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मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर अनेक सौगातें

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प्रदेशवासियों के संबल से राजस्थान देश के अग्रणी प्रदेशों में
13 Dec, 2015
राज्य सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष
मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने कहा कि प्रदेशवासियों के संबल से ही राजस्थान देश के अग्रणी प्रदेशों में शामिल हो रहा है। उन्होंने राज्य सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए प्रदेश में दो वर्षों में सर्वांगीण विकास की परिकल्पना को धरातल पर लाने के प्रयासों के साथ उपलब्धियों की जानकारी दी और जनकल्याण से जुड़ी अनेक घोषणाएं की।

श्रीमती राजे रविवार को जयपुर के जनपथ पर ‘विकास संकल्प समारोह‘ को सम्बोधित कर रही थीं। उन्होंने सात करोड़ राजस्थानियों के आगे शीश नवाते हुए कहा कि आपने ही मुझे शक्ति, संबल और आशीर्वाद देकर मेरा साथ दिया। यह साथ और विश्वास इसी तरह मिलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब राजस्थान देश के अग्रणी राज्यों में शामिल होगा।

उन्होंने कहा कि यह वही पवित्र जनपथ है, जहां आपने ऐतिहासिक जनादेश देकर आज से दो साल पहले 13 दिसम्बर, 2013 को मुझे प्रदेश की सेवा करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। तब एक तरफ जनता की अपेक्षाएं थीं तो दूसरी तरफ गंभीर आर्थिक संकट था लेकिन सरकार ने राजस्थान के स्वाभिमान के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया और हर चुनौती को स्वीकार किया। कड़ी मेहनत, लगन और निष्ठा से हम हालातों को सुधारने में लगे रहे और लगे हुए हैं। स्थितियां निश्चित तौर पर सुधर रही हैं।

बीमारू श्रेणी से बाहर निकल रहे हैं
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने अपने पिछले कार्यकाल में राजस्थान को ‘बीमारू‘ राज्यों की श्रेणी से बाहर निकाल दिया था। अफसोस है कि पूर्ववर्ती सरकार के समय राजस्थान वापस ‘बीमारू‘ श्रेणी में शामिल हो गया, जो आज हमारे प्रयासों से फिर इससे बाहर निकल रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपने कार्यकाल और अपनी पार्टी का हिसाब देने की बजाय हमसे हिसाब मांगते हैं ताकि वे अपनी खामियों को ढंक सकें। मैं उनमें से नहीं जो कहते कुछ और सोचते कुछ हैं, करते कुछ और दिखाते कुछ और हैं। उन्होंने आंकड़ों के साथ विकास की सच्चाई सबके सामने रखी।

6 लाख युवाओं को रोजगार से जोड़ा
श्रीमती राजे ने राज्य की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए बताया कि जिस प्रदेश में रोजगार के अवसर न पाकर युवा हताश और उदासीन हो गए थे वही आज कौशल विकास में देश में प्रथम स्थान पर है। हम पांच वर्षों में 15 लाख रोजगार के अवसरों का सृजन करेंगे। इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। पिछले दो वर्षाें में 6 लाख से अधिक युवाओं को रोजगार से जोड़ा जा चुका है।

सौर उर्जा में भी हमारा परचम
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज राजस्थान को रिर्जव बैंक ने निवेश के लिए देश में तीसरा स्थान दिया है, विश्व बैंक ने ईज आॅफ डूंईग बिजनेस में देश में छठी रैंक दी है। राज्य बेस्ट होली-डे डेस्टीनेशन के रूप में एशिया में छठे स्थान पर है। वहीं सौर उर्जा के क्षेत्र में हम देश में अव्वल हैं। राजस्थान खानों की ई-नीलामी में देश में प्रथम पायदान पर है। हमारा प्रदेश 5 हजार राशन की दुकानों को विकसित करने वाला देश का पहला राज्य है। यह ‘टीम राजस्थान‘ के 7 करोड़ राजस्थानियों के प्रयासों का ही नतीजा है।

श्रीमती राजे ने कहा कि अनिल अग्रवाल हो, चाहे साइरस मिस्त्री हो, चाहे आदित्य बिड़ला हो या फिर आनन्द महिन्द्रा हों, सभी ने न केवल निवेश व औद्योगीकरण के वातावरण की सराहना की बल्कि शहर की स्वच्छता एवं सौंदर्य की भी भरपूर प्रशंसा की।

प्रशासनिक सुधार के लिए बढे़ कदम
उन्होंने प्रशासनिक सुधार के लिए उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों की जानकारी देते हुए कहा कि ‘न्याय आपके द्वार‘ कार्यक्रम में वर्षाें से लम्बित 21 लाख 43 हजार मामले निपटाते हुए 61 ग्राम पंचायतों को राजस्व वाद से मुक्त किया गया जो एक रिकाॅर्ड है। जिला स्तर पर भी प्रशासनिक सुधार और योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए ‘आपका जिला-आपकी सरकार‘ कार्यक्रम शुरू किया। ‘राजस्थान संपर्क पोर्टल और हैल्प लाइन से घर बैठे समस्याओं का समाधान हो रहा है। श्रीमती राजे ने कहा कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजमर्रा का सामान एकसाथ एक ही छत के नीचे नहीं मिल पाता है। इसके लिए पांच हजार उचित मूल्य की दुकानों को ‘अन्नपूर्णा भण्डारों‘ के रूप में जून, 2016 तक विकसित करने का लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा।

बदल दिया बिजली का परिदृश्य
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिजली विकास की प्रमुख धुरी है। पिछले दो वर्षाें में हमने विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से उत्पादन क्षमता में 4282.5 मेगावाट वृद्धि की है जबकि पिछली सरकार के दो साल में यह वृद्धि केवल 2293.75 मेगावाट थी। राज्य सरकार बिजली कंपनियों को 75 हजार करोड़ रूपये के कर्ज से उभारने के लिए गत दो वर्षाें में 23 हजार 637 करोड़ की आर्थिक सहायता प्रदान कर चुकी है, जबकि पिछली सरकार ने मात्र 4765 करोड़ रूपये की सहायता दी थी। राज्य में सौर उर्जा नीति घोषित की गई, जिससे 42 हजार मेगावाट से ज्यादा के सोलर पाक्र्स और सोलर पावर प्लांट स्थापित करने के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 2022 तक 1 लाख मेगावाट सौर उर्जा उत्पादन के लक्ष्य के लिए राजस्थान तेजी से आगे बढ़ रहा है। गांवों में भी 20-24 घण्टे बिजली मिल रही है। करीब 80 हजार 668 कृषि कनेक्शन दिए जा चुके हैं। करीब 12 लाख किसानों को विद्युत उपलब्ध कराने के लिए एक वर्ष में 5976 करोड़ रूपये का अनुदान उपलब्ध कराया है। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के लिए 2 हजार 819.40 करोड़ रूपये की स्वीकृति जारी की गई है।

पेयजल संकट से राहत के लिए रिवर बेसिन आॅथोरिटी बनाई
मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नदियों को जोड़ने के सपने को राजस्थान में साकार करने के लिए ‘राजस्थान रिवर बेसिन आॅथोरिटी‘ का गठन कर दिया गया है। सिंचाई एवं पेयजल की समस्याओं का समाधान करने के लिए 27 जनवरी, 2016 से प्रदेश में ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान‘ एक जन आंदोलन के रूप में शुरू किया जाएगा। तीन वर्ष पूरे होने पर लगभग 9 हजार पेयजल संकट से ग्रस्त गांवों को इससे राहत मिल सकेगी।

श्रीमती राजे ने कृषि क्षेत्र में उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए कहा कि बीकानेर के लूणकरणसर में जैतून रिफायनरी से वाणिज्यिक उत्पादन हो रहा है। नागौर में नवीन कृषि महाविद्यालय की स्थापना की गई है।

‘आरोग्य राजस्थान‘ से निरोगी होगा प्रदेश
श्रीमती राजे ने इस अवसर पर प्रदेश में निजी एवं सरकारी चिकित्सालयों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ‘भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना‘ शुरू करते हुए कहा कि इससे साधारण बीमारी के लिए 30 हजार और गंभीर बीमारी के लिए 3 लाख रूपये तक का बीमा होगा। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रदेश में ‘मुख्यमंत्री बीपीएल जीवन रक्षा‘ कोष से 68 लाख से अधिक रोगियों को मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई। राजस्थान में अंग प्रत्यारोपण की भी सफल शुरूआत की गई है। प्रदेश में ‘आरोग्य राजस्थान‘ अभियान की शुरूआत की गई है जिसके तहत पंचायत स्तर पर शिविर लगाकर लोगों के स्वास्थ की जांच करवायी जाएगी। इसे भामाशाह कार्ड से जोड़कर प्रत्येक व्यक्ति का ‘हैल्थ कार्ड‘ बनाया जाएगा। राज्य में चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए पे माइनस पेंशन के आधार पर चिकित्सकों को नियुक्ति देने के साथ ही चूरू, डूंगरपूर, भीलवाड़ा, बाड़मेर व पाली में 5 नए मेडिकल काॅलेजों की नींव रख दी है

महिलाओं को सम्मान से जीने का अधिकार
मुख्यमंत्री ने ‘नारी शक्ति को सम्मान के साथ अधिकार दिलाने के लिए शुरू की गई ‘भामाशाह‘ योजना का उल्लेख करते हुए बताया कि इससे समाज में महिलाओं का सशक्तीकरण होगा। उन्होंने बताया कि योजना मंे 3 करोड़ 40 लाख लोगों का नामांकन हो चुका है तथा 80 लाख 60 हजार लोगों के खातों में 604 करोड़ रूपये सीधे ही जमा करवाए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि हमने तृतीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती एक ही परीक्षा रीट के माध्यम से कराने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। हर पंचायत में आदर्श विद्यालय की स्थापना की जा रही है और 16 नए सरकारी काॅलेज शुरू किए गए हैं। इसके अलावा तीन नए निजी विश्वविद्यालयों को मंजूरी दी गई है।

उन्होंने प्रदेश में पर्यटन विकास के साथ ही राज्य में सभी लोकदेवताओं के स्मारकों पर किए जा रहे कार्यों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि प्रमुख धार्मिक स्थलों के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाकर विकास किया जा रहा है।

‘स्वच्छ भारत‘ को बना रहे सफल
मुख्यमंत्री ने नगरीय विकास के क्षेत्र में उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत‘ अभियान को पूरे प्रदेश में सफल बनाया जा रहा है। वर्ष 2018 तक राजस्थान को खुले में शौच से मुक्त करा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि हाल ही में यूनेस्को ने जयपुर को लोक कला और शिल्प के क्षेत्र में क्रियेटिव सिटीज के नेटवर्क में शामिल किया है। उन्होंने प्रदेशवासियों का आह्वान किया कि वे अपने घर, मोहल्ले, गांव, कस्बे और शहर को साफ-सुथरा रखें ताकि हमारे शहरों और कस्बों में प्रवेश करते व्यक्त लोगों को साफ-सफाई, सौंदर्यकरण और विकास दिखाई दे।

समारोह में केन्द्रीय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, कर्नल राज्यवर्द्धन राठौड़, श्री निहालचन्द, गृह मंत्री श्री गुलाब चन्द कटारिया, सार्वजनिक निर्माण मंत्री श्री यूनुस खान, जल संसाधन मंत्री डाॅ. रामप्रताप, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डाॅ. अरूण चतुर्वेदी, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी सहित राज्य मंत्री परिषद के सदस्य स्थानीय निकायों, सांसद, विधायक, अन्य जनप्रतिनिधि तथा अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।
जयपुर, 13 दिसम्बर 2015
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9 हजार करोड़ की योजनाओं से निकलेगी तरक्की की राह
13 Dec, 2015
मुख्यमंत्री ने दी राज्य सरकार की दूसरी वर्षगांठ पर अनेक सौगातें
मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने राज्य सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर जनपथ पर आयोजित ‘विकास संकल्प समारोह‘ में प्रदेश के कोने-कोने से आए अपार जन समूह के बीच जनकल्याण को समर्पित करीब 9 हजार करोड़ रूपये के विकास कार्याें की घोषणाओं के साथ प्रदेशवासियों को अनेक सौगातें दीं। इन घोषणाओं से प्रदेश में विकास के साथ-साथ आमजन के सामाजिक और आर्थिक उत्थान की नई राह खुलेगी जिससे प्रदेश के विकास का परिदृश्य भी बदलेगा।

श्रीमती राजे ने शहरी क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के विकास, प्रदेश के सड़क तंत्र के सुदृढ़ीकरण, श्रमिकों के कल्याण के लिए योजनाओं, राजस्थान में कौशल विकास, उच्च शिक्षा, पंचायतीराज, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम एंटरप्राइजेज विभाग से जुड़ी अनेक घोषणाएं की।

मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणाएं

आरयूआईडीपी
शहरी क्षेत्रों में आधारभूत संरचना विकास के लिए 10 हैरिटेज कस्बों एवं 24 शहरों, जिनकी आबादी 50 हजार से 1 लाख तक है, में 4200 करोड़ रूपये के कार्य कराये जाएंगे।
नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के प्रशिक्षण एवं नगरीय क्षेत्रों के बेहतर प्रबंधन हेतु राज्य स्तरीय शहरी शासन प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की जाएगी।
सार्वजनिक निर्माण विभाग
कोटा दर्रा एन.एच.-12 पर 621.43 करोड़ रूपये की लागत से 4 लेन वाली 34.33 किमी लम्बाई की सीसी सड़क और जगपुरा, अलनिया एवं मंडाणा गांवों में बाईपास का निर्माण किया जाएगा।
अनूपगढ़ सूरतगढ़ मार्ग पर 291.20 करोड़ रूपये की लागत से 74.60 किमी में 10 मीटर चैडाई की सीसी सड़क और 3 किमी जेतसर का लिंक सड़क का निर्माण किया जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में सभी जिलों में 608.35 करोड़ रूपये लागत से 2,100 कि.मी. मिसिंग लिंक सड़कों का निर्माण कराया जाएगा।
605 करोड़ की लागत से 123 पुलियाओं का निर्माण एवं 2,700 कि.मी. नोन-पेचेबल ग्रामीण सड़कों का नवीनीकरण किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 18 जिलों के मरू एवं जनजाति क्षेत्र की 250 से 349 तक की आबादी की 1481 बसावटों को जोड़ने के लिए 1618 करोड़ की लागत से 4226 कि.मी. से अधिक सड़कों का निर्माण कराया जाएगा।

श्रम विभाग
(क) असंगठित क्षेत्र के भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिकों एवं उनके परिवार के कल्याण के लिए ‘‘भामाशाह निर्माण श्रमिक कल्याण कार्यक्रम‘‘ लागू किया जाएगा।
इसके तहत 4 प्रमुख योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाएगा-
(i) निर्माण श्रमिक शिक्षा व कौशल विकास योजना – इसके तहत विभिन्न पाठ्यक्रमों में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के अध्ययनरत छात्र/छात्राओं की प्रोत्साहन राशि तथा छात्रवृति में 2 से 8 गुणा वृद्धि की जाएगी।
(ii) निर्माण श्रमिक आवास योजना – इस योजना के तहत पंजिकृत निर्माण श्रमिकों की आवास समस्या के समाधान हेतु 1.5 लाख रूपये तक का अनुदान दिया जाएगा।
निर्माण श्रमिक आवास योजना में बीपीएल के साथ-साथ अनुसूचित जाति, जनजाति, विशेष योग्यजन, 2 पुत्रियों वाले परिवार तथा पालनहार योजना के परिवारों को भी प्राथमिकता दी जाएगी।
(iii) निर्माण श्रमिक स्वास्थ्य बीमा योजना- इस योजना के अंतर्गत पंजिकृत 7 लाख निर्माण श्रमिकों के स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना में प्रीमियम राशि का पुनर्भरण श्रमिक कल्याण मण्डल द्वारा किया जाएगा।
(iv) निर्माण श्रमिक जीवन सुरक्षा योजना – निर्माण श्रमिकों को बीमा एवं पेंशन योजना का लाभ देने के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना की पूर्ण प्रीमियम, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना की देय प्रीमियम की आधी राशि एवं अटल पेंशन योजना के तहत 1,000 रूपये मासिक पेंशन प्राप्त करने के लिए औसत वार्षिक अंशदान की आधी राशि का पुनर्भरण श्रमिक कल्याण मण्डल द्वारा किया जाएगा।
(ख) शुभ शक्ति योजना- विवाह सहायता योजना के स्वरूप में परिवर्तन कर पात्र निर्माण श्रमिकों की अधिकतम 2 अविवाहित पुत्रियों के लिए दी जाने वाली राशि में बढ़ोत्तरी कर अब 55 हजार रूपए प्रति बेटी बैंक खाते में जमा कर सहायता दी जाएगी।
उक्त सभी योजनाएं 1 जनवरी, 2016 से राज्य के सभी जिलों में लागू की जाएंगी। जिस पर 300 करोड़ रूपये व्यय होंगे।
(ग) राज्य में न्यूनतम मजदूरी की दरों में 01.01.2015 से बढोत्तरी की जाकर न्यूनतम मजदूरी अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल एवं उच्च कुशल श्रेणी में क्रमशः 197 रूपये, 207 रूपये, 217 रूपये एवं 267 रूपये की जा रही है।

राजस्थान कौशल, आजीविका एवं उद्यमिता विभाग
MGNREGA-LIFE (Livelihoods In Full Employment)

हमारे द्वारा वर्ष 2014 में ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण एवं रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु शुरू की गई पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना की तर्ज पर महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत प्रोजेक्ट MGNREGA-LIFE (Livelihoods In Full Employment) के तहत हमारे द्वारा प्रस्तावित पहली परियोजना की स्वीकृति भारत सरकार द्वारा जारी कर दी गई है।
इसके तहत राजस्थान कौषल एवं आजीविका विकास निगम (RSLDC) के द्वारा आगामी 2 वर्षों में 354 करोड़ रुपयों की लागत से ऐसे 86,000 युवाओं को कौषल प्रषिक्षण करवाया जायेगा जिनके परिवारों ने महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत एक वर्ष में 100 दिवस का रोजगार प्राप्त किया है। ये परिवार महात्मा गांधी नरेगा के तहत नदेापससमक संइवनत का सीमित कार्य कर रहे थे। कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से अब इन परिवारों के युवा वर्षपर्यंत रोजगार प्राप्त कर सकेंगे।
उच्च शिक्षा विभाग
राष्ट्रीय उच्चतर षिक्षा अभियान के अन्तर्गत राज्य के उच्च, तकनीकी एवं संस्कृत षिक्षा के राजकीय महाविद्यालयो एवं विष्वविद्यालयों में आधारभूत संरचना के सुधार हेतु तीन वर्ष (2015-17) में 352 करोड़ रूपये व्यय किए जाएगें। इसके तहत बारां एवं बाड़मेर में नये इंजीनियरिंग काॅलेज खोले जायेगें।
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में संचालित उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय प्रबंधन कंेद्र की तर्ज पर प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी उद्यमिता केंद्र खोले जाएंगे।
पंचायती राज विभाग
सरपंचों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में टेण्डर प्रक्रिया अपनाने से विकास कार्यों के त्वरित निष्पादन में आ रही प्रशासनिक कठिनाइयों को देखते हुए विकल्प के रूप में बी.एस.आर. दरों पर विकास कार्यों को करने हेतु पंचायती राज संस्थाओं एवं उनकी समितियों को अधिकृत कर दिया गया है।
सरपंचों के कार्याें की कुल आॅडिट की संख्या में कमी आ सके एवं प्रक्रिया का सरलीकरण करने के संबंध में हम एक राज्यस्तरीय कमेटी बनाऐंगे।
ग्रामीण कार्य निर्देशिका-2015 को लागू किये जाने के संबंध में सरपंचों की आपत्तियों को देखते हुये हमने नई कार्य निर्देशिका के संबंध में प्राप्त आपत्तियों के निस्तारण होने तक इसे लागू नहीं करने तथा तब तक ग्रामीण कार्य निर्देशिका-2010 लागू रखने हेतु निर्देश दे दिये है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम एन्टरप्राइजेज (एमएसएमई) विभाग
भामाशाह रोजगार सृजन योजना – सुराज संकल्प घोषणा पत्र के अनुसरण में राज्य के पंजीकृत पात्र बेरोजगार नवयुवकों, शिक्षित बेरोजगार महिलाओं, अन्य महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग एवं विशेष योग्यजन व्यक्तियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु इनको बैंकों से कम लागत पर ऋण उपलब्ध कराया जाएगा। जिससे उद्योग, सेवा एवं व्यापार के क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यम को स्थापित कर रोजगार के नवीन अवसर सृजित करने के उद्देश्य से भामाशाह रोजगार सृजन योजना आज दिनांक 13.12.2015 से प्रारम्भ की जा रही है।
जयपुर, 13 दिसम्बर 2015
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मुख्यमंत्री ने किया विकास प्रदर्षनी का उद्घाटन
13 Dec, 2015
सच होते सपने-पूरे होते वादे
मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने रविवार को एसएमएस इन्वेस्टमेंट ग्राउण्ड में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा राज्य सरकार के दो साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर आधारित विकास प्रदर्षनी ’सच होते सपने-पूरे होते वादे’ का उद्घाटन किया।

श्रीमती राजे ने सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा सरकार की दो साल की उपलब्धियों पर प्रकाषित साहित्य का विमोचन किया और विभाग के सोशल मीडिया प्लेटफार्म को भी आधिकारिक रूप से लांच किया।

श्रीमती राजे करीब एक घंटे तक प्रदर्षनी में रहीं और यहां उन्होंने 84 स्टालों पर विभिन्न विभागों तथा संस्थानों द्वारा आकर्षक रूप से प्रदर्शित किये गये विकास कार्यों को रूचिपूर्वक देखा। उन्होंने प्रदर्शनी की विषयवस्तु, आकर्षक छायाचित्रों तथा प्रचार के परम्परागत एवं नवीन माध्यमों के उपयोग की भरपूर सराहना की। मुख्यमंत्री ने प्रत्येक स्टाॅल पर जाकर सम्बंधित विभागों के मंत्रियों, अधिकारियों और कर्मचारियों से विषयवस्तु की गहनता से जानकारी ली और उनके प्रयासों को सराहा। उन्होंने कहा कि आज राजस्थान विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। राजस्थान को देश का सबसे विकसित राज्य बनाने के राज्य सरकार के प्रयासों की जानकारी आमजन तक पहुंचे।

श्रीमती राजे ने मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के लिए जनजागृति पोस्टर, स्टिकर, जिंगल एवं ब्रोशर का विमोचन भी किया। उन्होंने भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना की जानकारी आमजन तक पहुंचाने के लिए तैयार प्रचार वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। मुख्यमंत्री ने भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना मोबाइल एप तथा मोबाइल एम हूटर एम्बूलैंस को भी रवाना किया।

सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के शासन सचिव श्री टी.रविकान्त एवं निदेशक श्री अनिल गुप्ता ने मुख्यमंत्री को प्रदर्षनी का अवलोकन करवाया।

सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म का शुभारंभ- मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सोशल मीडिया प्लेटफार्म का आधिकारिक रूप से शुभारंभ किया। उन्होंने इसे अच्छा प्रयास बताते हुए कहा कि इससे राज्य सरकार की योजनाओं एवं उपलब्धियों की जानकारी अब सोशल प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध हो सकेगी। यह सोशल मीडिया के 6 प्लेटफार्म फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल प्लस, ट्वीटर, यू-ट्यूब तथा पिंट्रेस्ट पर उपलब्ध रहेगा।
जयपुर, 13 दिसम्बर 2015

विजय दिवस :भारतीय सेना के अप्रतिम शौर्य का तेजस्वी स्मरण

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विजय दिवस : 16 दिसम्बर,1971
अपनी गौरवमयी सेना के
अप्रतिम शौर्य का तेजस्वी स्मरण !
कृतज्ञ देशवासियों का नमन !!

जब 1971 के युद्ध जांबाजों ने भारत को दिलाई जीत...

आजतक ब्‍यूरो | नई दिल्ली, 16 दिसम्बर 2011

साल 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्‍तान को करारी शिकस्‍त दी, जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया, जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है. यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक और हर देशवासी के दिल में उमंग पैदा करने वाला साबित हुआ.
देश भर में 16 दिसम्बर को 'विजय दिवस'के रूप में मनाया जाता है. वर्ष 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे.

पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसके बाद 17 दिसम्बर को 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया.

युद्ध की पृष्‍ठभूमि साल 1971 की शुरुआत से ही बनने लगी थी. पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जन भावनाओं को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया. इसके बाद शेख़ मुजीब को गिरफ़्तार कर लिया गया. तब वहां से कई शरणार्थी लगातार भारत आने लगे.

जब भारत में पाकिस्तानी सेना के दुर्व्यवहार की ख़बरें आईं, तब भारत पर यह दबाव पड़ने लगा कि वह वहां पर सेना के जरिए हस्तक्षेप करे. तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि अप्रैल में आक्रमण किया जाए. इस बारे में इंदिरा गांधी ने थलसेनाध्‍यक्ष जनरल मानेकशॉ की राय ली.


तब भारत के पास सिर्फ़ एक पर्वतीय डिवीजन था. इस डिवीजन के पास पुल बनाने की क्षमता नहीं थी. तब मानसून भी दस्‍तक देने ही वाला था. ऐसे समय में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करना मुसीबत मोल लेने जैसा था. मानेकशॉ ने सियासी दबाव में झुके बिना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से स्‍पष्‍ट कह दिया कि वे पूरी तैयारी के साथ ही युद्ध के मैदान में उतरना चाहते हैं.

3 दिसंबर, 1971 को इंदिरा गांधी तत्‍कालीन कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित कर रही थीं. इसी दिन शाम के वक्‍त पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने भारतीय वायुसीमा को पार करके पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराना शुरू कर दिया. इंदिरा गांधी ने उसी वक्‍त दिल्ली लौटकर मंत्रिमंडल की आपात बैठक की.

युद्घ् शुरू होने के बाद पूर्व में तेज़ी से आगे बढ़ते हुए भारतीय सेना ने जेसोर और खुलना पर कब्ज़ा कर लिया. भारतीय सेना की रणनीति थी कि अहम ठिकानों को छोड़ते हुए पहले आगे बढ़ा जाए. युद्ध में मानेकशॉ खुलना और चटगांव पर ही कब्ज़ा करने पर ज़ोर देते रहे. ढाका पर कब्ज़ा करने का लक्ष्य भारतीय सेना के सामने रखा ही नहीं गया.

इस युद्ध के दौरान एक बार फिर से इंदिरा गांधी का विराट व्‍यक्तित्‍व सामने आया. युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी को कभी विचलित नहीं देखा गया.

14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश को पकड़ा कि दोपहर ग्यारह बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन बड़े अधिकारी भाग लेने वाले हैं. भारतीय सेना ने तय किया कि इसी समय उस भवन पर बम गिराए जाएं. बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों ने भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी. गवर्नर मलिक ने लगभग कांपते हाथों से अपना इस्तीफ़ा लिखा.

16 दिसंबर की सुबह जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें. जैकब की हालत बिगड़ रही थी. नियाज़ी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे, जबकि भारत के पास सिर्फ़ 3000 सैनिक और वे भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर.

भारतीय सेना ने युद्घ पर पूरी तरह से अपनी पकड़ बना ली. अरोड़ा अपने दलबल समेत एक दो घंटे में ढाका लैंड करने वाले थे और युद्ध विराम भी जल्द ख़त्म होने वाला था. जैकब के हाथ में कुछ भी नहीं था. जैकब जब नियाज़ी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था. आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ मेज़ पर रखा हुआ था.

शाम के साढ़े चार बजे जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर उतरे. अरोडा़ और नियाज़ी एक मेज़ के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ पर हस्ताक्षर किए. नियाज़ी ने अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया. नियाज़ी की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए.

अंधेरा घिरने के बाद स्‍थानीय लोग नियाज़ी की हत्‍या पर उतारू नजर आ रहे थे. भारतीय सेना के वरिष्ठ अफ़सरों ने नियाज़ी के चारों तरफ़ एक सुरक्षित घेरा बना दिया. बाद में नियाजी को बाहर निकाला गया.

इंदिरा गांधी संसद भवन के अपने दफ़्तर में एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं. तभी जनरल मानेक शॉ ने उन्‍हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की ख़बर दी.

इंदिरा गांधी ने लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की कि युद्ध में भारत को विजय मिली है. इंदिरा गांधी के बयान के बाद पूरा सदन जश्‍न में डूब गया. इस ऐतिहासिक जीत को खुशी आज भी हर देशवासी के मन को उमंग से भर देती है.



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विजय दिवस (16 दिसंबर) पर विशेष भारतीय सेना की धाक जमी, साख बढ़ी
http://panchjanya.com/arch/2010/12/19/File19.htm
- जितेन्द्र तिवारी

कुछ तारीखें इतनी महत्वपूर्ण होती हैं कि उनको याद करते ही मन में गौरव का भाव उत्पन्न होता है। भारत के इतिहास की ऐसी ही एक महत्वपूर्ण तारीख है 16 दिसंबर। आज से 39 साल पहले सन् 1971 में भारत और उसकी सेना ने जो शौर्य और नीति प्रकट की उसने विश्व जगत में भारत की शक्ति और साख को स्थापित किया। आतंकवादी हमलों के घाव सहलाते भारत, मुम्बई और संसद पर हमलों की तारीखें 26/11 या 13/12 याद करते भारतवासियों के लिए 16 दिसंबर की तारीख यह विश्वास दिलाती है कि छिपकर, कायरों की तरह, आतंकवादियों की आड़ लेकर किए जा रहे छद्म युद्ध में भले उसे कुछ हानि हो रही हो, पर आमने-सामने के युद्ध में हम दुश्मनों को धूल चटा देने की जैसी सामथ्र्य रखते हैं उसका विश्व में कोई सानी नहीं है। प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को भारतीय सेनाएं "विजय दिवस"मनाकर अपने उस गौरवमयी इतिहास का स्मरण करती हैं जब उसके पराक्रम से मात्र 13 दिन के युद्ध के बाद दुश्मन दल के 97 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था और विश्व गगन पर एक नया देश उभरा था-बंगलादेश।

ब्रिगेडियर (से.नि.) अमृत कपूर 1971 के युद्ध के समय सिलहट सेक्टर में तैनात थे और उन्होंने धर्मानगर, करीमनगर के युद्ध में भाग लिया था। वे उन ऐतिहासिक पलों को याद करते हुए कहते हैं, "मैंने अपने क्षेत्र में 15 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण कराया था। वास्तव में 1971 के युद्ध ने भारतीय सेना को उसका विश्वास लौटाया जो उसने 1962 के चीन युद्ध में खो दिया था।"मणिपुर स्थित भारत के एकमात्र और विशिष्ट "काउंटर इनसर्जेसी वारफेयर स्कूल"के कमांडेट रहे सेना के विशिष्ट सेवापदक (वीएसएम) प्राप्त बिग्रेडियर कपूर को विजय दिवस के साथ यह दु:ख भी सालता रहता है कि हमने इस अवसर का फायदा उठाकर अपनी सभी समस्याओं का समाधान नहीं किया, जिसके दुष्परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं। कश्मीर की वर्तमान समस्या का समाधान भी 1971 में ही हो सकता था। पर 1971 की मार वह नहीं भूला है इसीलिए कश्मीर में आतंकवादियों को बढ़ावा दिया, कारगिल में भी कहता रहा कि वे आतंकवादी हैं जबकि कारगिल में पूरी की पूरी पाकिस्तानी सेना ही थी। यदि युद्ध की रणनीति के तहत भारतीय सेना कारगिल के अलावा किसी दूसरे मोर्चे से पाकिस्तान पर हमला बोल देती तो कारगिल में इतना लम्बा युद्ध नहीं चलता और न ही इतनी जान गंवानी पड़ती। पर तत्कालीन सरकार और नेतृत्व ने पूर्ण और घोषित युद्ध न छेड़ने और अपनी सीमा में ही रहकर शत्रु को जवाब देने की रणनीति अपनाई। इस शर्त के बावजूद बलिदान देकर भी भारतीय सेना ने दुश्मनों को भागने पर मजबूर किया और एक बार फिर अपने अदम्य साहस, संयम और शौर्य का परिचय दिया। भारतीय सेना के इस संयमपूर्ण शौर्य के कारण विश्व के अनेक देशों में उसकी साख बढ़ी है और एक अच्छी बात यह हुई है कि दुनिया के शक्तिशाली देशों के साथ भारतीय सेना के संयुक्त सैन्य अभ्यास होने लगे। 2003 में अमरीका के साथ संयुक्त सैन्य अभियान शुरू हुआ और रूस, चीन के साथ भी यह प्रयोग हो चुका है। विभिन्न देशों में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा चलाए जा रहे शांति स्थापना के सैन्य अभियानों में भारतीय दल शामिल हैं। ऐसे 15 से 20 देश हैं, सब जगह भारतीय सेना के व्यवहार एवं कार्य की सराहना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र का भारतीय सेना पर बहुत दवाब है कि वह अन्य कई देशों में चल रहे सैन्य अभियानों में भी अपने सैन्य दल भेजे, पर कई मोर्चों पर राजनीतिक और कूटनीतिक कारणों से सैन्य दल नहीं भेजे जाते। वैसे भी हम विश्व की पुलिस नहीं बनना चाहते, न अपने पड़ोसी को डराने के लिए ताकत बढ़ाते हैं। हम तो सिर्फ अपने देश की रक्षा के लिए सैन्य ताकत जुटाते हैं। इसीलिए पिछले 4 दशकों में भारत विश्व में एक सुदृढ़ और संयमित सैन्य शक्ति के रूप में भी स्थापित हुआ है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए सभी बड़े देश भारत के दावे का समर्थन कर रहे हैं।

मेजर जनरल (से.नि.) अफसिर करीम का मानना है कि 1971 का गौरव तो ठीक है पर अब दुनिया बदल गई है, हथियार बदल गए हैं, युद्ध के तरीके बदल गए है। 1971 में हमने अपनी ताकत दिखाते हुए पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया, दुनिया में हमारी पहचान बन गई और पता चल गया कि भारत किसी के दबाव में नहीं आएगा। पर अब पाकिस्तान भी कुछ देशों की मदद से परमाणु हथियार सम्पन्न हो गया है। हमने भी अपनी सैन्य ताकत बहुत बढ़ा ली है, खुद के दम पर बहुत तरक्की की है। सैन्य शक्ति में तुलनात्मक रूप से पीछे होने के साथ-साथ पाकिस्तान आर्थिक रूप से भारत के सामने कहीं नहीं ठहरता। इसीलिए अब वह हम पर युद्ध थोपने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। लेकिन उसने एक दूसरे प्रकार की लड़ाई शुरू कर दी है और सच यह है कि हम इस प्रकार की लड़ाई के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। 20 साल में आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने की कोई कारगर और स्पष्ट नीति नहीं बना पाए हैं। चीन सम्बंधी प्रश्न के उत्तर में मे.जन. करीम कहते हैं, "जहां तक चीन की बात है, उसकी ताकत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है पर उसका लक्ष्य केवल भारत नहीं है, उसकी मुख्य चुनौती "एशिया पैसेफिक"क्षेत्र में है जहां अमरीका और कई अन्य देश उसके खिलाफ अपनी सेना तैनात किए हुए हैं। चीन भले ताकतवर है पर इतना भी नहीं कि 1962 की तरह हमारे देश में घुसता चला आए। सैन्य मोर्चे पर हम बहुत सक्षम हैं पर कूटनीतिक दृष्टि से हम असफल हैं, इसीलिए बंगलादेश, भूटान, श्रीलंका और यहां तक कि नेपाल भी हमारा सच्चा मित्र नहीं है, इसीलिए सीमा पर खतरे बढ़े हुए हैं। कूटनीतिक दृष्टि से प्रयास करने चाहिए कि हमारे पड़ोसी देश हमारे मित्र हों और आतंकवादी गतिविधियों के लिए अपने देश की जमीन और तंत्र का इस्तेमाल न होने दें।"मेजर जनरल (से.नि.) करीम के अनुसार कुल मिलाकर भारत पहले के मुकाबले बहुत मजबूत हुआ है। हमारी सेना पूरी तरह से तैयार है, लेकिन रक्षात्मक रूप से ही। आक्रामक रूप से अभी तैयार नहीं है, जिसकी भविष्य में आवश्यकता पड़ सकती है। यह पूछे जाने पर कि राजनीतिक भ्रष्टाचार का सेना के मनोबल पर क्या असर पड़ता है, मेजर जनरल (से.नि.) करीम का कहना था, "सेना का मनोबल बहुत ऊंचा है। राजनीतिक भ्रष्टाचार का सैनिक की युद्धक क्षमता पर असर नहीं पड़ता। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि सेना के कुछ बड़े अधिकारियों के भी भ्रष्टाचार में शामिल होने के समाचार हैं, इसका सैनिकों के मनोबल पर असर पड़ सकता है। इसलिए सरकार और सेना, दोनों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि सैन्य तंत्र में भ्रष्टाचार का कोई अवसर न रहे।



‘Vijay Divas’ to mark India’s greatest military victory

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Time to Award Bharat Ratna to Sam Manekshaw
-Ganapathy Vanchinathan | Date:29 Jun , 2015 


 लिंक    http://www.indiandefencereview.com/time-to-award-bharat-ratna-to-sam-manekshaw/

16 December is celebrated as ‘Vijay Divas’ to mark India’s greatest military victory in modern times. This article is a tribute to the architect of that great victory, India’s greatest soldier of modern times, Field Marshal Sam Manekshaw.

In a few months from now, on 3rd April 2014, the country will commemorate the 100th birth anniversary of Field Marshal Sam Hormusji Framji Jamshedji Manekshaw, popularly referred to the world over as Sam Manekshaw.  His image is one that of larger than life – a charismatic countenance, bravado, inspirational, heroic, humorous, rebellious and defiant towards authority, but surely for the soldiers whom he commanded – just brave, inspiring and one that of immediate connect- a true ..

What better tribute can be given than conferring the Bharat Ratna on his 100th Birth Anniversary on Sam Manekshaw, the leader who brought India its greatest military victory of modern times.

Apart from reducing Pakistan by half and creating a new nation from the ceded portion, the 1971 War can be seen to be the most significant warIndia has fought in its modern history.  For the first time, India displayed its sovereignty in action, by opposing US, China and world opinion in entering the war.


His achievements – a Military Cross for an act of personal bravery in World War II; actively involved in the planning process of operations in J&K during the 1947 Indo-Pak War while posted in the Military Operations Directorate in Army HQ; in 1962, at the height of the Sino-Indian conflict, he was rushed to take over 4 Corps to stem the advancing Chinese -his famous quote – “There will be no withdrawal without orders – and these orders shall never be issued”; during his tenure as Army Com ..

The 1971 War was the culmination of a long-drawn struggle in erstwhileEast Pakistan.  A brutal crackdown by the Pakistani military on the night of 25-26th March 1971 saw the persecution of the local people rise to extremely dangerous levels.  Soldiers of the East Pakistan Rifles and Regiment, both of which had revolted, students, intellectual, any number of civilians who were considered to be ‘Bengali Resistance, were hunted, hounded and massacred, triggering the migration of an est ..

Undoubtedly, the Indian Army itself qualifies to be a worthy recipient of this supreme award, the organisation having contributed seminally to preserving the integrity of the nation, both within and outside.  Called to meet threats and distresses, the Indian Army has always risen to the occasion.  To honour Sam Manekshaw with the award, would be the recognition of the services rendered by the Army.  There indeed could be no better way to honour the army than by honouring its gr ..

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पद्म भूषण सैम मानेकशॉ
https://hi.wikipedia.org/s/y3t
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
फिल्ड मार्सल सैम मानेकशा
सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ (३ अप्रैल १९१४ - २७ जून २००८) भारतीय सेना के अध्यक्ष थे जिनके नेतृत्व में भारत ने सन् 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त किया था जिसके परिणामस्वरूप बंगलादेश का जन्म हुआ था।

जीवनी
मानेकशा का जन्म ३ अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आ गया था। मानेकशा ने प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में पाई, बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए। वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए ४० छात्रों में से एक थे। वहां से वे कमीशन प्राप्ति के बाद भारतीय सेना में भर्ती हुए।

1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को विवाह में बदल गई। 1969 को उन्हे सेनाध्यक्ष बनाया गया। 1973 मे उन्हे फील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया।

1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वेलिंगटन में बस गए थे। वृद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बिमारी हो गई थी और वे कोमा में चले गए थे। उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में रात 12.30 बजे हुई।

सैनिक जीवन
17वी इंफेंट्री डिवीजन में तैनात सैम ने पहली बार द्वितीय विश्वयुद्घ में जंग का स्वाद चखा, ४-१२ फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर जापानियों से लोहा लेते हुए वे गम्भीर रुप से घायल हो गए थे।

स्वस्थ होने पर मानेकशा पहले स्टाफ कॉलेज क्वेटा, फिर जनरल स्लिम्स की 14वीं सेना के 12 फ्रंटियर राइफल फोर्स में लेफ्टिनेंट बनकर बर्मा के जंगलो में एक बार फिर जापानियों से दो-दो हाथ करने जा पहुँचे, यहाँ वे भीषण लड़ाई में फिर से बुरी तरह घायल हुए, द्वितीय विश्वयुद्घ खत्म होने के बाद सैम को स्टॉफ आफिसर बनाकर जापानियों के आत्मसमर्पण के लिए इंडो-चायना भेजा गया जहां उन्होंने लगभग 10000 युद्घबंदियों के पुनर्वास में अपना योगदान दिया।

1946 में वे फर्स्ट ग्रेड स्टॉफ ऑफिसर बनकर मिलिट्री आपरेशंस डायरेक्ट्रेट में सेवारत रहे, विभाजन के बाद 1947-48 की कश्मीर की लड़ाई में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की आजादी के बाद गोरखों की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें सैम बहादुर के नाम से सबसे पहले पुकारना शुरू किया था। तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए सैम को नागालैंड समस्या को सुलझाने के अविस्मरणीय योगदान के लिए 1968 में पद्मभूषण से नवाजा गया।

7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने जनरल कुमारमंगलम के बाद भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया, उनके इतने सालों के अनुभव के इम्तिहान की घड़ी तब आई जब हजारों शरणार्थियों के जत्थे पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने लगे और युद्घ अवश्यंभावी हो गया, दिसम्बर 1971 में यह आशंका सत्य सिद्घ हुई, सैम के युद्घ कौशल के सामने पाकिस्तान की करारी हार हुई तथा बांग्लादेश का निर्माण हुआ, उनके देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्मविभूषण तथा 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के मानद पद से अलंकृत किया गया। चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए।

व्यक्तित्व के कुछ रोचक पहलु
मानेकशा खुलकर अपनी बात कहने वालों में से थे। उन्होंने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'मैडम'कहने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि यह संबोधन 'एक खास वर्ग'के लिए होता है। मानेकशा ने कहा कि वह उन्हे प्रधानमंत्री ही कहेगे।

सम्मान
सैम मानेकशॉ को प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषणसे सम्मानित किया था।

कभी राजीव गांधी के भी खास थे सुब्रमण्‍यम स्वामी

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सोनिया ही नहीं, इंदिरा गांधी से भी टकरा चुके हैं सुब्रमण्‍यम स्‍वामी, जानिए कई और खास बातें
सुब्रमण्‍यम स्‍वामी एक जमाने में राजीव गांधी के करीबी दोस्‍त हुआ करते थे। ये वही स्‍वामी हैं, जिन्‍होंने बोफोर्स कांड के वक्‍त खुलकर राजीव गांधी का पक्ष लिया था, लेकिन एक वक्‍त ऐसा भी था जब वह तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी टकरा गए थे।
जनसत्ता ऑनलाइन
नई दिल्‍ली | December 19, 2015
http://www.jansatta.com/national
कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्‍ड मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले सुब्रमण्‍यम स्‍वामी एक जमाने में राजीव गांधी के करीबी दोस्‍त हुआ करते थे। ये वही स्‍वामी हैं, जिन्‍होंने बोफोर्स कांड के वक्‍त खुलकर राजीव गांधी का पक्ष लिया था। स्‍वामी ने सदन में खुलकर कहा था कि राजीव गांधी ने पैसा नहीं लिया है। एक इंटरव्यू में उन्‍होंने खुद इस बात को स्‍वीकार किया था कि राजीव गांधी और वह घंटों साथ रहा करते थे। एक जमाना वो भी था, जब स्‍वामी आयरन लेडी इंदिरा गांधी से टकरा गए थे और कोर्ट से जीतकर भी आए थे। सुब्रमण्‍यम स्‍वामी के पिता सीताराम सुब्रमण्यम जाने-माने गणितज्ञ थे। वह एक समय में केंद्रीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हुआ करते थे। अपने पिता की तरह स्वामी भी गणितज्ञ बनना चाहते थे। उन्होंने हिंदू कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद वह भारतीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट में पढ़ने के लिए कोलकाता चले गए थे। स्वामी के जीवन का विद्रोही गुण पहली बार कोलकाता में जाहिर हुआ। उस वक्त भारतीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट, कोलकाता के डायरेक्टर पीसी महालानोबिस थे, जो स्वामी के पिता के प्रतिद्वंद्वी थे। लिहाजा उन्होंने स्वामी को खराब ग्रेड देना शुरू किया। स्वामी ने 1963 में एक शोध पत्र लिखकर बताया कि महालानोबिस की सांख्यिकी गणना का तरीका मौलिक नहीं है, बल्कि यह पुराने तरीके पर ही आधारित है। सुब्रमण्‍म स्वामी ने सिफ 24 साल की उम्र में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थीं और 27 साल की उम्र में वह हार्वर्ड में गणित पढाने लगे थे। 1968 में अमृत्य सेन ने उन्‍हें दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में पढ़ाने का निमंत्रण दिया था। इसके बाद वह दिल्ली आ गए और 1969 में आईआईटी दिल्ली में पढ़ाने लगे। सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने आईआईटी के सेमिनारों में पंचवर्षीय योजनाओं का खुलकर विरोध भी किया। उन्‍होंने विदेशी पूंजी निवेश पर निर्भरता को भी भारत के लिए नुकसान दायक बताया। उनका दावा था कि भारत इसके बिना भी ऊंची विकास दर हासिल कर सकता है। इंदिरा गांधी की नाराजगी के चलते सुब्रमण्‍यम स्वामी को दिसंबर 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी थी। वह इसके खिलाफ अदालत गए और 1991 में अदालत का फैसला स्वामी के पक्ष में आया। वे एक दिन के लिए आईआईटी गए और फिर पद से इस्तीफा दे दिया था। नानाजी देशमुख ने स्वामी को जनसंघ की ओर से राज्यसभा में 1974 में भेजा था। आपातकाल के 19 महीने के दौर में सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी थी। इस दौरान उन्होंने अमेरिका से भारत आकर संसद सत्र में हिस्सा भी ले लिया और वहां से फिर गायब भी हो गए थे। 1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे थे। 1990 के बाद वे जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 11 अगस्त, 2013 को उन्होंने अपनी पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी में कर दिया। सोनिया गांधी को मुश्किल में डालने वाले स्वामी ने 1999 में वाजपेयी सरकार को गिराने की कोशिश की थी। इसके लिए उन्होंने सोनिया और जयललिता की अशोक होटल में मुलाकात भी कराई। हालांकि, ये कोशिश नाकाम हो गई। इसके बाद वह हमेशा गांधी परिवार के खिलाफ ही नजर आए। 
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हेराल्ड मुद्दे पर कभी मोदी से बात नहीं की: स्वामी

नई दिल्ली, एजेंसी First Published:19-12-2015
http://www.livehindustan.com
 नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अदालत में घसीटने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आज कहा कि उनकी इस मामले में कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात नहीं हुई है।

कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि स्वामी प्रधानमंत्री के मुखौटे हैं और उनकी शह पर वह कांग्रेस नेतृत्व को बदनाम कर रहे हैं।

स्वामी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनकी कभी भी इन मामले में मोदी से बात नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि अदालत में तथ्यों पर बात होती है और सियासत की बात करना बेमानी है। तथ्यों के आधार पर ही अदालत में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को समन भेजा था।

भाजपा नेता ने कहा उन्होंने अदालत में कांग्रेस के नेताओं को उस कोने में खड़े होना पड़ा जहां आरोपी खड़े होते हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की जमानत का विरोध किया लेकिन अदालत ने उनकी अपील नहीं मानी।

नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान मिली थी जेड सुरक्षा: स्वामी
अपनी जेड सुरक्षा में विस्तार किये जाने के मुद्दे पर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कांग्रेस की आलोचना का जवाब देते हुए आज कहा कि उन्हें यह सुरक्षा पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार के कार्यकाल में मिली थी जिसे बाद में संप्रग सरकार ने हटा लिया था।

नेशनल हेराल्ड मामले में शिकायतकर्ता स्वामी ने कहा कि उन्हें राव के नेतत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जेड श्रेणी की सुरक्षा दी थी। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने इसमें कटौती कर दी थी और केवल कुछ राज्यों में ही यह उपलब्ध थी।

स्वामी ने कहा, जब हमारी (भाजपा) सरकार आई तो उन्होंने कहा कि यह अन्याय है और मुझे दोबारा सुरक्षा उपलब्ध करा दी जो मुझे राव के कार्यकाल में मिली थी। उन्होंने कहा, अब मुझे नहीं पता कि क्या वे (कांग्रेस) नरसिम्हा राव को भाजपा का आदमी मानते हैं।

हेराल्ड मामले में आज कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी तथा अन्य के अदालत में पेश होने के बीच स्वामी ने कांग्रेस की निन्दा की और दावा किया कि वह भयभीत है क्योंकि वह मामले को हार रही है और इसीलिए, इसके कार्यकर्ताओं ने जुलूस निकाले और जमावड़ा किया।

उन्होंने कहा, इस तरह जुलूस निकालने और भीड़ के जमावड़े से़ बहुत से इंतजाम भी किये गये। इससे दुनिया को संदेश जाएगा कि हमारे देश में सब बराबर नहीं है और लोकतंत्र अच्छी तरह से स्थापित नहीं है।

स्वामी ने कहा, मैं कांग्रेस को बता दूं, क्योंकि आपका नाम खराब हुआ है़, आप मामले को हार रहे हैं, इसीलिए आप यह सब कर रहे हैं। यदि आप जीत रहे हैं तो मुस्कान लिए अदालत जाएं।

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http://www.frontline.in


POLITICS

TERMINAL CRISIS 

With the BJP setting its face against giving in to the demands made by coalition partner Jayalalitha and the AIADMK leader deciding to look for new political partners, the Government at the Centre faces the toughest test in its year-long career.
SUKUMAR MURALIDHARAN
in New Delhi
Just a fortnight into its second year, the Atal Behari Vajpayee Government was witnessing the script of its demise being authored from three different directions. In Chennai, All-India Anna Dravida Munnetra Kazhagam leader Jayalalitha was preparing to take her bloc of 19 in the Lok Sabha out of the ruling coalition. Although willing to grant the Prime Minister a reasonable length of time in which to concede her demands, she was fairly categorical that the gravity of her warning this time around was of a different order compared to previous instances.
At several points of time in the past the reluctant partners have gone to the verge of parting ways, only to retreat in an air of feigned mutual goodwill. But things are clearly different this time around. A meeting of the Union Cabinet on April 5 saw the entire AIADMK contingent staying away. At his customary media briefing following the Cabinet meeting, Union Minister Pramod Mahajan refused to be drawn out on the issue. It is for the AIADMK members to decide whether any useful purpose would be served by their continuance in the Cabinet, he said.
Meeting concurrently in Panaji, the Bharatiya Janata Party National Executive set its face against making the slightest concession to its truculent ally from Chennai. Parliamentary Affairs Minister Rangarajan Kumaramangalam was particularly obdurate. After having precipitated the confrontation through a sharp jibe against Jayalalitha, he insisted that he saw no cause for contrition. The ultimatum that the AIADMK chief should either conform or quit was made in his personal capacity and hence called for no apology.
It is of course an inherent curiosity of the situation that Kumaramangalam thought little of putting the future of the ruling coalition at stake in the cause of expressing his personal opinion. But then, the BJP-led coalition at the Centre has been nothing if not a curious amalgam where personal proclivities acquire a disproportionate political moment.
As the principal belligerents in Goa and Chennai were preparing for their climactic engagement, a supporting cast in Delhi was being primed for the drama that will inevitably ensue. The BJP made known its intention to seek a vote of confidence in the Lok Sabha as an effort to counter Jayalalitha's threat of withdrawal of support. But Subramanian Swamy, a one-time bitter opponent who transformed himself into a loyal strategist and factotum of the AIADMK boss, was already launched on his strategy of preemption. A no-confidence motion would be introduced as soon as the Lok Sabha resumed its Budget session on April 15, said Subramanian Swamy. Speaking with the fervour of a man recently restored to political relevance, the Janata Party leader affirmed that the AIADMK's withdrawal from the BJP-led coalition would lead not merely to the collapse of the Vajpayee Government, but also the constitution of an alternative formation which would be far more stable and efficient.
For the BJP-led coalition, the reckless and ill-considered dismissal of an armed forces commander in December seemed to be inexorably leading to the outcome that the more perceptive observers had predicted right then. Having ventured out early to do battle against a man he chose to portray as a mutinous Admiral, Defence Minister George Fernandes was forced to retreat for fear of suffering mortal injury from the sense of outrage he had stirred up. He then chose to initiate a sustained campaign of attrition through the media, again emerging distinctly the loser.
The moment of reckoning came when Parliament met for its Budget session. The initial recourse was to the strategy of evasion. The Government would not concede the demand for a parliamentary discussion on the matter of Admiral Vishnu Bhagwat, said Fernandes, because of the sensitive national security issues involved.
In the desperation of the moment, Fernandes was clearly prepared to economise on the truth and run perilously close to inviting charges of misleading Parliament. But every effort to dodge the norms of parliamentary accountability only seemed to accelerate the pace of events. By persistently rebuffing the minimal demand for a debate on the Bhagwat issue, the Vajpayee Government only succeeded in eliciting a maximal set of demands from within its own ranks.
Jayalalitha began with the observation that a Joint Parliamentary Committee inquiry into the Bhagwat affair seemed both appropriate and necessary. She then proceeded to put two other options before the Government, either of which would seemingly have satisfied her - that Bhagwat be reinstated in command of the Navy or that Fernandes be moved out of the Defence Ministry and given a less sensitive portfolio.
Further stonewalling by the Government led in quick time to the compounding of these demands. Jayalalitha's minimal requirement today is that all three conditions be met - the constitution of a JPC, the dismissal of Fernandes and the reinstatement of Bhagwat. There is no escape hatch visible, since the consequence of accepting any one of these demands would be to invite a withering assault on the Vajpayee Government from another flank.
Apologists for the Government are trying to cast the current crisis in a continuum with Jayalalitha's established record of whimsical behaviour. This has failed to carry any conviction. Reasonable opinion seems overwhelmingly in favour of Jayalalitha on the Bhagwat issue. Indeed, the indications are that the Government quite deliberately raised the pitch of confrontation in its latest skirmish with Jayalalitha, precisely because it could not conceive of submitting to any form of inquiry on the circumstances leading up to the dismissal of Admiral Bhagwat.
Unmindful of his status as the man whose conduct in office was under scrutiny, Fernandes was designated as the official spokesman for the ruling coalition's Coordination Committee meeting of March 27. As was to be expected, he sought to put a gloss of unanimity over the committee's deliberations. This was another instance in a consistent record of misrepresenting facts, since the Coordination Committee was by no means unanimous on the Bhagwat question. Jayalalitha had endorsed the demand for a further inquiry, and was overruled by the rest of the committee, but clearly affirmed that she did not share the opinion of the majority.
ANU PUSHKARNA
At the ruling coalition's Coordination Committee meeting held in New Delhi on March 27, (from left) Defence Minister George Fernandes, Punjab Chief Minister Prakash Singh Badal, AIADMK leader Jayalalitha, Prime Minister A.B. Vajpayee, Home Minister L.K. Advani and Biju Janata Dal leader Naveen Patnaik.
THERE was obviously an unseen hand controlling the orchestrated reactions of outrage at Jayalalitha's subsequent public utterances. Rangarajan Kumaramangalam came up with his justly famous "conform or quit" ultimatum. Digvijay Singh of the Samata Party deprecated the AIADMK's persistent breaches of coalition decorum. More provocatively, Trinamul Congress leader Mamata Banerjee called into question Jayalalitha's entire record in politics, pointedly drawing attention to the multiplicity of corruption cases against her.
The reaction from the AIADMK headquarters was swift. The BJP leadership only needed to drop the slightest hint and the party's representative would be at the gates of Rashtrapati Bhavan to inform the President that the Vajpayee Government no longer enjoyed its confidence. There was no solace to be gained from the belief that no alternative coalition could be worked out within the prevailing calculus of the Lok Sabha. The AIADMK seems altogether more positive about an alliance with the Congress today, or as its formal response to the Kumaramangalam ultimatum puts it - the traditional ally which was cleansed of its undesirable elements in 1996 offers more constructive options in political cooperation today than the BJP.
RAJEEV BHATT

Congress(I) president Sonia Gandhi flanked by Janata Party president Subramanian Swamy and Jayalalitha at the tea party in New Delhi on March 29.


Finally it is the chemistry between two women politicians - Jayalalitha and Congress(I) president Sonia Gandhi - that seems to be driving the new phase of political engagement. Their meeting at a tea party hosted by Subramanian Swamy in New Delhi was brief. Little of substantive political import could have been discussed, though Jayalalitha chose in rather poor taste to describe the event as a "political earthquake", trivialising the tragedy that had affected a vast swathe of northern India just the previous day. But for all the sense of anticipation that had been generated in the preceding days, the actual meeting between the two leaders seemed rather inconsequential.
A degree of coordination, though, is apparent in the manner in which the two leaders have chosen to focus their attack on a point of extreme vulnerability for the BJP-led Government. Yet it remains to be seen how far they will be able to work out mutually acceptable rules of engagement, beyond their common endeavour to hold Fernandes accountable for the Bhagwat affair. Jayalalitha has repeatedly shown over the past year that without a bailiwick in Chennai to keep her occupied, she can be a persistent threat to the political dispensation at the Centre. If they want to work out a viable arrangement among themselves, the Congress(I) would have, if anything, to be even more attentive to her multiple insecurities than the BJP has been.
Political modesty has seldom been an attribute that could be applied to Jayalalitha. Since she arrested what seemed an irreversible plunge into electoral oblivion to emerge as the most important prop of the BJP-led Government at the Centre, the whimsical and imperious chief of the AIADMK has been the focus of much speculative psychological analysis. It seemed for long that deep political insecurities were her only motivation. She had ample reason to worry. Her five years at the helm in Tamil Nadu had ended in the most ignominious rout ever of an incumbent Chief Minister. And the successor Government led by bitter rival M. Karunanidhi had set in motion legal proceedings in a clutch of corruption cases, in the evident belief that summary conviction was the only way to quell any possible challenge she may pose in future.
The dismissal of the elected State Government in Tamil Nadu is obviously the outcome that Jayalalitha has sought, though the curbing of its lawful authority to punish gross financial malfeasance would have been a satisfactory stop-gap arrangement. In having coerced the BJP-led Government at the Centre to trample upon judicial proprieties and its own sense of morality, Jayalalitha seemed, not long ago, to have achieved her main purpose. But just when the law officers of the Central Government were putting their efforts into rationalising the disbanding of the special courts that the Karunanidhi Government had constituted exclusively for cases relating to her, Jayalalitha has chosen to open another front in her battle with the Vajpayee Government.
K. PICHUMANI
Defence Minister George Fernandes. Jayalalitha's demand for shifting him from the Defence Ministry is at the heart of the latest confrontation between the BJP and the AIADMK leader.
TO those who believe that politics is all about rational calculation and the careful evaluation of all possibilities, this must seem a rather wild and impulsive pattern of behaviour. But an innate sense of shrewdness is evident in the manner that Jayalalitha has mounted pressure on the BJP and its other allies over their most obvious administrative misdemeanours. First it was the transfer last September of the upright and energetic Director of the Enforcement Directorate, M.K. Bezboruah - a decision the BJP had to rescind under the pressure of judicial stricture, but not before suffering a stinging rebuke from its ally in Tamil Nadu. Now it is the dismissal of a Chief of the Naval Staff for reasons still unclear, but known to be unsavoury in the extreme.
M. MOORTHY
Parliamentary Affairs Minister P.R. Kumaramangalam. His sharp jibe against Jayalalitha precipitated the differences between the BJP and the AIADMK leader.
Further movement would depend upon the inclinations of the Congress(I), in particular upon its willingness to enter into a coalitional arrangement that would be replete with the potential for threats and blackmail. The Left parties would be key players in the emerging scenario, but they are yet unwilling to discuss any specific commitments. Before doing so, they would need to sort out several dilemmas related to their participation in the revival of the Third Force. The Rashtriya Loktantrik Morcha (or the alliance of the two Yadav chieftains of Uttar Pradesh and Bihar) is likely to have fewer compunctions, though in the long term, the Congress(I) strategy for reinventing itself designates their traditional constituencies as the prime focus of attention.
Whatever contours the new alignments take, there is no denying that they will be as laden with the potential for conflict as anything seen till now. This is part of the reason the Congress(I) has been noticeably reticent about forcing the pace of events. Between dealing with the cumbersome arithmetic of the 12th Lok Sabha and starting life anew after a fresh round of elections, the Congress(I) clearly prefers the latter. For this and a variety of other reasons, it would seem a safe bet that India could witness another round of elections before the end of the year and the turn of the century. And yet, it may be not quite so safe a guess that the new century will bring a new paradigm of politics or the prospect of greater stability.
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कभी राजीव गांधी के करीबी रहे सुब्रमण्यम स्वामी के अब तक के सफर की कहानी...
Reported by NDTVKhabar.com team , Last Updated: शनिवार दिसम्बर 19, 2015

अखबार मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कोर्ट ले जाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी हमेशा से अलग-अलग कारणों से चर्चित रहे हैं। स्वामी को गणित और आर्थिक मामलों के साथ-साथ कानून का भी जानकार माना जाता है। वे कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी हुआ करते थे, तो समय-समय पर भाजपा के भी खास रहे हैं। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी ने हमेशा उनसे दूरी रखने की कोशिश की, फिर भी भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का उनसे जुड़ाव रहा। हम आपको स्वामी के अब तक के सफर के बारे में बताने जा रहे हैं :  
गणितज्ञ बनने का था सपना: सुब्रमण्यम स्वामी का सपना अपने पिता की तरह गणितज्ञ बनने का था। गौरतलब है कि उनके पिता सीताराम सुब्रमण्यम प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। सुब्रमण्यम स्वामी ने हिंदू कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए भारतीय सांख्यिकी इंस्टीट्यूट कोलकाता चले गए। (यह भी पढ़ें- सुब्रमण्‍यम स्‍वामी को बंगला और जेड सुरक्षा हमें फंसाने का ईनाम है : कांग्रेस)
सांख्यिकी में शोध: स्वामी ने सांख्यिकी पर शोध भी किया है। उन्होंने 1963 में एक शोध पत्र लिखा। इसमें उन्होंने बताया कि महालानोबिस की सांख्यिकी गणना का तरीका मौलिक नहीं है, बल्कि यह पुराने तरीके पर ही आधारित है।
ऐसे आए दिल्ली: सुब्रमण्यम स्वामी ने महज 24 साल की उम्र में ही हॉवर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थी। इसके बाद 27 साल में उन्होंने हॉर्वर्ड में ही गणित की टींचिंग शुरू कर दी थी। बाद में अमर्त्य सेन ने 1968 में स्वामी को दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया और स्वामी दिल्ली आ गए। साल 1969 में वे आईआईटी दिल्ली से जुड़े। (यह भी पढ़ें- सोनिया-राहुल गांधी को न होगी जेल, न लेनी पड़ेगी बेल)
एक दिन के लिए वापस गए, फिर इस्तीफा दिया: स्वामी के अलग-अलग सेमीनारों में दिए गए आर्थिक सुधार संबंधी विपरीत बयानों से इंदिरा गांधी नाराज हो गईं। बाद में उन्हें दिसंबर, 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी से बाहर कर दिया गया। लगभग यहीं से स्वामी की अदालती लड़ाई का दौर शुरू हुआ। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील की। इतना ही नहीं साल 1991 में इसका फैसला भी उनके पक्ष में आया। स्वामी ने एक दिन के लिए आईआईटी ज्वाइन किया और फिर इस्तीफा दे दिया।
1974 में पहुंचे राज्यसभा: एक तरह से स्वामी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1974 में हुई, जब नानाजी देशमुख ने जनसंघ की ओर से उनको राज्यसभा में भेजा।
जनता पार्टी की स्थापना: सुब्रमण्यम स्वामी 1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। साल 1990 के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे।
राजीव से नजदीकी: स्वामी एक समय राजीव गांधी के करीबी थे। उन्होंने बोफोर्स कांड के दौरान राजीव गांधी का समर्थन किया था। यहां तक कि उन्होंने सदन में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि राजीव ने कोई पैसा नहीं लिया है।
वाणिज्य एवं कानून मंत्री: स्वामी को प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में वाणिज्य एवं कानून मंत्री बनाया गया था। नरसिम्हा राव सरकार के समय भी विपक्ष में होने के बावजूद उनको कैबिनेट रैंक का दर्जा मिला हुआ था।
भाजपा से नरम-गरम रहा रिश्ता: सुब्रमण्यम स्वामी ने 1999 में भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को खतरे में डाल दिया था। दरअसल इस गठबंधन सरकार की अहम सहयोगी जयललिता ने स्वामी को वित्त मंत्री बनाने की जिद पकड़ ली थी। स्वामी ने भी सरकार गिराने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने जयललिता और सोनिया गांधी को करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके लिए स्वामी ने मार्च, 1999 में चाय-पार्टी आयोजित की, जिसमें उन्होंने सोनिया और जयललिता को आमंत्रित किया, जिससे दोनों करीब आ गईं। हालांकि वे सरकार गिराने की कोशिश में सफल नहीं हो पाए। लालकृष्ण आडवाणी हमेशा से स्वामी को पार्टी में वापस चाहते थे, हालांकि वाजपेयी के रहते वे भाजपा में पैर नहीं जमा पाए, लेकिन 11 अगस्त, 2013 को अपनी पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी में कर दिया। बाद में 2014 के चुनावों से ठीक पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वामी को वापस बीजेपी में शामिल करा लिया।
नेशनल हेराल्ड से पहले भी सोनिया गांधी के लिए स्वामी मुसीबतें खड़ी कर चुके हैं। उन्होंने उन पर पुरातत्व की चीजों की तस्करी का मामला दर्ज कराया था। इसके साथ ही वे उनकी शैक्षणिक योग्यता को भी चुनौती दे चुके हैं।
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संपूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधना ही संघ का उद्देश्य : जे. नंद कुमार, अ भा सह प्रचार प्रमुख

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संघ का उद्देश्य संपूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधना – जे. नंद कुमार जी

मेरठ (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे नंद कुमार जी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य सम्पूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधना है. संघ अन्य संस्थाओं की तरह दिखावटी संस्था नहीं है. संगठित, सशक्त,दोषरहित एवं समरसता के बल पर भारत को परम वैभव पर पहुंचाना संघ का एकमात्र लक्ष्य है. नंद कुमार जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेरठ महानगर द्वारा संघ एक परिचय एवं हिन्दुत्व विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में संबोधित कर रहे थे.
कार्यक्रम का शुभारम्भ भारत मां के चित्र के सामने दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. इस अवसर पर उन्होंने एक ऑन लाईन समाचार,वैबसाईट www.samvaadbhartipost.com का शुभारम्भ किया. उन्होंने कहा कि आजकल कुछ लोग स्वतंत्रता आंदोलन में संघ की सहभागिता पर सवाल उठाते हैं, जो सरासर गलत है. संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी स्वयं हमारे सामने उदाहरण हैं. नमक आंदोलन में सत्याग्रह के समय संघ संस्थापक जेल गये. वर्ष 1942 में संघ के स्वयंसेवक ने अश्टि-चिमूर क्षेत्र (विदर्भ) में स्वतंत्र सरकार स्थापित कर दी थी. अपना अलग अस्तित्व दिखाने के लिये तुर्की टोपी जैसे विशेष वेश पहनकर संघ ने आजादी के आंदोलन में दिखावा नहीं किया.
संघ की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना का लक्ष्य व्यक्ति निर्माण कर लोगों में राष्ट्रभक्ति को जगाना था. एओ ह्यूम जैसे विदेशी द्वारा स्थापित कांग्रेस को अपना लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य बताने में 44 साल लग गये. वर्ष 1885 में कांग्रेस की स्थापना करने वाले एओ ह्यूम ने उसी दिन-रात को अपनी डायरी में लिखा था कि उसने एक सेफ्टी वाल्व खोज लिया है. ब्रिटिश सरकार को यह पता था कि भारत के हर गांव में उनके खिलाफ गुस्सा है, वे इसे जाहिर करने का इंतजार कर रहे हैं. इस गुस्से को कम करने के लिये कांग्रेस की स्थापना हुई थी. आज ये कांग्रेस के लोग संघ के आजादी आंदोलन पर सवाल उठाते हैं.
वर्ष 1934 में स्वयं गांधी जी संघ के शिविर में पहुंचे थे. वर्ष 1897 में स्वामी विवेकानन्द जी विदेशी धरती पर भारतीय संस्कृति की पताका फहराकर 4 साल बाद भारत वापस आये थे, तब उनकी एक जनसभा में एक किशोर ने उनसे पूछ लिया, क्या वे पूर्ण स्वतंत्रता दिलायेंगे ? तब स्वामी जी ने उत्तर दिया कि संगठित समाज ही स्वतंत्रता के योग्य होता है, इसीलिये अपने मूलभूत सिद्धांत के आधार पर हमें संगठित होना चाहिये. उनके 28 साल बाद डॉ. हेडगेवार जी ने विवेकानद जी को उत्तर देने के प्रयास से संघ की स्थापना करते हुए कहा था, ‘‘हम इस भारत को परम वैभव की ओर ले जाएंगे, केवल और केवल हिन्दुत्व के आधार पर. नंद कुमार जी ने कहा कि सुभाष चन्द्र बोस से लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश की जीवनशैली हिन्दुत्व बतायी है. कम्युनिस्ट कार्ल मार्क्स ने भी इस देश की जीवन शैली हिन्दुत्व को बताया.
कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय भाषण में आईआईएमटी कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष नरेन्द मिश्रा ने कहा कि भारतीय मीडिया को सही तथ्य और विचार प्रसारित करना चाहिये. गलत और त्रुटिपूर्ण समाचार देश का माहौल खराब करता है. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त संघचालक सूर्यप्रकाश टोंक जी, संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख कृपाशंकर जी सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

भारतरत्न अटलजी : ‘‘सु-शासन दिवस’’ : भाषण हेतु बिन्दू

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भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वापपेयी जन्मदिवस 25 दिसम्बर,(जन्म तिथि 25 दिसम्बर 1924) 


  1. अटल बिहारी वाजपेयी (जन्म: २५ दिसंबर, १९२४)  भारत के पूर्व प्रधानमंत्री हैं। वे पहले १६ मई से १ जून १९९६ तथा फिर १९ मार्च १९९८ से २२ मई २००४ तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।[1] वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले महापुरुषों में से एक हैं और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।
  2. सम्प्रति वे राजनीति से संन्यास ले चुके हैं और नई दिल्ली में ६-ए कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते हैं।
  3. कोटि - कोटि नमन् श्रद्धेय श्री अटल जी को ।।


‘‘सु-शासन दिवस’’

- डाॅ. बीरूसिंह राठौड 
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भाषण हेतु बिन्दू -

भाजपा ने 1998 का चुनाव सुशासन एवं विकास के एजेंडे पर लड़ा। 1998 से 2004 तक वाजपेयी सरकार ने देष को सुषासन का माडल दिया। अटल जी के 6 वर्षीय शासन का निष्पक्ष आंकलन करेंगे तो उसे स्वीकारना ही होगा। श्री अटल जी का शासन उपलब्धियों से भरा था। 6 वर्षीय शासन, सुषासन, विकास और गठबंधन का माडल बना। वाजपेयी सरकार ने पचास वर्षो की कांग्रेस शासन की जड़ता को तोड़कर भारत को शक्ति और प्रगति के सोपान पर जिस तेज गति से आगे बढ़ाया वह सच तो है पर भारत के आमजन को आश्र्चजनक लगता है। भारत को विकास के पथ पर अग्रसर एवं शक्तिशाली और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में ‘‘महत्वपूर्ण देश’’ के रूप में स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य वाजपेयी सरकार ने किया।
सभी बाधाओं के बावजूद राष्ट्र शक्ति का प्रतीक परमाणु बम का विस्फोट किया गया।
अकाल, बाढ़ व पानी की समस्या के स्थाई निदान हेतु 4,70,000 करोड़ रूपयों की नदियों को जोड़ने की योजना चालू की गई।
सरकार के विरूद्ध भ्रष्टाचार की कोई चर्चा तक नहीं थी।
आर्थिक क्षेत्र में सरकार ने आधारभूत ढांचे, राजमार्गों, ग्रामीण सड़कों, सिचांई, ऊर्जा पर ध्यान केन्द्रित किया।
कम्प्यूटर साॅफटवेयर में भारत को सुपर पाॅवर बनाया।
मुद्रास्फिति पर सफलता पूर्वक नियंत्रण रखा। रूपया बहुत मजबूत था, मंहगाई नियंत्रित थी। काला बाजारी खत्म हो गई थी।
कोल्ड स्टोरेज और गोदामों की क्षमता बढ़ गई। ई-गवर्नेंस का पहला प्रयोग सफल रहा।
50 वर्षों में केवल एक करोड़ छियासी लाख (1,86,00,000) टेलीफोन कनेक्शन स्वीकृत किये गये थे। पांच वर्षो में तीन करोड़ से भी अधिक टेलीफोन कनेक्शन दिए।
पांच वर्षो के दौरान तीन करोड़ पचास लाख (3,50,00,000) गैस कनेक्शन जारी किए गये जबकि 40 वर्षो में केवल तीन करोड़ सैंतीस लाख (3,37,00,000) कनेक्शन ही जारी किये गए थे।
2 वर्षों में दो करोड़ सत्तर लाख (2,70,00,000) किसानों को ‘‘क्रेडिट कार्ड’’ जारी किये गए। जिनके द्वारा उन्हें 50,000 करोड़ रूपये से अधिक का ऋण वितरित किया गया।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जो 1998 में 32.5 बिलियन अमरीकी डाॅलर था, वह 90 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक हुआ।
रोजाना पांच किलोमीटर लंबाई की दर से चार और छह लेन वाली 14,846 किलोमीटर लंबी सड़कों का राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित किया जा रहा था, जबकि 50 वर्षो के दौरान चार लेने वाली सिर्फ 556 किलोमीटर लंबी सड़कों का राष्ट्रीय राजमार्ग निर्मित हुआ था।
‘‘हुडको’’ द्वारा कुल 10,390 करोड़ रूपये आवास निर्माण हेतु स्वीकृत किये गये। भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद गरीबों हेतु 70 लाख अतिरिक्त आवास के निर्माण के लिए ऋणों की स्वीकृति की।
भाजपा सरकार द्वारा चलाई जा रही अन्त्योदय अन्न योजना गरीबों के लिए विश्व का सबसे बड़ा अनाज सुरक्षा कार्यक्रम था, जिससे 1.5 करोड़ परिवार लाभांवित हुए है।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए भाजपा ने 2014 का चुनाव श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सुषासन एवं विकास के एजेंडे पर लड़ा। भारत की जनता को हमारा वादा सरकार पर भरोसा वापस लाने का था। हमारे पहले वर्ष में भारत सरकार ने यह विष्वास दिलाया कि व्यवस्था परिणाम दे सकती है। यह परिवर्तन कल्याण, सुरक्षा और सम्मान के तीन स्तंभों पर आधारित है।
कल्याण - वंचितों, पिछड़ों एवं गरीबों की सरकार, जो उनके कल्याण के लिए अंत्योदय पर दृढ़ विष्वास के साथ कृत संकल्प हैं।
सुरक्षा - सुरक्षा के प्रति कड़ा रूख, चाहे महिला सुरक्षा का विषय हो या राष्ट्र के समक्ष किसी चुनौती का, डटकर जवाब देना।
सम्मान - हर व्यक्ति एवं राष्ट्र में सम्मान का भाव, भारत का विष्व में आषा एवं विष्वास की किरण का उभरना।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सही कहा है -
‘‘सरकार वो है, जो गरीबों के बारे में सोचे, गरीबों की सुने और गरीबों के लिए हो।
इसलिए, यह सरकार, करोंड़ों युवाओं, गरीबों, माताओं, बहनों और जो अपने स्वाभिमान एवं सम्मान के लिए संघर्षरत हैं, उनको समर्पित है।
इस देष के जो गरीब, किसान, जनजातीय, दलित, शोषित एवं पीडि़त - यह सरकार उनके लिए, उनकी आकांक्षाओं के लिए हैं और यह हम सब का दायित्व है। ’’
सबका साथ, सबका विकास
जनजातियाॅं के सर्वांगीण विकास के लिए बनबंधु कल्याण योजना
अनुसूचित जातियों के उद्यमियों को 2 नई योजनाओं के माध्यम से आसान वित्तीय उपलब्धता
डाॅ. बाबा साहेब अम्बेडकर स्मारक के लिए मुम्बई में जमीन आवंटित
श्रमिकों को लाभ-ईपीएस के अन्तर्गत एक हजार रूपये की पेंशन की गारंटी तथा यूनिवर्सल एकाउंट नम्बर
कन्या सशक्तिकरण के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं कार्यक्रम
सुकन्या समृद्धि योजना के अन्तर्गत 9.2 प्रतिशत कर रहित ब्याज पर विशेष बचत खाता 43 लाख खाते खुले
स्वच्छ - स्वस्थ- षिक्षित भारत
मिशन इन्द्रधनुष -35 लाख शिशुओं का इसके अन्तर्गत टीकाकरण
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित
एक समर्पित मंत्रालय के माध्यम से उत्कृष्ट योजनाओं द्वारा स्किल इंडिया के लक्ष्य की ओर अग्रसर। छात्रों के लिए प्रधानमंत्री विद्या लक्ष्मी कार्यक्रम
राष्ट्रीय स्वच्छ भारत मिशन तथा नमामि गंगे मिशन
गरीबी के विरूद्ध लड़ाई - गरीबों का सषक्तीकरण
प्रधानमंत्री जन धन योजना, जीवन एवं दुर्घटना बीमा, अटल पेंशन योजना, अटल इनोवेशन मिशन,
रोजगार निर्माण हेतु मेक इन इंडिया
भारत अब विश्व की सबसे तेज वाली अर्थव्यवस्था

अन्नदाता मुक्ती भव - किसानों का कल्याण
प्राकृतिक आपदा - जरूरत के समय राहत, हर खेत को पानी, नीम कोटेड यूरिया, नई यूरिया नीति
मृदा स्वास्थ्य कार्ड, किसान टीवी, राष्ट्रीय गोवंश मिशन, आसान ऋण उपलब्धता
आधारभूत संरचना-राष्ट्र के आधार का निर्माण
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 24ग्7 बिजली उपलब्ध कराने के लिए समर्पित योजना प्रक्रियाधीन
कोयला उत्पादन,ऊर्जा और ट्रांसमिशन क्षमता में अतिरिक्त बढ़ोतरी
सड़क सुरक्षा, सड़क निर्माण, स्मार्ट सिटी मिषन, बंदरगाह विकास, शहरी विकास,
स्वच्छ, पारदर्षी एवं भ्रष्टाचार मुक्त सरकार
व्यवस्था में सुधार - टीम इंडिया, नीति आयोग,
सुराज संकल्प व सुषासन को पूरा करने के लिए वर्तमान वसुंधरा सरकार प्रतिबद्ध है। इसी पवित्र उद्देष्य को ध्यान में रखते हुए हमने 13 दिसम्बर, 2013 को जनसेवा का अवसर मिलने के साथ ही सर्वप्रथम सुराज संकल्प पत्र को नीति पत्र के रूप में स्वीकार किया। इसी के आधार पर हमने राज्य की विकास नीतियों, कल्याणकारी कार्यक्रमों को बनाने का फैसला किया।
राजस्थान के नवनिर्माण की परिकल्पना के साथ हमारी सरकार राजस्थान विजन-2020 तैयार कर इस दिषा में निरन्तर आगे बढ़ रही है। हमारा लक्ष्य विकास के सभी मापदण्डों की प्राथमिकताओं को तय करते हुए विकास दर में वृद्धि करने, मातृ-मृत्यू दर में कमी लाने, स्कूलों में नामांकित बच्चों को स्कूल छोड़ने से रोकने जैसी अनेक चुनौतियों का मुकाबला करते हुए राज्य का चहुंमुखी विकास करना है।
राज्य सरकार ने दो वर्ष के दौरान प्रदेष के समग्र विकास की दृष्टि से आधारभूत ढांचे को सुदृढ़ बनाने के साथ ऊर्जा उत्पादन, सिंचाई, सड़क विकास, पेयजल, जल संसाधन, नगरीय विकास, षिक्षा, चिकित्सा तथा सामाजिक सुरक्षा आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रदेष में निवेष को बढ़ावा देने के लिए नई निवेष नीति तथा नई सौर ऊर्जा नीति लागू की गई है। 15 लाख युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देष्य से कौषल विकास का वृहद विकास कार्यक्रम लागू किया है।
हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस के दृष्टिकोण के अनुरूप हमारी सरकार सुषासन की दिषा में कदम बढ़ा रही है। जनता से सीधा सम्पर्क स्थापित करने के उद्देष्य से संभाग स्तर पर ‘सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम शुरू किया है। भरतपुर, बीकानेर तथा उदयपुर संभाग में गांव-गांव जाकर सरकार आमजन की समस्याओं से रूबरू हुई और उनके समाधान के प्रयास किए। राजकीय सेवाओं की बेहतर डिलिवरी तथा महिला सषक्तीकरण की दृष्टि से भामाषाह योजना को पुनः शुरू किया गया। श्रम कानूनों में ऐतिहासिक संषोधन किए गए, जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना की जा रही है। स्वच्छ राजस्थान - स्वच्छ भारत के मिषन को सभी के सहयोग से पूरा करने के लिए हम दृढ़ संकल्पित हैं।
विकास व सुषासन ही सरकार का मूल मंत्र है। प्रदेष की 36 की 36 कौमों के विकास के लिए हम वचनबद्ध हैं। दो वर्ष के दौरान पिछड़े एवं कमजोर वर्गों, युवाओं, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति-जनजाति, किसानों, पषुपालकों के उत्थान के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को नया मोड़ दिया गया है। आधुनिक और प्रगतिषील राजस्थान के नवनिर्माण की दिषा में हमारी सरकार प्राण-प्रण से जुटी हुई है।


श्रीमती वसुंधरा राजे सरकार के सुशासन के दो वर्ष


राजस्थान सरकार ने अपने दो साल के कार्यकाल में दूरदर्शी सोच के साथ कई पहल और बदलाव किये जिससे लोगों को उनका हक मिला, सुविधाएं बढ़ी, महिलाएं सशक्त हुई, युवा प्रशिक्षित हुए और राज्य में रोजगार के नये अवसर पैदा हुए। हर क्षेत्र और हर वर्ग के विकास के साथ राजस्थान आज उन्नति की राह पर अग्रसर है...
1सरकार आपके द्वार - में सरकार ने आम जन तक पहुंच कर 3 लाख परिवेदनाएं निस्तारित की ।
2न्याय आपके द्वार- से लाखों लोगों को मुकदमों से छुटकारा 21.43 लाख राजस्व प्रकरण निस्तारित।
335,000 ई-मित्र/सीएससी पर अब 80 विभागों की 200 सेवाएं घर के पास उपलब्ध ।
480,868 कृषि एवं 31,561 कुटी ज्योति कनेक्शन जारी।
5भामाशाह योजना- 1 करोड़ से ज्यादा महिलाएं बनी ‘‘परिवार की मुखिया’’ 3.40 करोड से ज्यादा लोगों का नामांकन।
6स्वच्छ भारत-स्वच्छ राजस्थान: 22.18 लाख शौचालय निर्मित और 1128 ग्राम पंचायतें खुले में शौच से मुक्त।
7भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना -लागू की जा रही है। रू.30,000 से 3 लाख तक का इलाज, 1 करोड़ परिवारों को होगा लाभ।
871 स्वामी विवेकानंद माॅडल स्कूल प्रारंभ, हर ग्राम पंचायत पर होगा आदर्श विद्यालय।
95 लाख छात्राओं को साईकिल वितरण।
10रोजगार- 60 हजार नियुक्तियां, 1 लाख नियुक्तियां प्रक्रिया में, 3 लाख युवा प्रशिक्षित।
11रिसर्जेंट राजस्थान- से 3.21 लाख करोड़ रूपये का निवेश प्रस्तावित, 2 लाख 50 हजार नए रोजगार के अवसर।
12नई सौर ऊर्जा नीति- किसान अपनी जमीन सीधे लीज पर दे सकते हैं।
13ग्रामीण गौरव पथ- ग्राम पंचायतों में ग्रामीण गौरव पथ -1185 कार्य पूर्ण
14भाजपा प्रदेश कार्यालय में मंत्रीमंडल के सदस्यों द्वारा हफ्ते में चार दिन कार्यकर्ता जनसुनवाई।


केजरीवाल : डी डी सी ए बहाना है, असली मकसद राजेन्द्र कुमार बचाना हे।

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आआपा का झूठ तार-तार
तारीख: 21 Dec 2015
- प्रतिनिधि


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के कार्यालय पर सीबीआई की छापेमारी के बाद इसे बदले की राजनीति बताते हुए हाय तौबा कर राजनैतिक मुद्दा बनाने की कोशिश में जुटे केजरीवाल ने अपने 49 दिनों के कार्यकाल में भी उन्हें प्रधान सचिव बनाया था। वह केजरीवाल के कितने करीब हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाना चाहिए। राजेंद्र कुमार दिल्ली सरकार में परिवहन और माध्यमिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभागों में काम कर चुके हैं। वह दिल्ली सरकार में ऊर्जा सचिव भी रहे हैं।
करीबी ने किया कबाड़ा
जानकारी के अनुसार कभी अरविंद केजरीवाल के करीबी और पसंदीदा अधिकारियों में रहे दिल्ली संवाद आयोग के पूर्व सचिव आशीष जोशी की शिकायत पर ही राजेंद्र कुमार के खिलाफ कार्रवाई हुई है। इस मामले की शुरुआत तब से हुई जब जोशी को केंद्र सरकार से प्रतिनियुक्ति द्वारा ‘दिल्ली अरबन शेल्टर इंपू्रवमेंट बोर्ड’ के वित्त विभाग में बतौर सदस्य नियुक्त किया गया था। फरवरी में जब केजरीवाल दोबारा सत्ता में आए तो जोशी को केजरीवाल की टीम में बुद्धिजीवी के तौर पर उनका सबसे करीब माना जाने लगा था। दिल्ली संवाद आयोग की नौ सदस्यों की कमेटी में अरविंद केजरीवाल अध्यक्ष और आशीष खेतान उपाध्यक्ष बने।
इसके बाद आशीष खेतान और जोशी के बीच विवाद होने पर जोशी ने अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि आआपा के कार्यकर्ता और उच्च पदों पर बैठे हुए कई नेता उन्हें परेशान कर रहे हैं। अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करने की आदत के चलते आआपा ने जोशी के इस दावे को एक सिरे से खारिज कर दिया। इस वर्ष जून में जोशी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए राजेंद्र कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक शाखा से शिकायत की थी। आशीष जोशी ने राजेंद्र कुमार पर शिक्षा और आईटी विभाग में अपने कार्यकाल के दौरान बेनामी कंपनियां बनाकर वित्तीय धांधली किए जाने का आरोप लगाया था। गत 16 नवंबर को राजेंद्र कुमार पर सीबीआई की छापेमारी को लेकर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने प्रेसवार्ता की लेकिन जब मीडिया ने उनसे पूछा कि राजेंद्र कुमार को लेकर ‘ट्रांसपरेसी इंटरनेशनल’ने गत मई में मुख्यमंत्री केजरीवाल को पत्र लिखा था तो आपने इसकी जांच क्यों नहीं कराई थी? इस पर वे प्रेसवार्ता बीच में छोड़कर चले गए।वहीं सीबीआई ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय की फाइलें जब्त करने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। इस मामले में सीबीआई प्रवक्ता देवप्रीत सिंह ने कहा है कि ऐसी एक भी फाइल जब्त नहीं की गई है, जो मामले से संबंधित नहीं हैं। छापे के दौरान स्वतंत्र गवाह मौके पर मौजूद थे और उनके सामने ही सभी दस्तावेज जब्त किए गए हैं। छापे में नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है। जब्त सभी दस्तावेजों की सूची जल्द ही न्यायालय को सौंप दी जाएगी। उन्होंने सीबीआई द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय और आसपास के कमरों में न जाने देने के आरोपों को भी खारिज किया है। जांच एजेंसी ने स्पष्ट कहा है कि छापा केवल मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार और उनके निजी सहयोगी के कमरे तक सीमित था और केवल उन्हीं दो कमरों में लोगों के आने-जाने पर रोक थी। मुख्यमंत्री के कार्यालय समेत सभी जगहों पर आने-जाने की पूरी आजादी थी।
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CBI ने प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार से 5 ऑडियो क्लिप बरामद किए 

Last Update: 24 Dec 2015
http://www.ibc24.in/Story.aspx?vid=6590
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार पर सीबीआई ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. उनके व्यक्तिगत ईमेल आईडी से पांच ऑडियो क्लिप बरामद हुई है. इसमें कथित सौदों को लेकर बातचीत होने का शक है. सीबीआई इस ऑडियो क्लिप की जांच करा रही है.
सूत्रों के मुताबिक, बरामद की गई ऑडियो क्लिप 2012 से 2013 के बीच की हैं. इसमें वह अपने सहयोगियों को एक निजी कंपनी एंडेवर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में हेरफेर करने के बारे में कथित निर्देश दे रहे हैं. उन्होंने अपने अधिकतर निर्देश ऑडियो क्लिप के जरिए ही भेजा था.
सीबीआई ईमेल आईडी से बरामद ऑडियो क्लिप से राजेंद्र कुमार की आवाज की जांच करा रही है. इसमें अभी फाइनल रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो आवाज पूरी तरह राजेंद्र कुमार की आवाज से मैच कर रही है, जो कि उनके लिए बड़ी मुसीबत साबित हो सकती है.

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केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के 

खिलाफ जांच का दायरा बढ़ा सकती है सीबीआई

Reported by Bhasha , Last Updated: गुरुवार दिसम्बर 24, 2015
http://khabar.ndtv.com/news

नई दिल्‍ली: सीबीआई ने ऐसे दस्तावेज मिलने का गुरुवार को दावा किया जो आईसीएसआईएल के जरिए दिल्ली सरकार में की गयी भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं की ओर संकेत करते हैं। इसके साथ ही एजेंसी ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के खिलाफ जांच का दायरा बढ़ाने पर वह विचार कर रही है।

एजेंसी सूत्रों ने कहा कि उन्हें दिल्ली सरकार में भर्ती के संबंध में चार फाइलें मिली हैं। एक फाइल डाटा एंट्री ऑपरेटरों की भर्ती से संबंधित है और इसमें कई पन्ने गायब मिले हैं। इस वजह ने एजेंसी को भर्ती प्रक्रिया में गहन जांच के लिए प्रेरित किया।

कुमार के खिलाफ सीबीआई अभी पांच मामलों में जांच कर रही है। ये मामले 2009 से 2014 के बीच के हैं। इस दौरान उन्होंने दिल्ली सरकार में विभिन्न पदों पर काम किया।

सूत्रों ने कहा कि जांच का विस्तार किया जा सकता है और इसमें और अधिकारियों और भर्ती प्रक्रियाओं को शामिल किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि किसी भी बात को अंतिम रूप नहीं दिया गया है और आगे की कोई भी कार्रवाई कुमार से आगे पूछताछ के दौरान सामने आने वाले ब्यौरे पर निर्भर करेगी।

उन्होंने कहा कि कुमार को एक बार फिर पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा क्योंकि एजेंसी को पांच ऑडियो क्लि‍पिंग मिले हैं, जिनमें वह कथित तौर पर संबंधित अधिकारियों को ठेके के करारों में कथित रूप से गड़बडी के लिए मौखिक निर्देश दे रहे हैं। सूत्रों ने दावा किया कि कथित क्लि‍पिंग कुमार के ईमेल एकाउंट से मिले हैं और ये उन अधिकारियों पर उनके प्रभाव का संकेत देते हैं जिनके नाम प्राथमिकी में दर्ज नहीं किए गए हैं तथा उन्हें आरोपपत्र में शामिल किया जा सकता है।

सीबीआई ने कहा कि उसने कुमार तथा अन्य के खिलाफ एक मामला दर्ज किया है। अधिकारी के खिलाफ आरोप हैं कि उन्होंने ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिल्ली सरकार के विभागों से ठेके दिलाने में एक खास कंपनी को लाभ पहुंचाया।’ एक निजी कंपिनी को 2007 से 2009 के दौरान पांच ठेकों में कथित तौर पर 9.5 करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाने के आरोप में कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) और भ्रष्टाचार निवारण कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

सीबीआई ने मामला दर्ज करने के बाद अपने बयान में कहा था कि आरोपी ने आईसीएसआईएल (इंटेलिजेंट कम्यूनिकेशन सिस्टम्स इंडिया लि.) के जरिए कंपनी को कथित तौर पर करीब 9.50 करोड़ रुपये के ठेके दिलाने में मदद की।
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कौन हैं राजेन्द्र कुमार? क्या-क्या हैं भ्रष्टाचार के आरोप?

By: मनोज मलयानिल, वरिष्ठ पत्रकार | 
Last Updated: Tuesday, 15 December 2015 
नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार 1989 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. केजरीवाल ने राजेन्द्र कुमार को अपने 49 दिन के पहले कार्यकाल के दौरान भी प्रधान सचिव बनाया था. राजेंद्र कुमार अरविंद केजरीवाल के कितने करीब हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इसी साल दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने मुख्य सचिव अनिंदो मजुमदार के ऑफिस में ताला डालकर उसे सील कर दिया था और दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की अनदेखी करते हुए राजेन्द्र कुमार को अपना प्रधान सचिव बनाया था.
राजेन्द्र कुमार दिल्ली सरकार में परिवहन और माध्यमिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में रह चुके हैं. दिल्ली में ऊर्जा सचिव रहते हुए उन्होंने बिजली कंपनियों की मनमानी रोकने को लेकर कई कदम उठाया था. सूचना प्रौद्योगिकी प्रबंधन के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री एक्सलेंसी अवार्ड भी मिल चुका है.

एक तरफ राजेन्द्र कुमार की ईमानदार अधिकारियों के रूप में गिनती होती है वहीं दूसरी तरफ राजेन्द्र कुमार भ्रष्टाचार के कई आरोपों से भी घिरे हैं.

इसी साल 15 जून का मामला है. राजेन्द्र कुमार के खिलाफ दिल्ली डायलॉग के पूर्व सचिव आशीष जोशी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनकी शिकायत एंट्री करप्शन ब्रांच से की थी. आशीष जोशी ने एसीबी को पत्र लिखकर राजेन्दर कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे जिसमें राजेन्द्र पर शिक्षा और आईटी विभाग में अपने कार्यकाल के दौरान बेनामी कंपनियां बनाकर वित्तीय धांधली किये जाने की बात कही गई थी.
जोशी ने शिकायत में लिखा है कि ‘मेरे डीयूएसआईबी का चीफ डिजिटाइलेशन ऑफिसर रहने के दौरान मुझे आईटी विभाग से जुड़े राजेन्द्र कुमार की भ्रष्ट गतिविधियों का पता चला. मुझे दिल्ली सरकार द्वार डीओपीटी के साल 2010 के आदेशों का उल्लंघन करते हुए एकाएक अपने पद से हटा दिया गया. बाद में मैंने राजेन्द्र कुमार और दूसरे लोगों के खिलाफ संसद मार्ग और आईपी एस्टेट पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी’.

आशीष जोशी ने अपने पत्र में लिखा है कि राजेन्द्र कुमार 10 मई 2002 से लेकर 10 फरवरी 2005 तक निदेशक (शिक्षा) रहे. इस दौरान उन्होंने तिमारपुर में कंप्यूटर लैब बनाते हुए अशोक कुमार नाम के शख्स को इसका इंचार्ज नियुक्त किया. बाद में राजेन्द्र कुमार ने दिनेश कुमार गुप्ता और संदीप कुमार के साथ मिलकर एंडीवर्स सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई. गुप्ता शिक्षा विभाग को स्टेशनरी के सामान की सप्लाई करते थे. संपीप कुमार, अशोक कुमार से जुड़े हुए हैं. खास बात ये है कि अशोक कुमार ने 2009 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. अशोक कुमार डीएएसएस कैडर से हैं और उन्होंने राजेन्द्र कुमार के साथ लंबे समय तक काम किया है.
आशीष जोशी के पत्र के मुताबिक साल 2007 में राजेन्द्र कुमार दिल्ली सरकार के आईटी सेक्रेटरी बने और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने एंडीवर्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ कंपनी को एक पीएसयू यानी सार्वजनिक क्षेत्र की उपक्रम के साथ इंपैनल करा लिया जिससे कि उनकी कंपनी बिना किसी टेंडर के ही सरकारी विभागों के साथ डील कर सके. आरोप है कि बिना टेंडर काम आवंटित किये जान से दिल्ली सरकार को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ. जोशी ने मामले में राजेन्द्र कुमार और बाकी लोगों और इसमें शामिल कंपनियों के गठजोड़ की जांच करने की मांग की थी.

राजेंद्र कुमार के खिलाफ दूसरा मामला सीएनजी फिटनेस घोटाले का है. दिल्ली में भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो (एसीबी) कमर्शियल वाहनों के लिए फिटनेस टेस्ट के दौरान कथित अनियमितता के मामले में आईएएस राजेंद्र कुमार से पहले ही पूछताछ कर चुकी है. दिलचस्प है कि जिस अधिकारी एमके मीणा को निगरानी विभाग का प्रमुख बनने से केजरीवाल ने रोकने की भरपूर कोशिश की थी, उसी अधिकारी ने राजेंद्र कुमार से पूछताछ की थी. बताया जा रहा है कि उनसे इस बारे में पूछताछ हुई है कि उन्होंने सीएनजी फिटनेस घोटाला मामले में कार्रवाई क्यों नहीं की थी. कहा जा रहा है कि परिवहन सचिव रहते राजेंद्र कुमार ने कार्रवाई नहीं की थी.

क्या है सीएनजी फिटनेस घोटाला ? 
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में सीएनजी किट लगाने के लिए दो कंपनियों को ठेका दिया गया था. आरोप है कि इसमें 100 करोड़ से ज्यादा का नुकसान दिल्ली सरकार को उठाना पड़ा था. 

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के समय सीएनजी किट लगाने ठेका एक कंपनी को दिया गया था. इसमें कई खामियां मिलीं थी. बिना टेंडर का ठेका दिया गया था. इसमें खर्च सरकार कर रही थी और आमदनी कंपनी ले रही थी. फर्जी फिटनेस टेस्ट करके पैसा लिया जा रहा था. जांच में पाया गया कि 100 करोड़ से ज्यादा का नुकसान दिल्ली सरकार को उठाना पड़ा था .

अरविंद के केजरीवाल के सबसे प्रिय नौकरशाह कहे जाने वाले राजेन्द्र कुमार मूलत: बिहार की राजधानी पटना के रहने वाले हैं. 48 साल के राजेन्द्र कुमार दिल्ली आईआईटी से बीटेक हैं. राजेन्द्र कुमार झारखंड के नेतरहाट विद्यालय में वर्ष 1979 से लेकर 1984 तक पढ़ाई की है.

      

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 5 कविताएं

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अटल बिहारी वाजपेयी की 5 कविताएं


नई दिल्ली. साल 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न'से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जैसे ही यह सूचना साझा की गई, उनके प्रशंसकों में खुशी की लहर दौड़ गई। आज उनका 91 वां जन्मदिन मनाया जा रहा है।

अटल भारत में दक्षिणपंथी राजनीति के उदारवादी चेहरा रहे और एक लोकप्रिय जननेता के तौर पर पहचाने गए। लेकिन उनकी एक छवि उनके साहित्यिक पक्ष से भी जुड़ी है। अटल बिहारी वाजपेयी एक माने हुए कवि भी हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में कई कविताएं लिखीं और समय-दर-समय उन्हें संसद और दूसरे मंचों से पढ़ा भी। उनका कविता संग्रह 'मेरी इक्वावन कविताएं'उनके समर्थकों में खासा लोकप्रिय है। इस मौके पर पेश हैं, उनकी चुनिंदा कविताएं.....

1. क़दम मिला कर चलना होगा

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

---------------------


ठन गई! मौत से ठन गई!  
जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,  
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।  
मौत की उमर क्या है? 
दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, 
आज कल की नहीं।  
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, 
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? 
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, 
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।  
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, 
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।  
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, 
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।  
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, 
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।  
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।  
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, 
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।  
पार पाने का क़ायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई। 
मौत से ठन गई।
---------------------



ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।बँट गये शहीद, 
गीत कट गए,कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई। 
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंदसतलुज सहम उठी, 
व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई 
दूध में दरार पड़ गई। 
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,ख़ुदकुशी का रास्ता, 
तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
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भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, 
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, 
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, 
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, 
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, 
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये

मरेंगे तो इसके लिये।

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, 
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, 
कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, 
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, 
अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, 
यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।



केन्द्र सरकार के महत्वपूर्ण नाम और नम्बर

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राजस्थान राज्य के 25 सांसदों के नाम संसदीय

क्षेत्र का नाम व मोबाइल नम्बर
1.सुखबीर जी जौनपुरिया
    सवाई माधोपुर
    09811026447
2.सुमेधानन्द जी
    सीकर
    09928470131
3.निहाल चन्द जी मेघवाल
    गंगानगर
    09414090050
4.राम चरण जी बोहरा
    जयपुर शहर
    09829066531
5.राज्यवर्धन सिंह जी राठौड़
   जयपुर ग्रामीण
   09460996611
6.देव जी पटेल
   जालोर
   09414158488
7.संतोष अहलावत
    झुन्झुनू            
  09549477777, 09929900000
8.गजेंद्र सिंह जी शेखावत
   जोधपुर
   09672000555
9.मनोज जी राजोरिया
   धौलपुर-करौली
    09414389585
10.ओम जी बिडला
      कोटा        
     9783977701,9829037200
11.सी.आर.चौधरी
     नागौर 9829122837,9166355505
12.पी.पी.चौधरी
      पाली
      9414135735
13.हरिओम सिंह जी
      राजसमंद
      9414172267
14.दुष्यंत सिंह जी
      झालावाड़      9414027979, 9414194009,
     09810896886
15.सावँरलाल जी जाट
     अजमेर
     9829612667
16.चाँद नाथ जी
     अलवर
     09215312333
17.मानशंकर जी निनामा
     बांसवाडा डूंगरपुर
    9928116783
18.कर्नल सोनाराम जी
     बाडमेर 9828999900,09868180900
19.बहादुर सिंह जी कोली
     भरतपुर 9414315320,9636325690
20.सुभाष जी बहेरिया
     भीलवाड़ा 9829046344
21.अर्जुन जी मेघवाल बीकानेर           9414075910
22.सी.पी.जोशी
     चित्तौड़गढ
    9414111371
23.राहुल जी कस्वाँ
      चूरू 9560111599
24.हरीश चन्द्र जी मी
      दौसा 9929884441
25.अर्जुनलाल जी मीणा
      उदयपुर
       9414161766
*****************************
 ये हैं मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री

1. राजनाथ सिंह (BJP UP-Lucknow)
गृह मंत्रालय
+911123353881

2. सुषमा स्वराज (BJP MP-Vidisha)
विदेश मंत्रालय, विदेश मामले मंत्रालय
+919868181930

3. अरुण जेटली (BJP)
वित्त मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामले, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय


4. एम वेंकैया नायडू (BJP KRNTK)
शहरी विकास मंत्रालय, आवास तथा शहरी गरीबी उन्‍मूलन, संसदीय मामले
+919868181988

5. नितिन गडकरी (BJP MH-Nagpur)
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, शिपिंग मंत्रालय
+917122727145

6. मनोहर पर्रिकर (BJP Goa)
रक्षा मंत्रालय
+919822131213

7. सुरेश प्रभु (BJP MH)
रेल मंत्रालय
+919821589555

8. डीवी सदानंद गौड़ा (BJP KRNTK-Udupi Chikmanglur)
कानून एवं न्‍याय मंत्रालय
+919448123249

9. उमा भारती (BJP UP-Jhansi)
जलसंसाधन मंत्रालय, नदी विकास तथा गंगा पुनरुद्धार
+919953813664

10. डॉ. नजमा ए हेपतुल्ला (BJP MP)
अल्पसंख्यक मंत्रालय
+919868181974

11. रामविलास पासवान (LJP BHR-Hajipur)
उपभोक्‍ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
+911123017681

12. कलराज मिश्रा (BJP UP-Deoria)
लघु उद्योग मंत्रालय (सूक्ष्‍म, लघु तथा मझोले उद्योग)
+919818700040

13. मेनका संजय गांधी (BJP UP-Pilibhit)
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
+919013180192

14. अनंत कुमार (BJP KRNTK-Bangluru)
उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय
+919868180337

15. रविशंकर प्रसाद (BJP BHR)
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी
+919868181730

16. जगत प्रकाश नड्डा (BJP Himachal)
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
+918800633377

17. अशोक गजपति राजू पशुपति (TDP AP-Vizianagaram)
नागरिक उड्डयन मंत्रालय
+919440822599

18. अनंत गीते (SS MH-Raigarh)
भारी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्यमिता मंत्रालय
+919868180319

19. हरसिमरत कौर बादल (SAD PNB-Bathinda)
खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग
+919013180440

20. नरेंद्र सिंह तोमर (BJP MP-Gwalior)
खनन एवं इस्पात मंत्रालय
+919013180134
+919425110500

21. चौधरी बीरेंदर सिंह (BJP HR)
ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय
+919013181818

22. जुएल उरांव (BJP Odissa-Subdrrgarh)
जनजातीय मामले
+919868180206

23. राधा मोहन सिंह (BJP BHR-Poorvi Champaran)
कृषि मंत्रालय
+919013180251
+919431233001
+919431815551

24. थावरचंद गहलोत (BJP MP) सामाजिक न्‍याय तथा अधिकारिता मंत्रालय
+919711949789
+919425091516
+919868180049

25. स्मृति ईरानी (BJP)
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
+919820075198

26. डॉ. हर्षवर्धन (BJP Delhi-Chandi chawk)
विज्ञान एवं तकनीकी, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
+919810115311

मोदी सरकार के केंद्रीय राज्य मंत्री

27. जनरल वीके सिंह (BJP UP-Ghaziabad)
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्‍वयन (स्‍वतंत्र प्रभार), विदेशी मामले, प्रवासी मामले

28. राव इंद्रजीत सिंह (BJP HR-Gurgaon)
आयोजना (स्‍वतंत्र प्रभार), रक्षा
+919013180525

29. संतोष कुमार गंगवार (BJP UP-Baraiky)
कपड़ा (स्‍वतंत्र प्रभार)

30. बंडारू दत्तात्रेय (BJP Telangana-Secundarabad)
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार)
+919440585999

31. राजीव प्रताप रूडी (BJP BHR-Saran)
कौशल विकास, उद्यमिता (स्वतंत्र प्रभार), संसदीय मामले
+919811119257

32. श्रीपद येस्‍सो नाइक (BJP Goa North)
आयुष (स्वतंत्र प्रभार), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
+919822122440
+919868180630

33. धर्मेंद्र प्रधान (BJP)
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस (स्वतंत्र प्रभार)

34. सर्बानंदा सोनवाल (BJP Assam-Lakhimpur)
युवा मामले और खेल (स्‍वतंत्र प्रभार)
+919435531147

35. प्रकाश जावड़ेकर (BJP MH)
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन (स्वतंत्र प्रभार)
+919899331117

36. पीयूष गोयल (BJP MH)
ऊर्जा (स्वतंत्र प्रभार), कोयला (स्वतंत्र प्रभार), नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा (स्‍वतंत्र प्रभार)

37. डॉ. जितेंद्र सिंह (BJP J&K-Udhampur)
पूर्वोत्‍तर क्षेत्र विकास (स्‍वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग
+919419192900

38. निर्मला सीतारमण(BJP AP)
वाणिज्‍य एवं उद्योग (स्‍वतंत्र प्रभार)
+919910020595

39. डॉ. महेश शर्मा (BJP UP-Gautambudhnagar, Noida)
संस्कृति (स्वतंत्र प्रभार), पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार), नागरिक उड्डयन
+919873444255

40. मुख्तार अब्बास नकवी (BJP-UP)
अल्पसंख्य मामले, संसदीय मामले
+919899331115

41. राम कृपाल यादव (BJP BHR-Patliputra)
पेयजल एवं स्वच्छता
+919431800966

42. हरिभाई पार्थीभाई चौधरी(BJP GJ-Banaskantha)
गृह मामले
+919426502727

43. सांवर लाल जाट (BJP RJ-Ajmer)
जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनरुद्धार

44. मोहनभाई कल्याणजीभाई कुंडारिया (BJP GJ-Rajkot)
कृषि
+919825005386

45. गिरिराज सिंह (BJP BHR-Nawada)
सूक्ष्‍म, लघु तथा मझोले उद्योग
+919431018799

46. हंसराज गंगाराम अहीर (BJP MH-Chandrapur)
रसायन एवं उर्वरक
+919868180489

47. जीएम सिद्धेश्वर (BJP KRNTK-Devanagere)
भारी उद्योग तथा सार्वजनिक उद्यमिता
+919868180264

48. मनोज सिन्हा (BJP UP-Ghazipur)
रेल
+919415209958
+918826611111

49. निहालचंद (BJP RJ-Ganganagar)
पंचायती राज
+919414090050

50. उपेंद्र कुश्वाहा (RLSP BHR-Karakat)
मानव संसाधन विकास
+919431026399

51. राधाकृष्णन पी- सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, शिपिंग

52. किरण रिजिजू (BJP Arunachal West)
गृह मामले
+919436460000

53. कृष्णन पाल- सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता

54. डॉ. संजीव कुमार बाल्यान (BJP UP-Muzaffarnagar)
कृषि
+919219583103

55. मनसुखभाई धानजीभाई वसावा (BJP GJ-Bharuch)
जनजातीय मामले
+919868180050

56. रावसाहेब दादाराव दानवे(BJP MH-Jalna)
उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण
+919868180280

57. विष्णु देव साई (BJP CHH Raigarh)
खनन एवं इस्पात
+919425251933


58. सुदर्शन भगत (BJP JHR- Lohardaga)
ग्रामीण विकास
+919013180273

59. प्रो. राम शंकर कठेरिया (BJP UP Agra)
मानव संसाधन विकास
+919412750008
+919013180116

60. वाईएस चौधरी- विज्ञान एवं तकनीकी, पृथ्वी विज्ञान

61. जयंत सिन्हा (BJP JHR-Hazaribagh)
वित्त
+919811716444

62. कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर(BJP RJ-Jaipur Rular) सूचना एवं प्रसारण
+919460996611

63. बाबुल सुप्रियो (BJP WB -Asansol)
शहरी विकास, आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन
+919821333300
+919920033330

64. साध्वी निरंजन ज्योति (BJP UP-Fatehpur)
खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग
+919415532346

65. विजय सांपला (BJP PNB-Hoshiyarpur)
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता
+919876099143

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🔴3. रेशन कार्ड
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🔴4. पासपोर्ट
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🔴5. मतदाता सूची में नामंकन
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🔴3. राज्य रोजगार एक्सचेंज
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🔴6. .IN डोमेन
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🔴7. GOV.IN डोमेन
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चेक / ट्रॅक:
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संगठन में धन से अधिक महत्व महापुरुषों के जीवन का अनुसरण है – परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. भागवत जी

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संगठन में धन से अधिक महत्व महापुरुषों के जीवन का अनुसरण है – डॉ. मोहन भागवत जी

Posted by: December 20, 2015


नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने संघ के ज्येष्ठ प्रचारक सरदार चिरंजीव सिंह जी का अभिनंदन करते हुए कहा कि दीपक की तरह संघ के प्रचारक दूसरों के लिए जल कर राह दिखाते हैं. सम्मान आदि से प्रचारक दूर रहना ही पसंद करते हैं. संघ में व्यक्ति के सम्मान की परंपरा नहीं है, किंतु संगठन के लाभ के लिए न चाहते हुए भी सम्मान अर्जित करना पड़ता है. सरसंघचालक जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं वर्तमान में राष्ट्रीय सिख संगत के मुख्य संरक्षक सरदार चिरंजीव सिंह जी के  85 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर नई दिल्ली स्थित मावलंकर सभागार में आयोजित सत्कार समारोह में सिख संगत के कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे.

सरसंघचालक जी ने कहा कि जीवन का आदर्श अपने जीवन से खड़ा करना यह सतत तपस्या संघ के प्रचारक करते हैं. इसके लिए वह स्वयं को ठीक रखने की कोशिश जीवन पर्यन्त करते है. महापुरुषों के जीवन का अनुसरण करते रहने वाले साथी मिलते रहें, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है. धन से ज्यादा, संगठन का फायदा इसमें है कि जो रास्ता संगठन दिखाता है, उस रास्ते पर चलने की हिम्मत समाज में बने. संघ में प्रचारक निकाले नहीं जाते वह अपने मन से बनते हैं. जिसको परपीड़ा नहीं मालूम होती, वह कैसे मनुष्य हो सकता है. मनुष्य को मनुष्य होने का साहस करना होता है, संघ स्वयंसेवकों को ऐसा वातावरण देता है. सरदार चिरंजीव सिंह जी के जीवन से ऐसा उदाहरण देख लिया है. अब हम लोगों के ऊपर है कि हम कैसे उनके जीवन के अनुसार चल सकते हैं. अपनी शक्ति बढ़ाते चलो, अपना संगठन मजबूत करते चलो, सरदार चिरंजीव सिंह जी ने ऐसा कर के दिखाया. अगर यह परंपरा आगे चलाने की कोशिश हम सभी करें तो किसी भी धन प्राप्ति से ज्यादा खुशी उनको होगी.
राष्ट्रीय सिख संगत के संरक्षक सरदार चिरंजीव सिंह जी ने कहा कि संघ में प्रचारक बनने के लिए किसी घटना की आवश्यकता नहीं होती, जैसे परिवार का काम करते हो वैसे समाज का काम करो. सहज और स्वभाविक रूप से आप समाज के लिए काम करो. उन्होंने डॉ. हेडगेवार जी का संदर्भ दिया कि उन्होंने केवल 5 बच्चों को साथ लेकर संघ की स्थापना की. यही एक घटना हो सकती है, हम सभी के संघ में आने के लिए. संघ का काम यही है कि देश के प्रति एक आग उत्पन्न कर देना, अब उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह प्रचारक जीवन अपनाता है या फिर अन्य मार्ग से देश की सेवा करता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एकमात्र संगठन है, जिसमें व्यक्ति सिर्फ देने ही आता है, अपने लिए कुछ नहीं मांगता. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिख गुरुओं का हृदय से बहुत आदर करता है. गुरु गोविंद सिंह जी ने जिन लोगों के लिए सब कुछ किया, जब उन लोगों ने कुछ नहीं किया तो उन्होंने उनके लिए कुछ बुरा नहीं कहा.  आज हम अपनी कमजोरियों की जिम्मेदारी दूसरों पर डालना चाहते हैं, भारतवर्ष के पतन का यह बहुत बड़ा कारण है, क्योंकि हम दूसरों को ही बुरा ठहराने की कोशिश करते हैं. उन्होंने गुरुवाणी के आधार पर सारे समाज को जागृत करने को कहा कि सिख धर्म वास्तव में क्या है. गुरुओं के उपदेश के अनुसार सिखों से  आचरण करने को कहा.

सरदार चिरंजीव सिंह जी का सिख संगत के कार्य को आगे बढ़ाने में अभूतपूर्व योगदान है. उन्होंने वर्ष 1953 में स्नातक शिक्षा पूर्ण कर 62 वर्ष से संघ के प्रचारक के रूप में विभिन्न संगठनों, विहिप, पंजाब कल्याण फोरम, संघ के विभिन्न दायित्व व राष्ट्रीय सिख संगत के 12 वर्ष तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहकर और वर्तमान में मुख्य संरक्षक, अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भारती को समर्पित किया हुआ है.

3-राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार गुरचरन सिंह गिल जी द्वारा कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत की गई. उन्होंने कहा कि सरदार चिरंजीव सिंह का जन्म माता जोगेन्दर कौर व पिता सरदार हरकरण सिंह के गृह शहर पटियाला में अश्विन शुक्ल नवमी, वि.सं. 1987 ई. तद्नुसार 1 अक्टूबर 1930 को हुआ. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सनातन धर्म इंग्लिश हाई स्कूल पटियाला में हुई. वे सातवीं कक्षा से संघ के सम्पर्क में आये तथा तब से सदा के लिए संघ के होकर रह गये. वर्ष 1948 में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र व दर्शनशास्त्र से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. इसी बीच जब संघ पर प्रतिबंध लगा तो वे सत्याग्रह कर जेल गए. परिवार के स्वप्न थे कि चिरंजीव सिंह जी किसी बड़ी नौकरी में जा कर धन व यश कमायें, पर संघ शाखा से मिले संस्कार उन्हें अपना जीवन, अपनी पवित्र मातृभूमि व देश पर बलिदान करने की ओर ले जा रहे थे. वह 14 जून 1953 को आजीवन देश सेवा के लिए संघ के प्रचारक हो गए. वह विभिन्न जिलों के प्रचारक, बाद में लुधियाना के विभाग प्रचारक व पंजाब के सह-प्रचारक रहे. आपात्काल में लोकशाही की पुनः प्रस्थापना के जनसंघर्ष में सक्रिय रहे. भूमिगत रहकर सैंकड़ों बंधुओं को संघर्ष में सहभागी होने की प्रेरणा दी.

पंजाब में उग्रवाद के दिनों में जब सामाजिक समरसता की बात कहना दुस्साहस ही था, तब उन्होंने पंजाब कल्याण फोरम बनाकर इसके संयोजक का महत्वपूर्ण दायित्व निभाया. वे जान हथेली पर रखकर सांझीवालता की सोच रखने वाले सिख विद्वानों, गुरुसिख संतों व प्रमुख हस्तियों से निरंतर संवाद बनाये रहे तथा उग्रवाद से पीड़ित परिवारों को संवेदना व सहयोग प्राप्त करवाते रहे. उन्होंने गुरुसिख व सनातन परम्परा के संतों से संवाद बनाकर, समाज में आत्मीयता, प्रेम, सौहार्द व सांझीवालता का सन्देश सब जगह पहुंचाने के लिए “ब्रह्मकुण्ड से अमृतकुंड” नाम से, एक विशाल यात्रा हरिद्वार से अमृतसर तक निकाली, जिसमें लगभग एक हजार संतों की भागीदारी रही.

1970 व 80 के दशक में पंजाब के तनावपूर्ण वातावरण तथा 1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दिल्ली, कानपुर, बोकारो इत्यादि में सिखों के नरसंहार के कारण जब भाईचारे की परम्परागत कड़ियां तनाव महसूस करने लगीं, तब चिरंजीव सिंह जी ने सिख नेताओं और संतों के साथ मिलकर राष्ट्रीय सिख संगत की स्थापना की. वर्ष 1990 में वह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. खालसा सिरजना के 300 वर्ष पूरे होने पर सांझीवालता का सन्देश देने के लिए भारत के विभिन्न मत सम्प्रदायों के संतों से सम्पर्क कर, श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के जन्मस्थल पटना साहिब से राजगीर बोधगया, काशी, अयोध्या से होती हुई 300 संतों की यात्रा निकाली. यह यात्रा 24 मार्च 1999 से शुरु होकर 10 अप्रैल को श्री आनंदपुर साहिब के मुख्य आयोजन, संत समागम, में सम्मिलित हुई. इस यात्रा का हरिमंदिर साहिब, दमदमा साहब, केशगढ़ साहिब जैसे सभी प्रमुख गुरुद्वारों में सम्मान सत्कार हुआ. सरदार जी ने सन् 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित मिलेनियम-2, विश्व धर्म सम्मेलन में भागीदारी की व संगठन के विस्तार के लिए इंग्लैंड व अमेरिका की यात्रा की.

इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ गुरुतेगबहादुर पब्लिक स्कूल मॉडल टाउन दिल्ली के छात्रों द्वारा शबद गायन ‘देहि शिवा वर मोहि इहे’ द्वारा किया गया. इस अवसर पर सरदार चिरंजीव सिंह जी द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन भी किया गया. उनको सम्मान स्वरुप 85 लाख रुपये की राशि प्रदान की गयी जो उन्होंने सिख इतिहास में शोध कार्य के लिए केशव स्मारक समिति को धरोहर स्वरूप सौंपी. जो बाद में भाई मनि सिंह गुरुमत शोध एंड अध्ययन संस्थान ट्रस्ट को हस्तांतरित कर दी गयी. इस अवसर पर संत बाबा निर्मल सिंह जी (बुड्ढा बाबा के वंशज), उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त, दिल्ली प्रान्त संघचालक भी उनके साथ मंचस्थ थे. मंच संचालन दिल्ली प्रान्त सह संघचालक आलोक जी ने किया.

कर्म करने की प्रेरणा देती है भगवद्गीता ::: जे. नंदकुमार

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कर्म करने की प्रेरणा देती है भगवद्गीता
Posted by: December 03, 2015 I
(21 दिसंबर, गीता जयन्ती पर विशेष)
लेखक – जे. नंदकुमार, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

“जब शंकाएं मुझ पर हावी होती हैं, और निराशाएं मुझे घूरती हैं, जब दिगंत में कोई आशा की किरण मुझे नजर नहीं आती, तब मैं गीता की ओर देखता हूं.” – महात्मा गांधी.

संसार का सबसे पुराना दर्शन ग्रन्थ है भगवद्गीता. साथ ही साथ विवेक, ज्ञान एवं प्रबोधन के क्षेत्र में गीता का स्थान सबसे आगे है. यह केवल एक धार्मिक ग्रन्थ नहीं है, अपितु एक महानतम प्रयोग शास्त्र भी है. केवल पूजा घर में रखकर श्रद्धाभाव से आराधना करने का नहीं, अपितु हाथ में लेकर युद्धभूमि में लड़कर जीत हासिल करने का सहायक ग्रन्थ है. महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कर्ममूढ़ होकर युद्ध से निवृत होने की इच्छा व्यक्त करने वाले अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने गीतोपदेश के द्वारा ही कर्म पूर्ण करने की प्रेरणा दी. अर्जुन ऐसा कहते हैं कि युद्ध करने से भी अच्छा अर्थात विहित कर्म करने से भी श्रेष्ठ युद्ध भूमि छोड़कर जाना है. वह तर्क देते हैं कि युद्ध के कारण बहने वाले खून की नदी पार करके विजयी बनने से भी अच्छा भिखारी बनना है. भगवान श्रीकृष्ण उनको पुरुषार्थ का महत्व बताते हैं. अपना कर्म छोड़ने की प्रवृति नीच और अनार्य है, ऐसा ज्ञान गीता देती है. द्वितीय अध्याय के दूसरे एवं तीसरे श्लोकों में भगवान पूछते हैं –

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितं

अनार्यजुष्टमस्वगर्यमकीर्तिकरमर्जुन

हे अर्जुन, तुझे इस दुःखदाई समय में मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ. क्योंकि यह अश्रेष्ठ पुरुषों का चरित है. यह स्वर्ग को देने वाला नहीं है और अपकीर्ति को करने वाला ही है. उतना मात्र नहीं, अगले श्लोक में और जोर से भगवान प्रहार करते है -

कलैव्यं मा स्म गमः पार्थ नैनत्वय्युपपद्यते.

क्षुद्रं ह्रदयदौर्बल्यं त्यक्तोत्तिष्ठ परन्तप.

भगवान का मत ऐसा है कि धर्म छोड़ना यानि कलीवता अथवा नपुंसकता है. उसको मत प्राप्त हो. क्योंकि तुम्हारे में यह उचित नहीं है. इसलिए हृदय की दुर्बलता को त्यागकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए (युद्ध के लिए) खड़े हो जाओ.

यह भगवदगीता के महत्वपूर्ण उपदेश हैं. यह बात केवल युद्ध सम्बंधित नहीं है. जीवन के सब क्षेत्रों में यह लागू होती है. प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपना धर्म होगा. चाहे वह अध्यापक होगा या विद्यार्थी, मजदूर या अधिकारी कुछ भी हो अपने लिए मिले हुए धर्म को अवश्य मनःपूर्वक सफलतापूर्वक पूर्ण करना चाहिए. उसको ध्यानपूर्वक निपुणता के साथ करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है. उसके प्रति अनदेखी करके व्यवहार करना हीनता है.

आज के युग में यह सन्देश सर्वदा प्रासंगिक है. अपने निजी धर्म, संस्कृति को छोड़कर बाकि चमकने वाले अन्य आदर्शों के पीछे दौड़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. स्वदेशी का सन्देश रखते हुए महात्मा गांधीजी ने इसी बात का विस्तार से प्रतिपादन किया है. उन्होंने बताया है कि स्वदेशी याने स्वधर्म और उसके साथ स्वभाषा और स्वभूषा भी है. स्वदेशी कल्पना को गांधीजी ने व्यापक अर्थ में दिया है. वह ‘स्व’ से जुड़े हुए सब है. धर्म (Religion) के बारे में गांधीजी कहते हैं. हमारी  परम्परा एवं परिसर में विद्यमान धर्म छोड़ना महापाप है. इसी प्रकार हमारी मातृभाषा एवं अपनी संस्कृति एवं सदाचार मूल्यों के साथ मेल खाने वाली नागरिक जीवन शैली भी होनी चाहिए.

महात्माजी को इस तरीके का मार्ग एवं सिद्धांत अपनाने की प्रेरणा भगवदगीता से मिली. उन्होंने कई बार यह बात प्रस्तुत भी की थी. भगवदगीता को मन जैसा मानकर अनुसरण करने से संकटों से पार पा सकते हैं. गांधी जी को भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व करने की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन भगवद्गीता ने दी. अंततोगत्वा गीता प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म सम्बंधित ज्ञान देती है. और  किसी भी स्थिति में धर्म पालन का अनुसरण और आवश्यकता पड़ने पर रक्षा करने के लिए रणभूमि में उतरने की ताकत भी देती है. इस बात को गहराई से समझकर उसका क्रियान्वयन करने वालों में केवल गांधीजी ही नहीं थे. सही अर्थ में स्वातंतत्र्य का सामान्य समाज में भाव बनाने वाले लोकमान्य तिलक जी के पूरे क्रियाकलापों का सैद्धांतिक अधिष्ठान भी गीता दर्शन से ही बना. महर्षि अरबिंदो ने समाज के प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर राष्ट्रबोध की आग लगाने के लिए भगवद्गीता का भाष्य लिखा. ‘जय हिन्द’ का नारा लगाकर भारत मुक्ति के लिए अथक परिश्रम करने वाले महान देशभक्त नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज के सदस्यों को पढ़ने के लिए भगवद्गीता दी थी. लाखों करोड़ों देशवासियों के अन्दर देशभक्ति का ज्वार इसलिए जला और स्वातंत्र्य आन्दोलन के कठिनतम मार्ग में वे कूद पड़े. यह सब इसलिए संभव हो पाया क्योंकि भगवदगीता अपने इस देश के स्वत्व को ही प्रगटित करती है. स्वाभाविक है, सच्चे देशभक्तों को उससे प्रेरणा मिली. स्वधर्म पालन के रास्ते में चलने पर यदि मृत्यु भी प्राप्त हो गई तो भी परवाह नहीं. ऐसी सुव्यक्त जीवन दिशा भी उस निमित उन्हें मिली. गीता के तीसरे अध्याय का 35वां श्लोक इस दृष्टि पर उल्लेखनीय है –

“श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः पर धर्मात्स्व नुष्ठितात.

स्वधर्मे निधनं श्रेयःपरधर्मो भयावह.”

अपना स्वधर्म चाहे परधर्मों के साथ तुलना करने के समय थोडा बहुत कम होगा, कम चमकने वाला  होगा, लेकिन उसको छोड़ना नहीं. परधर्म अपनाना नहीं. वह भयावह है. इसलिए स्वधर्म में तो मरना भी श्रेयस्कर है. भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों द्वारा सूली पर चढ़ने के समय भी भगवद्गीता हाथ में रखने का कारण और दूसरा कुछ भी नहीं था.

आज भी स्थिति एक प्रकार से समान है. परधर्म अभी भी चमकने वाली वेशभूषा पहनकर देश में अलग-अलग क्षेत्रों में मौजूद है. स्वत्व बोध के आभाव के कारण बहुत सारे लोग भ्रमित होकर परधर्म के पीछे जाते हैं. शिक्षा से लेकर आर्थिक क्षेत्र तक, संस्कृति से लेकर धार्मिक मोर्चा तक सब दूर स्थिति गंभीर है. यह बात ठीक है कि राष्ट्रीय आदर्शों का प्रभाव भी बढ़ रहा है, लेकिन उसकी गति बढ़ाने की जरूरत है. इस बीच हमको प्रेरणा देने की ताकत अपने राष्ट्र ग्रन्थ भगवद्गीता में है. फिर से एक बार गीता मां के पीछे चलकर स्वधर्म रक्षा के लिए सबको तैयार होना चाहिए –

अंब त्वामनुसंदधामी भगवद्गीते भवद्वेशीनीं.

लेखक – जे. नंदकुमार, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

विश्व के कुछ देशों में बलात्कार की सजा

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With Thanks from Pramod Goswami ji's wall
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�� विश्व के कुछ देशों में बलात्कार की सजा ��
��अमेरिका :
पीड़िता की उम्र और क्रूरता को देखकर उम्रकैद या 30 साल की सजा दी जाती है।
�� रूस :-
20 साल की कठोर सजा.
��चीन -
No Trial, मेडिकल जांच मे प्रमाणित होने के बाद मृत्यु दंड.
�� पोलेंड -
सुवरो से कटवा कर मौत Death thrown to Pigs
�� इराक -
पत्थरो से मार कर हत्या .Death by stone till last breath
�� ईरान -
24 घंटे के अंदर पत्थरो से मार दिया जाता है या फांसी
��दक्षिण अफ्रीका :
20 साल की जेल
�� सऊदी अरब :
फांसी या यौनांगों को काटने की सजा
�� मंगोलिया -
परिवार द्वारा बदले स्वरुप मृत्यु Death as revenge by family
��नीदरलैंड- :
ेंयौन अपराधों के लिए अलग-अलग सजा बताई गई है।
�� कतर -
हाथ,पैर,यौनांग काट कर पत्थर मार कर हत्या
��अफ़गिनिस्तान -
4 दिनो भीतर सर मे गोली मार दिया जाता है.
�� मलेसिया -
मृत्यु दंड Death Penalty
�� कुवैत -
सात दिनो के अंदर मौत की सजा.
��INDIA -
प्रदर्शन
धर्ना
जांच आयोग
समझौता
रिस्वत
लडकी की आलोचना
मिडिया ट्रायल
राजनीतिकरन
जातिकरन
जमानत
सालो बाद चार्जशिट
सालो तक मुकदमा
अपमान एवं जलालत
और
अंत मे दोषी का बच निकलना.
यदि आप सहमत है तो Share करे और आपके क्या लगता है क्या सजा होनी चाहिये इन दरिन्दो की... ?
एक रेड लाईट एरिया मे क्या खूब बात लिखी पाई गई..
"यहाँ सिर्फ जिस्म बिकता है,
ईमान खरीदना हो तो अगले चौक पर 'पुलिस स्टेशन'हैं |"..
आप चाहते हैं,
कि आपकी तानाशाही चले और कोई आपका विरोध न करे..
तो आप भारत में न्यायाधीश बन जाइये,..
आप चाहते हैं,
कि आप लोगों को बेवजह पीटें लेकिन कोई आपको कुछ न बोले..
तो आप पुलिस वाला बन जाइये,..
आप चाहते हैं,
कि आप एक से बढ़कर एक झूठ बोलें अदालत में,
लेकिन कोई आपको सजा न दे,
तो आप वकील बन जाइये,
..
आप चाहते हैं,
कि आप खूब लूट मार करें,
लेकिन कोई आपको डाकू न बोले,
तो आप भारत में राजनेता बन जाइये,
..
आप चाहते हैं,
कि आप दुनिया के हर सुख मांस, मदिरा, स्त्री
इत्यादि का आनंद लें,
लेकिन कोई आपको भोगी न कहे,
तो किसी भी धर्म के धर्मगुरु बन जाओ.
..
आप चाहते हैं,
कि आप किसी को भी बदनाम कर दें,
लेकिन आप पर कोई मुकदमा न हो,
तो मीडिया में रिपोर्टर बन जाइये,
....
यकीन मानिये..
कोई आप का बाल भी बाँका नहीं कर पाएगा.
भारत में,
हर 'गंदे'काम के लिए एक वैधानिक पद उपलब्ध हैं !
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बलात्कार

एक ऐसा अपराध जो ना सिर्फ शरीर को चोट पहुंचता है अपितु आत्मा को भी तार तार कर देता है. पिछले कुछ वर्षों में बलात्कार के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुयी है.

खासकर हमारे देश को पूरे विश्व में बलात्कार का गढ़ कहकर प्रचारित किया जा रहा है. क्या ये एक तथ्य है या सिर्फ एक बनायीं हुयी खबर? और अगर ये तथ्य है तो और कौन कौन से ऐसे देश है जहाँ ये जघन्य अपराध रुकने का नाम ही नहीं ले रहा.

आपको बताते है दुनिया के देश जो है बलात्कार के मामलों में सबसे आगे और सबसे आश्चर्य की बात ये है की इन देशों में दुनिया के कुछ सबसे विकसित देश भी शामिल है.



इथोपिया andrea

औरत के साथ अपराध के मामले में इथोपिया बहुत आगे है, एक सर्वे के अनुसार 60% इथोपियन महिलाये शारीरिक शोषण का शिकार होती है

.इस देश में बलात्कार की दर बहुत ज्यादा है यहाँ की आबादी के अनुसार. इथोपिया में अफर्ण कर शादी करना भी आम बात है, इसमें अपहर्ता लड़की का अपहरण कर उसका तब तक बलात्कार करता है जब तक की वो गर्भवती नहीं हो जातीऔर ऐसा होने के बाद उस लड़की को अपहर्ता से शादी के लिए मजबूर होना पड़ता है.





श्री लंका sri lanka


बलात्कार सिर्फ महिलाओं का ही नहीं होता, पुरुषों का भी होता है. श्रीलंका में एक बड़ी संख्या में पुरुषों का बलात्कार होता है.

बलात्कार के शिकार अक्सर विद्रोही या आतंकी होने के संदेही पुरुष होते है और बलात्कार किया जाता है सेना के जवानों के द्वारा. एक रिपोर्ट के अनुसार बलत्कार के शिकार 96.5% पुरुष रिपोर्ट नहीं करवाते.

65% बलात्कारियों को बलात्कार करने के बाद किसी तरह का अफ़सोस नहीं होता और तकरीबन 11प्रतिशत ऐसे भी है जिन्होंने 4 या ज्यादा महिलाओं का बलात्कार किया है. है ना ये खौफनाक आंकड़े हमारे पडोसी देश के.




कनाडा canada

नाम सुनकर चौंक गए. एक विकसित देश होकर भी बलात्कार के मामले में इतना आगे.

कनाडा में रिपोर्ट्स के अनुसार 2,516,918 बलात्कार होते है जो कि असल बलात्कार का केवल 6% है. कनाडा की एक तिहाई महिलाएं कभी ना कभी शारीरिक शोषण या बलात्कार का शिकार हुयी है.

कोर्ट के अनुसार हर 17 में से एक लड़की का बलात्कार होता है.





फ्रांस france

प्यार के देश के नाम से मशहूर इस देश का नाम सुनकर मत चौंकिए बलात्कार के मामलों में आगे होने के अलावा एक और चौंका देने वाली बात फ्रांस के बारे में ये है 1980 तक फ्रांस में बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता था.

बलात्कार और शोषण के विरुद्ध कानून बने भी ज्यादा समय नहीं बीता है. इस सन्दर्भ में पहला कानून 1992 में बना था और सबसे ताजा कानून करीबन 1-2 वर्ष पूर्व ही बना है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार फ्रांस में हर साल करीब 75000 बलात्कार होते है. जिनमे से केवल 10% की ही रिपोर्ट दर्ज होती है. महिलाओं के साथ कुल 3,771,850 अपराध होते है .





जर्मनी Germany

फ्रांस कनाडा और अब जर्मनी, जितने ज्यादा विकसित देश उतने ही मानवता रहित.

जर्मनी में बलात्कार की दर पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा बढ़ी है. आंकड़ो के अनुसार पिछले कुछ सालों में करीब ढाई लाख बलात्कार पीड़ित मर चुकी है.

बलात्कार का सालाना आंकड़ा छ लाख के करीब है. दिनों दिन जर्मनी में ये समस्या बढती ही जा रही है.





यूनाइटेड किंगडम UnitedKingdom


विश्व के सबसे पुराने और सबसे विकसित देशों में से एक और साथ ही साथ अपराध के मामलों में भी अग्रणी. कमाल की बात है जिस देश पर रानी का राज है वहीँ पर महिलाएं सुरक्षित नहीं.

सरकारी अंडों के अनुसार पिछले वर्ष इंग्लैंड और वेल्स में करीब 85000 महिलाओं का बलात्कार हुआ और हर साल करीब चार लाख महिलाये शारीरिक शोषण का शिकार होती है और 5 में से 1 महिला 16 वर्ष की उम्र से शारीरिक रूप से शोषण का शिकार बनती है.

ये आंकड़े बताते है की बलात्कार को रोक पाने  में ब्रिटेन किस प्रकार नाकाम रहा है.




भारत india

बहुत से लोग इंतज़ार कर रहे थे अपने देश का नाम आने का, इंतज़ार करें भी तो क्यों नहीं जब पूरे विश्व में बलात्कार का गढ़ बताया जा रहा है इस देश को.

बलात्कार की समस्या भारत में बहुत तेज़ी से बढ़ी है खासकर पिछले पांच सालों में.2012 में करीब 25000 बलात्कार के मालों की रिपोर्ट हुयी थी

पर असली आंकडा इस से कहीं ज्यादा है. सरकारी सूत्रों का माने तो ये संख्या बलात्कार के मामलों की मात्र 2 प्रतिशत है. भारत में होने वाले अधिकतर बलात्कार के मामलों में बलात्कारी महिला का जान पहचान वाला ही होता है जैसे की परिवार का सदस्य, रिश्तेदार.

दोस्त , सहकर्मी या पडोसी. भारत में हर 22 मिनिट में एक बलात्कार होता है, ये एक गहन चिंता का विषय है और कड़े कानून और लड़के लड़कियों में जागरूकता लाकर ही इस पर लगाम कासी जा सकती है.





स्वीडन Sweden

स्वीडन को सबसे सुरक्षित देशों में से एक माना जाता है पर जहाँ बात महिलाओं की सुरक्षा की बात आती है तो ये देश बलात्कार के मामलों  में यूरोप में सबसे आगे और विश्व में भी चोटी के तीन देशों में आता है.

हर एक लाख पर 63 महिलाएं बलात्कार का शिकार होती है. पिछले दस सालों में इस देश में बलात्कार की दर 58% तक बढ़ी है.





साउथ अफ्रीका southafrica

ये देश बलात्कार के मामलों में बहुत आगे है, विश्व में सबसे अधिक बलात्कार यहीं होते है सिर्फ एक देश है जो अफ्रीका से आगे है.

एक सर्वे के मुताबिक हर तीन में से एक लड़की/महिला बलात्कार की शिकार होती है और तकरीबन 25% पुरुष है जिन्होंने कभी ना कभी किसी का बलात्कार किया है और इनमें से आधे ऐसे भी है जिन्होंने एक से अधिक महिला का बलात्कार किया है.

दक्षिण अफ्रीका बच्चों के बलात्कार के मामलों में दुनिया में सबसे आगे है और सबसे बुरी बात ये है कि बलात्कार के आरोप में पकडे जाने पर केवल दो साल की सजा का प्रावधान है .





अमेरिका (USA)

विश्व शक्ति, दुनिया का सबसे शक्तिशाली और विकसित देश. कोई सोच सकता है की इस सूचि में भी ये देश सबसे ऊपर होगा.

हाँ यकीन करना मुश्किल है पर अमेरिका बलात्कार के मामलों में सबसे आगे है. बलात्कार के पीड़ितों में 91% महिलाएं होती है और करीब 9% पुरुष. सरकारी सर्वे के अनुसार 6 में से 1 अमेरिकी महिला और 33 में से 1 अमेरिकी पुरुष अपने जीवनकाल में कभी ना कभी शारीरिक शोषण या बलात्कार का शिकार होता है.

USA

नए सर्वेक्षणों के अनुसार अफ्रीका ने बलात्कार के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है.

बलात्कार के  मामलों में कुछ हद तक काबू पाकर अब अमेरिका, अफ्रीका और स्वीडन के बाद तीसरे स्थान पर है.

देखा किस प्रकार दुनिया के अविकसित, विकासशील और विकसित सभी प्रक्कर के देश इस अपराध की रोकथाम करने में नाकाम रहे है. बलात्कार की समस्या किसी देश किआर्थिक हालत या सांस्कृतिक सोच पर निर्भर नहीं करती. बलात्कार एक कुंठित और घिनौनी मानसिकता से पीड़ित व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध है.

और इसे रोकने का एक ही तरीका हो सकता है कठोर कानून और लोगों में जागरूकता जगाना और विश्वास दिलाना की इस अपराध को करने वालों को बक्शा नहीं जायेगा.



जांबाजी से भरा हुआ है कतरा कतरा मोदी का - कवि गौरव चौहान

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मोदी की बिना योजना लाहौर यात्रा का विरोध करने वालों को एक कवी का जवाब
रचनाकार- कवि गौरव चौहान (इटावा उ.प्र.) 9557062060

जिसकी आँखों में भारत की उन्नति का उजियारा है,
जिसकी गलबहियां करने को व्याकुल भी जग सारा है,
🌻
अमरीका जापान चीन इंग्लैंण्ड साथ में बोले हैं,
घूम घूम कर जिसने दरवाजे विकास के खोले हैं,
🌻🌻🌻

जिसके सभी विदेशी दौरे सफल कहानी छोड़ गए,
बड़े बड़े तुर्रम खां तक भी हाथ सामने जोड़ गए,
🌻🌻🌻

यूरेनियम दिया सिडनी ने,रूस मिसाइल देता है,
बंगलादेश सरहदों पर चुपचाप सुलह कर लेता है,
🌻
उन्ही विदेशी दौरों की अब खिल्ली आज उड़ाते हैं?
देश लूटने वाले उसको कूटनीति सिखलाते हैं,
🌻
कायम था ग्यारह वर्षों से,वो वनवास बदल डाला,
मोदी ने लाहौर पहुंचकर सब इतिहास बदल डाला,
🌻
जिस धरती पर हिन्द विरोधी नारे छाये रहते हैं,
जिस धरती पर नाग विषैले मुहँ फैलाये रहते हैं,
🌻
जिस धरती पर हाफ़िज़ जैसे लेकर बैठे आरी हों,
और हमारे मोदी जी की देते रोज सुपारी हों,
🌻
जहाँ सुसाइड बम फटते हैं रोज गली चौराहों में,
बारूदी कालीन बिछी है जहाँ सियासी राहों में,
🌻
जहाँ होलियाँ बच्चों के संग खेली खूनी जाती हों,
बेनजीर सी नेता भी गोली से भूनी जाती हों,
🌻
उसी पाक में पहुंचे मोदी,शोर मचाया संसद ने,
सभा बीच रावण की देखो पैर जमाया अंगद ने,
🌻
बिना सुरक्षा बिना योजना जाना एक दिलेरी है,
लगता है उलझन सुलझाने में कुछ पल की देरी है,
🌻
लाहौरी दरबार समूचा ही अंगुली पर नाचा है,
पड़ा मणीशंकर के गालों पर भी एक तमाचा है,
🌻

अंगारों को ठंडा करदे,उसे पसीना कहते है,
इसको ही तो प्यारे छप्पन इंची सीना कहते हैं,🌻🌻

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http://www.aajtakbharat.com

जिसकी आँखों में भारत की उन्नति का उजियारा है,
जिसकी गलबहियां करने को व्याकुल भी जग सारा है,
अमरीका जापान चीन इंग्लैंण्ड साथ में बोले हैं,
घूम घूम कर जिसने दरवाजे विकास के खोले हैं,

जिसके सभी विदेशी दौरे सफल कहानी छोड़ गए,
बड़े बड़े तुर्रम खां तक भी हाथ सामने जोड़ गए,

यूरेनियम दिया सिडनी ने, रूस मिसाइल देता है,
बंगलादेश सरहदों पर चुपचाप सुलह कर लेता है,
उन्ही विदेशी दौरों की अब खिल्ली आज उड़ाते हैं?
देश लूटने वाले उसको कूटनीति सिखलाते हैं,

कायम था ग्यारह वर्षों से, वो वनवास बदल डाला,
मोदी ने लाहौर पहुंचकर सब इतिहास बदल डाला,
जिस धरती पर हिन्द विरोधी नारे छाये रहते हैं,
जिस धरती पर नाग विषैले मुहँ फैलाये रहते हैं,
जिस धरती पर हाफ़िज़ जैसे लेकर बैठे आरी हों,
और हमारे मोदी जी की देते रोज सुपारी हों,
जहाँ सुसाइड बम फटते हैं रोज गली चौराहों में,
बारूदी कालीन बिछी है जहाँ सियासी राहों में,
जहाँ होलियाँ बच्चों के संग खेली खूनी जाती हों,
बेनजीर सी नेता भी गोली से भूनी जाती हों,
उसी पाक में पहुंचे मोदी, शोर मचाया संसद ने,
सभा बीच रावण की देखो पैर जमाया अंगद ने,
बिना सुरक्षा बिना योजना जाना एक दिलेरी है,
लगता है उलझन सुलझाने में कुछ पल की देरी है,
लाहौरी दरबार समूचा ही अंगुली पर नाचा है,
पड़ा मणीशंकर के गालों पर भी एक तमाचा है,

ये गौरव चौहान कहे अब देखो जिगरा मोदी का,
जांबाजी से भरा हुआ है कतरा कतरा मोदी का,
अंगारों को ठंडा करदे, उसे पसीना कहते है,
इसको ही तो प्यारे छप्पन इंची सीना कहते हैं,

रचनाकार- कवि गौरव चौहान (इटावा उ.प्र.)
9557062060
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भारतीय चिन्तन हराने में नहीं, मन जीतने में विश्वास रखता है – सरकार्यवाह माननीय जोशी जी

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भारतीय चिन्तन हराने में नहीं,मन जीतने में विश्वास रखता है – सुरेश भय्या जी जोशी


  
इंदौर ।

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विश्व के अन्य देशों में कार्यरत शाखा हिन्दू स्वयंसेवक संघ के पांच दिवसीय विश्व संघ शिविर-2015 का शुभारंभ 29 दिसंबर को इंदौर के एमरल्ड हाइट्स इंटरनेशनल में हुआ. शिविर का शुभारंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय सुरेश भय्या जी जोशी तथा लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया. विश्व संघ शिविर में विश्व के 45 देशों से 750 शिविरार्थी भाग ले रहे हैं.

शुभारंभ अवसर पर सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि हम में से कई कार्यकर्ता भारत में पहली बार आए हैं, किन्तु रक्त, मन, मस्तिष्क में स्थापित विचार कभी दुर्बल नहीं होते. भिन्न प्रकार का चिन्तन लेकर हम विश्व में खड़े हैं. हमने विश्व को एक परिवार माना है. हम विश्व को अपने चिन्तन से प्रभावित करना चाहते हैं. हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा. विश्व में सभी संघर्षों को समाप्त करने हेतु चिन्तन हिन्दू समाज ही दे सकता है. हम हिन्दू हैं, यह अहंकार नहीं, स्वाभिमान है. विश्व तभी जगेगा, जब हिन्दू जगेगा. हमारा (हिन्दू समाज) जगना प्रारंभ हुआ है, विश्व भी जगेगा, यह हमारा विश्वास है. इसी में मानव जीवन की स्वतंत्रता की गारंटी है. विश्व का जगना, मनुष्य का जगना है.

उन्होंने कहा कि हमने देवासुर संग्राम देखा है. सत्य के साथ असत्य, न्याय के साथ अन्याय, धर्म के साथ अधर्म, तथा देवों के साथ असुर संग्राम हुआ है. जिसमें हमेशा सत्य, न्याय, धर्म व देवों की विजय ही हुई है. यह तत्वज्ञान बहुमत से सिद्ध नहीं किया जा सकता. यह विश्व कल्याण का मार्ग है, शान्ति का मार्ग है. हिन्दुत्व का तत्वज्ञान भारतीय मनीषियों ने रखा है, यह स्नेह से ही प्राप्त किया जा सकता है. हम इस संस्कृति के प्रतिनिधि हैं.
सरकार्यवाह जी ने कहा कि बलिदान से अधिक त्याग का महत्व है. आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी ने कहा है कि देश समाज के लिये मरने नहीं, जीने वाले लोग चाहिए. यह अहंकार नहीं सिद्धांत की भाषा है. इसे स्वयं से आरंभ करना है, और वयं (हम सब) तक जाना है. हम भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि हैं, हमें स्वयं से ही प्रारंभ करना होगा. हम जगेंगे, तो विश्व भी उस मार्ग पर चलेगा. भारत से हजारों लोग विश्व के अनेक देशों में गए, हम किसी को हराने या लूटने नहीं गए. भारत में देने की परंपरा है, लेने की नहीं. हम शास्त्र व मूल्य लेकर गए, शस्त्र नहीं. भारतीय चिन्तन हराने में नहीं, मन जीतने में विश्वास रखता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या हिन्दू स्वयंसेवक संघ का कार्य इस यात्रा का दर्शन करवाना है. उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी को उद्घृत करते हुए कहा कि धर्म, कर्तव्य, मूल्य भारत में समाप्त हो जाएंगे तो विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिलेंगे. हम मानवीय दृष्टिकोण से कार्य करें, भविष्य के स्वप्न को हमें साकार करना है.
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति और हमारे संस्कारों के सच्चे राजदूत विश्व में फैले हुए भारतीय ही हैं. जो भारत की विरासत को इतने वर्षों से विश्व में फैलाने का कार्य कर रहे हैं. हमारे मानबिन्दु संपूर्ण विश्व को जीवन जीवन दर्शन देते हैं. जैसे भारतीय संस्कृति के अनुसार हम पेड़-पौधों की पूजा, पक्षियों को दाना देने आदि का कार्य करते हैं. ये संस्कार आधारित जीवन दर्शन है. हम संपूर्ण जीव जगत को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं. हम सभी भारतीय संस्कृति के राजदूत हैं. आज विश्व के कई देशों में दीपावली, गणेश उत्सव आदि त्यौहार बड़े पैमाने पर उत्साह से मनाए जाते हैं. भारतीय जिस देश में भी गए, बड़े भवन संपत्ति के स्थान पर उन्होंने मंदिर बनाने को प्राथमिकता दी. संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रसार किया.

कार्यक्रम के दौरान स्मारिका तथा ध्वनि चित्र मुद्रिका का विमोचन भी अतिथियों ने किया. हिन्दू स्वयंसेवक संघ के संयोजक सौमित्र गोखले जी ने विश्व में संघ द्वारा किए जा रहे कार्यों का वृत्त प्रस्तुत किया. स्मारिका के संपादक डॉ. सुब्रतो गुहा ने प्रस्तावना, धात्री त्रिपाठी ने गणेश वंदना प्रस्तुत की. कार्यक्रम का संचालन केन्या की अनिता पटेल ने किया. अतिथियों के स्वागत के साथ ही परिचय शिविर कार्यवाह डॉ. मुकेश मोढ़ ने करवाया.

सदन में सच का अटल स्वर : अटल बिहारी वाजपेयी

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अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस (25 दिसम्बर) पर विशेष

तारीख: 28 Dec 2015 11:39:48
सूर्य प्रकाश सेमवाल

सदन में सच का अटल स्वर

देश में संसद को जिस प्रकार से कुछ लोगों के लिए बना दिया गया है वह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। छह दशक से ज्यादा संसद की गरिमा बढ़ाने में अपना योगदान देने वाले लोकप्रिय नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी निश्चित रूप से इस गतिरोध से दु:खी होते। वास्तव में आज जिस प्रकार से देश की संसद में परिपक्व बौद्धिक नेताओं का अकाल दिख रहा है, खासकर विपक्ष में वह चिंताजनक है। यदि विपक्ष के पास दूरदर्शी और जनता के हितचिंतक विवेकी जनप्रतिनिधि होते तो असहिष्णुता, राजनीतिक द्वेष और सांप्रदायिकता इत्यादि के  राग न अलापे जाते।
देश की प्रबुद्ध जनता संसद के अंदर हो रही नौटंकी और स्तरहीन हो गई, चर्चा में अनायास और सायास अटल जी को तो याद करेगी ही। चाहे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ संसद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में साम्प्रदायिक आधार पर हुए चुनावों पर बहस का मुद्दा हो अथवा श्रीमती इंदिरा गांधी के समय देश में कई स्थानों पर हुए दंगों पर बेबाकी से सदन में अपनी राय रखने की बात। अटल जी ने सदैव देशहित में दूरदर्शितापूर्ण विधानों की वकालत की और वोटों के लिए तुष्टीकरण का विरोध। 70 के दशक में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उपस्थिति में ही उन्होंने सारी संसद को चेता दिया था-
'सांप्रदायिकता को वोटों का खेल बना दिया गया है। मैं राजनीतिक दलों को चेतावनी देना चाहता हूं कि मुस्लिम संप्रदाय को बढ़ावा देकर अब आपको वोट भी नहीं मिलने वाले हैं'। (14 मई, 1970 को   लोकसभा में देश में सांप्रदायिक तनाव से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा में भाग लेते हुए)।
देश में आजादी के बाद से ही दक्षिणपंथी दलों और सांस्कृतिक संगठनों पर सुनियोजित तरीके से सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया जाता रहा है। जब जनसंघ पर सदन में भी ऐसे निराधार आरोपों पर चर्चा हुई तो अटल जी ने बेबाक होकर तर्क के साथ अपनी बात रखी- 'भारतीय जनसंघ एक असांप्रदायिक राज्य के आदर्श में विश्वास करता है। जिन्होंने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन कर लिया, वे हमारे ऊपर आक्षेप करने का दु:साहस न करें। इनकी सरकार मुस्लिम लीग के भरोसे टिकी है और हमको संप्रदायवादी बताते हैं। जो चुनाव में सांप्रदायिकता के आधार पर उम्मीदवार खड़े करते हैं वे हमको संप्रदायवादी बताते हैं। जो भारत को रब्बात के सम्मेलन में ले जा करके अपमान का विषय बनाते हैं वे हमें संप्रदायवादी बताते हैं।'(14 मई,1970)
अटल बिहारी वाजपेयी सत्तारूढ़ तंत्र के समक्ष सांप्रदायिकता और तुष्टीकरण को बार-बार तर्क के साथ उठाते रहे और देशहित में सच्चाई को बयां करने से कभी नहीं चूके। वे सांप्रदायिकता से लड़ने का ढोंग करने वाले कांग्रेसियों और वामपंथियों को उसी दौर से लताड़ने लगे थे जब साठ के दशक में देश की संसद में युवा जनप्रतिनिधि के रूप में उन्होंने प्रवेश किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने उन्हें भावी भारत का प्रधानमंत्री होने की घोषणा की थी। उदारमना अटल देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता के साथ हिन्दू-मुसलमान के साथ समान व्यवहार की पक्षधरता पर जोर देते रहे हैं- 'हम न भेदभाव चाहते हैं, न पक्षपात चाहते हैं। हमने संविधान की समान नागरिकता को स्वीकार किया है। भारतीय जनसंघ के दरवाजे भारत के सभी नागरिकों के लिए खुले हुए हैं। लेकिन अगर कोई मुसलमान जनसंघ में आता है तो दिल्ली में उसके खिलाफ पोस्टर लगाए जाते हैं कि वह एक काफिर हो गया है। जो भाषा मुस्लिम लीग बोलती थी मौलाना आजाद और अन्य राष्ट्रवादी मुसलमानों के खिलाफ, आज वही भाषा जनसंघ में आने वाले मुसलमानों के खिलाफ बोली जा रही है। सांप्रदायिकता से लड़ने का यह तरीका नहीं है।'(14 मई,1970)
देश की आजादी के बाद विभिन्न वैधानिक संस्थानों और सरकारी समितियों में किस प्रकार सत्ताधारी तंत्र ने हिन्दुत्ववादी विचारधारा के पोषक संगठनों और लोगों को दरकिनार करते हुए इन संस्थाओं के माध्यम से उन्हें निपटाने की योजना बनाई थी इससे बखूबी परिचित वाजपेयी जी ने राष्ट्रीय एकात्मता परिषद में शामिल लोगों पर भी प्रश्न खड़े किए जो सर्वथा उपयुक्त एवं प्रासंगिक थे-
'प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय एकात्मता परिषद का प्रारंभ किया था लेकिन उसे मेरे दल के विरुद्ध प्रचार करने का एक हथियार बनाया गया। मैं चाहता हूं कि राष्ट्रीय एकात्मता परिषद का विस्तार किया जाए।'(14 मई,1970)
अटल जी आगे सत्ताधारी तंत्र के एकाधिकार और स्वयं प्रधानमंत्री की कृपा पर बनने वाली राष्ट्रीय एकात्मता परिषद के लिए जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्यरत शीर्ष व्यक्तित्वों को स्थान देने की वकालत करते हुए संसद में उस समय जारी व्यवधान पर बेबाकी से राय देते दिखाई पड़ते हैं। आंख मूंदकर मुस्लिम कट्टरवाद पर मौन और आत्मरक्षा में अपनी बात रखने वाले हिन्दू संगठनों को सांप्रदायिक घोषित करने की वोट बैंक नीति पर गंभीरता के साथ उन्होंने जो चेतावनी दी है वह आज भी प्रासंगिक और उतनी ही प्रभावशाली दिखाई पड़ती है-
'राष्ट्रीय एकात्मता परिषद में श्री एस.सी. छागला, श्री हमीद देसाई, डॉ. जिलानी और श्री अनवर देहलवी जैसे राष्ट्रवादी नेता लिए जाएं। प्रधानमंत्री किसको लें, यह प्रधानमंत्री की कृपा पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। मैं पूछना चाहता हूं क्या प्रधानमंत्री मुस्लिम संप्रदायवादियों के बारे में कुछ कहने के लिए तैयार हैं। यह बात छिपी हुई नहीं है कि भिवंडी में तामीर-ए-मिल्लत ने वातावरण बिगाड़ा है लेकिन क्या किसी ने तामीर-ए-मिल्लत का नाम लिया है? शिवसेना की आलोचना हो रही है, होनी चाहिए... हमें भी लपेटा जा रहा है। लेकिन हम उसकी चिंता नहीं करते हैं। हम प्रधानमंत्री की कृपा से इस सदन में नहीं आए हैं उनके बावजूद आए हैं। इस राष्ट्र की जनता का हम भी प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन जब किसी मुस्लिम संप्रदायवादी संगठन का सवाल आता है तो मुंह में ताले पड़ जाते हैं, सांप सूंघ जाता है। जमाते-उल-उल्मा क्या कर रही है? जमाते-इस्लामी क्या कर रही है? तामीर-ए-मिल्लत ने भिवंडी में क्या किया? लेकिन है कोई बोलने वाला?' (14 मई,1970)
देश में बढ़ती सांप्रदायिकता के प्रासंगिक तत्व अटल जी ने उस जमाने में ही अर्थात इंदिरा जी के सत्तारूढ़ रहते, कांग्रेस के विभाजन के बाद संप्रदायवादियों और वामपंथियों से कांग्रेस के गठजोड़ में ढूंढ निकाले थे- 'क्या हर सवाल को राजनीति की कसौटी पर कसा जाएगा? जबसे कांग्रेस का विभाजन हुआ है देश में संप्रदायवादियों और साम्यवादियों का गठबंधन बढ़ गया है और उनको प्रधानमंत्री का वरदहस्त प्राप्त है। यह है संप्रदायवाद के बढ़ने का कारण?' (14 मई,1970) महाराष्ट्र के भिवंडी में हुए दंगों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जनसंघ के अध्यक्ष और सदन के नेता अटल जी ने 14 मई, 1970 को संसद में एक लंबी चर्चा में निरुत्तर कर दिया था। आज संसद में असहिष्णुता के नाम पर मोदी सरकार को घेरने के बहाने जो काम कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने किया और दोनों ही सदनों के दो-दो सत्र होहल्ला में स्वाहा कर दिए उसकी भनक मानो अटल जी को चार दशक पूर्व से ही प्रतीत होती दिखाई पड़ रही थी। भारत के वामपंथी नेताओं और कांग्रेस पर क्षुद्र मानसिकता का पोषक होने की खुली घोषणा करते वे नहीं चूके- 'हमें देश के भीतर काम करने वाले पाकिस्तानी तत्वों पर नजर रखनी होगी और कम्युनिस्ट पार्टी के उस हिस्से पर भी नजर रखनी होगी जो चीन परस्त है और चीन परस्त होने के कारण आज पाकिस्तान परस्त हो रहा है। मुझे खेद है कि कलकत्ता के दंगों के संबंध में जो बातें कही गईं वे एक तरफा हैं और एक तरफा बातें यह बताती हैं कि हम ऐसा प्रचार करना चाहते हैं जो प्रचार न तो सत्य पर आधारित है और न राष्ट्र के हितों के लिए काम में आ सकता है। ऐसे प्रचार से हमको सावधान रहना चाहिए।'
(13 फरवरी, 1964 को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए)


भारतीय लोकतंत्र की विडंबना देखिए जहां एकतरफा बातों और दुष्प्रचार से कुछ लोगों के इशारों पर पूरे देश की संसद को बाधित कर दिया जाता है और तथाकथित अभिव्यक्ति के खतरे के साथ-साथ असहिष्णुता के माहौल को रचने में सारी ऊर्जा लगा दी जाती है। देश की जनता के हितों का हनन कर विपक्ष से जनता को छलावा और धोखा ही मिलता है। आजादी के बाद से ही शुरू हुई सत्ता में बैठे रहने की इस लालसा पर अटल जी मानों कटाक्ष करते दीखते हैं-
'हमें इन दंगों को पार्टी का चश्मा उतारकर देखना होगा और मैं चाहता हूं कि कामरेड डांगे चश्मे को उतारकर इन दंगों को देखें। मुझे खुशी है कि उन्होंने अपना चश्मा उतार लिया- दलगत स्वार्थों को अलग रखकर इस पर विचार करना होगा, वोटों की चिंता को छोड़कर राष्ट्र को बचाने की चिंता करनी होगी।' (14 मई,1970) सांप्रदायिकता को अलग-अलग रूप से व्याख्यायित करने वालों को उलाहना देते हुए अटल जी इसे भावी पीढि़यों के लिए नुकसानदायक बताते हुए सदन में जनता की अपेक्षा पर खरी उतरने वाली भूमिका निभाने का आह्वान करते हैं- क्या 'हम देश की एकता का विचार करके नहीं चल सकते? यह विवाद इस बात को स्वीकार करेगा कि यह सदन, इस सदन में जिन दलों को प्रतिनिधित्व मिला है वे दल और उन दलों के प्रवक्ता इस महत्वपूर्ण समस्या पर कैसा दृष्टिकोण अपनाते हैं। हमें सच्चाई का सामना करना होगा। सच्चाई कितनी भी कठोर हो, कितनी भी भयानक हो, उसका उद्घाटन करना पड़ेगा। आज लाग-लपेट से काम नहीं चलेगा, किसी के पाप के ऊपर पर्दा डालने की आवश्यकता नहीं है।'(14 मई,1970)

कुल मिलाकर देश की संसद के अंदर और जनता के हृदय में छह दशक से ज्यादा राज करने वाले लोकप्रिय नेता पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बखूबी समझते थे। पं. नेहरू से लेकर इंदिरा, राजीव और सोनिया गांधी की कांग्रेस तक के कालखण्ड में 60 वर्ष तक विपक्ष के नायक रहने वाले अटल जी का आचरण, उनका व्यवहार और उनके भाषण एवं विचार एक दीर्घकालिक लोकतांत्रिक दर्शन का जीवंत उदस्तावेज कहे जा सकते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसद की महत्ता को प्रमाणित करने, गरिमा बढ़ाने वाले इन विचारों को यदि आज का विपक्ष थोड़ा भी आत्मसात कर ले तो देश की जनता का भी भला होगा और इन सत्तालोलुप दलों को अपने पुराने कृत्यों के पश्चाताप का अवसर भी मिल जाएगा।  


स्वदेशी में भारतीय संस्कृति के मूल्य प्रतिबिंबित होते हैं : कश्मीरी लाल जी

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स्वदेशी जीवनशैली में भारतीय संस्कृति के मानवीय मूल्य प्रतिबिंबित होते हैं – कश्मीरी लाल जी
December 27, 2015 In: जोधपुर

जोधपुर | स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन उम्मेद स्टेडियम से गांधी मैदान तक स्वदेशी संदेश यात्रा निकाली गई. जब भी बाजार जायेंगे, माल स्वदेशी लायेंगे, स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ, आदि उद्घोषों के साथ सभी प्रदेशों से आये 2000 स्वदेशी कार्यकर्ताओं ने स्टेडियम से गांधी मैदान तक स्वदेशी संदेश यात्रा निकाली. संदेश यात्रा का जगह-जगह शिक्षक संघ राष्ट्रीय, भारतीय शिक्षण मण्डल, सोजती गेट व्यापार संघ, जालोरी गेट व्यापार संघ, परम पूज्यनीय माधव गौ विज्ञान परीक्षा समिति, भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा, शास्त्रीनगर बीजेपी मण्डल, मेडिकल एसोसिएशन आदि द्वारा स्वागत किया गया. सभी प्रान्तों से आये स्वदेशी कार्यकर्ताओं का जोश देखने वाला था. पूरा मार्ग स्वदेशी नारों से गूंज गया. सरदारपुरा पर संदेश यात्रा गांधी मैदान में हुंकार सभा में परिवर्तित हो गयी.

गांधी मैदान में स्वदेशी हुंकार सभा का आयोजन किया गया. सभा में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक अरूण ओझा ने कहा कि स्वदेशी का अर्थ मात्र घर परिवार की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं वरन् सामाजिक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत हमारा व्यापार, वाणिज्य, हमारा सुथार, हमारा सुनार, हमारा चर्मकार सहित मध्यम व ऊंचा व्यापार सरकारी नौकरियों में अधिकारी पद से लेकर उद्योगपतियों तक की जीवन शैली को भारतीय संस्कारों में ढाल देना ही स्वदेशी है. इन विचारों को परिलक्षित करते हुए स्वदेशी जागरण मंच पिछले 24 वर्षों से लगातार भारतीय संस्कार शैली को भारत एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक शोभायमान करने का उत्कृष्ट कार्य कर रहा है.

मंच के राष्ट्रीय संगठक कश्मीरी लाल जी ने कहा कि स्वदेशी अपनाकर ही हम अपने गौरवशाली अतीत को वापस ला सकते है. जहां तक सम्भव हो अपने जीवन में पहले देशी, फिर स्वदेशी और मजबूरी में विदेशी सिद्धांत को उतारना चाहिए. स्वदेशी एक जीवन शैली है, जिसके अन्तर्गत समस्त भारतीय संस्कृति के मानवीय मूल्य प्रतिबिंबित होते है. चौबीस घण्टे की दिनचर्या अर्थात सुबह उठने से लेकर रात को सोने से पहले तक एवं सोते हुए समस्त भारतीय संस्कारों का जीवन में हृदयांगम करना, जीवन में लागू करना एवं अपने कार्य, व्यवहार से भारतीय संस्कृति मूल्य को प्रतिबिंबित करना ही स्वदेशी है. हुंकार सभा के व्यवस्था प्रमुख ज्ञानेश्वर भाटी ने सभी अतिथियों व स्वदेशी कार्यकर्ताओं का हार्दिक अभिनन्दन करते हुए सभी को धन्यवाद दिया.

सांस्कृतिक संध्या का आयोजन – राष्ट्रीय सम्मेलन में दूसरे दिन शाम को देश भर आये स्वदेशी कार्यकर्ताओं के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया. जिसमें पधारे सभी अतिथियों के सम्मुख राजस्थानी संस्कृति और कला के रंगों को बिखेरा गया. इसमें घूमर, तेहराताली, कालबेलिया, भवाई नृत्यों का प्रदर्शन कलाकारों द्वारा किया गया. साथ में योग कला के करतब भी दिखाए गये. संध्या का संचालन गजेन्द्रसिंह परिहार, पुनित मेहता, भारती वैद्य, सवाईसिंह के दल द्वारा किया.

प्रथम सत्र में पाली सांसद पीपी चौधरी ने कहा कि देश के अधिकांश लोग कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से जुडे़ हैं. हमें गर्व है कि स्वदेशी जागरण मंच अपनी विचारधारा की सरकार होते हुए भी भूमि अधिग्रहण बिल को किसान विरोधी बताया. इसमें मजदूरों, किसानों के हितों की सुरक्षित रखने के प्रावधानों को जोड़ने की मांग की. देश की विस्तृत समृद्धि के लिए कृषि क्षेत्र में 1 से 2 प्रतिशत वृद्धि करनी पड़ेगी, जिससे गांवों का विकास तेज हो.

मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक डॉ.भगवती प्रकाश शर्मा ने कहा कि विगत 24 वर्षों में आर्थिक सुधारों के कारण हमारा देश आयातित वस्तुओं के बाजार में बदल गया है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से हमारे देश के उत्पादक इकाई के दो तिहाई से अधिक अंश पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वामित्व हो गया है. टिस्को सीमेन्ट, एसीसी, गुजरात अम्बुजा, केमलिन, थम्पअप्स जैसे प्रसिद्ध ब्रान्डों पर विदेशी लोगों का अधिकार हो गया है. वर्तमान में कुल वैश्विक उत्पादन में भारत का अंश मात्र 2.04 प्रतिशत ही है. जबकि चीन का अंश 23 प्रतिशत हो गया है. वर्ष 1991 में चीन व भारत का अंश लगभग बराबर था. अतः स्वदेशी जागरण मंच आह्वान करता है कि विभिन्न क्षेत्रों के स्वदेशी उद्यम संगठित होकर अपने उद्योग सहायता संघों में बदलें. जिससे मेड बाई  इण्डिया अभियान की गति बढे.

द्वितीय सत्र – मंच के दक्षिण क्षेत्र के संयोजक कुमार स्वामी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन हर बीतते वर्ष के साथ बहुत तेजी से क्रूर एवं नुकसानदेह होता जा रहा है. वर्ष 2015 के अभिलेखों के अनुसार अभी तक का सबसे गर्म वर्ष था. यदि हम गत 150 वर्षों के सबसे गर्म 15 वर्षों की सूची बनाएं तो वे समस्त 15 वर्ष सन 2000 के बाद अर्थात 21वीं शताब्दी के ही वर्ष होंगे. यह तथ्य 21वीं शताब्दी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या की गंभीरता को दर्शाता है. भूमंडल के बढ़ते हुए तापमान से गंभीर मौसमी आपदाएं जैसे कि कुछ सीमित क्षेत्रों में तेज और भारी वर्षा, नवम्बर एवं दिसम्बर माह में चैन्नई और इसके आस पास के इलाके में देखी गयी एवं देश के बाकी हिस्सों में गंभीर सूखे की समस्या के प्रकोप में लगातार वृद्धि के आसार दिखायी दे रहे हैं. चैन्नई में आई बाढ़ ने प्रकृति के रोष के समक्ष मानव की लाचारी एवं मानवीय संस्थाओं की असफलता को हमें दृष्टिगत कराया है. अगर साल दर साल, इसी प्रकार से अनेक नगर एक साथ प्राकृतिक आपदा के कारण मुश्किल में आते हैं, तब कौन किसकी सहायता कर पायेगा? सम्पूर्ण विश्व अपनी ही गल्तियों का स्वयं ही शिकार बन चुका है.

आखिर इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? वर्तमान पश्चिमी विकास एवं जीवन शैली के मॉडल से प्रतीकात्मक एवं गड्डमड्ड समझौता विश्व को बिल्कुल भी बचाने नहीं जा रहा. हमको अधिक सौम्य और अधिक स्थायी तरीके से विकास एवं जीवनशैली के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है. विकास एवं जीवनशैली के टिकाऊपन का एक सजीव एवं प्रमाणित उदाहरण विकास का भारतीय मॉडल है, जिसे विकास एवं जीवनशैली का स्वदेशी मॉडल भी कहा जा सकता है. स्वदेशी मॉडल इस अर्थ में सम्पूर्णता लिए हुए है कि यह जीवन (धर्म एवं मौक्ष) में भौतिकता (अर्थ, काम) एवं आध्यात्मिकता को समान महत्व देता है. यह पृथ्वी मां को उसके चेतन एवं अचेतन, समस्त स्वरुपों में अत्यन्त सम्मान एवं श्रद्धा देता है.

तृतीय सत्र – मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक व अर्थशास्त्र के प्रो. अश्विनी महाजन ने कहा कि हमें गर्व है कि स्वदेशी कार्यकर्ता बिना किसी पार्टी पक्ष के सभी पर्यावरणीय विरोधी नीतियों का विरोध करता है. जीएम फसलों पर बोलते हुए कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित टेक्नीकल कमेटी ने बताया कि जीएम फसलें मानव व पर्यावरण के लिये ठीक नहीं है और इससे प्राप्त लाभ सन्दिग्ध है तो फिर क्यों केन्द्र सरकार इसके खुले परीक्षण को अनुमति देती है. विज्ञान को उस मार्ग पर बढ़ना होगा, जिस पर पर्यावरण का रक्षण भी हो. अतः मंच जीएम फूड का विरोध करता है और इससे जैव विविधता को प्रभावित करने वाला कारण बताता है.

हिंदुस्तान भगवान राम की धरती है : अजीज कुरैशी

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पैगंबर ने भी माना था हिंदुस्तान भगवान राम की धरती है : अजीज कुरैशी


News18 | Fri Jan 01, 2016 

http://hindi.news18.com/news/uttarakhand/former-governor-aziz-qureshi-says-india-is-a-land-of-ram-1209346.html


उत्तराखंड से मिजोरम स्थानांतरित राज्यपाल डॉक्‍टर अजीज कुरैशी एक बार फिर अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। अजीज कुरैशी ने हिन्‍दुस्‍तान को भगवान राम की धरती बताया है। कहा कि इस्लाम के पैगंबर ने भी हिंदुस्‍तान को भगवान राम की धरती बताया है। भगवान राम का वजूद मनवाने के लिए किसी के आदेश की जरूरत नहीं है। विश्व में वह बदनसीब व्यक्ति हैं जो भगवान राम के वजूद को नहीं मानते हैं।

राज्‍यपाल ने यहां तक कह डाला कि भगवान राम के आदर्शों को अपनाए बिना विश्‍व का कल्‍याण संभव नहीं है। महामहिम ने ये बातें हरिद्वार के प्रेमनगर आश्रम में आयोजित कार्यक्रम और उसके बाद राजभवन में पत्रकारों से बातचीत में कही।

अजीज कुरैशी ने कहा कि उत्तराखंड के लिए उनकी कई योजनाएं थीं, लेकिन उन योजनाओं को धरातल पर उतारने के ख्वाब पूरे नहीं हो सके। इस पर अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा कि वे मिजोरम में जाकर गाय, गंगा व हिमालय के लिए काम करेंगे।

राज्यपाल कुरैशी ने कहा कि चारधाम के विकास तथा इन चारों धामों को वेद धाम बनाने का उनका प्रमुख ख्वाब था। देव भूमि उत्तराखंड के इन धामों से ही गंगा यमुना निकल रही है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री में घंटियों की आवाज तथा शंख की गूंज गंगा यमुना की जलधारा में गीत संगीत घोल रही है। जल धारा की इसी आवाज से विश्व में मानवता, प्रेम, भाईचारे का संदेश पहुंच रहा है। यही संदेश चार वेद देते हैं। अगर वैदिक मान्यताओं पर चला जाए तो दुनिया में कहीं पर भी दंगे-फसाद न हों।

हर बारह साल में शिवलिंग पर गिरती है बिजली

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बिजली महादेव- कुल्लू -

हर बारह साल में शिवलिंग पर गिरती है बिजली

PHOTOS: Lightening breaks this Shivling into pieces every year
भारत में भगवन शिव के अनेक अद्भुत मंदिर है उन्हीं में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित  बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक सीधी चढ़ाई वाले ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है।

पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह साल में भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इस शिवलिंग पर हर बारह साल में बिजली क्यों गिरती है और इस जगह का नाम कुल्लू कैसे पड़ा इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है।

Bijli Mahdev - Kullu- History

रहता था कुलान्त राक्षस
कुल्लू घाटी के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां कुलान्त नामक दैत्य रहता था। दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घर धार से होता हुआ लाहौल स्पीति से मथाण गांव आ गया। दैत्य रूपी अजगर कुण्डली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीवजंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे। भगवान शिव कुलान्त के इस विचार से चिंतित हो गए।

Bijli Mahdev - Kullu- History
अजगर के कान में धीरे से बोले भगवान शिव
बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर को अपने विश्वास में लिया। शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है। इतना सुनते ही जैसे ही कुलान्त पीछे मुड़ा तभी शिव ने कुलान्त के सिर पर त्रिशूल वार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से कुलान्त मारा गया। कुलान्त के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया। उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा की पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलान्त से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है।

 Bijli Mahdev - Kullu- History

भगवान शिव ने इंद्र से कहा था इस स्थान पर गिराएं बिजली
कुलान्त दैत्य के मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां आकाशीय बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है।

बिजली शिवलिंग पर ही क्यों गिरती है
आकाशीय बिजली बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। भादों के महीने में यहां मेला-सा लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

Bijli Mahdev - Kullu- History
सर्दियों में भारी बर्फबारी
यह जगह समुद्र स्तर 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है। कुल्लू में भी महादेव प्रिय देवता हैं। कहीं वे सयाली महादेव हैं तो कहीं ब्राणी महादेव। कहीं वे जुवाणी महादेव हैं तो कहीं बिजली महादेव। बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है। ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है। हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।

संपूर्ण स्वतंत्रता, समता और बंधुता वाले समाज का निर्माण करना संघ का ध्येय – परमपूज्य डॉ. मोहन जी भागवत

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संपूर्ण स्वतंत्रता, समता और बंधुता वाले समाज का निर्माण करना संघ का ध्येय – परमपूज्य डॉ. मोहन जी भागवत

शिव शक्ति संगम पुणे में सरसंघचालक जी का उद्बोधन

पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परमपूज्य डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारी परंपरा शिवत्व की है, जिसे शक्ति का साथ मिले तो विश्व में हमें हमारी पहचान मिलेगी. चरित्र ही हमारी शक्ति है. शीलयुक्त शक्ति के बिना विश्व में कोई कीमत नहीं है. इस महत्तम उद्देश्य के लिए ही शिवशक्ति संगम अर्थात् सज्जनों की शक्ति के प्रदर्शन की आवश्यकता है. सरसंघचालक जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत की ओर से रविवार को पुणे के पास जांभे, मारुंजी एवं नेरे गांवों की सीमा पर आयोजित शिवशक्ति संगम के महासांघिक में संबोधित कर रहे थे. पश्चिम क्षेत्र संघचालक डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया, प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव, प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात मंच पर उपस्थित थे.

अपने लगभग 45 मि. के भाषण में सरसंघचालक जी सामाजिक परिस्थिति के बारे में बताते हुए संघ की स्थापना का महत्त्व तथा कार्य का विवेचन किया. उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के 125वें जयंति वर्ष में, स्त्री शिक्षा की शुरूआत करने वाली सावित्रीबाई फुले की जयंति के दिन पर विराट शिवशक्ति संगम प्रशंसास्पद है. शिवशक्ति कहने पर हमें छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मरण आता है. अपने स्थान पर उचित राज करने वाला यह पहला राजा था. सीमित राज्य में राष्ट्र का विचार करने वाला यह राजा था. धर्म का राज्य चले, यह सोचने वाले आदर्श हिंदवी स्वराज्य के शिवाजी संस्थापक थे. उनके द्वारा किया गया संगठन तत्व निष्ठा पर निर्भर है. इसी तत्व निष्ठा के कारण हमने भगवा ध्वज को गुरू माना है. निर्गुण निरामय के अलावा तत्व का आचरण संभव नहीं है. तत्वों में सद्गुण आवश्यक है. वह काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है. संघ के छह में से शिवराज्याभिषेक का अपवाद कर कोई उत्सव वैयक्तिक नहीं है. शिवाजी महाराज का स्मरण अर्थात् चरित्र, नीति का स्मरण है. महापुरूषों का स्मरण करते समय उन्होंने यह उद्योग कैसे किया, शक्ति कैसे उत्पन्न होती है, इसका स्मरण करना आवश्यक है. हमारी परंपरा शिवत्व की है. सत्य, शिव, सुंदरम हमारी संस्कृति है. समुद्र मंथन से जो हलाहल निर्माण हुआ, उसकी बाधा विश्व को ना हो इसलिए जिन्होंने प्राशन किया, वे नीलकंठ हमारे आराध्य दैवता हैं. उनके आदर्श की तरह हमारी यात्रा जारी है. शिवत्व की परंपरा शाश्वत अस्तित्व के तौर पर जानी जाती है. शिव को शक्ति का साथ मिलना चाहिए. शिव को शक्ति के सिवा समाज नहीं जानता. विश्व में शक्तिमान राष्ट्रों की बुराई पर चर्चा नहीं होती. वे हम चुपचाप सह लेते हैं. लेकिन अच्छे, परंतु शक्ति में कम राष्ट्रों की अच्छी बातों पर चर्चा नहीं होती. उन राष्ट्रों की अच्छी सभ्यता को बहुमान नहीं मिलता.
उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के जापान में अनुभव का वर्णन करते कहा कि उस व्याख्यान में कई छात्र नहीं आए, क्योंकि गुलाम राष्ट्र के नेता का भाषण हम क्यों सुनें, यह छात्रों का सवाल था. हमारे पास सत्य होने के बाद भी हम उसे बता नहीं सकते थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, युद्ध में विजय के बाद और अणु परीक्षण के बाद हमारी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी. देश की शक्ति बढ़ती है, तब सत्य की भी प्रतिष्ठा बढ़ती है. इसके लिए शक्ति की नितांत आवश्यकता है. शक्ति का अर्थ मान्यता है. शक्तिसंपन्न राजा भी शीलसंपन्न विद्वानों के सामने नतमस्तक होते हैं. यह हमारी परंपरा है. हमारे यहां त्याग से, चरित्र से शक्ति जानी जाती है. शक्ति का विचार शील से आता है. इसके लिए शिलसंपन्न शक्ति की आवश्यकता है और शीलसंपन्न शक्ति सत्याचरण से बनती है.
डॉ. भागवत जी ने कहा कि शीलसंपन्न विश्व में जीवों के विभिन्न प्रकार मिलते है. अस्तित्व की एक ही बात है. विभिन्नता से एकता स्वीकारने के लिए समदृष्टी से देखने की आवश्यकता है. सत्य में भेद के लिए, विषमता के लिए कोई स्थान नहीं है. सबको हमारे जैसा देखना चाहिए. चरित्र से ही व्यक्तिगत और सामाजिक शक्ति बनती है. भेदों से ग्रस्त समाज की प्रगति नहीं होती. सुगठित, एक दूसरे की चिंता करने वाला समाज हो, तभी समाज का हित साध्य होता है. उन्होंने इजराइल के स्वाभिमान एवं विकास का उदाहरण दिया. इस देश द्वारा 30 वर्षों में की हुई प्रगति का मर्म प्रकट किया. संकल्पबद्ध समाज सत्य की नींव पर खड़ा हो, तो क्या होता है, इस बात का यह देश उदाहरण है. सभी लोग मेरे है, ऐसा कहने पर मनुष्य धर्म से खड़ा रहता है. धर्म यानि जोड़ने वाला, उन्नति करने वाला, मूल्यों का आचरण करना यानि धर्म, यह आचरण सत्यनिष्ठता से आता है.
संविधान लिखते समय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि राजतिक एकता आई है, किंतु आर्थिक और सामाजिक एकता के बिना वह टिक नहीं सकती. भागवत जी ने कहा कि हम कई युद्ध दुश्मन के बल के कारण नहीं, बल्कि आपसी भेद के कारण हार गए. भेद भूलाकर एक साथ खड़े न हो तो संविधान भी हमारी रक्षा नहीं कर सकता. व्यक्तिगत और सामाजिक चरित्रनिष्ठ समाज बनना चाहिए. सामाजिक भेदभावों पर कानून में प्रावधान कर समरसता नहीं हो सकती. समरसता आचरण का संस्कार करना पड़ता है, जिसके लिए समरसता का संस्कार करने की आवश्यकता है. तत्व छोड़कर राजनीति, श्रम के सिवा संपत्ति, नीति छोड़कर व्यापार, विवेक शून्य उपभोग, चारित्र्यहीन ज्ञान, मानवता के सिवा विज्ञान और त्याग के सिवा पूजा सामाजिक अपराध है, ऐसा महात्मा गांधी कहते थे. इन अपराधों का निराकरण करना ही संपूर्ण स्वराज्य, यह उनका विचार था. इसलिए उनके विचारों की संपूर्ण स्वतंत्रता मिलना अभी भी बाकी है. इस तरह की संपूर्ण स्वतंत्रता, समता और बंधुता वाले समाज का निर्माण करना संघ का ध्येय है और इसके लिए संघ की स्थापना हुई है.
उन्होंने कहा कि शिवत्व और शक्ति की आराधना होने के लिए प. पू. डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना की. राष्ट्रोद्धार के लिए कई उपक्रमों में सहभागी होकर अपना कर्तव्य निभाया. संघ की स्थापना से पूर्व और बाद भी उन्होंने सभी आंदोलनों में सहभागी होकर कारावास भी भुगता. सभी प्रकार की विचारधाराओं से उनका परिचय था. गुणसंपन्न समाज की निर्मिती के अलावा विकल्प नहीं है, यह उन्होंने जान लिया था. इसके लिए उन्होंने उपाय खोजा था. सबको एक साथ बांधने वाला धागा हिंदुत्व है, यह उन्होंने जान लिया था. सबके लिए कृतज्ञता व्यक्त करने वाला मूल्य उन्होंने बताया था. मातृभूमि के लिए आस्था यह हिंदू समाज का स्वभाव है. परंपरा से आई हुई यह आस्था है. इसके आधार पर संस्कृति बढ़ती है, पुरखों का गौरव होता है. आज विश्व को इसकी आवश्यकता है. भारतीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने हेतु संगठन की आवश्यकता है. राष्ट्रीय चरित्र वाले समाज निर्माण करना और देश को परम वैभव प्राप्त करवाना, यह संघ का कार्य है. किसी भी प्राकृतिक विपत्ति के समय आगे आने वाला स्वयंसेवक यह संघ की पहचान है. अपने हित का विचार छोड़कर समाज के तौर पर निरालस, निस्वार्थ सेवा करने वाला अर्थात् संघ स्वयंसेवक. यह गर्व का नहीं, अपितु 90 वर्षों से संघ जो कर रहा है, उस प्रयोग का फल है. नेता, सरकार पर देश नहीं बढ़ता, बल्कि चरित्रसंपन्न समाज पर वह टिका रहता है. चरित्रसंपन्न व्यक्ति के वर्तन से ही समाज का परिवर्तन होता है. शिव-शक्ति संगम अर्थात् वैभव प्रदर्शन नहीं है, बल्कि समाज परिवर्तन के लिए सही रास्ता है. देश प्रतिष्ठित, सुरक्षित न हो तो व्यक्तिगत सुख की कीमत नहीं है. सभी जिम्मेदारियां संभालकर समाज सेवा करने वाली शक्ति अर्थात् संघ का कार्य. समाजहित के इस कार्य में सब सक्रिय हों.

प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात ने प्रास्ताविक में संघ के कार्य की जानकारी दी. सूखाग्रस्तों के लिए संघ, जनकल्याण समिति को आर्थिक सहायता करने का आह्वान किया. सूखा निवारण के कार्य में प्रत्यक्ष सहभागी होने के लिए 022-33814111 पर मिस कॉल करने का आह्वान किया. सुनील देसाई तथा संदीप जाधव ने सूत्रसंचालन किया.

सभी क्षेत्रों के गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति
शिवशक्ति संगम के लिए समाज के विभिन्न घटकों से गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही. तीन बजे के आसपास विशेष अतिथि कार्यक्रमस्थल पर आना शुरू हुए. विभिन्न पीठों के धर्माचार्य़, राजनैतिक नेता, कला, सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गज और उद्योजक बड़ी संख्या में उपस्थित थे, यह कार्यक्रम का एक आकर्षण था. विशेष अतिथियों के लिए स्वतंत्र चार एवं धर्माचार्यों के लिए अलग प्रवेशद्वार एवं प्रबंध किए गए थे. इस प्रवेशद्वार पर संघ के कार्य एवं सेवाकार्यों की जानकारी प्रदान करने वाली सीडी, तिलगुल बड़ी, पानी की बोतल और शरबत का पैक देकर आमंत्रितों का स्वागत किया गया. इन पांचों प्रवेशद्वारों पर संघ परिवार के विभिन्न संस्थाओं से 140 से अधिक पदाधिकारी – स्वागत के लिए उपस्थित थे. इनमें सभी महिला पदाधिकारियों ने एक ही रंग की साड़ियां पहनी थीं.

मणिशंकर , खुर्शीद , पाकिस्‍तान ?

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मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान में भारत को किया शर्मसार, बोले भारत-पाक संबंधों में मोदी हैं बाधा
Tuesday, November 17, 2015
नई दिल्ली : पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के उस बयान ने विवाद को हवा दे दी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के एक खबरिया चैनल पर परिचर्चा के दौरान कथित रूप से कहा कि यदि भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता बहाल करनी है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाना पड़ेगा। हालांकि अय्यर ने इससे इंकार किया है। अय्यर का यह बयान भारत को विदेशी धरती पर शर्मसार करने वाला माना जा रहा है। भाजपा ने इसे देश का अपमान बताया है।


कांग्रेस नेता के बयान पर भाजपा और राजद ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं उपाध्यक्ष राहुल गांधी से इस पर सफाई मांगी है।

हालांकि कांग्रेस ने कहा कि भाजपा का आरोप बिल्कुल बकवास है और अय्यर ने उसे यह बता दिया है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था।

जब दुनिया टीवी के प्रस्तोता ने पूछा कि दोनों देशों के बीच गतिरोध दूर करने के लिए क्या किया जाए तो अय्यर ने जवाब दिया, ‘पहली और सबसे बड़ी चीज है कि मोदी को हटाया जाए। केवल तभी वार्ता आगे बढ़ सकती है। हमें और चार साल इंतजार करना होगा। वे (पैनल में शामिल लोग) भले ही आशावादी हैं कि जब मोदी साहब (सत्ता में) हैं, तब हम आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता।’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘हमें (कांग्रेस को) सत्ता में वापस लाइए और उन्हें हटाइए। (संबंध बेहतर बनाने के लिए) और कोई रास्ता नहीं है। हम उन्हें हटा देंगे लेकिन तबतक आपको (पाकिस्तान को) इंतजार करना होगा।’’  जब इस मुद्दे (अय्यर के बयान) पर कांग्रेस नेता टॉम वडक्कन से प्रतिक्रिया मांगी गयी तो उन्होंने कहा, ‘‘यह बिल्कुल बकवास है। मेरे पास श्री अय्यर का लिखा एक पत्र है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार किया है कि उन्होंने ऐसा कुछ कहा। अतएव इससे दूरी बनाने का सवाल ही नहीं है।’’ भाजपा ने इसे ‘बेहद गंभीर, चिंताजनक और पूर्णत: गलत’ कहा।

भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा, ‘‘जो सबसे बड़ी चिंताजनक बात है वह यह है कि दो वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं- पहले पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने और अब मणिशंकर अय्यर ने एक सप्ताह के अंतराल पर एक ऐसे देश में ऐसा बयान दिया है, जो भारत विरोधी है और जिसने भारत में आतंक भी फैलाया है।’’ कोहली ने कहा, ‘‘सोनिया और राहुल गांधी को इस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए और देश को इस मुद्दे पर अपने रुख के बारे में बताना चाहिए।’’

अय्यर के बयान पर राजद के मनोज झा ने कहा कि कोई ‘कम अक्ल’ आदमी भी इस बयान की निंदा ही करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘एक किंडरगार्टेन का बच्चा भी ऐसा बयान नहीं देगा।’’ शुक्रवार को 129 लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी हमले पर अय्यर ने कहा था, ‘‘पश्चिमी देशों में जो इस्लाम विरोधी भावना फैल रही है, उस पर तत्काल रोक लगाना चाहिए। फ्रांस में रह रहे मुसलमानों को यह आश्वासन दिया जाना चाहिए कि वे भी देश के नागरिक हैं।’’

पेरिस आतंकवादी हमले पर अफसोस प्रकट करने के साथ अय्यर ने कहा था, ‘‘हमें यह भी सोचना चाहिए कि यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई।’’ केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा है, ‘‘मैं महसूस करती हूं कि कांग्रेस पार्टी को विश्वास हो चला है कि वह देश के 125 करोड़ लोगों के बीच अपना विश्वास खो बैठी है अतएव, वे समर्थन के लिए अपने पड़ोसियों से संपर्क करने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। मुझे निराशा हुई है और मैं इसकी आलोचना करती हूं।’’ उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात पर बड़ी दया आती है कि अय्यर अपनी याद्दाश्त खो बैठे हैं क्योंकि जहां तक उन्हें याद है, यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ही थे जिन्होंने सबसे पहले पाकिस्तान की तरफ दोस्ताी का हाथ बढ़ाया था।

नजमा हेपतुल्ला ने कहा, ‘‘अटल बिहारी वाजपेयी ही दोस्ती को आगे बढ़ाने बस से पाकिस्तान गए थे। इसके बदले में हमें कारगिल की लड़ाई का सामना करना जिसकी अय्यर प्रशंसा कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि वह मुम्बई आतंकवादी हमले की भी प्रशंसा करेंगे, जिसमें लोग मारे गए थे।’’
भाषा First Published: Tuesday, November 17, 2015
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पाकिस्तान में बैठकर कांग्रेस नेता अय्यर का ना'पाक'बयान!
Tuesday, 17 November 2015
नई दिल्ली: कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में अक्सर बयान देते रहते हैं, लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी के विरोध में बयान देकर वो विवादों में आ गए हैं . पाकिस्तानी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में अय्यर ने कहा कि मोदी को हटाए बिना पाकिस्तान से बातचीत नहीं संभव है .
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल दुनिया टीवी को इंटरव्यू देने पर बवाल मच गया है. दुनिया टीवी से अय्यर भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत में पीएम नरेंद्र मोदी को कथित तौर पर रुकावट करार दिया है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर पाकिस्तानी न्यूज चैनल दुनिया टीवी को दिए इंटरव्यू को लेकर फंस गए हैं . इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से बातचीत तभी संभव है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाया जाए .
न्यूज चैनल के एंकर ने मणिशंकर अय्यर से भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर सवाल पूछा था.
एंकर- भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद हल करने के लिए आपकी नजर में तीन प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?
मणिशंकर अय्यर – पहले, आपको मोदी को हटाना होगा . नहीं तो दोनों देशों में बातचीत आगे नहीं बढ़ेगी .
एंकर  – लेकिन ये आप किससे कह रहे हैं? आप ISI से मोदी को हटाने को कह रहे हैं?
मणिशंकर अय्यर  – नहीं नहीं . हमें इसके लिए 4 साल का इंतजार करना होगा . ये लोग मोदी को लेकर बहुत आशावादी हैं. वो सोचते हैं कि मोदी के आने से बातचीत बढ़ेगी, लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता.
मणिशंकर के इस बयान को लेकर बीजेपी नेताओं ने उन पर हमला बोला है . केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता नजमा हेपतुल्लाह ने तो यहां तक कह दिया कि अय्यर पाकिस्तान में जाकर मुंबई हमलों की तारीफ भी कर देंगे.
कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर के बयान को लेकर उल्टा बीजेपी पर निशाना साधा है . कांग्रेस ने अय्यर के बयान को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया है .
मणिशंकर अय्यर ने लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को चाय वाला कहा था . हालांकि इस मुद्दे को बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने जमकर भुनाया था .
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मोदी सरकार की पाक नीति दुविधाग्रस्त: मणि शंकर
 26 Dec 15
नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रत्याशित पाकिस्तान यात्रा से राजनीतिक गलियारे में मची हलचल के बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने कहा है कि पाकिस्तान को लेकर मोदी सरकार की नीति दुविधापूर्ण है। अय्यर ने कहा,“कुछ महीने पहले तक प्रधानमंत्री पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ हाथ भी नहीं मिलाना चाहते थे। अचानक क्या बदल गया। दुविधापूर्ण नीति। ” पार्टी के नेता मनीष तिवारी ने कहा,“ प्रधानमंत्री के काबुल से लाहौर जाने से उन अफगानी सैनिकों को गलत संदेश जाता है, जो पाकिस्तान समर्थित तालिबान के खिलाफ लड़ाई कर रहे हैं।” कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा के विरोध में कल सख्त टिप्पणी करते हुए इसे पूर्वनियोजित निजी एवं व्यापारिक रुझान से की गयी यात्रा करार दिया था।

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इस्‍लामाबाद में खुर्शीद ने मोदी को कोसा, पाकिस्‍तान की तारीफ में कसीदे गढ़े

Last Updated: Saturday, November 14, 2015 - 10:37
इस्‍लामाबाद में खुर्शीद ने मोदी को कोसा, पाकिस्‍तान की तारीफ में कसीदे गढ़े
ज़ी मीडिया ब्यूरो
इस्लामाबाद : भारत के पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि भारत ने पाकिस्‍तान के अमन के पैगाम का उचित जवाब नहीं दिया। पीएम मोदी अभी नए हैं और स्‍टेट्समैन कैसे बना जाता है, यह उनको सीखना है।'
कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता सलमान खुर्शीद पाकिस्‍तान की यात्रा पर हैं। इस दौरान उन्‍होंने इस्‍लामाबाद के जिन्ना इंस्टीट्यूट में दिए भाषण में कहा, ‘भारत सरकार ने दक्षिण एशिया में शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्‍तान के अमन के पैगाम का उचित जवाब नहीं दिया।’
पाकिस्‍तानी अखबार ‘द एक्‍सप्रेस ट्रिब्‍यून’ ने खुर्शीद के हवाले से लिखा है, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी नए हैं और स्‍टेट्समैन कैसे बना जाता है, यह उनको सीखना है। 1947 के बाद से अब तक दुनिया कई बड़ी समस्‍याओं का समाधान निकाल चुकी है, लेकिन भारत-पाकिस्‍तान आज भी वहीं खड़े हैं।’
असहिष्णुता के मुद्दे पर खुर्शीद ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी को उन लोगों से बात करने की आदत नहीं है, जो उनसे अलग विचार रखते हैं।’ खुर्शीद ने कबाइली इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्‍तान की सराहना भी की। जिन्ना इंस्टीट्यूट हर साल अलग-अलग विषयों पर सेमिनार कराता है। इस बार भारत से सलमान खुर्शीद को बुलाया गया था।
सलमान खुर्शीद के बयान को पाकिस्‍तान के लगभग सभी अखबारों ने जगह दी है। पाकिस्‍तानी अखबार ‘डेली टाइम्‍स’ ने भी सलमान खुर्शीद के बयान को प्रमुखता से छापा है। इसमें खुर्शीद के हवाले से लिखा गया है कि भारत की नई सरकार पाकिस्‍तान नीति को लेकर असमंजस में है। मोदी सरकार उम्‍मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही है।
खुर्शीद ने कहा कि पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ की यह दूर की सोच थी कि वह मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान से दिल्ली आए थे। नवाज का यह बेबाक फैसला उनकी हिम्मत को दिखाता है, लेकिन मोदी सरकार ने उन्‍हें समझा नहीं।  ज़ी मीडिया ब्‍यूरो

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