Quantcast
Channel: ARVIND SISODIA
Viewing all 2976 articles
Browse latest View live

संघ समाज में समरसता का भाव जगाने के लिए प्रयासरत – सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी

$
0
0



रांची . अखिल भारतीय कार्यकारी  मंडल की बैठक का विधिवत् उद्घाटन रांची के सरला बिरला स्कूल में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत जी और सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने किया.


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने प्रेस वार्ता में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के संबंध में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि संघ की बैठक वर्ष में दो बार होती है, प्रतिनिधि सभा की बैठक मार्च में, जबकि कार्यकारी मंडल की बैठक विजयादशमी एवं दीपावली के बीच होती है. सामान्यतः इन बैठकों में संघ कार्य के विस्तार, गुणात्मकता की दृष्टि से प्रगति और समाज राष्ट्र जीवन में संघ कार्य के प्रभाव पर चर्चा एवं कार्यनीति की कई बातें तय करते हैं. समाज एवं राष्ट्रजीवन से संबंधित कुछ विषयों पर हिन्दू समाज के विचार एवं मन को व्यक्त करने वाले संघ की नीति और विचार से सुसम्बद्ध प्रस्ताव भी बैठक में पारित करते हैं.

सह सरकार्यवाह जी ने बताया कि 30 अक्टूबर से प्रारंभ तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में 400 के लगभग संघ के अधिकारी भाग ले रहे हैं. इस बैठक में जनसंख्या असंतुलन पर हम लोग चर्चा करने वाले हैं. संघ के विस्तार का कार्य तो प्रतिदिन चलता रहता है, परंतु समय समय पर शाखाओं की संख्या बढ़ाने के लिए विशेष कार्य करते हैं. वर्तमान में देश के सभी खण्डों (प्रखण्डों) में संघ का कार्य चल रहा है. अगले तीन वर्षों में देश के सभी मण्डलों तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अभी देश के 32000 स्थानों पर 52000 शाखाएं चल रही हैं. रांची में 75 शाखाएं चल रही है. इसके साथ ही 13620 साप्ताहिक मिलन केन्द्र एवं 8000 स्थानों पर संघ मंडली चल रही है. शाखा में तरूणों की संख्या बढ़ी है, अभी 66 प्रतिशत शाखाएं छात्रों की है, 91 प्रतिशत शाखा 40 वर्ष से कम आयु के तरूणों की है. नए लोग संघ से जुड़ने के लिए उत्साहित हैं.

दत्तात्रेय जी ने कहा कि संघ के विभिन्न आयामों के माध्यम से भी लोग जुड़ रहे हैं. संघ का काम व्यक्ति निर्माण है, यह काम प्रत्येक दिन लगने वाली शाखा पर होता है. देश में 150 ग्राम विकास के केन्द्र चल रहे हैं. इसके प्रभाव से लोगों ने ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर जाना कम कर दिया है. संघ की ओर से गौ सेवा, सामाजिक समरसता व कुटुम्ब प्रबोधन के कार्य चलाए जा रहे हैं. संघ चाहता है कि समाज में समरसता का भाव बना रहे. प्रत्येक गांव एवं शहर में सभी जातियों के लिए एक श्मशान घाट हो, मंदिरों में सभी लोगों का प्रवेश हो, तालाब एवं कुआं में सभी जल ले सकें. इसका प्रभाव भी दिख रहा है. कुटुम्ब प्रबोधन के माध्यम से परिवारों में आत्मीयता हो, बच्चों में संस्कार आए, प्रत्येक घर में सेवा के भाव रहे इसका प्रयास चल रहा है.

शांति, एकता और सद्भाव विकास की पहली शर्त : नरेंद्र मोदी

$
0
0


शांति, एकता और सद्भाव विकास की पहली शर्त : नरेंद्र मोदी

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय एकता की खातिर सरदार वल्लभ भाई पटेल के कार्यों का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि अगर भारत को आगे बढना है और विकास की नयी ऊंचाइयां हासिल करनी है तो इसके लिए एकता, शांति और सद्भाव पहली शर्त है. दादरी में पिछले दिनों एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या किये जाने, गौमांस विवाद और अन्य घटनाओं की पृष्ठभूमि में कथित तौर पर असहिष्णुता में वृद्धि को लेकर कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों द्वारा विरोध जाहिर किये जाने की पृष्ठभूमि में मोदी ने देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल की 140वीं जयंती पर अपने संबोधन में कहा ‘एकता हमारी सबसे बडी ताकत है. हमें एकता, शांति और सद्भाव के मंत्र के साथ आगे बढना होगा.'

प्रधानमंत्री ने इस मौके पर वंशवाद की राजनीति पर प्रहार करते हुए कहा कि यह हमारी राजनीति का विष बन गयी है. उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में आगे नहीं बढाया. सरदार पटेल की जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जा रहा है और इस मौके पर प्रधानमंत्री ने ‘एकता के लिए दौड' (रन फॉर यूनिटी) को झंडी दिखा कर रवाना किया. उन्होंने लोगों से पटेल का यह संदेश प्रचारित करने को कहा कि अपनी एकता की खातिर देश कुछ भी बलिदान दे सकता है.

प्रधानमंत्री ने कहा ‘अगर देश को आगे बढना है और विकास की नयी ऊंचाइयां हासिल करनी है तो पहली गारंटी यह है. हमारी भाषा कोई भी हो, हमारी सोच कोई भी हो और कश्मीर से कन्याकुमारी तथा अटक से कटक तक हमारी प्रेरणा कोई भी हो. अगर हमारा लक्ष्य भारत माता को दुनिया में नयी ऊंचाइयों तक ले जाना है तो इसके लिए पहली शर्त एकता, शांति और सद्भाव है.'उन्होंने कहा ‘अगर 125 करोड भारतीय एकता, शांति और सद्भाव के मंत्र के साथ कंधे से कंधा मिला कर एक कदम बढाएं तो देश एक बार में 125 करोड कदम आगे बढ जाएगा.'

मोदी ने कहा ‘एकता के धागे में देश का बंधा होना हमारी ताकत है और एकता की खातिर कुछ भी बलिदान किया जा सकता है और यही सरदार साहब का संदेश है.'उन्होंने कहा कि सरदार पटेल का जीवन देश की एकता के लिए समर्पित था. उन्होंने यह भी घोषणा की कि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत'योजना जल्द ही शुरू की जाएगी जिसके तहत कोई भी राज्य हर साल किसी दूसरे राज्य को चुन कर उसकी भाषा और संस्कृति को बढावा दे सकेगा. मोदी ने कहा ‘मैंने एक छोटी समिति बनायी है जो इसके तौर तरीकों पर काम कर रही है.'

अपने संबोधन की शुरुआत में मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी उनकी पुण्यतिथि पर याद किया. उन्होंने कहा कि आज ही के दिन उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया था जिसे भुलाया नहीं जा सकता. प्रधानमंत्री ने कहा कि महान लोगों के कार्यों का मूल्यांकन करना हमारा काम नहीं है बल्कि हमें उनके योगदान को याद करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि आने वाली पीढियों के कल्याण के लिए उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि दार्शनिक एवं न्यायविद चाणक्य के बाद सरदार पटेल को देश की अखंडता की खातिर सतत काम करने का श्रेय दिया जा सकता है.

राजपथ पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे मोदी ने कहा कि कई लोग महिलाओं को आरक्षण देने का श्रेय ले सकते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि 1930 के दशक में जब सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के महापौर थे तब उन्होंने महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के प्रयास के तहत उनके लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया था. इस अवसर पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह, शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू, दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग और राज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मंच पर मौजूद थे.

पटेल के योगदान को याद करते हुए मोदी ने कहा कि जब अंग्रेज विभाजन का खेल खेल रहे थे तब आजाद भारत के पहले गृह मंत्री ने रियासतों का भारत संघ में विलय करवाकर राष्ट्रीय एकता की खातिर अथक परिश्रम किया था. मोदी ने कहा ‘उन्हें लौह पुरुष इसलिए नहीं कहा जाता था कि किसी ने उन्हें इसका सर्टिफिकेट दिया था. वह लौह पुरुष इसलिए कहलाते थे क्योंकि उन्होंने कडे फैसले किये थे.'प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार पटेल ने हमें ‘एक भारत'देने के लिए काम किया था और अब इसे ‘श्रेष्ठ भारत'में बदलने की जिम्मेदारी हमारी है.

उन्होंने कहा कि 1920 के दशक में अहमदाबाद के महापौर रहते हुए पटेल ने स्वच्छता के लिए अभियान चलाया था जो 222 दिन तक चला और इसकी तारीफ महात्मा गांधी ने की, जो खुद बेहद सफाई पसंद थे. मोदी ने लोगों को राष्ट्रीय एकता और देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शपथ भी दिलायी. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि प्राचीन ग्रंथों में भी राष्ट्रीय एकता की अवधारणा मौजूद है. उन्होंने कहा कि भारत की सीमाएं बहुत पहले परिभाषित की गयी थीं लेकिन सरदार पटेल ने उन्हें निश्चित आकार देने के लिए काम किया.

सरदार पटेल को आधुनिक भारत का निर्माता बताते हुए सिंह ने कहा कि पटेल ने देश की एकता सुनिश्चित की जिससे देश को समृद्ध होने में मदद मिली. ‘अब हमें इसे बनाये रखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए.'नायडू ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि पटेल को भारतीय इतिहास में वह जगह नहीं मिली जिसके वह हकदार थे, ‘कारण चाहे जो भी रहे हों.'उन्होंने कहा ‘अब हमें उनके एकता और अखंडता के दर्शन को बनाये रखने के लिए काम करना चाहिए.' 

1984 : सिख नरसंहार : कांग्रेसी अन्याय की पराकाष्ठा

$
0
0
शर्म? माफी? शर्म से झुका सर, मगर किसका?
कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी परिवार को माफी मांगनी चाहिए थी,
पर बेचारे मनमोहन सिंह को सामने कर दिया

- तरुण विजय

अगर लीपापोती की कोशिश नहीं होती तो नानावती आयोग की लचर और बेजान रपट पर इतनी बहस नहीं छिड़ती। 8 मई, 2000 को गठित नानावती आयोग ने 4 साल 9 महीने की कसरत के बाद 9 फरवरी, 2005 को केन्द्र सरकार को अपनी रपट सौंपी थी। पर नानावती रपट पर सरकार ने जो "कार्रवाई की गई"वाला काला अध्याय जोड़ा उसने सोनिया, सुरजीत, मनमोहन सिंह सरकार के समर्थकों को भी हिला दिया। सन् 1984 में 3000 सिखों का दिल्ली में कत्लेआम हुआ था। उस समय के तमाम कांग्रेसी नेता बेगुनाह सिख स्त्री-पुरुषों और बच्चों को मारने के वहशियाना उन्माद में सबसे आगे थे। दिल्ली की जनता ने सिखों पर हमला नहीं किया, यह बात ध्यान देने योग्य है। केवल और केवल कांग्रेसी नेताओं और उनके पिछलग्गुओं ने सिखों को मारा। और इतनी बेदर्दी से मारा कि इतिहास में उसकी मिसाल केवल औरंगजेब और अब्दाली के समय में ही मिल सकती है। लेकिन रोचक बात यह है कि राजीव गांधी जैसे प्रधानमंत्री और नरसिंहराव जैसे गृहमंत्री होते हुए भी अपराधी पकड़े नहीं गए। राजीव गांधी ने तो बयान भी दिया था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। उनकी तरफ से तो ऐसा लगा जैसे कोई भूचाल आया था, जिसमें सिख समा गए। हरकिशनलाल भगत, जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार और धर्मदास शास्त्री तो मानो "खुदाई फरिश्ते"थे, जो सिखों के घावों पर मरहम लगाने के लिए बड़ा कष्ट और बलिदान सहते हुए किसी बाहरी लोक से दिल्ली की धरती पर उतरे। इनको सजा देने की बात सोची ही कैसे जा सकती है?

विडम्बना यह है कि जिस समय भारत का राष्ट्रपति एक सिख था उस समय सिखों का नरसंहार हुआ और अब जिस समय भारत का प्रधानमंत्री एक सिख है, उस समय उसी के माध्यम से सिखों के कातिलों को बचाने का काम किया जा रहा है। 1984 के दंगों के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने कांग्रेसी वहशीपन और पुलिस संलिप्तता की परवाह न करते हुए सिख परिवारों को बचाया था, जिसके बारे में उस समय खुशवंत सिंह ने भी लिखा था। अब वक्त आ गया है देशभक्ति के साथ खड़े होते हुए अपने ही भाइयों के संहार पर खुशी मनाने वाले नेताओं और उन्हें बचाने में जुटे कथित सेकुलर तत्वों के विरुद्ध संघर्ष का।

नानावती आयोग की रपट पर भी राजनीति खेली जा रही है। कांग्रेसी कहते घूम रहे हैं कि आज नानावती ने 84 के दंगों पर रपट दी है, कल वे गुजरात के दंगों पर रपट देने वाले हैं। अगर इस बार जगदीश टाइटलर का इस्तीफा मांगा गया है तो गुजरात के बारे में नानावती की रपट ऐसी होगी कि नरेन्द्र मोदी को भी इस्तीफा देना ही पड़ेगा। अगर इस तरह का कोई तालमेल है तो हमें नहीं मालूम। यह अफवाह भी हो सकती है। लेकिन यह अंतर ध्यान में रखना होगा कि दिल्ली में सिख विरोधी दंगा एक पार्टी के नेताओं की अगुवाई में किया गया, योजनाबद्ध नरसंहार था।

नानावती आयोग की रपट पर विपक्ष द्वारा काम रोको प्रस्ताव लाए जाने के बाद राज्यसभा में चर्चा में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि इस घटना के लिए उनका सर न केवल सिख समुदाय बल्कि पूरे राष्ट्र के सामने शर्म से झुक गया है। प्रधानमंत्री ने श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या को शर्मनाक राष्ट्रीय हादसा बताते हुए उसके बाद देश में हुए घटनाक्रम को भी उतना ही शर्मनाक बताया। उन्होंने सिखविरोधी दंगों के लिए क्षमायाचना की। प्रधानमंत्री ने सदन को भरोसा दिलाया कि जिन नेताओं और पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर रपट में प्रतिकूल टिप्पणी की गई है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। डा. सिंह ने कहा कि रपट में नाम आने पर एक मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कहा कि हम सभी को आत्मनिरीक्षण करके ऐसे कदम उठाने चाहिए कि इस तरह के हादसे दोबारा न हों। प्रधानमंत्री ने पीड़ितों के पुनर्वास के लिए हरसंभव सहायता देने की घोषणा करते हुए कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं होगा।

कांग्रेस के अजीब ढंग हैं। सिख नरसंहार के समय ज्ञानी जैल सिंह का मुखौटा तैयार कर दिया था और अब जब माफी मांगने की बात आई तो सरदार मनमोहन सिंह को सामने खड़ा कर दिया, जबकि उनकी इस पूरे कांड में कोई भूमिका भी नहीं थी। वे तो वैसे ही गांधी परिवार की रणनीतियों से एकदम अलग-थलग हैं और पिछले दिनों समाचार पत्रों में छपा भी था कि उनके और सोनिया गांधी के मध्य मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। कांग्रेस ने डा. मनमोहन सिंह को सामने खड़ा करके उनसे क्षमायाचना के कृत्य द्वारा फिर एक बार सिखों के घावों पर नमक छिड़का है। राज्यसभा में मनमोहन सिंह की क्षमायाचना और वक्तव्य से उनका अपना कद बड़ा हुआ है इसमें कोई संदेह नहीं। सिखों के नरसंहार संबंधी उस घटना से सभी आहत हैं और यह मामला क्षुद्र राजनीति से ऊपर ले जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेस इसे अपना घरेलू दरबारी राजनीति का एक घृणित उपकरण बनाने पर तुली है। वास्तव में अगर मनमोहन सिंह को माफी मांगनी ही है तो देश की जनता, विशेषकर सिखों के साथ रा.स्व.संघ से भी माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि डा. सिंह ने 1999 में रा. स्व.संघ पर सिख विरोधी दंगे भड़काने का आरोप लगाया था और आरोप के बाद मनमोहन सिंह चुनाव हार गए थे।

------------

सिखों का नरसंहार 1984
यदि आप ८४ के नरसंहार को भूलते है,
........ तो भारत विरोधी राक्षसी प्रवृत्ति को भूलते हैं
- जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा
३१ अक्टूबर १९८४
९.२० बजे प्रातः         प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को उसके दो सिख अंगरक्षकों ने निवास स्थान पर मार डाला गया। उन्हें ऑल इण्डिया मेडिकल हॉस्पीटल ले जाया गया।
११.०० बजे प्रातः      ऑल इण्डिया रेडियों की घोषणा।
                                 प्रधानमंत्री को घायल बताया।
२.०० बजे दोपहर        अधिकारिक रूप से मृत्यु की पुष्टि नहीं। बी.बी.सी. ने मृत्यु की बात कही।
४.०० बजे दोपहर        राजीव गांधी पश्चिम बंगाल से वापस आए। एयरपोर्ट से सीधे ऑल इण्डिया मेडिकल हास्पीटल गए। सिखों के विरुद्ध कुछ छुटपुट घटनाओं के समाचार।
५.३० बजे शाम      ऑल इण्डिया मेडिकल हॉस्पीटल पहुंचते ही राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के काफिले पर पत्थर फैंके गए।
७.०० बजे शाम      दंगाइयों की संगठित भीड़ ने सिखों के विरुद्ध हिंसा की। कांग्रेस  पार्षद अर्जुनदास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में भीड़ जुटी। सिखों के विरुद्ध भड़काऊ भाषण दिए गए। पृथ्वीराज रोड पर सिखों के स्कूटर व कारों को आग के हवाले कर दिया गया। एक दर्जन सिखों का कत्ल।


१०.०० बजे रात   राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वरिष्ठ वकील व प्रतिपक्ष के एक नेता राम जेठमलानी ने गृहमंत्री पी.वी. नरसिम्हाराव से शांति बनाने की अपील की। दिल्ली के गवर्नर पी.जी. गावल और पुलिस  कमीश्नर एस.सी. टंडन ने नरसंहार के स्थलों का मुआईना किया। इस सबके बावजूद, ३१ अक्टूबर और एक नवम्बर के बीच की रात सिखों के नरसंहार की वारदातें चालू रही। प्रशासन मौन था।1 नवम्बर १९८४  ३१ अक्टूबर व 1 नवम्बर के बीच की रात को कांग्रेंस के शीर्ष नेताओं की बैठकों के दौर चलते रहे। समर्थकों को बडे+ पैमाने पर इस बात के लिए प्रेरित किया गया। कि वे इस नरसंहार को अंजाम दें। सुबह पूर्वी दिल्ली में पहले सिख को मारा गया। ९ बजे तक भीड़ सड़कों पर थी। भीड़ के प्रथम निशाने गुरद्वारे थे। भीड़ के पास लोहे की रॉड़ थी। सभी रॉड़ो का साइज एक समान था। भीड़ के पास प्रर्याप्त मात्रा में पेट्रोल और मिट्टी का तेल था। एक कांग्रेसी कार्यकर्ता ब्रह्‌मानन्द गुप्ता का नाम उभर कर आया, जो मिट्टी के तेल का व्यापारी था और सुलतानपुरी के नरसंहार में भाग ले रहा था। प्रत्येक थाने में पुलिस कर्मियों की काफी संख्या थी। फिर भी शरारती तत्वों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई। ÷÷नानावती  कमीशन''के अनुसार प्रतिरोध दिखाने वाले सिखों को   गिरफ्तार किया गया। उनके हथियार जब्त करके मुकदमें दर्ज किए गए। त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी, सुलतानपुरी कांग्रेसी नरसंहार का कहर। नरसंहार के पीड़ितों ने कत्लेआम की रचना करने वाले  कांग्रेसी नेताओं एच.के.एल. भगत, सज्जन कुमार, धर्मदास शास्त्री, टाइटलर के साथ १० पार्षदों के नाम लिए।२ नवम्बर १९८४ पुलिस ने ऊपरी तौर पर कर्फ्यू लगा दिया। लेकिन यह सब ढ़कोसला था। अहिंसा के तथाकथित पुजारी नेहरूवादियों ने जकरिया खान और लखपत राय की याद दिला दी। जिस दिल्ली के सिख पंजाब की समस्या के सामने राष्ट्रीय पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे। उसी पर एकतरफा प्रहार हुआ था।    अति गरीब सिखों पर विशेष अत्याचार किए गए। पंजाब में सियासी प्रतिक्रिया करने के लिए कांग्रेस कहां थी? ३ नवम्बर १९८४ पूरी दिल्ली में नरसंहार करने वाले भीड़ की प्रकृति समान    थी। पुलिस ने एफ.आई.आर. नहीं लिखी। पीड़ित हताश थे। सारा दिल्ली हिटलर का गैस चैम्बर बन चुका था। वेद मारवा की एक कमेटी का नाटक हुआ। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक २७३३ सिखों का नरसंहार हो गया था। धर्मनिरपेक्ष  नेताओं ने अधर्म का काम किया था।
राजीव गांधी ÷÷जब एक बड़ा पेड़ गिरता है,
एतिहासिक बयान तो धरती हिलती ही है।''

नरसंहार के बाद         

२७ दिसम्बर १९८४       राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी को ४०० से अधिक सीटें प्राप्त हुई। चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार का काम था-कानून के शिंकजे से बचना। जांच कमेटी   दो एन.जी.ओ. ÷सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी'के जस्टिस वी.एम. तारकुण्डे और ÷सिटीजन कमीशन'के पूर्व चीफ जस्टिस एस. एम. सीकरी ने सरकार और कांग्रेस पार्टी को दोषी माना।
रिट पैटीशन                    एक पत्रकार राहुल कुलदीप बेदी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में  १९८४ के नरसंहार में पुलिस की भूमिका पर जांच की मांग की।  पी.यू.डी.आर. ने दिल्ली उच्च न्यायालय में ÷कमीशन ऑफ  इंक्वारी'की मांग की।
रंगनाथ मिश्रा कमीशन       १६ अप्रैल १९८५ को सरकार ने जांच कमीशन की घोषणा की।
सिटीजन जस्टिस कमेटी       सभी मानवाधिकार संगठनों ने इस बैनर के नीचे आकर सत्य को सामने लाने का प्रयास किया।सी.जे.सी. का हाथ खींचना   मिश्रा कमीशन की कार्रवाई कैमरे के सामने होनी थी। सिटीजन जस्टिस कमेटी को कैमरे से दूर रखने से पारदर्शिता की हत्या हो रही थी।   

मिश्रा कमीशन              फरवरी १९८७ में मिश्रा कमीशन का नतीजा एक धोखा साबित हुआ। लोकतंत्र का एक स्तम्भ ढ़ह गया, ऐसा लगता है।जैन बनर्जी कमीशन    मिश्रा कमीशन के निर्देश पर एक और जांच कमेटी।
                                      कपूर मित्तल कमेटी दोषी पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई के लिए जांच या  प्रशासनिक ढ़कोसला ?
आहूजा कमेटी                 दिल्ली नरसंहार ने मृत सिखों की संख्या निर्धारण के लिए बनाई गई कमेटी।
स्टे ऑर्डर                    जैन बनर्जी कमीशन की पहली सिफारिश सज्जन कुमार के विरुद्ध मुकदमें के बाद एक अन्य अभियुक्त ब्रह्‌मानन्द गुप्ता ने   दिल्ली उच्च न्यायालय स्टे ऑर्डर प्राप्त किया। उच्च न्यायालय का निर्णय    दिल्ली उच्च न्यायालय ने जैन बनर्जी कमीशन की अधिसूचना को खारिज किया। (अक्टूबर १९८९) कपूर मित्तल कमेटी कमेटी के दोनों सदस्यों ने अलग-अलग रिपोर्ट दी। जस्टिस दिलीप कपूर के अनुसार कमेटी के पास पुलिस अधिकारियों को   सम्मन करने के प्रर्याप्त अधिकार नहीं। दूसरी सदस्या कुसुम लता मित्तल के अनुसार ७२ पुलिस कर्मी दोषी चिन्हित थे। पोटी पोषा कमेटी       वी.पी. सिंह सरकार ने उच्च न्यायालय के बताए बिन्दुओं को ठीक करते हुए जैन बनर्जी कमीशन के स्थान पर नई कमेटी बनाई।
सज्जन कुमार का          १९९० में पोटी पोशा कमेटी ने सज्जन कुमार पर मुकदमा चलाने एंटीस्पेट्री बेल  और गिरफ्तार करने की बात कही। सी.बी.आई.टीम को तब तक सज्जन कुमार समर्थकों ने कैद किए रखा, जब तक उनका वकील आर.के.आनन्द एंटीस्पेट्री बेल लेकर नहीं आ जाता।
एक नई कमेटी                   १९९० में जे.डी.जैन और डी.के. अग्रवाल ने पोटी पोशा कमेटी का स्थान लिया।
जैन अग्रवाल कमेटी             विस्तृत रिपोर्ट में एच.के.एल. भगत, सज्जन कुमार दोषी। का निर्णय जस्टिस आर.एस. नरूला           १९९४ में आई कमेटी ने पुनः कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं कमेटी  को दोषी ठहराया।

नानावती कमीशन           २००० में जस्टिस नानावती को कई सौ शपथ पत्र प्राप्त हुए। प्रमुख व्यक्तियों में आई.के. गुजराल, खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर और जगजीत सिंह अरोड़ा ने भी शपथ पत्र दिए। नानावती कमीशन का निर्णय कांग्रेसी नेती दोषी व कांग्रेस पार्टी दोषी। 
 पहले धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले नेहरूवादियों ने मजहब के आधार पर भारत का विभाजन करवाया। फिर अहिंसा की बात करने वाले नेहरूवादियों ने दिल्ली में नरसंहार करवाए।
-----------

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

1984 दंगे नहीं नरसंहार

31 अक्टूबर 1984 को 2 सिख बॉड़ीगार्ड द्वारा इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई । हत्या ऑपरेशन ब्लु स्टार के जवाब में 153 वें दिन हुई । हत्या का कारण केवल एक था - श्री हरमिंदर साहेब स्वर्ण मंदिर जैसे पवित्र स्थान पर तोप और बंदूको के साथ प्रवेश । ऑपरेशन ब्लू स्टार का उद्देश्य भिंड़रवाला का खात्मा था । भिंड़रवाला को खुद इंदिरा गाँधी ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांशाओ के चलते खड़ा किया था इंदिरा गाँधी अकालियो के नेतृत्व को समाप्त करना चाहती थी । पर पाकिस्तानी ताकतो से मिल रही हवाओ के चलते भिंड़रवाला के नेतृत्व में अलगाववादी ताकते जन्म लेने लगी और ऑपरेशन ब्लु स्टार को अंजाम देना पड़ा ।



इस कृत्य के 153 वें दिन इंदिरा गाँधी की मृत्यु निश्चित थी । फिर चाहे इंदिरा को उसके अंगरक्षक मारते या कोई और । अब तक स्वर्ण मंदिर पर 5 बार आक्रमण हुए और हर आक्रमणकारी 153 वें दिन मृत्यु को प्राप्त हुआ । मस्सा रंगड़ फिर जकरिया खान फिर जहान खान फिर अहमद शाह अब्दाली और अंत में इंदिरा गाँधी सिखो ने हर उस इंसान का खात्मा किया जिसने उनकी आस्था से खिलवाड़ किया ।

यह फोटो ग्वालियर के एक गुरूद्वारे से ली गई है, इसे देखकर आप इस तथ्य को समझ जाऐंगे ।



ये तो बात हुई इंदिरा गाँधी की मृत्यु की परंतु इसके पश्चात जो हुआ वो भारत माँ की छाती पर एक कलंक छोड़ गया । भारत माँ के वो बच्चे जिन्होने उसकी आजादी के लिए सबसे अधिक बलिदान दिए, जिनकी आबादी 2 % होकर भी भारतीय सेना में ये 11 % हैं ऐसे वीरो का कत्लेआम हुआ ।

इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद -
सुबह 9.20 बजे दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कों उनके 2 सिक्ख बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोलियों से छलनी कर दिया। उन्हें तुरंत एम्स (AIIMS) अस्पताल में भरती कराया गया।सुबह 10.50 बजे इंदिरा गाँधी का एम्स अस्पताल में निधन हो जाता है ।सुबह 11.00 बजे ऑल इंडिया रेडियो पर यह खबर प्रसारित हुई की इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सिख बॉडीगार्डो ने की और पुरे भारत में मातम छा जाता है ।

इस तनावपुर्ण माहौल में राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी जाती है । वंशवाद की एक और मिसाल कायम होती है । देश में सिखो पर छोटे - मोटे हमले होते दिखते हैं । इस हिंसा पर जब दुरदर्शन पर राजीव गाँधी से सवाल पुछा जाता है तो वो जवाब देते हैं - "जब जंगल मे कोई बड़ा पेड गिरता है तो आसपास की जमीन हिलने लगती है और छोटे मोटे पेड उखड जाते है "। इससे दंगो के पक्ष में उनका मत स्पष्ट हो जाता है ।

इन दंगो के समय भारत के राष्ट्रपती एक सिख "ज्ञानी जैलसिंह"ही थे ।सिख दंगो की जाँच कमेटी के सामने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिह ने कहा कि उनके फ़ोन की लाईने काट दी गई थी... ताकि दिल्ली के सिख दंगों का समाचार उन तक नहीं पहुँच सके । इससे पहले उन्होने राजिव गाँधी से कई बार बात की और उन्हे सेना की सहायता लेने को कहा पर राजीव ने उनकी बात को टाल दिया।


रात में कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार, ललित माकन, H.K.L.भगत ने दंगाईयो कों संगठित कर उन्हें पैसे, तलवार, लाठियाँ, सलाखे मुहैया करवाई। जो कांग्रेसी नेता पेट्रोल पम्प के मालिक थे, उन्होंने दंगाईयो कों केरोसिन और पेट्रोल के कैन की आपूर्ति की। सिखो के घरों का पता जानने के लिये कांग्रेस नेताओं ने दंगाईयो कों वोटर कार्ड और राशन कार्ड दिए। कांग्रेसी कार्यकर्ताओ ने रात में सिक्खो के घरों पर “s” के निशान बना दिए। ताकि दूसरे दिन दंगाई जल्द से जल्द सिखो के घरों की पहचान कर, घरों में घुसकर सिखो का कत्लेआम कर सके।



1 नवम्बर 1984, दंगो का दूसरा दिन
सुबह सुबह कांग्रेस के सांसद सज्जन कुमार ने कांग्रेसी कार्यकर्ता, गुंडे और दंगाइयो को लेकर रैली निकाली, और सरेआम मासूम सिखो का क़त्ल करने के लिये नारे लगाये। सज्जन कुमार ने सिक्खो की हत्या करने वालों कों इनाम घोषित किये, कहा एक भी सिख जिन्दा ना बच पाए । प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने दंगाईयो से वादा किया कि उन्हे कांग्रेस में उच्च पद दिए जाऐंगे ।
इस नरसंहार में सबसे आगे पुलिस थी, पुलिस सिखो को मारने दंगाईयो की मदद करती थी ।
रैलगाड़ी, बसे रोक कर उनमे सवार सिक्खो कों जिन्दा जलाया गया । त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी इलाको में सबसे ज्यादा सिख मारे गए ।




2 नवम्बर 1984, दंगो का तीसरा दिन
दिल्ली के कुछ इलाको में कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं था। क्योकि पुलिस दंगाईयो पर कारवाई करने के बजाय उल्टा उन्हे मदद करने के आदेश दिए गये थे। आर्मी बुलाई गई पर उन्हे सख्त आदेश थे कि वो दंगाईयो पर फाइरिंग ना करे । सिखो का नरसंहार जारी रहा।


3 नवम्बर 1984, दंगो का चौथा दिन
जब दंगाई अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेती है, तब सेना और पुलिस स्थिति पर नियंत्रण करना शुरू कर देती है। छिट पुट घटनाओ कों छोड़कर शाम तक दंगे थम जाते है। दिल्ली में सिख की लाशो का अम्बार लग जाता है। 3 नवम्बर तक 2,700 से 20,000 सिख मारे गये। उन लाशो कों एम्स अस्पताल ले जाया जाता है।




दंगो की जाँच
दंगो की जांच के लिये मारवाह कमीशन, मिश्रा कमीशन, मित्तल कमिटी, नानावटी आयोग और कई अन्य आयोगों का गठन किया गया। आयोग और कोर्ट ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता सज्जन कुमार, R.K.आनंद, ललित माकन, H.K.L.भगत और कांग्रेस पार्टी कों दंगे भडकाने और दंगाईयो कों मदद करने के आरोप में सीधा सीधा दोषी ठहराया। लेकिन पुलिस और कांग्रेसी सरकारों ने कोई कारवाई नहीं की। कांग्रेस नेता जगदीश टायटलर के खिलाफ चल रहे सभी केस कोर्ट ने 2007 में पुख्ता सबूतों के अभाव में बंद कर दिए और उन्हें बरी कर दिया।
दंगो के बाद लगभग 250 FIR दर्ज की गई पर सरकार के कहने पर इन्हे रिकार्ड से हटा दिया गया ।



कांग्रेस ने इन दंगो के लिए कभी ना खेद जताया ना किसी प्रकार की हमदर्दी । सिख आज भी न्याय की आस में भटक रहे हैं । हिन्दू और सिख हमेशा भाई भाई की तरह रहा है । दोनो ने इस मातृभूमि के लिए रक्त बहाया है .. यह एक षड़यंत्र ही था भाई को भाई के हाथ मरवाने का । अपनी सियासी रोटियाँ सेकने का ।

खुद को अल्पसंख्यको की सबसे बड़ी हमदर्द बताने वाली इस पार्टी की नज़र में क्या केवल मूसलमान अल्पसंख्यक हैं । गुजरात दंगो पर नरेन्द्र मोदी को घेरने वाली ये कांग्रेस कभी अपने गिरेबान में क्यो नहीं झाकती । दंगो में सिखो की हत्या करने वाले लोग आज कांग्रेस में उच्च पदो पर बैठे हैं । क्या कांग्रेस के पास इसका जवाब है ?


समान जनसंख्या नीति का पुनर्निधारण हो - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

$
0
0
कार्यकारी मंडल की बैठक में जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती पर प्रस्ताव पारित
प्रस्ताव क्रमांक – एक

रांची. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने रांची  में चल रही अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के दूसरे दिन जनसंख्या असंतुलन को लेकर अहम प्रस्ताव पारित किया. बैठक में चर्चा के पश्चात जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती पर प्रस्ताव पारित किया गया तथा सरकार से आग्रह किया कि जनसंख्या नीति का पुनर्निधारण कर सब पर समान रूप से लागू किया  जाए.

जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती

देश में जनसंख्या नियंत्रण हेतु किए विविध उपायों से पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में पर्याप्त कमी आयी है. लेकिन, इस सम्बन्ध में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का मानना है कि 2011 की जनगणना के पांथिक आधार पर किये गये विश्लेषण से विविध संप्रदायों की जनसंख्या के अनुपात में जो परिवर्तन सामने आया है, उसे देखते हुए जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता प्रतीत होती है. विविध सम्प्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर, अनवरत विदेशी घुसपैठ व मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन देश की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है.

विश्व में भारत उन अग्रणी देशों में से था, जिसने वर्ष 1952 में ही जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की घोषणा की थी, परन्तु सन् 2000 में जाकर ही वह एक समग्र जनसंख्या नीति का निर्माण और जनसंख्या आयोग का गठन कर सका. इस नीति का उद्देश्य 2.1 की ‘सकल प्रजनन-दर’ की आदर्श स्थिति को 2045 तक प्राप्त कर स्थिर व स्वस्थ जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना था. ऐसी अपेक्षा थी कि अपने राष्ट्रीय संसाधनों और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रजनन-दर का यह लक्ष्य समाज के सभी वर्गों पर समान रूप से लागू होगा. परन्तु 2005-06 का राष्ट्रीय प्रजनन एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण और सन् 2011 की जनगणना के 0-6 आयु वर्ग के पांथिक आधार पर प्राप्त आंकड़ों से ‘असमान’ सकल प्रजनन दर एवं बाल जनसंख्या अनुपात का संकेत मिलता है. यह इस तथ्य में से भी प्रकट होता है कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयायिओं का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़ कर 14.23 प्रतिशत हो गया है.

इसके अतिरिक्त, देश के सीमावर्ती प्रदेशों यथा असम, पश्चिम बंगाल व बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से बंगलादेश से अनवरत घुसपैठ का संकेत देता है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उपमन्यु हजारिका आयोग के प्रतिवेदन एवं समय-समय पर आये न्यायिक निर्णयों में भी इन तथ्यों की पुष्टि की गयी है. यह भी एक सत्य है कि अवैध घुसपैठिये राज्य के नागरिकों के अधिकार हड़प रहे हैं तथा इन राज्यों के सीमित संसाधनों पर भारी बोझ बन सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तनावों का कारण बन रहे हैं.

पूर्वोत्तर के राज्यों में पांथिक आधार पर हो रहा जनसांख्यिकीय असंतुलन और भी गंभीर रूप ले चुका है. अरुणाचल प्रदेश में भारत में उत्पन्न मत-पंथों को मानने वाले जहां 1951 में 99.21 प्रतिशत थे, वे 2001 में 81.3 प्रतिशत व 2011 में 67 प्रतिशत ही रह गये हैं. केवल एक दशक में ही अरूणाचल प्रदेश में ईसाई जनसंख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी प्रकार मणिपुर की जनसंख्या में इनका अनुपात 1951 में जहां 80 प्रतिशत से अधिक था, वह 2011 की जनगणना में 50 प्रतिशत ही रह गया है. उपरोक्त उदाहरण तथा देश के अनेक जिलों में ईसाईयों की अस्वाभाविक वृद्धि दर कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा एक संगठित एवं लक्षित मतांतरण की गतिविधि का ही संकेत देती है.

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन सभी जनसांख्यिकीय असंतुलनों पर गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से आग्रह करता है कि -

देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए.
सीमा पार से हो रही अवैध घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जाए. राष्ट्रीय नागरिक पंजिका का निर्माण कर इन घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित किया जाए.
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सभी स्वयंसेवकों सहित देशवासियों का आवाहन करता है कि वे अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर जनसंख्या में असंतुलन उत्पन्न कर रहे सभी कारणों की पहचान करते हुए जन-जागरण द्वारा देश को जनसांख्यिकीय असंतुलन से बचाने के सभी विधि सम्मत प्रयास करें

राहुल गांधी की लोकतंत्र विरोधी एवं असहिष्णु मानसिकता

$
0
0


कांग्रेस व नेहरू परिवार पं. नेहरू के समय से ही संघ के विषय में तिरस्कार, असहिष्णुता का भाव रखते आये हैं – डॉ. मनमोहन वैद्य


नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि राहुल गांधी की “संघ को पराजित ही नहीं, नष्ट करेंगे” यह भाषा ही उनकी लोकतंत्र विरोधी एवं असहिष्णु मानसिकता प्रदर्शित करती है. लोकतंत्र में विश्वास रखने वाली एवं सभी समझदार शक्तियों को इसका विरोध करना चाहिए.

कांग्रेस और नेहरु परिवार पंडित नेहरु के समय से ही संघ के विषय में तिरस्कार एवं असहिष्णुता का भाव रखते आये हैं. अपनी राजकीय सत्ता का प्रयोग करने के बाद भी कांग्रेस संघ की प्रगति को रोकने में ना सफल हुई है, ना ही वह संघ की लोकप्रियता में कोई सेंध लगा पायी है. अभी संघ का समाज में समर्थन एवं जनाधार अनेक गुना बढ़ा है, बढ़ रहा है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कांग्रेस के ऐसे अलोकतांत्रिक रवैये, असभ्य भाषा एवं असहिष्णु मानसिकता की घोर भर्त्सना करता है.

सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों को जैनरिक से परहेज क्यों ?

$
0
0


जैनरिक से परहेज, ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं डॉक्टर
Bhaskar News NetworkJun 10, 2015
http://www.bhaskar.com
जिला अस्पताल में दवाओं के नाम पर मरीजों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि मरीजों की पर्ची पर दवा का सॉल्ट लिखा होना चाहिए। दवा का ब्रांड नेम नहीं लिखा जाएगा। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज लगातार गरीब मरीजों को बेहतर सुविधा दिलाने का दावा करते हैं। लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने मरीजों को महंगे ब्रांड की दवा लिखने की रस्म शुरू कर दी है।

पैसों के अभाव में लोग सुबह सात बजे से ही सामान्य अस्पताल में लाइन में लग जाते हैं। इसके बाद आठ बजे रजिस्ट्रेशन कराने के बाद डॉक्टर को दिखाते हैं। लेकिन डॉक्टर जैनरिक दवाओं के स्थान पर ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं। ऐसे में मरीजों को बाहर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं।

दैनिक भास्कर ने सुबह 8 बजे से 11 बजे तक करीब 50 मरीजों के पर्चे चेक किए। इनपर डॉक्टरों ने मरीजों को दवा का सॉल्ट लिखकर दवा का ब्रांड नाम लिखा था। इसमें भी करीब 90 प्रतिशत दवाएं मरीज को बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं।

नहींहै सस्ता इलाज : रामनगर निवासी प्रभा जैन ने डॉ. जागीर नैन को दिखाया। प्रभा, निजी अस्पताल में इलाज करा चुकी हैं। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने सामान्य अस्पताल में इलाज कराना उचित समझा। लेकिन यहां भी डॉक्टर ने 250 रुपए से लेकर 300 रुपए तक के ब्रान्डेड दवाओं की लिस्ट थमा दी। प्रभा ने बताया कि अगले महीने उसकी शादी है, जिसके चलते इलाज जरूरी है, लेकिन दवा महंगी होने के कारण इलाज नहीं हो पा रहा है।

नहींलिखी जैनरिक दवा : झारखंडनिवासी लल्लन चौधरी पैसों की तंगी के चलते जिला अस्पताल में इलाज के लिए आए। डॉक्टर पंकज अग्रवाल ने ब्रांडेड दवा का लंबा पर्चा लिख दिया। इसमें डी जैन नाम की दवा शामिल है, जबकि उसका जैनरिक वर्जन भी बाजार में है।

बाहरसे लेनी पड़ी दवा : नाहरपुरनिवासी रुक्साना ठाकुर एक सप्ताह से जिला अस्पताल में इलाज करा रही हैं। उनका कहना है कि अस्पताल में कुछ दवाएं तो मिल गई थीं, लेकिन बाकी बाहर से लेनी पड़ीं। डॉक्टर ने उसे अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी। लेकिन यहां डॉक्टर अल्ट्रासाउंड करने से मना कर रहे हैं, जबकि अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा है।

ग्राहकों के इंतजार में

जैनरिक स्टोर

सीएमओपुष्पा बिश्नोई का दावा है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा पहल कर शहर में 89 जैनरिक मेडिकल स्टोर खोले गए हैं। जहां पर सस्ती दवाएं उपलब्ध रहेंगी। दूसरी तरफ कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन का दावा है कि इस समय केवल 51 जैनरिक मेडिकल स्टोर खोले गए हैं। इन स्टोर मालिकों का कहना है कि जिला अस्पताल के डॉक्टर जैनरिक दवा लिखते ही नहीं हैं, जिससे लोगों का धंधा चौपट हो गया है। कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन का आरोप है कि ब्रांडेड दवा कंपनियों की एमआर द्वारा डॉक्टरों से सांठ-गांठ रहती है जिसके चलते डॉक्टर जैनरिक दवा नहीं लिखते हैं।

^अगर कोई मेडिकल स्टोर मालिक कस्टमर को जैनरिक दवा देने से मना करता है, तब उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टर जैनरिक दवाएं नहीं लिखते हैं, जिसके चलते मरीज जैनरिक दवा नहीं खरीदते। अमनदीपचौहान, ड्रग कंट्रोलर, गुड़गांव

^जैनरिकदवाओं के प्रोत्साहन के लिए समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लेकिन जिला अस्पताल के डाक्टर मरीजों को जैनेरिक दवा नहीं लिखते हैं। ही इसके बारे में मरीजों को बताया जाता है। शरदमेहरोत्रा, अध्यक्ष, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन गुड़गांव

^डाक्टरोंको स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं, जो दवा स्टोर में नहीं है उस दवा को ब्रांड के नाम से ही बल्कि सॉल्ट के नाम से मरीज के पर्ची पर लिखे जाएं। ताकि मरीज अपनी मर्जी से जैनरिक या ब्रांडेड दवा ले सकें। इसके लिए डॉक्टरों को एक बार फिर लिखित निर्देश जारी किया जाएगा। डॉ.पुष्पा बिश्नोई, सिविल सर्जन, गुड़गांव

^अगर कोई मेडिकल स्टोर मालिक कस्टमर को जैनरिक दवा देने से मना करता है, तब उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टर जैनरिक दवाएं नहीं लिखते हैं, जिसके चलते मरीज जैनरिक दवा नहीं खरीदते। अमनदीपचौहान, ड्रग कंट्रोलर, गुड़गांव

^जैनरिकदवाओं के प्रोत्साहन के लिए समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लेकिन जिला अस्पताल के डाक्टर मरीजों को जैनेरिक दवा नहीं लिखते हैं। ही इसके बारे में मरीजों को बताया जाता है। शरदमेहरोत्रा, अध्यक्ष, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन गुड़गांव

^डाक्टरोंको स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं, जो दवा स्टोर में नहीं है उस दवा को ब्रांड के नाम से ही बल्कि सॉल्ट के नाम से मरीज के पर्ची पर लिखे जाएं। ताकि मरीज अपनी मर्जी से जैनरिक या ब्रांडेड दवा ले सकें। इसके लिए डॉक्टरों को एक बार फिर लिखित निर्देश जारी किया जाएगा। डॉ.पुष्पा बिश्नोई, सिविल सर्जन, गुड़गांव

^अगर कोई मेडिकल स्टोर मालिक कस्टमर को जैनरिक दवा देने से मना करता है, तब उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टर जैनरिक दवाएं नहीं लिखते हैं, जिसके चलते मरीज जैनरिक दवा नहीं खरीदते। अमनदीपचौहान, ड्रग कंट्रोलर, गुड़गांव

^जैनरिकदवाओं के प्रोत्साहन के लिए समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लेकिन जिला अस्पताल के डाक्टर मरीजों को जैनेरिक दवा नहीं लिखते हैं। ही इसके बारे में मरीजों को बताया जाता है। शरदमेहरोत्रा, अध्यक्ष, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन गुड़गांव

^डाक्टरोंको स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं, जो दवा स्टोर में नहीं है उस दवा को ब्रांड के नाम से ही बल्कि सॉल्ट के नाम से मरीज के पर्ची पर लिखे जाएं। ताकि मरीज अपनी मर्जी से जैनरिक या ब्रांडेड दवा ले सकें। इसके लिए डॉक्टरों को एक बार फिर लिखित निर्देश जारी किया जाएगा। डॉ.पुष्पा बिश्नोई, सिविल सर्जन, गुड़गांव

गुड़गांव. सिविल हॉस्पिटल में डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाइयों की एक पर्ची। 

कांग्रेस का गद्दार चेहरा फिर उजागर - अरविन्द सिसोदिया

$
0
0
कांग्रेस का गद्दार चेहरा फिर उजागर 
कांग्रेस पार्टी जब भी सत्ता से बहज आती हे , सामान्य शिष्टाचार भी भूल जाती है । अपने देश के आंतरिक मामले दूसरे के घर में  जाकर नही उठाये जाते !! मगर कांग्रेस नेता सलमान खुरदीश ने एक गद्दार की तरह पाकिस्तान को आतंकवाद के मामले  में क्लीनचिट दी और चुनी हुई देश की सरकार की आलोचना की !! शेम शेम !!! कांग्रेस को देश से गद्दारी के लिए क्षमा मांगनी चाहिए !! यूं तो सब जानते हैं की कांग्रेस ने यह सोच समझी चाल के अंतरगर्त किया है ! मुस्लिम वोटों को ठगने के लिए !! 
इससे पहले जब अटलजी की सरकार नें परमाणु परिक्षण किता था तब सोनिया गांधी जी ने विदेशों के घूम घूम कर अटलजी सरकार की निंदा की थी !!
- अरविन्द सिसोदिया , जिला महामंत्री भाजपा कोटा राजस्थान 

-----------------------------------------
इस्लामाबाद में सलमान खुर्शीद ने की बीजेपी की आलोचना, पाक  मीडिया में सुर्खियों में आए
dainikbhaskar.comNov 13, 2015

इस्लामाबाद. कांग्रेस के सीनियर लीडर और भारत के पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद इस्लामाबाद में अपने बयानों को लेकर पाकिस्तानी मीडिया में सुर्खियों में आ गए। खुर्शीद ने भारत-पाक रिश्तों पर बीजेपी के रवैये को गलत ठहराया। उन्होंने कहा, "पाकिस्तान के अमन के पैगाम का बीजेपी की अगुआई वाली सरकार ने सही जवाब नहीं दिया।"वहीं, उन्होंने आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान आर्मी की तारीफ की।
कहां दिए खुर्शीद ने ये बयान?
खुर्शीद गुरुवार शाम इस्लामाबाद के जिन्ना इंस्टीट्यूट में स्पीच दे रहे थे। जिन्ना इंस्टीट्यूट हर साल अलग-अलग टॉपिक पर सेमिनार कराता है। इस बार बतौर स्पीकर खुर्शीद को न्योता दिया गया था। खुर्शीद के स्पीच के वक्त वहां कई देशों के एंबेसडर मौजूद थे।
पाकिस्तानी मीडिया में कैसे छा गए खुर्शीद?

- पाकिस्तानी न्यूज साइट द डॉन ने लिखा- अमन के लिए पाकिस्तान की कोशिशों को नजरअंदाज करने के लिए भारत के ही पूर्व मंत्री ने बीजेपी की आलोचना है।
- पाक ट्रिब्यून ने खुर्शीद के हवाले से लिखा कि मोदी अब भी सीख ही रहे हैं कि अच्छा नेता कैसे बना जाए।
- डेली टाइम्स और पाकिस्तान टुडे ने लिखा कि सलमान खुर्शीद की मानें तो भारत सरकार को कोई अंदाजा ही नहीं है कि उसे पाकिस्तान को लेकर क्या पॉलिसी अपनानी है।
खुर्शीद ने कहा क्या?
> खुर्शीद ने कहा कि पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ की यह दूर की सोच थी कि वे मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान से दिल्ली आए। नवाज का यह बेबाक फैसला उनकी हिम्मत को दिखाता है। मोदी सरकार को यह समझना था।
> खुर्शीद ने कहा, “कांग्रेस जब सरकार में थी, तब भी बीजेपी इस बात के लिए दबाव बनाती थी कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य न रहें।”
> बीजेपी ने पाकिस्तान को लेकर सख्त रवैया अपनाया है।
> भारत ने साउथ एशिया में शांति के लिए पाकिस्तान की कोशिशों का उस तरह से जवाब नहीं दिया, जिस तरह से देना चाहिए था। बीजेपी की अगुआई वाली भारत सरकार ने पाकिस्तान के अमन के पैगाम का भी वाजिब तरीके से जवाब नहीं दिया।
> पीएम मोदी अब भी स्टेट्समैन बनने के गुर सीख ही रहे हैं। मोदी सरकार को इस बात का साफ तौर पर अंदाजा नहीं है कि उसे पाकिस्तान या बाकी किसी देश के साथ कैसे रिश्ते रखने हैं?
> हैरानी की बात यह है कि इस मौके पर सलमान ने आतंकवाद से निपटने के तरीके को लेकर पाकिस्तान सरकार और सेना की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सेना कबायली इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ बेहद मुश्किल लड़ाई लड़ रही है।
भारत-पाकिस्तान नहीं सुलझा पाए अपने विवाद
कांग्रेस लीडर ने कहा कि 1947 के बाद दुनिया में कई विवाद हुए और उन्हें सुलझा भी लिया गया, लेकिन भारत और पाकिस्तान के हाल वही हैं। उनमें झगड़ा खत्म नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि अगर भारत पाकिस्तान से बातचीत चाहता है, तो उसे इस बात का ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान में डेमोक्रेसी को नुकसान न हो। उन्होंने कहा, “एक कामयाब और स्थिर पाकिस्तान ही भारत के लिए बेहतर है।”
-----------------

सलमान खुर्शीद ने इस्लामाबाद में की मोदी सरकार की आलोचना, पाक मीडिया में छाए
इस्लामाबाद : कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने पाकिस्‍तान यात्रा के दौरान मोदी सरकार की जमकर खिंचाई की। उन्‍होंने इस्‍लामाबाद में कहा, ‘भारत सरकार ने दक्षिण एशिया में शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्‍तान के अमन के पैगाम का उचित जवाब नहीं दिया।’

पाकिस्तानी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्राइब्यून’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस्लामाबाद में गुरुवार को इस्लामाबाद स्थित जिन्ना इंस्टिट्यूट में दिए एक लेक्चर के दौरान सलमान खुर्शीद ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शरीक होकर नवाज शरीफ ने दूरदर्शिता का परिचय दिया था।

‘द एक्सप्रेस ट्राइब्यून’ अखबार सलमान खुर्शीद के हवाले से लिखता है कि भारत में BJP के नेतृत्व वाली सरकार पाकिस्तान के शांति संदेश का माकूल जवाब देने में नाकाम रही। खुर्शीद ने कहा कि साल 1947 के बाद से ही दुनिया ने तमाम तरह के विवादों और संघर्षों का समाधान निकाला है लेकिन भारत-पाकिस्तान के हालात नहीं बदले।

खुर्शीद ने कहा कि पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ की यह दूर की सोच थी कि वे मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान से दिल्ली आए। नवाज का यह बेबाक फैसला उनकी हिम्मत को दिखाता है। मोदी सरकार को यह समझना था। खुर्शीद ने कहा, कांग्रेस जब सरकार में थी तब भी बीजेपी इस बात के लिए दबाव बनाती थी कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य न रहें। बीजेपी ने पाकिस्तान को लेकर सख्त रवैया अपनाया है।

पीएम मोदी अब भी स्टेट्समैन बनने के गुर सीख ही रहे हैं। मोदी सरकार को इस बात का साफ तौर पर अंदाजा नहीं है कि उसे पाकिस्तान या बाकी किसी देश के साथ कैसे रिश्ते रखने हैं? एक कामयाब और स्थिर पाकिस्तान ही भारत के लिए बेहतर है।

इस मौके पर हैरान करने वाली बात यह थी कि खुर्शीद ने आतंकवाद से निपटने के तरीके को लेकर पाकिस्तान सरकार और सेना की तारीफ की। खुर्शीद ने कहा कि पाकिस्तान की सेना कबायली इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ बेहद मुश्किल लड़ाई लड़ रही है।

पाकिस्तानः 'एक भी हिंदू न बचे '

$
0
0

हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की आठवीं वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। यह रिपोर्ट 2011 की है, जिसे हाल ही में जारी किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक "पाकिस्तान में 1947 में कुल आबादी का 25 प्रतिशत हिंदू थे। अभी इनकी जनसंख्या कुल आबादी का मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है।" वहां गैर-मुस्लिमों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। 24 मार्च, 2005 को पाकिस्तान में नए पासपोर्ट में धर्म की पहचान को अनिवार्य कर दिया गया। स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है। गैर-मुस्लिमों, खासकर हिंदुओं के साथ असहिष्णु व्यवहार किया जाता है। जनजातीय बहुल इलाकों में अत्याचार ज्यादा है। इन क्षेत्रों में इस्लामिक कानून लागू करने का भारी दबाव है। हिंदू युवतियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म, अपहरण की घटनाएं आम हैं। उन्हें इस्लामिक मदरसों में रखकर जबरन मतांतरण का दबाव डाला जाता है। गरीब हिंदू तबका बंधुआ मजदूर की तरह जीने को मजबूर है।

------------


http://www.bbc.com/hindi

पाकिस्तानः 'वो दिन दूर नहीं जब एक भी हिंदू न बचे'

  • 5 अगस्त 2015
हिंदू मंदिर
पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अक्सर यह शिकायत रही है कि उनके धर्म स्थलों को पाकिस्तान सरकार की ओर से सुरक्षा नहीं है.
ऐसी कई शिकायतें रिकॉर्ड होने और धार्मिक स्थलों को नुक़सान पहुंचाए जाने की कई घटनाओं के सामने आने के बावजूद अब तक कोई सुनवाई नहीं है.
मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, पिछले पचास वर्षों में पाकिस्तान में बसे नब्बे प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं और अब उनके पूजा स्थल और प्राचीन मंदिर भी तेज़ी से ग़ायब हो रहे हैं.
ऐसा ही एक मामला, पिछले बीस साल से चल रहा है और अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इस पर कोई अमल नहीं हुआ.
बात है, पाकिस्तान के प्रांत ख़ैबर पख्तूनख़्वा ज़िले में कर्क के एक छोटे से गांव टेरी में स्थित एक समाधि की.

पढ़ें विस्तार से

पेशावर में हिंदू
यहां किसी ज़माने में, कृष्ण द्वार नामक एक मंदिर भी मौजूद था. मगर अब इसके नामो निशान कहीं नहीं हैं.
समाधि मौजूद है, लेकिन इसके चारों ओर एक मकान बन चुका है और यहां तक कि वहां तक पहुचंने के सारे रास्ते बंद हैं.
मकान में रहने वाले मुफ़्ती इफ़्तिख़ारुद्दीन का दावा है कि 1961 में पाकिस्तान सरकार ने एक योजना (1975) लागू की थी, जिससे तत्कालीन पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में स्थानीय प्रमुख लोगों को ऐसी ग्रामीण संपत्ति मुफ़्त में दी गईं, जिनकी क़ीमत दस हज़ार रुपए से कम थी.
इसी योजना के तहत उन्हें भी जगह का मालिकाना अधिकार मिल गया और 1998 में उन्होंने इस मकान का निर्माण किया.
हिंदुओं के नेता परम हंस जी महाराज का 1929 में निधन हो गया था.
उन्हें श्रद्धांजलि देने दुनिया भर से कई हिंदू पाकिस्तान के क्षेत्र टेरी में स्थित उनकी इस समाधि पर आया करते थे.
1998 में यह मामला तब सामने आया जब कुछ हिंदू यहां पहुंचे तो पता चला कि समाधि को तोड़ने की कोशिश की गई.

समाधि कहां ले जाएं?

पाकिस्तानी दलित
इसके बाद बात पाकिस्तान हिन्दू परिषद तक पहुंची और परिषद ने इस मामले का बीड़ा उठाया.
परिषद के अध्यक्ष और नेशनल असेंबली के सदस्य डॉक्टर रमेश वांकोआनी ने बताया कि पिछले बीस साल के दौरान वे सभी राजनीतिक लोगों से प्रांतीय और संघीय स्तर पर बात कर चुके हैं मगर किसी ने नहीं सुना, अंततः उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2015 में सभी परिस्थितियों को देखते हुए, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की प्रांतीय सरकार को आदेश दिया कि वह इस समाधि में होने वाले तोड़फोड़ को रोके और हिंदुओं को उनकी जगह वापस दिलाए. मगर आज तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ.
डॉक्टर रमेश कहते हैं, “तीर्थ स्थल तो ऐतिहासिक होते हैं, यह कोई मंदिर तो है नहीं कि क़ानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब होने के नाम पर मैं इसे कहीं और स्थानांतरित कर दूँ, यह तो समाधि है. एक ऐसी हस्ती का मंदिर जिसके करोड़ों श्रद्धालु हैं.”
मगर टेरी में यही अकेली समाधि या मंदिर नहीं है, जो बंद है.
पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के मुताबिक़, इस समय देश भर में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे 1,400 से अधिक पवित्र स्थान हैं जिन तक उनकी पहुंच नहीं है.
या फिर उन्हें समाप्त कर वहां दुकानें, खाद्य गोदाम, पशु बाड़ों में बदला जा रहा है.

मंदिर तो है, पर रास्ता नहीं

पाकिस्तान में हिंदू मंदिर
ऐसा ही एक मंदिर, रावलपिंडी के एक व्यस्त बाज़ार में मौजूद है जिसे यमुना देवी मंदिर कहा जाता है और यह 1929 में बनाया गया था.
चारों ओर छोटी दुकानों में धंसा यह मंदिर केवल अपने एक बचे हुए मीनार के कारण अब भी सांसें ले रहा है.
उसके अंदर प्रवेश से पहले छतों से बातें करती ऊँची क़तारों में चावल, दाल और चीनी से भरी बोरियों से होकर गुज़रना पड़ता है.
वक़्फ़ विभाग के अध्यक्ष सिद्दीकुलफ़ारुख़ का कहना है कि, “जो योजना 1975 की है, मैं उसके बारे में जानता हूँ और इससे पहले क्या था, उसकी जानकारी मुझे नहीं है. संसद के बने इस योजना के तहत, इबादतगाह कोई भी हो, वह किराए पर नहीं दिया जा सकता, लेकिन इससे सटी भूमि को किराए पर दिया जा सकता है.”
विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार की अनदेखी और ग़लत नीतियों के कारण देश में सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हैं, जिन्हें पिछड़े होने के कारण हमेशा नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है.

सरकारी उदासीनता

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हिंदू मंदिर.
Image captionपाकिस्तान के सिंध प्रांत में हिंदू मंदिर.
उपमहाद्वीप के बंटवारे के समय, पश्चिमी पाकिस्तान या मौजूदा पाकिस्तान में, 15 प्रतिशत हिंदू रहते थे.
1998 में देश में की गई अंतिम जनगणना के अनुसार, उनकी संख्या मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई और देश छोड़ने की एक बड़ी वजह असुरक्षा थी.
शोधकर्ता रीमा अब्बासी के अनुसार, “पिछले कुछ वर्षों में लाहौर जैसी जगह पर एक हज़ार से अधिक मंदिर ख़त्म कर दिए गए हैं. पंजाब में ऐसे लोगों को भी देखा है जो नाम बदल कर रहने को मजबूर हैं.”
वो कहती हैं, “इन सभी बातों की बड़ी वजह क़ब्ज़ा माफ़िया तो हैं, मगर साथ ही बेघरों के लिए सुरक्षा की कमी भी है, जो आतंकवाद के कारण अपना घर-बार छोड़कर पाकिस्तान के अन्य ऐसे क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं, जहां उनके धर्म स्थल क़रीब हैं.”
पाकिस्तान हिंदू धर्मस्थल
Image captionपेशावर में स्थित एक मंदिर.
उनके मुताबिक़, “मगर उन्हें वहाँ से डरा-धमका कर निकाल दिया जाता है ताकि वहां पहले से रह रहे लोगों को कोई कठिनाई न हो.”
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पाकिस्तान से पलायन कर गई हिंदुओं की नब्बे प्रतिशत आबादी का कारण बढ़ती असहिष्णुता और सरकार की उदासीनता है.
पाकिस्तान के वक़्फ़ विभाग में पुजारी की नौकरी करने वाले जयराम के अनुसार, “1971 के बाद देश में हिंदू संस्कृति ही समाप्त हो गई. कहीं भी अब शास्त्रों को नहीं पढ़ाया जाता, संस्कृत नहीं पढ़ाई जाती, यहाँ तक कि सिंध सरकार से एक बिल पास करवाने की कोशिश हुई कि सिंध में पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया जाए, हिंदू बच्चों के लिए एक हिंदी शिक्षक दिया जाए, मगर वह विधेयक पारित नहीं हुआ. तो यदि इस प्रकार का क़ानून नहीं बन सकता तो वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान में एक भी हिंदू नहीं रहेगा.”

-------------------

अल्पसंख्यक हिंदुओं की त्रासदी

सर्वधर्म समभाव और वसुधैव कुटुंबकम को जीवन का आधार मानने वाले हिंदुओं की स्थिति उन देशों में काफी बदतर है जहां वे अल्पसंख्यक हैं। भारत से बाहर रह रहे हिंदुओं की आबादी लगभग 20 करोड़ है।सबसे ज्यादा खराब स्थिति दक्षिण एशिया के देशों में रह रहे हिंदुओं की है। दक्षिण एशियाई देशों- बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ-साथ फिजी, मलेशिया, त्रिनिदाद-टौबेगो में हाल के वर्षों में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार के मामले बढ़े हैं। इनमें जबरन मतांतरण, यौन उत्पीड़न, धार्मिक स्थलों पर आक्रमण, सामाजिक भेदभाव, संपत्ति हड़पना आदि शामिल है। कुछ देशों में राजनीतिक स्तर पर भी हिंदुओं के साथ भेदभाव की शिकायतें सामने आई है। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की आठवीं वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। यह रिपोर्ट 2011 की है, जिसे हाल ही में जारी किया गया है।
  • रिपोर्ट के मुताबिक "पाकिस्तान में 1947 में कुल आबादी का 25 प्रतिशत हिंदू थे। अभी इनकी जनसंख्या कुल आबादी का मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है।" वहां गैर-मुस्लिमों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। 24 मार्च, 2005 को पाकिस्तान में नए पासपोर्ट में धर्म की पहचान को अनिवार्य कर दिया गया। स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है। गैर-मुस्लिमों, खासकर हिंदुओं के साथ असहिष्णु व्यवहार किया जाता है। जनजातीय बहुल इलाकों में अत्याचार ज्यादा है। इन क्षेत्रों में इस्लामिक कानून लागू करने का भारी दबाव है। हिंदू युवतियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म, अपहरण की घटनाएं आम हैं। उन्हें इस्लामिक मदरसों में रखकर जबरन मतांतरण का दबाव डाला जाता है। गरीब हिंदू तबका बंधुआ मजदूर की तरह जीने को मजबूर है। 
  • इसी तरह बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े हैं। बांग्लादेश ने "वेस्टेड प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011"को लागू किया है, जिसमें जब्त की गई या मुसलमानों द्वारा कब्जा की गई हिंदुओं की जमीन को वापस लेने के लिए क्लेम करने का अधिकार नहीं है। इस बिल के पारित होने के बाद हिंदुओं की जमीन कब्जा करने की प्रवृति बढ़ी है और इसे सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है। इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भी जुल्म ढाए जाते हैं। इसके अलावा हिंदू इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर भी हैं। उनके साथ मारपीट, दुष्कर्म, अपहरण, जबरन मतांतरण, मंदिरों में तोडफोड़ और शारीरिक उत्पीड़न आम बात है। अगर यह जारी रहा तो अगले 25 वर्षों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी ही समाप्त हो जाएगी। 
  • बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक और बहुभाषी देश कहे जाने वाले भूटान में भी हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार हो रहा है। 1990 के दशक में दक्षिण और पूर्वी इलाके से एक लाख हिंदू अल्पसंख्यकों और नियंगमापा बौद्धों को बेदखल कर दिया गया। 
  • ईसाई बहुल देश फिजी में हिंदुओं की आबादी 34 प्रतिशत है। स्थानीय लोग यहां रहने वाले हिंदुओं को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। 2008 में यहां कई हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया। 2009 में ये हमले बंद हुए। फिजी के मेथोडिस्ट चर्च ने लगातार इसे इसाई देश घोषित करने की मांग की, लेकिन बैमानिरामा के प्रधानमंत्रित्व में गठित अंतरिम सरकार ने इसे खारिज कर दिया और अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के संरक्षण की बात कही।
  • मलेशिया घोषित इस्लामी देश है, इसलिए वहां की हिंदू आबादी को अकसर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों को अक्सर निशाना बनाया जाता है। सरकार मस्जिदों को सरकारी जमीन और मदद मुहैया कराती है, लेकिन हिंदू धार्मिक स्थानों के साथ इस नीति को अमल में नहीं लाती। हिंदू कार्यकर्ताओं पर तरह-तरह के जुल्म किए जाते हैं और उन्हें कानूनी मामलों में जबरन फंसाया जाता है। उन्हें शरीयत अदालतों में पेश किया जाता है। 
  • सिंहली बहुल श्रीलंका में भी हिंदुओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। पिछले कई दशकों से हिंदुओं और तमिलों पर हमले हो रहे हैं। हिंसा के कारण उन्हें लगातार पलायन का दंश झेलना पड़ रहा है। हिंदू संस्थानों को सरकारी संरक्षण नहीं मिलता है।
  • त्रिनिदाद-टोबैगो में भारतीय मूल की 'कमला परसाद बिसेसर'के सत्ता संभालने के बाद आशा बंधी है कि हिंदुओं के साथ साठ सालों से हो रहा अत्याचार समाप्त होगा। इंडो-त्रिनिदादियंस समूह सरकारी नौकरियों और अन्य सरकारी सहायता से वंचित है। हिंदू संस्थाओं के साथ और हिंदू त्यौहारों के दौरान हिंसा होती है। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की आठवीं वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार का भी जिक्र है। पाकिस्तान ने कश्मीर के 35 फीसदी भू-भाग पर अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है। 1980 के दशक से यहां पाकिस्तान समर्थित आतंकी सक्रिय हैं। कश्मीर घाटी से अधिकांश हिंदू आबादी का पलायन हो चुका है। तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी हिंदू अपने ही देश में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडित रिफ्यूजी कैंप में बदतर स्थिति में रहने को मजबूर हैं। यह चिंता की बात है कि दक्षिण एशिया में रह रहे हिंदुओं पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन चंद मानवाधिकार संगठनों की बात छोड़ दें तो वहां रह रहे हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। जिस तरह से श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर अमेरिका, फ्रांस और नार्वे ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में प्रस्ताव रखा और तमिल राजनीतिक दलों के दबाव में ही सही भारत को प्रस्ताव के पक्ष में वोट डालना पड़ा उसी तरह की पहल भारत को भी दक्षेस के मंच पर तो करनी ही चाहिए।

कमलेश रघुवंशी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)   


ब्रिटिश संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन

$
0
0


ब्रिटिश संसद में बोले PM मोदी- भारत और ब्रिटेन एक साथ चलें तो कमाल हो जाएगा
aajtak.in [Edited By: स्वपनल सोनल] | लंदन, 12 नवम्बर 2015

लंदन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के साथ साझा बयान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने असहिष्णुता के सवाल पर चुप्पी तोड़ी है. पीएम ने कहा कि भारत गांधी और बुद्ध की धरती है और भारत ऐसी किसी भी बात को स्वीकार नहीं करता है. उन्होंने कहा, 'देश के किसी भी कोने में हुई हर घटना हमारे लिए गंभीर है. कानून कठोरता से काम करेगा. हर नागरिक के विचार की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है.'
साझा बयान के बाद एक सवाल का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'अगर देश के किसी भी कोने में ऐसी कोई घटना घटती है तो हमारे लिए हर घटना गंभीर है. देश के हर नागरिक की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है. हर किसी के विचारों की रक्षा के लिए हम वचनबद्ध हैं. ऐसी किसी भी घटना पर कानूनी कार्रवाई होगी.'

प्रधानमंत्री मोदी अपनी तीन दिन की ब्रिटेन यात्रा पर गुरुवार को लंदन पहुंचे. इससे पहले किंग चार्ल्स स्ट्रीट पर गार्ड ऑफ ऑनर के साथ पीएम का आध‍िकारिक स्वागत किया गया. इस दौरान ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन भी मोदी के साथ थे. दोनों नेताओं के बीच 10 डाउनिंग स्ट्रीट में द्वि‍पक्षीय बातचीत हुई, जिसके बाद दोनों ने साझा बयान जारी किया.

बातचीत शुरू करने से पहले कैमरन ने गर्मजोशी के साथ प्रधानमंत्री मोदी का हाथ मिलाकर स्वागत किया. इस मौके पर पीएम मोदी ने कैमरन से कहा, 'मुझे पूरा भरोसा है कि आपके नेतृत्व में भारत और ब्रिटेन के संबंध और मजबूत होंगे.'

साझा बयान के दौरान पीएम मोदी ने कहा-
-आपने भारत और ब्रिटेन के संबंध को सशक्त बनाने में अहम योगदान दिया है.
-आपके निमंत्रण, आदर सत्कार और गर्मजोशी से स्वागत के लिए मैं आभारी हूं.
-ऐतिहासिक तौर पर हम एक-दूसरे से परिचित हैं. हमारे मूल्य एक समान हैं.
-हर क्षेत्र में हमारी साझेदारी वायब्रेंट है और हमारे संबंधों में निरंतर विस्तार हो रहा है.
-शि‍क्षा और विज्ञान, तकनीक, क्लीन एनर्जी, कला-संस्कृति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम साझेदारी कर रहे हैं.
-आज हमने निर्णय लिया है कि हम साझा मूल्यों के आधार पर विश्व के अन्य क्षेत्रों में भी विकास के लिए साझेदारी करेंगे.
-सिविल न्यूक्लि‍यर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया है.
-यूके के साथ रक्षा और सुरक्षा को हम मूल्यवान मानते हैं. हम निश्चय ही नियमित तौर पर द्वि‍पक्षीय बातचीत करेंगे.

अपनी इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रितानी संसद को भी संबोधित किया. भारत यूके को अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद की 1500 करोड़ की संपत्ति पर डोजियर भी सौंपेगा. पीएम के लंदन पहुंचते ही जेम्स कोर्ट होटल के बाहर फैंस ने 'मोदी मोदी'के नारों से उनका स्वागत किया.

ब्रिटिश संसद में मोदी का संबोधन
प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश संसद की रॉयल गैलरी से भाषण दिया. उन्होंने संबोधन शुरू करते हुए कहा कि मुझे मालूम है कि यह संसद का सत्र नहीं है और उनकी बात सुनकर यहां मौजूद सब हंस पड़े. उन्होंने कहा कि उनके लिए ब्रिटेन की संसद में बोलना बहुत सम्मान की बात है. प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत और ब्रिटेन दोनों कई क्षेत्रों में मिलकर काम काम रहे हैं. दोनों देशों की सेनाएं साझा युद्धाभ्यास कर रही हैं. भारत संभावनाओं से भरा देश है. ब्रिटेन भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक देश है.'

ब्रिटिश करोबारियों से की मुलाकात
प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश कारोबारियों से भी मुलाकात की. उन्होंने कारोबारियों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, 'भारत को व्यापार करने के लिहाज से आसान और सरल स्थान बनाने के लिए सरकार ने बहुत आक्रामकता के साथ काम किया है. हालिया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति के बाद भारत विदेशी निवेश के लिए सबसे अधिक खुले देशों में शामिल हो गया है.'

पीमए ने आगे कहा, 'हम लोगों ने स्पष्ट तौर पर यह बता दिया है कि हम पीछे की तारीख से कराधान का सहारा नहीं लेंगे और कई प्रकार से इस रुख को साबित किया है.'पीएम मोदी ने उम्मीद जताई कि 2016 में जीएसटी का काम पूरा हो जाएगा.

मोदी के समर्थकों में जबरदस्त उत्साह
लंदन में होटल के बाहर फैंस के उत्साह को देखते हुए प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी से पैदल चलकर सैकड़ों समर्थकों से मुलाकात की. इस यात्रा से यूके और भारत के बीच रक्षा क्षेत्र और व्यापार से जुड़ी कई समझौतों की उम्मीद है. यह करीब 9 साल बाद ब्रिटेन में किसी भारतीय पीएम का दौरा है. हीथ्रो एयरपोर्ट पर लैंडिंग के बाद जब पीएम होटल पहुंचे तो वहां उनके प्रशंसकों ने मोदी सरकार की योजनाओं के नाम से भी नारे लगाए. वहां भारतीयों का उत्साह इस कदर रहा कि पुलिस और सुरक्षाबलों के लिए भीड़ को काबू करना चुनौती बन गई.

भारतीयों से मुलाकात
अपनी यात्रा के पहले ही दिन प्रधानमंत्री मोदी ने लंदन में रह रहे पंजाबी समुदाय के लोगों से मुलाकात की. वह वहां बिजनेस फोरम मीट में भी शामिल होंगे. इसके अलावा प्रधानमंत्री के व्यस्त कार्यक्रम में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ से भी मुलाकात शामिल है, जो शुक्रवार को होगी. इसके बाद वेम्बले स्टेडियम में भारतीय समुदाय के बीच मोदी के ग्रैंड इवेंट की तैयारियां चल रही हैं. वहां 60 हजार से ज्यादा लोगों को प्रधानमंत्री संबोधि‍त करेंगे.

दाऊद पर कसेगा शिकंजा
मोदी के यूके दौरे के साथ ही अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम पर शि‍कंजा और कसेगा. सूत्रों के मुताबिक भारत इस यात्रा के दौरान यूके को दाऊद की संपत्तियों से जुड़ा डोजियर सौंपेगा. 'आज तक'के पास यूके को सौंपे जाने वाले डोजियर की एक्सक्लूसिव जानकारी है. एनएसए अजीत डोभाल ब्रिटिश अधिकारियों को यह डोजियर सौंपेंगे. सूत्रों के मुताबिक यूके में दाऊद की करीब डेढ़ हजार करोड़ की संपत्ति है. भारत ब्रिटिश सरकार से दाऊद की संपत्तियों को सील करने की मांग करेगा.

दाऊद के लिए दूसरा बड़ा झटका
यूके में डोजियर सौंपने के साथ ही दाऊद को दूसरा बड़ा झटका लग सकता है. इससे पहले दुबई में दाऊद की संपत्तियों पर भी भारत ने डोजियर सौंपी थी. दुबई में डॉन की संपत्ति‍ को सीज करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है.

खालिस्तान पर भी यूके को डोजियर
दाऊद इब्राहिम के साथ ही भारत खालिस्तान पर भी यूके को डोजियर सौंपेगा. इसमें आईएसआई पर खालिस्तान समर्थित आतंक को भड़काने का आरोप है. डोजियर के मुताबिक बीकेआई, आईएसवाईएफ, केसीएफ और केजेडएफ जैसी संस्थाओं को आतंक भड़काने के लिए आईएसआई फंड देता है. एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, भारत के डोजियर में आईएसआई के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. इसमें यूके के कुछ टीवी चैनलों और रेडियो पर भी आतंक भड़काने का आरोप है.

कांग्रेस ने छेड़ा अलग राग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा के साथ ही कांग्रेस ने देश में नया राग छेड़ा है. कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री अपनी इस यात्रा के दौरान पूर्व आईपीएल चीफ ललित मोदी के प्रत्यर्पण की बात कर सकते हैं. जाहिर तौर पर विपक्ष के लिए आगामी संसद सत्र में भी यह मुद्दा बनने वाला है. कांग्रेस ने पीएम मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को यात्रा से लौटने के बाद देश को जानकारी देनी चाहिए कि उनकी यात्रा से देश को क्या हासिल हुआ है.
--------------
प्रधानमंत्री मोदी जब लंदन के वेंबले फुटबॉल स्टेडियम पहुंचे तो ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन और उनकी पत्नी ने पीएम मोदी का स्वागत किया.
-----------
वेंबले स्टेडियम पहुंचने पर ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन और उनकी पत्नी ने पीएम मोदी का स्वागत किया. मोदी के स्टेज पर पहुंचने के बाद राष्ट्रगान हुआ.
-----------
पीएम मोदी के स्टेडियम पहुंचने पर वंदे मातरम और कथक की प्रस्तुति दी गई. ये बच्चे राष्ट्रगान में शामिल रहे.
----------
लंदन के वेंबले फुटबॉल स्टेडियम में पीएम मोदी को सुनने के लिए 60 हजार से ज्यादा ब्रिटिश भारतीय जुटे.
---------------
पीएम मोदी और कैमरन ने स्टेज पर पहुंचे बच्चों से बात की. कैमरन ने एक बच्चे से उसका पसंदीदा विषय पूछा तो उसने ड्रामा बताया.
-----------
मोदी ने कहा भारतीय जहां भी गया, वहां जीने का संस्कार लेकर गया. पूरी दुनिया आज भारत के प्रति बड़ी उम्मीदों से देख रही है. भारत के प्रति दुनिया का नजरिया आज बदला है.
--------------
लंदन के वेंबले फुटबॉल स्टेडियम में मोदी को सुनने के लिए लोगों में भारी उत्साह दिखाई दिया.
--------------
मोदी ने कहा विविधता हमारी आन-बान-शान, हमारी शक्ति है. दो महान देशों के रिश्तों का आज खास दिन है. आज का दिन ऐतिहासिक है.
-------------------
वेंबले स्टेडियम में मोदी का मेगा शो शुरू होने से पहले बारिश हुई लेकिन लोगों में मौसम की खराबी के बावजूद उत्साह कम नहीं हुआ.
---------------

शत्रुघ्न सिन्हा : संघ के अधिकारियों का मिलने से इंकार

$
0
0


शत्रुघ्न सिन्हा पहुंचे संघ मुख्यालय, 

संघ के अधिकारियों का मिलने से इंकार


नागपुर : भाजपा के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा अपने बागी रूख पर कायम है. बिहार चुनाव की हार के बाद पार्टी के शीर्ष नेताओं की कड़ी आलोचना कर चुके शत्रुघ्न सिन्हा अपनी शिकायत लेकर संघ मुख्यालय नागपुर पहुंचे. लेकिन, नागपुर में संघ ने उनकी बात सुनने या उनसे मुलाकात करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

प्राप्त जानकारी के अनुसार शत्रुघ्न सिन्हा शुक्रवार को नागपुर पहुंचे थे, नागपुर में उन्हें न केवल संघ की तरफ से बल्कि बीजेपी के स्थानीय नेताओं की ओर से भी बेहद ठंडी बेहद प्रतिक्रिया मिली. शत्रुघ्न सिन्हा सरसंघ चालक मोहन भागवत और सचिव भैया जी जोशी से मिलने गये थे. हालांकि मोहन भागवत और भैया जी जोशी नागपुर से बाहर गये हुए है. सूत्रों के मुताबिक संघ के किसी भी जूनियर अधिकारियों ने भी शत्रुघ्न सिन्हा से मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.

भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा नागपुर से भाजपा सांसद नितिन गडकरी से मिलने की भी इच्छा जतायी. लेकिन ,नितिन गडकरी ने भी शत्रुघ्न सिन्हा से मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.गौरतलब है कि शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी के उन बागी नेताओं में शामिल है जो खुलेआम पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की आलोचना करते है. बिहार चुनाव प्रचार के दौरान उनके बागी तेवर से पार्टी को मुसीबतों का सामना करना पड़ी. 

40 देशों से हो रही है IS को फंडिंग - राष्ट्रपति पुतिन

$
0
0


रूसी राष्ट्रपति पुतिन का सनसनीखेज दावा,
'40 देशों से हो रही है IS को फंडिंग, जी-20 के देश भी शामिल'
Tuesday, November 17, 2015
ज़ी मीडिया ब्यूरो


नई दिल्ली: आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के पेरिस पर हुए हमले को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सनसनीखेज दावा किया है। राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि आतंकी संगठन आईएस को कुछ देशों से पैसा पहुंच रहा है, जिसमें जी-20 से जुड़े देश भी शामिल हैं। उन्होंने दावा किया कि आईएस को फंडिंग करने की इस लिस्ट में कुल 40 देशों का नाम है। जिन देशों से पैसा पहुंच रहा है, उसे लेकर पुतिन ने खुफिया जानकारियां भी साझा कीं। पुतिन ने साथ ही कहा कि आईएस तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है। इसे भी खत्म करने की जरूरत है।

पुतिन के मुताबिक आईएसआईएस पेट्रोलियम प्रॉडक्‍ट्स का बिजनेस करता है। रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि कई देश आईएस के साथ तेल का अवैध व्यापार भी का करते हैं और उन्हें अपनी हरकतों से बाज आना होगा।  सम्मेलन के बाद पुतिन ने कहा कि मैंने उदाहरणों के साथ बताया कि कैसे आईएस तक कुछ मुल्कों से पैसा पहुंच रहा है और इसमें हमारे साथी देश भी शामिल हैं। साथ ही कहा कि आईएस तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है। इसे भी तुरंत प्रभाव से खत्म करने की जरूरत है।

इस बीच फ्रांस ने पेरिस हमलों के बाद रातभर में 128 छापे मारे है। फ्रांस के युद्धक विमानों ने उत्तरी सीरिया में इस्लामिक स्टेट के गढ रक्का में रात में फिर से हमले किए और एक कमांड सेंटर और प्रशिक्षण केंद्र को नष्ट कर दिया।  फ्रांसीसी सेना ने 24 घंटों में दूसरी बार सीरिया के रक्का में दाएश के खिलाफ हवाई हमले किए। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 10 रफेल और मिराज 2000 लड़ाकू विमानों ने जीएमटी के अनुसार रात साढे बारह बजे 16 बम गिराए। इससे पहले रविवार को भी रक्का में जिहादी स्थल पर 10 युद्धक विमानों ने 20 बम गिराए थे। अमेरिका और फ्रांस ने भी हमलों का निशाना बनाए जाने वाले संभावित ठिकानों के संबंध में खुफिया सूचना का आदान प्रदान बढाने का निर्णय लिया है।

(एजेंसी इनपुट के साथ)
ज़ी मीडिया ब्‍यूरो 

कांग्रेस ने कितना काम किया ?

$
0
0
सही बात है, मोदी जी ने कुछ काम नही किया है |

देखो हर साल कांग्रेस कितना काम करती थी, खोदकर लाया हूँ उनके सारे कारनामे |



1987 - बोफोर्स तोप घोटाला, 960 करोड़

1992 - शेयर घोटाला, 5,000 करोड़।।

1994 - चीनी घोटाला, 650 करोड़

1995 - प्रेफ्रेंशल अलॉटमेंट घोटाला, 5,000 करोड़

1995 - कस्टम टैक्स घोटाला, 43 करोड़

1995 - कॉबलर घोटाला, 1,000 करोड़

1995 - दीनार / हवाला घोटाला, 400 करोड़

1995 - मेघालय वन घोटाला, 300 करोड़

1996 - उर्वरक आयत घोटाला, 1,300 करोड़

1996 - चारा घोटाला, 950 करोड़

1996 - यूरिया घोटाला, 133 करोड

1997 - बिहार भूमि घोटाला, 400 करोड़

1997 - म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला, 1,200 करोड़

1997 - सुखराम टेलिकॉम घोटाला, 1,500 करोड़

1997 - SNC पॉवेर प्रोजेक्ट घोटाला, 374 करोड़

1998 - उदय गोयल कृषि उपज घोटाला, 210 करोड़

1998 - टीक पौध घोटाला, 8,000 करोड़

2001 - डालमिया शेयर घोटाला, 595 करोड़

2001 - UTI घोटाला, 32 करोड़

2001 - केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला, 1,000 करोड़

2002 - संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला, 600 करोड़

2002 - कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला, 120 करोड़

2003 - स्टाम्प घोटाला, 20,000 करोड़

2005 - आई पि ओ कॉरिडोर घोटाला, 1,000 करोड़

2005 - बिहार बाढ़ आपदा घोटाला, 17 करोड़

2005 - सौरपियन पनडुब्बी घोटाला, 18,978 करोड़

2006 - ताज कॉरिडोर घोटाला, 175 करोड़

2006 - पंजाब सिटी सेंटर घोटाला, 1,500 करोड़

2008 - काला धन, 2,10,000 करोड

2008 - सत्यम घोटाला, 8,000 करोड

2008 - सैन्य राशन घोटाला, 5,000 करोड़

2008 - स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र, 95 करोड़

2008 - हसन् अली हवाला घोटाला, 39,120 करोड़

2009 - उड़ीसा खदान घोटाला, 7,000 करोड़

2009 - चावल निर्यात घोटाला, 2,500 करोड़

2009 - झारखण्ड खदान घोटाला, 4,000करोड़

2009 - झारखण्ड मेडिकल उपकरण घोटाला, 130 करोड़

2010 - आदर्श घर घोटाला, 900 करोड़

2010 - खाद्यान घोटाला, 35,000 करोड़

2010 S - बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला, 2,00,000 करोड़

2011 - 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 1,76,000 करोड़

2011 - कॉमन वेल्थ घोटाला, 70,000 करोड़

सालो राम मंदिर और पेट्रोल पर रो रहे हो, इनमे से 5 के नाम भी पता थे क्या |

वो बेचारा अकेला इतनी मेहनत कर रहा है, पर तुम्हारी आदत है न हर चीज में डंडा करने की | अगर ये तंग आकर हट गया न तो, तुम्हे फिर यही कांग्रेस मिलेगी | जितने भी उसके बाहर घूमने से परेशान है, वो बाहर हनीमून नही मना रहा है | सुरक्षा मजबूत कर रहा है अपने देश की | आज तुम सबको को किसान दिख रहे, हैं और जब यूरिया और खाद घोटाला हुये तो, कुछ नही दिखा |

अगर दिल में अभी भी थोडीसी भी सच्ची जीवित हैं, तो इस पोस्ट को शेअर करो और लोगों को भी निंद से जगाओ |

मोदीजी को प्रधानमंत्री बने, 1 वर्ष भी नहीं हुआ की, अच्छे दिन का ताना मारने लगे हैं कुछ लोग | वो लोग जर इनका भी कार्य काल देखो, और इन्होने क्या क्या किया हैं सोचो |

1. जवाहरलाल नेहरु, 16 वर्ष 286 दिन

2. इंदिरा गाँधी, 15 वर्ष 91 दिन

3. राजीव गाँधी, 5 वर्ष 32 दिन

4. मनमोहन सिंह, 10 वर्ष 4 दिन

कुल मिला कर 47 वर्ष 48 दिन में अच्छे दिन को ढूंढ नहीं सके और 1 वर्ष में हीं अच्छे दिन चाहिए |

ये कैसा न्याय है ???
ये कैसी राष्ट्रभक्ति है ???

मेरी भारतवासियों से यही नम्र विनंती हैं कि, अच्छे दिन चाहिये तो थोडा सब्र करो, धैर्य रखो |

फल खाणे है तो, पेड़ को बड़ा तो होने दो |

क्योंकि, सब्र का फल हमेशा मीठा हि होता हैं ||

 धन्यवाद 

26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित

$
0
0


26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित,
जानिए अपने संविधान की 26 खास बातें
By  एबीपी न्यूज  Wednesday, 25 November 2015 01:13 PM

नई दिल्ली : सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया है. इस अवसर पर गुरुवार को विभिन्न कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है. सरकार ने संसद के विशेष सत्र का भी आयोजन किया है. संसदीय कार्य मंत्रालय ने संविधान दिवस के दिन संसद भवन परिसर को रोशन करने का फैसला किया है.

सरकारी सूत्रों के अनुसार, सरकार ने 26 नवंबर को अधिकारियों से संविधान की प्रस्तावना पढ़ने को कहा है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र है और इसके संविधान की कई खासियतें भी हैं. आइए जानते हैं भारतीय संविधान की खास बातें....


1. भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. संविधान में सरकार के संसदीय स्‍वरूप की व्‍यवस्‍था की गई है. जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है.

2. संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया था लेकिन वह 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ.

3. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें.

4. भारत संघ में ऐसे सभी क्षेत्र शामिल होंगे, जो इस समय ब्रिटिश भारत में हैं या देशी रियासतों में हैं या इन दोनों से बाहर, ऐसे क्षेत्र हैं, जो प्रभुता संपन्न भारत संघ में शामिल होना चाहते हैं.

5. भारत के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, पद, अवसर और कानूनों की समानता, विचार, भाषण, विश्वास, व्यवसाय, संघ निर्माण और कार्य की स्वतंत्रता, कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन प्राप्त होगी.

6. इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है. परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं.

7. संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता को मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख पीएम होगा.

8. वास्‍तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है जो वर्तमान में नरेन्द्र मोदी हैं.

9. संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे.

10. इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन मे कुल 114 दिन बैठक की. इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी.

11. भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें 'संविधान का निर्माता'कहा जाता है.


12. भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभतासम्पन्न राष्ट्र है. यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है.

13. 'धर्मनिरपेक्ष'शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया. यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है.

14. भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है. यह ना तो किसी धर्म को बढावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है.

15. भारत एक स्वतंत्र देश है, किसी भी जगह से वोट देने की आजादी, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है.

16. स्थानीय निकाय चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिए एक निश्चित अनुपात में सीटें आरक्षित की जाती है.

17. राजशाही, जिसमें राज्य के प्रमुख वंशानुगत आधार पर एक जीवन भर या पदत्याग करने तक के लिए नियुक्त किया जाता है, के विपरित एक गणतांत्रिक राष्ट्र के प्रमुख एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होते है.

18. भारत के राष्ट्रपति पांच वर्ष की अवधि के लिए चुनावी प्रक्रिया से चुना जाता है.

19. भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती हैं. दोनों सत्ताएं एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं.

20. राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है.

21. भारत मे द्वैध नागरिकता नहीं है. केवल भारतीय नागरिकता है. जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है.

22. भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है.

23. संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह 'हम भारत के लोग', इस वाक्य से प्रारम्भ होती है.

24.  प्रत्‍येक राज्‍य में एक विधान सभा है. जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधान परिषद् कहा जाता है. राज्‍यपाल, राज्‍य का प्रमुख है.

25. संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्‍य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है. अवशिष्‍ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं. केन्‍द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्‍य क्षेत्र कहा जाता है.

26. 'समाजवादी'शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया. यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है.
----------
भारतीय संविधान का लागू होना
1. लोक सभा तथा राज्य सभा की संयुक्त बैठक कब होती है? → संसद का सत्र शुरू होने पर
2. किस व्यक्ति ने वर्ष 1922 में यह माँग की कि भारत के संविधान की संरचना हेतु गोलमेज सम्मेलन बुलाना चाहिए? → मोती लाल नेहरू
3. कांग्रेस ने किस वर्ष किसी प्रकार के बाह्य हस्तक्षेप के बिना भारतीय जनता द्वारा संविधान के निर्माण की मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया था? → 1936
4. वर्ष 1938 में किस व्यक्ति ने व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा के गठन की मांग की? → जवाहर लाल नेहरू
5. वर्ष 1942 में किस योजना के तहत यह स्वीकार किया गया कि भारत में एक निर्वाचित संविधान सभा का गठन होगा, जो युद्धोपरान्त संविधान का निर्माण करेगी? → क्रिप्स योजना
6. राज्यसभा के लिए नामित प्रथम फ़िल्म अभिनेत्री कौन थीं? → नरगिस दत्त
7. संविधान संशोधन कितने प्रकार से किया जा सकता है? → 5
8. कैबीनेट मिशन योजना के अनुसार, संविधान सभा के कुल कितने सदस्य होने थे? → 389
9. संविधान सभा के लिए चुनाव कब निश्चित हुआ? → जुलाई 1946
10. किसी क्षेत्र को ‘अनुसूचित जाति और जनजाति क्षेत्र’ घोषित करने का अधिकार किसे है? → राष्ट्रपति
11. संविधान सभा को किसने मूर्त रूप प्रदान किया?→  जवाहरलाल नेहरू
12. भारत में कुल कितने उच्च न्यायालय हैं? → 21
13. संविधान सभा की प्रथम बैठक कब हुई थी?→  9 दिसम्बर, 1946
14. पुनर्गठन के फलस्वरूप वर्ष 1947 में संविधान सभा के सदस्यों की संख्या कितनी रह गयी? → 299
15. संविधान सभा में किस देशी रियासत के प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया था? → हैदराबाद
16. भारतीय संविधान में किस अधिनियम के ढांचे को स्वीकार किया गया है? → भारत शासन अधिनियम 1935
17. राष्ट्रपति चुनाव संबंधी मामले किसके पास भेजे जाते हैं? → उच्चतम न्यायालय
18. प्रथम लोकसभा का अध्यक्ष कौन था? → जी. वी. मावलंकर
19. पहली बार राष्ट्रपति शासन कब लागू किया गया? → 20 जुलाई, 1951
20. संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकता के सम्बन्ध में संसद ने एक व्यापक नागरिकता अधिनियम कब बनाया? → 1955
21. प्रधानमंत्री बनने की न्यूनतम आयु है? → 25 वर्ष
22. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन कब हुआ?→  सितम्बर 1946
23. मुस्लिम लीग कब अंतरिम सरकार में शामिल हुई?→  अक्टूबर 1946
24. संविधान सभा की पहली बैठक किस दिन शुरू हुई? → 9 दिसम्बर 1946
25. संविधान सभा का पहला अधिवेशन कितनी अवधि तक चला? → 9 दिसम्बर 1946 से 23 दिसम्बर 1946
26. देश के स्वतन्त्र होने के पश्चात संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई? → 31 अक्टूबर 1947
27. संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष किसे चुना गया? → सच्चिदानन्द सिन्हा
28. संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष कौन था? → डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
29. संविधान निर्माण की दिशा में पहला कार्य ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ था 22 जनवरी 1947 को यह प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया?→  जवाहर लाल नेहरू
30. भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का चुनाव किया गया था?→  संविधान सभा द्वारा
31. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, भारत के शासन की सर्वोच्च सत्ता किसमें निहित्त है? → जनता
32. भारत के प्रथम सिख प्रधानमंत्री कौन है? → मनमोहन सिंह
33. प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले प्रथम व्यक्ति कौन हैं? → मोरारजी देसाई
34. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कौन करता है? → राष्ट्रपति
35. भारतीय संविधान के किस भाग को उसकी ‘आत्मा’ की आख्या प्रदान की गयी है? → प्रस्तावना
36. केरल का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है? → एर्नाकुलम
37. राज्यसभा के लिए प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन कौन करता है? → विधानसभा के निर्वाचित सदस्य
38. 31वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या कितनी निर्धारित की गयी है? → 545
39. हरियाणा राज्य कब बना था? → 1 नवम्बर, 1966
40. दीवानी मामलों में संसद के सदस्यों को किस दौरान गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता? → संसद के सत्र के दौरान, संसद के सत्र आरम्भ होने के 40 दिन पूर्व तक, संसद के सत्र आरम्भ होने के 40 दिन बाद तक
41. संघीय मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र देने वाले प्रथम मंत्री कौन थे? → श्यामा प्रसाद मुखर्जी
42. भारत के संपरीक्षा और लेखा प्रणालियों का प्रधान कौन होता है? → भारत का नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक
43. लोकसभा के अध्यक्ष को कौन चुनता है? → लोकसभा के सदस्य
44. कौन उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनी? → सुचेता कृपलानी
45. प्रथम लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या कितनी थी? → 1874
46. भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री कौन रहे हैं? → सरदार वल्लभ भाई पटेल
47. सबसे लम्बी अवधि तक एक ही विभाग का कार्यभार संभालने वाले केन्द्रीय मंत्री कौन थे? → राजकुमारी अमृत कौर
48. दादरा एवं नगर हवेली किस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है? → मुम्बई उच्च न्यायालय
49. मूल संविधान में राज्यों को कितने प्रवर्गों में रखा गया? → 4
50. लोकसभा की सदस्यता के लिए उम्मीदवार को कितने वर्ष से कम नहीं होना चाहिए? → 25 वर्ष
51. भारतीय संविधान किस दिन से पूर्णत: लागू हुआ? → 26 जनवरी, 1950
52. पहली बार राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कब की गई? → 26 अक्टूबर, 1962
53. डोगरी भाषा किस राज्य में बोली जाती है? → जम्मू और कश्मीर
54. भारत के नागरिकों को कितने प्रकार की नागरिकता प्राप्त है? → एक
55. भारतीय स्वाधीनता अधिनियम को किस दिन ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति मिली? → 21 जुलाई 1947
56. भारतीय संविधान कितने भागों में विभाजित है? → 22
57. केन्द्र और राज्य के बीच धन के बँटवारे के सम्बन्ध में कौन राय देता है? → वित्त आयोग
58. किस तरह से भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है? → जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण
59. भारतीय संविधान ने किस प्रकार के लोकतंत्र को अपनाया है? → लोकतांत्रिक गणतंत्र
60. मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष कौन होता है? → प्रधानमंत्री
61. जब भारत स्वतंत्र हुआ, उस समय कांग्रेस का अध्यक्ष कौन था? → जे. बी. कृपलानी
62. मूल संविधान में राज्यों की संख्या कितनी थी? → 27
63. 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में किन शब्दों को नहीं जोड़ा गया? → गुटनिरपेक्ष
64. किस राज्य के विधान परिषद की सदस्य संख्या सबसे कम है? → जम्मू-कश्मीर
65. भारत में किस प्रकार की शासन व्यवस्था अपनायी गयी है? → ब्रिटिश संसदात्मक प्रणाली
66. भारत की संसदीय प्रणाली पर किस देश के संविधान का स्पष्ट प्रभाव है? → ब्रिटेन
67. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की प्रेरणा किस देश के संविधान से मिली है? → आयरलैण्ड
68. भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया किस देश के संविधान से प्रभावित है? → दक्षिण अफ़्रीका
69. भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया 28वाँ राज्य कौन-सा है।→ झारखण्ड
70. हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्ज़ा कब प्रदान किया गया? → 1971 में
71. पहला संवैधानिक संशोधन अधिनियम कब बना? → 1951
72. राष्ट्रपति पद के निर्वाचन हेतु उम्मीदवार की अधिकतम आयु कितनी होनी चाहिए? → कोई सीमा नहीं
73. भारत का संविधान कब अंगीकर किया गया था? → 26 नवम्बर,1949
74. किस वर्ष गांधी जयंती के दिन केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना की गयी? → 1985
75. विधान परिषद को समाप्त करने वाला आखिरी राज्य कौन है? → तमिलनाडु
76. लोकसभा का सचिवालय किसकी देख-रेख में कार्य करता है? → संसदीय मामले के मंत्री
77. ‘विधान परिषद’ का सदस्य होने के लिए कम से कम कितनी आयु होनी चाहिए? → 30 वर्ष
78. “राज्यपाल सोने के पिंजरे में निवास करने वाली चिड़िया के समतुल्य है।” यह किसका कथन है? → सरोजिनी नायडू
79. देश के किस राज्य में सर्वप्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार गठित हुई? → 1957, केरल
80. किस राज्य की विधान परिषद की सदस्य संख्या सर्वाधिक है? → उत्तर प्रदेश
81. प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और जनजातियों की सूची कौन तैयार करता है? → प्रत्येक राज्य के राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति
82. भारतीय संविधान में तीन सूचियों की व्यवस्था कहाँ से ली गयी है? → भारत शासन अधिनियम 1935 से
83. किस वर्ष सिक्किम को राज्य का दर्जा दिया गया था? → 1975 में
84. जनता पार्टी के शासन के दौरान भारत के राष्ट्रपति कौन थे? → नीलम संजीव रेड्डी
85. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इसका निर्णय कौन करता है? → लोकसभा का अध्यक्ष
86. दल-बदल से सम्बन्धित किसी प्रश्न या विवाद पर अंतिम निर्णय किसका होता है? → सदन के अध्यक्ष
87. 1922 में किस व्यक्ति ने मांग की थी कि भारत की जनता स्वयं अपने भविष्य का निर्धारण करेगी? → महात्मा गाँधी
88. संसद पर होने वाले ख़र्चों पर किसका नियंत्रण रहता है? → नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
89. राज्यसभा की पहली महिला महासचिव कौन हैं? → वी.एस.रमा देवी
90. संसद का कोई सदस्य अपने अध्यक्ष की पूर्वानुमति लिये बिना कितने दिनों तक सदन में अनुपस्थित रहे, तो उसका स्थान रिक्त घोषित कर दिया जाता है? → 60 दिन
91. पांडिचेरी को किस वर्ष भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया? → 1962
92. भारत का संविधान भारत को किस प्रकार वर्णित करता है? → राज्यों का संघ
93. वह कौन सी सभा है, जिसका अध्यक्ष उस सदन का सदस्य नहीं होता है? → राज्य सभा
94. पूरे देश को कितने क्षेत्रीय परिषदों में बाँटा गया है? → 5
95. क्या पंचायतों को कर लगाने का अधिकार है? → हाँ
96. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात किसने प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया? → गुलज़ारीलाल नन्दा
97. राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत किस ज़िले से हुई?→  नागौर
98. किसकी सिफारिश पर संविधान सभा का गठन किया गया? → कैबिनेट मिशन योजना
99. संविधान सभा में विभिन्न प्रान्तों के लिए 296 सदस्यों का निर्वाचन होना था। इनमें से कांग्रेस के कितने प्रतिनिधि निर्वाचित होकर आए थे? → 208
100. मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किस कारण से किया? → मुस्लिम लीग मुस्लिमों के लिये एक अलग संविधान सभा चाहता था

---------

असहिष्णुता के नाम पर देश में बौद्धिक आतंकवाद फैलाया जा रहा है- जे. नंद कुमार

$
0
0
**** बौद्धिक आतंकवाद
जयपुर, 26 नवंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहला हमला पहले संविधान संशोधन के रूप में नेहरू सरकार ने साप्ताहिक पत्रिका पर प्रतिबंध लगाकर किया था। उन्होंने बताया कि मद्रास स्टेट से रोमेश थापर की क्रास रोड्स नामक पत्रिका में नेहरू की आर्थिक एवं विदेश नीतियों के खिलाफ एक लेख लिखा गया था, जिसके फलस्वरूप इस पत्रिका को मद्रास सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।
नंदकुमार गुरूवार को 65 वें संविधान दिवस के अवसर पर प्रेस क्लब में पत्रकारों के साथ चाय पर वार्ता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यद्यपि रोमश थापर न्यायलय में मद्रास सरकार के विरूद्ध मुकदमा जीत गए थे, तो भी 12 मई 1951 में संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा गया। 25 मई को यह संशोधन पारित हो गया जो वर्तमान में भी है। यह उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि असहिष्णु कौन है, और इसकी शुरूआत किसने की इस पर विचार करना चाहिए।
संविधान को लोकतंत्र में ईष्वर के समान बताते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में पंथ निरपेक्षता शब्द आने से पूर्व भी भारत में सनातन पंरपरा से सर्वपंथ समभाव का व्यवहार होता था। सेकुलरिज्म पर उन्होंने कहा कि संविधान निर्माण होते समय इस शब्द को शामिल करने की जरूरत महसूस नहीं की गई थी किन्तु 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने इसे संविधान में शामिल किया।
देश में असहिष्णुता के लेकर छिड़ी बहस और अवार्ड वापसी के बीच उन्होंन कहा कि असहिष्णुता के नाम पर देश में बौद्धिक आतंकवाद फैलाया जा रहा है। असहिष्णुता का डर दिखाकर लोगों का एक किया जा रहा है तथा आक्रामक विरोध जताने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। देश आगे बढ़ रहा है और इसे विकास को अवरुद्ध करने के लिए यह सब साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता से शुरू हुई बहस असहिष्णुता पर आ गई है।
असहिष्णुता मामले में प्रधानमंत्री की ओर से सफाई नहीं दिए जाने के सवाल उनका कहना था कि जरूरी नहीं कि हर बात का स्पष्टीकरण प्रधानमंत्री ही दे। यह कुछ लोगों की साजिश है जो उकसा कर साध्वी प्राची और साक्षी महाराज के बयान का इंतजार कर रहें हैं।
अवार्ड वापस करने वालों पर कटाक्ष करते हुए नंदकुमार ने कहा कि वे ऐसा कर देश की जनता का अपमान कर रहें हैं। उदाहरण देेते हुए उन्होंने बताया कि नयनतारा ने सिक्ख दंगो के 18 माह बाद अवार्ड लिया था उस समय कोई विरोध दर्ज नहीं करवाया किन्तु अब वे 18 वर्ष बाद अवार्ड वापस कर रही है। अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर उनका कहना था कि सबको अपने विचार प्रकट करने का अधिकार है किन्तु कानून को हाथ में लेने का नहीं। उन्होंने दादरी जैसी घटनाएं रोकने का समर्थन किया तथा कहा कि ऐसी घटनाओं पर कार्रवाई होनी चाहिए। वैचारिक स्थिति के बारे में उन्होंने बताया कि जाने माने अभिनेता दिलीप कुमार और मीना कुमारी को भी अपना नाम बदलना पड़ा था, किन्तु आज सहिष्णुता का माहौल होने के कारण वे अपने मूल नाम से काम कर पा रहे है।
उन्होंन कहा कि हमारे देश में ऐसा माहौल नहीं है। पाकिस्तानी साहित्यकार और पत्रकार व कनाडा के नागरिक तारक फतह ने भी एक बयान दिया है कि अगर विश्व में मुसलमानों के रहने के लिए सबसे बेहतर माहौल है तो वह सिर्फ भारत में है। आमिर खान पर उन्होंने बताया कि भारत में उनकी पत्नी असुरक्षित महसूस करती है पर क्या वे पीके जैसी फिल्म पाकिस्तान में बना सकते थे। जब देश उनकी फिल्म को सहन कर सकता है तो वे देश में असुरक्षित कैसे हुए।

हिन्दू संस्कृति के पुनर्जागरण के पुरोधा : श्री अशोक सिंहल

$
0
0
भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण के पुरोधा : श्री अशोक सिंहल
तारीख: 23 Nov 2015
- पाञ्चजन्य ब्यूरो





भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व में अपने परंपरागत ज्ञान वैभव के लिए अनुकरणीय मानी जाती है। विश्वभर में आज भी संभावित वैश्विक आर्थिक शक्ति वाले भारत से ज्यादा विश्वगुरु भारत की अवधारणा पर ज्यादा चर्चा होती है। विश्वगुरु की इसी छवि को एक बार पुन: प्रभावी ढंग से स्थापित करने के लिए जीवन के पूरे 8 दशक लगाकर श्री अशोक सिंहल ने विश्व हिन्दू परिषद और उससे जुड़े कई प्रकल्पों के माध्यम से देश-विदेश में अनवरत कार्य किया।
मूलत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक व्रती स्वयंसेवक श्री अशोक सिंहल प्रचारक रूप में भी समाज और देश के गौरव एवं स्वाभिमान के लिए प्रतिबद्ध रहे। बचपन से संघ कार्य में तल्लीन अशोक जी ने आपातकाल के बाद दिल्ली और हरियाणा प्रांत में प्रांत प्रचारक रहते हुए अपने बहुआयामी बौद्धिक कौशल से संघ शक्ति को विस्तार प्रदान किया। संघ के स्वयंसेवक जानते हैं कि नियमित प्रार्थनाओं और गीतों को जब अशोक जी का मधुर और ओजपूर्ण कंठ मिलता था तो वे जीवंत प्रेरणा व जागरण के प्रतीक बन जाते थे। श्रीगुरुजी की प्रेरणा से संघ कार्य में प्रवृत्त हुए अशोक जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्जित अभियंता की उपाधि और ऐश्वर्ययुक्त जीवन को राष्ट्र के निमित्त अर्पित किया और आजीवन हिन्दू समाज को उसके परंपरागत वैभव और जीवंत दर्शन को अपनाने और जीने की सीख देते रहे। हिन्दू गौरव के प्रतीक पुरुष श्री अशोक सिंहल निरंतर पुरुषार्थ करते हुए बहुसंख्यक हिन्दू समाज की अस्मिता और पहचान के बिन्दुओं को स्थापित करने के लिए संघर्षरत रहे। एक तेजस्वी संगठनकर्ता, श्रेष्ठ वक्ता, वेदवाड्मय के ज्ञाता, भारतीय संस्कृति और परंपरा के उद्गाता श्री सिंहल को संघ शक्ति के मार्गदर्शन में संभवत: हिन्दुत्व के मुखर प्रतिनिधि के रूप में किसी दैवीय शक्ति ने भेजे थे। 1981 में हुए विराट हिन्दू सम्मेलन में संघ के शीर्ष अधिकारियों ने उनकी इसी विशेषज्ञता और नेतृत्व क्षमता को कारगर ढंग से हिन्दू समाज के उत्थान में लगाने हेतु उन्हें 1964 में स्थापित विश्व हिन्दू परिषद से जोड़ दिया। ज्ञान और बुद्धि से ज्यादा संगठन की सफलता नेतृत्व के हृदय की शुद्धता पर निर्भर करती है। इन्हीं अभूतपूर्व गुणों के कारण अशोक सिंहल जी ने विश्व हिन्दू परिषद में और उसके अन्य प्रकल्पों में अपने ही संस्कारों में पगे-बढ़े बहुआयामी व्यक्तित्व वाले असंख्य कार्यकर्ताओं को जोड़ा। संस्कृत भाषा के अनन्य अनुरागी और वेद पुराणादि प्राच्य विद्याओं के उपासक श्री अशोक सिंहल को ये संस्कार किशोरावस्था से ही प्राप्त थे। अपने दो गुरुओं- रा.स्व.संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी और रामचंद्र तिवारी से उन्होंने संगठन कौशल और आध्यात्मिक उन्नयन के गुर संस्कार रूप में ग्रहण किए थे।
संघ के प्रचारक अशोक जी को जब हिन्दू संगठन को मजबूत करने का दायित्व प्रदान किया गया तो विश्व हिन्दू परिषद और अशोक जी एक-दूसरे के पर्याय हो गए। अशोक जी ने जहां सेकुलरवादियों और भारतीयता के विरोधियों को प्रभावी आंदोलन व संगठित शक्ति के बल पर चारों खाने चित किया, वहीं देश में देववाणी संस्कृत की प्रतिष्ठा और वेद विद्याओं के प्रचार-प्रसार के लिए व्यापक भावभूमि तैयार की।
देशभर में कई विश्वविद्यालयों के साथ वामपंथियों की प्रयोगशाला रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तक में संस्कृत भाषा के विभाग  खुलवाने में अशोक जी की विशेष भूमिका रही। इसके साथ ही अपने व्यक्तिगत प्रयत्नों से उन्होंने गोसंवर्धन, वेद विद्या प्रतिष्ठान, सामाजिक समरसता, धर्म प्रसार इत्यादि जीवन व्यवहार के विभिन्न क्षेत्रों के लिए व्यापक कार्ययोजना बनायी, जिससे देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की तरंगें उत्पन्न होती गईं।
काशी विद्वत् परिषद के विद्वानों के साथ वेद की शिक्षा पर उन्होंने अकाट्य तर्क दिए। इस चुनौती को अशोक जी ने गंभीरता से स्वीकार कर अपने गुरुदेव पू.श्रीगुरुजी को वेद-विद्या के प्रचार-प्रसार के वचन को साकार करते हुए श्री किशोर व्यास जी के माध्यम से विहिप के केन्द्रीय कार्यालय संकटमोचन आश्रम रामकृष्णपुरम में शुक्लयजुर्वेद के वेद विद्यालय का शुभारंभ करवाया।
अशोक जी नि:संदेह आध्यात्मिक शक्ति से संचालित थे। अशोक जी ने प्रत्येक मंच पर इस बात को स्वीकार किया है कि 'मेरे जीवन में दो गुरुओं- पू. श्रीगुरुजी और गुरुदेव रामचंद्र तिवारी का सर्वाधिक योगदान है। स्वयं अशेाक जी कहते थे ईश भाव के साथ राष्ट्र भाव के जुड़ने से ही परिपूर्णता का बोध हो सकता है। यह अनेक वर्ष के संपर्क से मुझे शिक्षा मिली। संघ की हमारी नित्य प्रार्थना में यद्यपि ईश साधना के साथ ही राष्ट्र साधना जुड़ी है, इसकी गहराई श्रीगुरुदेव के सम्पर्क से ही समझ सका।'
इसी धर्म प्रवणता व आध्यात्मिक वृत्ति का परिणाम हुआ कि देशभर के संत-महात्माओं को अशोक जी ने अपने संगठन कौशल एवं मेधा के बल पर राष्ट्र के लिए एकाकार करने की कल्पना को साकार किया। उनके नेतृत्व में देश-विदेश में प्रभावी ढंग से आयोजित धर्मसंसदों और विराट हिन्दू सम्मेलनों ने 'हिन्दव: सोदरा: सर्वे'की व्यापक भावना के माध्यम से हिन्दुओं में न केवल देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी गौरव का भाव जगाया। समूचे विश्व में हिन्दुत्व की पताका फहराकर अशोक जी ने भारतीय सनातन संस्कृति, जीवनमूल्यों और संस्कारों को वैश्विक व्याप्ति प्रदान की। विश्व के हिन्दुओं में भावनात्मक गौरव और स्वाभिमान भाव जगाने का अद्भुत कार्य संपन्न किया। विश्व हिन्दू परिषद के विभिन्न आयामों के माध्यम से देश के कई कोनों में फैले वनवासियों की शिक्षा की बात हो, चाहे समाज से गरीबी हटाने की प्रबल भावना, मातृशक्ति के सम्मान की बात हो, चाहे नवयुवकों को परंपरा और संस्कृति के संस्कार लेकर समाज में सक्रिय होने का मंत्र, अशोक जी ने समाज के बहुआयामी विकास की व्यापक भावना को अपने कर्मकौशल और श्रेष्ठ आचार-व्यवहार से साकार किया। व्यक्तिगत जीवन में एक महायोगी की तरह  प्राणिमात्र के कल्याण भाव के साथ उदात्त और निश्छल जीवन को चरितार्थ कर अशोक जी ने कार्यकर्ताओं की एक अनंत श्रृंखला खड़ी की जो अपना सर्वस्व अर्पित कर समाज-देश के लिए अहर्निश तत्पर है। श्री अशोक सिंहल एक व्यक्ति नहीं, बड़ी संस्था थे। वे सामान्य मानव नहीं देवदुर्लभ महामानव थे। सत्य, अहिंसा और प्रेम के सिद्धांतों पर डिगे रहने वाले अशोक जी एक क्रांतिकारी आंदोलनकर्ता थे जिन्होंने जो मुद्दा पकड़ा उसको समाधान की परिणति तक पहुंचाया। भारत देश ने ही नहीं अपितु समूचे विश्व ने एक हिन्दू पुरोधा को अपने बीच से भले ही खो दिया हो। लेकिन उनके द्वारा सात्विक भाव एवं सदाचरण से रोपी गयी हिन्दू संस्कृति की विशाल बेल निरंतर आगे बढ़ती रहेगी और भावी संततियों के लिए भी एक वरदान सिद्ध होगी। प्रस्तुत है सांस्कृतिक पुनर्जागरण के कालजयी पुरोधा अशोक सिंहल जी की पावन स्मृतियों को सजल श्रद्धांजलि के साथ उकेरता, उनके सहयात्रियों के भावपूर्ण विचार समेटे, यह विशिष्ट आयोजन।     

श्री राम जन्मभूमि का इतिहास

$
0
0

श्री राम जन्मभूमि का इतिहास

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि का इतिहास लाखो वर्ष पुराना है । इस पोस्ट में विभिन्न पुस्तकों से मिले कुछ तथ्यों को संकलित करने का प्रयास कर रहा हूँ , जिससे रामजन्मभूमि और इतिहास के बारे में वास्तविक जानकारी का संग्रहण , विवेचना और ज्ञान हो सके। ये सारे तथ्य विभिन्न पुस्तकों में उपलब्ध हैं , मगर सरकारी मशीनरी और तुस्टीकरण के पुजारी उन्हें सामान्य जनमानस तक नहीं आने देते मैंने सिर्फ उन तथ्यों का संकलन करके आप के सामने प्रस्तुत किया है॥
श्री रामजन्मभूमि का ईसापूर्व इतिहास..
त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्रजी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट , सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवंमहत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है ॥धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥
भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के पश्चात अयोध्या तो पहले जैसी नहीं रही मगर जन्मभूमि सुरक्षित रही। भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसकी अस्तित्व आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल तक अपने चरम पर रहा॥ कौशालराज वृहद्वल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथो हुई । महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी मगर श्री रामजन्मभूमि का अस्तित्व प्रभुकृपा से बना रहा ॥
श्री राम जन्म भूमि का नक्शा
श्री राम जन्म भूमि का नक्शा
महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण:
ईसा के लगभग १०० वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य आखेट करतेकरते अयोध्या चले आये। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी केकिनारे एक आम के बृक्ष के नीचे वो आराम करने लगे। उसी समय दैवीय प्रेरणा से तीर्थराज प्रयाग से उनकी मुलाकात हुई और तीर्थराज प्रयाग ने सम्राट विक्रमादित्यको अयोध्या और सरयू की महत्ता के बारे में बताया और उस समय तक नष्ट सी हो गयी श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के लिए कहा॥
महाराजा विक्रमादित्य ने कहा की महाराज अयोध्या तो उजड़ गयी है , मिटटी के टीले और स्तूप ही यहाँ अवशेषों के रूप में हैं , फिर मुझे ज्ञान कैसे होगा की अयोध्या नगरी कहा से शुरू होती है , क्षेत्रफल कितना होगा और किस स्थान पर कौन सा तीर्थ है ॥
इस संशय का निवारण करते हुए तीर्थराज प्रयाग ने कहा की यहाँ से आधे योजन की दूरी पर मणिपर्वत है , उसके ठीक दक्षिण चौथाई योजन के अर्धभाग में गवाक्ष कुण्ड है उस गवाक्ष कुण्ड से पश्चिम तट से सटा हुआ एक रामनामी बृक्ष है , यह वृक्ष अयोध्या की परिधि नापने के लिए ब्रम्हा जीने लगाया था। सैकड़ो वर्षों से यह वृक्ष उपस्थित है वहा। उसी वृक्ष के पश्चिम ठीक एक मिल की दूरी पर एक मणिपर्वत है। मणिपर्वत के पश्चिम सटा हुआ गणेशकुण्ड नाम का एक सरोवर है , उसके ऊपर शेष भगवान का एक मंदिर बना हुआ है ( ज्ञातव्य है की अब इस स्थान पर अयोध्या में शीश पैगम्बर नाम की एक मस्जिद है जिसे सन १६७५ में औरंगजेब ने शेष भगवान के मंदिर को गिरा कर बनवाया था ). शेष भगवान के मंदिर से ५०० धनुष पर ठीक वायव्य कोण पर भगवान श्री राम की जन्मभूमि है॥
रामनामी वृक्ष(यह वृक्ष अब सूखकर गिर चुका है) के एक मील के इर्द गिर्द एक नवप्रसूता गाय को ले कर घुमाओ जिस जगह वह गाय गोबर कर दे , वह स्थल मणिपर्वत है फिर वहा से ५०० धनुष नापकर उसी ओर गाय को ले जा के घुमाओ जहाँ उसके स्तनों से दूधकी धारा गिरने लगे बस समझ लेना भगवान की जन्मभूमि वही है रामजन्मभूमि को सन्दर्भमान के पुरानो में वर्णित क्रम के अनुसार तुम्हे समस्त तीर्थो का पता लग जायेगा , ऐसा करने से तुम श्री राम की कृपा के अधिकारी बनोगे यह कहकर तीर्थराज प्रयाग अदृश्य हो गए॥
रामनवमी के दिन पूर्ववर्णित क्रम में सम्राट विक्रमादित्य नेसर्वत्र नवप्रसूता गाय को घुमाया जन्म भूमि पर उसके स्तनों से अपने आप दूध गिरने लगा उस स्थान पर महाराजा विक्रमादित्य ने श्री राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया॥
ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नोज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया फिर भारतवर्ष पर लुटेरे मुसलमानों का आक्रमण शुरू हो गया। मुसलमान आक्रमणकारियों ने जी भर के जन्मभूमि को लूटा और पुजारियों की हत्या भी कर दी , मगर मंदिर से मुर्तिया हटाने और मंदिर को तोड़ने में वे सफल न हो सके॥ विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावतो को झेलते हुए श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या १४वीं शताब्दी तक बची रही॥ चौदहवी शताब्दी में हिन्दुस्थान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही रामजन्मभूमि एवं अयोध्या को पूर्णरूपेण इस्लामिक साँचे मे ढालने एवं सनातन धर्म केप्रतीक स्तंभो को जबरिया इस्लामिक ढांचे मे बदलने के कुत्सित प्रयास शुरू हो गए॥
अब देखते है कि बाबर के आक्रमण के बाद अयोध्या में मस्जिद निर्माण कैसे हुआ , इस्लामिक आतताइयों ने कैसे अयोध्या का स्वरूप बदलने की कोशिश की और उसके बाद कई सौ सालो तक जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए हिन्दुओं द्वारा किये गए युद्ध एवं बलिदान एवं वे वीर
सन्दर्भ: प्राचीन भारत , लखनऊ गजेटियर , लाट राजस्थान , रामजन्मभूमि का इतिहास(आर जी पाण्डेय) , अयोध्या का इतिहास(लाला सीताराम) , बाबरनामा
हिन्दुस्थान मुग़ल आतताइयों के अधीन आया तो प्रथम शासक बाबर हुआ। बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ और उससमय जन्मभूमि महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द उच्च कोटि के ख्याति प्राप्त सिद्ध महात्मा थे। इनका प्रताप चारो और फैला था और हिन्दुधर्म के मूल सिधान्तो के अनुसार महात्मा श्यामनन्द किसी भी प्रकार का भेदभाव किसी से नहीं रखते थे। यहाँ एक बार ध्यान देने योग्य बात ये है की जब जब हिन्दुधर्म के लोगो ने सहृदयता दिखाई है उसका खामियाजा आने वाले समय में पीढ़ियों को भुगतना पड़ा ।
महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकानअयोध्या आये और महात्मा श्री महात्मा श्यामनन्द के साधक शिष्य हो गए। महात्मा जी के सानिध्य में ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रामजन्मभूमि का इतिहास एवं प्रभाव विदित हुआ और उनकी श्रद्धा जन्मभूमि में हो गयी। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने महात्मा श्यामनन्द से आग्रह किया की उन्हें वो अपने जैसी दिव्य सिद्धियों को प्राप्त करने का मार्ग बताएं। महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से कहा की हिन्दू धर्म के अनुसार सिद्धि प्राप्ति करने के लिए तुम्हे योग की शिक्षा दी जाएगी , मगर वो तुम सिद्धि के स्तर तक नहीं कर पाओगे क्यूकी हिन्दुओं जैसी पवित्रता तुम नहीं रख पाओगे। अतः महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रास्ता सुझाते हुए कहा की “तुम इस्लाम धर्म की शरियत के अनुसार ही अपनेही मन्त्र “लाइलाह इल्लिलाह” का नियमपूर्वक अनुष्ठान करो ”। इस प्रकार मैं उन महान सिद्धियों को प्राप्त करने में तुम्हारी सहायता करूँगा। महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में बताये गए मार्ग से ख्वाजा कजल अब्बास मूसाने सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्योंमें लिया जाने लगा। ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में आया और सिद्धि प्राप्त करने के लिए ख्वाजा की तरह अनुष्ठान करने लगा।
जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था , और उसको एक ही सनक थी , हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना। जब जन्मभूमि की महिमा और प्रभाव को उसने देखा तो उसने अपनी लुटेरी मानसिकता दिखाते हुए उसने उस स्थान को खुर्द मक्का या छोटा मक्का साबित करने या यूँ कह लें उस रूप में स्थापित करने की कुत्सित आकांक्षा जाग उठी। जलालशाह ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो महात्मा श्यामनन्द की जगह हमे मिल जाएगी और चूकी अयोध्या की जन्मभूमि हिन्दुस्थान में हिन्दू आस्था का प्रतीक है तो यदि यहाँ जन्मभूमि पर मस्जिद बन गया तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसाइस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।
अब विवेचना के इस बिंदु पर उस समय के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर डालना जरुरी हो जाता है। हमारे इतिहास में एक गलत बात बताई जाती है की मुगलों ने पुरे भारत पर राज्य किया , हाँ उन्होंने एक बड़े हिस्से को जीता था मगर सर्वदा उन्हें हिन्दू वीरो से प्रतिरोध करना पड़ा और कुछ जयचंदों के कारण उनकी जड़े गहरी हुई। उस समय उदयपुर के सिंहासन पर महाराणा संग्राम सिंह राज्य कर रहे थे जिनकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। संग्रामसिंह को राणासाँगा के नाम से भी जाना जाता है । आगरे के पास फतेहपुर सीकरी में बाबर और राणासाँगा का भीषण युद्ध हुआ जिसमे बाबर घायल हो कर भाग निकला और अयोध्या आ के जलालशाह की शरण ली(ज्ञात रहे तब तक जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के सिद्धि की धाक आस पर के क्षेत्रों में महात्मा श्यामनन्द के सिद्धि प्राप्त साधकों के रूप में जम चूकी थी)। इसी समय जलालशाह ने बाबर पर अपना प्रभाव किया और बड़ी सेना ले कर युद्ध करने का आशीर्वाद दिया।बाबर ने राणासाँगा की ३० हजार सैनिको की सेना के सामने अपने ६ लाख सैनिको की सेना के साथ धावा बोल दिया और इस युद्ध में राणासाँगा की हार हुई । युद्ध के बाद राणासाँगा के ६०० और बाबर की सेना के ९० , ००० सैनिक जीवित बचे ।
इस युद्ध में विजय पा के बाबर फिर अयोध्या आया और जलालशाह से मिला , जलालशाह ने बाबर को अपनीं सिद्धी का भय और इस्लाम के आधिपत्य की बात बताकर अपनी योजना बताई और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के समर्थन की बात कही । बाबर ने अपने वजीर मीरबाँकी खा को ये काम पूरा करने का आदेश दिया और खुद दिल्ली चला गया। अब जलालशाह ने अयोध्या को खुर्द मक्का के रूप में स्थापित करने के अपने कुत्सित प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू किया। सर्वप्रथम प्राचीन इस्लामिक ढर्रे की लम्बी लम्बी कब्रों को बनवाया गया , दूर दूर से मुसलमानों के शव अयोध्या लाये जाने लगे। पुरे भारतवर्ष में ये बात फ़ैल गयी और भगवान राम की अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाट दिया गया॥ अब भी उनमे से कुछ अयोध्या में अयोध्या नरेश के महल के निकट कब्रों या मजारो के रूप में मिल जाएँगी।
अब जलालशाह ने मीरबाँकी खां के माध्यमसे मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया जिसमे ख्वाजा कजल अब्बास मूसा भी शामिल हो गए । बाबा श्यामनन्द जी अपने सड़क मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। भगवान का मंदिर तोड़ने की योजना के एक दिन पूर्व दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर खड़े हो गए उन्होंने कहा की रामलला के मंदिर में किसी का भी प्रवेश हमारी मृत्यु के बाद ही होगा। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए. उसके बाद तो देशभर के हिन्दू राम जन्मभूमि के कवच बन कर खड़े हो गए ॥
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66 वें अंकके पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार
हिंदुओं की लाशे गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया.. ज्ञातव्य रहे की मंदिर को बचने के लिए ये युद्धभीटी के राजा, राजा महताब सिंह ने लड़ा था और वीर गति को प्राप्त हुए एवं विवादित ढांचे का निर्माण किस प्रकार हुआ (जिसे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम भी देते हैं)
अयोध्या मे विवादित ढांचे(बाबरी मस्जिद) का निर्माण और बाबर की कूटनीति:
जैसा की पहले बताया जा चुका है जलालशाह की आज्ञा से मीरबाँकी खा ने तोपों से जन्भूमि पर बने मंदिर को गिरवा दिया और मस्जिद का निर्माण मंदिर की नींव और मंदिर निर्माण के सामग्रियों से ही शुरू हो गया॥ मस्जिद की दिवार को जब मजदूरो ने बनाना शुरू किया तो पूरे दिन जितनी दिवार बनती रात में अपने आप वो गिर जाती ॥ सबके मन मे एक प्रश्न की ये दीवार गिराता कौन है ?? मंदिर के चारो ओर सैनिको का पहरा लगा दियागया , महीनो तक प्रयास होते रहे लाखों रूपये की बर्बादी हुई मगर मस्जिद की एक दिवार तक न बन पाई ॥ हिन्दुस्थान के दो इस्लामिक गद्दारों ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह की सारी सिद्धियाँ उस समय धरी की धरी रह गयी ॥ सारे प्रयासों के पश्चात भी मस्जिद की एक दिवार भी न बन पाने की स्थिति में वजीर मीरबाँकी खा ने विवश हो के बाबर को इस समस्या के बारे में एक पत्र लिखा। बाबर ने मीरबाँकी खा को पत्र भिजवाया की मस्जिद निर्माण का काम बंद करकेवापस दिल्ल्की आ जाओ । एक बार पुनः जलालशाह ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए ये सन्देश भिजवाया की बाबर अयोध्या आये
जलालशाह का पत्र पा के बाबर वापस अयोध्या आया और जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से इस समस्या से निजात पाने का तरीका पूछा। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह ने सुझाव दिया की ये काम इस्लाम से प्राप्त की गयी सिद्धियों के वश का नहीं है , अब नीति से काम लेते हुए हमे हिन्दू संतो से वार्ता करनी चाहिए वही अपने प्रभाव और सिद्धियों से कुछ रास्ता निकाल सकते हैं।

बाबर ने हिन्दू संतो के पास वार्ता का प्रस्ताव भेजा.। उस समय तक जन्मभूमि टूट चुकी थी और अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाटना शुरू किया जा चूका था , पूजा पाठ भजन कीर्तनपर जलालशाह ने प्रतिबन्ध लगवा दिया था। इन विषम परिस्थितियों में हिन्दू संतो ने बाबर से वार्ता करने का निर्णय लिया जिससे काम जन्मभूमि के पुनरुद्धार का एक रास्ता निकाल सके।
बाबर ने अब धार्मिक सद्भावना की झूटी कूटनीति चलते हुए संतो से कहा की आप के पूज्य बाबा श्यामनन्द जी के बाद जलालशाह उनके स्वाभाविक उत्तराधिकारी है और ये मस्जिद निर्माण की हठ नहीं छोड़ रहे हैं , आप लोग कुछ उपाय बताएं उसके बदले में हिंदुओं को पुजा पाठ करने मे छूट दे दी जाएगी॥
हिन्दू महात्माओं ने जन्मभूमि को बचाने का आखिरी प्रयास करते हुए अपनी सिद्धि से इसका निवारण बताया की यहाँ एकपूर्ण मस्जिद बनाना असंभव कार्य है । मस्जिद के नाम से हनुमान जी इस ढांचे का निर्माण नहीं होने देंगे ।इसे मस्जिद का रूप मत दीजिये। इसे सीता जी (सीता पाक अरबी मे ) के नाम से बनवाइए ॥ और भी कुछ परिवर्तन कराये मस्जिद का रूप न देकर यहाँ हिन्दू महात्माओं को भजन कीर्तन पाठ की स्वतन्त्रता दी जाए चूकी जलालशाह अपनी मस्जिद की जिद पर अड़ा था अतः महात्माओं ने सुझाव दिया की एक दिन मुसलमान शुक्रवार के दिन यहाँ जुमे की नमाज पढ़ सकते हैं।
जलालशाह को हिंदुओं को छूट देने का विचार पसंद नहीं आया मगर कोई रास्ता न बन पड़ने के कारण उन्होने हिंदु संतों का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मंदिर के निर्माण के प्रयोजन हेतु दिवारे उठाई जाने लगी और दरवाजे पर सीता पाक स्थान फारसी भाषा मे लिखवा दिया गया जिसे सीता रसोई भी कहते हैं ॥ नष्ट किया गया सीता पाक स्थान पुनः बनवा दिया गया लकड़ी लगा कर मस्जिदके द्वार मे भी परिवर्तन कर दिया ॥ अब वो स्थान न तो पूर्णरूपेण मंदिर था न ही मस्जिद । मुसलमान वहाँ शुक्रवाकर को जुमे की नमाज अदा करते और बाकी दिन हिंदुओं को भजनऔर कीर्तन की अनुमति थी॥
इस प्रकार मुगल सम्राट बाबर ने अपनी कूटनीति से अयोध्या मे एक ढांचा तैयार करने मे सफलता प्राप्त की जिसे हमारे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम देते हैं॥ यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है किसी भी मस्जिद मे क्या किसी भी हिन्दू को पुजा पाठ या भजन कीर्तन की इजाजत इस्लाम देता है ? ? यदि नहीं तो बाबर ने ऐसा क्यू किया ?? जाहीर है उसके मन मे उन काफिरो के प्रति प्यार तो उमड़ा नहीं होगा जिनके घर की बहू बेटियों को वो जबरिया अपने हरम मे रखतेथी और यदि ये एक धार्मिक सदभाव का नमूना था तो मंदिर को ध्वस्त करते समय 1 लाख 74 हजार हिंदुओं की लाशे गिरते समय बाबर की ये सदभावना कहा थी ??


यदि मीरबाँकी एवं बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय और उसके तथ्यात्मक और प्रमाणिक विश्लेषण पर आए और उस समय आस पास इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ये जानने की कोशिश करे..
बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय की प्रतिक्रिया के प्रमाण इतिहास में किसी एक जगह संकलित नहीं मिलते हैं इसका कारण ये था की उसके बाद का ज्यादातर इतिहास मुगलों के अनुसार लिखा गया। कुछ एक मुग़ल कालीन राजपत्रों और दस्तावेजों के माध्यम से जो बाते उभर कर सामने आई वो निम्नवत हैं.
जब मंदिर तोड़ने का निर्णय लिया गया उस समय बाबर ने व्यापक हिन्दू प्रतिक्रिया को देखते हुए बाहर के राज्यों से हिन्दुओं को अयोध्या आने पर रोक लगा दिया गया था। सरकार की आज्ञा प्रचारित की गयी की कोई भी ऐसा व्यक्ति जैस्पर ये संदेह हो की वह हिन्दू है और अयोध्या जाना चाहता है उसे कारागार मे डाल दिया जाए।
सन १९२४ मार्डन रिव्यू नाम के एक पत्र में “राम की अयोध्या नाम” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ जिसके लेखक श्री स्वामी सत्यदेव परिब्रापजक थे जो की एक अत्यंत प्रमाणिक लेखक थे । स्वामी जी दिल्ली में अपने किसी शोध कार्य के लिए पुराने मुगलकालीन कागजात खंगाल रहे थे उसी समय उनको प्राचीन मुगलकालीन सरकारी कागजातों के साथ फारसी लिपि में लिथो प्रेस द्वारा प्रकाशित , बाबर का एक शाही फरमान प्राप्त हुआ जिस पर शाही मुहर भी लगी हुई थी। ये फरमान अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर कोगिराकर मस्जिद बनाने के सन्दर्भ में शाही अधिकारियों को जारी किया गया था । यह पत्र माडर्न रिव्यू के ६ जुलाई सन १९२४ के “श्री राम की अयोध्या” धारावाहिक में भी छपा था. उस फरमान का हिंदी अनुबाद निम्नवत है ।

“शहंशाहे हिंद मालिकूल जहाँ बाबर के हुक्म से हजरत जलालशाह (ज्ञात रहे ये वही जलालशाह है जो पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिया था) के हुक्म के बमुजिव अयोध्या के राम की जन्मभूमि को मिसमार करके उसी जगह पर उसी के मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गयी. बजरिये इस हुक्मनामे के तुमको बतौर इत्तिला के आगाह किया जाता है की हिंदुस्तान के किसी भी गैर सूबे से कोई हिन्दू अयोध्या न जाने पावे जिस शख्श पर यह सुबहा हो की यह अयोध्या जाना चाहता है फ़ौरन गिरफ्तार करके दाखिले जिन्दा कर दिया जाए. हुक्म सख्ती से तमिल हो फर्ज समझकर” … (अंत में बाबर की शाही मुहर)

बाबर के उपरोक्त हुक्मनामे से स्पष्ट होता है की उस समय की मुग़ल सरकार भी यह समझती थी की श्री राम जन्मभूमि को तोड़ कर उस जगह पर मस्जिद खड़ा कर देना आसान काम नहीं है। इसका प्रभाव सारे हिंदुस्थान पर पड़ेगा। धार्मिक भावनाए आहत होने से हिंदुओं का परे देश मे ध्रुवीकरण हो जाएगा उस स्थिति मे दिल्ली का सिंहासन बचना मुश्किल होगा अतः अयोध्या को अन्य प्रांतो से अलग थलग करने का हुक्मनामा जारी किया गया॥

चूकी उपलब्ध साक्ष्यों की परिधि के इर्दगिर्द ही ये विश्लेषण है अतः पूरे दावे के साथ मैं ये नहीं कह सकता की बाबर के इस फरमान की प्रतिक्रिया या असर क्या रहा ?? क्यूकी कोई ठोस लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है मगर जैसा पहले भी मैं लिख चूका हूँ , कनिंघम के लखनऊ गजेटियर में प्रकाशित रिपोर्ट यह बतलाती है कीयुद्ध करते हुए जब एक लाख चौहत्तर हजार हिन्दू जब मारे जा चुके थे और हिन्दुओं की लाशोंका ढेर लग गया तब जा के मीरबाँकी खां ने तोप के द्वारा रामजन्मभूमि मंदिर गिरवाया। कनिंघम के पास इस रिपोर्ट के क्या साक्ष्य थे ये तो कनिंघम के साथ ही चले गए मगर इस रिपोर्ट से एक बात स्थापित हुई की वहांमंदिर गिराने से पहले हिन्दुओं का प्रतिरोध हुआ था और उनकी बड़े स्तर पर हत्या भी हुई थी।
ईसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की ” जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना केलखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। ”
ये तो हुए अन्य इतिहासकारों के प्रसंग अब आते हैं बाबरनामा के एक प्रसंग पर जिसे पढ़करये बात तो स्थापित हो जाती है की बाबर के आदेश से जन्मभूमि का मंदिर ध्वंस हुआ था और उसी जगह पर विवादित ढांचा(मस्जिद) बनवाई गयी ..
बाबर के शब्दों में .. ” हजरत कजल अब्बास मूसा आशिकन कलंदर साहब ( ज्ञात रहे ये वही हजरत कजल अब्बास मूसा हैं जो जलालशाह के पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिए) की इजाजत से जन्मभूमि मंदिर को मिसमार करके मैंने उसी के मसाले से उसी जगह पर यह मस्जिद तामीर की ( सन्दर्भ: बाबर द्वारा लिखित बाबरनामा पृष्ठ १७३)
इस प्रकार बाबर , वजीर मीरबाँकी खा के अत्याचारों कूटनीति और महात्माश्यामनन्द जी महाराज के दो आस्तीन में छुरा भोंकने वाले शिष्यों हजरत कजल अब्बास मूसा और जलालशाह के धोखेबाजी के फलस्वरूप रामजन्मभूमि का मंदिर गिराया गया और एक विवादित ढांचें (जिसे कुछ भाई मस्जिद का नाम देते हैं) का निर्माण हुआ ॥

बाबर के समय में चार आक्रमण:
( १) राजा महताब सिंह का पहला आक्रमण: बाबर के समय जन्मभूमि को मुसलमानों से मुक्त करने के लिए सर्वप्रथम आक्रमण भीटी के राजा महताब सिंह द्वारा किया गया। जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय सम्पूर्ण हिन्दू जनमानस में एक प्रकार से क्रोध और क्षोभ की लहर दौड़ गयी। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे , अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। चुकी महताब सिंह के पास सेना छोटी थी अतः उन्हें परिणाम मालूम था मगर उन्होंने निश्चय किया की रामलला के मंदिर को अपने जीते जी ध्वस्त नहीं होने देंगे उन्होंने सुबह सुबह अपने आदमियों को भेजकर सेना तथा कुछ हिन्दुओं को की सहायता से १ लाख चौहत्तर हजार लोगो को तैयार कर लिया. बाबर की सेना में ४ लाख ५० हजार सैनिक थे। युद्ध का परिणाम एकपक्षीय हो सकता था मगर रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। भीटी के राजा महताब सिंह ने कहा की बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकला था यदि वीरगति को प्राप्त हुआ तो सीधा स्वर्ग गमन होगा और उन्होंने युद्ध शुरू कर दिया । रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम होता र हा और अंत में राजा महताब सिंह समेत सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए बाबर की४ लाख ५० हजार की सेना के अब तीन हजार एक सौ पैतालीस सैनिक बचे रहे। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवाया।

(2) देवीदीन पाण्डेय द्वारा द्वितीय आक्रमण:(३ जून १५१८-९ जून १५१८) राजा महताब सिंह और लाखो हिन्दुओं को क़त्ल करने के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण हुआ पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ । उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गांव है वहां के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया॥

देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं ..आप के पूर्वज श्री राम थे और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। श्री राम ने महर्षि भरद्वाज से प्रयाग में दीक्षा ग्रहण की थी और अश्वमेघ में हमे १० हजार बीघे का द्वेगांवा नामक ग्राम दिया था..आज उसी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥


देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरजस्त धावा बोल दिया इस एकाएक हुए आक्रमण से मीरबाँकी घबरा उठा। शाही सेना से लगातार ५ दिनों तक युद्ध हुआ शाही सेना संख्या बल में काफी बड़ी थी और रामभक्त काम मगर राम के लिए बलिदान देने को तैयार । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय की खोपड़ी बुरी तरह फट गयी मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया और मीरबाँकी को ललकारा। मीरबाँकी तो छिप कर बच निकला मगर तलवार के वार से महावत सहित हाथी मर गया। इसी बीच मीरबाँकी ने गोली चलायी जो पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी को लगी और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर गति को प्राप्त हुए.जैसा की देवीदीन पाण्डेय की इच्छा थी उनका अंतिम संस्कार विल्हारी घाट पर किया गया। यह आक्रमण देवीदीन जी ने ३ जून सन १५१८ को किया था और ९ जून १५१८ को २ बजे दिन में देवीदीन पाण्डेय वीरगति को प्राप्त हो गए। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं॥

इस युद्ध की प्रमाणिकता बाबर द्वारा लिखित”तुजुक बाबरी” से प्रमाणित होती है…बाबर के शब्दों में…..
” जन्मभूमि को शाही अख्तियारों से बाहर करने के लिए जो चार हमले हुए उनमे से सबसे बड़ा हमला देवीदीन पांडे का था , इस शख्स ने एक बार में सिर्फ तीन घंटे के भीतर गोलियों की बौछार के रहते हुए भी , शाही फ़ौज के सात सौ आदमियों का क़त्ल किया। सिपाही की ईट से खोपड़ी चकनाचूरहो जाने के बाद भी वह उसे अपनी पगड़ी के कपडे से बांध कर लड़ा जैसे किसी बारूद की थैली में पलीतालगा दिया गया हो आखिरी में वजीर मीरबाँकी की गोली से उसकी मृत्यु हुई॥ सन्दर्भ “तुजुक बाबरी पृष्ठ ५४०”
(3)हंसवर राजा रणविजय सिंह द्वारा तीसरा आक्रमण: देवीदीन पाण्डेय की मृत्यु के १५दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने आक्रमण करने को सोचा। हालाकी रणविजय सिंह की सेना में सिर्फ २५ हजार सैनिक थे और युद्ध एकतरफा था मीरबाँकी की सेना बड़ी और शस्त्रो से सुसज्जित थी , इसके बाद भी रणविजय सिंह ने जन्मभूमि रक्षार्थ अपने क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए युद्ध को श्रेयस्कर समझा। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए।
(4) माताओं बहनों का जन्मभूमि के रक्षार्थ आक्रमण: रानी जयराज कुमारी का नारी सेना बना कर जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी ।जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया। बाबर की अपार सैन्य सेना के सामने ३ हजार नारियों की सेना कुछ नहीं थी अतः उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा और वो युद्ध रानी जयराज कुमारी ने हुमायूँ के शासनकाल तक जारी रखा जब तक की जन्मभूमि को उन्होंने अपने कब्जे में नहीं ले लिया। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तो को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। चूकी रामजन्म भूमि के लिए संतो और छोटे राजाओं के पास शाही सेना के बराबर संख्याबल की सेना नहीं होती थी अतः स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ , हुमायूँ के समय १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये और १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी काअधिकार हो गया।


लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूर्ण रूप से तैयार शाही सेना फिर भेजी , इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया।

इस युद्ध किया वर्णन दरबरे अकबरी कुछ इस प्रकार करता है
” सुल्ताने हिन्द बादशाह हुमायूँ के वक्त मे सन्यासी स्वामी महेश्वरानन्द और रानी जयराज कुमारी दोनों अयोध्या के आस पास के हिंदुओं को इकट्ठा करके लगातार 10 हमले करते रहे । रानी जयराज कुमारी ने तीन हज़ार औरतों की फौज लेकर बाबरी मस्जिद पर जोआखिरी हमला करके कामयाबी हासिल की । इस लड़ाई मे बड़ी खूंखार लड़ाई लड़ती हुई जयराजकुमारी मारी गयी और स्वामी महेश्वरानंद भी अपने सब साथियों के साथ लड़ते लड़ते खेत रहे।
संदर्भ: दरबारे अकबरी पृष्ठ 301 लेख के अगले भाग मे मै कुछ अन्य हिन्दू एवं सिक्ख वीरों वर्णन दूंगा जिन्होने जन्मभूमि के रक्षार्थ अनेकों युद्ध किए और जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास किया॥
अब जन्मभूमि के लिए हुए अनेको संघर्ष : स्वामीबलरामचारी , बाबा वैष्णवदास , एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह द्वारा जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध , औजरंगजेब की करारी हार।सन 1664 के हमले मे हजारोनिर्दोष हिंदुओं की हत्या और बचा हुआ राम मंदिर ध्वस्त ॥

(5)स्वामी बलरामचारी द्वारा आक्रमण: रानी जयराज कुमारी और स्वामीमहेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामीबलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांवो गांवो में घूम कर रामभक्त हिन्दू युवको और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम से काम १५बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी. स्वामी बालरामचारी का २० वां आक्रमण बहुत प्रबल था और शाही सेना को काफी क्षति उठानी पड़ी। उस समय का मुग़ल शासक अकबर था वो स्वामी बलरामचारी की वीरता से प्रभावित हुआ और शाही सेना का हर आते हुए दिन के साथ इन युद्धों से क्षय हो रहा था..धीरे धीरे देश के हालत मुगलों के खिलाफ होते जा रहे थे अतः अकबर ने अपने दरबारी टोडरमल और बीरबल से इसका हल निकालने को कहा।
विवादित ढांचे के सामने स्वामी बलरामचारी ने एक चबूतरा बनवाया था जब जन्मभूमि थोड़े दिनों के लिए उनके अधिकार में आई थी। अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया. लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु हो गयी ..इस प्रकार स्वामी बलरामचारी के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष के कारण अकबर ने विवादित ढांचे के सामनेएक छोटा मंदिर बनवाकर आने वाले आक्रमणों और हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास किया.

इस नीति से कुछ दिनो के लिए ये झगड़ा शांत हो गया। उस चबूतरे पर स्थित भगवान राम की मूर्ति का पूजन पाठ बहुत दिनो तक अबाध गति से चलता रहा। हिंदुओं के पुजा पाठ या घंटा बजने पर कोई मुसलमान विरोध नहीं करता यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा।सन 1640 मे सनकी इस्लामिक शासक औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो पूर्णतया हिंदुविरोधी और दमन करने वाला था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला।
(6) बाबा वैष्णव दास के नेतृत्व मे आक्रमण:
राजयसिंहासन पर बैठते हि सबसे पहले औरंगजेब का ध्यान अयोध्या की ओर गया । हिंदुधर्मविरोधी औरंगजेब ने अपने सिपहसालार जाँबाज खा के नेतृत्व मे एक विशाल सेना अयोध्या की ओर भेज दी। पुजारियों को ये बात पहले हि मालूम हो गयी अतः उन्होने भगवान की मूर्ति पहले ही छिपा दी। पुजारियों ने रातो रात घूमकर हिंदुओं को इकट्ठा किया ताकि प्राण रहने तक जन्मभूमि की रक्षा की जा सके। उन दिनो अयोध्या के अहिल्याघाट पर परशुराम मठ मे समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी दक्षिण भारत से यहाँ विधर्मियों से देश को मुक्त करने के प्रयास मे आए हुए थे। औरंगजेब के समय बाबा श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपालसिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाहीसेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे और अंततः वीरगति को प्राप्त हुये। ठाकुर गजराज सिंह का मकान तक बादशाह के हुक्म पर खुदवा डाला। ठाकुर गजराज सिंह के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते , जूता नहीं पहनते , छता नहीं लगाते , उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे , छाता नहीं लगाएंगे , पगड़ी नहीं बाधेंगे। तत्कालीन कवि जयराज के एक दोहे मे ये भीष्म प्रतिज्ञा इस प्रकार वर्णित है ॥

जन्मभूमि उद्धार होय , जा दिन बरी भाग। छाता जग पनही नहीं , और न बांधहि पाग॥
(7) ) बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह द्वारा जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध: जैसा की पहले बताया जा चुका है की औरंगजेब ने गद्दी पर बैठते ही मंदिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व मे एक जबरजस्त सेना भेज दी थी , बाबा वैष्णव दास को इस बात की भनक लगी बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जोहर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनो तक भीषण युद्ध किया । चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से मुगलो की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी ।
जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटकर एक अन्य सिपहसालारसैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिको की सेना देकर अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को तहस नहस कर के वापस आना है ,यह समय सन 1680 का था ।

बाबा वैष्णव दास ने अपने संदेशवाहको द्वारा सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा । गुरुगोविंद सिंह उस समय आगरे मे सिक्खों की एक सेना ले कर मुगलो को ठिकाने लगा रहे थे। पत्र पा के गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेराडा ला । ज्ञातव्य रहे की ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद्सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास के जासूसों द्वारा ये खबर आई की हसन आली 50 हजार कीसेना और साथ मे तोपखाना ले कर अयोध्या की ओर आ रहा है । इसे देखते हुए एक रणनीतिक निर्णय के तहत बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह ने अपनी सेना को तीन भागों मे विभक्त कर दिया । पहला दल सिक्खों के एक छोटे से तोपखाने के साथ फैजाबाद के वर्तमान सहादतगंज के खेतो के पास छिप गए । दूसरा दल जो क्षत्रियों का था वो रुदौली मे इस्लामिक सेना से लोहा लेने लगे। और बाबा वैष्णव दास का तीसरा दल चिमटाधारी जालपा नाला पर सरपत के जंगलो मे जगह ले कर मुगलो की प्रतीक्षा करने लगा।
शाही सेना का सामना सर्वप्रथम रुदौली के क्षत्रियों से हुआ एक साधारण सी लड़ाई के बाद पूर्वनिर्धारित रणनीति के अनुसार वो पीछे हट गए और चुपचाप सिक्खों की सेना से मिल गए । मुगल सेना ने समझा की हिन्दू पराजित हो कर भाग गये , इसी समय गुरुगोविंद सिंह के नेतृत्व मे सिक्खों का दल उन पर टूटपड़ा , दूसरे तरफ से हिंदुओं का दल भी टूट पड़ा सिक्खों ने मुगलो की सेना के शाही तोपखाने पर अधिकार कर लिया दोनों तरफ से हुए सुनियोजित हमलो से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था इस करारी हार के बाद औरंगजेब ने कुछ समय तक अयोध्या पर हमले का कार्यक्रम स्थगित कर दिया । हिंदुओं से मिली इस हार का वर्णन औरंगजेब आलमगीर नामे मेकुछ इस प्रकार लिखता है

“बाबरी मस्जिद के लिए काफिरो ने 20 हमले किए सबमे लापरवाही की वजह से शाही फौज ने शिकस्त खायी। आखिरी हमला जो गुरुगोविंदसिंह के साथ बाबा वैष्णव दास का हुआ उसमे शाही फौज का सबसे बड़ा नुकसान हुआ । इस लड़ाई मे शहजादा मनसबदार सरदार हसन ली खाँ भी मारे गये ।” संदर्भ: आलमगीर पृष्ठ623

इस युद्ध के बाद 4 साल तक औरंगजेब ने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। मगर इन चार वर्षों मे हिन्दू कुछ असावधान हो गए। औरंगजेब ने इसका लाभ उठाते हुए सान 1664 मे पुनः एक बार श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया ।इन चार वर्षों मे सभी एकत्रित हिन्दू अपने अपने क्षेत्रों मे चले गए थे।अतः ये एकतरफा युद्ध था हालाँकि कुछ पुजारियों और हिंदुओं ने मंदिर रक्षा का प्रयत्न किया मगर शाही सेना के सामने निहत्थे हिन्दू जीतने की स्थिति मे नहीं थे , पुजारियों ने रामलला की प्रतिमा छिपा दी । इस हमले मे शाही फौज ने लगभग 10 हजार हिंदुओं की हत्या कर दी ।मंदिर के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था , सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलो ने उसमे फेककर चारो ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है , और मंदिर के पूर्वी द्वार पर स्थित है जिसे मुसलमान अपनी संपत्ति बताते हैं।
औरंगजेब ने इसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया है । ‘
“लगातार चार बरस तक चुप रहने के बाद रमजान की 27वी तारीख को शाही फौज ने फिर अयोध्या की रामजन्मभूमि पर हमला किया । इस अचानक हमले मे दस हजार हिन्दू मारे गये। उनका चबूतरा और मंदिर खोदकर ज़मींदोज़ कर दिया गया । इस वक्त तक वह शाही देखरेख मे है। संदर्भ: आलमगीरनामा पृष्ठ 630

शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था । औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत , पुष्प और जल चढाती रहती थी.


-------------------------------------------------

श्री राम जन्मभूमि का इतिहास

July 23, 2014 in History Leave a comment


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि का इतिहास लाखो वर्ष पुराना है । इस पोस्ट में विभिन्न पुस्तकों से मिले कुछ तथ्यों को संकलित करने का प्रयास कर रहा हूँ , जिससे रामजन्मभूमि और इतिहास के बारे में वास्तविक जानकारी का संग्रहण , विवेचना और ज्ञान हो सके। ये सारे तथ्य विभिन्न पुस्तकों में उपलब्ध हैं , मगर सरकारी मशीनरी और तुस्टीकरण के पुजारी उन्हें सामान्य जनमानस तक नहीं आने देते मैंने सिर्फ उन तथ्यों का संकलन करके आप के सामने प्रस्तुत किया है॥

श्री रामजन्मभूमि का ईसापूर्व इतिहास..

त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्रजी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट , सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवंमहत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है ॥धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥

भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के पश्चात अयोध्या तो पहले जैसी नहीं रही मगर जन्मभूमि सुरक्षित रही। भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसकी अस्तित्व आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल तक अपने चरम पर रहा॥ कौशालराज वृहद्वल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथो हुई । महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी मगर श्री रामजन्मभूमि का अस्तित्व प्रभुकृपा से बना रहा ॥

महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण:

ईसा के लगभग १०० वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य आखेट करतेकरते अयोध्या चले आये। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी केकिनारे एक आम के बृक्ष के नीचे वो आराम करने लगे। उसी समय दैवीय प्रेरणा से तीर्थराज प्रयाग से उनकी मुलाकात हुई और तीर्थराज प्रयाग ने सम्राट विक्रमादित्यको अयोध्या और सरयू की महत्ता के बारे में बताया और उस समय तक नष्ट सी हो गयी श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के लिए कहा॥

महाराजा विक्रमादित्य ने कहा की महाराज अयोध्या तो उजड़ गयी है , मिटटी के टीले और स्तूप ही यहाँ अवशेषों के रूप में हैं , फिर मुझे ज्ञान कैसे होगा की अयोध्या नगरी कहा से शुरू होती है , क्षेत्रफल कितना होगा और किस स्थान पर कौन सा तीर्थ है ॥

इस संशय का निवारण करते हुए तीर्थराज प्रयाग ने कहा की यहाँ से आधे योजन की दूरी पर मणिपर्वत है , उसके ठीक दक्षिण चौथाई योजन के अर्धभाग में गवाक्ष कुण्ड है उस गवाक्ष कुण्ड से पश्चिम तट से सटा हुआ एक रामनामी बृक्ष है , यह वृक्ष अयोध्या की परिधि नापने के लिए ब्रम्हा जीने लगाया था। सैकड़ो वर्षों से यह वृक्ष उपस्थित है वहा। उसी वृक्ष के पश्चिम ठीक एक मिल की दूरी पर एक मणिपर्वत है। मणिपर्वत के पश्चिम सटा हुआ गणेशकुण्ड नाम का एक सरोवर है , उसके ऊपर शेष भगवान का एक मंदिर बना हुआ है ( ज्ञातव्य है की अब इस स्थान पर अयोध्या में शीश पैगम्बर नाम की एक मस्जिद है जिसे सन १६७५ में औरंगजेब ने शेष भगवान के मंदिर को गिरा कर बनवाया था ). शेष भगवान के मंदिर से ५०० धनुष पर ठीक वायव्य कोण पर भगवान श्री राम की जन्मभूमि है॥

रामनामी वृक्ष(यह वृक्ष अब सूखकर गिर चुका है) के एक मील के इर्द गिर्द एक नवप्रसूता गाय को ले कर घुमाओ जिस जगह वह गाय गोबर कर दे , वह स्थल मणिपर्वत है फिर वहा से ५०० धनुष नापकर उसी ओर गाय को ले जा के घुमाओ जहाँ उसके स्तनों से दूधकी धारा गिरने लगे बस समझ लेना भगवान की जन्मभूमि वही है रामजन्मभूमि को सन्दर्भमान के पुरानो में वर्णित क्रम के अनुसार तुम्हे समस्त तीर्थो का पता लग जायेगा , ऐसा करने से तुम श्री राम की कृपा के अधिकारी बनोगे यह कहकर तीर्थराज प्रयाग अदृश्य हो गए॥

रामनवमी के दिन पूर्ववर्णित क्रम में सम्राट विक्रमादित्य नेसर्वत्र नवप्रसूता गाय को घुमाया जन्म भूमि पर उसके स्तनों से अपने आप दूध गिरने लगा उस स्थान पर महाराजा विक्रमादित्य ने श्री राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया॥

ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नोज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया फिर भारतवर्ष पर लुटेरे मुसलमानों का आक्रमण शुरू हो गया। मुसलमान आक्रमणकारियों ने जी भर के जन्मभूमि को लूटा और पुजारियों की हत्या भी कर दी , मगर मंदिर से मुर्तिया हटाने और मंदिर को तोड़ने में वे सफल न हो सके॥ विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावतो को झेलते हुए श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या १४वीं शताब्दी तक बची रही॥ चौदहवी शताब्दी में हिन्दुस्थान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही रामजन्मभूमि एवं अयोध्या को पूर्णरूपेण इस्लामिक साँचे मे ढालने एवं सनातन धर्म केप्रतीक स्तंभो को जबरिया इस्लामिक ढांचे मे बदलने के कुत्सित प्रयास शुरू हो गए॥

अब देखते है कि बाबर के आक्रमण के बाद अयोध्या में मस्जिद निर्माण कैसे हुआ , इस्लामिक आतताइयों ने कैसे अयोध्या का स्वरूप बदलने की कोशिश की और उसके बाद कई सौ सालो तक जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए हिन्दुओं द्वारा किये गए युद्ध एवं बलिदान एवं वे वीर

सन्दर्भ: प्राचीन भारत , लखनऊ गजेटियर , लाट राजस्थान , रामजन्मभूमि का इतिहास(आर जी पाण्डेय) , अयोध्या का इतिहास(लाला सीताराम) , बाबरनामा

हिन्दुस्थान मुग़ल आतताइयों के अधीन आया तो प्रथम शासक बाबर हुआ। बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ और उससमय जन्मभूमि महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द उच्च कोटि के ख्याति प्राप्त सिद्ध महात्मा थे। इनका प्रताप चारो और फैला था और हिन्दुधर्म के मूल सिधान्तो के अनुसार महात्मा श्यामनन्द किसी भी प्रकार का भेदभाव किसी से नहीं रखते थे। यहाँ एक बार ध्यान देने योग्य बात ये है की जब जब हिन्दुधर्म के लोगो ने सहृदयता दिखाई है उसका खामियाजा आने वाले समय में पीढ़ियों को भुगतना पड़ा ।

महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकानअयोध्या आये और महात्मा श्री महात्मा श्यामनन्द के साधक शिष्य हो गए। महात्मा जी के सानिध्य में ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रामजन्मभूमि का इतिहास एवं प्रभाव विदित हुआ और उनकी श्रद्धा जन्मभूमि में हो गयी। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने महात्मा श्यामनन्द से आग्रह किया की उन्हें वो अपने जैसी दिव्य सिद्धियों को प्राप्त करने का मार्ग बताएं। महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से कहा की हिन्दू धर्म के अनुसार सिद्धि प्राप्ति करने के लिए तुम्हे योग की शिक्षा दी जाएगी , मगर वो तुम सिद्धि के स्तर तक नहीं कर पाओगे क्यूकी हिन्दुओं जैसी पवित्रता तुम नहीं रख पाओगे। अतः महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रास्ता सुझाते हुए कहा की “तुम इस्लाम धर्म की शरियत के अनुसार ही अपनेही मन्त्र “लाइलाह इल्लिलाह” का नियमपूर्वक अनुष्ठान करो ”। इस प्रकार मैं उन महान सिद्धियों को प्राप्त करने में तुम्हारी सहायता करूँगा। महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में बताये गए मार्ग से ख्वाजा कजल अब्बास मूसाने सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्योंमें लिया जाने लगा। ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में आया और सिद्धि प्राप्त करने के लिए ख्वाजा की तरह अनुष्ठान करने लगा।

जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था , और उसको एक ही सनक थी , हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना। जब जन्मभूमि की महिमा और प्रभाव को उसने देखा तो उसने अपनी लुटेरी मानसिकता दिखाते हुए उसने उस स्थान को खुर्द मक्का या छोटा मक्का साबित करने या यूँ कह लें उस रूप में स्थापित करने की कुत्सित आकांक्षा जाग उठी। जलालशाह ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो महात्मा श्यामनन्द की जगह हमे मिल जाएगी और चूकी अयोध्या की जन्मभूमि हिन्दुस्थान में हिन्दू आस्था का प्रतीक है तो यदि यहाँ जन्मभूमि पर मस्जिद बन गया तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसाइस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।

अब विवेचना के इस बिंदु पर उस समय के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर डालना जरुरी हो जाता है। हमारे इतिहास में एक गलत बात बताई जाती है की मुगलों ने पुरे भारत पर राज्य किया , हाँ उन्होंने एक बड़े हिस्से को जीता था मगर सर्वदा उन्हें हिन्दू वीरो से प्रतिरोध करना पड़ा और कुछ जयचंदों के कारण उनकी जड़े गहरी हुई। उस समय उदयपुर के सिंहासन पर महाराणा संग्राम सिंह राज्य कर रहे थे जिनकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। संग्रामसिंह को राणासाँगा के नाम से भी जाना जाता है । आगरे के पास फतेहपुर सीकरी में बाबर और राणासाँगा का भीषण युद्ध हुआ जिसमे बाबर घायल हो कर भाग निकला और अयोध्या आ के जलालशाह की शरण ली(ज्ञात रहे तब तक जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के सिद्धि की धाक आस पर के क्षेत्रों में महात्मा श्यामनन्द के सिद्धि प्राप्त साधकों के रूप में जम चूकी थी)। इसी समय जलालशाह ने बाबर पर अपना प्रभाव किया और बड़ी सेना ले कर युद्ध करने का आशीर्वाद दिया।बाबर ने राणासाँगा की ३० हजार सैनिको की सेना के सामने अपने ६ लाख सैनिको की सेना के साथ धावा बोल दिया और इस युद्ध में राणासाँगा की हार हुई । युद्ध के बाद राणासाँगा के ६०० और बाबर की सेना के ९० , ००० सैनिक जीवित बचे ।

इस युद्ध में विजय पा के बाबर फिर अयोध्या आया और जलालशाह से मिला , जलालशाह ने बाबर को अपनीं सिद्धी का भय और इस्लाम के आधिपत्य की बात बताकर अपनी योजना बताई और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के समर्थन की बात कही । बाबर ने अपने वजीर मीरबाँकी खा को ये काम पूरा करने का आदेश दिया और खुद दिल्ली चला गया। अब जलालशाह ने अयोध्या को खुर्द मक्का के रूप में स्थापित करने के अपने कुत्सित प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू किया। सर्वप्रथम प्राचीन इस्लामिक ढर्रे की लम्बी लम्बी कब्रों को बनवाया गया , दूर दूर से मुसलमानों के शव अयोध्या लाये जाने लगे। पुरे भारतवर्ष में ये बात फ़ैल गयी और भगवान राम की अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाट दिया गया॥ अब भी उनमे से कुछ अयोध्या में अयोध्या नरेश के महल के निकट कब्रों या मजारो के रूप में मिल जाएँगी।

अब जलालशाह ने मीरबाँकी खां के माध्यमसे मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया जिसमे ख्वाजा कजल अब्बास मूसा भी शामिल हो गए । बाबा श्यामनन्द जी अपने सड़क मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। भगवान का मंदिर तोड़ने की योजना के एक दिन पूर्व दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर खड़े हो गए उन्होंने कहा की रामलला के मंदिर में किसी का भी प्रवेश हमारी मृत्यु के बाद ही होगा। जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए. उसके बाद तो देशभर के हिन्दू राम जन्मभूमि के कवच बन कर खड़े हो गए ॥

इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66 वें अंकके पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार
हिंदुओं की लाशे गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया.. ज्ञातव्य रहे की मंदिर को बचने के लिए ये युद्धभीटी के राजा, राजा महताब सिंह ने लड़ा था और वीर गति को प्राप्त हुए एवं विवादित ढांचे का निर्माण किस प्रकार हुआ (जिसे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम भी देते हैं)

अयोध्या मे विवादित ढांचे(बाबरी मस्जिद) का निर्माण और बाबर की कूटनीति:

जैसा की पहले बताया जा चुका है जलालशाह की आज्ञा से मीरबाँकी खा ने तोपों से जन्भूमि पर बने मंदिर को गिरवा दिया और मस्जिद का निर्माण मंदिर की नींव और मंदिर निर्माण के सामग्रियों से ही शुरू हो गया॥ मस्जिद की दिवार को जब मजदूरो ने बनाना शुरू किया तो पूरे दिन जितनी दिवार बनती रात में अपने आप वो गिर जाती ॥ सबके मन मे एक प्रश्न की ये दीवार गिराता कौन है ?? मंदिर के चारो ओर सैनिको का पहरा लगा दियागया , महीनो तक प्रयास होते रहे लाखों रूपये की बर्बादी हुई मगर मस्जिद की एक दिवार तक न बन पाई ॥ हिन्दुस्थान के दो इस्लामिक गद्दारों ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह की सारी सिद्धियाँ उस समय धरी की धरी रह गयी ॥ सारे प्रयासों के पश्चात भी मस्जिद की एक दिवार भी न बन पाने की स्थिति में वजीर मीरबाँकी खा ने विवश हो के बाबर को इस समस्या के बारे में एक पत्र लिखा। बाबर ने मीरबाँकी खा को पत्र भिजवाया की मस्जिद निर्माण का काम बंद करकेवापस दिल्ल्की आ जाओ । एक बार पुनः जलालशाह ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए ये सन्देश भिजवाया की बाबर अयोध्या आये

जलालशाह का पत्र पा के बाबर वापस अयोध्या आया और जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से इस समस्या से निजात पाने का तरीका पूछा। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह  ने सुझाव दिया की ये काम इस्लाम से प्राप्त की गयी सिद्धियों के वश का नहीं है , अब नीति से काम लेते हुए हमे हिन्दू संतो से वार्ता करनी चाहिए वही अपने प्रभाव और सिद्धियों से कुछ रास्ता निकाल सकते हैं।

बाबर ने हिन्दू संतो के पास वार्ता का प्रस्ताव भेजा.। उस समय तक जन्मभूमि टूट चुकी थी और अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाटना शुरू किया जा चूका था , पूजा पाठ भजन कीर्तनपर जलालशाह ने प्रतिबन्ध लगवा दिया था। इन विषम परिस्थितियों में हिन्दू संतो ने बाबर से वार्ता करने का निर्णय लिया जिससे काम जन्मभूमि के पुनरुद्धार का एक रास्ता निकाल सके।

बाबर ने अब धार्मिक सद्भावना की झूटी कूटनीति चलते हुए संतो से कहा की आप के पूज्य बाबा श्यामनन्द जी के बाद जलालशाह उनके स्वाभाविक उत्तराधिकारी है और ये मस्जिद निर्माण की हठ नहीं छोड़ रहे हैं , आप लोग कुछ उपाय बताएं उसके बदले में हिंदुओं को पुजा पाठ करने मे छूट दे दी जाएगी॥

हिन्दू महात्माओं ने जन्मभूमि को बचाने का आखिरी प्रयास करते हुए अपनी सिद्धि से इसका निवारण बताया की यहाँ एकपूर्ण मस्जिद बनाना असंभव कार्य है । मस्जिद के नाम से हनुमान जी इस ढांचे का निर्माण नहीं होने देंगे ।इसे मस्जिद का रूप मत दीजिये। इसे सीता जी (सीता पाक अरबी मे ) के नाम से बनवाइए ॥ और भी कुछ परिवर्तन कराये मस्जिद का रूप न देकर यहाँ हिन्दू महात्माओं को भजन कीर्तन पाठ की स्वतन्त्रता दी जाए चूकी जलालशाह अपनी मस्जिद की जिद पर अड़ा था अतः महात्माओं ने सुझाव दिया की एक दिन मुसलमान शुक्रवार के दिन यहाँ जुमे की नमाज पढ़ सकते हैं।

जलालशाह को हिंदुओं को छूट देने का विचार पसंद नहीं आया मगर कोई रास्ता न बन पड़ने के कारण उन्होने हिंदु संतों का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मंदिर के निर्माण के प्रयोजन हेतु दिवारे उठाई जाने लगी और दरवाजे पर सीता पाक स्थान फारसी भाषा मे लिखवा दिया गया जिसे सीता रसोई भी कहते हैं ॥ नष्ट किया गया सीता पाक स्थान पुनः बनवा दिया गया लकड़ी लगा कर मस्जिदके द्वार मे भी परिवर्तन कर दिया ॥ अब वो स्थान न तो पूर्णरूपेण मंदिर था न ही मस्जिद । मुसलमान वहाँ शुक्रवाकर को जुमे की नमाज अदा करते और बाकी दिन हिंदुओं को भजनऔर कीर्तन की अनुमति थी॥

इस प्रकार मुगल सम्राट बाबर ने अपनी कूटनीति से अयोध्या मे एक ढांचा तैयार करने मे सफलता प्राप्त की जिसे हमारे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम देते हैं॥ यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है किसी भी मस्जिद मे क्या किसी भी हिन्दू को पुजा पाठ या भजन कीर्तन की इजाजत इस्लाम देता है ? ? यदि नहीं तो बाबर ने ऐसा क्यू किया ?? जाहीर है उसके मन मे उन काफिरो के प्रति प्यार तो उमड़ा नहीं होगा जिनके घर की बहू बेटियों को वो जबरिया अपने हरम मे रखतेथी और यदि ये एक धार्मिक सदभाव का नमूना था तो मंदिर को ध्वस्त करते समय 1 लाख 74 हजार हिंदुओं की लाशे गिरते समय बाबर की ये सदभावना कहा थी ??


यदि मीरबाँकी एवं बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय और उसके तथ्यात्मक और प्रमाणिक विश्लेषण पर आए और उस समय आस पास इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ये जानने की कोशिश करे..

बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय की प्रतिक्रिया के प्रमाण इतिहास में किसी एक जगह संकलित नहीं मिलते हैं इसका कारण ये था की उसके बाद का ज्यादातर इतिहास मुगलों के अनुसार लिखा गया। कुछ एक मुग़ल कालीन राजपत्रों और दस्तावेजों के माध्यम से जो बाते उभर कर सामने आई वो निम्नवत हैं.

जब मंदिर तोड़ने का निर्णय लिया गया उस समय बाबर ने व्यापक हिन्दू प्रतिक्रिया को देखते हुए बाहर के राज्यों से हिन्दुओं को अयोध्या आने पर रोक लगा दिया गया था। सरकार की आज्ञा प्रचारित की गयी की कोई भी ऐसा व्यक्ति जैस्पर ये संदेह हो की वह हिन्दू है और अयोध्या जाना चाहता है उसे कारागार मे डाल दिया जाए।

सन १९२४ मार्डन रिव्यू नाम के एक पत्र में “राम की अयोध्या नाम” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ जिसके लेखक श्री स्वामी सत्यदेव परिब्रापजक थे जो की एक अत्यंत प्रमाणिक लेखक थे । स्वामी जी दिल्ली में अपने किसी शोध कार्य के लिए पुराने मुगलकालीन कागजात खंगाल रहे थे उसी समय उनको प्राचीन मुगलकालीन सरकारी कागजातों के साथ फारसी लिपि में लिथो प्रेस द्वारा प्रकाशित , बाबर का एक शाही फरमान प्राप्त हुआ जिस पर शाही मुहर भी लगी हुई थी। ये फरमान अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर कोगिराकर मस्जिद बनाने के सन्दर्भ में शाही अधिकारियों को जारी किया गया था । यह पत्र माडर्न रिव्यू के ६ जुलाई सन १९२४ के “श्री राम की अयोध्या” धारावाहिक में भी छपा था. उस फरमान का हिंदी अनुबाद निम्नवत है ।

“शहंशाहे हिंद मालिकूल जहाँ बाबर के हुक्म से हजरत जलालशाह (ज्ञात रहे ये वही जलालशाह है जो पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिया था) के हुक्म के बमुजिव अयोध्या के राम की जन्मभूमि को मिसमार करके उसी जगह पर उसी के मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गयी. बजरिये इस हुक्मनामे के तुमको बतौर इत्तिला के आगाह किया जाता है की हिंदुस्तान के किसी भी गैर सूबे से कोई हिन्दू अयोध्या न जाने पावे जिस शख्श पर यह सुबहा हो की यह अयोध्या जाना चाहता है फ़ौरन गिरफ्तार करके दाखिले जिन्दा कर दिया जाए. हुक्म सख्ती से तमिल हो फर्ज समझकर” … (अंत में बाबर की शाही मुहर)

बाबर के उपरोक्त हुक्मनामे से स्पष्ट होता है की उस समय की मुग़ल सरकार भी यह समझती थी की श्री राम जन्मभूमि को तोड़ कर उस जगह पर मस्जिद खड़ा कर देना आसान काम नहीं है। इसका प्रभाव सारे हिंदुस्थान पर पड़ेगा। धार्मिक भावनाए आहत होने से हिंदुओं का परे देश मे ध्रुवीकरण हो जाएगा उस स्थिति मे दिल्ली का सिंहासन बचना मुश्किल होगा अतः अयोध्या को अन्य प्रांतो से अलग थलग करने का हुक्मनामा जारी किया गया॥

चूकी उपलब्ध साक्ष्यों की परिधि के इर्दगिर्द ही ये विश्लेषण है अतः पूरे दावे के साथ मैं ये नहीं कह सकता की बाबर के इस फरमान की प्रतिक्रिया या असर क्या रहा ?? क्यूकी कोई ठोस लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है मगर जैसा पहले भी मैं लिख चूका हूँ , कनिंघम के लखनऊ गजेटियर में प्रकाशित रिपोर्ट यह बतलाती है कीयुद्ध करते हुए जब एक लाख चौहत्तर हजार हिन्दू जब मारे जा चुके थे और हिन्दुओं की लाशोंका ढेर लग गया तब जा के मीरबाँकी खां ने तोप के द्वारा रामजन्मभूमि मंदिर गिरवाया। कनिंघम के पास इस रिपोर्ट के क्या साक्ष्य थे ये तो कनिंघम के साथ ही चले गए मगर इस रिपोर्ट से एक बात स्थापित हुई की वहांमंदिर गिराने से पहले हिन्दुओं का प्रतिरोध हुआ था और उनकी बड़े स्तर पर हत्या भी हुई थी।

ईसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की ” जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना केलखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। ”

ये तो हुए अन्य इतिहासकारों के प्रसंग अब आते हैं बाबरनामा के एक प्रसंग पर जिसे पढ़करये बात तो स्थापित हो जाती है की बाबर के आदेश से जन्मभूमि का मंदिर ध्वंस हुआ था और उसी जगह पर विवादित ढांचा(मस्जिद) बनवाई गयी ..

बाबर के शब्दों में .. ” हजरत कजल अब्बास मूसा आशिकन कलंदर साहब ( ज्ञात रहे ये वही हजरत कजल अब्बास मूसा हैं जो जलालशाह के पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिए) की इजाजत से जन्मभूमि मंदिर को मिसमार करके मैंने उसी के मसाले से उसी जगह पर यह मस्जिद तामीर की ( सन्दर्भ: बाबर द्वारा लिखित बाबरनामा पृष्ठ १७३)

इस प्रकार बाबर , वजीर मीरबाँकी खा के अत्याचारों कूटनीति और महात्माश्यामनन्द जी महाराज के दो आस्तीन में छुरा भोंकने वाले शिष्यों हजरत कजल अब्बास मूसा और जलालशाह के धोखेबाजी के फलस्वरूप रामजन्मभूमि का मंदिर गिराया गया और एक विवादित ढांचें (जिसे कुछ भाई मस्जिद का नाम देते हैं) का निर्माण हुआ ॥

बाबर के समय में चार आक्रमण:
( १) राजा महताब सिंह का पहला आक्रमण: बाबर के समय जन्मभूमि को मुसलमानों से मुक्त करने के लिए सर्वप्रथम आक्रमण भीटी के राजा महताब सिंह द्वारा किया गया। जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय सम्पूर्ण हिन्दू जनमानस में एक प्रकार से क्रोध और क्षोभ की लहर दौड़ गयी। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे , अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। चुकी महताब सिंह के पास सेना छोटी थी अतः उन्हें परिणाम मालूम था मगर उन्होंने निश्चय किया की रामलला के मंदिर को अपने जीते जी ध्वस्त नहीं होने देंगे उन्होंने सुबह सुबह अपने आदमियों को भेजकर सेना तथा कुछ हिन्दुओं को की सहायता से १ लाख चौहत्तर हजार लोगो को तैयार कर लिया. बाबर की सेना में ४ लाख ५० हजार सैनिक थे। युद्ध का परिणाम एकपक्षीय हो सकता था मगर रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। भीटी के राजा महताब सिंह ने कहा की बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए निकला था यदि वीरगति को प्राप्त हुआ तो सीधा स्वर्ग गमन होगा और उन्होंने युद्ध शुरू कर दिया । रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम होता र हा और अंत में राजा महताब सिंह समेत सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए बाबर की४ लाख ५० हजार की सेना के अब तीन हजार एक सौ पैतालीस सैनिक बचे रहे। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवाया।

(2) देवीदीन पाण्डेय द्वारा द्वितीय आक्रमण:(३ जून १५१८-९ जून १५१८) राजा महताब सिंह और लाखो हिन्दुओं को क़त्ल करने के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण हुआ पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ । उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गांव है वहां के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया॥

देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं ..आप  के पूर्वज श्री राम थे और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। श्री राम ने महर्षि भरद्वाज से प्रयाग में दीक्षा ग्रहण की थी और अश्वमेघ में हमे १० हजार बीघे का द्वेगांवा नामक ग्राम दिया था..आज उसी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥

देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरजस्त धावा बोल दिया इस एकाएक हुए आक्रमण से मीरबाँकी घबरा उठा। शाही सेना से लगातार ५ दिनों तक युद्ध हुआ शाही सेना संख्या बल में काफी बड़ी थी और रामभक्त काम मगर राम के लिए बलिदान देने को तैयार । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय की खोपड़ी बुरी तरह फट गयी मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया और मीरबाँकी को ललकारा। मीरबाँकी तो छिप कर बच निकला मगर तलवार के वार से महावत सहित हाथी मर गया। इसी बीच मीरबाँकी ने गोली चलायी जो पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी को लगी और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर गति को प्राप्त हुए.जैसा की देवीदीन पाण्डेय की इच्छा थी उनका अंतिम संस्कार विल्हारी घाट पर किया गया। यह आक्रमण देवीदीन जी ने ३ जून सन १५१८ को किया था और ९ जून १५१८ को २ बजे दिन में देवीदीन पाण्डेय वीरगति को प्राप्त हो गए। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं॥

इस युद्ध की प्रमाणिकता बाबर द्वारा लिखित”तुजुक बाबरी” से प्रमाणित होती है…बाबर के शब्दों में…..

” जन्मभूमि को शाही अख्तियारों से बाहर करने के लिए जो चार हमले हुए उनमे से सबसे बड़ा हमला देवीदीन पांडे का था , इस शख्स ने एक बार में सिर्फ तीन घंटे के भीतर गोलियों की बौछार के रहते हुए भी , शाही फ़ौज के सात सौ आदमियों का क़त्ल किया। सिपाही की ईट से खोपड़ी चकनाचूरहो जाने के बाद भी वह उसे अपनी पगड़ी के कपडे से बांध कर लड़ा जैसे किसी बारूद की थैली में पलीतालगा दिया गया हो आखिरी में वजीर मीरबाँकी की गोली से उसकी मृत्यु हुई॥ सन्दर्भ “तुजुक बाबरी पृष्ठ ५४०”

(3)हंसवर राजा रणविजय सिंह द्वारा तीसरा आक्रमण: देवीदीन पाण्डेय की मृत्यु के १५दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने आक्रमण करने को सोचा। हालाकी रणविजय सिंह की सेना में सिर्फ २५ हजार सैनिक थे और युद्ध एकतरफा था मीरबाँकी की सेना बड़ी और शस्त्रो से सुसज्जित थी , इसके बाद भी रणविजय सिंह ने जन्मभूमि रक्षार्थ अपने क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए युद्ध को श्रेयस्कर समझा। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए।

(4) माताओं बहनों का जन्मभूमि के रक्षार्थ आक्रमण: रानी जयराज कुमारी का नारी सेना बना कर जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी ।जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया। बाबर की अपार सैन्य सेना के सामने ३ हजार नारियों की सेना कुछ नहीं थी अतः उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा और वो युद्ध रानी जयराज कुमारी ने हुमायूँ के शासनकाल तक जारी रखा जब तक की जन्मभूमि को उन्होंने अपने कब्जे में नहीं ले लिया। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तो को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। चूकी रामजन्म भूमि के लिए संतो और छोटे राजाओं के पास शाही सेना के बराबर संख्याबल की सेना नहीं होती थी अतः स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ , हुमायूँ के समय १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये और १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी काअधिकार हो गया।


लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूर्ण रूप से तैयार शाही सेना फिर भेजी , इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया।

इस युद्ध किया वर्णन दरबरे अकबरी कुछ इस प्रकार करता है
” सुल्ताने हिन्द बादशाह हुमायूँ के वक्त मे सन्यासी स्वामी महेश्वरानन्द और रानी जयराज कुमारी दोनों अयोध्या के आस पास के हिंदुओं को इकट्ठा करके लगातार 10 हमले करते रहे । रानी जयराज कुमारी ने तीन हज़ार औरतों की फौज लेकर बाबरी मस्जिद पर जोआखिरी हमला करके कामयाबी हासिल की । इस लड़ाई मे बड़ी खूंखार लड़ाई लड़ती हुई जयराजकुमारी मारी गयी और स्वामी महेश्वरानंद भी अपने सब साथियों के साथ लड़ते लड़ते खेत रहे।

संदर्भ: दरबारे अकबरी पृष्ठ 301 लेख के अगले भाग मे मै कुछ अन्य हिन्दू एवं सिक्ख वीरों वर्णन दूंगा जिन्होने जन्मभूमि के रक्षार्थ अनेकों युद्ध किए और जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास किया॥

अब जन्मभूमि के लिए हुए अनेको संघर्ष : स्वामीबलरामचारी , बाबा वैष्णवदास , एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह द्वारा जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध , औजरंगजेब की करारी हार।सन 1664 के हमले मे हजारोनिर्दोष हिंदुओं की हत्या और बचा हुआ राम मंदिर ध्वस्त ॥


(5)स्वामी बलरामचारी द्वारा आक्रमण: रानी जयराज कुमारी और स्वामीमहेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामीबलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांवो गांवो में घूम कर रामभक्त हिन्दू युवको और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम से काम १५बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी. स्वामी बालरामचारी का २० वां आक्रमण बहुत प्रबल था और शाही सेना को काफी क्षति उठानी पड़ी। उस समय का मुग़ल शासक अकबर था वो स्वामी बलरामचारी की वीरता से प्रभावित हुआ और शाही सेना का हर आते हुए दिन के साथ इन युद्धों से क्षय हो रहा था..धीरे धीरे देश के हालत मुगलों के खिलाफ होते जा रहे थे अतः अकबर ने अपने दरबारी टोडरमल और बीरबल से इसका हल निकालने को कहा।

विवादित ढांचे के सामने स्वामी बलरामचारी ने एक चबूतरा बनवाया था जब जन्मभूमि थोड़े दिनों के लिए उनके अधिकार में आई थी। अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया. लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु हो गयी ..इस प्रकार स्वामी बलरामचारी के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष के कारण अकबर ने विवादित ढांचे के सामनेएक छोटा मंदिर बनवाकर आने वाले आक्रमणों और हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास किया.

इस नीति से कुछ दिनो के लिए ये झगड़ा शांत हो गया। उस चबूतरे पर स्थित भगवान राम की मूर्ति का पूजन पाठ बहुत दिनो तक अबाध गति से चलता रहा। हिंदुओं के पुजा पाठ या घंटा बजने पर कोई मुसलमान विरोध नहीं करता यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा।सन 1640 मे सनकी इस्लामिक शासक औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो पूर्णतया हिंदुविरोधी और दमन करने वाला था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला।

(6) बाबा वैष्णव दास के नेतृत्व मे आक्रमण:

राजयसिंहासन पर बैठते हि सबसे पहले औरंगजेब का ध्यान अयोध्या की ओर गया । हिंदुधर्मविरोधी औरंगजेब ने अपने सिपहसालार जाँबाज खा के नेतृत्व मे एक विशाल सेना अयोध्या की ओर भेज दी। पुजारियों को ये बात पहले हि मालूम हो गयी अतः उन्होने भगवान की मूर्ति पहले ही छिपा दी। पुजारियों ने रातो रात घूमकर हिंदुओं को इकट्ठा किया ताकि प्राण रहने तक जन्मभूमि की रक्षा की जा सके। उन दिनो अयोध्या के अहिल्याघाट पर परशुराम मठ मे समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी दक्षिण भारत से यहाँ विधर्मियों से देश को मुक्त करने के प्रयास मे आए हुए थे। औरंगजेब के समय बाबा श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपालसिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाहीसेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे और अंततः वीरगति को प्राप्त हुये। ठाकुर गजराज सिंह का मकान तक बादशाह के हुक्म पर खुदवा डाला। ठाकुर गजराज सिंह के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते , जूता नहीं पहनते , छता नहीं लगाते , उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे , छाता नहीं लगाएंगे , पगड़ी नहीं बाधेंगे। तत्कालीन कवि जयराज के एक दोहे मे ये भीष्म प्रतिज्ञा इस प्रकार वर्णित है ॥

जन्मभूमि उद्धार होय , जा दिन बरी भाग।  छाता जग पनही नहीं , और न बांधहि पाग॥

(7) ) बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह द्वारा जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध: जैसा की पहले बताया जा चुका है की औरंगजेब ने गद्दी पर बैठते ही मंदिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व मे एक जबरजस्त सेना भेज दी थी , बाबा वैष्णव दास को इस बात की भनक लगी बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जोहर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनो तक भीषण युद्ध किया । चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से मुगलो की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी ।

जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटकर एक अन्य सिपहसालारसैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिको की सेना देकर अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को तहस नहस कर के वापस आना है ,यह समय सन 1680 का था ।

बाबा वैष्णव दास ने अपने संदेशवाहको द्वारा सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा । गुरुगोविंद सिंह उस समय आगरे मे सिक्खों की एक सेना ले कर मुगलो को ठिकाने लगा रहे थे। पत्र पा के गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेराडा ला । ज्ञातव्य रहे की ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद्सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास के जासूसों द्वारा ये खबर आई की हसन आली 50 हजार कीसेना और साथ मे तोपखाना ले कर अयोध्या की ओर आ रहा है । इसे देखते हुए एक रणनीतिक निर्णय के तहत बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खो के गुरुगोविंद सिंह ने अपनी सेना को तीन भागों मे विभक्त कर दिया । पहला दल सिक्खों के एक छोटे से तोपखाने के साथ फैजाबाद के वर्तमान सहादतगंज के खेतो के पास छिप गए । दूसरा दल जो क्षत्रियों का था वो रुदौली मे इस्लामिक सेना से लोहा लेने लगे। और बाबा वैष्णव दास का तीसरा दल चिमटाधारी जालपा नाला पर सरपत के जंगलो मे जगह ले कर मुगलो की प्रतीक्षा करने लगा।

शाही सेना का सामना सर्वप्रथम रुदौली के क्षत्रियों से हुआ एक साधारण सी लड़ाई के बाद पूर्वनिर्धारित रणनीति के अनुसार वो पीछे हट गए और चुपचाप सिक्खों की सेना से मिल गए । मुगल सेना ने समझा की हिन्दू पराजित हो कर भाग गये , इसी समय गुरुगोविंद सिंह के नेतृत्व मे सिक्खों का दल उन पर टूटपड़ा , दूसरे तरफ से हिंदुओं का दल भी टूट पड़ा सिक्खों ने मुगलो की सेना के शाही तोपखाने पर अधिकार कर लिया दोनों तरफ से हुए सुनियोजित हमलो से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था इस करारी हार के बाद औरंगजेब ने कुछ समय तक अयोध्या पर हमले का कार्यक्रम स्थगित कर दिया । हिंदुओं से मिली इस हार का वर्णन औरंगजेब आलमगीर नामे मेकुछ इस प्रकार लिखता है

“बाबरी मस्जिद के लिए काफिरो ने 20 हमले किए सबमे लापरवाही की वजह से शाही फौज ने शिकस्त खायी। आखिरी हमला जो गुरुगोविंदसिंह के साथ बाबा वैष्णव दास का हुआ उसमे शाही फौज का सबसे बड़ा नुकसान हुआ । इस लड़ाई मे शहजादा मनसबदार सरदार हसन ली खाँ भी मारे गये ।” संदर्भ: आलमगीर पृष्ठ623

इस युद्ध के बाद 4 साल तक औरंगजेब ने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। मगर इन चार वर्षों मे हिन्दू कुछ असावधान हो गए। औरंगजेब ने इसका लाभ उठाते हुए सान 1664 मे पुनः एक बार श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया ।इन चार वर्षों मे सभी एकत्रित हिन्दू अपने अपने क्षेत्रों मे चले गए थे।अतः ये एकतरफा युद्ध था हालाँकि कुछ पुजारियों और हिंदुओं ने मंदिर रक्षा का प्रयत्न किया मगर शाही सेना के सामने निहत्थे हिन्दू जीतने की स्थिति मे नहीं थे , पुजारियों ने रामलला की प्रतिमा छिपा दी । इस हमले मे शाही फौज ने लगभग 10 हजार हिंदुओं की हत्या कर दी ।मंदिर के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था , सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलो ने उसमे फेककर चारो ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है , और मंदिर के पूर्वी द्वार पर स्थित है जिसे मुसलमान अपनी संपत्ति बताते हैं।
औरंगजेब ने इसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया है । ‘
“लगातार चार बरस तक चुप रहने के बाद रमजान की 27वी तारीख को शाही फौज ने फिर अयोध्या की रामजन्मभूमि पर हमला किया । इस अचानक हमले मे दस हजार हिन्दू मारे गये। उनका चबूतरा और मंदिर खोदकर ज़मींदोज़ कर दिया गया । इस वक्त तक वह शाही देखरेख मे है। संदर्भ: आलमगीरनामा पृष्ठ 630
शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था । औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत , पुष्प और जल चढाती रहती थी.

मजहबी आतंक के विरूद्ध अमरीका में बढ़ रहा है गुस्सा

$
0
0

अमरीका में बढ़ रहा है गुस्सा

तारीख: 30 Nov 2015 12:13:21

 9/11 हमला करने वाले मुस्लिम आतंकियों ने 90 बार अल्लाह के नारे लगाये थे। कोई मुझे बताये यह इस्लामिक कैसे नहीं है। रेडिकल इस्लाम-ये शब्द मुसलमानों को चुभते हैं? आखिर मुसलमानों को सच चुभता क्यों है? मुसलमानों को कुरान की आयत 3: 151 की वह आयत क्यों नहीं चुभती जिसमें कहा गया है कि 'जल्दी ही हम गैर मजहबियों के दिलों में खौफ बरपा देंगे'?     — पामेला जैलर,  ब्लॉगर, अमरीका



हम रेडिकल इस्लाम से लड़ रहे हैं। कुरान में ऐसा कुछ नहीं है जो 'रूहानी जिहाद'की बात करता हो।
— हिलेरी क्लिंटन, पूर्व विदेश मंत्री, अमरीका



विशेष प्रतिनिधि
अमरीका की जानी-मानी ब्लॉगर और लेखिका पामेला जैलर अपने देश में बढ़ रहे मजहबी आतंक को लेकर हमेशा की तरह मुखर हैं। दुनियाभर की जिहादी गतिविधियों पर नजर रखते हुए वे अमरीका के संदर्भ में वैश्विक आतंक की बारीकियों को समझने, खंगालने और विश्लेषण करने में जुटी हुई हैं। अपने एक लेख में पामेला ने अमरीका के वाममार्गियों की इस्लामी आतंक और इस्लामिक स्टेट को इस्लाम से पृथक करने की चाल पर उनको आड़े हाथों लिया है। वे कहती हैं,'आज जॉर्ज बुश उनके नए चहीते बनकर उभरे हैं। ये वहीं जॉर्ज बुश हैं जिन्होंने इस्लाम को 'शान्ति का मजहब'बताया था।'पामेला कहती हैं,'असल में  इस्लामिक जगत में शान्ति तभी और केवल तभी हो सकती है जब दुनिया में दारुल इस्लाम कायम हो जाये।'
वे आगे लिखती हैं, 'यही लक्ष्य था,14 सौ साल पहले और यही लक्ष्य है आज भी। 9/11 की घटना हममें से ज्यादातर के लिए एक गहरा झटका थी। बुश ने मन में गलत बात बैठा रखी थी कि उदारवादी मुस्लिम जगत कट्टरवादी मुस्लिम जगत को पछाड़ देगा। बुश को यह बात समझ नहीं आई कि उदारवादी मुसलमानों के पास कोई सैद्धांतिक धरातल नहीं है। आईएसआईएस, अल कायदा, अल शबाब और बाकी सारे जिहादी गुट विशुद्ध इस्लामी भावना के अनुसार चलते हैं। वही असली इस्लाम है। जब कोई जिहादी पेरिस (या लंदन, न्यूयार्क, मुंबई, इस्रायल आदि) में खुद को बम से उड़ा लेता है तो लोग नासमझ बने यही कहते मिलते हैं, 'समझ नहीं आया उसे क्या हुआ, वह तो इतना अच्छा लड़का था, बड़ा अच्छा पड़ोसी था।'होता यह है कि जब कोई मुस्लिम मजहबी हो जाता है और उसी के जुनून की खुमारी में फिदायीन बन जाता है और लोगों की जान ले लेता है। बुश के बरअक्स हिलेरी क्लिंटन ने रेडिकल इस्लाम की चर्चा की थी और कहा था कि हम रेडिकल इस्लाम से लड़ रहे हैं। कुरान में ऐसा कुछ नहीं है जो 'रूहानी जिहाद'की बात करता हो।'
पामेला लिखती हैं,'जिहादी हिंसा बढ़ रही है। अभी पेरिस में ही आस्थावान'मुसलमानों ने पेरिस में करीब 150 लोगों की जान ले ली। इसके बाद इस्रायल में एक मुस्लिम ने एक अमरीकी किशोर को मार दिया। हत्यारे को उसके इमाम और उसकी मजहबी किताब ने हत्या के लिए उकसाया था। उधर माली में इस्लामी जिहादियों ने एक अमरीकी नागरिक को मार डाला, जबकि 'आस्थावान'मुसलमानों के एक समूह ने एक महंगे होटल पर हमला करके 170 बंधकों में से मुसलमानों को चुनकर रिहा कर दिया था। बचे बंधकों को उन्होंने अपनी कुख्यात इस्लामी परीक्षा से गुजारते हुए कहा कि जो कुरान की आयतंे सुना दें, वे जा सकते हैं। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। केन्या में हुआ है। सितम्बर, 2013 में नैरोबी के एक मॉल में मुसलमानों ने उन लोगों को मार डाला था जो कुरान की आयतें नहीं सुना पाए थे। नवम्बर, 2014 में भी इसी वजह से 28 गैर मुसलमानों को मार डाला गया था। अप्रैल, 2015 में 'अल्लाहू अकबर'के नारे लगाते हुए गरीसा विश्वविद्यालय पर हमला किया और कुरान की आयतें न दोहरा पाने वालों को हलाक कर दिया। नवम्बर, 2008 में मुंबई पर हमला बोला गया था।'
      वे आगे लिखती हैं, '9/11 हमला करने वाले मुस्लिम आतंकियों ने 90 बार अल्लाह के नारे लगाये थे। कोई मुझे बताये यह इस्लामिक कैसे नहीं है। रेडिकल इस्लाम-ये शब्द मुसलमानों को चुभते हैं? आखिर मुसलमानों को सच चुभता क्यों है? मुसलमानों को कुरान की आयत 3: 151 की वह आयत क्यों नहीं चुभती जिसमें कहा गया है कि 'जल्दी ही हम गैर मजहबियों के दिलों में खौफ बरपा देंगे'? हमारे खिलाफ जिहाद की यह लड़ाई वैसी ही जगजाहिर है जैसा कि आसमान का रंग। इजिप्ट के राष्ट्रपति सीसी ने कहा था, हम उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां मुसलमानों ने पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया है।
क्या यह बात हजम हो सकती है 1.6 अरब मुसलमान शेष दुनिया की 7 अरब आबादी को मार डालें ताकि मुसलमान फल-फूल सकें? यह संभव नहीं है।'पामेला के अनुसार, 'अगर आप मुसलमान नहीं हैं तो इस्लामी कानून के तहत आपके सामने तीन रास्ते हैं- इस्लाम में कन्वर्ट हो जाओ, मुस्लिम झंडे तले रहो और लंबे-चौड़े कर चुकाओ, अपने मुस्लिम आकाओं की गुलामी में रहो जहां आपके कोई बुनियादी अधिकार न हों, या फिर मरो। अमरीकी नागरिकों का कत्ल हो रहा है और अमरीका के वाममार्गी इस उम्मीद में खून सनी जमीन को झाड़-पोंछ रहे हैं कि अमरीका को ये सब नहीं दिखेगा।' 

असहिष्णुता केवल सियासी मुद्दा : चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर

$
0
0

असहिष्णुता केवल सियासी मुद्दा : चीफ जस्टिस

http://www.datelineindia.com



नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा है कि देश में असहिष्णुता नहीं है.यह केवल सियासी मुद्दा है। उन्होंने कहा कि जब तक देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट है, किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने कहा कि इस देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं. दूसरे धर्मों के लोग यहां आए और फले-फूले. यह हमारी विरासत है. बाकी सब धारणा की बात है.

सीजेआई ठाकुर ने कहा कि मैं एक ऐसे संस्थान का नेतृत्व कर रहा हूं जो कानून का शासन सुनिश्चित करता है. जब तक कानून है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता है, तब तक मुझे लगता है कि हम समाज के हर तबके के हर शख्स के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम हैं.

सीजेआई ने लोगों से एक अपील भी की. कहा- ‘मैं आप लोगों से अपील करता हूं कि आपस में एक-दूसरे के लिए प्रेम रखें.‘ उन्होंने समाज में वैर भाव कम करने और हर समय सबको मिलजुल रहने का संदेश दिया.

जस्टिस ठाकुर ने केजरीवाल सरकार के प्रदूषण कम करने के नए फार्मूले पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को कार पूलिंग सिस्टम से चलना चाहिए. इससे लोगों में सही संदेश जाएगा. यह कोई त्याग नहीं है, बल्कि लोगों को प्रोत्साहित करने का एक प्रयास है.
-----------------
असहिष्णुता राजनीतिक दलों के लिए

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने आज कहा कि असहिष्णुता राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण विषय हो सकता है, लेकिन लोगों को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि शीर्ष अदालत कानून के शासन के लिए मौजूद है।  

न्यायमूर्ति ठाकुर ने यहां मीडियाकर्मियों के साथ चाय पर चर्चा के दौरान कहा कि देश में असहिष्णुता को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है, लेकिन इसे लेकर देशवासियों को तब तक डरने की कोई जरूरत नहीं है, जब तक उच्चतम न्यायालय मौजूद है और कानून के शासन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता भी।  

उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का काम संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना है और देश में जब तक यह कोर्ट है तब तक कानून का शासन मौजूद रहेगा और देशवासियों को डरने की कोई जरूरत नहीं है।’ गत तीन दिसंबर को मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद न्यायमूर्ति ठाकुर की मीडियाकर्मियों से यह पहली बातचीत थी।  

गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से असहिष्णुता को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है और इसके मद्देनजर 50 से अधिक साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और फिल्मकारों ने अपने पुरस्कार लौटाये हैं। इन सभी का आरोप है कि केन्द्र सरकार जानबूझकर दक्षिणपंथी ताकतों को बढ़ावा दे रही है। हालांकि केन्द्र सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है।
--------------------
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने असहिष्णुता को बताया सियासी मुद्दा,- बोले, 'किसी को डरने की जरूरत नहीं'
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस  टीएस ठाकुर ने असहिष्णुता को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि देश में असहिष्णुता नहीं है और ये केवल एक सियासी मुद्दा है। देश में कानून का राज है इसलिए किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीफ जस्टिस ने कहा कि इस देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं। कई संस्कृतियां यहां विकसित हुई है, यही हमारी विरासत है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि असहिष्णुता सियासी बहस के आयाम हो सकते हैं, लेकिन देश में जब तक कानून व्यवस्था बनाए रखने  के लिए सुप्रीम कोर्ट है जब तक किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है।

ठाकुन ने कहा कि जब तक कानून है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता है, तब तक मुझे लगता है कि हम समाज के हर तबके के हर शख्स के अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम हैं।

चीफ जस्टिस लोगों ने अपील करते हुए कहा कि आपस में एक-दूसरे के लिए प्रेम रखें, उन्होंने समाज में वैर भाव कम करने और हर समय सबको मिलजुलकर रहने का संदेश दिया।

पाकिस्तान पहुंची : अमेरिका के कैलिफोर्निया में हुई गोलीबारी की जांच

$
0
0


पाकिस्तान तक पहुंची अमेरिका के कैलिफोर्निया में हुई गोलीबारी की जांचTuesday, December 8, 2015


वॉशिंगटन : चरमपंथी दंपति द्वारा सान बर्नार्डिनो में अंजाम दी गई गोलीबारी की जांच का दायरा बढ़कर पाकिस्तान समेत कई बाहरी देशों तक पहुंच गया है। यह जानकारी एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी ने दी। अमेरिकी अटॉर्नी जनरल लॉरेटा लिंच ने एनबीसी के ‘मीट द प्रेस’ में कल दिए एक साक्षात्कार में कहा, पाकिस्तान उनमें से एक देश है। कुछ अन्य देश भी शामिल हैं। एफबीआई पाकिस्तानी नागरिक ताशफीन मलिक और पाकिस्तानी मूल के उसके पति सैयद रिवान फारूक द्वारा बुधवार को एक जनसमूह पर गोलीबारी करके की गई 14 लोगों की हत्या के मामले की जांच कर रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे आतंकी कृत्य करार दिया है।
लिंच ने एक सवाल के जवाब में कहा, जांच जारी है। इसका दायरा व्यापक है, यह बहुत जटिल है। इसकी जांच एफबीआई द्वारा की जा रही है क्योंकि हमें चरमपंथ से प्रभावित होने के संकेत मिले हैं। यह एक आतंकी जांच है लेकिन हम हमारे राज्य और स्थानीय समकक्षों के साथ मिलकर काम करना जारी रखे हुए हैं। इसके अलावा एटीएफ मार्शल जमीन पर तैनात हैं।

ताशफीन और फारूक की शादी लगभग दो साल पहले सउदी अरब में हुई थी। इनकी मुलाकात एक मेट्रीमोनियल साइट पर हुई थी। ताशफीन ने अपनी अधिकांश जिंदगी सउदी अरब में बिताई और फिर वह पाकिस्तान में अपनी पढ़ाई पूरी करने गई। इसके बाद वह फारूक की मंगेतर के रूप में अमेरिका आ गई थी। उन्होंने कहा, अब तक हुई जांच में इस बात का संकेत नहीं मिला है कि इस दंपति ने बंदूकें क्यों उठा लीं और क्यों ये हत्यारे बन गए?

उन्होंने कहा, मैं कह सकती हूं कि हमारी जांच का केंद्र यही है। हम इन दोनों हत्यारों की जिंदगी के बारे में हर संभव जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। वे कहां पले-बढ़े, कैसे मिले? इन चीजों से हमें दिशानिर्देशन मिलेगा। लिंच ने कहा कि अमेरिका सउदी प्रशासन से भी बात कर रहा है। मैं पूरी जानकारी नहीं दे सकती क्योंकि हम सूचना जुटाने के लिए अपने विदेशी समकक्षों के साथ बात कर रहे हैं। यह एक लंबी प्रक्रिया होगी। हम उनके जीवन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिकी अटॉर्नी जनरल ने कहा, हम इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि इन दोनों को ऐसी प्रेरणा कहां से मिली? उन्होंने इस कृत्य को अंजाम क्यों दिया और यह स्थान विशेष क्यों चुना?

भाषा 
=========

फारूक को गोलीबारी करने से पहले मिले थे 28,500 डॉलर
aajtak.in [Edited by: परवेज़ सागर] | कैलिफोर्निया, 8 दिसम्बर 2015


अमेरिका के कैलिफोर्निया में दो दिसबंर को गोलीबारी की घटना को अंजाम देने वाले सैयद फारूक के बैंक खाते में इस वारदात से दो सप्ताह पहले 28,500 डॉलर जमा किए गए थे. अब जांच अधिकारी इस बात का पता लगाने को कोशिश कर रहे हैं कि ये रकम उसे क्यों और किस लिए मिली थी.

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जांचकर्ताओं ने खुलासा किया कि सैयद फारूक को यह रकम वेबबैंक डॉट कॉम से मिली थी. फॉक्स न्यूज ने सान बर्नार्डिनो में हुई घातक गोलीबारी पर अपनी विशेष रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है.


उस रिपोर्ट के मुताबिक जांचकर्ता इस बात का पता लगा रहे हैं कि क्या फारूक ने लोन के रूप में यह रकम ली थी. सैयद फारूक के माता पिता अमेरिका से पाकिस्तान आकर बस गए थे. फारूक एक पर्यावरणीय स्वास्थ्य निरीक्षक के तौर पर प्रतिवर्ष 53,000 डॉलर कमाता था.

एफबीआई अधिकारियों ने संवाददाताओं को बताया कि आतंकवादी दंपति पिछले कुछ समय से चरमपंथ से प्रभावित हो रहे थे. एफबीआई के लॉस एंजिलिस फील्ड ऑफिस में प्रभारी सहायक निदेशक डेविड बॉउडिक ने बताया कि वे दोनों कुछ समय से चरमपंथ से प्रभावित होकर काम कर रहे थे.


सैयद फारूक और पाकिस्तान से आई उसकी पत्नी ताशफीन मलिक ने बीते बुधवार को सान बर्नार्डिनो में गोलीबारी की वारदात को अंजाम दिया था. जिसमें 14 लोग मारे गए थे जबकि कई लोग जख्मी हो गए थे. इस वारदात को राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आतंकवादी कृत्य करार दिया था.


================

कैलिफोर्निया में हमला करने वाली 

तशफीन ने मुल्तान में ली थी जेहाद की ट्रेनिंग!

December 07, 2015 आईबीएन-7


नई दिल्ली। पाकिस्तानी मूल की तशफीन मलिक और उसके पति रिजवान फारूक ने 5 दिन पहले अमेरिका के कैलिफोर्निया में अंधाधुंध गोलियां बरसाकर 14 लोगों की जान ले ली। थर्रा देने वाली इस आतंकी वारदात के साथ पाकिस्तान का नाम जुड़ते ही अमेरिका समेत दुनिया भर की जांच एजेंसियों के कान खड़े हो गए और जब जांच एजेंसियों और खोजी पत्रकारों ने तफशीन के टेरर कनेक्शन की पड़ताल की तो सामने आया पाकिस्तान की जेहाद फैक्टरी नाम। जेहाद फैक्टरी यानी पाकिस्तान के वो तमाम मदरसे, जहां नौजवानों को धर्म की आड़ में जेहाद का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक तफशीन और उसके पति रिजवान के इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के मौलाना अब्दुल अजीज से गहरे ताल्लुकात थे। मौलाना अब्दुल अजीज अपने कट्टरपंथी विचारों के पूरे पाकिस्तान में कुख्यात है। जांच अधिकारियों को तफशरीन और मौलाना अब्दुल अजीज की एक साथ खींची गई तस्वीर भी मिली है।

इस्लामाबाद की मस्जिद के साथ-साथ तफशीन ने जेहाद का सबसे बड़ा पाठ मुल्तान में हासिल किया। तफशीन ने मुल्तान की बहाउद्दीन जकारिया यूनिवर्सिटी से फार्मेसी की पढ़ाई की थी। जैसे-जैसे तफशीन और रिजवान के पाकिस्तानी कनेक्शन सामने आ रहे हैं पाकिस्तान सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।
आरोप लग रहे हैं कि तफशीन के दिमाग में जेहाद का जुनून पाकिस्तान में ही ठूंसा गया। मुल्तान में पढ़ाई के दौरान वो कई कट्टरपंथियों की संगत में रही
आरोप यहां तक लग रहे हैं कि तफशीन ने सोची-समझी साजिश के तहत ही रिजवान फारूक को अपने जाल में फंसाया। फिर रिजवान से शादी करके वो अमेरिका पहुंची और उसने रिजवान का भी ब्रेन वॉश किया। इसके बाद दोनों ने मिलकर कैलिफोर्निया शूटआउट को अंजाम दिया।
इस वारदात में मुल्तान का नाम सामने आने के बाद जब दुनिया भर के पत्रकार वहां पहुंचे तो उन्हें होटल में ही नजरबंद कर लिया गया। मुल्तान पुलिस ने विदेशी पत्रकारों को तफशीन के तमाम लिंक और रिश्तों की जांच-पड़ताल से रोक दिया। यहां तक कि पत्रकारों के होटल से बाहर निकलने तक पर रोक लगा दी गई।
मुल्तान में नजरबंद किए गए वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार टिम क्रेग ने ट्वीट किया। पाकिस्तानी अफसर पत्रकारों को होटल से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं। मुझे भी मुल्तान के होटल से बाहर जाने से रोक दिया गया है। पाकिस्तान अफसरों का कहना है कि मैं विदेशी पत्रकार हूं और मुझे तुरंत इस्लामाबाद लौट जाना चाहिए।
एक तरफ तो पाकिस्तानी अफसर इस बात से साफ इनकार कर रहे हैं कि मुल्तान में ही तफशीन को जेहादी पाठ पढ़ाया गया और दूसरी ओर विदेशी पत्रकारों को यहां उनकी जान का खतरा बताते हुए डरा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि विदेशी पत्रकारों को मुल्तान में रिपोर्टिंग करने से रोकने वाले अफसर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े हैं। पत्रकारों को डराने के लिए उन्हें मुल्तान में जारी शिया-सुन्नी विवाद की भी दुहाई दे रहे हैं।
बता दें कि मुल्तान को सुन्नी चरमपंथियों का गढ़ माना जाता है। तफशीन से जुड़ी सच्चाई को छिपाने के लिए आईएसआई के अफसर किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यहां तक कि वो विदेशी पत्रकारों के साथ मार-पीट से भी बाज नहीं आ रहे। वो पत्रकारों को धमकाने के लिए अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या की कहानी सुना रहे हैं। पर्ल की 2002 में मुल्तान इलाके में ही आतंकियों ने अपहरण के बाद हत्या कर दी थी।
सूत्रों के मुताबिक तफशीन का मुल्तान कनेक्शन सामने आते ही आईएसआई के अफसर उससे जुड़े सबूत मिटाने में जुट गए हैं। शनिवार को कुछ अफसरों ने बहाउद्दीन यूनिवर्सिटी का दौरा किया और तफशीन से जुड़े सबूत मिटाए।  साथ ही यूनिवर्सिटी के टीचरों को रिपोर्टरों से बात करने से मना किया गया है।
दरअसल, मुल्तान को जेहाद फैक्टरी का नया गढ़ माना जा रहा है। अफगानिस्तान सीमा से सटे होने के चलते आईएसआई यहां चरमपंथी गुटों को जमकर हवा दे रहा है। आमतौर पर भारत के खिलाफ हमले के लिए भी आतंकवादी गुटों को यहीं ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन मुल्तान की जेहाद फैक्टरी से निकली तशफीन की करतूत ने मुल्तान को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया है।
कैलिफोर्निया शूटआउट के बाद पूरी दुनिया की मीडिया समेत तमाम खुफिया एजेंसियों की नजर मुल्तान और यहां की जेहाद फैक्टरियों पर टिक गई है और आईएसआई ये नहीं चाहती है। यही वजह है अपनी जेहाद फैक्टरियों को दुनिया की निगाह से दूर रखने के लिए वो विदेशी पत्रकारों को यहां रिपोर्टिंग करने से रोक रही है।
उधर कैलिफोर्निया शूटआउट की जांच में जुटी एजेंसियों को रिजवान फारूक के घर से भारी मात्रा में गोलियां और हथियार मिले हैं। रिजवान के घर से मिली इन असलहों से सब हैरान हैं। कैलिफोर्निया पुलिस के मुताबिक तफशीन और रिजवान के घर से 5 हजार से ज्यादा गोलियां, एक दर्जन पाइप बम और बड़ी मात्रा में विस्फोटक बनाने वाला सामान मिला है।
आपको बता दें कि कैलिफोर्निया के बर्नार्डिनो में तफशीन और रिजवान ने अंधाधुंध गोलियां बरसा कर 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इस फायरिंग में तफशीन ने 70 से ज्यादा गोलियां दागी थीं। इस हमले में 21 लोग जख्मी हुए थे।

भविष्यवेत्ता बाबा वेंगा की चौंकानेवाली भविष्यवाणियां

$
0
0

बाबा वेंगा नामक महिला भविष्यवेत्ता की कही 
भविष्यवाणी का आगाज है आईएसआईएस, जानिए...
sanjeevnitoday.com | Thursday, December 10, 2015

नई दिल्ली। सदियों पहले फ्रेंच एस्ट्रॉलोजर नास्त्रेदमस ने कहा था कि तीसरा विश्वयुद्ध दुनिया के लिए तबाही लेकर आएगा। हालांकि इसकी अभी कोई संभावना नहीं दिखाई देती है परन्तु बाबा वेंगा ने भी नास्त्रेदमस की इस बात का समर्थन करते हुए कहा है कि आने वाले कुछ वर्षों में पूरे यूरोप पर मुस्लिमों का कब्जा होगा। यूरोप में तबाही होगी और वहां रहने वाला कोई नहीं होगा। यूरोप के इस्लामीकरण की प्रक्रिया 2016 में शुरू होगी जो 2043 तक पूर्णतया मुस्लिम आबादी में बदल जाएगी।
20 साल पहले ही इस बात की भविष्यवाणी हो गई थी कि 2016 में दुनियाभर में ‘ग्रेट मुस्लिम वार’ होगा। यह वॉर 2010 में अरब की धरती से शुरू होगा। इसके बाद सीरिया में लड़ा जाएगा और 2043 में रोम के केंद्र में खिलाफत की स्थापना के साथ इसका अंत हो जाएगा। यह भविष्यवाणी बुल्गारिया की नेत्रहीन महिला भविष्यवक्ता बाबा वंगा ने की थी, जिनका करीब 20 साल पहले 1996 में 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था।
बताते चलें कि बाबा वंगा का असली नाम वेंगेलिया पांडेवा दिमित्रोवा था। उनका जन्म बुल्गारिया में हुआ था। पैदा होने के बाद करीब 12 साल तक उनकी आंखें ठीक थीं। कहा जाता है कि एक बड़े तूफान के दौरान उनकी आंखों में मिट्टी भर गई थी, जिससे उनकी आंख की रोशनी चली गई थी। वह अपने परिवार से बिछुड़ गई थीं। काफी दिनों बाद वह मिलीं। उन्होंने कई सटीक भविष्यवाणियां की हैं।
बुल्गारिया की प्रसिद्ध भविष्यवक्ता बाबा वेंगा को आधुनिक नास्त्रेदमस या लेडी नास्त्रेदमस कहा जाता है। जब वह 12 वर्ष की थी तब वह एक रेतीले तूफान में फंस गई थी, आंखों में धूल जाने तथा कई दिनों तक इलाज नहीं होने के कारण उनकी आंखें हमेशा के लिए चली गई। परन्तु अंधे होने के बाद उन्हें भविष्य को देखने की शक्ति मिली जिससे वह अपने आस-पास के लोगों की भविष्यवाणियां करने लगी। उनकी भविष्यवाणियां बिल्कुल सही सिद्ध होती थी जिसके चलते दुनिया भर के लोग उनके पास भविष्य पूछने आने लगे।
जब कभी वह एकांत में होती थी वह दुनिया का भविष्य देखने का प्रयास करती तथा भविष्यवाणियां करती। उन्होंने अपने जीवन काल में विश्व से जुड़ी दर्जनों भविष्यवाणियां की जो बाद में बिल्कुल सही साबित हुई। उनकी इन भविष्यवाणियों में इंदिरा गांधी के तानाशाह बनने, धरती के गर्म होने, अमरीका पर 9/11 का आतंकी हमला होने, 2004 में भयावह सुनामी तथा 2010 में सीरिया में शुरू हुई अरब क्रांति जैसी घटनाएं प्रमुख हैं जो पूर्णतया सच सिद्ध हुई।
बाबा वेंगा की मृत्यु 1996 में 85 वर्ष की अवस्था में हो गई थी। परन्तु अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने दुनिया के भविष्य से जुड़ी कई ऐसी भविष्यवाणियां की जिनके सच होने पर दुनिया का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
बाबा वेंगा के अनुसार वर्ष 2016 में यूरोप पर कट्टरपंथी मुस्लिमों का हमला होगा और पूरे यूरोप में तबाही मच जाएगी। उल्लेखनीय है कि लीबिया के शहर सिर्ते पर कब्जा करने के साथ ही इस्लामिक स्टेट यूरोप के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। वर्ष 2025 तक यूरोप पूरी तरह तबाह और तहस-नहस हो चुका होगा जबकि 2043 में वर्तमान खाड़ी देशों की तरह यूरोप में भी इस्लामिक शासन होगा।
बाबा वेंगा ने किसी अफ्रीकी-अमरीकी के अमरीका के 44वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने की भविष्यवाणी की थी जो बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के साथ ही सत्य हो गई। परन्तु उन्होंने यह भी कहा कि ओबामा अमरीका के आखिरी राष्ट्रपति हो सकते है। यह कैसे होगा, इसके लिए हमें समय का इंतजार करना होगा।
2043 में पूरा यूरोप इस्लामिक देश में बदल चुका होगा और रोम इसकी मुस्लिम राजधानी बन चुका होगा। 2066 में अमरीका यूरोप में ईसाई धर्म की पुर्नस्थापना के लिए जलवायु परिवर्तन हथियार (या न्यूक्लियर हमले) का उपयोग करेगा जो यूरोप से मुस्लिमों का सफाया कर देगा।

-------------


यूरोप होगा ISIS का गुलाम - बाबा वेंगा ने की भविष्यवाणी


सदियों पहले फ्रेंच एस्ट्रॉलोजर नास्त्रेदमस ने कहा था कि तीसरा विश्वयुद्ध दुनिया के लिए तबाही लेकर आएगा। हालांकि इसकी अभी कोई संभावना नहीं दिखाई देती है परन्तु बाबा वेंगा ने भी नास्त्रेदमस की इस बात का समर्थन करते हुए कहा है कि आने वाले कुछ वर्षों में पूरे यूरोप पर मुस्लिमों का कब्जा होगा। यूरोप में तबाही होगी और वहां रहने वाला कोई नहीं होगा। यूरोप के इस्लामीकरण की प्रक्रिया 2016 में शुरू होगी जो 2043 तक पूर्णतया मुस्लिम आबादी में बदल जाएगी।

बुल्गारिया की प्रसिद्ध भविष्यवक्ता बाबा वेंगा को आधुनिक नास्त्रेदमस या लेडी नास्त्रेदमस कहा जाता है। जब वह 12 वर्ष की थी तब वह एक रेतीले तूफान में फंस गई थी, आंखों में धूल जाने तथा कई दिनों तक इलाज नहीं होने के कारण उनकी आंखें हमेशा के लिए चली गई। परन्तु अंधे होने के बाद उन्हें भविष्य को देखने की शक्ति मिली जिससे वह अपने आस-पास के लोगों की भविष्यवाणियां करने लगी। उनकी भविष्यवाणियां बिल्कुल सही सिद्ध होती थी जिसके चलते दुनिया भर के लोग उनके पास भविष्य पूछने आने लगे।

जब कभी वह एकांत में होती थी वह दुनिया का भविष्य देखने का प्रयास करती तथा भविष्यवाणियां करती। उन्होंने अपने जीवन काल में विश्व से जुड़ी दर्जनों भविष्यवाणियां की जो बाद में बिल्कुल सही साबित हुई। उनकी इन भविष्यवाणियों में इंदिरा गांधी के तानाशाह बनने, धरती के गर्म होने, अमरीका पर 9/11 का आतंकी हमला होने, 2004 में भयावह सुनामी तथा 2010 में सीरिया में शुरू हुई अरब क्रांति जैसी घटनाएं प्रमुख हैं जो पूर्णतया सच सिद्ध हुई।

बाबा वेंगा की मृत्यु 1996 में 85 वर्ष की अवस्था में हो गई थी। परन्तु अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने दुनिया के भविष्य से जुड़ी कई ऐसी भविष्यवाणियां की जिनके सच होने पर दुनिया का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

बाबा वेंगा के अनुसार वर्ष 2016 में यूरोप पर कट्टरपंथी मुस्लिमों का हमला होगा और पूरे यूरोप में तबाही मच जाएगी। उल्लेखनीय है कि लीबिया के शहर सिर्ते पर कब्जा करने के साथ ही इस्लामिक स्टेट यूरोप के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। वर्ष 2025 तक यूरोप पूरी तरह तबाह और तहस-नहस हो चुका होगा जबकि 2043 में वर्तमान खाड़ी देशों की तरह यूरोप में भी इस्लामिक शासन होगा।

बाबा वेंगा ने किसी अफ्रीकी-अमरीकी के अमरीका के 44वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने की भविष्यवाणी की थी जो बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के साथ ही सत्य हो गई। परन्तु उन्होंने यह भी कहा कि ओबामा अमरीका के आखिरी राष्ट्रपति हो सकते है। यह कैसे होगा, इसके लिए हमें समय का इंतजार करना होगा।

2043 में पूरा यूरोप इस्लामिक देश में बदल चुका होगा और रोम इसकी मुस्लिम राजधानी बन चुका होगा।

2066 में अमरीका यूरोप में ईसाई धर्म की पुर्नस्थापना के लिए जलवायु परिवर्तन हथियार (या न्यूक्लियर हमले) का उपयोग करेगा जो यूरोप से मुस्लिमों का सफाया कर देगा।

2023 में धरती की धुरी (परिक्रमा का केन्द्र बिन्दु) बदल जाएगी जिसके चलते धरती के वातावरण में कई आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिलेंगे।

2028 में मनुष्य शुक्र ग्रह तक पहुंच जाएगा।

2033 में धरती के दोनों ध्रुवों की बर्फ पिघल जाएगी जिससे समुद्र किनारे बसे कई शहर पूरी तरह पानी में डूब जाएंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी शुरूआत हो चुकी है और नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 1993 से 2009 तक समुद्र का स्तर 1.89 इंच बढ़ चुका था जो अब हर वर्ष 3 मिलीमीटर की दर से बढ़ रहा है। बाबा वेंगा के अनुसार 22वीं सदी में समुद्र तल में रहने की तकनीक ढूंढ ली जाएगी और भविष्य के शहर समुद्र के अंदर ही बसाए जाएंगे।

2076 में यूरोप में साम्यवाद लौटेगा और फिर पूरे विश्व में साम्यवाद ही होगा। इसके कुछ ही वर्षों बाद पूरी धरती पर रोबोट्स की फौज होगी जो मानव जीवन में दखल देने लगेगी।

2084 में धरती का पुर्नजन्म होगा। इस भविष्यवाणी का क्या अर्थ है इसकी कोई व्याख्या नहीं की गई है।

2100 अर्थात 22वीं सदी की शुरूआत में धरतीवासी पहला कृत्रिम सूर्य बनाने में सफल हो जाएंगे जो धरती की लंबे समय तक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता रहेगा।

Viewing all 2976 articles
Browse latest View live