीय अर्थवयवस्‍था मंद बनी रही।

9. ऐसे परेशानी भरे माहौल में किसी भी देश के लिए तरक्‍की करना आसान नहीं हो सकता। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।

10. 2015 में हमें कुदरत की बेरुखी का भी सामना करना पड़ा। मौसम के असामान्‍य हालात ने हमारे कृषि उत्‍पादन को प्रभावित किया है।

सावधान ! जारी है माओवादी दुष्प्रचार !!

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सावधान ! जारी है माओवादी दुष्प्रचार !!

तारीख: 25 Jan 2016 14:51:41


विजय क्रांति-(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के अध्यक्ष हैं।)
2011 के बाद के महीनों में छत्तीसगढ़ पुलिस और सुरक्षा एजंेसियों ने कुछ माओवादियों को बस्तर शहर के एक बड़े उद्योग समूह के एजेंट से 15 लाख रुपए लेते हुए रंगहाथों गिरफ्तार किया था। पुलिस द्वारा जारी विवरण के अनुसार, उनमें से एक था नौजवान लिंगाराम, जो अपने माओवादियों से जुड़ाव के चलते पहले से ही पुलिस की नजरों में था। दूसरी थी उसकी रिश्तेदार कुमारी सोनी सोरी, जो, पुलिस के अनुसार, एक भीड़भाड़ वाले हाट में भाग निकलने में कामयाब हो गई, लेकिन जल्दी ही दिल्ली में एक वामपंथी अड्डे से गिरफ्तार कर ली गई थी। जांचकर्ताओं ने पाया कि माओवादी उस उद्योग समूह से यह राशि ले रहे थे जिसको उनसे पिछले कई साल से धमकियां और हमले झेलने पड़े थे। वह भुगतान एक बड़े सौदे का हिस्सा माना जा रहा था, जो छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में शांति और आजादी से काम करने की एवज में किया गया था। जल्दी ही एक स्थानीय पत्रकार को भी बड़ी मात्रा में (करोड़ों में) पैसा लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जो उसे कई माओवादी भूमिगत नेताओं को कथित तौर पर देने वाला था।

शुरू में सुरक्षा एजेंसियां इस बड़ी उपलब्धि पर बहुत संतोष महसूस कर रही थीं। लेकिन बहुत जल्दी उन्हें यह देखकर दंग रह जाना पड़ा  कि मामला उनके और पूरे राज्य अधिष्ठान पर ही उलटा आन पड़ा था। आने वाले कुछ महीनों के दौरान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई वामपंथी गैर सरकारी संगठनों, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार एजेंसियों, राजनीतिक नेताओं, राष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार के स्वयंभू मसीहाओं और देशभर के विश्वविद्यालयांे में महिला अधिकारों के पैरोकारों द्वारा दुष्प्रचार का युद्ध इस पैमाने पर छेड़ दिया गया कि न तो राज्य सरकार और न ही उसके इस मामले से जुड़े अधिकारी उस दुष्प्रचार के हमले का सामना कर पाए।

दुष्प्रचार के इस तमाशे ने लगभग हर तरह की तरकीब अपनाई, जो वामपंथियों के अपने दुश्मनों पर हमले से जुड़ी थी। न केवल अरुंधति राय जैसे बड़े नामों और कानून के प्रशांत भूषण जैसे दिग्गजों ने उस अभियान और कानूनी कार्रवाई में खुद को शामिल किया, बल्कि कई संदिग्ध दिखने वाले अंतरराष्ट्रीय समूहों, जो संभवत: अंतरराष्ट्रीय ईसाई कन्वर्जन अधिष्ठान द्वारा प्रायोजित और पोषित थे, ने भी इस मामले को भारत की छवि को एक ऐसे समाज के तौर पर पेश किया जिसमें 'भेदभाव'किया जाता है। एक अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट-'यूनाइटेड ब्लैक अनटचेबल्स...'और एक अन्य 'इंडियन होलोकास्ट...'ने इसी तरह की अपीलें पोस्ट कीं, जो मशहूर वामपंथी दुष्प्रचाररत लेखक हिमांशु कुमार ने लिखी थीं, शीर्षक था 'द वैरी राइट ऑफ लिविंग इन दिस कंट्री हैज बीन स्नैच्ड फ्रॉम मी'। इसी तरह कुछ और समूहों ने कुछ देशों में भारतीय दूतावासों और कॉन्सुलेट पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन किया, उनका दावा था कि सोनी सोरी भारतीय 'रंगभेद'की शिकार है। सोनी के पक्ष में समर्थन पाने के लिए जो पर्चे बांटे गए उनमें से एक पर अक्खड़ अंदाज में एक भड़काऊ शीर्षक था-'हाऊ वुड यू फील इफ फाइव पुलिसमैन होल्ड यू डाउन एंड पुश्ड दिस इन टू योर एनस'।

जिस देश में एक खास कानूनी आपराधिक मामले की कामयाबी व्यवस्था तंत्र और बचाव पक्ष के उत्साह और निष्ठा पर बहुत ज्यादा आधारित हो, गवाहों के दमखम और न्यायदाता तंत्र के साहस पर आधारित हो, वहां आश्चर्य था कि राज्य सरकार और इसकी एजेंसियांे को मामले को रफादफा होने देना ही बेहतर लगा। कहानी के अंत मंे सोनी सोरी भारतीय अधिष्ठान को तब नाक चिढ़ाती सामने आई उसने जब बस्तर में आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा, हालांकि वह कामयाब नहीं हुई। भारतीय वामपंथी, खासकर माओवादी भारतीय बुद्धिजीवियों के एक वर्ग की गफलत पर फलते-फूलते हैं, जो अपनी मान्यता से भले वामपंथी न हों, लेकिन भद्र और राजनीतिक नजरिये से सुभीते दिखने की इच्छा के चलते आसानी से इस दुष्प्रचार के शिकार हो जाते हैं। दिवंगत विनोद मेहता इसके एक खास उदाहरण रहे हैं, जो 'आउटलुक'पत्रिका के संस्थापक संपादक थे। हालांकि उन्होंने खुद 'बुर्जुआ'जीवनशैली ही अपनाई थी, लेकिन वे हमेशा वामपंथियों को अपनी पत्रिका का उनके सत्ता विरोधी दुष्प्रचार का हस्तक बनने देने में उत्साहित दिखते थे। एक बार उन्होंने अरुंधति राय को उनका एक कुख्यात और असाधारण रूप से लंबा निबंध (3200 शब्द से ज्यादा लंबा) प्रकाशित करने दिया जिसका शीर्षक था 'वॉकिंग विद द कामरेड्स'। निबंध न केवल भारतीय लोकतांत्रिक अधिष्ठान के बल की भर्त्सना और उसको चुनौती देता था, बल्कि माओवादियों के भारत विरोधी हिंसक अभियानों की तारीफ करता था और उसे न्यायपूर्ण ठहराता था।

मेहता ने कई मौकों पर एक और संदिग्ध माओवादी दुष्प्रचाररत दिल्ली विश्वविद्यालय की कामरेड (कुमारी) नलिनी सुंदर को 'आउटकुल'के जरिये माओवादी विचार प्रसारित करने की सहूलियत दी। ऐसे ही एक आलेख में उन्होंने न केवल जीरमघाटी में 2013 में माओवादियों द्वारा छत्तीसगढ़ के लगभग पूरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेतृत्व की सामूहिक हत्या को न्यायसंगत बताते हुए महिमामंडित किया, बल्कि वे मशहूर जनजातीस कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा की हत्या पर भी खीसें निपोरती दिखीं जिन्होंने बस्तर के वनवासियों का सलवा जुडुम अभियान शुरू कराया था, जो माओवादियों के बेरहम संहारों और जनजातीय समाज की प्रताड़ना के खिलाफ उबरे जनाक्रोश से उपजा था। भारतीय वामपंथियों द्वारा पूरे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया को अपनी दलीलों से रिझा लेना, नारेबाजी करने वालों और न्यायतंत्र को सलवा जुडुम को 'राज्य प्रायोजित आतंकी समूह'जैसा मान लेने को तैयार कर लेना इसका एक शानदार उदाहरण हो सकता है कि लोकतंत्र में जनमत और नीति निर्माण को कैसे प्रभावित किया जाय।

खोज करने पर मुझे 'तहलका'पत्रिका, जिसे खांटी कांग्रेसी समर्थक तरुण तेजपाल संपादित करते थे, में 20 से ज्यादा समाचार दिखे जो खासतौर पर सोनी सोरी को समर्पित थे। दरअसल भारतीय मीडिया में बैठे वामपंथी समर्थक आजाद भारत के इतिहास में एक बहुत बड़ी घटना को आसानी से छिपा लेते हैं जिसमें माओवादियों ने 2007 में मई और जून में छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में बिजली के टावर उड़ा दिए थे। बस्तर इलाके के नागरिक, जिनमें जनजातीय और गैर जनजातीय दोनों थे, को अस्पताल और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना जीने को मजबूर कर दिया गया था।

माओवादियों के मीडिया मैनेजरों ने लोक व्यवस्था की संवेदनशीलता और राष्ट्रीय मीडिया की अकर्मण्यता को बेनकाब करके रख दिया था। ऐसी कुछ पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के अलावा, अनेक वेबसाइट हैं जो या तो ईसाई कन्वर्जन तंत्र द्वारा सीधे शुरू की गई हैं या उससे पोषित-समर्थित हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब माओवादी नेताओं जैसे विनायक सेन, कोबाड़ घंडी, जी. एन. साईबाबा और सुधीर धवले की गिरफ्तारी हुई तो सोशल मीडिया की इस कड़ी ने भारतीय मीडिया और बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हुए वामपंथी दुष्प्रचार तंत्र का हस्तक बनने की हिमाकत  की थी।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत का राजनीतिक समुदाय बढ़ते माओवादी संकट के पीछे मौजूद असली संकट को समझने में नाकाम रहा है।
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वामपंथी विचारधारा का सच
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1932 में रुस में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई। समाजवादी पैटर्न के कारण हमने भी आंख मूदकर अपने यहां लागू कर लिया। खैर 1932 के पंचवर्षीय योजना में रुस ने कहा कि इसके अंत तक अर्थात 1936 तक रुस में हम सभी चर्च बंद करा देंगे। कारण कि धर्म अफीम की गोली है। 1937 में फिर से लिख दिया कि GOD WILL BE EXPELLED FROM RUSSIA. लेकिन रुस और चीन ने जो संविधान बनाया उसमें मौलिक अधिकारो में freedom of religion को शामिल कर दिया गया। कुछ साल पहले जो कैथोलिक चर्च के पोप हैं वह पोलैण्‍ड गये, पोलैण्‍ड एक कम्‍यूनिस्‍ट देश है जहां की आधी आबादी पोप साहब के दर्शन करने आई। संयाेग से होम टाउन सैंटो के निवासी पोप ने अपने ही देश और शहर में लोगों से कहा कि धर्म अफीम की गोली है और मनुष्‍य आर्थिक प्राणी है इसका मै तीब्र विरोध करता हूं। 
दूसरा state withers away राज्‍य तिरोहित हो जायेगा, दुनियां के मजदूर इक्‍टठा हो जायेगें कितना हास्‍यास्‍पद निकला जब चीन ओर रुस सीमा विवाद में फंसे रहे, यूगोस्‍लाविया और रुस लडते रहे, यूगोस्‍लाविया और वियतनाम गाली गलौज करते रहे, इसी तरह वियतनाम और कंबोडिया मारकाट मचाये रहे ये सभी वामपंथी थे और सभी राष्‍ट्रवादी हो गये अपने अपने स्‍वार्थ को लेकर। 
इनकी प्रमुख पुस्‍तक THE NEW CLASS, IMPERFECT SOCIETY में साफ कहा कि हमने पुराने वर्ग को तो नष्‍ट कर दिया लेकिन वर्गहीन समाज नहीं बना पाये बल्कि नये वर्ग बन गये जिनके प्रीवलेज पहले जैसे ही थे। यही बात आगे चलकर माओ भी कहता है कि yesterday revolutionaries are todays counter revolutionaries.. 
कुलमिलाकर इनके सभी कसमें वादे तो फर्जी निकले अब भारत में सिर्फ सरकार चाहे जिसकी हो दूसरे शब्‍दों में दूल्‍हा कोई भी हो बाराती बनने के लिये परेशान रहते हैं। ताकी सेकुलरीज्‍म पर हुंआ हुंआ करते रहें।
 ये वहीं लोग है जिनको पेट में दर्द है या दांत में दर्द है, ईलाज के लिये बिजींग और मास्‍को जाते हैं। चेयरमैन माओ, हमारा चेयरमैन कहते शरमाते नहीं।
 1962 के युद्ध में चीन का पक्ष लिया और अब रुस और चीन के कम्‍यूनिस्‍ट पार्टियों के टुकडों पर पलते हैं। कश्‍मीर में आतंकियों के मानवाधिकारों के सबसे बडे पैरोकार हैं और लाल क्रांति के नाम पर गरीब, निर्दोष किसानों वनवासियों की हत्‍याएं कराते हैं- करते हैं- ये हैं एलीट नक्‍सली।
ये वही लोग है जो पूरे देश में जब स्‍वदेशी आंदोलन अपने चरम पर था और लोग जगह जगह विदेशी कपडाे की होली जला रहे थे तो कम्‍यूनिस्‍ट नेता भरी गर्मी के दिनों में लंका शायर के मिलों में उत्‍पादित कपडें के सूट पहनकर घुमते थे ताकी भारत में स्‍वदेशी आंदोलन के कारण लंका शायर के मिल मजदूर बेरोजगार न हो। ये वही लोग है जो 1942 के अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन के दौरान महाम्‍मा गांधी को साम्राज्‍यवदियों को दलाल और सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्‍ता तक कहा।
ये वहीं लोग है जो अंग्रेजो के खुफिया एजेंट का काम किया। ये वही लोग है जो पाकिस्‍तान निर्माण के लिये सैद्धांतिक आधार देते हुए भारत को खंड खंड बाटने की बहुराष्‍ट्रीय योजना तैयार की।
ये वहीं लोग है जो सत्‍ता सुख भोगने के लिये कांग्रेस की दलाली करते आपात काल का समर्थन किया और जिनके लिये राष्‍ट्रवाद और देशभक्ति जैसे शब्‍द गाली होते हैं। कुछ तो शरम करते। वंदे मातरम !

अशोक चक्र : लांस नायक शहीद मोहन नाथ गोस्वामी

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अशोक चक्र पाने वाले लांस नायक मोहन नाथ ने अंतिम 11 दिनों में ढेर कर दिए थे 10 आतंकी
कर्नल एसडी गोस्वामी के मुताबिक, गोस्‍वामी ने अपनी जिंदगी के अंतिम 11 दिनों में कश्मीर घाटी में तीन आतंकवाद निरोधी अभियानों में सक्रिय भाग लिया था, जिसमें 10 आतंकवादी मारे गए थे और एक जिंदा पकड़ा गया था।

जनसत्ता ऑनलाइन,नई दिल्‍ली | January 26, 2016

राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी की पत्‍नी को अशोक चक्र सम्‍मान सौंपा गया।

सेना के विशेष बल के कमांडो शहीद लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी को उनकी वीरता के लिए अशोक चक्र से सम्‍मानित‍ किया गया है। वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्‍होंने जिस अदम्‍य साहस का परिचय दिया, वह कभी न भुलाने वाला है। वह पिछले साल सितंबर में शहीद हुए थे। लांस नायक गोस्‍वामी ने प्राण त्‍यागने से पहले चार आतंकियों को ढेर किया। इनमें दो को उन्‍होंने खुद मारा, जबकि गोली लगने के बाद भी दो अन्‍य मारने में साथियों की मदद की। खुद घायल होने के बाद भी वह अपने दो घायल साथियों को सुरक्षित स्‍थान लेकर आए थे। उन्‍होंने जिंदगी के आखिरी 11 दिनों में 10 आतंकियों को ढेर कर दिया था। लांस नायक गोस्‍वामी पिछले साल उत्‍तरी कश्‍मीर के कुपवाड़ा जिले में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। वह सेना के उस ऑपरेशन में भी शामिल थे, जिसमें लश्‍कर-ए-तोयबा का आतंकी सज्‍जाद अहमद जिंदा पकड़ा गया था।

कर्नल एसडी गोस्वामी के मुताबिक, गोस्‍वामी ने अपनी जिंदगी के अंतिम 11 दिनों में कश्मीर घाटी में तीन आतंकवाद निरोधी अभियानों में सक्रिय भाग लिया था, जिसमें 10 आतंकवादी मारे गए थे और एक जिंदा पकड़ा गया था। प्रवक्ता ने बताया कि लांस नायक गोस्वामी 2002 में सेना के पैरा कमांडो से जुड़े थे। उन्होंने पिछले साल मीडिया से बात करते हुए बताया था कि लांस नायक ने अपनी इकाई के सभी अभियानों में भाग लिया था। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद निरोधी कई सफल अभियानों का वह हिस्सा रहे थे। उन्होंने बताया, पहला अभियान खुरमूर, हंदवारा में 23 अगस्त को अंजाम दिया गया था। इस अभियान में पाकिस्तानी मूल के लश्कर-ए-तैयबा के तीन कट्टर आतंकवादी मारे गए थे।

उन्होंने कश्मीर के रफीयाबाद अभियान में स्वेच्छा से भाग लिया। यह अभियान दो दिनों 26 और 27 अगस्त तक चला। इस मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा के तीन और आतंकवादी मारे गए। उन्होंने बताया कि इस अभियान में पाकिस्तान के मुजफ्फरगढ़ के रहने वाले लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी सज्जाद अहमद उर्फ अबू उबैदुल्ला को जिंदा पकड़ा गया था।

लांस नायक गोस्वामी का तीसरा अभियान कुपवाड़ा के पास हफरूदा का घना जंगल था। यह उनका अंतिम अभियान साबित हुआ, लेकिन इस अभियान में चार आतंकवादियों को मार गिराया गया। लांस नायक गोस्वामी नैनीताल में हल्द्वानी के इंदिरा नगर के रहने वाले थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी भावना गोस्वामी  और सात साल की बेटी है।
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नई दिल्ली : सेना की 9 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो मोहन गोस्वामी आज हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन, देश उनकी वीर गाथा को हमेशा याद रखेगा. लांस नायक गोस्वामी को मरणोपरांत अशोक चक्र से नवाजा जाएगा. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने दिवंगत की पत्नी भावना गोस्वामी को सम्मान सौंपा.
पिछले साल 2-3 सितंबर की रात सेना की टुकड़ी ने कुपवाड़ा जिले के हंदवारा के जंगल में आतंकियों को घेरा. दोनों तरफ से जबर्दस्त मुठभेड़ हुई. लांस नायक गोस्वामी आतंकियों पर टूट पड़े औऱ दो आतंकियों को तुरंत मार गिराया. इस बीच गोस्वामी के 3 साथियों को गोली लगी.
लांस नायक गोस्वामी कश्मीर में महज 11 दिन तैनात रहे लेकिन 11 दिनों की छोटी सी अवधि में उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ कई ऑपरेशन में हिस्सा लिया. जिसमें 10 आतंकी मारे गए. इसमें लश्कर ए तैयबा से जुड़ा बड़ा आतंकी भी शामिल था. लांस नायक मोहन गोस्वामी को ABP ऩ्यूज का सलाम.

प्रतिष्ठित भारतीय कवि : भारत पर कविता

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भारत पर कविताएं


यहां कुछ प्रतिष्ठित भारतीय कवियों द्वारा भारत पर कविताओं का एक छोटा सा अनूदित संग्रह दिया गया है ...
रवीन्द्रनाथ टैगोर
"मन जहां डर से परे है
और सिर जहां ऊंचा है;
ज्ञान जहां मुक्‍त है;
और जहां दुनिया को
संकीर्ण घरेलू दीवारों से
छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;
जहां शब्‍द सच की गहराइयों से निकलते हैं;
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें
त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;
जहां कारण की स्‍पष्‍ट धारा है
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के
वीराने में अपना रास्‍ता खो नहीं चुकी है;
जहां मन हमेशा व्‍यापक होते विचार और सक्रियता में
तुम्‍हारे जरिए आगे चलता है
और आजादी के स्‍वर्ग में पहुंच जाता है
ओ पिता
मेरे देश को जागृत बनाओ"
"गीतांजलि"
- रवीन्द्रनाथ टैगोर


Swami Yogananda Paramhansa
स्‍वर्ग या तोरण पथ से बेहतर
मैं तुम्‍हें प्‍यार करता हूं, ओ मेरे भारत
और मैं उन सभी को प्‍यार करुंगा
मेरे सभी भाई जो राष्‍ट्र में रहते हैं
ईश्‍वर ने पृथ्‍वी बनाई;
मनुष्‍य ने देशों की सीमाएं बनाई
और तरह तरह की सुंदर सीमा रेखाएं खींचीं
परन्‍तु अप्राप्‍त सीमाहीन प्रेम
मैं अपने भारत देश के लिए रखता हूं
इसे दुनिया में फैलाना है
धर्मों की माँ, कमल, पवित्र सुंदरता और मनीषी
उनके विशाल द्वार खुले हैं
वे सभी आयु के ईश्‍वर के सच्‍चे पुत्रों का स्‍वागत करते हैं
जहां गंगा, काष्‍ठ, हिमालय की गुफाएं और
मनुष्‍यों के सपने में रहने वाले भगवान
मैं खोखला हूं; मेरे शरीर ने उस तृण भूमि को छुआ है
- स्‍वामी योगानंद परमहंस


Sarojini Naidu
क्‍या यह जरूरी है कि मेरे हाथों में
अनाज या सोने या परिधानों के महंगे उपहार हों?
ओ ! मैंने पूर्व और पश्चिम की दिशाएं छानी हैं
मेरे शरीर पर अमूल्‍य आभूषण रहे हैं
और इनसे मेरे टूटे गर्भ से अनेक बच्‍चों ने जन्‍म लिया है
कर्तव्‍य के मार्ग पर और सर्वनाश की छाया में
ये कब्रों में लगे मोतियों जैसे जमा हो गए।
वे पर्शियन तरंगों पर सोए हुए मौन हैं,
वे मिश्र की रेत पर फैले शंखों जैसे हैं,
वे पीले धनुष और बहादुर टूटे हाथों के साथ हैं
वे अचानक पैदा हो गए फूलों जैसे खिले हैं
वे फ्रांस के रक्‍त रंजित दलदलों में फंसे हैं
क्‍या मेरे आंसुओं के दर्द को तुम माप सकते हो
या मेरी घड़ी की दिशा को समझ करते हो
या मेरे हृदय की टूटन में शामिल गर्व को देख सकते हो
और उस आशा को, जो प्रार्थना की वेदना में शामिल है?
और मुझे दिखाई देने वाले दूरदराज के उदास भव्‍य दृश्‍य को
जो विजय के क्षति ग्रस्‍त लाल पर्दों पर लिखे हैं?
जब घृणा का आतंक और नाद समाप्‍त होगा
और जीवन शांति की धुरी पर एक नए रूप में चल पड़ेगा,
और तुम्‍हारा प्‍यार यादगार भरे धन्‍यवाद देगा,
उन कॉमरेड को जो बहादुरी से संघर्ष करते रहे,
मेरे शहीद बेटों के खून को याद रखना!
द गिफ्ट ऑफ इंडिया
- सरोजिनी नायडू



एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
- गणतंत्र दिवस / हरिवंशराय बच्चन

आओ फिर से दिया जलाएँ : अटल बिहारी वाजपेयी

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पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिन है। आज उनकी कवितायें पढ़ने का मन किया...।
उनकी कविताओं में उनका अनुभव झलकता है। राजनीति से कभी बेचैन दिखाई पड़ते हैं तो कभी आज के हालात पर दुखी। जीवन और मृत्यु का संघर्ष दिखाई देता है तो मौत से ठन जाने की बातें करते हैं। अदम्य साहस... ऊँचाई एकाकी होती है....

"आओ मन की गाँठें खोलें" से वे प्रेम से रहने और मन मुटाव दूर करने की सीख दे जाते हैं..शायद इसीलिये वे राजनीति में भी अपने प्रतिद्वंदियों के चहेते बने रहे...

1. आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ


2. ऊँचाई

 ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,

पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।

जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,


किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।

जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।

भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।


न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।


मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।


3. कौरव कौन, कौन पांडव


कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|



4. मौत से ठन गई।

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।


मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

5. आओ मन की गाँठें खोलें.

यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन में, तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर.
माँ के मुँह से रामायण के दोहे चौपाई रस घोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें.
बाबा की बैठक में बिछी चटाई बाहर रखे खड़ाऊँ,
मिलने वालों के मन में असमंजस, जाऊं या ना जाऊं,
माथे तिलक, आंख पर ऐनक, पोथी खुली स्वंय से बोलें,
  
आओ मन की गाँठें खोलें.
सरस्वती की देख साधना, लक्ष्मी ने संबंध ना जोड़ा,
मिट्टी ने माथे के चंदन बनने का संकल्प ना तोड़ा,
नये वर्ष की अगवानी में, टुक रुक लें, कुछ ताजा हो लें,
आओ मन की गाँठें खोलें.

स्वामी विवेकानंद - विश्व में गूंजे हमारी भारती

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विश्व में गूंजे हमारी भारती -बल्देव भाई शर्मा
तारीख: 1/21/2013 12:20:14 PM
http://panchjanya.com




स्वामी विवेकानंद का स्मरण हृदय में रोमांच भर देता है, उनके शब्द पढ़-सुनकर भुजाएं फड़कने लगती हैं और मन में उदात्त भावों को जगाता आनंद का उत्स फूट पड़ता है। मानो ऊर्जा का विस्फोट हैं विवेकानंद। नरेन्द्र नाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने तक की उनकी यात्रा न केवल मानवीय दुर्बलताओं पर विजय है, बल्कि अनंत आस्था के प्रवाह में अवगाहन है, राष्ट्र- धर्म- संस्कृति के उन्नयन का मंत्र भी। निराशा, आत्मबोधहीनता और अज्ञान से निकलकर किस तरह जिजीविषा के साथ निर्भय होकर अमरत्व की ओर बढ़ें, हिन्दू चिंतन, विशेषकर उपनिषदों के आह्वान को बोधगम्य बनाकर जब उन्होंने प्रस्तुत किया, तो न केवल ईसाइयत की श्रेष्ठता के अहंकार पर चढ़कर आई साम्राज्यवादी निरंकुशता का दंभ चूर-चूर हो गया, बल्कि यूरोप और अमरीकावासी तो उन्मत्त होकर उनके पीछे दौड़ने लगे मानो उन्हें कोई त्राता मिल गया हो। उनके विदेश प्रवास काल में घटित ऐसे अनेक प्रसंग और वहां के समाचार पत्रों में प्रकाशित स्वामी जी के चुम्बकीय आकर्षण की यशोगाथा वहां उनका जादू छा जाने के साक्षी हैं। प्रेम, सेवा और बंधुत्व के मार्ग पर चलकर समस्त मानवता के लिए स्वार्थ-भेद-संघर्ष से परे सुखमय, कल्याणकारी व शांतिपूर्ण जीवन का उनका संदेश पाश्चात्य भोगवादी और विभेदकारी सभ्यता से तप्त हृदयों के लिए मानो अमृतवर्षा जैसा था। उनके सम्मोहन में बंधा समस्त यूरोप व अमरीका धन्य-धन्य कह उठा। देश के उस पराधीनता काल में भी किसी भी तरह की आत्महीनता की बजाय भारत को, हिन्दू चिंतन को विश्व में प्रतिष्ठा दिलाकर, भारत को पराधीन कर विजय के दंभ में जी रहीं यूरोपीय जातियों व देशों को फटकार लगाकर एक दिग्विजयी योद्धा की भांति स्वामी विवेकानंद भारत लौटे तो देश का जनमानस गर्वोन्नत होकर उनके स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाकर खड़ा था, लेकिन स्वामी जी मद्रास के समुद्रतट पर जहाज से उतर कर मातृभूमि की रज में लोट-पोट हो रहे थे, आनंद अश्रुओं से विगलित अवस्था में वे बेसुध से हो गए, मानो वर्षों से मां की गोद से बिछुड़ा कोई अबोध बालक मां के अंक में आकर विश्रांति पा गया हो। मातृभूमि के स्पर्श से उनके आनंद का तो पारावार ही नहीं था, वर्षों भोगवादी पश्चिम की भूमि पर विचरण कर लौटे स्वामी विवेकानंद मानो भारत की रज के स्पर्श से चिरंतन शुचिता के संस्कार में अवगाहन कर रहे थे। ऐसी थी उनकी भारत भक्ति, मातृभूमि के प्रति अखंड साधना और हिन्दू चिंतन, भारतीय जीवनमूल्यों-संस्कारों के प्रति अडिग विश्वास व अगाध आस्था।
उन्होंने भारत भ्रमण कर निरंतर देशवासियों को जगाया, अपने समाज जीवन की कुरीतियों, मानसिक जड़ता और अंधविश्वासों के कुंहासे को चीरकर अपने स्वत्व को पहचानने व अपने पूर्वजों की थाती को संभालने का आह्वान किया। भारत माता को साक्षात् देवी मानकर उसके उत्कर्ष के लिए उसकी सेवा में सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावना, दरिद्र नारायण की सेवा, स्त्री चेतना का जागरण, शिक्षा का प्रसार, राष्ट्रोन्नयन में युवाओं की भूमिका, उनका चरित्र निर्माण- उनका बलशाली बनना, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का बोध, भारत की आध्यात्मिक चेतना का प्रवाह, जाति, पंथ भेद से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता व लोक कल्याण के द्वारा भारत का उत्थान, राष्ट्रीय एकात्मभाव का जागरण, हिन्दू धर्म-संस्कृति का गौरवबोध, झोपड़ियों में से भारत उदय का आर्थिक चिंतन, ऐसी बहुआयामी सार्वकालिक विचार दृष्टि स्वामी जी ने हमें दी जो हमारे वैयक्तिक, सामाजिक व राष्ट्रजीवन के सर्वतोमुखी उत्कर्ष की भावभूमि है। स्वामी विवेकानंद की डेढ़ सौवीं जयंती (सार्द्ध शती) के अवसर पर भारत के जन-जन तक इसके चिंतन-मनन और क्रियान्वयन का संदेश पहुंचे, इसी महत् उद्देश्य से देशभर में विवेकानंद सार्द्ध शती के आयोजन वर्ष भर चलेंगे। स्वामी विवेकानंद के विचार केवल बौद्धिक चिंतन तक ही न रहें, बल्कि व्यावहारिक धरातल पर भी साकार हों और देश का चित्र बदले, यह आवश्यक है। भारत का जो चित्र स्वामी जी की अंतश्चेतना में उभरता था, वह केवल सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली भारत का नहीं था, बल्कि एक संपन्न, सशक्त, स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में भारत विश्व का मार्गदर्शन करे, अपने गौरव बोध के साथ समूची मानव जाति को सुख-शांति व कल्याण का मार्ग दिखाए, भारत माता फिर से विश्वगुरू के सिंहासन पर आरूढ़ हो विश्व पूज्य बने। यह संकल्प तभी पूर्ण होगा जब हम विवेकानन्द के विचार को मनसा-वाचा-कर्मणा जिएंगे।
दुर्भाग्य से आज सत्तास्वार्थों के मोहजाल में फंसकर जाति, पंथ के विभेद उभारकर देश को कमजोर बना रही राजनीति पर अवलंबित राष्ट्रीय नेतृत्व भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं की न केवल अनदेखी कर रहा है, बल्कि उनको बढ़ाने में भी उसकी अदूरदर्शी व गलत नीतियां जिम्मेदार हैं। लगातार बिगड़ती कानून- व्यवस्था और नागरिक जीवन व उसके सम्मान के प्रति लापरवाही के कारण बढ़ते नृशंस अपराध, माओवादी नक्सलवाद व जिहादी आतंकवाद जैसी क्रूर हिंसक गतिविधियां आंतरिक सुरक्षा के लिए तो गंभीर खतरा हैं ही, देश के विघटन का खतरा भी उपस्थित कर रही हैं। उधर, सरकार की स्वाभिमानशून्यता व घुटनाटेक नीति के कारण पाकिस्तान, चीन लगातार भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा व एकता-अखंडता के लिए गंभीर चुनौती खड़ी कर रहे हैं। सरकार पोषित सेकुलर सोच के कारण शिक्षा में नैतिकता, राष्ट्रभक्ति, सामाजिकता जैसे उदात्त भाव तिरोहित हो रहे हैं, हिन्दुत्व को न केवल सांप्रदायिक बताया जाता है, बल्कि वोट राजनीति के लिए उसे कमजोर करने व लांछित करने के षड्यंत्र भी लगातार जारी हैं। आधुनिक सोच के नाम पर औपनिवेशिक व पाश्चात्य मानसिकता हावी है, जिसके आगे भारतीय जीवनमूल्यों, संस्कारों व चरित्र निर्माण की प्रक्रिया को पोंगापंथ ठहरा दिया जाता है। ऐसे में जब भारत, भारत ही नहीं रहेगा तो वह विश्व के सामने क्या आदर्श रखेगा? एक बार फिर विवेकानंद की सिंह- गर्जना भारतीयता से विमुख बंद दिमागों की खिड़की खोले, उनके अंत:करण में छाए वैचारिक विभ्रम के कुंहासे को छांट दे, भारत भक्ति से ओत-प्रोत हृदयों में आशा व विश्वास का संचार करे और भारत फिर अंगड़ाई लेकर 'इंडिया'को मात देता हुआ उठ खड़ा हो। 'भारत जागो, विश्व जगाओ'का यह संदेश गुंजित करने के सार्द्ध शती के इस अभियान में पाञ्चजन्य की भूमिका का निर्वाह करते हुए यह विशेषांक आप सबको समर्पित है, इस अभिलाषा के साथ-
विश्व में गूंजे हमारी भारती, जन जन उतारे आरती
धन्य देश महान! धन्य हिन्दुस्थान!!
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